Wednesday, August 24, 2011

सामाजिक विवर्त्तक जीवन झा- प्रेमशंकर सिंह

सामाजिक विवर्त्तक जीवन झा
उनैसम शताब्दीक पंचम दशकमे आधुनिक मैथिली साहित्यक क्षितिजपर एक प्रतिभा सम्पन्न साहित्य मनीषीक आविर्भाव भेल जे अपन नवोन्मेषशालिनी प्रतिभाक प्रसादात परिप्रदीत्पि प्रकाश पुञ्जसँ बीसम शताब्दीक प्रथम दशक धरि अबैत-अबैत मैथिली नाट्य-साहित्यक पूर्ववर्त्ती परम्परामे क्रान्तिकारी परिवर्त्तन आनि, परवर्त्ती युगक नाट्यकार लोकनिक हेतु एक उन्मेष, नमोन्मेषक नेतृत्व नवीन नाट्य गद्यक जनक, प्रगतिशील विचारक, संवेदनशील मनोवृत्ति, कल्पनाशील मस्तिष्क, सरस रोमांचक अनुभूति एवं मैथिल समाजमे परिव्याप्त समस्याक प्रति अतिसाकांक्ष भ’ समाजकेँ दिशा-निर्देश करबाक स्तुत्य प्रयास कयलनि, ओ रहथि शलाका पुरुष कविवर जीवन झा (1848-1912) राजदरवारसँ सम्पोषित रहितहुँ ओ जन-जनमे चेतनाक दीप जरौलनि, कण-कणमे उत्साह पसारलनि आ क्षण-क्षणमे सर्जनाक दिशा निर्दिष्ट कयलनि। युगपुरुष जीवन झाक समसामयिक समाज आ साहित्य बौद्धिक उत्तेजनाक लहरिसँ गुजरि रहल छल। राजनीति, समाजनीति, अर्थनीति, धर्मनीति, संस्कृति, संगीत, नाटकक एवं चित्रकारीपर वैज्ञानिक प्रभावक फलस्वरूप परिवर्द्धन, परिवर्त्तन, परिमार्जन प्रारम्भ भ’ गेल छलैक। शिक्षाक नवज्योतिक फलस्वरूप सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक चेतनाक उदय भेल, जकर स्वाभाविक अभिव्यक्ति हिनक नाटकादिक प्रमुख केन्द्र विन्दु थिक।

ओ एक दूरदर्शी साहित्य चिन्तक सदृश आशा-निराशाक मिलन-विन्दुपर जनमानसकेँ देखलनि। ओ नैराश्यक अन्धकारमे आशाक दीप जरौलनि। युगीन परम्पराकेँ नीक जकाँ चिन्हलनि तथा युगानुभूति एवं कालक सत्यताक कोनो स्थितिकेँ अभिव्यक्त करबाक शक्तिकेँ दमित नहि क’ पौलनि। सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे सामाजिक विषमताक हुँकार, तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक स्थितिक उपस्थापनमे अक्षर पुरुष प्रमाणित भेलाह। सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टिसँ जखन हम हिनक नाटकादिक परीक्षण-निरीक्षण करैत छी, तखन हम ओकरा समसामयिक सामाजिक स्थितिक दर्पण, सांस्कृतिक वैभवक धरोहरि आ आर्थिक विपन्नतासँ संत्रस्त समाजक यथार्थ एलबम कहि सकैत छी। ई सर्वविदित सत्य थिक जे ओहि कृतिकारक कृतित्व अक्षय रहैछ, जे सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवनक वास्तविक प्रतिनिधित्व करैछ, जनिका हृदयमे उपर्युक्तक प्रतिपूर्ण आस्था रहैछ तथा ओकर अधःपतनकेँ जन मानसक समक्ष रेखांकित क’ सचेष्ट हैबाक प्रेरणा दैछ, कारण साहित्य तँ हमर जीवनानुभूतिकेँ प्रतिविम्बित करैछ।

युगपुरुष जीवन झाक नाटकादिक प्रेरणास्रोत थिक नवीन जागरणक ज्योति। अपन सजग आँखिएँ ओ देश-देशान्तरक विकासोन्मुख गतिविधिपर दृष्टि निक्षेप कयलनि, एहि विषयक अनुभव कयलनि जे मैथिल समाजमे नवजागरणक अभाव अछि। ई अपन नाटकक कथानकक चयनक निमित्त मिथिलाक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थिति दिस दृकपात कयलनि तथा अपन युगक वास्तविक समसामयिक स्थितिक रूपायन ओहिमे कयलनि।

