Wednesday, August 24, 2011

डॉ. शेफालिका वर्मा एकांकी एकटा आर महाभिनिष्क्रमण

डॉ. शेफालिका वर्मा

एकांकी
एकटा आर महाभिनिष्क्रमण
(सान्झुक बेर.मंद समीरण वातावरण के उन्मादित क रहल छल . पलंग पर बैसल प्रकृति चुप चाप कोनो विस्मृति में डूबल छलीह .ओकर चेहरा पर अतीत आबी बैसी गेल छल. किम्हर दन स वोकर वाल्य- सखी राखी आबि प्रकृतिक सोच के तार तार क देलक )
राखी --अहाँ की सोचैत रहैत छी ,सखी ?जाहि दिन स अहाँ दार्जीलिंग स घुरल छी ,लगैत अछ अहाँ एखनो ओहि घाटी सब में भटकि रहल छी
प्रकृति एकटा उसांस भरि निमिष मात्र ले राखी दिसि तकैत अछ फेर बजैत अछ
प्रकृति--सांचे बजैत छी राखी ,हम एखनहु ओहि घाटी सब में भोतिया रहल छी . कत्तो कत्तो बाट क दुनू दिस कमल -कुसुम के देखि रबीन्द्रनाथ टैगोर क पाती मोन पड़ी जायत छल
'एय शरद आलोर कमल बने ,वाहिर होय विहार करे
जे छिले मोर मोने मोने . ..' अकास में जल भरल मेघ खंड देखि बुझा पडैत छल जेना ओ सागरक लहरि होय ,राखी एहि मोहक सुषमा क संसार में हम हेरा गेल छलों
( प्रकृतिक आंखि डबडबा जैत छैक. मुड़ी नुघरा लैत अछ .राखी बड सिनेह स ओकर चेहरा उठ्वैत अछ )
राखी--प्रकृति , अहाँ बड कोमल छी , बड निश्छल .....
बीचे में बात कटैत प्रकृति बजैत अछ --हँ हँ उहो इयैह कहैत छल राखी ' निश्छल, कोमल '.....ओ जखन हँसैत छल त शत जलतरंग जकां हमर मोन मानस कांपि जायत छल ...
( बजैत बजैत प्रकृतिक डबडबायल नोर धार बनि जायत अछ. अधीर भ राखी बजैत अछ )
---प्रकृति, हम अहांक वाल्य संगिनी छी. तैयो अहाँ हमरा से कतेक बात नुका लैत छी . अहांक ह्रदय पर जे असह्य बोझ अछ ओकरा हमर सामने फेक दिय . अहांक दारुण व्यथाक राज हम जाने चाहैत छी प्रकृति ( राखी आवेग आ आवेश स भरि जायत अछ )
--बाजु प्रकृति बाजु
( तावत किम्हर दन स एकटा छोट नेना दौडल अबैत अछ आ धप्प दे प्रकृतिक कोर में बैसी जायत अछ . प्रकृति ओकरा अपन करेज स सटाई लैत छैक . )
माँ माँ ,अहाँ कत छलों ?कतेक काल स अहाँ के खोजी रहल छलों
की बात छैक प्रसून ,बाजु बेटा ----नेना के दुलरावैत प्रकृति बजैत अछ.
माँ, केओ संगी नै आयल आय. अहीं कोनो खिस्सा सुना दिय
राखी उत्साहित भ बजैत अछ ..हँ हँ प्रसून, हमहूँ त अहाँक माँ के इयैह कहैत छलों
आब प्रसून क ध्यान राखी दिसि जायत अछ ,ओ चोंकि जायत अछ --अरे मौसी ! अहाँ एहिठाम छी. , अहं खिस्सा सुनब ने मौसी.. थपडी पडैत प्रसून बजैत अछ --माँ , आब ते अहांके खिस्सा सुनाबे पडत ..आब अहांक खिस्सा सुनब ,माँ मुदा परि वाला खिस्सा , राक्षस से हमरा भय होयत अछ.
