अमरक एकांकी-प्रहसनक सामाजिक यथार्थ
नाटकक प्रकृत्या सामाजिक कला थिक। एकर आयोजनसँ ल’ कए अवलोकन धरि समस्त क्रिया समाजे द्वारा सम्पादित होइत अछि। अन्तत: एकर प्रदर्शन समाज द्वारा सामाजिक लेल कयल जाइत अछि। अतएव एकर सर्वस्वर समाज द्वारा सामाजिकतासँ सम्पुष्ट अछि। एकर संरचनाक मूल प्रेरणाक स्थल सामाजिक थिक। लेखक समाजगत प्रेरणासँ अनुप्राणित भ’ कए नाट्य रचना दिस प्रवृत्त होइत छथि। समाजिक जीवनमे घटित भेेनिहार विभिन्न क्रिया कलाप, वेष-भूषा, भाषा आदिक आधारपर नाटकककार अपन नाट्य क्रिया कृतिमे कथानक, पात्र, रस, संवाद आदि विभिन्न नाटकीय तत्वक समावेश करैत छथि। नाट्यकर्त्ताक मानस पटलपर समाजक जे स्वरूप अंकित होइत छनि ओकरा ओ पुन: सामाजिकक समक्ष प्रदर्शित करैत छथि। कोनो देशक समामाजिक विकास तथा नाट्य-साहित्येतिहासिक तुलनात्मक विश्लेषणसँ स्पष्ट भ’ जाइछ नाटकक संरचनामे सामाजिकक प्रेरणा सर्वदा प्रमुख स्वरूप रहल अछि। मैथिली नाट्य परम्पराक अवलोकनसँ सामाजिक प्रेरणाक स्वरूप पूर्ण रूपेण स्पष्ट भ’ जाइछ। एहिमे समाजक यर्थाथ स्थितिक चित्रण नाटकककार अत्यन्त सूक्ष्मतासँ क’ कए वास्तविकताक परिचय देलनि अछि।
नाटकक प्रकृत्या सामाजिक कला थिक। एकर आयोजनसँ ल’ कए अवलोकन धरि समस्त क्रिया समाजे द्वारा सम्पादित होइत अछि। अन्तत: एकर प्रदर्शन समाज द्वारा सामाजिक लेल कयल जाइत अछि। अतएव एकर सर्वस्वर समाज द्वारा सामाजिकतासँ सम्पुष्ट अछि। एकर संरचनाक मूल प्रेरणाक स्थल सामाजिक थिक। लेखक समाजगत प्रेरणासँ अनुप्राणित भ’ कए नाट्य रचना दिस प्रवृत्त होइत छथि। समाजिक जीवनमे घटित भेेनिहार विभिन्न क्रिया कलाप, वेष-भूषा, भाषा आदिक आधारपर नाटकककार अपन नाट्य क्रिया कृतिमे कथानक, पात्र, रस, संवाद आदि विभिन्न नाटकीय तत्वक समावेश करैत छथि। नाट्यकर्त्ताक मानस पटलपर समाजक जे स्वरूप अंकित होइत छनि ओकरा ओ पुन: सामाजिकक समक्ष प्रदर्शित करैत छथि। कोनो देशक समामाजिक विकास तथा नाट्य-साहित्येतिहासिक तुलनात्मक विश्लेषणसँ स्पष्ट भ’ जाइछ नाटकक संरचनामे सामाजिकक प्रेरणा सर्वदा प्रमुख स्वरूप रहल अछि। मैथिली नाट्य परम्पराक अवलोकनसँ सामाजिक प्रेरणाक स्वरूप पूर्ण रूपेण स्पष्ट भ’ जाइछ। एहिमे समाजक यर्थाथ स्थितिक चित्रण नाटकककार अत्यन्त सूक्ष्मतासँ क’ कए वास्तविकताक परिचय देलनि अछि।
प्रत्येक महत्वपूर्ण नाटकककार एवं एकांकीकार ओ अपन कृतिक माध्यमे जीवनक कोनो-ने-कोनो मूल्यकेँ अपन अन्तदृष्टिकेँ अपन सामाजिक, दार्शनिक, नैतिक, माननीय उपलब्धिकेँ अभिव्यक्ति करैत छथि। प्रत्येक साहित्यकारक सामाजिक दायित्व होइत छनि, किन्तु दृश्य साहित्य लिखबाक कारणेँ नाटकककार अन्यक अपेक्षा अधिक उत्तरदायी होइत छथि। नाट्यकर्ता अपन सार्थकता तखने सिद्ध क’ सकैत छथि जखन ओ सामाजिक चेतनाकेँ कर्त्ता अपन संस्पर्श करैत छथि। इएह कारण अछि जे नाटकक वा एकांकी वा प्रहसन सामयिक होइत अछि। जीवनक जटिलता ओ गूढ़ रहस्यकेँ खोलि क’ देखबाक कारणेँ आधुनिक सन्दर्भमे जाहि द्रुत गतिएँ एकरा माध्यम जतेक सुगमतासँ भ’ सकैछ ततेक साहित्यक अन्य कोनो विघासँ नहि। जन समाजमे सामयिक स्थितिक ओ समाज प्रति चेतना उत्पन्न करब नाटकककारक प्रमुख दायित्व होइत छनि। राष्ट्र ओ समाजमे व्याप्त निर्जीवता एवं यांत्रिकतासँ पृथक् रिह क’ उद्बुद्ध करब नाटकककारक घर्म हाेइत छनि। एहन पैघ उत्तरदायित्वक सफल निर्वार्थ परमावश्यक अछि जे ओ वर्ग विशेष वा सिद्धान्त विशेष वा दल विशेष धरि अपनाकेँ सीमित नहि राखि, समाजक समग्रताकेँ प्रत्येक दृष्टिएँ सामाजिकक सम्मुख प्रस्तुत करथि। एहि लेल नाटकककारकेँ अपन कृतिमे परिस्थितिक व्याघातक विरूद्ध संघर्षरत होमय पड़ैत छनि। क्षणिक ख्यातिक हेतु ओछपनमे नहि पड़ि़ नाटकककार सामाजिक शक्तिक गम्भीर अध्ययनक हेतु केन्द्रित होइत छथि। सामाजिक विवर्त्तनक फलस्वरूप नाटकककारक दायित्व अधिक भ’ गेलनि अछि। ओ सब ओकर विरोध करैत छथि।
आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारक फलस्वरूप समाजिक परिवेशमे तीव्र गतिएँ परिवर्त्तन भ’ रहल अछि। परम्परागत घारणादि, प्रथादि, व्यवस्थादि, आदर्शादिसँ लोकक धारणा शनै:-शनै समाप्त होमय लागल अछि। अतीतक व्यवस्था आदि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे जीवनयापनक लेल पर्याप्त नहि, रहि गेल अछि। समाजमे एक विचित्र स्थिति उत्पन्न भ’ गेलैक अछि। एहन अवस्थामे समाजसँ बनब तथा समाजकेँ बनायब नाट्य प्रक्रियाक आधार भूत हेतु बनि गेल अछि। तेँ नाटकककारकेँ सामाजिकक रुचिसँ प्रभावित हैबाक होइत छनि। संगहि हुनका समाजकेँ सुरुचि सम्पन्न बनयबाक प्रयत्न करय पड़ैत छनि। नाटककमे नाटकककारक मानसिकताक विम्ब रहैत अछि ई प्रतिविम्ब आत्मनिष्ठ एवं स्वयं पूर्ण होइछ। नाटकककारक मानसिकता हुनक गृहीत संस्कार तथा समाजमे घटित घटनादिक परिणाम होइत अछि।
यद्यपि मैथिली साहित्यमे समस्त पूर्वांचालक भाषाक अपेक्षा नाट्य-साहित्य समृद्धशाली परम्पराक दिग्दर्शन एकर प्रारम्भिकावस्थहिसँ दृष्टिगत होइत अछि तथापि एकांकी साहित्यपर दृष्टिपात करैत छी तँ एकर उदय ओ विकास बीसम शताब्दीक चतुर्थ दशाब्दसँ प्रारम्भ होइत अछि। वर्त्तमान युगमे जीवनक व्यस्तता, अशांति, कार्याधिक्यक कारणेँ अवकाशाभाव तथा जीवनक बढ़ैत द्वन्द्व एकर विकासक मूलमे अछि। शिक्षा प्रचारिक फलस्वरूप विद्यालय, महाविद्यालय ओ विश्वविद्यालयमे अभिनयोपयोगी एकांकीक निरन्तर माँग तथा रेडियो-टेलीभिजनक प्रचार-प्रसारक फलस्वरूप एकांकीक लोकप्रियता बढ़ैत गेल अछि। द्वितीय विश्व युद्धक अवसरपर गद्य-साहित्यक प्रचारात्मक साधनक आवश्यकता भेलैक। फलत; एकांकीक अनेक रूपक विकास भेलैक जाहिमे रेडियो प्ले फीचर फेंटेसी आदि प्रमुख अछि। किन्तु मैथिली एकांकीक विकास ओ प्रचार-प्रसार स्वातंत्र्योत्तर युगमे भेल अछि।बीसम शताब्दीक विगत पाँच दशकसँ मैथिली साहित्यक गतिविधिपर दृष्टिनिक्षेप कयनिहार सर्वाधिक चर्चित साहित्य-मनीषीमे जनिक गणना जाइत छनि ओ छथि अग्रगण्य साहित्य-चिन्तक, सशक्त कवि, उपन्यासकार, कथाकार, एकांकीकार, प्रहसनकार, इतिहासकार अनुवादक, सम्पादक, ओ आलोचकक रूपमे विशिष्ट स्थान रखनिहार चन्द्रनाथ मिश्र अमर (1925)। हिनक वास्तविक प्रतिभाक प्रस्फुटन भेल हास्य-व्यंग्यसँ संयुक्त काव्य-सृजनसँ। एही कारणेँ मैथिली पाठकक सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति रूपमे ख्याति अर्जित कयलनि। तथापि हुनक जतबहि एकांकी ओ प्रहसन अद्यापि उपलब्ध भ’ रहल अछि ओहि आधारपर हुनका श्रेष्ट एकंाकीकार ओ प्रहसनकारक रूपमे गणना कयल जाय तँ एहिमे कोनो अत्युक्ति नहि। हिनक वैशिष्ट्य एहि विषयकेँ ल’ कए अछि जे ओ एकांकी ओ प्रहसनमे जँ गंगा-यमुनाक धारा प्रवाहित कयलनि अछि तँ ओहिमे हास्य-व्यंग्यक लुप्त सरस्वती सेहो दृष्टिगत होइत अछि जे हिनक रचना धार्मियताक वैशिष्टय थिक।
चन्द्रनाथ मिश्र अमर स्वयं एक कशुल अभिनेता, कुशल निर्देशकक रूपमे अपन यथार्थ प्रतिभाक परिचय अपन कार्य-कालमे देलनि, जकर फलस्वरूप समाजमे ओ प्रतिष्ठा अर्जित कयलनि। एम. एल. एकेडमी लहेरियासरायमे अध्यापनक प्रारम्भिक कालहिसँ सेवा निवृति काल धरि भिन्न-भिन्न उत्सवपर नाटकक, एकंाकी प्रहसनक मंचनमे निर्देशकक रूपमे सम्वद्ध रहलाह जकर प्रतिफल हमरा लोकनि देखि चुकल छी जे मैथिली फिल्मक अभ्युत्थानार्थ कन्यादानमे लालकाकामे अभिनय क’ कए मैथिली रंगमंचक विकासार्थ अभियानक अवदान देलनि जकर फलस्वरूप ओ समस्त मिथिलांचलमे लोकप्रियता अर्जित कयलनि। इएह कारण अछि जे हिनकामे रंगमंचोपयोगिता अद्यापि अक्षुण्ण छनि, जकर प्रतिफल ई भेल जे कतिपय नाटकक एकांकी ओ प्रहसनक मंचन हिनक कुशल निर्देशनमे भेल। ओ समाजकेँ अत्यन्त समीपसँ देखलनि तथा ओकर सजीव चित्र अपन एकांकी ओ प्रहसनमे सामाजिक यथार्थक वास्तविक मूल्यांकनमे भेल अछि। ई अपन एकांकी ओ प्रहसनमे मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक यथार्थवादी स्वरूपक उपस्थापन कयलनि। ओ नव समाजक कल्पना कयलनि तथा आधुनिक जीवनसँ आयल विकृतिकेँ केन्द्र-विन्दु बनौलनि जे सामाजिक परिप्रक्ष्यकेँ जनबामे सहायक सिद्ध भेल।