संस्कृत पण्डित रहितहुँ जीवन झा आधुनिकताक पूर्णपक्षपाती अपन कृतित्वमे दृष्टिगत होइत छथि। मिथिलांचलमे परिव्याप्त वैवाहिक समस्या छल तकरा केन्द्र-विन्दु बनाय सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे देशन्नितिक निमित्त नाटकक माध्यमे जन-आन्दोलनक प्रेरणा देलनि, कारण मिथिलामोद ओ मैथिल महासभाक आविर्भावसँ पूर्वहि ई अपन नाट्य कृतिमे ओकर समाधानार्थ विचार प्रस्तुत कयलनि। मैथिल समाजमे तिलक-दहेज, जाति-पाँजिक नामपर कन्यापर होइत अत्याचार एवं अन्याय एवं अन्य सामाजिक कुप्रथापर प्रत्यक्ष वा परोक्ष रूपेँ अपन आलोचनात्मक दृष्टिकोण जनसामान्यक समक्ष प्रस्तुत कयलनि।

सामाजिक पृष्ठभूमिकेँ आधार बनाय ई मैथिलीमे नाट्य-लेखनक शुभारम्भ कयलनि। हिनक तीन सम्पूर्ण नाटकक सुन्दर संयोग (1904), सामवती पुनर्जन्म, नर्मदा सागर सट्टक एवं खण्डित मैथिली सट्टक समकालीन सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितिक उद्देश्य निर्धारणमे सहायक होइछ। वस्तुतः हिनक नाटकादिमे मैथिल समाजक विश्वास एवं संस्कारक प्रतिविम्ब भेटैछ, जकरा माध्यमे ओ उच्च जीवनक प्रतिष्ठाक आकांक्षी भेलाह। हिनक सम्पूर्ण नाट्य-साहित्यमे व्याप्त सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्तरक सन्निवेशक कारणेँ मिथिलांचलक वातावरणमे परिव्याप्त अछि।

विवाहक चौमुखी समस्यापर आधारित वासना, प्रेम, मिलन आ विछोह यद्यपि हिनक नाटकक केन्द्र-विन्दु थिक, जकर समाजशास्त्रीय एवं भाषाशास्त्रीय अध्ययन अपेक्षणीय अछि। सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भमे मैथिल सामाजिक जीवनक अधिकाधिक प्रामाणिक रूप सुन्दर संयोग एवं नर्मदा सागर सट्टकमे प्रस्तुत करबामे ओ सफलता प्राप्त कयलनि। हिनक नाटकादि मात्र मनोरंजनक हेतु नहि, प्रत्युत जीवनक गम्भीर समस्याक समाधान करबाक उद्देश्यसँ उत्प्रेरित भ’ रचना कयलनि। एकर नायक-नायिका मिथिलांचलक परम्परागत कुलीन प्रथाक रूप प्रदर्शित करैछ। यद्यपि सामवती पुनर्जन्मक कथानक पौराणिक पृष्ठभूमिपर आधारित अछि, तथापि ओकर प्रत्येक पात्र समसामयिक समाज, संस्कृति एवं आर्थिक पृष्ठभूमिमे उतारल गेल अछि।

सुन्दर संयोगमे नाट्यकार समाजक ओहि मानसिक स्थितिक विश्लेषण कयलनि अछि, जे जाति-पाँजि, कुलीनता, बिकौआ प्रथापर प्रचलित बहु-विवाह आ पत्नी-परित्यागक सन विकृतिसँ उत्पन्न होइत छल। तथाकथित कुलीनजन अनेक बियाह करैत रहथि आ पत्नीकेँ नैहरमे छोड़ि दैत रहथि। भलमानुसक पत्नीक जीवन गति इएह छलैक। विवाह क’ कए जाथि आ जीवन भरि वापस नहि आबथि। दाम्पत्य सुख एहन कन्याक निमित्त जीवन भरि अननभूत सत्य बनल रहि जाइत छलैक। ओ ने तँ कुमारिए रहैत छल आ वास्तवमे सधवे। सधवा रहितो वैधव्य-वेदना सहैत रहैत छल। एहन स्थितिक चित्रण निम्नस्थ पंक्तिमे व्यि‍ञ्जत भेल अछि :
सीमन्तक सिन्दूरक रेखासँ छी हम धन मन्ती।
हाथक दू लहठीसँ होइछ सधवामे नित गनती।
मिथिलांचलमे कुलीनताक बलपर प्रतिवर्ष विवाह करब सामान्य बात छल। समाजमे एहन परम्परा प्रचलित छलैक जे एक ठाम विवाह आ चतुर्थी सम्पन्न क’ कए दोसर ठाम पुनः विवाह करैत छलाह। कुलीन व्यक्ति विवाहोपरान्त पलटि क’ जयबाक प्रयोजन नहि बुझैत रहथि। समयक क्रममे अपन पत्नीक आकृति आ सासुरक लोककेँ बिसरि जाथि। अत्यल्प परिचयक कारणेँ सर-कुटुम्बकेँ नहि चिन्हब तँ सर्वथा स्वाभाविक।

एहन विषम स्थितिमे कन्याक माता-पिता, समाज आ कन्याकेँ केहन मानसिक यातना होइत छलैक, निराशा आ विषादसँ आछन्न मनःस्थितिमे कोना जीवन यापन करैत छल मे स्वतः कल्पनातीत छल। कोनो सौभाग्यशालिनी कन्याकेँ पुनः दाम्पत्य जीवन प्राप्त होयतैक, कतेक उल्लास होयतैक, केहन हर्ष होयतैक, ओहो काल्पनिक अछि।मिथिलांचलमे प्रचलित कन्यादानी शब्द ओही परिणीता, किन्तु परित्यक्ता नारीक यातनामय इतिहासकेँ अपनामे समेटने अछि।

