अन्हार पर इजोतक कहिऒ विजय नहि (आलोचना)
शीर्षक पढैते देरी पाठक लोकनि एकर रचियता के निराशावादी घोषित कए देताह आ फतवा देताह जे समाज के एहन -एहन वकतव्य सँ दूर रहबाक चाही।मुदा हमरा बुझने पाठक लोकनि अगुता गेल छथि,आ हम कहबनि जे अगुताथि जुनि। मुदा इहो एकटा सुपरिचित तथ्य थिक जे लोक के जतेक उपदेश दिऔक ओ ओतबे तागति सँ ओकर उन्टा काज करत।मुदा तैओ हम कहबनि जे अगुताथि जुनि आ ता धरि नहि अगुताथि जा धरि शीर्षक पूर्ण वाक्य नहि भए जाए।आब अहाँ सभ टाँग अड़ाएब जे शीर्षक त अपना आप मे पूर्ण छैहे तखन अहाँ एकरा अपूर्ण कोना कहैत छिऐक ? मुदा नहि, कोनो वस्तु बाहर सँ पूर्ण होइतो भीतर सँ अपूर्ण होइत छैक। इहए गप्प एहि शीर्षकक संग छैक। अच्छा आब हम अपन विद्वताक दाबी छोड़ी आ आ अहाँ सभ के पूर्ण वाक्य के दर्शन कराबी - "अन्हार पर इजोतक कहिऒ विजय नहि, सरकार पर जनताक कोनो धाख नहि"।
मैथिली साहित्य मे बहुत रास बिडंबना छैक, प्रवंचना छैक, वंदना छैक अर्थात सभ किछु छैक मुदा तीन गोट वस्तु के छोड़ि--
१) मैथिली मे व्यंग प्रचुर मात्रा (गुण एवं परिमाण) मे नहि लिखाइत अछि,
२) जँ झोंक- झाँक मे लिखाइतो छैक त स्तरीय आलोचना नहि होइत छैक ,
३) आ जँ भगवान भरोसे स्तरीय आलोचना अबितो छैक त हरिमोहन झा के शिखर मानि सभ के भुट्टा बना देल जाइत छैक ।
एहि तीन टा के छोड़ि एकटा आर महान बिडंबना छैक जे आलोचक आलोचना करताह फल्लाँ बाबूक अथवा हुनक कृति के मुदा समुच्चा मैथिली अलोचना मे हरिमोहन बाबू तेना ने घोसिआएल रहता जे पाठक एहन आलोचना के हरिमोहने बाबूक आलोचना बूझैत छथि।
आलोचनाक स्तर पर मैथिली व्यंग मे रुपकांत ठाकुर एकटा बिसरल नाम थिक। एकर पुष्टि 2003 मे साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित पोथी "ली कथाक विकास" मे प्रो. विद्यापति झा द्वारा लिखित लेख "मैथिली कथा साहित्य मे हास्य-व्यंग" पढ़ि होइत अछि। प्रो.झा पृष्ठ 168 पर 1963 सँ 1967क मध्य प्रकाशित हास्य-व्यंगक व्यौरा दैत रुपकांत ठाकुरक मात्र 6 गोट कथाक चर्च कएलथि अछि ( किछु आलोचक मात्र इएह लीखि कात भए गेलाह जे रुपकांत ठाकुर सेहो नीक व्यंग लिखैत छथि ) ।एहि के अतिरिक्त ने 1963 सँ पहिनेक मे हुनक व्यौरा मे हुनक नाम छन्हि ने 1967क पछाति। अर्थात रुपकांत ठाकुर मात्र 6 गोट हास्य-व्यंगक रचना कए सकलाह। जखन की वास्तविकता अछि जे रुपकांत ठाकुर 1930 मे जन्म-ग्रहण कए 1960क लगीच रचनारत भेलाह एवं 1972 मे मृत्यु के प्राप्त भेलाह। कुल मिला कए ठाकुरजी मात्र बारह बर्ख मे अनेक असंकलित कथा एवं लेख के छोड़ि हुनक पाँच गोट पोथी प्रकाशित छन्हि--1) मोमक नाक (कथा संग्रह)