मैथिलीक विभिन्न पत्रिकादिक अन्वेषण अनुसंधान ओ सर्वेक्षणोपरान्त अद्यापि हिनक जे एकांकी ओ दृष्टि पथपर आयल अछि ओ थिक टोपी (वैदेही 1950) समाधान (1955)मे संग्रहीत प्रहसन आधुनिक पाठ्य प्रणाली दुइ एकांकी निरक्षरता निवारक पाठशाला एवं श्रमदान, घरैया लूरि (वैदेही नवम्बर-दिसम्बर 1958), मलरवि (मिथिला दर्शन 1965) बाइचान्स (मिथिला मिहिर 14मार्च1965) ब्रह्मस्थान (पटना रेडियोसँ प्रसारित) हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदि, दिशा बोध (मिथिला मिहिर 16 जुलाइ 1978) पत्रिकादि एवं विभिन्न संग्रहमे संगृहीत अछि। एम्हर आबि क’ ओ समग्र एकाकी एवं प्रहसनक संग्रह प्रकाशित कयलनि अछि खजवा टोपी (2005)क नामे जाहिमे कौआ ल’ गेल कान (1998) एक नव एकांकी दृष्टिगत भेल अछि। एहि ट्टष्टिसँ हुनक कुल मिला क’ एगारह एकांकी प्रकाशित अछि जाहि दुइ प्रहसन अा शेष एकांकीक परिप्रेक्ष्यमे हिनक मूल्यांकन करबाक उपक्रम कयल जा रहल अछि। ओ मैथिलीक एहि विधान्तर्गत एक नव प्रतिमान उपस्थित करबामे सहायक भेलाह।
हिनक, एकांकी ओ प्रहसनमे पाठक एवं दर्शककेँ मिथिलांचलक समाजक प्रतिविम्ब भेटैछ। ओ अपन एकांकी एवं प्रहसनमे समाजमे प्रचलित समस्यादिक स्पष्ट अंकन, सूक्ष्म निरीक्षण एवं विषय उपस्थापन अत्यन्त प्रभाव पूर्ण शैलीमे कयलनि। ओ जाहि समस्याकेँ उपस्थित कयलनि अछि, ओ ओहि कालक सापेक्ष धरि सीमित नहि रहल, प्रत्युत भविष्य कालीन परिणामक स्पष्ट अंकन करबामे सहायक भेल। हमर धारण अछि जे भविष्यमे सेहो हिनक एकाकी एंव प्रहसन ओहिना प्रभाव अनुभूत हैत। कतिपय समस्या एहन अछि जे कोनो स्थितिमे कहियो नष्ट नहि हैत - जेना दलितपर भेनिहार अन्याय, अत्याचार, शोषण, पीड़न शिक्षाक परिवर्त्तित स्वरूप, भ्रष्टाचार, राजनीतिक भ्रष्टता, सामाजिक असमानता इत्यादिकेँ ओ एकांकी एवं प्रहसनमे युगीन सन्दर्भकेँ महत्व देलनि। ओ जीवन पर्यन्त अध्ययन-अध्यापनसँ सम्वद्ध रहलाह आ समाजक विभिन्न स्तरक विद्यार्थीकेँ अत्यन्त समीपसँ दैखलनि। अोकर कतिपय समस्यादि जे हुनक मनमे गड़लनि तकर ओ एकांकी एवं प्रहसनमे सजीव रूपेँ प्रस्तुत करबाक उपक्रम कयलनि। जेना कोनो कानून बनैत अछि सर्वसाधारणकेँ न्याय दियबाक हेतु, किन्तु कखनो-कखनो न्यायमे एतेक बेसी जड़ता आबि जाइत छैक जे ओहिसँ न्याय नहि भेटि पबैछ। अतएव परिवर्त्तनशील समाजक लेल आवश्यकता अछि जे कानूनमे सेहो समय-समयपर परिवर्त्तन हो। कैंसर अत्यन्त पीड़ादायक बिमारी छैक जकर औषधि नहि छैक। एकमात्र मृत्युक अतिरिक्त आन कोनो उपाय नहि छैक। तखन दोसर यथार्थ दया मरणक कानून हैबाक चाही।मैथिली दृश्य काव्यमे ई दस्तक देलनि प्रहसनकारक रूपमे। हिनक पहिल प्रहसन प्रकशित भेल टोपी। एहि प्रहसन अनुशीलनसे अवबोध होइछ जे एहिपर व्यंग्यसम्राट हरिमोहन झा (1908-1984) क प्रसिद्ध प्रहसन बौआक दाम (1946)क स्पष्ट प्रभाव अछि। फ्रेंच नाटकककार मौलियर (1622-1673) जहिना अपन नाटककमे हास्यक आयोजनक हेतु कतिपय साधनकेँ अपनौलनि तहिना ई अपन टोपी प्रहसनमे सेहो एकर आयोजन कयलनि, किन्तु स्थल-स्थलपर एहि जार्ज बनार्ड शाँ (1856-1950)क समान गम्भीर व्यंग्यक रूप परिलक्षित होइत अछि।
अाधुनिक पाठ्य-प्रणाली (1955)मे प्रहसनकार सरकारक आधुनिक शिक्षा नीतिक परिप्रेक्ष्यमे एक शिक्षकक हैसियतसँ जे अनुभव कयलनि तकरे पृष्ठभूमिमे एकरा परिवर्त्तित सामाजिक परिवेशमे प्रस्तुत कयलनि अछि। मैथिलीक इतिहासकार एकर गणना एकांकीक श्रेणीमे कयलनि अछि, किन्तु ई विशुद्ध रूपेँ प्रहसन थिक, जाहिमे हास्य-व्यंग्यक धारा प्रवाहित भेल अछि। प्राचीन ओ नवीन शिक्षा प्रणालीक परिप्रेक्ष्यमे प्रहसनकार एकर कथा भित्तिक निर्माण कयलनि अछि जे पाठक एवं दर्शककेँ मनोरंजन करबाक हेतु प्रचुर अवसर प्रदान करैत अछि। प्रचीन परम्परानुसार जतय साले साल धौत परीक्षोतीर्ण पंडित लोकनि दरभंगा महाराजक ओतय गौरवान्विक होइत छलाह ततहि आधुनिक पाठ्य-प्रणालीक परिप्रेक्ष्यमे परीक्षा तँ सत्यनाराण पूजाक समान संकरातिञेँ-संकरातिञेँ भ’ रहल अछि। एतय प्रहसनकार समसामयिक समाजमे प्रचलित सरकारक आधुनिक पाठ्य-प्रणालीमे प्रचलित शिक्षा नीतिपर व्यंग्य करैत छथि जखन देश स्वतन्त्र भेल छल, नव-नव योजना कार्यान्वित भेल जाहिसँ शिक्षा जगत सेहो बाँचल नहि रहि सकल। परिवर्त्तित परिवेशमे प्रहसनकारक व्यंग्य कतेक मर्मस्पर्शी थिक तकर अवलोकन तँ करू :