युगपुरुष जीवन झाक समसामयिक सामाजिक वातावरणमे परम्परा परिव्याप्त छल। सामाजिक जीवनमे ई प्रतिष्ठाक विषय छल। नाटकककार एहि सामाजिक परिस्थितिसँ पूर्ण अवगत रहथि। एकर दुष्प्रभावकेँ ओ अनुभव कयने रहथि। समाजक ओहि परिवेशमे कन्यापक्षक मानसिक अन्तर्द्वन्द्वकेँ ओ सुन्दर संयोगमे अभिव्यक्त कयलनि। समाजक समक्ष ओ सुन्दर मिश्र सदृश आदर्श पुरुषक रूपमे प्रस्तुत कयलनि।

सुन्दर मिश्र अपन सासुरक प्रत्येक व्यक्ति, अपन पत्नीकेँ तखने चिन्ह जाइत छथि, जखन हरदत्त पण्डा हुनक ससुरक पूर्व पुरखाक नाम गाम बाँचैत छथि। ओ चतुर्थी दिन पत्नीक अस्वस्थताक कारणेँ सासुर छोड़ि देने रहथि। ओ अपन पत्नी पर्यन्तकेँ नहि चिन्ह पौने रहथि। इएह स्थिति तँ सरलाक ओकर माय, ओकर परिवार, ओकर सखी-बहिनया ओ समाजक छलैक। किन्तु सभक मनमे आशाक किरण छलैक जे भलमानुस सुन्दर मिश्र विवाह क’ कए चल गेलाह तँ आ ने बिकौआ वर जकाँ नहि जे आबथि। एहि मानसिकताक अभिव्यक्ति सरस्वतीक कथनमे अभिव्यक्त भेल अछि। जखन ओ वैद्यनाथकेँ प्रार्थना करैत छथि; हे वैद्यनाथ! जे जे कबुला कैल सभ मनोरथ पुरल, आब जमाइकेँ कुशल पूर्वक देखी से वरदान दिअ (सुन्दर संयोग, पृष्ठ 12)।

सरस्वतीक मनोभाव अत्यधिक पल्लवित भेल अछि, जखन ओ अनचीन्हेमे (अपन जमाय) सुन्दर मिश्रकेँ कहैत छथिन, हेँ बाबू! बड़ पुण्य रहैत तँ एकर ई वयस भेलैक जमाय चुतुर्थिअहिक दिन एकरा दुखित छोड़िकेँ जे गेलाह से आइ धरि उदेशो ने पबै छिऐन्ह! (सुन्दर संयोग, पृष्ठ-14)।

जखन पण्डाइन संकेत करैत छथिन जे पण्डित बाबू सरलाक वर थिकथिन तखन हुनक निराशा व्यक्त होइत छनि, एहन भाग हमर कहाँ जे जमायकेँ देखब परन्तु वैद्यनाथ बड़ गोट थिकाह।(सुन्दर-संयोग, पृष्ठ-19)

सरलाक मनोव्यथा तावत धरि अव्यक्त रहैछ जावत धरि ओकरा संकेत नहि भेटैछ जे पण्डित बाबू सम्भवतः ओकरे वर थिकथिन। तत्पश्चात् ओकर विरह व्यथाक अभिव्यक्ति भेल अछि। मुदा ओ सामान्य विरह नहि थिक। सरलाक कथन गद्य आ गीतमे सामाजिक परिवेश-जन्य विषाद बजैत अछि, हे वैद्यनाथ! ऐ तरहेँ दुखिनीकेँ किए सतबैत छहक। (सुन्दर-संयोग, पृष्ठ-20) मे दुखिनी शब्दक मार्मिकताक अनुभूति तखने भ’ सकैछ, जखन ओहि समयक सामाजिक परिवेशक अनुभव हो। ओहि सामाजिक कुप्रथाक पृष्ठभूमिमे सरलाक कथन विशेषार्थ बोध भ’ जाइछ;
एतदिन शिवपद सेवल, केवल एतबहि काज।
से प्रसन्न वर भाषल राखल मोर कुल लाज॥
(सुन्दर संयोग, पृष्ठ-18)
बुझा देमक चाही कौखना अनजानकेँ कनिएँ।
जे ई अपराध छौ तोहर किए हमरासँ रुसल छी॥
(सुन्दर संयोग, पृष्ठ-19)

सरलाक विरह समाजशास्त्रीय विषय थिक जे समाजक परिस्थितिसँ उत्पन्न भेल अछि। एहि तथ्यकेँ नाट्यकार अन्तमे स्पष्ट करैत छथि। सुन्दर सासुरसँ गाम जयबाक जखन प्रस्ताव करैत छथि, तखन उद्विग्न भ’ जाइछ, हमरा बुझि परैए जे एहि लोकक मन फेरि अन्तऽ गेलैक। (सुन्दर संयोग, पृष्ठ-33)। ओ सुन्दरकेँ कहैत छथिन, और नहि किछु, जे फेरि ओएह बरहमासा सबने गाबक पड़ै (सुन्दर संयोग, पृष्ठ-34)।