प्रसुनक माथ पर हाथ फेरैत प्रकृति बजैत अछ ---बेटा, राक्षस स भय होयत ते अहाँ मर्द कोना कहायब ?
मायक बात सुनि प्रसून बजैत अछ..--ठीक छै, तखन एहेन खिस्सा कहू जाहि में परी होई, देवता होय ,राक्षसों होय , कोनो बात नै...
प्रसून क गप सुनि प्रकृति आ राखी दुनू हँसैत अछ.
राखी जिद्द पकड़ी लैत अछ --आब ते अहाँ के अपन कथा कहये पडत सखी
प्रकृतिक आंखि सुदूर अतीत में भटकि जायत अछ , आँखिक कोर में ओ दिन सब मखमली सपना जका छलक लगैत अछ
हँ , एकटा परी छल ,बड सुन्नरी, सुन्नर ? नै नै ओकर अंतर बड निश्छल छल , एतेक सरल छलीह जे संसारक छल कपट आदिक नमो नै जनैत छलीह. परी के हरदम लागेक जे ओ कोनो आन लोकक प्राणी छी जे भूलल भटकल कोनो श्राप वश एहि धरती पर आबि गेल हो ....प्रसून एकटक माय के तकैत रहैत अछ .....ओ परी एकटा राजकुमार के देखलक आ देखिते रही गेल..निश्छल शिशु सन रजत हास ओकर चेहरा पर पसरल छल .परीक अंतर से अवाज आयल ' एकरे लेल कतेक युग स ,कतेको कल्प स हमर आत्मा भटकि रहल छल ' राजकुमारों क ह्रदय कांच जकां निरभ्र छल .ओकर ह्रदय में विश्व प्रेम क अपूर्व रागिनी बजैत छल. ओ कोनो दिव्य आत्मा छल , महान चरित्र छल जे भोतिआइत एहि ठाम आबि गेल छल
माँ माँ , ओ राजकुमार बड सुन्दर होयत ने --प्रसून मुग्ध भ सुनि रहल छल - प्रकृतिक तन्द्रा भंग भ जायत अछ-हँ बेटा, सुन्दर त अपूर्व छल,मुदा अद्भुद व्यक्तित्व सेहो , ओहि परीक आंखि ओकर सुन्दरता पर नै ओकर निर्मल अंतर पर गेल छल आ प्रकृति पुनः भावाविष्ट भ जायत अछ --बेटा , ओ परी ओहि राजकुमार स बड प्यार कर लगलीह , राज्कुमार क सिनेह देखि परी के मोन में होम लागल .इयाह राजकुमार एहि मर्त्य भुवन स हमर उद्धहार करत ...दुनू सदिखन कल्पना डूबी अकासक गप करैत छल . एक दिन ओहि परी के किछ चोट लगलैक ,ओ पूछी बैसल ओहि राजकुमार स .' हम अहांक आंखि में उपेक्षाक छाहरी देख्लों , किएक , आखिर किएक ?
राजकुमार बाजल - अहाँ कतेक सरल छी , कतेक अबोध ,अहाँ हमर आंखि में अपन छाहरी नै देखि उपेक्षाक छाहरी देख्लों . आंखि में त सबहक परछाहीं रहैत छैक ,मुदा, अनमोल निधि धरती में गाडी के राखल जायत छैक. अहं के हम अपन हृदयक अतलता में नुका के रखने छी.
आ परी ओकर मोहक गपक स्वप्निल सागर में हेलैत रहल ..--अहाँ हमरा सबदिन एहिना मानब ने ?
बताही छी अहाँ, स्वयं पर अविश्वास करू ते करू मुदा, हमरा पर अविश्वास क नरक केर भागी नै बनू. ....आ परी जेना सब किछ पाबि लेलक
ओ राजकुमार ओस-तीतल गुलाब सन कमनीय , सुकुमार शब्द क चितेरा बनि कविता करैत रहल, परीक मोन भिजैत रहल ' ओह अपन राजकुमार क प्रेरणा छी हम 'एहि भाव में डूबैत रहलीह ओकर निश्छल अंतर अकास में खिलल सिंगराहारी तारा जका प्रमुदित होइत रहल.....
