Wednesday, August 24, 2011

डॉ.शंभु कुमार सिंह-मैथिली सामाजिक नाटकक मूल केन्द्र बिन्दु : नारी समस्या

डॉ.शंभु कुमार सिंह
जन्म : 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ, आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] “मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन” विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता, कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।
मैथिली सामाजिक नाटकक मूल केन्द्र बिन्दु : नारी समस्या

स्वातंत्र्योत्तर युगक अधिकांश नाटक सामाजिक विवर्तनपर लिखल गेल अछि। नाटक सभक केन्द्र बिन्दु नारी समस्या रहल अछि। नारी वर्गमे अशिक्षा, सामाजिक बिडम्बनाक रुपमे तिलक-प्रथा, बाल विवाह एवं बेमेल विवाहक परिणामस्वरुप उपस्थित समस्याक समाधानक लेल नाटककार लोकनि प्रेरित भेलाह तथा विषय बस्तुकेँ अपन नाटकक कथ्य बना सुधारवादी भावनाक प्रचार-प्रसार कलनि जसँ समाज सुधारक जागरण जोर पकड़ि सक
स्वातंत्र्योत्तर मैथिली नाटकमे समाजक अति यथार्थ प्रतिबिम्ब देखबाक हेतु भेटैछ। युग विशेषताक अनुसारेँ कालावधिक नाटकमे नारीक विभिन्न रूपक प्रतिबिम्ब हब अत्यन्त स्वाभाविक अछि। प्रारंभिक नाटकमे नारी संबंधी सहानुभूति ओ करूणाक स्पष्ट चित्र उपलब्ध होइत अछि। किछु नाटकमे तत्कालीन नारी जीवनक, परिवारक मर्यादामे ओकर यथार्थ चित्र अंकित कल गेल अछि। मैथिलीक कतिपय नाटकमे नारीक वेदनामय रुप परिवारक अन्तर्गत उभरि कसोझाँ आल अछि। कालक नाटककार सुधारक आँखिये समाज ओ परिवारक विभिन्न दोषकेँ देखलनि, परिवारमे नारीक दुखमय जीवन हुनक सहानुभूतिक पात्र बनलीह। नारीक सभसँ पैघ मर्यादा ओकर पति तथा वैवाहिक जीवन थिक। कन्याक जीवन मध्यवर्गीय परिवारक हेतु चिन्ताक कारण बनि जाइत अछि। दहेजक समस्या नारीकेँ योग्य वर नै भेटबामे कठिनता, कन्याकेँ ऋतुमति होएबासँ पूर्वहि विवाहक आवश्यकता जीवनक प्रत्येक क्षणमे मर्यादा रक्षाक चिन्ता, पतिक असामयिक मृत्युक कारणेँ विधवा बनि जबाक संभावना ओ पराश्रित भकए पतित होबाक भय, असुरक्षित अवस्थामे समाजक कुदृष्टिक शिकार हेबाक आशंका, वेश्या जीवन व्यतीत करबाक बाध्यता तथा कानूनी दृष्टिएँ पुरूषक एकाधिकार इत्यादि अनेक कारण अछि जे नारी जीवनक वेदनामय, यंत्रणामय ओ पीड़ामय कथा कहैत अछि। अतः स्वातंत्र्योत्तर कालक अधिकांश नाटककार तत्कालीन सामाजिक स्थितिमे नारीक यथार्थ रूपक अंकन कलनि जे उपर्युक्त समस्यादिक संदर्भमे नारी-जीवनक चित्रण करैत अछि।

भारतीय समाजमे नारीक स्थान
समाजमे नारी आ पुरूष दुनूक समान महत्व अछि। ज प्रकारेँ एक पहियासँ गाड़ी नै चलि सकैत अछि ओकरा चलक लेल दुनू पहियाक ठीक होब आवश्यक अछि, ओहिना समाज रूपी गाड़ीकेँ चलबाक लेल पुरुष आ नारीक स्थिति समान भेनाइ आवश्यक अछि। दुनूमे सँ जँ एकहु निर्बल अछि तँ समाजक उन्नति सुचारु रूपसँ नैसकैत अछि।
एक समय छल, जखन भारतमे नारीक स्थान बड़ आदरणीय छल। समाजक प्रत्येक काजमे ओकरा समान अधिकार छलै। पुरूषक समानहि सभा, उत्सव आ अन्य सामाजिक काजमे भाग लेबाक ओकरा पूर्ण स्वतंत्रता छलै। धार्मिक काज तँ हुनक सहयोगक बिना अपूर्णे मानल जाइत छल। ओ समय नारी वास्तविक अर्थमे पुरुषक अर्द्धांगिनी छलीह। कोनहु काज हुनक सम्मतिक बिना नै होइत छल। पुरूष सेहो ओकरा निरीह मानि अत्याचार नै करैत छलाह। नारी सेहो अपनाकेँ गौरवान्वित महसूस करैत छलीह तथा अपन चरित्र वा आदर्शकेँ उत्तम रखबाक प्रयास करैत छलीह। देशमे सीता आ सावित्री सन देवी घर-घरमे पाओल जाइत छलीह। समाजमे स्त्री शिक्षाक सेहो खूब प्रचार छलै। मैत्रेयी, गार्गी, अपाला, विद्यावती, भारती सन विदुषीसँ गौरवान्वित छल। ओ युगमे नारी वास्तविक अर्थमे देवी छलीह। समाजक लेल नारी गौरवक वस्तु छलीह। ओ समयक साहित्यमे नारीकेँ स्पष्ट रूपसँ पूजनीय मानल जाइत छल। लेल मनीषी द्वारा कहल गेल छल यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंतु तस्य देवताःअर्थात जत नारीक पूजा आ आदर होइत अछि ओत देवता विचरण करैत छथि। प्रकारेँ संस्कृत साहित्यमे नारीकेँ आदर आ सम्मानक दृष्टिसँ देखबाक वर्णन अछि।
समय परिवर्तनशील अछि। देशमे अनेक परिवर्तन भेल, धार्मिक, सामाजिक, आ राजनैतिक क्रांति भेल। ऐ सभक प्रभाव नारी समाज पर सेहो पड़ल। मध्ययुगमे आबि कए नारीक पूर्ववत सम्मान नै रहल। पूजनीय आ आदरणीय हेबाक स्थान पर ओ केवल उपभोगक वस्तु बनि क रहि गेलीह। एमहर देशक राजनीतिक स्थितिमे सेहो महान परिवर्तन भरहल छल। विदेशी आक्रमण प्रबल भेल जा रहल छल। देश पर विदेशी सभ्यता आ संस्कृतिक प्रभाव पड़ल जा रहल छल। परिणामतः आब नारी पर अनेक प्रकारक बन्धन पड़लागल जकर कोनो कल्पना धरि नै छल। हुनका पर अनेक प्रकारक सामाजिक बन्धन लागलागल। हुनक स्वतंत्रता आब केवल घरक चौखटि धरि सीमित रहि गेल। आब ओ समाज आ साहित्यमे केवल मनोरंजनक वस्तु रहि गेलीह।
जखन मुसलमानी शासन देशमे दृढ़ भगेल, तखन नारीक पतन सीमा आर बढ़ि गेल। मुसलमान जखन निश्चिंत भशासन कर लगलाह, तखन दरबारमे जत महफिल जमलागल, सुराक दौर चललागल तत पायलक झनकार सेहो होमलागल। नारी आब कविक लेल श्रृंगारक वस्तु बनि गेलीह। कवि आब ओकर जननि रूप बिसरि क ओकर नख-शिखक वर्णनमे डूबि गेलाह, हुनक अश्लील चित्रक अतिरिक्त कालक साहित्यमे आर कोनहु स्थान नै रहि गेल।
आधुनिक युग जागृतिक युग थिक। देशमे जत सामाजिक आ राजनीतिक क्रांति आल ओतनारी समाजकेँ सेहो उन्नतिक अवसर भेटलै। वास्तवमे ई युग समानताक युग थिक। सत्य तई थिक जे जाधरि नारीक उत्थान नैत ताधरि देश आ समाजक उन्नति असंभव थिक। एक नारीक महानता समस्त परिवारकेँ महान बना दैत अछि। हमरा देशक सभ महान विभूतिक चरित्र निर्माणमे नारीक महत्वपूर्ण स्थान रहल अछि। आब ओ सम आबि गेल अछि जे नारी समाजक संग लागल सभ कुप्रथाक अंत कल जा। विधवा-विवाह हुअए वा पिताक संपत्तिमे कन्याक अधिकार हुअए, शिक्षाक क्षेत्रक बाधा हुअए वा पर्दा-प्रथाक सभ क्षेत्रमे जतेको बन्धन अवशेष अछि आइ ओ सभ कुप्रथाकेँ समाप्त करपड़त। जँ समाज नारीक महत्ताकेँ स्वीकार कओकर सभ अधिकार ओकरा पुनः घुरा देत तखनहि देश पुनः ओ गौरवकेँ प्राप्त कसकत जकरा लेल ओकर जगत्ख्याति प्रसिद्ध रहलैक अछि। दिशामे जत धरि मैथिली नाट्यकारक प्रश्न अछि, बुझाइत अछि ओ समाजक एकटा सजग प्रहरी जकाँ भूमिकाक निर्वाह करहल छथि।