सुन्दर जखन ओहि बारहमासा गीतक जिज्ञासा करैत छथिन तँ सरलाक उत्तर थिक, छओ मासक प्राप्त खन लोक बाजै जे आब नहि औथीन तखन सँ कादम्बरी बहिनक संग इएह गीत सब गबै छलहुँ। (सुन्दर संयोग, पृष्ठ-34)

सुन्दर संयोग नाटकक कथानक सामान्य प्रेम-कथाक परिधिमे नहि राखल जा सकैछ। ओ थिक मैथिल समाजमे प्रचलित नारी-यातनाक मानस-इतिकथा। प्रकारान्तरेँ नाट्यकार ओहि प्रथाक प्रति अरुचि प्रदर्शित करैत समाधान रूपमे सुन्दर सदृश आदर्श पुरुषक प्रयोजनीयता देखौलनि। सुन्दरमे आदर्श पतिक प्राण प्रतिष्ठा क’ कए नाट्यकार समाजकेँ कान्ता सम्मति उपदेश देलनि।

हिनक नाटककमे मिथिलाक सामाजिक जीवनमे व्याप्त विवाह सम्बन्धी कुप्रथादिक प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रतिफलित भेल अछि, तकर विश्लेषणसँ प्रतिभाषित होइछ जे नाटकककार सामाजिक सुधारक प्रति पूर्णतः साकांक्ष रहथि। विवाह सदृश अतिमहत्वपूर्ण संयोजनमे निरीह पात्री होइछ कन्या। सामवती पुनर्जन्मक प्रस्तावनामे नटीक कथन थिक:
कन्या कुल मर्यादामे बान्हलि फूजय मुँह न बकार।
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-3)

समाजमे कन्याकेँ पुत्रक अपेक्षा न्यून मानल जाइत अछि जे सर्वथा अनुचित। तेँ तँ गौतमीक कथन थिक; तखन पुत्र वा कन्या दु टा संसारमे ह्वै छैक। हम तँ बड़ि प्रसन्न छी। (सामवती पुनर्जन्म पृष्ठ-23)

जीवन झा कालीन मिथिलांचलक समाज दुइ वर्ग-सम्पन्न एवं विपन्न वर्गमे विभाजित छल। ताहि कारणेँ स्वजातिमे जाति-पाँजि, कुलीन-अकुलीन, सोति-जोग, भलमानुष, जयवार, पठियार इत्यादिक विचार समाजमे घून जकाँ लागल छलैक। एकरे फलस्वरूप कन्या-विक्रय, बिकौआप्रथा, बहुविवाहप्रथा आ अनेक अमानुषिक समस्याकेँ जन्म दैत छल। ई श्रेय युगपुरुष जीवन झाकेँ छनि जे अपन नाटकक माध्यमे एकर साक्षात विरोध करबाक साहस कयलनि। नर्मदा सागर सट्टक क’ सुन्दर मिश्र तकर ज्वलन्त प्रमाण छथि। मोदन मिश्र सुन्दर मिश्रकेँ नीक जाति-पाँजिक वर त्रिविक्रम ठाकुरक संग नर्मदाक विवाह करयबाक विचार दैत अपन मतक समर्थनमे कहैत छथि:
कुलहीन जमाय अधीन कुलीन सुता अनुताप सदा सहती।
बसि नीच मनुष्यक बीच यथोचित नीच कथा कहती सुनती।।
पठियार अगार अाचार-विचार विचारि विचारि व्यथा सहती।
परिवार समान जहाँ न तहाँ भरिजन्म कोना सुख सँ रहती॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-107)

उपर्युक्त पंक्तिमे कन्याक पिताक मानसिक व्यथाक तथा सामाजिक व्यवस्था, ओकर परिवेश आ परिस्थितिक रेखांकन नाटकककार अत्यन्त सूक्ष्मताक संग क’ कए समाजकेँ दिशा-निर्देश करबाक उपक्रम कयलनि। एहिपर सुन्दर मिश्रक कथन छनि :
उत्तम जाति जमाय असङ्गत कष्ट सुता सभ काल जनाउति।
सासु दयादिन आदि अनादर वाद कथेँ कुल छोट गनाउति।।
जीउति जौ सहि गारि कदाचित् मातु-पिता हित बन्धु कनाउति।
ई असमञ्जस हैत निरर्थक ऊँचक सङ्ग जे नीच बनाउति॥
(कविवर जीवन झा रचनावली पृष्ठ-107)

नाटकककार सामाजिक वातावरणमे परिव्याप्त वैवाहिक प्रथाक प्रसंगमे अपन विचार व्यक्त करैत ओकर मात्र आलोचने नहि कयलनि, प्रत्युत एहन वैवाहिक सम्बन्धक प्रसंगपर तीक्ष्ण व्यंग्य सेहो कयलनि तथा समाजकेँ सुधरबाक संकेत देलनि।