बचकानी :बापरे! से धरि सत्ते, छोट-छोट नेना सब हक्कर पेलैत
चढ़ले भानसमे सँ काँचे कोचिल खा क’ तीन-तीन
कोस दौड़ल जाइत अछि आ’ सुनैत छिऐक जे स्कूलपर
एकरा सबसँ टकुरी- चर्खा कटबैत जाइत छैक।
(समाधान, निर्माण प्रकाशन, लहेरियासराय, 1955, पृष्ठ-15)
स्वातन्त्र्योत्तर भारतमे नवीन शिक्षा-नीतिक तहत स्कूलपर बुनिआदी शिक्षाकेँ प्रश्रय देल गेलक तथा एकरा क्रियान्वित करबाक हेतु पाठ्यक्रममे अावश्यक परिवर्त्तन कयल गेल, जकरा समकालीन सामाजिक परिवेशमे स्वीकार करबाक स्थितिमे समाज एकदम नहि छल। समाजक एहन मानसिकतापर प्रहसनकार हस्य-व्यंग्यसँ युक्त धारा प्रवाहित कयलनि अछि:
बुद्वन :हौ तौं मौसम्मातक बेटा बेटा थिकाह जे चर्खा लेबह ओ
तँ गाँधी बाबा एकटा रास्ता देखा गेलथिन्ह जे राडँ,
मसोम्मात अपन गुजर करत, जकर जीवन पहाड़ छैक आ’
तोरा कथीक चिन्ता छह? कोन वस्तुक कम्मी छह ? (समाधान पृष्ठ-19)
आधुनिक पाठ्यप्रणाली प्रहसनक वैशिष्ट्य अछि जे प्रहसनकार सामाजिक परिवेशक यथार्थ मानसिकताक घटना चक्रक आधारपर हास्य-व्यंग्यक आयोजन क’ कए जतहि एक भाग समाजकेँ हँसौलनि अछि ततहि दोसर भाग ओकरा माध्यमे मानसिक स्थितिकेँ परिवर्त्तित करबाक प्रयास कयलनि अछि। उपर्युक्त प्रहसनक मंचन एम. एल. एकेडमी, लहेरियासरायक वार्षिकोत्सवक अवसरपर भेल जतय तत्कालीन बिहार सरकारक शिक्षा मंत्री हरिनाथ मिश्र उपस्थित रहथि। एकर निर्देशन प्रहसनकार स्वयं कयने रहथि।
एकांकी :
देशक पुननिर्माणक आवश्यकता एवं सामाजिक चेतनाकेँ ल’ कए मैथिलीमे एकांकी लिखनिहारमे एक सजग एकांकीकारक रूपमे मैथिली एकांकी द्वारपर दस्तक देलनि। एहि दृष्टिएँ हिनक निरक्षरता निवारक पाठ्शाला, श्रमदान, घरैया लूरि, ब्रह्मस्थान, हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदि, मलरवि, दिशा बोध एवं कौआ ल’ गेल कान, इत्यादि मैथिलीमे उल्लेखनीय एकांकीक रूपमे चर्चित अछि जाहि आधारपर हिनका मैथिलीक सफल एकांकीक रूपमे परिगणित कयल गेल छनि। हिनक उपलब्ध एकांकीक विश्लेषण नाटकीय तत्वक आधारपर करब समीचीन होयत। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी थिक तेँ ओकर मूल्यांकन सामाजिक दृष्टिएँ अपेक्षित अछि।
वस्तु :नाट्य तत्वक अन्तर्गत वस्तुक सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान अछि। वस्तु द्वारा एकांकीक गतिशील होइत अछि। रस-निष्पत्ति, चरित्रक सजीवता एवं गतिशीलताक लेल वस्तुक निर्माण कयल जाइत अछि। एहि दृष्टिएँ वस्तु एकांकीक प्रमुख तत्वक रूपमे स्वीकारल गेल अछि। एकरा अन्तर्गत कार्यावस्था वा व्यापार तत्व एकांकीकेँ सफल ओ सप्राण बनबाक उद्देश्यसँ कयल जाइत अछि। कार्यक गाति द्रुतगतिएँ बढ़यबाक दिशामे वस्तु-विन्यास श्रेष्ठ माध्यम थिक, कार्य एकांकीक प्रमुख साध्य थिक। नाटकीय सौष्ठवकेँ वस्तु-संगठन एवं व्यापक समुचित योजनाक रूपमे देखल जाइत अछि। एहि प्रसंगमे पाश्चात्य आलोचक ई.एम. फार्स्टरक कथन छनि जे कथानक घटनाक ओ कालक्रमानुसार वर्णन थिक जाहिमे कार्य-कारण-सम्बंधपर विशेष बल रहैत अछि। नाटकक वा एंकाकीमे संघर्ष वा द्वन्द्वक महत्ता सर्वोपरि अछि। तेँ वस्तु विन्यासक वा एकांकीमे संधर्ष वा द्वन्द्वक महत्ता सर्वोपरि अछि। तेँ वस्तु विन्यासक अन्तर्गत कथानकपर दबाब ओकर प्रतिक्रियाक अंकन कयल जाइछ। वस्तु-विन्यास लेखकक उद्देश्यक अनुरूप क्रमवद्धता एवं विस्तार ग्रहण करैछ। अतएव एकांकीकार वस्तु-विन्यास करबा काल जीवनमे घटित भेनिहार समसामयिक जीवनसँ सम्वद्ध रहैत छथि, कारण मानव जीवनसँ विच्छिन्न कोनो साहित्य उत्कृष्ट नहि भ’ सकैछ।