नारीक कारुणिक स्वरुप
नारी, पत्नी वा मायक रुपमे भारतीय परिवारक मूल केन्द्रबिन्दु होइत अछि। हेतु परिवारक उत्थान ओ पतनक इतिहासमे नारीक स्थितिक समीक्षा हएब अत्यंत प्रयोजनीय अछि। वैदिक युगसँ लआइ धरि परिवारमे नारीक स्थितिमे परिणामात्मक परिवर्तन भेल अछि। जत धरि वैदिक युगक प्रश्न अछि, भारतमे अन्य सभ्यताक अपेक्षा नारीक स्थिति कतहुँ नीक छल। अन्य प्राचीन समाजमे नारीक संग निर्दयताक व्यवहार कल जाइत छल। एत धरि जे यूनान जे अपन संस्कृतिकेँ अति प्राचीन होएबाक दावा करैत अछि, ओतहु नारीक स्थिति नीक नै छल। इतिहासकार डेविस लिखैत छथि एथेंस आ स्पार्टा मे नारीक सुखद स्थितिक कोनहुँ प्रश्ने नै उठैत छल। स्पार्टामे नारी पशुसँ किछुए उन्नत छल।”१
भारतीय मौलिक सामाजिक व्यवस्था, विशेष क मिथिलाक संदर्भमे नारीकेँ धन, ज्ञान, ओ शक्तिक प्रतीक मानल गेल अछि, जकर अभिव्यक्तिक रुपमे लक्ष्मी, सरस्वती ओ दुर्गाक पूजा एखनो घर-घरमे कल जाइत अछि। नारीकेँ पुरुषक अर्द्धांगिनीक रुपमे स्थान देल गेल अछि, जकरा अभावमे पुरुष कोनो कर्तव्यक पूर्ति नै सकैत अछि। मुदा आइ हमरा सभक दुर्भाग्य थिक जे वैदिक आ उत्तर वैदिक कालक पश्चात् हमरा समाजक मौलिक व्यवस्था रूढ़िक रुपमे परिवर्तित होमलागल तत्पश्चात् नारीमे लाज, ममता आ स्नेहक गुणकेँ ओकर कमजोरी मानि पुरुष वर्ग द्वारा ओकर शोषण करब आरंभ भेल
पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्थामे नारीकेँ पुरुषक वासना-पूर्तिक एक साधन मात्र बुझल जाइत अछि। ई बात ओ सभ जाति आ वर्गक लेल सत्य थिक जकर प्रणाली सामन्तवादी विचारसँ प्रभावित अछि। हमर सामाजिक जीवन मुख्य रुपसँ चारि क्रियासँ सम्बन्धित अछि- जनन, परिवारक प्रबंध, आ नेनाक सामाजीकरण। व्यावहारिक रुपमे सभटा क्रियापर पुरुषक एकाधिकार अछि। अधिकांश लोक द्वारा नारीक नोकरी करब, शिक्षा प्राप्त करब अथवा परिवारक प्रबन्धमे हस्तक्षेप करब नै केवल संदेहक दृष्टिसँ देखल जाइछ अपितु अपन अहमक विरुद्ध सेहो मानल जाइछ। एकैसम शताब्दीक तथाकथित समतावादी समाजोमे नारी पर होमऽबला अत्याचारमे कोनो बेसी सुधार नै भेल अछि, जखन की अत्याचारमे परिवर्तन अवश्यंभावी भगेल अछि।
नारी एवं पुरुष समाजक समविभाग अछि। प्रत्येक क्षेत्रमे दूनूक समान अधिकार अछि। किन्तु समाजक संरचना एहन अछि जे पुरुष द्वारा नारीकेँ उत्पीड़ित करबाक प्रवृत्ति मैथिल समाजमे दृष्टिगत भरहल अछि। जँ हम आन-आन भारतीय समाजक तुलना मैथिल समाजसँ करी तँ बुझना जाइछ जे मैथिल समाजमे नारीक उत्पीड़न समस्या कने बेसी गंभीर अछि। कारण सँ पारिवारिक स्वरुपमे सेहो स्पष्ट परिवर्तन दृष्टिगोचर भरहल अछि आ समाजमे नारीक स्थान नगण्य भेल जा रहल अछि। यथासमय खास कमैथिल समाजमे नारीक स्थितिमे नारीक समताकारी मूल्यमे परिस्थिति कोन तरहेँ प्रभावित कलक आ करहल अछि संबंधमे सामाजिक नाटकक माध्यमे विभिन्न मैथिली नाट्यकार नारीक दशाक वास्तविक चित्रण अपन-अपन नाट्यकृतिमे करबाक प्रयास कने छथि जकर चर्चा निम्न रुपेँ कल जा सकैत अछि।

शारीरिक प्रताड़ना
शारीरिक प्रताड़नाक रुपमे हिंसाक बढ़ैत समस्या केवल भारते धरि सीमित नै अछि अपितु संसारक अधिकांश देशमे ई समस्या गंभीर भेल जा रहल अछि। कनाडा मे प्रति चारि नारी पर एकक संग मारि-पीटक घटना होइत अछि। बैंकाकमे आधा नारी अपन पति द्वारा पीटल जाइत छथि। अमेरिका सन विकसित देश मे सेहो ई समस्या गंभीर अछि।
एकटा नवविवाहिता ज संरक्षण प्रेम आ सहयोगक भावना लनव घरमे अबैत अछि ओत पति, सास वा परिवारक अन्य सदस्यक द्वारा पीटल गेलापर ओकरा कतेक असह्य वेदना होइत हेतै तकर अनुमान हम आसानीसँ नै लगा सकैत छी। नारीकेँ शारीरिक रुपसँ प्रताड़ित करबाक पाछू पारिवारिक कलह, पारिवारिक विघटन, पारस्परिक अविश्वास आ गरीबी अछि।

