दुर दृष्टिसंपन्न गमैया संसाधनसँ दूर होइत गामक लोकक मन:स्थितिकेँ गहींरताक संग सोझाँ अननिहार श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी हुनक समस्त साहित्यिक क्रिया-कलापक मादे मुन्नाजी द्वारा कएल गेल गप्प-सप्पकेँ अहाँक सोझाँ प्रस्तुत कएल जा रहल अछि-
मुन्नाजी- जगदीश बावू शिक्षाक पूर्ण डिग्रीधारी भऽ अहाँकेँ एतेक देरीसँ मैथिली लेखनक प्रवृतिक की कारण?
जगदीश प्रसाद मंडल- अपनेक प्रश्नक उत्तर दैइसँ पहिने मुन्नाजी किछु अपन बात कहि दैत छी। केजरीवाल हायर सेकेण्ड्री स्कूल झंझारपुरमे स्पेशल नाइन्थसँ लऽ कऽ स्पेशल एलेबुन धरि एक सय नम्वरक एक विषय मैथिली पढ़ने छी। मुदा कओलेजमे नहि पढ़लौं। हिन्दी पढ़लौं। साहित्यसँ सिनेह सभ दिन रहल। लिखै दिस दू हजार ईस्वीक बादे बढ़लौं। ऐठाम िसर्फ एतबे कहब जे जमीनी संघर्षक उपरान्त वैचारिक संघर्ष जोर पकड़ैत अछि तँए लिखब अनिवार्य भऽ गेल। जहिसँ जीवनमे आरो मजबूती अएल। सभकेँ माने हर मनुष्यकेँ अपने लगसँ जिनगी शुरू करक चाहिएनि। कर्मक क्षेत्र अपन गाम रहल जहिठामक भाषा मैथिली छी तँए हिन्दीक विद्यार्थी रहितहुँ मैथिलीमे लिखै छी। देरीसँ लिखैक कारण इहो भेल जे १९६७ई.मे जखन बी.ए.क विद्यार्थी रही, वामपंथी राजनीतिमे जुड़लौं। काजसँ जते समए बँचए ओ सेवामे लगबए लगलौं। बी.ए. धरि जनता कओलेज झंझारपुरमे आ आगू सी.एम. कओलेज दरभंगामे पढ़लौं। ओना लिखैक आरो कारण अछि जे उम्रक संग शरीरक शक्तियो कमए लगल।
मुन्नाजी- एतेक डिग्रीक (एम.ए.क) पछाति तँ अहाँ समएमे नोकरी भेटव बेशी असोकर्ज नै छलै। नोकरी नै कऽ खेती-बारीक िनर्णय अहाँक कोन मानसिकताक द्योतक ऐछ?
ज.प्र.मं.- आजुक दृष्टिये जरूर बुझि पड़ैत हएत जे ओहि समए नोकरी सस्ता छलैक मुदा से बात नहि। एहि परिपेक्ष्यमे किछु कहि िदअए चाहै छी। झारखंड लगा बिहार राज्य छल। अखन जते जिला, सवडिवीजन आ ब्लौक आइ खंडित बिहारमे देखै छिऐ ओते पूर्ण (सौंसे) बिहारमे नहि छल। संग-संग जते काजक विविधता अखन धछि, सेहो नहि छल। अखन छत्तीस-सैंतीसटा जिला खंडित बिहारमे अछि जखन कि ओहि समए िसर्फ सत्तरहटा जिला छल। जहि मधुबनीमे पाँचटा सवडिवीजन अछि ओ अपने सवडिवीजन छल। तहिना शिक्षो विभागमे छल। गनल-गूथल कओलेज आ हाइ-स्कूल रहए। आइक मधुबनी (प्रोपर)मे चारिटा कओलेज- झंझारपुर, सरसो, पंडौल आ बाबूबरहीमे खुजल। बाबूवरहीक कओलेज (जे.एन.) मधुबनी चलि गेल। ओहिसँ पूर्व आर.के. काओलेज आ भरिसक एकटा आरो छल। बाकी सभ बादक छी। जखन जनता कओलेज झंझारपुर खुजल, ओहि समए अधासँ अधिक शिक्षक (प्रोफेसर) आने-आन जिलाक छलाह। तँए कि एहि क्षेत्रमे पढ़ल-लिखल लोक नहि छलाह से बात नहि।
बैंकक शाखा जते आइ देखै छिऐ ओते नहि छल। भरिसक मधुबनीमे एकटा रहए बाकी नहिये जकाँ छल। तहिना ब्लौकोक छल। एक तँ संख्या कम दोसर एकटा बी.डी.ओ. रहैत छलाह। जखन कि बी.डी.ओ; सी.ओ. आ पी.ओ. तीनिटा अखन छथि।
कल-कारखाना नाओपर एकटा चीनी मिल (लोहट) ओ गोटि पङरा चाउरक मिल छल। ओना आरो बहुत बात अछि मुदा मोटा-मोटी कहलौं। आब अहीं कहु जे नोकरी कत्त छल। ओहि अनुपातमे अखन बेसी अछि।
खेती करैक कारण-