सामवती पुनर्जन्ममे बन्धुजीवक विकौआ मनोवृत्ति आ पुनर्विवाह करबाक चेष्टाक प्रति सारस्वत ओ वेदमित्रक तिरस्कार भावसँ नाटकककारक व्यक्तिगत विचार धाराक परिचय भेटैत अछि। एहि प्रसंगमे बन्धुजीवक कथन छनि :

जे हमरा ठुनकाबथि से लय पहिरथु राङ।
हम पुनि कतहु विकायब पोसब अपन समाङ।
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठथ.39)

उपर्युक्त कथनमे विकौआ प्रथाक निन्दाक स्पष्ट झलक भेटैत अछि। सामवती पुनर्जन्ममे घटक द्वारा सारस्वतकेँ वर पक्षसँ टाका गनयबाक प्रस्तावपर सरस्वतक उत्तरक अवलोकन करू, छी ! छी ! टाकाक चर्चा कोन हमरा तेहन मैत्री अछि आ ओ ततेटा व्यक्ति छथि जे एहन कथा सुि‍न टाका तँ गनि देताह। परन्तु असन्तोष हयतैन्हि। ई कथा पुनि जनि बाजी। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-46)

नर्मदा सागर सट्टकमे त्रिविक्रम ठाकुर दिससँ नर्मदाक प्रति टाका गनयबाक घटकक प्रस्तावपर सुन्दर मिश्रक विपरीत प्रतिक्रियाक संग देल गेल उत्तर :
पिता आनि वर कन्या का वसन-विभूषण-युक्त।
सादर अर्पय मन्त्रवत मे विवाह विधि युक्त॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-109)

मिथिलांचलक समाजमे प्रचलित नियमानुकूल वैवाहिक सम्पर्क स्थापत्यर्थ घटक-पजिआड़क नियोजन एक आवश्यक उपादान थिक। युगपुरुष जीवन झाक चाहे सामाजिक नाटकक हो वा पौराणिक ओ अपन प्रत्येक नाटककमे एकर नियोजन कयलनि अछि। सामवती पुनर्जन्ममे सेहो घटक पजिआड़क नियोजन कयल गेल अछि। जखन सारस्वत आ वेद मित्रक बीच अपन सन्तानक विवाहार्थ स्वीकृति भेटैछ तखन वेदमित्रक कथन छनि, यद्यपि ब्राह्मणक विवाहमे अपद व्यय कोना ने हैइ छैक तथापि घटक-पजिआड़ जे कहताह ततबा टाका त अवश्य ओरिआ लेबऽ पड़त। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-4)

अक्षरपुरुष जीवन झा मिथिलांचलक सामाजिक जीवनसँ निरपेक्ष नहि भ’ सकलाह तेँ हिनक नाटकादिमे सबठाम सामाजिक वातावरणक विशिष्ट सन्दर्भक संगहि-संग सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवनक अति यथार्थ प्रतिनिधित्व करैछ। हिनक समस्त नाटकक जनसामान्यक निकषपर अक्षरसः सत्यताक आवरणसँ आच्छादित अछि जाहिमे आशा-आकांक्षा, आचार-विचार, आमोद-प्रमोद, स्त्री-पुरुषक सुख-दुःख, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, भाव-भाषा, राजनीति आदिक यथार्थ परिचय भेटैत अछि। ओ मिथिलाक सांस्कृतिक परम्पराक प्रबल समर्थक रहथि जकर प्रतिरूप हिनक नाटकादिमे स्थल-स्थलपर उपलब्ध होइछ। मैथिल संस्कृतिक अनुरूप विवाह पूर्व घटक-पजिआड़क नियोजन हमर सांस्कृतिक परम्पराक अनुरूप समाजमे प्रचलित नियमानुकूल वैवाहिक सम्पर्कक स्थापत्यर्थ घटक-पजिआड़क नियोजन आवश्यक अछि। सामवती पुनर्जन्म एवं नर्मदा सागर सट्टकमे जे घटक-पजिआड़क चर्चा भेल अछि ओ सर्वथा मैथिल संस्कृतिक अनुकूलहि अछि।

जतेक दूर धरि वेशभूषाक प्रश्नस अछि हिनक नाटकान्तर्गत विशुद्ध रूपेँ मैथिल संस्कृतिक अनुरूपहि पात्रक वेशभूषाक संग साक्षात्कार होइछ। नर्मदा सागर सट्टकक घटकराजक स्वरूपक तँ अवलोकन करू :
जैखन देखल लटपर पाग।
धोती तौनी नोसिक दाग॥
कयलक लोक गाम घर त्याग।
हमरा हृदय भेल अनुराग॥
(कविवर जीवन झा रचनावली पृष्ठ-95)