मैथिली नाटकमे कतिपय नारीक वेदनाक रुप पारिवारक अन्तर्गत उभरि कल अछि। मैथिली नाटककार सुधारक आँखिये समाज ओ परिवारक विभिन्न दोषकेँ देखलनि अछि। परिवारमे नारीक दुःखमय जीवन हुनक सहानुभूतिक पात्र बनलीह। गोविन्द झाकबसातनाटक मे सुगिया अपन पतिकेँ परमेश्वर मानि सेवा करैछ। ओ सामाजिक जीवनकेँ व्यवस्थित रखबाक हेतु अपन सम्पूर्ण परिवारक भार उठौने छथि तथापि ओ अपन पति द्वारा प्रताड़ित होइत छथि-
सुगियाः मड़ुआ उलबैय छलियै। एलैय हल्ला करैत जलखै ला, जलखै ला, हम कहलियै, कोनदन कमाइ कके एलाह जे जलखै दिऔन। की बस, ठामहि चेरा उठा केँ पिटपिटा देलक।
विडम्बना ई थिक जे समस्या केवल ग्रामीण, गरीब आ अशिक्षित नारिये धरि सीमित नै अछि अपितु शिक्षित मध्यवर्गीय ओ नगरीय परिवारोमे नारीक कमोबेश यह स्थिति अछि।

यौन उत्पीड़न
मैथिली नाटकक अध्ययन ओ अनुशीलनक उपरांत जे एक समस्या स्पष्ट दृष्टिगोचर होइत अछि ओ थिक नारी पर होमऽबला अत्याचार ओ शोषण। मर्यादा, चरित्र, कर्त्तव्यपरायण, त्याग, सहनशीलता, शील ओ अन्य गुण सँ महिमामंडित कसुन्दर ढंगसँ पुरुष समाज ओकरा संग छल कने अछि ओमे स्त्रीकेँ सेहो पता नै चलि सकल जे ओ शोषित भरहल अछि। उत्सर्गक नामपर पुरुष ओकरासँ सभ किछु मागैत रहल आ ओकरा लूटैत रहल। नारी कत्तौ महानतासँ विभूषित होबाक गर्वक मोहसँ ओकरापर अपनाकेँ निछावर करैत रहल ततौ परिस्थितिवश। मुदा ई स्त्रीयजनित गुण जत ओकरा लेल एक दिस हथियार सिद्ध भेल ओतै दोसर दिस ओकर यह गुण ओकर कमजोरी, विवशता, लाचारी ओ पतनक कारण सेहो बनल।

नारी शोषणक सभसँ घृणित रुप थिक ओकर यौन शोषण। ई एक प्रकारक गहन मानसिक शोषण थिक जे शारीरिक याततोसँ बेसी पीड़ादायक अछि। डॉ. प्रबोध नारायण सिंह द्वारा लिखित एकांकी नाटक हाथीक दाँतक नेता महिला आश्रमक संरक्षिका बिजली देवीक सहयोगसँ खूब टकाक संग्रह करैत छथि आ जखन ओ टकामेसँ बिजली अपन कमीशन मागैत छथि तँ नेताजी बनावटी प्रेमीक रुप धारण क बिजलीक संग आलिंगनबद्ध भजाइत छथि आ कहैत छथि, कतेक टका लेब, ई कपटी नेता चरित्र भ्रष्ट अछि। ई टकाक लोभ देखा बिजलीक संग अनैतिक संबंध तरखनहि छथि, बिजलीयेक सहयोगसँ अपन वासनाक भूखकेँ रोहिणी नामक एक युवतीसँ शान्त करैत छथि। परिणाम स्वरुप ओ असहाय लाचार युवती गर्भवती भजाइत अछि। आब ओ बिजलीकेँ परामर्श दैत छथि जे- धुर, औषध कहि के किछु पुड़िया खोआ दियौक ने ?
वर्तमान समाजमे उच्चवर्गक लोक द्वारा नीच वर्गक स्त्रीक संग कोना यौन अत्याचार कल जाइत अछि तकर स्पष्ट चित्र हमरा भेटैछ कांचीनाथ झा किरणद्वारा लिखित कर्णनामक एकांकीमे यद्यपि एकांकीक कथानक आ पात्र पौराणिक अछि मुदा एकांकीकार लाक्षणिक रुपमे सूर्यकेँ उच्च वर्ग आ कुन्तीकेँ अछोप वर्ग मानि समाजमे घटि रहल यौन उत्पीड़न दिस समाजक ध्यान आकृष्ट कने छथि। एकांकीक माध्यमे समाजमे पैघ लोक कहओनिहारक गुप्त भ्रष्टताक भण्डाफोड़ कल गेल अछि। देव अर्थात् उच्च वर्गक लोक जे नीच वर्गक संग विवाह तँ नैसकैत अछि मुदा गुप्त रुपसँ सम्भोग आ सम्पर्क कसकैछ जकर कुत्सित परिणाम भोग पड़ैत छैक नीच वर्गक लोककेँ।
सूर्यः हम देवता छी। देवता मनुक्खक बेटीकेँ.......
कुन्तीः (उत्तेजित स्वरमे) मनुक्खक संगे भोग-विलास कयने देह नहि छूतई छनि आ देस छुति जयतनि ?
सूर्यः (विरक्त स्वरमे) मनुक्ख एखन तन-मन-धन लगा कदेवताक पूजा करैत अछि-- मरलाक बाद स्वर्ग जयबाक लेल। जीबैत स्वर्ग जयबाक कल्पनो नहि करैत अछि। मनुक्खक बेटीकेँ स्त्री बना कस्वर्ग लजाय लगबैक तँ ओ भाव रहतैक?
कुन्तीः (अप्रतिभ स्वरमे) तखन मनुक्खक कन्याक संग सम्पर्के किएक करैत छी ?

सूर्यः (हँसि) आनन्दक लेल ? मनुक्खकेँ मनुक्ख बना कराखैक लेल।
कुन्तीः (गह्वरित स्वरेँ) आ जँ संतान भजाइत होइत तओ मनुक्खे भरहैत होयत।
सूर्यः हँ, मनुक्खक पेटक देवता कोना होयत ?