जखन हम तीनिये बर्खक रही पिता मरि गेलाह। हमरासँ तीन बर्ख पैघ भाय छलाह। ओना परिवारमे दूटा पिसिऔत भाय रहैत छलाह। हुनका रहैक कारण छल हुनकर घर फुलपरास विधानसभा क्षेत्रक घोघरडिहा ब्लौकक अमही पंचायतक हरिनाही गाम छनि। जखन कोसी पश्चिम मुँहे जोर केलक तँ गाम उपटि गेल। सभ कियो बेरमा चलि एलाह। जे घटना १९३५-४०क बीचक छी। फेर जखन कोसी पूव मुँहे ससरल तखन १९६०ई.मे पुन: ओ दुनू भाँइ चलि गेलाह। हुनका सबहक गेने गिरहस्तीक संग-संग पढ़वो करी। तहियेसँ खेतीसँ जुड़ाव भऽ गेल। जे जीविकाक साधन रहल।
मुन्नाजी- प्रारम्भमे अहाँ अपनाकेँ साम्यवादी कहि सामंतवादक विरूद्ध हो-हल्ला मारि-झगड़ामे सक्रिय रहलौं बादमे अइसँ विमोह किएक? एे सँ की फायदा वा नोकसान उठएल?
ज.प्र.मं. - जहिना छलौं तहिना छी। मुदा परिस्थितिकेँ ऑकि देखए पड़त। सामंतवादमे मनुष्यक बुनाबटि जाहि रूपक रहै छै ओ सामंतवादपर चोट पड़लासँ बदलैत छैक। खिस्सा-पिहानी आ नाटकक स्टेज सामाजिक विकास आ सामाजिक जीवन नहि होइत छैक। नाटकक स्टेज होइत छैक- तीन घंटामे रामक जन्म, जनकपुरक धनुषयज्ञ, बनमे सीताक हरण आ रावणक मृत्युक उपरान्त विसर्जन। तहिना खिस्सा पिहानीमे सेहो होइत छैक। मुदा समाजक मंच बहुत जटिल होइत छैक। जहिक लेल समयो लगै छै आ संघर्षो होइत छैक। तहूँसँ जवर्दस्त वैचारिक संघर्ष सेहो होइत छैक। संक्षेपमे- आर्थिक विकासक क्रममे खेतीक लेल जखन नवका माने उन्नति किस्मक बीआ आएल तँ सामंती सोचक लोक विरोध केलनि। हुनकर आरोप छलनि (१) वस्तुमे सुआद नहि होइत छैक, (२) पावनि-तिहारक दृष्टिये अशुद्ध होइत अछि, (३) स्वास्थ्यक दृष्टिसँ खाद देल अहितकर होइत अछि जहिसँ बीमारी बढ़त। तहिना दरभंगा अस्पताल खुललापर सेहो विरोध भेल। गाम-घरमे एलोपैथक विरोध भेल। आरोप छलैक- गाइयक खूनक इन्जेक्शन आ सुगरक मांसक बनल दवाइ। साधारण इनारक जगह पानिक कल भेने सेहो विरोध भेल। आरोप लगैत छल जे कलक वासर चमड़ाक होइ छै, तहिसँ पूजा कोना हएत आ अशुद्ध पानि लोक पीति कोना? कते कहब। एहि परिस्थितिकेँ संक्रमण काल कहल जाइ छै। सामंतवाद टुटलाक बाद पूँजीवादी आ समाजवादी दिशा अबैत छैक।
हमरा गामक नब्बे प्रतिशत जमीन बहरवैयाक छलनि। ओना तीनिटा जमीनदार छलाह वाकी दूटा मास छलाह। जनवादी लड़ाइ शुरू होइते दूटा मालिक (जमीनदार) अपन जमीन बेच लेलनि। एक गोटेक संग जवर्दस्त लड़ाइ भेल। जमीन्दारक संग सूदखाेर महाजन सेहो छलाह। हुनको संग लड़ाइ भेल। अखन ने कियो बाहर जमीन्दार छथि आ ने महाजन। गाममे किनको अधिक जमीन नहि भेलनि। ऊपर दस बीघा आ वाकी निच्चाँ छथि। एहि दौरमे करीब तीस बर्ख लड़ाइ गाममे चलल। सत्तरि-एकहत्तरिक उठल तूफान शान्त होइत-होइत ५.५.२००५ई.केँ अंतिम मुकदमाक अन्त भेल।
विकासोक प्रक्रिया छैक। आइक भारी मशीन (कमप्यूटर) देखि नव पीढ़ीक लोककेँ सहजहि विश्वास नहि हेतनि। मुदा हाथक काज हाथसँ चलैबला औजारक संग लघु मशीनमे बदलल। लघुमशीन परिमार्जित होइत भारी आ तेज मशीन बनि ठाढ़ अछि।
मुन्नाजी- कहल जाइछ जे अहाँक साम्यवादीक विद्रोह छवि तखन दवि गेल जखन की अहाँ सामंती द्वारा देल प्रलोभनकेँ स्वीकारि लेलौं की सत्य अछि?