खिस्सा कहैत कहैत प्रक्रितिकं आंखि स दुई बुन्न आहत भ पियासल कपोल पर खसि पडैत अछ . राखि एतेक देर स मूक श्रोता बनि चुपचाप ओकर कथा के आत्मसात क रहल छलीह. (प्रसून ओकर करेज स लागल नै जनि कखन सुति गेल छल ओहि नेनाक अबोध अंतर में परी आ राजकुमार गंभीर गाथा कोना समायत ? )अरे ई त सुतिगेल. (चोंकि बजैत अछ प्रकृति , आस्ते स ओकरा बिछोन पर सुता दैत अछ.)
आगू की भेलैक प्रकृति राखि क प्रश्न पर प्रकृति चौंकी जायत अछ ...छोड़ू... बाहीं पकड़ी लैत अछ राखी..बाजु सखी, आय सब किछ बजे पडत ...(कतेक देर धरि प्रकृति चुप रहैत अछ जेना वेदना अपन संगीत ओकर अधर पर राखि देने हो ..
राखी कतेक काल धरि ओकर ई स्थिति देखैत रहल फेर) बजैत अछ -चुप किएक भ गेलों प्रकृति बाजु ...आगू बढ़ू
ओह हँ ...हँ हँ ते ...जेना शब्द गर में छटपटा रहल होय ---एक दिन ओकरा ज्ञात मुदा चहला स की भेलैक जे ओहि ओस तीतल गुलाब क खेतीक आत्मा ओ नै केओ आर अछ --केओ आन अछ. परीक आत्मा कुहरय लागल , रोम रोम सिसकी भर लागल ....मुदा, ओ राजकुमार निर्विकार रहल. ओ पहिनुके जका रोज एकटा ओअस तीतल गुलाब ओकरा सुन्वैत छल आ परीक अंतर सिसकी उठैत छल काश, एहि गुलाबक खेतीक कारन हम बनि सकतों !मुदा मात्र चाहला स की .? एकदिन ओ बाजल..हम चाहैत छलों ओकरा क्षितिज क क़ात में ठाढ़ क दी आ बाजि 'जखन अन्हार सघन भ जाय त अहाँ आकाशदीप ल हमर पथ प्रदर्शन करब. ' मुदा ओ की जनैत छल जे हम पहिनही किनार में ठाढ़ भ गेल छलों ,आकाशदीप सेहो बारि नेने छलों मुदा ओ राजकुमार ओहि बाटे एवे नहि केलक. ओ गुलाब क खेती सँ भोर क पहिल किरण तोड़ी ओकरा चिर प्रदीप्त करवा लेल चाहैत छल , परी सोचैत छल भोर क नै ,कम से कम सान्झुक प्रहरक कोनो भटकैत रश्मि रेख ओकर जीवनक सौभाग्य बनि जाय.किन्तु, ओ परीक लेल नोरक खेती कर लागल . परी ओहि नोर के पिवैत जिवैत जायत छलीह .ओ रोज ओहि राजकुमार क नाम एकटा चिठ्ठी लिखैत छल आ फेर स्वयं पढैत छल.ओकर आंगुर राजकुमार के आखर,शब्द आ पंक्ति में बान्हि दैत छल आ फेर निर्निमेष ओहि में राजकुमार क रूप के खोजैत छलीह उषा क आँचर स अनुरागिमा झडवाक संगे ओ ओहि पत्र के दुई खंड क दैत छलीह , ओ परी स्वयं अपना के दुई खंड क देने छलीह , एकटा खंड ओ स्वयं छलीह जे पत्र लिखैत छलीह ,दोसर खंड ओ स्वयं राजकुमार बनि ओकरा पढैत छलीह .