अरविन्द कुमार अक्कूक नाटक रक्त’ (१९९२) मे अवैध सन्तानोत्पतिक भयावह परिणाम सँ समाजकेँ एकटा चेतावनी देल गेल अछि। घृणित सामाजिक विभीषिका पर नाटककार केहेन प्रकाश देने छथि से द्रष्टव्य थिक-
किसुनः तोहर तँ गप्पे अनटोटल होइछ। हौ सड़कक कातमे गरीबक नै तँ धनिकक नेना फेकल रहतैक?”
तृप्ति नारायण लालक नाटक सप्पतमे समाजक एक दुःष्चरित्र व्यक्ति श्रीकान्त, हरिजन युवती नीलमकेँ अपन प्रेमजालमे फँसा ओकर सतीत्व भंग करैछ जइ कारणेँ ओ समाजमे मुँह देखबाक योग्य नै रहि जाइत अछि। अन्ततः कोठा परक नारकीय जीवन जीबाक लेल बाध्य होमपड़ैत छैक।
तरहेँ कहल जा सकैछ जे आधुनिक समाजमे नारीकेँ कहक लेल भनहि देवी आ दुर्गाक दर्जा देल गेल अछि, मुदा पुरुषक वासना शिकार ओ कोना भरहल छथि विषय वस्तुकेँ मैथिली नाटककार बड़ सजीव चित्रण कने छथि।

बाल विवाह
बाल-विवाहक तात्पर्य विवाहक ओ प्रथासँ अछि जमे रजोदर्शन सँ पूर्वहि कन्याक विवाह कल जाइत अछि। अनेक धर्मशास्त्रक नामपर मध्यकालेसँ जविश्वासकेँ बढ़ावा देल गेल जे कन्याकेँ रजस्वला होमसँ पूर्व जँ विवाह नै ल गेल तँ सँ माता-पिताकेँ महापाप होइ छै। एहन विवाह कतेक हास्यास्पद अछि से बातसँ स्पष्ट भजाइत अछि जे हमरा कोनो मूल धर्म ग्रंथमे बाल-विवाहक कोनो निर्देश नै देल गेल अछि। तथापि ई व्यवस्था आइयो मिथिलामे व्याप्त अछि। बाल-विवाहक प्रचलन मैथिल समाजमे चाहे जपरिस्थितिसँ भेल हुअए मुदा कुप्रथाक कारणेँ आइ समाजमे कतोक प्रकारक गंभीर दोष उत्पन्न भगेल अछि। एक दिस जँ कन्याक अपरिपक्व आयुमे नेनाक पालन-पोषणक भार आबि जाइत अछि तँ दोसर दिस दुर्बल स्वास्थ्य हेबाक कारणेँ लाखक लाख मायक मृत्यु प्रसवक समय भजाइ छै। समस्याक कारणेँ मैथिल समाजक कन्यामे शिक्षाक दर बहुत निम्न भगेल छै, किएक तँ बाल-विवाहक कारणेँ ने तओ शिक्षा प्राप्त कसकैत अछि आ ने एकरा जरूरी बूझल जाइत अछि। प्रथाक कारणेँ विवाह एकटा संयोग मात्र बनि क रहि गेल अछि। मे उमिरक असमानता हेबाक कारणेँ एक दिस जँ यौन-लिप्सा अतृप्त रहि जाइत अछि तँ दोसर दिस बाल-वैधव्य आ तकर परिणामस्वरूप वेश्यावृत्ति आदि सन समस्यासँ समाज ग्रसित भजाइत अछि। एहना स्थिति मे नारीक जीवन नारकीय भजाइत अछि। मैथिली नाटकमे बाल-विवाहक समस्या लकतोक नाटककार अपन नाट्य रचना कने छथि, ऐमे एकटा बानगी प्रस्तुत अछि त्रिवेणीक नायिका दुर्गाक, जनिक विवाह छओ वर्षक उमिरमे पैंतालीस वर्षक बूढ़सँ कदेल जाइत छैक । कन्याक पिता मधुकान्त पन्द्रह हजार टकाक लोभमे अपन फूल सन कन्याक विवाह एहन वरक संगे कदैत छथि जे विवाहक चारिये मासक पश्चात् ओ विधवा भजाइत अछि। नायिका दुर्गा जखने बाल्यावस्थाकेँ पार क युवावस्थामे प्रवेश करैत छथि हुनक देओर नरेश हुनका अपन वासनाक शिकार बनाबचाहैत छथि जे दुर्गाकेँ मान्य नै छनि। अन्ततः ओकरा शरीर पर पेट्रोल ढ़ारि क आगिमे स्वाहा कदेल जाइ छै। कन्याक भावी दुर्दैन्य स्थितिक चित्रण हुनक माय मधुकलाक शब्दमे एना देखल जा सकैछ-
मधुकला— “(उग्र भावेँ) बाप रे बाप ! एहन अन्हेर गप्प कतहुँ सुनल अछि। एक दिस छओ वर्षक पत्नी आ दोसर दिस पैंतालीस वर्षक पति। बड़ अन्हेर होइत अछि। हमर बेटीकेँ ओ बाप सदृश बुझि पड़तैक, नहि कि पति सदृश। हम अपन बेटीक विवाह ओकरासँ नहि करब।’’७
मुदा आश्चर्यक विषय थिक एखनो समाजमे बाल विवाह भरहल अछि जकर दुष्परिणाम समाज भोगि रहल अछि मुदा ओकर आँखि नै फुजैत छैक।

दहेज
मैथिल समाजमे घरेलू हिंसाक ससँ व्यापक रूप दहेजक कारणेँ नारीकेँ देल गेल यातना आ ओकर हत्याक रूपमे आल अछि। आश्चर्यक गप्प थिक जे दहेज निरोधक अधिनियम बनि गेलाक पश्चातो विभिन्न समुदायमे कन्या पक्षसँ बेसीसँ बेसी दहेज प्राप्त करबाक प्रचलन समाजमे बढ़िये रहल अछि। अधिकांश माय-बाप वर-पक्षक इच्छानुकूल दहेज देबमे असमर्थ रहैत छथि। विवाहक पश्चातो विभिन्न अवसर पर कन्याक माता-पितासँ ओकर सासु-ससुर द्वारा विभिन्न वस्तुक माँग करब एक स्वाभाविक प्रक्रिया बनि गेल अछि। जँ नवविवाहिता अपन माय-बापसँ ओ वस्तु नै आनि सकैत छथि तँ ओकरा सासुर पक्ष द्वारा कतोक प्रकारक मर्मस्पर्शी ताना सुनपड़ैत छैक। बात-बातमे ओकरा अपमानित कल जाइत अछि। भाँति-भाँतिक लाछन सेहो लगाओल जाइ छै। एतबे नै ई प्रक्रिया ताधरि चलैत रहै छै जाधरि ओ सासुरलाक इच्छाक पूर्ति नै दैछ।
दहेजक कारणेँ भारतीय नारीक केहन दुर्दशा होइ छै तकर चित्रण हमरा सुधांशुशेखरचौधरी क लेटाइत आँचरक नायिका ममताक करूण चीत्कारमे भेटैत अछि-
ममता : अहाँ हमरा खत्तामे फेकि देलौं। ओकरा रेडियो, साइकिल नै देलियै, ओ दोसर मौगी बेसाहि आनलक। बाबू अहाँ देखलिए ऐ ओकरा ? हम एतहिसँ सभ दिन देखै छियै। ओ सब दिन हमरा लग अबैए, सब दिन हमरा छाती पर आबि कए बैसि जाइए, हमरा छाती पर बैसि कए जाँत पिसैत रहैये । अहाँ ओहि मौगीकेँ कहियो देखने छियै ?” ८
पर्याप्त दहेज नै देबाक कारणेँ ममता सन नारीक केहन विक्षिप्त अवस्था भजाइ छै से स्वतः अनुमान कल जा सकैछ। एतबे नै ऐ पैशाचिक व्यवस्थाक प्रति मोनमे ततेक ने डर समा जाइ छै जे ओ दोसरोकेँ परिणामक भविष्यभोक्ता रूपमे देखि सिहरि जाइए—
ममता : भैया, बाउक ससुर जँ बाउकेँ मेटरसाइकिल नै देतै तँ बाउ अपन कनियाकेँ छोड़ि देतै ? एतकहियो नै आबदेतै ?......अहाँ नै बाजै छी बाउ, तोहीं कहछोड़ि देबहक ?”९