निरक्षता निवारक पाठशाला (1955)मे एकांकीकार जाहि समसामयिक समस्याक उपस्थापन एहिमे कयलनि अछि तकर संकेत ओ पचास वर्ष पूर्वहि कयने रहथि तकर प्रतिरूप बीसम शताब्दीक नवम दशकमे सरकारक माध्यमे निरक्षरकेँ साक्षार बनयबाक दिशामे प्रयास भेल अछि। सरकार वयस्क शिक्षा योजनापर करोड़क करोड़ रूपैया खर्च करैत जा रहल अछि जकर मूल उद्देश्य छैक जे कोहुना प्रत्येक भारतीयकेँ साक्षर बनाओल जाय। साहित्य-चिन्तक कतेक दूरदर्शी होइत छथि तकर वास्तविकताक परिचय एहि एकांकीक प्रणयनसँ पाठक वा दर्शककेँ उपलब्ध होइत छनि। समसामियक परिवेशमे सरकार वयस्क शिक्षा नीतिकेँ क्रियान्वित करबाक हेतु नुक्कड़ नाटकक आयोजन करैत अछि। जनसामान्यकेँ एहि दिशामे आकर्षित करबाक कतिपय प्रलोभन दैत अछि। तथापि ओकर कतेक परिणाम ओकरा भेटि रहल छैक तकरा स्पष्ट करबाक प्रयोजन नहि, प्रत्युत्त अनुभव करबाक योग्य थिक। किन्तु एकांकीकार समाजक एहि ज्वलन्त समस्याक सम्बन्धमे कतेक पूर्व ध्यानाकर्षित कयने छलाह तकर स्पष्टीकरण उक्त एकांकीक मननसँ स्पष्ट भ’ जाइत अछि। नेना बाबू ने तेना सोने झाकेँ शिक्षित करबाक निमित्त प्रयासरत भेलाह जकर फलस्वरूप ओ शिक्षित भ’ गेलाह। एकरा माध्यमे एकांकीकार एहि विषयकेँ उद्घाटित करबाक उपक्रम कयलनि अछि जे देशक उन्नति तखने सम्भव अछि जखन प्रत्येक भारतीय शिक्षित क’ कए ज्ञानक ज्योति प्रज्वलित क’ कए एकर वास्तविक महत्व बुझथि। तखने मातृभूमिक स्वतन्त्रताक वास्तविक अर्थ बुझबामे तथा अपन अधिकार ओ कर्त्तव्यक पालनमे सक्षम भ’ सकताह अन्यथा सब प्रयास निरर्थक अछि। एहि निमित्त आवश्यक अछि जे जनसामान्यकेँ शिक्षित कयल जाय। एहि प्रसंगमे चतुर्भुजक कथन छनि:
जतेक पढ़ल लिखल लोक छी से यदि प्रतिज्ञा करी आ’ कम-सँ
कम दस व्यक्तिकेँ शिक्षित बनाबी। एक सँ दस, दस सँ सै,
सै सँ हजार तुरन्त भ’ जैत। तैं हेतु साँझखन जे समय
घूड़लग बितबैत अछि से एही काजमे लगाबी तँ कोन क्षति। (समाधान, पृष्ठ-7)
उपर्युक्त वातावरणक पृष्ठभूमिमे एकांकीकार समाजक समक्ष एक प्रतिमान उपस्थित कयलनि अछि जे शिक्षित समाज भ’ कए अपन सामाजिक दायित्वक संगहि-संग राष्ट्रीय दायित्वकेँ बुझि देशक प्रति अपन त्याग कर्तव्यकेँ बुझथि। ई तखने सम्भव भ’ सकैछ जे लोक अपन अधिकार ओ कर्त्तव्यक प्रतिपूर्ण साकांक्ष भ’ पौताह अन्यथा ई संभव नहि। एहि दृष्टिएँ एकर कथानक समाजकेँ अपन अधिकार ओ कर्तव्यक प्रति दिशा-बोध करबैत अछि।
आधुनिक परिवेशमे दिन प्रतिदिन समसामयिक समाजक व्यक्ति आराम तलब बनल जा रहल अछि। ओ जेना श्रमक महत्वसँ अपरिचित भ’ गेल अछि। व्यक्ति-व्यक्तिमेे एतेक वेसी ऊर्जा छैक जे ओ सम्भव कार्य सेहो सम्भव क’ सकल अछि। तेँ मानव जीवनमे श्रम सर्वोपरि साधन थिक। एकांकीकार श्रमदान (1955) एकांकीमे समाजकेँ श्रमोन्मुख बनयबाक उद्देश्यसँ, शैशवावस्थहिसँ श्रमक महत्वकेँ बुझयबाक हेतु एहि एकांकीक रचना कयलनि। स्वातन्त्र्योत्तर भारतक सर्वतोमुखी विकासक शिक्षाक नव नीतिमे एकर उपयोगिताकेँ उद्घाटित करबाक उद्देश्यसँ अाधुनिक पाठान्तर्गत बुनियादी शिक्षाकेँ महत्व देबाक उद्देश्यसँ श्रमदान करबाक प्रवृत्ति जगेबाक लेल एहि एकांकीक ओ रचना कयलनि। एकरा माध्यमे आर्थिक स्वतन्त्रता तँ आसानीसँ भेिट जा सकैछ। अतएव तन-मन, धनसँ अपन मातृभूमिक सेवामे तत्पर भ’ जयबाक प्रयोजन अछि। व्यक्ति-व्यक्तिमे एहि भावनाकेँ जगयबाक हेतु जे प्रयास भेल ओ तँ अपन स्थानपर रहल, किन्तु विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तरपर ए.सी.सी., एन.सी.सी., एन.एस.एस., सदृश योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक लेल स्थापना कयल गेलैक जकर मूल उद्देश्य छलैक श्रमदान करबाक प्रवृत्ति जगेबाक तथा भावी संतनिकेँ शेशवास्थाहिसँ अनुशासनक सूत्रमे बान्हल जाय जे भविष्यक हेतु लाभ प्रद भ’ सकैछ तेँ तँ ज्ञान-धन कहैछ:
देशक एक-एक गोटेसँ निवेदन अछि जे निर्माण कार्यमे
तन-मन-धनसँ सहायता करू। श्रमदानक भुखलि
भारत माता अहाँक आह्वान कै रहल अछि।(सामाधन, पृष्ठ -27)।
एहि प्रवृत्तिक उदय भेलासँ देशक नव-निर्माण निश्चित रूपेँ हैबाक सम्भावना अछि। सरकार एहि शिक्षा नीतिक सराहना करैत छनि आ जे स्कूल एवं कालेजमे पढ़निहारपर दबाव वा जनमानस उत्साहित भ’ कए एहि दिशामे कार्यरत हैताह। तखन सुन्दर लालक कथन छनि:जे सोचलक ई बात बड़ बुधियार छल। देखहक आब पढ़ैत
छैक बारहोवर्णक धियापूता, सबकेँ नोकरी गेटतैक नहि,
तखन सब बेकार भेल गामेपर एहि खोन्हीसँ ओहि
खोन्ही ढ़हनाइत फिरैत छल से तँ नहि ने हैत। (समाधान, पुष्ठ-32)।
