प्रकाश चन्द्र
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा
भगवान दास रोड, नई दिल्ली – 01
नचिकेताक ‘प्रियंवदा’ : एक विश्लेषण
प्रियंवदा उदय नारायण सिंह नचिकेता द्वारा लिखित एकांकी आछि । एकरा सम्पूर्ण नाटकक रूप द’ क’ मनोज मनुज मंचित केलथि । एहि प्रस्तुति के देखबाक सौभाग्य हमरा नहि प्राप्त भेल, मुदा प्रस्तुति आलेख हमरा उपलब्ध भेल । ओही नाट्यालेख के अध्ययन केलाक बाद हमर निम्न अनुभव अछि ।
जेना कि नाम स’ लगैत अछि जे प्रियंवदा कोनो ऎतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित नाटक होयत मुदा से अछि नइ । ई मात्र नाटकक एकटा केन्द्रित पात्रक नाम अछि जिनका इर्द-गीर्द नाटकक कथानक घुमैत अछि ।
नाटकक कथ्य एना अछि जे प्रियंवदा नामक एकटा लड़की कोनो शहर में एसगर रहि रहल छथि आ कोनो कम्पनीक लेल मार्केटिंग सर्वे करैत छथि । ओही शहर मे शर्व नामक एकटा युवक सेहो रहैत छथि । शर्व के कविता लिखब खूब पसिन छनि आ प्रियंवदा के कविता सूनब नीक लगैत छनि । शर्वक कविता स’ प्रभावित भ’ प्रियंवदा शर्व संग प्रेम विवाह क’ लैत छथि । बाद मे किछु घटना घटैत अछि । सर्व प्रियंवदा के छोड़ि कतौ चलि जाइत छथि । नाटक मे प्रियंवदाक भैया आ भौजी छथिन संगहि किछु कोरस पात्रक प्रयोग सेहो कयल गेल अछि । एहि तरहे नाटक मे कुल जमा दस गोटे छथि ।
नाटक प्रियंवदा छ: दृश्य मे बाँटल गेल अछि । पहिल मे प्रियंवदा आ हुनकर भौजीक संवाद छनि । दोसर दृश्य मे कोरस, प्रेमी-प्रेमिका, प्रियंवदा आ शर्व छथि । तेसर दृश्य मे कोरस, शर्व आ प्रियंवदा तथा चरिम दृश्य मे शर्व, प्रियंवदा, भैया आ भौजी छथि । पाँचम दृश्य मे एक बेर फेर शर्व, प्रियंवदा, भैया आ भौजी तथा छठम दृश्य मे शर्व आ प्रियंवदा दुनू मात्र छथि ।
ई नाटक दूटा स्थान पर घटित होएत अछि – पहिल शर्व के घर में आ दोसर सार्वजनिक पार्क मे । शर्व के घर मे चरिटा दृश्य होइत अछि – पहिल, चरिम, पाँचिम आ छठम तथा पार्क में दोसर आ तेसर दृश्य होइत अछि । घरक दृश्य मे कुर्सी, किताब, काग़ज़, लैम्प होइत अछि आ पार्क मे संबंधित सामान राखल जा सकैत छैक ।
प्रियंवदा नाटक फ्लैस बैक मे चलैत अछि । उदय नारायण सिंह नचिकेताक ई प्रिय शैली छनि । एकर प्रयोग नचिकेता जी एक छल राजा मे सेहो केने छथि । नाटकक मे एहन तरहक शैली प्राय: नाटक के कमजोर करैत अछि । हँ ! ज’ नाटकक बीच मे किछु कालक लेल वा कोनो एकटा दृश्य फ्लैस बैक मे अबैत हो तखन त’ कोनो विशेष नहि मुदा, नाटकक पहिल दृश्यक बाद सम्पूर्ण नाटक एहि फ्लैस बैक शैली मे चलय त’ निश्चित नाटकक लेल ओतेक प्रभावी नहि भ’ सकैत अछि । कारण, कोनो नाटक एकटा लय मे चलैत अछि, जकर ग्राफ शून्य स’ आगू उठैत छै । दर्शक मे हरदम ई उत्सुकता बनल रहैत छनि जे आब की हेतैक । जखने ई उत्सुकता समाप्त भ’ जाइत अछि नाटक अपना संग दर्शक के बन्हबा मे कमजोर पर’ लगैत अछि । प्रियंवदाक अंतिम पड़ाव जे कि पहिले दृश्य मे अछि कोनो ओतेक प्रभाव नहि छोड़ैत अछि । खैर ...