परिवारमे ममता सदृश दहेजक मारलि कन्या छै ओहो अपन पुत्रक विवाहमे टकाक लेन-देन उचि बुझैत छथि। तिलक दहेजक कारणेँ मैथिल ललनाकेँ एहन दुष्परिणाम भोगपड़ै छै जे कनियाँ पुतराकनायिका सत्यानाशी दहेज प्रथाक मारिसँ बताहि भजाइत अछि, सँ सर्वगुण संपन्न भेलो उत्तर ओकरा पति द्वारा दाम्पत्य सुख नै भेटै छै। फलस्वरूप यौवनावस्थामे ओ बताहि भकनियाँ-पुतरा खेलाइत रहैत छैक। द्रष्टव्य थिक ओकर वेदना आ अतृप्त लालसा-
निर्मला--- ठगै छी। (मायसँ) सुनही माँ ! पिपही बाजै छै कि नहि.....? माँ कनियाँ पुतराक विवाह हेतैक की वर कन्याक ? नहि, नहि कनियाँ-पुतराक...कनियाँ-पुतराक ह- ह- ह- ह-

पर्याप्त दहेज नैबाक कारणेँ कन्याकेँ एतेक प्रताड़ित कल जाइत अछि जे ओ प्रायः आत्महत्या धरि कलैत अछि। एतबे नै कखनो-कखनो तँ दहेजक लोभमे लोक अपन पत्नीकेँ घरक आन सदस्यक संग मिलि कए हत्या सेहो कदैत छैक। एहन भावनाक परिचय हमरा मणिपद्म लिखित एकांकी नाटक तेसर कनियाँमे भेटैत अछि जमे दहेज प्राप्त करबाक लेल तरूण पीढ़ी एवं ओकर माय-बाप नरभक्षी बनि दू-टा कन्याकेँ सुड्डाह कदेलक। एत दहेज पीड़िताक करूण चीत्कार सुनल जा सकैत अछि-
षोडसीः हम जीबय चाहै छी राजा, जीबय चाहैत छी, हमरा खोलबा दिअ। रातिए एहि रोगी वृद्धसँ हमर विवाह एहि कारणेँ भेल जे हमरा सुलक्षणा हेबाक कारणेँ ई नहि मरताह। हाय रे सुलक्षणा ! रातिमे विवाह भेल आ आइ हम जरय जा रहल छी।
वृद्धाः चुप पपिनियाँ।
षोडसीः हमरा बचा लिय राजा, हम जीबय चाहै छी।

कुप्रथा आ अनैतिक व्यापारसँ क्षुब्ध भनाटककार स्वयं कहै छथि
आरे तिलक आ दहेजक पिशाच, एहि देशक नारीत्वकेँ आ सिनेहसँ पोसल बेटी सभकेँ सुआदि-सुआदि खो।
भारतक संदर्भमे दहेजक कारणेँ घरेलु हिंसाक समस्याकेँ चौंकाबऽबला तथ्यसँ बुझल जा सकैत अछि। मानव संसाधन विकास मंत्रालयक एकटा आकड़ासँ स्पष्ट होइछ जे एत प्रतिदिन सोलह नारीक दहेजक कारणेँ हत्या होइत छैक, लगभग सत्तरि प्रतिशत ग्रामीण आ नगरीय परिवार एहन अछि जमे कोनो ने कोनो रुपमे नारीक विरुद्ध हिंसा भरहल छै।

वेश्यावृत्ति
वेश्यावृत्ति भारतीय समाजक कैंसर थिक। ज्वलंत समस्यासँ हमर समाज तेनाने ग्रसित अछि जे ने ओकरा आत्मसात करबाक शक्ति छै आ ने ओकरा अन्त करबाक सामर्थ्य छै। एतबा तँ निर्विवाद रुपेँ स्वीकार कल जा सकैछ जे क्यो नारी जन्मजात वेश्या नै बनैत अछि, प्रत्युत परिस्थितिक मारिक कारणेँ ओ धन्धाकेँ स्वीकार करैत अछि जकर कतिपय सामाजिक पृष्टभूमि थिक जे एकर निर्माणमे समान रुपेँ सहयोग प्रदान करैत आल अछि। वेश्याक ने सामाजिक मर्यादा छै आ ने सामाजिक प्राणी ओकरा इज्जतिक दृष्टिसँ देखैत अछि। तथापि ओकर समाजिक पक्ष एहन अछि जे क्यो स्वेच्छया तँ क्यो परिस्थितिसँ लाचार भसमाजमे जीवित रहबाक हेतु धन्धाकेँ स्वीकार कलैत अछि। उत्कर्ष युगक मैथिली नाटककार नारीकेँ उच्छृंखल ओ स्वच्छन्द रुपमे देखबाक आकांक्षी नै छथि, किएक तँ जीवनक गहन अध्ययनक पश्चात् ओ अनुभव कएलनि जे समाजक आधार नारी थिक। किन्तु स्त्रीक प्रति पुरुषक कुत्सित मनोवृत्तिमे अद्यापि कोनो परिवर्तन नै देखबामे अबैत अछि। पारिवारिक जीवनमे अपन अस्तित्वसँ प्रसन्नता आ संतोष उत्पन्न कएनिहारि नारीकेँ डेग-डेग पर पतिसँ समझौता कर पड़ै छै।
आधुनिक समाजमे कतिपय एहन पति छथि जे पत्नीकेँ पत्नी नै बुझि केवल हार-माँस वाली नारीक रुपमे देखैत छथि। ओ अपन स्वार्थ सिद्ध कर लेल पत्नीकेँ अनुचित यौन व्यापार करलेल प्रोत्साहित करैत अछि जकरा वेश्यावृत्तिक नाम देब सर्वथा उचित बुझना जाइत अछि। नोकरीमे पदोन्नति प्राप्त करबाक लेल नारीक सदुपयोग करबाक प्रवृत्तिक दिग्दर्शन हमरा नचिकेताक नाटकक लेलमे भेटैत अछि। एकर पात्र शंकर सतीकेँ वेश्यावृत्तिक दिस धकेलि रहल छथि। सतीक संस्कार इच्छा एवं मानसिकता सर्वथा एकर विरोध करैत अछि, किन्तु पुरुष प्रधान समाजमे ओकर महत्व नै रहि जाइत अछि। ओ अपन इच्छाक प्रतिकूल पर-पुरुषक अंक-शायिनी बनैत अछि जे ओकर निरीहताक परिचायक कहल जा सकैछः-
सतीः “(क्रोधसँ असंवृत भए चीत्कार करैत)
अहाँ हमरा वेश्या बना रहल छी,अहाँ अपन प्रेमकेँ बेचि रहल छी,
अहाँ हमरा समस्त प्रेम-प्रीतिक गला घोंटि देने छी, अहाँक
हाथमे तकर चेन्ह अछि। क्षमताक लालसामे अहाँक सभ
बातसँ दुर्गंध बहरा रहल अछि।