( एकटा नमहर साँस लैत प्रकृति कनि काल मौन
भ जायत अछ. राखी एकटक ओकरा देखैत अछ उत्सुक आ करुण नयन सँ , )..कतेक भाग्यवान हेतीह ओ जे अहांक प्रेरणा छथि ...
ओ की भाग्यवान हेती भाग्यवान ते अहाँ छी --ओ हमर लिखित काव्यक प्रेरणा थिकीह ,अहाँ हमर अलिखित काव्यक प्रेरणा छी, बाजु ते अहाँ कतेक महान छी.....ओ परी चुप रहैत छली .शब्दक एहि अभिधा व्यंजनाक झाडी में ओझरा स्वयं के नितांत असहाय बूझैत छलीह., हम किछ नै जनैत छी ,किछ नै,,अहीं ते कहने छलों अहाँ के हम ह्रदय क अटल गहीर में नुका के रखने छी ...
हँ, सांचे बजने छलों . हमरा मानव-जाति स प्रेम अछ ,अहाँ एहि पर अपन सर्वाधिकार सुरक्षित बुझि लेलों ई ते अक्षय कोष थीक जतेक बांटू ओतेक बढत
( प्रकृति क आंखि स नोरक टघार निकल लागल..)
राखी--फेर की भेल. ओही परिक ?? ओ राजकुमार एतेक कठोर ,एतेक निर्दय कोना छल ?
प्रकृति- नै सखी , ओकरा निर्दय नै कहू. मुदा, छोडू, खिस्सा पिहानी जखन जीवनक संग घटित होम लागैत अछ त बड वेदनामय भ जायत अछ,
राखी--नै सखी आय हम कहनी अनकहनी सब टा सुनब ओ राजकुमार एतेक निर्मम किएक छल ?
नै सखी, राजकुमार परीक आत्म्घुटन, एकान्तिक प्रेम क विषय में कल्पनो नै क सकैत छल.
प्रकृति--ओकरा बेर बेर निर्मम नै बाजु. हमहू एक बेर ओकरा निर्मम कहलों ते जनैत छी ओ हमरा की कहलक
राखीक आंखि में हजारो प्रश्न हेल लागैत अछ
आ प्रकृति अपन तरंग में ..ओ बाजल नारियर ऊपर स कतेक कठोर होयत छैक, भीतर स कतेक कोमल, कतेक सरस...
हूँ हूँ बुझि गेलों किन्तु, कहियो कहियो ओकर गप नेना जका होयत छल. अहाँ एक बेर उन्मुक्त हंसी हंसी दिय जाही स हजारो सिंगरहार झहरी जाय, या नै ते एक बेर कानि दिय ,अहाँक रुदन के हम आत्मसात क लेब. ओ परी ओकर बात के ओकर गप के सुनैत रहैत छलीह, गुनैत रहैत छलीह . ओ अपन वाक्य स, अपन शब्द स ओही परी के एतेक दुलरावैत रहैत छल जे परी निहाल भ जायत छलीह.एक बेर ओ बड निश्छल भाव स पुछलक -अहाँ हमरा स एतेक सिनेह किएक करैत छी ? उत्तर में परीक नयन अश्रुप्लावित भ उठल ओकर वाणी अवरुध्ह भ गेल ,ओ मूक, निष्पंद ,निर्वाक बैसल रहलीह
राजकुमार बाजल छल -हमरो ह्रदय अहीं जका निश्छल रहितैक , हमरो आंखि में अहीं जकां नोर आबि जेतियैक