हाथमे फराठी छनि, अवस्था विशेषक कारणेँ हुनक डाँर पर्यन्त झुकि गेल छनि, पाग लटपर छनि। एहन वेश-भूषाकेँ देखि लोककेँ घटककेँ चिन्हब कनेको भाङठ नहि होइत छनि :
ओ जेना छल केहन उकाठी।
उचकि पड़ायल हमर फराठी॥
बीतल वयस वर्ष थिक साठी।
पैर न सोझ पड़य बिनु लाठी॥
जौं जनितहुँ एहि गामक ढाठी।
तौंस् न आबि भसिअइतहुँ भाठी॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-95)
एहिमे नाटकककार मिथिलामे वैवाहिक अवसरपर घटकक कर्तव्यपरायणता तथा ओकर वेश-भूषाक यथार्थ स्थितिक चित्रण अत्यन्त मार्मिकताक संग कयलनि अछि।

सांस्कृतिक परिदृश्यमे मिथिलामे पर्दा प्रथाक पालन सामाजिक रीति-नीतिक अनुकूलहि हिनक नाटकादिमे वर्णित अछि। एहि प्रथाक अनुसारेँ ससुर-भैंसुर वा परिवारक श्रेष्ठ व्यक्तिक समक्ष वा अपरिचित व्यक्तिक समक्ष मिथिलांचलक महिला नहि जाइत छथि। एहि प्रथाक अनुरूपहि कादम्बरी एवं अभिरानी एहि रहस्यसँ अवगत रहितहुँ जे सुन्दर निश्चित रूपेँ सरलाक पति थिकथिन तथापि ओ सभ आत्मीयता नहि प्रदर्शित करैत छथि। सुन्दरकेँ सेहो अनुभव होमय लगैत छनि जे सरला हुनक पत्नीि छथिन, किन्तु मर्यादाक पालनार्थ ओ अपन वास्तविक परिचय नहि उद्घाटित करैत छथि।

सांस्कृतिक परिवेशक नियोजनक दृष्टिएँ जखन हिनक नाट्य साहित्यक विश्लेषण करैत छी तँ स्पष्ट प्रतिभाषित होइछ, जे युगपुरुष जीवन झा मिथिलाक संस्कृतिक अनुरूपहि फगुआक हुड़दंगक चित्रण सामवती पुनर्जन्ममे कयलनि अछि। विदर्भराज सपरिवार बैसल छथि आ मृदंग वाद्य सहित हुनक राज्य वेश्या कलावती नचैत अछि आ गीत गबैत अछि :
रङ्ग रस होरी हो। गाबह सब मिलि रङ्ग॥
रहसि-रहसि सब फागु सुहागिन गाबय मनक उमङ्ग।
पहु परदेश बिताओल हमरा (सरिखहे) भेल मनोरथ भङ्ग॥
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-14)

एहि नाटकक होलिकोत्सवक दृश्य अत्यन्त मनोरम अछि। रंग अबीरक प्रयोग सँ होरीक हुड़दंग मचल अछि। ओहि अवसरपर राजसभाक प्रत्येक पात्र रंग अबीरसँ बोरल अछि। लोक होरीक हुड़दंग मचयबा आ उधम मचयबामे अस्त-व्यस्त अछि। राज्यादेश अछि जे एहि अवसरपर जे अनच्छुक होथि तनिका एहिसँ फराके राखल जाय अन्यथा रंग-अबीरक सराबोर राज्याधिकारी लोकनि राजभवनमे उपस्थित छथि। राजभवन दिस जाइत नगरक शोभा ओ होलिकोत्सवक विकृत रूप दृष्टिगत होइछ। सभ एक दोसराक संग हँसी-मजाकमे व्यस्त देखल जाइछ। एहि अवसरपर बसन्तक राजाकेँ आशीर्वाद दैछ :
महाराजक मन हरलक नटी, कहो लोक अपवाद।
सय वर्ष सँ जनि जीवी घटी हम दै छी आशिर्वाद।
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-14)

शलाकापुरुष जीवन झाकेँ मिथिलाक सांस्कृतिक परम्पराक गम्भीर अनुभव छलनि तेँ ओ अपन नाटककमे एकर पालनार्थ उपयुक्त अवसर बहार क’ लेलनि।

कीर्ति पुरुष जीवन झा अपन नाटकादिमे धार्मिक भावनाक चित्रण सेहो अत्यन्त मार्मिकताक संग कयलनि जे हुनक सांस्कृतिक पृष्ठभूमिक पृष्ठपोषक हैबाक प्रमाण दैछ। सामवती पुनर्जन्ममे अर्थोपार्जनार्थ सामवान आ सुमेधा विदर्भराजक ओतय दम्पत्ति-रूपमे पूजनार्थ नियुक्त होइत छथि। सांस्कृतिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमिक परिप्रेक्ष्यमे सुन्दर-संयोगक कथानकक श्रीगणेश वैद्यनाथधामक प्रांगणसँ आम्भ होइछ तथा ओकर अन्त सेहो ओतहि भ’ जाइछ। नर्मदासागर सट्टकमे नाटकककार कपिलेश्वरमे शिवार्चनाक चर्चा कयलनि अछि। कार्तिक पूर्णिमाक अवसरपर लोक स्नानार्थ गंगा-कमला जाइत अछि जे हमर सांस्कृतिक एवं धार्मिक जीवनक अविभाज्य अंगक रूपमे चित्रित अछि। सांस्कृतिक एवं धार्मिक दृष्टिएँ जखन हिनक नाटकादिक विश्लेषण करैत छी तँ स्पष्ट भ’ जाइछ जे ई परम शिवभक्त परायण रहथि जे हिनक नाटकादिमे प्रयुक्त नचारी आ महेशवाणीसँ भ’ जाइत अछि।