नारी शोषणक विरुद्ध अपन नाटक नायकक नाम जीवनमेनचिकेता समाजपर व्यंग्य कने छथि।

नवलः हम नहि जनैत रही, हमर मुहल्लाक मानल लोक सब रातिक पहरमे जाहि कोठा सबसँ घुरथि छलथि ओहि महक वेश्या सब कालू सरदारक अधीन छैक।’’

चौधरी यदुनाथ ठाकुर यादवक नाटक दहेजमे सेहो वेश्यावृत्तिक चित्र उपस्थित कएल गेल अछि। नाटकक नायक रघुनन्दन अपन विवाहिता पत्नी दुलरीकेँ छोड़ि मोती (वेश्या) क संग वेश्यागामी भजाइत अछि
तरहेँ हम देखैत छी, आजुक समाजमे कोना नारीकेँ विवश कल जाइत छैक वेश्यावृत्तिक लेल। उन्मेष युगक नाटककार रोगक पर्दाफाश कलनि, ओ संगहि चेतावनी दरहल छथि कुप्रथाकेँ सुधारबाक हेतु।

स्त्री-पुरूष संबंधक नव आयाम
वर्तमान समयमे हमरा समाजमे प्रत्येक स्तर पर भरहल परिवर्त्तन केँ लक्षित कल जा सकैत अछि। ई परिवर्तन नवीन विचारधाराकेँ जन्म देलक जे स्त्री-पुरूषक संबंधकेँ बेसी प्रभावित कलक। हमरा सभक समाजक धूरि परिवार थिक आ परिवारक धूरी पति-पत्नी। तरहेँ ओकर आपसी संबंधमे आल परिवर्तनक प्रभाव परिवार ओ समाजपर पड़ब स्वाभाविके अछि। प्रारंभमे पति ओ पत्नीक परस्पर रिश्तामे पतिकेँ ऊँच स्थान प्राप्त छलै आ ओकर तुलना परमेश्वर सँ कल जाइ छलै। शिक्षाक अभावमे पत्नीक जीवन पूर्णरूपेँ पति पर आश्रित छलै कारणेँ ओ पतिक संग अपन संबंधमे कोनो तरहक परिवर्तन लाबमे असमर्थ छलीह। जँ पति अपन अधिकारक दुरूपयोग कओकर उपेक्षा ओ तिरस्कार करैत छल तैयो ओकरामे ओतेक साहस नै छलै जे ओ अपन संग भरहल अन्यायक प्रतिकार कसक

जेना-जेना शिक्षाक प्रति नारीक जागरूकता बढ़ल गेलै आ नारी शिक्षित होमलगलीह तहिना-तहिना पति-पत्नीक परस्पर रिश्ता सेहो प्रभावित होम लागल। किएक तँ शिक्षा नारीकेँ अपन अस्तित्व आ अधिकारक प्रति जागरूक बनौलक। जखन ओकरामे अधिकारक प्रति जागरूकता बढ़लै तखन ओकरा लेल आवश्यक भगेलै जे ओ अधिकारक रक्षा कर आ अन्याय भेला पर ओकर विरूद्ध अपन आवाज उठा सक। आ ई तखने संभव अछि जखन ओ आत्मनिर्भर हुअए, परिणामस्वरूप नारी शिक्षित होमक संगहि-संग आत्मनिर्भर सेहो होम लागल। गोविन्द झाक नाटक बसातमे हमरा दृष्टिकोणक आभास भेटैत अछि। नाटकक नायक कृष्णकान्त एक आदर्शवादी युवक छथि। हुनक पिता फलहारीक पुत्री फुलेश्वरीसँ हुनक विवाह करचाहैत छथि, मुदा कृष्णकान्त अशिक्षिता फुलेश्वरी पर अशिक्षत होबाक कटाक्ष करैत छथि आ घरसँ पड़ा जाइत छथि। फुलेश्वरी अपमानकेँ एकटा चुनौतीक रूपमे स्वीकार करैत छथि तथा ओ घरसँ बाहर भशिक्षा प्राप्त करैत अछि आ समाज सेवा करैत अछि। जोतखीजी द्वारा पुष्पा (फुलेश्वरी) क चरित्रकेँ उद्घाटित करैत छथि-
बमबाबा--- वाह वाह ! बेटी, तोहर सफलता पर आइ हमरा अपार हर्ष भरहल अछि, आ कतेक अबलाकेँ सबला बना रहल अछि। आब हमरा विश्वास भगेल। आइ नै काल्हि तोहर प्रतिज्ञा अवश्य पूरा हेतौएक दिन फेर मिथिलाक महिला भारतक आदर्श महिला कहाओत।
तरहेँ हम कहि सकैत छी जे शिक्षा, पाश्चात्य संस्कृति ओ सभ्यताक प्रभाव, स्त्री-पुरूषक समानता आ स्वतंत्रताक भावना नारीमे स्वातंत्र्य भावक जन्म देलक। व्यक्तित्व विकासक संगहि संग ओकर बाहरी दुनियाँमे हस्तक्षेप बढ़लागल, ऐ तरहेँ नारीक बदलैत परिस्थिति, समाजक बदलैत मूल्य दृष्टि, नव नैतिकता बोध, स्त्री-पुरूषक परस्पर रिश्ताक आयामहि केँ बदलि देलक।

पुरूषक प्रति विद्रोहक भावना
आधुनिक सामाजिक मैथिली नाटक मध्य नायिकाक चरित्र विकासमे पुरूष-समाजक प्रति विद्रोहक स्वर अनुगुंजित भरहल अछि। ओ परिवार ओ समाजक बन्धनकेँ ठोकर मारबाक हेतु एकर विद्रूप ओ परिहासकेँ ध्यान नैअपन व्यक्तित्वक विकासक हेतु शिक्षा ग्रहण करबाक क्षमता दिस आकर्षित भेलीह अछि। एहन नारी अपन विचार ओ अपन व्यक्तित्वकेँ महत्व देलनि तथा वैवाहिक बन्धनकेँ तोड़बाक हेतु तत्पर भगेलीह जकर परिणाम एतबा अवश्य भेल जे सामाजिक परिप्रेक्ष्यमे एहन परिवारक जीवन अत्यधिक नारकीय बनि गेल अछि। एहन नारीक ध्वंसात्मक ओ विद्रोहत्मक पक्ष अत्यंत सशक्त अछि। हेतु मात्र पुरूषकेँ दोष नै देल जा सकैछ प्रत्युत ओ समाज व्यवस्थाक अछि जमे हमर परंपरा बनल अछि, जकर फलस्वरूप नारी-पुरूषक स्वस्थ सामंजस्य अधुनातम संदर्भमे अत्यंत दुष्कर भगेल अछि। पुरुष विरोधसँ सामाजिक व्यवस्था पर आघात करैत अछि तँ संभवतः एकांगीकता ओ विक्षिप्तताक आरोप सँ नारी बाँचि सकैत अछि। स्वतंत्र्योत्तर नाटककार किछु एहन नारी चरित्रक अंकन कलनि जे अपवाद भूत रुपमे चतुर कर्तृत्ववान, मेधावी आ तेजस्वी छथि। पुरुष हुनका समक्ष दुर्बल ओ आत्मकेन्द्रित देखाओल गेल छथि। पत्नी, पति पर हावी रहब श्रेयस्कर बुझैत छथि-
रजनीः--- हुँह....मान मर्यादा। अहाँकेँ जतेक चिन्ता माय-बापक मान-मर्यादाक तकर दशांसो यदि हुनका लोकनिकेँ अहाँक चिन्ता रहितियन्हि तँ बुझितहुँ आइ धरि ओ की कएलनि अछि अहाँक लेल ?”