जखन ओहि परी स एतेक प्रेम करत छल तं ओ परी किएक बुझलक जे ओ परी स प्रेम नै करैत छैक -बीचे में राखी बजैत अछ ,,नै राखी, ओ परी स प्रेम करैत छल ह्रदय क सम्पूर्ण गहिरता क संग, भावना क सम्पूर्ण सत्यता क संग.मुदा, ओ बेर बेर ओकरा आहत सेहो करैत छल , बेर बेर क्षत करैत छल ..एक दिन ओ परी आकुल व्याकुल सन ओहि राजकुमार लग गेल छलीह त गपे गप में एकटा एहेन बात कहि गेलजे अग्निशलाका जकां ओहि परीक आत्मा के विद्ध क गेल.'अहाँ के हम ओहि रूप में कहियो नै देखलों.परी वेदना स विकल भ उठलीह मुदा, राजकुमार अपना में मस्त रहल. एक दृष्टि इ देखवाक प्रयासों नै केलक जे ओकर एहि एकटा बात से परी के कतेक मर्मान्तक पीड़ा भेटलैक
जलकण स भरल आंखि आ कंपित पैर स घुरी आयल.समस्त संसार स ओकर आस्था टूटी गेलैक. ओकरा भगवन क अस्तित्व फुसि लग लगलैक समस्त भावना पर अन्हार क साम्राज्य खसि पडल . केकरो भावना के स्वीकार करब अपनेनाय त नै थीक. ओ कतेक डरी गेल छल .आ परीक मोने एकटा ज्वार उठल आ ओ राजकुमार के एकटा अभिधा द देलक, एकटा संबोधन
राखी ( एकटा निसांस भरैत )- मुदा एहि से की फरक पडल ?
( निसांस क दर्द के भोगैत) प्रकृति--ई अहाँ नै बुझि सकब , राखी जखन हम ओकरा ओहि संबोधन स अभिहित केलों त ओ एकटा स्वतन्त्रता क सांस लेलक जेना कोनो मृगछौना के बंधन-मुक्त क देलों ..ओ परी ओकर ख़ुशी देखि खुश भ गेल ..अहाँ खुश राज, हमहूँ खुश..
एतवे नै बाद में ओ बज लागल 'हम ते अहाँ के बंधवा लेल नै कहने छलों अहाँ स्वयं बान्हि देलों ..आ सखी, ओहि परीक अंतर घाह घाह भ गेल.कतेक पैघ प्रवंचना ओकरा छली गेल ...ओ त 'अषाढ़क एक दिन' क 'मल्लिका' बनि जीवन क सभ सुख आत्मसात क लेतियैक मुदा राजकुमार सब टा ऋतू के उनटा पुन्टा देलक कहियो घाह बेसी दुखित छल ते कहियो दवाय.किन्तु, ओ अपन भाव सुमन स परी के एतेक दुलार करैत छल जे ओकर दर्द रहि रहि कुहर लागेक ....
बहिन ! -( राखी क खोजपूर्ण दृष्टि प्रकृतिक चेहरा पर पडल छल )- की संबोधन देने मात्र से अहांक प्रेम बदली गेल..
प्रकृति--इयाह ते ट्रेजेडी छैक ,यदि शब्द मात्र स भाव बदलि जेतियैकप्रेम अपन रूप स्वरुप पाबि लेतियैक त संसार क सब स सुखि प्राणी ओ परी रहितैक
. मुदा, ओ भीतर भीतर तीतल जारनि सन पजरैत रहल ,घुटैत रहल. मुदा एतवे नै , जखन कोनो शारीरिक व्याधि हमरा घेरि लैत छल ते बेर बेर आब कोना छी, केहेन छी आ हम सोच लगैत छलों देह क कनिक कष्ट लेल एतेक चिंता, एतेक आकुलता मुदा, एकर भीतर जे एकटा कामना घुटन एवं कुंठा स मुक्त हेवा लेल छटपट करैत छल ,व्यथा विगलित छल, एकर चिंता ओकरा नै छल , नै नै हेबो किएक करतियैक.ओकर अपन मोन छल,अपन ह्रदय छल ,अपन भावना..मनुख अपन मोन के ते बूझिये नहि सकैत अछ, आन क कोन कथा..( (प्रकृतिक आंखि स्वप्न बनि जायत अछ , अधर ओकर भाषा)
