विभारानीक नाटक "बलचन्दा"
श्रीमति विभा रानी मैथिली साहित्यक चर्चित लेखिका छथि। श्रुति प्रकाशनसँ प्रकाशित हुनक नाटक द्वय भाग रौ आ बलचन्दा पढ़लौं। भाग रौ बड़ नीक लागल, परंच बलचन्दा पढ़िते हृदएमे नव वेदना पसरि गेल आ समीक्षा लिखबाक दु:साहस कऽ देलौं।
वास्तवमे बलचन्दा नाटक नै छोट पोथीमे मात्र २० पृष्ठक एकांकी थिक। सभसँ पैघ गप्प जे विभा जी वर्तमान सामाजिक जीवनक सभसँ पैघ समस्याकेँ अपन लेखनीक विषय बनौलन्हि। कन्या भ्रुण हत्या वर्तमान समाजमे विकट रूप लऽ रहल अछि। प्राय: नाटकमे पुरूष प्रधान पात्रकेँ नायक कहल जाइत अछि, परंच ऐठाँ रोहितक भूमिका खलनायकक अछि। विजातीय समाजक एक शिक्षितसँ क्षणक आवेगमे प्रेम कएलनि। विवाह सेहो भऽ गेल। मुदा ओइ स्त्रीकेँ की भेटल? अभियन्ताक शिक्षा ग्रहण कएलाक पश्चात् गृहिणी बनि कऽ रहि गेली। पुरूष प्रधान समाज तैयो पाछॉं नै छोड़लक। प्रथम संतान बालक होएबाक चाही। आश्चर्यक गप्प ई जे ऐ प्रकारक आदेश सासु द्वारा देल गेल। एक नारी द्वारा दोसर नारीसँ आबएबला नारीक नाश करबाक कुटिल आज्ञा ऐ एकांकीक मूल विषए-वस्तु अछि। खलनायक चुप्प छथि, किएक तँ ओ मातृभक्त। तखन दोसर माएकेँ संतति हंता किए बनाबए चाहैत छथि। जीवन भरि संग देबाक शपथक की भेल? जखन निर्वाह करबाक सामर्थ्य नै छल तँ आन जातिक कन्याकेँ संगिनी किए बनौलन्हि? रोहितक प्रेम-सिनेह नै वरन् वासना मात्र छल।
स्त्रीकेँ भोग्या बना कऽ राखब ओइ परिवारक मूल संकल्प। ओइ लोकनिकेँ सोचबाक चाही जे आब ओ दिन बीति गेल, नारी लक्ष्मी तँ चंडी सेहो छथि। रोहितक स्त्री गर्भपातक प्रबल विरोध कएलनि। प्रतिज्ञा कऽ लेली जे अबैबला तनयाक प्रतिपाल स्वयं करब।
ऐ एकांकीक भाषा सरल आ सुन्दर अछि। विषए-वस्तुक सम्पादन सुन्दर आ आकर्षक। मैथिल संस्कृतिक व्यापक प्रदर्शन। जय-जय भैरविसँ प्रारंभ आ समदाओनसँ इति श्री। नारी व्यथाक मर्मस्पर्शी चित्रणक संग जाति व्यवस्थापर मैथिली साहित्यक लेल ई नाटक नै एकटा आन्दोलन कहल जा सकैत अछि। संस्कृतिक रक्षाक लेल आ सामाजिक संतुलन हेतु साहित्यिक आन्दोलन, विभा जीकेँ नमन..।
पोथिक नाम- भाग रौ आ बलचन्दा
लेखिका- विभा रानी
श्रीमति विभा रानी मैथिली साहित्यक चर्चित लेखिका छथि। श्रुति प्रकाशनसँ प्रकाशित हुनक नाटक द्वय भाग रौ आ बलचन्दा पढ़लौं। भाग रौ बड़ नीक लागल, परंच बलचन्दा पढ़िते हृदएमे नव वेदना पसरि गेल आ समीक्षा लिखबाक दु:साहस कऽ देलौं।
वास्तवमे बलचन्दा नाटक नै छोट पोथीमे मात्र २० पृष्ठक एकांकी थिक। सभसँ पैघ गप्प जे विभा जी वर्तमान सामाजिक जीवनक सभसँ पैघ समस्याकेँ अपन लेखनीक विषय बनौलन्हि। कन्या भ्रुण हत्या वर्तमान समाजमे विकट रूप लऽ रहल अछि। प्राय: नाटकमे पुरूष प्रधान पात्रकेँ नायक कहल जाइत अछि, परंच ऐठाँ रोहितक भूमिका खलनायकक अछि। विजातीय समाजक एक शिक्षितसँ क्षणक आवेगमे प्रेम कएलनि। विवाह सेहो भऽ गेल। मुदा ओइ स्त्रीकेँ की भेटल? अभियन्ताक शिक्षा ग्रहण कएलाक पश्चात् गृहिणी बनि कऽ रहि गेली। पुरूष प्रधान समाज तैयो पाछॉं नै छोड़लक। प्रथम संतान बालक होएबाक चाही। आश्चर्यक गप्प ई जे ऐ प्रकारक आदेश सासु द्वारा देल गेल। एक नारी द्वारा दोसर नारीसँ आबएबला नारीक नाश करबाक कुटिल आज्ञा ऐ एकांकीक मूल विषए-वस्तु अछि। खलनायक चुप्प छथि, किएक तँ ओ मातृभक्त। तखन दोसर माएकेँ संतति हंता किए बनाबए चाहैत छथि। जीवन भरि संग देबाक शपथक की भेल? जखन निर्वाह करबाक सामर्थ्य नै छल तँ आन जातिक कन्याकेँ संगिनी किए बनौलन्हि? रोहितक प्रेम-सिनेह नै वरन् वासना मात्र छल।
स्त्रीकेँ भोग्या बना कऽ राखब ओइ परिवारक मूल संकल्प। ओइ लोकनिकेँ सोचबाक चाही जे आब ओ दिन बीति गेल, नारी लक्ष्मी तँ चंडी सेहो छथि। रोहितक स्त्री गर्भपातक प्रबल विरोध कएलनि। प्रतिज्ञा कऽ लेली जे अबैबला तनयाक प्रतिपाल स्वयं करब।
ऐ एकांकीक भाषा सरल आ सुन्दर अछि। विषए-वस्तुक सम्पादन सुन्दर आ आकर्षक। मैथिल संस्कृतिक व्यापक प्रदर्शन। जय-जय भैरविसँ प्रारंभ आ समदाओनसँ इति श्री। नारी व्यथाक मर्मस्पर्शी चित्रणक संग जाति व्यवस्थापर मैथिली साहित्यक लेल ई नाटक नै एकटा आन्दोलन कहल जा सकैत अछि। संस्कृतिक रक्षाक लेल आ सामाजिक संतुलन हेतु साहित्यिक आन्दोलन, विभा जीकेँ नमन..।
पोथिक नाम- भाग रौ आ बलचन्दा
लेखिका- विभा रानी
(साभार विदेह)
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