ज.प्र.मं. - चारिम प्रश्नक उत्तर भेट गेल हएत मुन्नाजी। जँ से नहि तँ अनठेकानी गोला फेकब हएत।
मुन्नाजी- उग्रवादीसँ रचनावादी प्रवृति कोना जागल कोनो एहेन विशेष घटना जे अहाँक रचनात्मक सोचकेँ प्रेरित केने हुअए?
ज.प्र.मं. - पाँचम प्रश्नक उत्तर सेहो आबि गेल अछि। दुनियाँक नक्शामे जकरा शीतयुद्ध (cold war) कहल गेल अछि वएह वैचारिक संघर्ष छी। जकरा लेल साहित्य प्रमुख अस्त्र छी।
मुन्नाजी- मैथिली रचनाकारक प्रवृति अछि जे एक-दु रचना कऽ अपनाकेँ मैथिलीधारामे जोड़वामे जुटि जाइछ मुदा अहाँ एकर उलट चिन्तनशील आ रचनाशील रहि नुकएल सन रहलाैं?
ज.प्र.मं.- छठम प्रश्नक संबंधमे स्पष्ट समझ अछि जे जहिना उत्तरबरिया पहाड़सँ निकलल छोट-छीन धारा सभ दछिन मुँहे टघरैत नदी-नालामे मिलैत आगू बढ़ैत गंगामे पहुँच समुद्रमे समाहित भऽ जाइत अछि तहिना जँ साहित्यक (रचनाक) दशा-दिशा नीक रहत तँ साहित्यक धारा बनवे करत। ई विसवास अछि। जना आन-आन गोटे शुरूहेँसँ रचना दिस बढ़लाह से नहि भेल। कारण ऊपर आबि गेल अछि।
मुन्नाजी- वियोगीजी अहाँ कितावक आमुखमे अहाँकेँ २०गोट कथा, ५गोट उपन्यासक पाण्डुलिपि लऽ भेँट करवाक क्रममे अहाँक दृष्टि फरीछ दू साल बाद पुन: भेँटमे हेबाक बात कहलनिहेँ ऐपर अहाँक की विचार?
ज.प्र.मं.- मैथिली साहित्य जगतक वियोगीजी पहिल साहित्यकार छथि जिनकासँ पहिल भेँट छी। ओना एक-दू बेर फोनपर गप भेला बाद उमेश मंडल पटना गेल रहथि तँ भेँट केलकनि। किछु रचना सभ लऽ कऽ सेहो गेल रहथि। दू-चारि पन्ना पढ़ि कऽ सुनेवो केलकनि। मुदा डेढ़-दू घंटाक बात चीतमे जाने-पहचानक बात बेसी भेलनि।
हुनकासँ हमर पहिल भेँट मधुबनीमे छी जखन ओ मधुबनी अएलाह। ओही क्रममे रहुआ कथा-गोष्ठीक जानकारियो देलनि आ चलैइयोले कहलनि। हुनक सम्पादनमे देशज पत्रिका २००३ई.मे िनर्मलीक कितावक दोकानमे भेटल। जाहिमे यात्रीजी आ किरणजीक संग गप-सप्प सेहो निकलल। विचारक दृष्टिसँ यात्रीजी सँ विद्यार्थीये जीवनसँ प्रभािवत छलौं। पत्रिका पावि आरो प्रभावित भेलौं आ वियोगी जीक संग आकर्षण सेहो बढ़ल। तहिना किरण जीक जिनगीसँ सेहो बहुत प्रभावित कओलेजे जीवनसँ छलहुँ। लगसँ हुनका देखने रहिएनि। जखन हम सी.एम. काओलेजमे पढ़ैत रही तखन ओ प्रोफेसर छलाह। गप-सप्पक क्रममे ओ बजलाह जे जहिना बजै छी तहिना िलखब मैथिली छी। हुनकर ई विचार तहिये नहि अखनो रग-रगमे समाएल अछि।
मुन्नाजी- उपरोक्त आमुखमे ओ कहने छथि जे अहाँ हुनकर (वियोगीजीक) एहेन अंधभक्त छी जे हुनकर किताबकेँ ताकि-ताकि कऽ पढ़ैत रही एकटा किताबकेँ तकबाक क्रममे पटना धरि गेलौं मैथिली साहित्यक पाठक शुन्यता (कीनि कऽ पढ़ैबला)मे जँ ई सत्य छै तँ एकर की कारण?