प्रकृति--ओहि कोठरी के देखैत छी राखी, ओहि में आबि ओ बैसैत छल, अपन प्यारक भाषा स कतेक हमरा दुलरावैत छल , ओ चलि जायत छल ते ओकर नाम के परी निह्स्वन बज्वैत छल . मोन नै भरैत छल ते जोर स स्वरित बज्वैत छल ओ नाम सखी, ओहि कोठरी में टांगल नै वरन कोन कोन में प्रसृत भ गेल ,ओ विलय नै भेल मुदा, ओकर अनुगूँज घुरि घुरि ओहि परी के दुलरा जायत छल ...ओकर नाम क ध्वनि एतेक मीठ लागैक्जे बेर बेर अपन अधर पर ओकर नाम आनि एकटा स्पर्शजन्य सूखक अनुभूति ओकरा होयत छल जहिना अगरबत्ती स समस्त घर सुरभित भ जायत अछ ओहिना ओकर नाम स ओ कोठरी सुरभिमय भ गेल. ओहि नामक सहारे ओकर अशरीरी उपस्थितिक आह्वान क अपन घर के मंदिर बना लेलों
( राखी बेचैन भ जायत अछ )-की राजकुमार किछ नै बूझैत छल ओहि परीक एकान्तिक प्रेमक विषय में ?
प्रकृति--नै बहिन नै, ओ ते परीक एहि एकान्तिक प्रेम क कल्पनो नै क सकैत छल.ओ ते संबोधन के सम्बन्ध बुझि नेने छल.
राखी--एकटा बात पूछी सखी ? आत्मा स आत्मा के प्रकाश भेटैत छैक, फेर ओहि परीक निश्छल प्रेम ओकर ह्रदय के नै छुवलक?इ कोन विडम्बना थीक ?
प्रकृति- हँ, विडंबने त थीक जे ओकरा स्पर्श तक नै केलक .राजकुमार क कोठरी में जखन ओ गेल छल ते अपन किछ छाप छोड़ी गेल की नै ई ते परी नै बुझलक,मुदा ,ओकर कोठरी क छाप परीक अंतर पर छपि गेल छल., अस्तु, अपन ' निज' के ओहिठाम छोड़ी नै वरन ,कतेक कुछ ल क ओहिठाम स चलि आयल छल. सखी, अपन सबहक 'चाहना' कागजक नाह थीक,जे यात्री लक नै , इच्छा ,कामना स लदल ,आन आन लोक क कल्पना के स्पर्शानुभुती देवा लेल पहुंची जायत अछ.भनहि, ओकर प्रतिदान ओकरा भेटय या नहि . ओ प्रेम की जे प्रतिदन माँगे ?ओकर ख़ुशी लेल जीवन भरि कालिदास क मल्लिका बनल,व्यथा वेदना भोगैत रही गेलीह.( राखी अस्फुट स्वरे बाजि उठैत अछ -सांचे ओ बड निर्मम छल)
बेर बेर ओकरा निर्मम कहि ओकर अपमान नै करू सखी,ओ बड महान अछ ओकर भावना बड उदात्त अछ ओ महान विभूति क महाप्राण स अभिसिंचित छैथ,ओ एक दिन विश्व क सर्वश्रेष्ठ प्राण ,जन जन के हृदय गगन क प्रदीप्त आलोक राशि बनताह
( राखी दुखी स्वरे बजैत अछ ) -छोड़ू,जखन ओ अहांक प्रेम भरल हृदय के आलोकित नै क सकलाह तखन जन जन क , हुनक प्रेम में एतेक सामर्थ्य नै छल....हम इ सब बड़का बात नै बूझैत छी,हमर बुध्ही क्षुद्र अछ,मुदा एतवा अवस्य कहब ...
( बीचे में बात कटैत प्रकृति बजैत अछ )-चुप चुप बहिन, ओ हमरा स अगिला जनम लेल वचन देने छैथ,अगिला जनम में हम हुनक,प्रेरणा,सहचरी,प्रेमिका सब किछ बनब..(प्रकृतिक आंखि में कतेको स्वप्न सम्मोहन नर्तित भ उठैत अछ.).