2) धूकल केरा (कथा संग्रह)
3) लगाम (नाटक)
4) वचन वैष्णव (नाटक)
5) नहला पर दहला (उपन्यास)। मात्र बारह बर्ख मे एतेक रचना आ उल्लेख मात्र 6 गोट कथाक।
आब अहाँ सभ के थोड़ेक-थोड़ शीर्षकक अर्थ लागए लागल हएत। मुदा अहाँ सभ घबराउ जुनि । इ शीर्षक ठाकुरेजीक रचना सँ लेल गेल अछि। मतलब जे लेखक भविष्यक संकेत कए गेल छथि।
आब किछु गप्प करी मैथली व्यंग मे राजनीतिक व्यंग पर। कोन चिड़ियाक नाम छैक राजनीतिक व्यंगइ हमरा जनैत मैथिली व्यंगकार नहि जनैत छथि। ओना व्यंग केकरा कहल जाइत छैक सेहो बूझब कठिन। हमरा जनैत मैथिली मे 93% व्यंग लिखल जाइत छैक मुदा 93% आलोचक ओकरा हास्य मानि आलोचना करैत छथि। सभ व्यंगकार ओहीक मारल छथि, चाहे शिखर-पुरुष हरिमोहन बाबू होथि वा रुपकांत ठाकुर। सुच्चा व्यंग लिखला पछातिओ हरिमोहन बाबू कहेलाह हास्य-व्यंग सम्राट। अर्थात हास्यकार पहिने आ व्यंगकार बाद मे। बाद बाँकी 7% हास्य लिखाइत अछि जकर प्रतिनिधि छथि पं. चन्द्रनाथ मिश्र "अमर" ।
हँ त फेर आबी हम राजनीतिक व्यंग पर। हमरा जनैत जाहि व्यंग मे अपन समकालीन अथवा पूर्वकालिक राजनीति, शासन-व्यवस्था, ओकर संचालक आदि पर निशाना साधल गेल हो ओकरा राजनीतिक व्यंग कहाल जाइए। ओना इ अकादमिक परिभाषा नहि अछि।
त फेर हम अहाँ सभ के रुपकांत ठाकुर लग लए चली, आ हुनक एक गोट पोथीक परिचय करा हुनक राजनीतिक चेतना के देखाबी। जाहि पोथी सँ हम अहाँ के परिचय कराएब ओकर नाम छैक "मोमक नाक"। एहि व्यंग-संग्रह मे नौ गोट कथा थिक। परिचय शुरु करेबा सँ पहिनहि कहि दी जे इ कोनो जरुरी नहि छैक जे हम अहाँ के नओ कथा कहब आ ने जरूरी छैक जे संग्रहक पहिल कथा सँ हम शुरू करी। इ निर्णय हमर व्यत्तिगत अछि आ अहाँ एहि सँ सहमत भइओ सकैत छी आ नहिओ भए सकैत छी। हँ त हम शुरू करी संग्रहक अंतिम कथा "मर्द माने की" सँ। जेना की शीर्षके सँ बुझाइत छैक लेखक अवस्स एहि मे मर्दक परिभाषा देने हेथिन्ह। से सत्ते, लेखक जखन शुरुए मे कहैत छथिन्ह जे " लोटा ल' क' घरवालीक लहटगर देह पर गदागद ढोल बजौनिहार एहन सुपुरुष कत' भेटत?"। त सभ अर्थ स्पष्ट भए जाइत छैक। मुदा लेखक एतबे सँ संतुष्ट नहि भए आगू कहैत छथि " मर्द माने कमौआ, आ कमौआ माने वियाहल,आ वियाहल माने बुड़िबक आ बुड़िबक माने बड़द"। सुच्चा मैथिल अभिव्यत्ति। एखनो अर्थात 2009 धरि मैथिल समाजक इ धारणा छैक जे कमौए मर्द होइत अछि, आ जहाँ कहीं कोनो मर्द देखाइ पड़ल लोक ओकर विआह करबाइए कए छोरैए। आ जहाँ धरि गप्प रहल बियाहल माने बुड़िबक से त हम नहि कहब मुदा बुड़िबक माने बड़द अवश्य होइत छैक। खाली खटनाइ सँ मतलब। अधिकारक प्रति निरपेक्ष। आब हम एहि सँ बेसी नहि कहब एहि कथाक प्रसंग। बस एतबे सँ लेखकक चेतनाक अनुमान कए लिअ।