ज.प्र.मं.- अहू प्रश्नक उत्तर आबि गेल अछि। ई बात हुनकामे जरूर छन्हि जे उपकरि-उपकरि कतेक किताब देलनि। भक्त आ भगवान साम्प्रदायिक भाषा छी। कियो अपन कर्मसँ बढ़ैत-घटैत अछि मुदा आगूसँ अधला सोचब आ करबकेँ अधला बुझै छी।
मुन्नाजी- किछुए समयान्तरलमे विविध विधापर अहाँक ८गोट पोथीक प्रकाशनसँ केहेन अनुभूति भऽ रहल ऐछ अगिला लक्ष्य की ऐछ?
ज.प्र.मं.- पोथी प्रकाशित भेलापर जहिना आन गोटेकेँ अनुभूति होइत छन्हि तहिना भेल। लक्ष्यक जहाँ धरि प्रश्न अछि तँ प्रसादजीक पाँति मन पड़ैत अछि-
“जीवन का उद्देश्य नहि है शान्त भवनमे टिक जाना
और पहुँचना उन राहो पर जिनके आगे राह नहि।”
मुन्नाजी- एतेक पोथी प्रकाशनक पछातियो अहाँक ठोस मूल्यांकन वा पुरस्कारक हेतु चयन नै भेलासँ अप्पन परिश्रम निरर्थक सन तँ नै लगैए।
ज.प्र.मं.- कोनो रचनाक मूल्यांकन समए करैत अछि। समयानुकूल रचना छी वा नहि ई समए आँकि कएल जा सकैत अछि। रहल पुरस्कारक बात? प्रेमचन्द सन उपन्यास सम्राट आ कलमक जादूगरकेँ कोन पुरस्कार भेटलनि। मुदा ओ अपना श्रमकेँ निरर्थक कहाँ बुझलनि। अंतिम साँस धरि सेवा करैत रहलाह।
अपन पचहत्तरिम जन्म दिनक अवसरपर नामबर भाय (डॉ. नामबर सिंह) बाजल छलाह- “जते काज अखन धरि केलहुँ ओते पाँच बर्खमे करब।” हुनकर कते सेवा छन्हि सर्वविदित अछि। जखन पचहत्तरि बर्खक बूढ़क एहेन वक्तव्य छनि तखन तँ हम अपनाकेँ जवान वुझै छी।
मुन्नाजी- मैथिलीमे प्रारम्भेसँ बनल जाति-पॉतिक फाॅटकेँ अहाँ कोन दृष्टिए देखै छी। आ स्वयं अहाँ ओइ बीच अपनाकेँ कतऽ पबै छी।
ज.प्र.मं.- शुरूहेसँ वर्ण नहि वर्गमे विश्वास अछि। जहि आधारपर काज करैत एलौं आ करितो छी। समाजमे जे जाति-धर्मक (सम्प्रदायक) खेल चलैत अछि ओ राजनीति केनिहारक चालि छी।
मुन्नाजी- पिछड़ावर्गसँ आगाँ (रचनात्मक रूपेँ) अबैत लोकक अहाँ उपर उठेवा लेल कोनो सहयोगी बनव पसिन्न करब? हुनका सबहक लेल कोनो संदेश?
ज.प्र.मं.- जाहिठाम व्यवस्था बदलैक प्रश्न अछि ओ ने एक दिनमे हएत आ ने एक गोटे बुते हएत। सबहक कल्याण हएत आ सभकेँ करए पड़त। तँए सभकेँ कहैत छिअनि जे जागू, उठि कऽ ठाढ़ होउ। आगू बढ़ू। मिथिला सबहक मातृभूमि आ मैथिली सबहक भाषा छी तँए अपन बुझि सेवामे लागि जाउ।(साभार विदेह)
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