व्यावहारिक रुपसँ पुरूषक विरोधक परिणामकेँ अन्त धरि लजा कए विचारब आवश्यक अछि किएक तँ स्वस्थ ओ मानवाली नारीक यौन-वासनाक पूर्तिक समस्या सँ सम्बद्ध अछि। नारी स्वातंत्र्यक आकांक्षा संभवतः पुरूषसँ पृथक रहिक पूर्ण भसकैछ, किन्तु नारीक नैसर्गिक भावना कोना चरितार्थ हत। एहन नारी व्यवहार शून्य भजाइत अछि तथा परिस्थितिक अंतरंगताक अनुभव क्षमताक अभाव रहैछ जसँ हुनक विद्वता निरर्थक प्रमाणित भजाइत अछि। एहन स्वरूपक वास्तविक चित्र उपलब्ध होइत अछि परित्यकता ममताक चरित्रमे। पिताक हेतु ससन्तान एक समान होइत अछि मुदा लेटाइत आँचरमे दीनानाथ अपन तीनू संतानक प्रति तीन दृष्टि रखने छथि जकर वास्तविकताक उद्घाटन ममताक कथनसँ स्पष्ट भजाइत अछि-
ममताः— “अहाँ बच्चा भैयाकेँ दुरदुरौने रहैत छियनि.... लाल भैयाक लल्लो-चप्पो मे लागल रहै छी....जे काल्हि डॉक्टर बनताह तनिका छनन-मनन खोअबैत छियनि।
समाजक नींव परिवार छै आ परिवारक आधारशिला पति-पत्नी। पति-पत्नीक परस्पर विश्वास, समझदारी ओ सहयोगे सँ परिवार सुखी भसकैछ। जँ दुनूमे सँ एको पंगु भजात तँ परिवाररुपी गाड़ीक दुर्घटना हेबाक संभावना बढ़ि जाइत अछि। त हेतु आब पुरुषोकेँ सोचपड़तन्हि जे नारीक संग मानसिक समायोजन आब अत्यंत आवश्यक भगेल अछि।

शिक्षाक प्रति नारीक बदलैत दृष्टिकोण
कोनो देश समाज अथवा जाति तावत धरि सभ्य नै बुझल जात जाधरि ओ देश, समाज, अथवा जातिमे नारीक आदर नै हेतै। जँ पुरुष देशक भुजा थिक तँ नारी हृदए, जँ पुरुष देशक हेतु दीप थिकाह तँ नारी दीपकक तेल, जँ पुरुष द्वारक सुन्दरता छथि तँ नारी घरक प्रकाश, जँ एकक बिनु द्वार सुन्न लागैत अछि तँ एकक बिन घर अन्हार।
वैदिक युगमे पुत्रीक शिक्षाक ओतबे महत्व छल जतबा कि पुत्रक। ऋग्वेदमे शिक्षित स्त्री-पुरूषक विवाहहि केँ उपयुक्त मानल गेल अछि। पिता द्वारा कन्याकेँ अपन पुत्रेक भाँति शिक्षित कल जाइत छल आ कन्याकेँ सेहो ब्रह्मचर्य कालसँ गुजरपड़ैत छलै। अथर्ववेदमे लिखल छै जे कन्या सुयोग्य पति प्राप्त करमे तखने सफल भसकैत अछि जखन कि ब्रह्मचर्य कालमे ओ स्वयं सुशिक्षित भचुकल हुअए। कतोक नारी शिक्षाक क्षेत्रमे महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त कने छलीह। एत धरि ओ लोकनि वैदिक ऋचा धरिक रचना कने छलीह। लोपामुद्रा, धोषा, सिकता, निवावरी, विश्ववारी आदि प्रकारक विदुषी नारी छलीह जनिक उल्लेख ऋग्वेदमे भेटैत अछि।
वैदिक यज्ञवादक प्रतिक्रियाक फलस्वरुप उपनिषद्कालमे एक नव दार्शनिक आन्दोलनक प्रारम्भ भेल। ओमे नारीक सहयोग कोनो कम नै छल। ऋषि याज्ञवल्क्यक पत्नी मैत्रेयी परम विदुषी छलीह। ओ धनक अपेक्षा ज्ञान प्राप्तिक कामना बेसी करैत छलीह। बृहदारण्यक उपनिषदमे उल्लेख अछि जे याज्ञवल्क्यक दोसर पत्नी कात्यायनीक पक्षमे अपन सम्पतिक अधिकार छोड़ि अपन पतिसँ मात्र ज्ञानदानक प्रार्थना कएलनि। तरहेँ बृहदारण्यक उपनिषद् मे सेहो विदेहक राजा जनकक सभामे गार्गी आ याज्ञवल्क्यक मध्य उच्च स्तरीय दार्शनिक वाद-विवादक उल्लेख अछि।
उत्तर वैदिक कालमे समक गतिक संगहि-संग नारी शिक्षाक क्षेत्रमे शनैः शनैः ह्रास होमलागल। कन्याकेँ सुविख्यात आचार्य ओ प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र धरि भेजमे समाजक उत्साह किछु कम पड़ि गेलै, ई विचार प्रबल भगेल जे घरहि पर कन्याक पिता, भाय अथवा आन कोनो निकट संबंधी हुनका शिक्षित करताह। परिणाम स्वरुप स्वाभाविक रुपसँ ओकर धार्मिक अधिकार, शिक्षाक अधिकारमे ह्रास होमलागल।
कालक्रमानुसारे शनैः शनैः नारीक प्रति पुरुषक बदलैत धारणाक कारणेँ नारी वर्गमे अशिक्षा व्याप्त भगेल। मैथिल समाजमे नो नारी शिक्षाकेँ अधलाह मानल जाइत अछि। नारी जगतमे शिक्षाक अभावक कारणेँ ओकर मूल्य एको कौड़ीक नै रहि जाइत अछि। संदर्भमे बसातकेँ देखल जा सकैछ-
जे महिला आजुक युगमे देहरिसँ आगाँ पनै बढ़ा सकए, एको कौड़ी अरजि नै सकय, एतेक तक जे ककरोसँ भरि मुँह बाजि नै सक तकरा जँ नाँगड़ कही, बलेल कही, बौक कही, गोबरक चोत कही तकोनो अनुचित नै”१८

स्वातंत्र्योत्तर युगमे नारी मे आत्मनिर्भरताक प्रवृत्ति विशेष रुपमे देखल जाइत अछि, आब ओ गोबरक चोत बनि नै रहचाहैत छथि कालीनाथ झा सुधीरक नाटककुसुमक नायिका पिताक आज्ञासँ शिक्षा प्राप्त करैत छथि मुदा हुनक माय हुनका लेल तिरस्कृत करैत छथि
कमला- इ गप्प की छियैक ? हमरा वंशमे आइ धरि कोनो स्त्री नहि पढ़लक तों हमर वंशमे दाग लगौलेँ। मौगीक काज थिक भानस, गीतनाद, कसीदा आ ओइसँ बेसी भेल तँ चिट्ठी-पत्री लिखब। तोँ कि बाप जकाँ अँगरेजिया बनबैं ?”