( हा हा हा..राखी सखिक निश्छलता पर जोर से हँसैत बजैत अछ )..बड दीब,बड बेस,एहि जनम में हुनक प्रेमक माला जपु ,ओकर नामक संग मरू,जिबू आ अगिला जनम अहांक प्रेम के स्वीकार करत ,,,ओह प्रकृति, जे अदृश्य अछ अस्पर्श्य अछ ओहि पर एतेक भरोस ,सौंसे जिनगी अहांक आगू पडल अछ..
प्रकृति भावाविष्ट भ --अहाँ नै बुझब सखी, सिंगरहारक झहरैत सुन्नर मुकुल क कल्पना करू, आस्ते आस्ते लयात्मक गति स झरनाय,शाख स विलग हेवाक कल्पने ओकरा में वेदनाक गान भरि दैत छैक..अपन विनष्टियो में समष्टि सुख क अनुभूति ,इ समर्पण कतेक दुर्भेद्य अछ,कतेक अगम ,अथाह . बस ओकरा निहारैत रही ,एहि स हमरा मुक्ति भेट जायत .....
अहाँ बताही भ गेल छी,--बीचे में बात कटैत राखी बजैत अछ --भरि जिनगी की एहि वेदना में जीवन बिता देब अहाँ --
मुदा, प्रकृति अपन सोह में बजैत रहैत अछ--जनैत छी,काल्हि हम एकटा सपना देखलों..लाल लाल नुआ में हम अपना आप के दर्पण में देखैत छी हमर ठोर स रितेश निकली गेल ,ओहि ध्वनी स हमर सर्वांग रितेशमय भ उठल ,हम विक्षिप्त जका सिहरि उठलों ,धीर गंभीर पैर स चलि गेलों रितेश क घर ...रितेश हमरा अपन बाँहि में भरि पाँज पकड़ी प्रेमक अनमोल वरदान द दैत अछ..हम कतेक काल धरि बेसुध रहलों ..आह ..सखी ओ क्षण सपने रही गेल. हम आय धरि रितेश के चीन्ही नै सक्लों ,,हम अपन हृदय पुस्तक जका खोली ओकर समक्ष राखी दैत छी. मुदा, ओकर ह्रदय में कतेक तह भरल अछ,तह पर तह..हमर सपना सुनि ओ बजल छल......इ नादानी नीक नै..सरिपो, हम त नादाने रहलों ,एहि नादानिये में त अपन मोन के गवांय बैसलों ..हूँ,कहियो काल ई इच्छा जरुर करोट लैत अछ..काश ! एक बेर..हमर प्रेमक किछ ते निशानी हमरा भेटि जेतियैक.