"ठोकल ठक्क" मे लेखक ओहन भातिज आ जमाएक दर्शन कराबैत छथि जनिकर काजे छन्हि कमीशन खाएब आ एहि लेल ओ अपन पित्ती एवं ससुरो के नहि छोड़ैत छथिन्ह। आ जँ एही कथाक माध्यमे अहाँ तात्कालीन रजनीतिक देखए चाहब त रुपकांत एना देखेताह-"सरकार पर जनताक कोनो धाख नहि"। अर्थात बेशर्म, निर्लज्ज, हेहर,थेथर सरकार।
भारतक समकालीन विकास जँ अहाँ देखबाक इच्छा होइत हो त रुपकांत ओहो देखेताह। कनेक पढ़ू "जय गंगा जी" जतए रेलगाड़ी के बढैत देखि लेखक टिप्पणी करैत छथि-"कांग्रेसी नेता जकाँ लोक के अपन पेट मे राखि क' ओकर सुख-दुख अथवा उन्नति-अवनति के बिसरि गाड़ी मात्र आगू बढब जनैत छल। अपना बले नहि कोइला आ पानिक बलें। परन्तु पवदान पर चढ़ल यात्री कतऽ छलाह?" ई सवाल जतेक भयावह लेखकक समय मे छल ततबे भयावह एखनो अछि। लेखक सरकारक डपोरशंखी योजनाक लतखुर्दन एही कथा मे करैत छथि-" कोन टीसन केखन बितलैक से मोन राखब पंचवर्षीय योजना सभ मे उन्नतिक कागजी आकड़ा मोन राखब थिक"।
बेसी प्रशंसात्मक उद्धरण देब हमरा अभीष्ट नहि मुदा तैओ एकटा उद्धरण देबा सँ हम अपना के रोकि नहि पाबि रहल छी। एही संग्रहक दोसर कथा थिक "फूजल ऊक"।बेसी अपन वक्तव्य नहि कहि उद्धरण सुनाबी-"मात्र सुधारवादी दृष्टि रखला मात्र सँ सुधार कथमपि नहि भए सकैछ"। जँ लेखकक भावना के बचबैत हम लिखी जे "प्रगतिशील विचार लिखला मात्र सँ प्रगतिशीलता कथमपि नहि आबि सकैछ" त इ स्पष्ट भए जाएत जे रुपकांत कतए व्यंग कए रहल छथिन्ह आ केकरा पर कए रहल छथिन्ह।
ठाकुर जी एकपक्षीय व्यंगकार नहि छथि। ओ दूनू पक्ष के हूट सँ मानसिक आ बूट सँ शारिरिक प्रताड़ाना दैत छथिन्ह। तकर प्रमाण ओ एहि संग्रहक पहिल कथा जे पोथीक नामो छैक अर्थात " मोमक नाक" मे देखेलैन्ह अछि। हुनकहिं शब्द मे " आजुक युग मे भला आदमीक परिभाषा उनटि गेल छैक। जनता जनता अछि जे से सभ मोमक नाक जकाँ लुजबुज। जखन जाहि दिस नफगर रहै छैक तिम्हरे लोक घूमि जाइछ" स्वतंत्रे भारत नहि हमरा विचारे जम्बूदीपक जनता सँ लए कए एखुनका भारतीय जनताक चारित्रिक विशेषता ई उद्धरण देखबैत अछि। आ एतेक देखेलाक पछातिओ आलोचक रुपकांतक नाम बिसरि गेल छथि।
भने आलोचक नाम बिसरि गेलखिन्ह मुदा पाठकक मोन मे एखनो धरि रुपकांत ठाकुरक रचना खचित छैन्ह। हमरा जनैत कोनो लेखकक प्रथम आ अंतिम सफलता इएह छैक। आ रुपकांत इ सफलता अपन रचनाक माध्यमें प्राप्त केलन्हि ताहि मे संदेह नहि।
विदेह ई पत्रिकामे http://www.videha.co.in/ पर पूर्वप्रकाशित।
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