आब एहि नाटकक कथ्य पर विचार करबाक चाही । नाटकक शुरुआत कथ्यक समापन स’ होइत अछि । तात्पर्य ई जे शर्व अपन प्रियंवदा के छोड़ि क’ चलि जाइत छथि जिनका स’ किछुए पहिने ओ प्रेम विवाह केने रहथि । प्रियंवदा वियोग मे रहैत छथि आ हुनकर भौजी हुनका समझा-बुझा रहल छथिन । मुदा, ओ अपना आप मे रहनाइ बेसी उचित बुझैत छथि । हुनकर एकटा संवाद बुझू नाटकक मूल अछि : “सेल्स गर्लक काज करैत – करैत हम स्वयं मार्केट पोडक्ट बनि गेल रही ” । आब प्रियंवदा अपन जीवनक कथा दोहरबैत छथि । कोना ओ अपना नौकरी स’ जुड़ल छलीह, कोना हुनका शर्व भेटलखिन, कोना एक दोसर स’ प्रेम भेलन्हि जे विवाह मे परिणत भेल, कोना दुनूक जीवन चलैत रहैन, कोना शर्व पर हुनक पिछला जीवन हॉबी भ’ जाइत रहनि, कोना शर्व कविता लिखनाई स’ प्रेम करैत छलाह, कोना एक दिन भैया भौजी अकस्मात घर अयलखिन, कोना हुनका सभ संग शर्वक व्यवहार बदललनि, कोना शर्व अपन प्रिय प्रियंवदा संग दुरव्यवहार क’ र’ लगलाह, कोना शर्वक दिमाग बदलि गेलनि आ ओ प्रियंवदा के छोड़ि घर स’ कतौ चलि गेलाह । आब प्रियंवदा हुनकर वियोग मे आइयो ओहिना ठाढ़ छथि ।
एहि नाटक मे कथ्यक दूटा धारा अछि । एकटा त’ बिलकुल सामान्य जे तुरत नाटकक नामे स’ देखाइत अछि जे स्त्रीक सामाजिक स्थिति केहन अछि । आइ नै आदि काल स’ स्त्रीक सामाजिक स्थिति मे कोनो परिवर्तन नै एलैन्ह अछि । हँ ! एकर रूप जरूर बदल अछि । आदि काल मे नल अपन दमयंती के सुनसान जंगल मे छोड़ि क’ चलि गेल छलाह, दुश्यंत त्यागि देलनि शकुंतला के । आइयो शर्व अपन प्रिय प्रियंवदा के आदमी रूपी जंगल मे छोड़िक’ चलि गेलाह । प्रेमक परिणति, वियोग मे - ओहू समय आ आइयो ।
नाटकक कथ्यक दोसर धारा सेहो अछि जे पहिलुक कथ्य स’ अति महत्वपूर्ण आ सारगर्भित सेहो छैक । शर्व एकटा कवि छथि हुनका पर हुनकर अतीत हरदम सबार रहैत छनि । एहि ठाम शर्व एहि नाटक पात्र मात्र नहि छथि बल्कि आजुक मानव समाजक प्रतिनिधित्व क’ रहल छथि । लोक चाहे जे किछु भ’ जाइछ या बनि जाइछ हुनकर अतीत हरदम हुनका पर छाया जेना मँडराइत रहैत छनि । एहि अतीत स’ किछु समर्थ व्यक्ति अपना आप के बचा लैत छथि आ ओहने व्यक्ति महान होइत छथि । मुदा अधिकांश व्यक्ति ओकर प्रभाव मे आबि जन सामान्यक जीवन जीबैत छथि या शर्व जेना अमानवीय व्यवहार क’र’ लगैत छथि । ई अति महत्वपूर्ण अछि आ एतबे नहि एखुनका सन्दर्भ मे ई विश्व स्तर पर गम्भीर प्रश्न बनल अछि । मुदा प्रियंवदा नाटक मे एहि गम्भीर मुद्दा के दाबि क’ स्त्रीक सामाजिक स्थिति सन सार्वजनित मुद्दा के प्रमुखता स’ प्रभावी बना देल गेल अछि । जँ एहि नाटकक नाम प्रियंवदा क’ बदला किछु आर होइत त’ ई निर्देशकक मोनक विचार आ कुशलता भ’ सकैत छल जे ओ कोन पक्ष केँ बेसी उभारैत छथि ।