प्रकृति अनवरत बजैत जायत अछ -----हमर जीवन पथ क परम पाथेय भेट गेल ..हमर प्रसून ,हमर बेटा..रितेश विवाह केलक रैना स . ,अतीव सुन्नरी ,नंदनवन क कलिका ,जेकर रूपराशि पर कतेको रति लजा जायत छल. ओकर सलज्ज मुस्की पर पजेब्क ध्वनी गूंज लगैत छल कनक सन देह पर पूनम नहवैत छल,अलस अंगेठी स ऋतू बदली जायत छल ...साँच बजैत छी सखी,रितेश्क एहि पसिन्न पर हमरा कनिको इर्षिया नहि भेल ओकर खुशिक संसार देखि हम दुरही स खुश रह लगलों,इ साँच अछ जे हम रितेश के आय धरी बुझि नै स्कलों , केकरो जानवा लेल बुद्धि ,ज्ञान सभक सहारे जनि सकैत छी. ,मुदा,कोनो चीज के बुझ्व्लेल,चिनवा लेल एकर सभक आवश्यकता नहि,,हम अहियो ठाम धोखा खा ग्र्लों ,जकरा चिन्ह्वाक दावा केलों ओ मात्र एकदिन पहिचानल मात्र रही गेल, मुठी स रेत जकां ससरी गेल , साँच कहि राखी,रितेश्क संग बिताओल समय लगैत अछ जेना कोनो ;मोर्निंग वाक़; में बितोल एकटा पल छल ,किछ स्थूल,किछ सूक्ष्म,किछ भाव किछ अनुभाव क आदानप्रदान भेल आ फेर ओ अपन बाट हम अपन बाट ......समय क अदृश्य पक्षी उडैत गेल.....,ओना त प्रत्येक ह्रदय में एकटा ' बुद्ध' रहैत अछ मुदा, दिशा नै भेटैत छैक तैं सब क्यों 'बुद्ध' नै भ सकैत अछ,
( चूँकि प्रकृति आब राजकुमार स अपना आ रितेश्क नाम परआबि गेल छलीह, तै राखी एको बेर बीच में नै टोकैत छलीह ,ओकरा होयत छल आय प्रकृति सब किछ निकाली दैक )......
जनैत छी सखी एक दिन रैना कोर में प्रसून के नेने,हकास्ल पिआसल भीत हिरनी जका भयभीत हमरा लग एलीह--दीदी दीदी,--हम चोंकि उठल छलों रैना..अहांक इ हाल..? रितेश ?रैना भरल बसंत में पतझार बनल छलीह--दीदी, हम एकटा सपना देखने छलों ,हमर मोन कांपी गेल ,रितेश के सुनाय देलों आ ओ घटित क देलक.ओ सपनाक स्यात एयाह महत्व छल, किछ घटित हेवाक असंभावित संभावना , जन जन क करुण स्वर ओकर कर्ण कुहर में गूंजी रहल छल.समस्त मानवताक व्यथा -कथा क उपकृति ओ बनि गेल..पैर पर खसि पडलों -हमर की होयत , बजलाह,यशोधरा कहियो बाधा नै बनली ,हूँ, एतवा अवस्य बजलाह --ओ जे सामने कुटिया देखैत छी हमर जीवन तटी ओ थीक.कहियो हम लहरि जका ओकरा लग जायत छलों,कहियो ओ अंतरीप जकां हमरा लग आबि जायत छलीह .जीवन भरि ओ सभक दुःख ओढने रहलीह ,ओकर दुःख केओ नै ओढ़ी सकल प्रेमक ओहि अखंड साधिका लग जाऊ .......
राखी, हमर समस्त साधना के जेना फल भेटि गेल. मुदा,तुरते मानसिक मूर्छा स आत्मविस्मृत हम सजग भ गेलों ---रैना क चिर कोमल निःशक्त काया ,आँखिक विह्वलता ,निस्तब्ध,निर्वाक आंखि में कतेको प्रश्नचिन्ह,,कोनो प्रताड़ित नेना जका चुप चुप ..करेजा में एकटा हुक उठल.आखिर रैना के कोना दुखक उपनगर में धकेली गेल ओ निर्मम
हम दुनू हाथ पसारि देलों.. ओहि मास भरिक राहुल के हमर हाथ में द अचेत खसि पडली रैना .ओकर जीवन प्रदीप ओहि दुर्ग-दीप सन अचक्के मिझाय गेल जे युग युग स स्वत आलोक पसारि रहल हो.... जैत जैत ओ एहि एकाकी शून्य जीवन के सुस्मित स्वप्नक उत्तरदायित्व सौंपी गेल ..आय धरि ओहि 'बुद्ध 'के अयवाक बाट जोहि रहल छी ,ओकर सम्पति के करेज स लगोने....
(प्रकृतिक नेत्र स झर झर अश्रु कण झहरी रहल छल , राखी क आंखि सावन भादो बनल छल , कोना समय अन्हार इजोत बनैत रहल . केओ नै बुझि सकल )(साभार विदेह)

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