बेटीक अपमान
हम व्यत्तिगत रुपेँ हरियाणाक प्रायः-प्रायः प्रत्येक कोणमे रहल-बसल छी आ तँए स्थानीय जनताक रुपमे हरियाणामे कत्तौ घुसि जाइत छी। एकर हानि हमरा जे भेल हुअए मुदा लाभ एतेक तँ जरुर भेल जे हम स्थानीय परेशानी बुझए लागल छिऐक। ओना हरियाणाक नाम सुनिते मोनमे समृद्धिक नजारा देखाए लगैत छैक। भरल-पुरल खेत सुझाए लगैत छैक। मुदा एहिठामक स्थानीय समस्या बहरिआ लोककेँ नै बुझल छैक। ऐठाम हरेक साल १००-१५० लड़काक बिआह दोसर राज्यक लड़कीसँ होइत छैक। जँ सोझ ढ़ंगे कही तँ हरियाणाक सेक्स रेशिओ (लिंगानुपात) असमान अछि। अर्थात १००० लड़कापर ८५०-९०० लड़की।
आब अहाँ सभ हमरा हूट करबाक सोचि रहल हएब। प्रस्तुत पोथी मैथिलीक अछि आ हम हरियाणाक गप्प कऽ रहल छी से अहाँ सभकेँ उन्टा लागि रहल हएत। मुदा ऐठाम हम ई कहए चाहब जे मात्र स्थान आ मनुख बदलि जाइत छैक, मनोवृति आ समस्या वएह रहैत छैक। आब हम अही समस्याकेँ मिथिलाक परिप्रेक्ष्यमे सोची। बेसी अंतर नै भेटत आ से ऐ द्वारे जे नेपालमे सेहो मिथिला छैक। आ भारतक मिथिला आ नेपालक मिथिला दुनूमे बिआह प्रचलित छैक। तथापि जँ भारतक हिसाबे सोची तँ बिहारमे १००० लड़कापर ९२१ लड़की छैक ( ओना जँ २०११ क जनगणनाक प्रोविजनल रिपोर्ट देखब तँ संपूर्ण भारतमे १००० लड़कापर ९४० लड़की छैक)।
आ जँ ऐ समस्याक परिप्रेक्ष्यमे विकसित हरियाणा आ अविकसित मिथिलाकेँ देखी तँ कोनो बेसी अंतर नै बुझाएत। अर्थात ऐ समस्यासँ दुनू क्षेत्र ग्रसित अछि। मुदा ई आब बिचारए पड़त जे ई समस्या कहाँसँ निकलैत छैक? कोन मनोवृतिसँ ई समस्या परचालित होइत छैक ? आखिर ई कोन दृष्टिकोण छैक जइ तहत लोक बेटी नै चाहैत अछि आ ऐ लेल भ्रूण हत्या सन पाप करबासँ सेहो नै हिचकैत अछि ? मिथिलाक हिसाबे गप्प करी तँ दहेज प्रथाकेँ एकर जिम्मेदार ठहराओल जा सकैए मुदा हरियाणाक हिसाबें ई कारण ओतेक प्रभावी नै कारण हरियाणामे दहेज प्रथा नै कऽ बराबर छैक। तँए हम दहेजकेँ भ्रूण हत्याक एकटा कारण मानैत छी मुदा प्रमुख कारण नै। हमरा हिसाबे ऐ समस्याक प्रमुख कारण एखनो आधुनिक कालमे बेटाकेँ अनिवार्य मानब अछि। एकर समाजिक आ आर्थिक, दुनू पक्षमे बाँटए पड़त।
समस्या आ साहित्य दुनू एकै चीजक अलग-अलग नाम थिक। बिना समस्या कोनो साहित्य नै भऽ सकैत छैक। आ अंततः साहित्ये कोनो समस्याक समाधान तकैत छैक। मुदा मैथिली साहित्य एकर अपवाद अछि। ऊपर हम देखिए चुकल छी जे कोना मिथिला भ्रूण हत्याक समस्यासँ ग्रसित अछि। तथापि ऐठामक साहित्यकार ऐपर कलम नै चलौलन्हि। घोर आशचर्यक बिषए। आशचर्यक बिषए ईहो जे एहने-एहने समस्यासँ कतिआएल साहित्यकारकेँ आलोचक आ मठाधीश सभ बढ़ाबा देलथि।
कोनो समाज कोनो समस्यासँ कतिआ कऽ बेसी दिन नै रहि सकैत अछि। एकर अनुभव हमरा श्री बेचन ठाकुर लिखित नाटक " बेटीक अपमान" पढ़लापर बुझाएल। आ संगहि-संग ईहो बुझाएल जे आब बेसी दिन मिथिला सूतल नै रहत आ ने बेटीकेँ खराप बुझल जाएत ।
(साभार विदेह)
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