पात्रक चुनाव उदय नारायण सिंह नचिकेताक नाटकक अत्यंत प्रभावी अंग थिक । कारण, सभ पात्र गठल आ कथ्यक माँगानुसार होइत छनि । एहू नाटक मे पात्रक संख्या आ ओकर विस्तार कथ्यक अनुसार उचित अछि । संगहि कोरसक प्रयोग क’ क’ आरो आसान बनाओल गेल अछि । कोनो छोट स’ छोट संस्था एहि नाटक केँ आसानी स’ प्रस्तुत क’ सकैत अछि । नाटक मे प्रियंवदा सबस’ महत्वपूर्ण चरित्र छथि आ ओहि के बाद शर्व । मुदा एकटा अभिनेताक लेल सबस’ महत्वपूर्ण आ चुनौतीपूर्ण चरित्र छथि शर्व । ई पात्र जतेक साधारण देखाइत अछि कविक रूपमे ओतबे जटिल अछि आंतरिक रूपे । अभिनयक जे सबस’ महत्वपूर्ण अंग अछि अंतरद्वन्द से एहि पात्र में दुनू तरह स’ भरल अछि – बाहरी आ आंतरिक सेहो । बाहरी मे अपन प्रियंवदा आ समाज सँ, आ आंतरिक मे हुनक अपन अतीत स’ । एहि तरहक चरित्र कोनो अभिनेता लेल पसंदिदा चरित्र होइत अछि । तेँ हम शर्व के एहि नाटक मे महत्वपूर्ण चरित्र मानैत छी । भैया आ भौजीक रूप मे दूटा पात्र आरो छथि । नाटक लेल ई दुनू सहयोगी पात्र छथि । अहू मे भौजी कनी बेसी महत्वपूर्ण । पहिने कहने छी जे कोरस के प्रयोग नीक अछि । तेँ प्रियंवदा पात्रक अनुसार एकटा महत्वपूर्ण नाट्य रचना थिक ।
नाटक मे नाटकीय भाषाक जे प्रयोग भेल अछि से शास्त्रीय थिक । चुँकी नचिकेता जी स्वयं नीक कवि सेहो छथि तेँ हिनक कविता बेसी प्रमुखता संग नाटक मे रहैत छनि । यैह कारण अछि जे बहुत बात ओ बहुत कम्मे शब्द आ सुगठित भाषा मे कहि लैत छथि । मुदा प्रियंवदा मे कविताक प्रयोग किछु विशेष भ’ गेल अछि । ओना शर्व कवि छथि तेँ कविता अधिक - सेहो कोनो उचित तर्क नहि बुझना जाइत अछि । आ एहन तरहक भाषाक प्रयोग नाटक के भ्रमित करैत अछि ओ एना कि भाषाक आधार पर प्रियंवदा के की कहल जाय शास्त्रीय नाटक, ऎतिहासिक नाटक, यथार्थवादी नाटक या आर कोनो । हाँ, भाषा आ कथ्यक आधार पर ई यथार्थवादी नाटकक वैचारिक नाटकक श्रेणी मे राखल जा सकैत अछि । मुदा, कोरसक भाषा नाटकक संग नहि जाएत अछि । संगहि किछु आर मुद्दा सेहो कोरस के माध्यम स’ सामने राखल गेल अछि ओ कनि आरो मूल कथ्य के भ्रमित करैत छै जेना प्रेमी-प्रेमिका मे विवाहेत्तर संबंधक मुद्दा उठायब । ई मुद्दा कमजोर या अप्रासांगिक अछि से हम नहि कहि रहल छी मुदा एहि ठाम एकरा उठायब नाटकक मूल कथ्य के कमजोर करब अछि ।
रंगमंचीय दृष्टि सँ प्रियंवदा एकटा सामान्य कृति अछि । ने कोनो अतिमहत्वपूर्ण आ ने निराशाजनक । एहन कोनो खास नै छै जे किनो निर्देशक वा संस्था एक बेर पढ़िते एकरा मंचनक परिकल्पना क’ र’ लागथि आ इहो नहि कहल जा सकैत अछि जे कोनो निर्देशक एकरा मंचित क’ र’ चाहथि त’ प्रभावी नहि बना सकैत छथि कनि फेर बदल क’ क’ । (साभार विदेह )
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