अनादि कालहिसँ समाज दुह वर्गमे विभाजित रहल अछि जकरा धनीक-गरीब वा शोषक-शोषित वा सम्पन्न-विपन्न आदि विविध संज्ञासँ विभिन्न समयमे सम्बोधित कयल जाइत रहल अछि। सामाजिक विषमता सबसेँ ज्वलन्त समस्या थिक जकर फलस्वरूप समाजक विभाजन भ’ गेलैक नया समाजन्क वर्त्तमान स्वरूप विलुपित भ’ गेल। आर्थिक परिस्थिित वा हित-सम्बन्धक आधारपर समाज मुख्यत: तीन श्रेणीमे विभाजित अछि। उच्च वर्ग, मध्य वर्ग ओ निम्न वर्ग। उपर्युक्त आधारपर समाजक अन्तर्गत वर्ग वैषम्यक आगमन भेलैक। सामाजिक वातावरणक उपर्युक्त पृष्ठभूमिमे हिनक ब्रह्मस्थान एक उल्लेखनीय एकांकी थिक, जाहिमे एकांकीकार शोषित वा गरीब वा विपन्न वर्गपर होइत अत्याचारक वास्तविकतासँ अवगत करौलनि अछि। ग्रामीण परिवेशमे एहन परम्परा रहल अछि जे गामक डिहबाक अर्थात ब्रह्मस्थान गामक न्यायालय प्रतीक मानल जाइत छल, जतय नीक अधलाहक विश्लेषण क’ कए दोषीकेँ दण्ड देल जाइत छलैक, जकर ओ साक्षी होइत छलाह। समाजक आचार संहिताक ओ प्रतीक होइत छलाह। ब्रह्मस्थान जतय गाममे रहनिहारक सुख-दुःखक समान रूपेण सहभागी हाेइत छथि। समाज कल्याण जनिक सर्वप्रमुख वैशिष्ट्य छनि तथा सामाजिक कल्याणमे अपन कल्याण मानैत छथि। एहन न्यायालयमे बैसि क’ लोक दूधक दूध आ पानिक पानि न्याय करबामे वस्तुतः सक्षम होइत छथि। वैह डिहबार समाजमे सतत पूजित होइत रहल छथि तथा समाज हुनक सम्मान करैत आयल अछि।
बदलैत समाजिक परिवेशमे एहन मान्यतामे परिवर्त्तन भेल जकर परिणाम भेल अछि जे स्वातंत्र्योत्तर भारतमे राम राज्यक स्थापनाक उद्देश्यसँ ग्राम पंचायतक स्थापना कयल गेलैक तथा ओकर प्रधान मुखियाक हाथमे गामक न्याय करबाक उत्तरदायित्व देल गेलनि। मुदा मुखिया न्याय की करैत छथि ओ तँ अन्यायक प्रतीक बनि क’ अपन राक्षसी प्रवृत्तिसँ समाजपर अत्याचार करैत छथि। एही यर्थाथताक पृष्ठभूिममे एकांकीकार ब्रह्मस्थान एकांकीक कथाभित्तिक निर्माण कयलनि अछि।
गामक मुखिया हरिवंश बाबूकेँ युग-युगान्तरसँ दीन-हीन जनमानसकेँ शोषित करबाक अभ्यास छनि। सुगियाक बेटा मखना विगत अठारह दिनसँ ज्वराक्रान्त छैक जे हुनक शोषण नीतिक फलस्वरूप अकस्मात् काल-क्वलित भ’ जाइत अछि। सुगियाक मात्र एतबे अपराध छैक जे समयपर हुनका ओतय पानि भरबाक हेतु नहि जाइत अछि, जकर इनाम ओकरा भेटैत छैक मारि-गारि सुनबैत निर्ममतापूर्वक पीटब ओ अपमानित करब। सुगियाक अन्घभक्त पति पचकौड़ी अपन पुत्रक मृत्युसँ आहत भ’ परम्परागत न्यायालयक प्रतीक ब्रह्मस्थानक अस्तित्वकेँ मेटैयबाक लेल कटिबद्ध अछि, किन्तु ठकाइक बात मानि अपन विचारकेँ बदलि दैछ। अन्ततः ओही ब्रह्मस्थानमे गामक सब क्यो उपस्थित भ’ वर्त्तमान मुखिया हरिवंश बाबूकेँ पदच्युत क’ कए एक नव मुखियाक चुनावक नारा दैत अछि।
एकांकीकार शोषित वर्गक बीच युगयुगान्तरसँ चल आबि रहल आक्रोशसँ कथानकक निर्माण कयलनि अछि। प्रतिपाद्य एकांकीमे मूलत: दुइ विचारधारासँ संघर्षरत अछि। एक तँ परम्परासँ चल अाबि रहल बहियाक प्रति शोषक वर्गक नृशंस हत्या दोसर भाग समसामयिक सामाजिक परिवेशमे प्रचलित चुनाव-पद्धति तथा आधुनिक मुखियाक क्रियाकलापक वास्तविकतापर जे अन्हरजाली छल तकरा हटयबाक उपक्रम कयल गेल अछि। परिवर्त्तित परिवेशमे समाजमे विद्रोहक स्वर अत्यन्त तीव्र भ’ गेल अछि तेँ सामाजिक परिवेशकेँ परिवर्त्तित करबाक प्रयोजन अछि। एकंाकीकार इएह प्रवृत्ति छनि।
कतोक शताब्दीक गुलामीक पश्चात् भारतकेँ स्वतन्त्रता प्राप्त भेलैक। देशक नव-निर्माणक हेतु कतिपय योजनादि क्रियान्वित करबाक दिशामे सरकार प्रयासोन्मुख भेल। सरकारक दिससँ सेहो कतिपय योजनाकेँ कार्यरूप देबाक हेतु प्रयास कयल गेल। एकर एक मात्र उद्देश्य छलैक कोहुना व्यक्ति-व्यक्ति जे गरीबीक मारिसँ कुहरि रहल अछि ताहिसँ मुक्ति दियबाक दिशामे प्रयास कयल जाय। अधिकांश ग्रामीण गामक परित्याग क’ शहरोन्मुख हैबाक दिशामे प्रयास करय लागल। तकर भीषण दुष्परिणाम भेलैक जे गामक गाम जनशून्यताक कगारपर पहुँचय लागल। समाजक समक्ष एक विषम स्थिति उत्पन्न होमय लगलैक। एहना स्थितिमे ग्रामीण परिवेशकेँ बचयबाक लेल जनमानसमे एहन वातावरणक निर्माण कयल गेल जे ओ ओही परिवेशमे रहि अपन जीवकोपार्जनार्थ अपन कौलिक धन्धाकेँ पुनः स्वीकार करय। एकर दूटा प्रभाव पड़ितैक। एक तँ लोक अपन गृह-उद्योग दिस उन्मुख होइत आ दोसर शहरी परिवेशपर अनावश्यक दबाब नहि पड़ितैक।