बसातनाटकमे कृष्णकान्त द्वारा मिथिलाक अशिक्षित नारी पर तीव्र प्रहार कगेल अछि। ओ अशिक्षिता फुलेश्वरी विवाह नै पड़ा जाइत छथि। फुलेश्वरी कृष्णकान्त द्वारा अपमानित भेला पर अपनाकेँ सुधारैत छथि। शिक्षा प्राप्त क समाज सेविकाक काज करैत छथि। शिक्षा प्राप्त कफुलेश्वरी मैथिल नारीक मस्तक गर्वसँ ऊँच करैत छथि। हिनक चरित्र द्वारा नाटककार मैथिल ललनाक शिक्षाक प्रति जागरूकताक दिस ध्यान आकृष्ट कने छथि। शिक्षिता फुलेश्वरीकेँ देखि जोतखी द्वारा हुनक प्रशंसा कल जाइत अछि- बम बाबा—“वाह-वाह! --- बेटी तोहर सफलतापर आइ हमरा अपार हर्ष भरहल अछि आ कतेक अबलाकेँ सबला बना रहल अछि। आब हमरा विश्वास भगेल। आइ ने काल्हि तोहर प्रतिज्ञा अवश्य पूरा हेतौ- एक दिन फेर मिथिलाक महिला भारतक आदर्श महिला कहओतीह।
तरहेँ हम देखैत छी जे उनैसम आ बीसम शताब्दीक आरंभमे राजा राममोहन राय तथा आर्य समाजक प्रयत्नसँ ज नारी शिक्षाकेँ आरंभ कल गेल ओमे आइ व्यापक प्रगति भेल अछि, विषयके प्रतिपाद्य बना कतोक मैथिली नाटककार मिथिलाक नारीमे शिक्षाक प्रति दृष्टिकोणमे परिवर्तन आनबाक प्रयास कने छथि। प्रयासक सकारात्मक प्रभाव आजुक समाज पर प्रत्यक्ष देखबामे आबि रहल अछि। नारीक शिक्षाक संदर्भमे पणिक्करलिखैत छथि। नारी शिक्षा विद्रोहक ओ कुड़हड़िक धारकेँ तेज कदेने अछि जसँ हिन्दु सामाजक जीवनक झाड़ी केँ साफ केना संभव भगेल अछि।२

निष्कर्ष
मैथिली सामाजिक नाटकक अध्ययन आ अनुशीलनोपरान्त हम निष्कर्ष पर पहुँचैत छी जे विशेष कस्वातंत्र्योत्तर युगक मैथिली नाटककार सामाजिक विवर्तनकेँ ध्यानमे राखि लिखलनि जमे प्रमुख स्वर रहल अछि नारी समस्या। यद्यपि एखनो मिथिलामे दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, जानकी आदिक पूजा कल जाइत अछि, तथापि आजुक नारी विभिन्न सामाजिक कुप्रथाक कारणेँ मजबूर छथि, लाचार छथि। उत्पीड़नक जड़ि जँ खोजल जा तँ हमरा जनितेँ सभसँ भयावह स्थिति उत्पन्न होइत अछि दहेज आ विधवा-विवाहक समस्याकेँ ल। यद्यपि बाल-विवाह, वृद्ध विवाह, बिकौआ प्रथा एखनो समाजसँ उठल नै अछि तथापि दिशामे जागरुकता अवश्ये देखबामे आबि रहल अछि। मैथिली नाटककार लोकनि नारीक कारूणिक दशासँ द्रवित भ कतोक नाटक मध्य समस्या सभकेँ लक्ष्य बना नाटकक रचना कने छथि जसँ समाज-सुधारक जागरण जोर पकड़ि सक
मुदा एत एकटा प्रश्न उपस्थित होइत अछि जे स्वातंत्र्योत्तर मैथिली नाटकमे सामान्य नारीक प्रतिबिम्ब कतेक दूर धरि स्पष्ट अछि? ऐ कालावधिक नाटककार नारी-चित्रण आत्मीयता एवं सहानुभूतिसँ नैलनि, प्रत्युत पुरूषक दृष्टिएँ कएलनि। स्वातंत्र्योत्तर नाटकमे नारीक निष्प्रेम जीवनक कथा थिक जे सामाजिक प्रतिबन्धक अन्तर्ज्वालामे झुलसि क नष्ट भरहल अछि। पुरूषक आकांक्षा, आदर्श ओ निर्दयताकेँ टारब हुनका हेतु असंभव भजाइत अछि। नारी जीवनक व्यथा, कठिनता एवं कुण्ठाक चित्रण करबामे नाटककार तत्परता देखौलनि, किन्तु ओ समाजक हेतु निष्प्रयोजनीय प्रतीत भरहल अछि। कालावधिमे मैथिली नाटकमे नारीक जतेक आदर्शवादी ढगसँ चित्रण कल गेल अछि, ततेक यथार्थवादी दृष्टिएँ नै



संदर्भ

. डेविस, ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ वोमेन, पृष्ठ१७२
. स्वर्ण सकूजाक लेख, ‘महिला सशक्तीकरण युग में निरंतर असक्त होती नारी’, राधाकमल मुखर्जी चिन्तन परंपरा, जुलाईदिसम्बर २००१, अंक
. बसात, गोविन्द झा, पृष्ठ४३
. एकांकी संग्रह, सं. सुरेन्द्र झा सुमन’, ब्रजकिशोर वर्मा मणिपद्म, सुधांशु शेखरचौधरी, मैथिली अकादमी, पटना, १९७७,पृष्ठ१३३
. वएह, पृष्ठ२६
. रक्त, अरविन्द कुमार अक्कू’, शेखर प्रकाशन, टेक्सटबुक कॉलोनी, इन्द्रपुरी, पटना, १९९२,पृष्ठ२०
७. त्रिवेणी, परमेश्वर मिश्र, मिथिला प्रेस, १९५०,पृष्ठ४१
८. लेटाइत आँचर, सुधांशु शेखरचौधरी, पृष्ठ२५
९. वएह, पृष्ठ६३
०. कनियाँ-पुतरा, गुणनाथ झा, पृष्ठ२१
१. तेसर कनियाँ, मणिपद्म, पृष्ठ---१६
२. नाटकक लेल, नचिकेता, पृष्ठ२०-२१
३. नायकक नाम जीवन, नचिकेता, अखिल भारतीय मिथिला संघ, /१ खेलात घोष लेन, कलकत्ता, १९७१,पृष्ठ
४. दहेज, चौधरी यदुनाथ ठाकुर यादवपृष्ठ४६
५. बसात, गोविन्द झा, पृष्ठ४७
६. एना कते दिन, अरविन्द कुमार अक्कू’, चेतना समिति पटना,१९८५, पृ.१६
७. लेटाइत आँचर, सुधांशु शेखरचौधरी, पृष्ठ६३
१८. बसात, गोविन्द झा, पृष्ठ१८
१९. कुसुम, कालीनाथ झा सुधीर’, पृष्ठ
०. बसात, गोविन्द झा, पृष्ठ४७
२१. के. एम. पन्निकर,
 

(साभार विदेह)

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