Wednesday, August 24, 2011

बेचन ठाकुरक नाटक छीनरदेवी- आशीष अनचिन्हार

छीनरदेवी
ऐ नाटकक मादें किछु कहबासँ पहिने ओ गप्प कही जे प्रायः-प्रायः अंतमे कहल जाइत छैक। श्रुति प्रकाशन एकटा बड़का काज ठानि लेने अछि- हीरा-मोती-माणिककेँ चुनबाक। आ ऐ मे ई कतेक सफल भेल तकर निर्धारण भविष्य करत, वर्तमान नै कारण वर्तमान समयक नीति-निर्धारकक इमान शून्य स्तरपर पहुँचि गेल अछि। मुदा एहन-एहन समस्याक अछैतो हमर शुभकामना ऐ प्रकाशनक संग अछि आ विश्वास अछि जे जेना ई धारक दूरी पार केलक अछि तेनाहिते आब ई समुद्रक दूरी पार करत। आ संगहि-संग ऐ नाटककेँ उपर अनबामे जनिकर कनेकबो योगदान छन्हि से अशेष धन्यवादक पात्र छथि।
जहिआ सनातन धर्ममे पुराण-उपनिषद् के आगमन भेल रहैक, तहिआ देवी-देवताक संख्या ३३ करोड़ रहैक। आजुक समयमे जखन कि पौराणिक समय बितला बहुत दिन भए गेल तखन देवी देवताक संख्या कतेक हएत ? हमरा बुझने ३३ करोड़सँ बेसिए। तथापि सुविधाक लेल एकरा यथावत् मानू। आ एतेक देवी-देवताक अछैतो छीनरदेवीक आविर्भाव किएक?
उत्तर हम नै देब कारण ई गप्प सभ जनैत छथि मुदा लोक ऐ उत्तरकेँ नुका कऽ रखैत अछि। आ संभवतः छीनरदेवीक ऐ रूपकेँ छिनरधत्त कहल जाइत छैक। ओना एकरा बादमे हम निरुपित करब। ओइसँ पहिने एकटा आरो महत्वपूर्ण प्रश्नपर चली। जँ अहाँ श्री बेचन ठाकुर कृत ऐ नाटककेँ नीकसँ पढ़ब तँ ई बुझबामे कोनो भाँगठ नै रहत जे ऐ नाटकक मूल स्वर अंधविश्वासपर चोट करब छैक। आ जखने अहाँ ऐ निषकर्षपर पहुँचब, अहाँकेँ तुरंते प्रो. हरिमोहन झा मोन पड़ि जेताह से उम्मेद अछि। आ जखने अहाँकेँ प्रो. झा मोन पड़ताह तखने हमरा मोनमे ई प्रश्न उठत जे प्रो. झा जइ प्रबलतासँ अंधविश्वासपर कलम चलेने छलाह तकरा बाबजूदो ६०-७० साल बाद बेचन जीकेँ ऐ पर कलम चलेबाक जरूरति किएक पड़लनि ? एकर दूटा कारण भऽ सकैत अछि पहिल जे प्रो. झाक प्रहारक बाबजूदो अंधविश्वास मेटाएल नै ( हम ई नै कहि रहल छी जे ई प्रो. झाक हारि थिक कारण हरेक लेखकक एकटा सीमा होइत छैक) आ दोसर कारण भऽ सकैत अछि जे बेचन जीकेँ कोनो बिषए नै भेटल होइन्ह आ मजबूरीमे ओ ऐ पर कलम उठेने होथि। मुदा आइ बर्ख २०-११ मे जखन गामे-गाम घूमै छी आ ओकर आंतरिक स्थितिकेँ परखैत छी तँ दोसर कारण अपने-आप खत्म भऽ जाइत अछि। आइयो गाम आ अर्धशहरी इलाकामे एलोपैथीक संगे-संग भस्म-विभूति आ ब्रम्हथानक माटि उपचारमे लाएल जाइत अछि। आ एकरा संगे ईहो स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे प्रो. झाक बादो ई अंधविश्वास मरल नै। आ एहने समयमे हमरा लग ई प्रश्न बिकराल रूप धऽ आबि जाइत अछि जे प्रो. झाक बाद जे नाटककार भेलाह ( चूँकि बेचन ठाकुर जीक विधा नाटक छन्हि तँए हम नाटकेक दृष्टिसँ गप्प करब) से एतेक दिन धरि की करैत छलाह ?
आब हम ऐ प्रश्न सबहक उत्तर ऐ ठाम नै लिखब। एकर कारण अछि जे हमरा सदासँ विश्वास रहल अछि जे साहित्यिक संदर्भमे वर्तमान समयक उत्तर जँ भविष्यमे प्राप्त हुअए तँ ओ बेसी सटीक आ सार्थक होइत छैक।अस्तु श्री बेचन ठाकुर जीसँ मैथिली मंचकेँ बड्ड आस छैक आ तइ आसकेँ पूरा करबाक तागति भगवान हुनका देथिन्ह तइ आसाक संग चली हम प्रेक्षक समूहमे।
कोनो नाटक पहिने लिखल जाइए आ तकर बाद ओ टाइप होइए वा सोझे टाइप कएल जाइए आ तकर बाद कखन छपैए, मंचनक बाद वा मंचनक पहिने; ऐ सभमे आब कोनो अन्तर नै रहलै। जॉर्ज बर्नार्ड सॉ शॉर्टहैण्डमे लिखै छलाह आ हुनकर स्टेनो ओकरा लौंगहैण्डमे टाइप करै छलीह। बिनु छपने मैथिली धूर्तसमागम मैथिलीक पहिल पोस्ट मॉडर्न अबसर्ड नाटक अछि। ई तर्क जे छपलाक पहिने मंचन भेलासँ बहुत रास कमी दूर भऽ जाइए, ऐ सन्दर्भमे मलयालम कथाकार बशीरक उदाहरण अछि जे सभ नव छपल संस्करणमे अपन कथामे नीक तत्व अनबाक दृष्टिसँ संशोधन करै छलाह, ई कथामे सम्भव तँ नाटकमे तँ आर सम्भव। तँ सिद्ध भेल जे लिखल जेबाक वा छपि गेलाक बादे नाटकक मंचन हएत आ मंचनक बाद लिखल वा छपल दुनूमे सुधार सम्भव। बेचन ठाकुरजी रंगमंच निर्देशक सेहो छथि आ विगत २५ बर्खसँ अपन गाममे मैथिली रंगमंचकेँ जियेने छथि बिना कोनो संस्थागत (सरकारी वा गएर सरकारी) सहयोगक। हिनकर रंगमंचपर हिनकर दर्जनसँ बेसी नाटकक अतिरिक्त गजेन्द्र ठाकुर आ जगदीश प्रसाद मण्डलक नाटक, एकांकी आ बाल नाटकक मंचन सेहो भेल अछि। (साभार विदेह)

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