एहि परिप्रेक्ष्यमे हिनक एकांकी घरैया लूरि (1958) एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थिक। विसुनदेव ग्रामीण परिवेशक परित्याग क’ विसेस्सरक संग कलकत्ता सदृश महानगरीय परिवेशमे रोजगारक तलाशमे जयबाक आकांक्षी अछि। मुदा विसेस्सर शहरी परिवेशसँ परिचित रहलाक कारणेँ ओकर वास्तविक कठिनाइसँ अपन बाल संगी मित्र विसुनदेवकेँ एहन निर्णय करबासँ सर्वथा मना करैत अछि :
हम सौचैत छिऔक जे तोरा की करक चाहिअउ तोहूँ नीक
जकाँ सोचि ले। (वैदही, नवम्बर-दिसम्बर 1958, पृष्ठ -407)
विसेस्सर, अपन नेक सलाह दैत छैक जे अपन पुश्तैनी अथार्त् करघा चला क’ अपन परिवारक संग, सुखी सम्पन्न रहि सकैत अछि। एकर ओ समुचित प्रबन्ध सेहो क’ दैत छैक, जकर परिणाम होइछ जे विसुनदेव गामहिमे रहि अपन रोजगार क’ कए सुखी-सम्पन्न भ’ जाइत अछि। विसुनदेवक देखा-देखी गोविन्द मिस्त्री, सैनी ठठेेरी एवं झिंगुर चमार द्वारा निर्मित पलंग, झालि ओ ढ़ोलक बाजारमे छुहुक्का उड़ि जाइत अछि। एकांकीकारक मान्यता छनि, जे आधुनिक शिक्षा प्रणाली व्यक्ति - व्यक्तिकेँ रोजगार मुहैया नहि करा सकैछ। जा धरि व्यक्ति पुश्तैनी धन्धाकेँ नहि अपनाओत ता धरि ओकर सामाजिक परिवेश कोनो तरहक सुधारक सम्भावना नहि दृष्टिगत होइछ। अतएव एकांकीक मूलस्वर छैक अपन कौलिक धन्धाक अनुरूपहि प्रशिक्षित भ’ कए काज करब। तखने हमर सामािजक परिवेश परिवर्त्तित भ’ सकैछ तथा व्यक्ति-व्यक्ति सुखी सम्पन्न बनबाक कामनाक पूर्ति भ’ सकैछ।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीक रामराज्यक सपना एकरे फलस्वरूप साकार भ’ सकैछ। हमर प्रचीन सामाजिक व्यवस्थामे प्रत्येक जातिक कार्य ओकर सामाजिक परिवेशानुसारेँ विभाजित छलैक, तेँ वेरोजगारीक समस्या नहि उत्पन्न होइत छलैक। वर्णाश्रमक जे व्यवस्था हमर समाजमे कयल गेल छलैक तकर मूल परिकल्पना इएह छलैक। किन्तु परिवर्त्तित परिवेशमे लोक ओहिसँ विमुख भ’ अछि तेँ वेरोजगारीक समस्या समाज ओ सरकारक समक्ष्ा उपस्थित भ’ गेल गेल अछि। प्रतिपाद्य एकांकीमे एकांकीकार मूल रूपेँ कुटीर-उद्योग एवं गृह-उद्योग दिस जन सामान्यक ध्यानाकर्षण कयलनि अछि। अत्याधुनिक परिवेशमे समाजमे, देशमे, पुननिर्माण तथा सामाजिक चेतनाक आवश्यकता अछि। एकांकीकार अपन व्यक्तिगत जीवनक व्यावहारिक अनुभवक आधारपर समाज ओ देशमे प्रचलित योजनान्तर्गत घरैया लूरिक केन्द्र-विन्दुमे निरूपित कयलनि अछि। ओ समाजक ओहि पक्ष दिस संकेत कयलनि अछि जे अत्याधुनिकताक चक्रवातमे पड़ि़ कौलिक क्रिया-कलापके तिलांजलि द’ कए शहरोन्मुख हैबाक आकांक्षी भ’ गेल अछि। किन्तु प्रयोजन अछि जनमानसमे दिशा-निर्देशनक जकर फलस्वरूप ओकर कायाकल्प कयल जा सकैछ। उचित दिशा बोधक फलस्वरूप विसुनदेव, गोविन्द मिस्त्री, सैनी ठठेरी ओ झिंगुर चमार समािजक परिवेशमे रहि क’ अपन आर्थिक स्थितिकेँ सुधारबामे सक्षम भ’ सकलाह आ उन्नतिक शिखरपर चढ़ि समाजक अन्य व्यक्तिकेँ अपन कौलिक व्यवसाय दिस उन्मुख कयलनि।
मलरविमे एकांकीकार हास्य-व्यंग्यक अद्भूत धारा प्रवाहित कयलनि अछि। जहिना काव्यक क्षेत्रमे एहि प्रवृत्तिक प्रस्फुटन भेल अछि तहिना ओकर वास्तविक स्वरूप एहि एकांकीमे स्पष्ट अछि जे पण्डित लोकनि झूठक प्रपंच रहि सर्वसाधारणक शोषण करैत आयल छथि। एहिमे राउत लोकनिक तथा पंडित लोकनिक घूर्त्तताकेँ अत्यन्त मनोरंजक ढ़ंगे एकांकीकार प्रस्तुत कयलनि अछि।