मिथिलांचलक सांस्कृतिक पृष्ठभूमिमे एहि ठामक निवासीक वैशिष्ट्य रहल अछि जे सात्विक भोजनक पक्षपाती रहलाह अछि। एतय तामसी भोजन सर्वथा वर्जित मानल जाइछ। एहि परम्पराक पालन नाटकककार स्थल-स्थलपर अपन नाटकक मे कयलनि अछि। सामवती पुनर्जन्ममे नाटकककार समाजमे प्रचलित नवलोकक बीच मदिरापानक परम्परासँ क्षुब्ध भ’ एकर बहिष्कार करबाक उद्घोषणा कयलनि। एहि प्रसंगमे सुमेधाक कथन छनि, एहि सभ कारण सँ राज्य निषिद्ध थिक। देखू तँ मदिरापान कयनेँ केहन लाल लाल आँखि छलैकय। छी! छी! आब मन प्रसन्न भेल अछि महा अवग्रहमे पड़ल छलहुँ (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-19)।

मिथिलांचल निवासीक प्रमुख भोज्य वस्तुमे रहल अछि रेडीमेड चूड़ा आ दही जकर चर्चा पौराणिक साहित्यमे सेहो यत्र-तत्र उपलब्ध होइछ। नर्मदासागर सट्टकमे एहि भोज्य-सामग्रीक विश्लेषण नाटकककारक प्रमुख प्रतिपाद्य अछि जखन घटकराज भोजन करैत छथि :
केव नथबै अछि नाकक पूड़ा।
ककरहु केव आगाँ बैसौलेँ थकड़ि बन्है अछि जूड़ा॥
झट झट गट गट घटक गिड़ै छथि राव दही संग चूड़ा।
दुइ एक बेर पानि दै मलि मलि कात पसौलन्हि गूड़ा।
धड़ि एक विछलन्हि पुनि अगुतैला सह-सह करइछ सूड़ा॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-99)

कीर्तिपुरुष जीवन झाक नाटकादिक वैशिष्ट्य एहि विषयकेँ ल’ कए अछि जे मिथिलांचलक सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवनक चित्रणक क्रममे वैवाहिक अवसरपर होम आदिक व्यवस्थाक निमित्त लावा, जारनि, धान, घी, जल, कुश, आगि आदिक चित्रण सामवती पुनर्जन्ममे कयलनि अछि। जटिलकेँ सारस्वत आज्ञा दैत छथिन :
लावा जारनि धान धिउ जल कुश विष्टर आगि।
माङव पर सञ्चित करह सब पुरहित सङ्ग लागि॥
(सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-47)

वैवाहिक विधिमे लौकिक एवं वैदिक दुनू रीतिक परिपालन कयल गेल अछि एहि नाटकान्तर्गत। चतुर्थीक विधि सम्पन्न होइछ संगहि-संग भार-दोरक चर्चा सेहो नाटकककार कयलनि अछि।

अक्षरपुरुष जीवन झा मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक कतिपय चित्रण अत्यन्त कुशलताक संग कयलनि अछि। सामवती पुनर्जन्म एवं नर्मदा सागर सट्टकमे सामाजिक रीति नीतिक चर्चा करैत नाट्यकार जाहि वैवाहिक प्रथाक उल्लेख कयलनि अछि से अत्यन्त प्राचीन परम्परा अछि। मिथिलांचलमे एहि प्रकारक प्रथा एवं परम्परा प्रचलित अछि जे वैवाहिक अवसरपर वर एवं कन्या पक्षक घटक पजिआड़क मिलान होइछ, जाहिमे पर्याप्त टाकाक प्रयोजन पड़ैछ जाहिसँ विवाहक उचित प्रबन्ध कयल जा सकय। सामवती पुनर्जन्ममे एहि प्रसंगक विश्लेषण पूर्वमे कयल गेल अछि। नर्मदा सागर सट्टकमे सेहो एहि स्थितिक चित्रण भेल अछि। घटकराज नर्मदाक विवाहार्थ ओ सागरक ओतय प्रस्तुत होइत छथि तँ सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमिमे एहि परम्पराक निर्वाह कोना करैत छथि तकर अवलोकन तँ करू, औजी! एहना ठाम घटक जे हयत मे लगले कोना विचार देत? पजिआड़केँ जे इच्छा होइन्हमे बूझि लै जाउ। (कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-97)।

सामाजिक व्यवस्थाकेँ सुदृढ़ बनयबामे आर्थिक स्थितिक दृढ़ता अत्यन्त प्रयोजनीय बुझना जाइछ। वित्त विहीन व्यक्तिक सामाजिक जीवनमे कोनो मूल्य नहि रहि जाइछ। अतएव जाहि समाजक आर्थिक जीवन जतेक सबल रहत ओ उन्नतिक पथपर अग्रसर भ’ समाजकेँ दिशा-निर्देश करबामे सक्षम भ’ सकैछ। जतेक दूर धरि मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक आर्थिक स्थितिक प्रश्न अछि ओ सदा सर्वदा आर्थिक विपन्नतासँ संत्रस्त रहल जकर फलस्वरूप कन्या-विक्रय सदृश कुप्रथाक जन्म भेलैक। जीवन झा अपन नाटकादिमे आर्थिक विपन्नताक दिग्दर्शन अनेक स्थलपर करौलनि अछि। सामवती पुनर्जन्ममे सामवान एवं सुमेधाक वैवाहिक प्रसंगमे सामाजिक आर्थिक विपन्नताक दिग्दर्शन होइत अछि जे विवाहक नियोजनार्थ प्रचुर टाकाक प्रयोजनार्थ समाजक विपन्नताक दिग्दर्शन करौलनि अछि। एहि प्रसंगमे बन्धुजीवक कथन समसामयिक समाजक विपन्नताक चित्र दर्शबैत अछि जखन ओ कहैछ, घरमे तैखन सुख जौं पर्याप्त धन हो। हमरा तँ सतत सभ वस्तुक व्ययता लगले रहैए। (सामवती पुनर्जन्म, पृष्ठ-20)।

आर्थिक विपन्नताक कारणेँ समसामयिक समाजान्तर्गत भीख मङनी प्रथाक जन्म भेल। नाटकककार सामवती पुनर्जन्ममे एहि प्रथाक यथार्थताक संग चित्रण कयलनि अछि। भिक्षुक ब्राह्मणक ओतय भीखक हेतु प्रार्थित होइत छथि, किन्तु परिस्थिति वसात हुनका भीख नहि भेटैत छनि।

शलाकापुरुष जीवन झाकेँ सामाजिक जीवनक गम्भीर अनुभव छलनि तेँ ओ स्थल-स्थलपर नारी दोष दिस समाजकेँ साकांक्ष करैत देखल जाइत छथि। सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक पृष्ठभूमिमे नारीकेँ सामाजिक मर्यादाक पालनार्थ मद्यपान, निरर्थक भ्रमणशील बनब, तन्त्राक आह्वान, पतिपर निष्प्रयोजन रोष, दुर्जन व्यक्तिक संग प्रवास गमन आदिकेँ ओ कुल ललनाक निमित्त वर्जित कयलनि। एहि प्रसंगमे ओ नर्मदा सागर सट्टकमे अपन अभिमत प्रगट कयलनि :
मद्यपान पर्य्यटन पुनि तन्द्रा पतिपर रोष।
दुर्जन सङ्ग प्रवास यैह छवटा नारिक दोष॥
(कविवर जीवन झा रचनावली, पृष्ठ-112)

बीसम शताब्दीक प्रथम दशकक मैथिली नाट्य सहित्यक जनक अक्षर पुरुष जीवन झा अपन समयक प्रकाश स्तम्भ रहथि जनिक नाटकादिमे मिथिलाक सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक जीवनक जाहि स्वरूपक प्रदर्शन करैछ तकर सार्थकता एहिमे अछि जे नाटकककार ओकर समुचित समाधान ओही समस्यान्तर्गत कयलनि। युग विधायक जीवन झा एहि विचारधाराक अत्यन्त व्यापक प्रभाव हुनक समसामयिक साहित्यकार लोकनिपर पड़लनि जे परवर्त्ती युगक नाटकककार लोकनिक हेतु एक प्रकाश-पुञ्ज प्रमाणित भेल। एकर श्रेय आ प्रेय कविवर जीवन झाकेँ छनि जे मिथिलांचलक तत्कालीन सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितिकेँ नीक जकाँ जानि बूझि क’ युगक आवश्यकताकेँ ध्यानमे राखि क’ अपना सम्मुख जनसाधारणक दृष्टिकोणकेँ समन्वित क’ कए मौलिक नाट्य-रचनाक सूत्रपात कयलनि तथा नाट्य-प्रणालीक सन्दर्भमे नवीन दृष्टिकोण अपनौलनि। हुनका नाट्य-रचनाक ज्ञान निश्चये विस्तृत छलनि। ओ समसामयिक समाजमे घटित होइत घटनाकेँ अपन अनुभवक आधारपर विश्लेषण कयलनि। आधुनिक मैथिली नाट्य साहित्यान्तर्गत अक्षर पुरुष जीवन झा नाटकक क्षेत्रमे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक स्थितिक प्रसंगमे एक कीर्तिमान स्थापित कयलनि जे एहि साहित्यक निमित्त एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक घटना थिक जे अधुनातन सन्दर्भमे मैथिल समाजक हेतु दिशाबोधक प्रमाणित भेल।
(साभार विदेह)

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