स्वातन्त्र्योत्तर भारतक प्रमुख प्रवृत्ति जनसामान्यक समक्ष्ा आयल अछि भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति हमर जीवनमे एहि प्रकारेँ प्रवेश क’ गेल अछि जे ओहिसँ मुक्तिक मार्ग नहि भेटि रहल अछि। जीवनमे डेग-डेगपर एकर नग्न रूप स्पष्ट अछि तथा समाजकेँ मुक्तिक मार्ग नहि भेटि रहल छैक। जँ परिचमी-एवसर्ड नाटकक लक्ष्य द्वितीय महायुद्वोत्तर विसंगतिक चित्रण करब छल तँ स्वातन्त्र्योत्तर भारतमे उपजल करब चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार एवं नूतन अन्ध धार्मिकतापर तीक्ष्ण-व्यंग्यक प्रहार करब मैथिली एकांकीकारक लक्ष्य बनि गेल छनि। अतएव स्वातंत्र्योत्तर भारतमे उपजल चरित्र हीनता एवं भ्रष्टाचारक केन्द्र-विन्दुपर तीक्ष्ण-व्यंग्यक प्रहार कयल गेल अछि।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे हिनक हाकिमक हाकिम वा ननदिओक नानदिमे स्पष्ट झाँकी भेटैत अछि। एहिमे एक निर्धन संस्कृत पाठशालाक शिक्षक चित्रक माध्यमे एकांकी ओहि भ्रष्टाचारी डिप्टीक चरित्रकेँ उपस्थित कयल गेल अछि जे आकंठ भ्रष्टाचारमे डूबल अछि। डिप्टी साहेब भ्रष्टाचारक प्रतीक छथि जनिक निर्दयतासँ शिक्षक समुदाय बेचैन रहैछ, किन्तु ओ एहि विषयकेँ सर्वथा बिसरि जाइत अछि जे ओकरो ऊपर कोनो अधिकारी छैक। संस्कृत पाठशालाक शिक्षक विद्यालयसँ अनुपस्थित रहलाक कारणेँ पाँच टाका घूस डिप्टीकेँ गछैत छथि, किन्तु टाकाक अभावक कारणेँ शीघ्रहि अदा करबासँ वंचित रहैत छथि। स्कूलक वार्षिकोत्सवमे पण्डित जी चेयरमेन साहेबक सोझॉं रूपैया दैत छथि। एहि घटनासँ डिप्टी साहेब आहत भ’ जाइत छथि, कारण ओ हुनक हाकिम छथिन। जहिना पारिवारिक जीवनमे ननदिक छैक, ओ अत्याचार करबामे कनेको कुंठित नहि होइछ। अतएव एकांकीकार अत्यन्त नियोजित ढ़ंगे सामाजिक परिप्रेक्ष्यमे घटित भेनिहार घटनाक चित्रांकन कयलनि अछि एहि एकांकीमे।
निर्धनता सामाजिक जीवनक अभिशाप थिक। जतय प्राचीन समयमे समाजवादी समाज छल ततय आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे व्यक्तिवादी समाजक स्थापना शनै:-शनै भ’ रहल अछि। एकर श्रेय छैक पश्चिमी संस्कृति ओ सम्यताकेँ। वर्त्तमान शताब्दीक उत्तरार्द्धमे सामाजिक परिवेशमे एतेक शीध्रतासँ परिवर्त्तन भ’ रहल अछि जे सामाजिक स्वरूप परिवर्तित भ’ गेल अछि। व्यक्ति आब एतेक बेसी आत्म केन्द्रित भ’ गेल अछि जे एकैसम शताब्दीक प्रवेश करैत-करैत अपन प्राचीन परिवेशक परित्याग करबाक हेतु विवश भ’ गेल अछि। हमर सामाजिक परिवेश कतेक दूषित भ’ गेल अछि तकर वास्तविकताक चित्रण एकांकीकार कयलनि अछि दिशाबोध एकांकीमे। सुन्दर युवावस्थाक प्रचण्ड बिहाड़िमे सामाजिक परिवेश परिवर्त्तित भ’ जयबाक कारणेँ एहन दिग्भ्रमित भ’ गेलाह जे अपन वृद्ध माता-पिता पर्यन्तकेँ अपन सुख-सुविधाक जिनगीमे बाधक मानैत छथि। किन्तु हुनक पत्नीपर परम्पराक छाप एतेक वेसी छनि जे आधुनिक परिवेशमे रहितहुँ ओ अपन मर्यादाक पृष्ठ पोषिकाक रूपमे जन सामान्यक समक्ष्ा प्रस्तुत होइत छथि। इएह कारण अछि जे हुनका अपन ससुर एवं सासुक प्रति असीम श्रद्धा ओ सद्भावना छनि। एकर पालन करबाक हेतु ओ अपन पतिक विरोध करैत छथि :
हम अहाँक गार्जियन किएक रहब, मुदा जे माय - बाप एतेक
सिद्धति सहि क’ पोसलनि - पाललनि, लिखौलनि - पढ़ौलनि,
ताहि मायक वास्ते दवाइ लय अहॉं कहैत छिएेक बूढ़ा
झीटय चाहैत छथि आ सिनेमामे पाइ फेकय जाइत छी से
उचित थिकैक। (मिथिला मिहिर 16 जुलाई, 1978)
सुन्दर पत्नीक मानसिक दशाक विश्लेषण करबामे सर्वथा असमर्थ छथि, कारण आधुनिकताक अन्हरजाली हुनका लागल छनि। तेँ पत्नीकेँ एकाकी छोड़िकेँ’ सिनेमाक लाथेँ घरसँ पड़ा जाइत छथि। एकांकीकार पति-पत्नीक वैचारिक भिन्नताकेँ यथार्थक घरातलपर आनि सामाजिक परिवेशमे बदलैत मानसिकताक विश्लेषण करबामे सफल भ’ पौलनि अछि। एतय ओ सामान्य पाठककेँ सोचबाक हेतु बाध्य करैत छथि जे अल्प वेतन भोगी कर्मचारीक मानसिकता आधुनिक सामाजिक परिवेशमे केहन भेल जा रहल अछि। ई मानसिकता मात्र किरानीक नहि, प्रत्युत समपूर्ण समाजक भ’ गेल अछि। सुन्दरकेँ परिस्थितिक वास्तविकताक ज्ञान तखन होइत छनि जखन ओ अपन बालसंगीकेँ नूनूकेँ अपन वृद्ध माता-पिताक प्रति अगाध आत्मीयता ओ श्रद्धा देखैत छथि जे वस्तुतः अनुकरणीय एवं सराहनीय अछि। पत्नीकेँ प्रताडि़़त क’ कए ओ नूनूक ओतय उपस्थित होइत छथि। नूनू एम्.ए. इन फिलॉसिपी छथि तथापि ओ नौकरीकेँ परामुखापेक्षी मानैत छथि, की इएह आधुनिक सभ्यता वा सामाजिक परिवेशक उपज थिक।
सामाजिक परिवेशमे एहन लोकक अभाव नहि जे वस्तुस्थितिक यथार्थतासँ बिनु अवगत भेनहि ओकर सत्यापनक पाछाँ अपस्याँत भ’ जाइत अछि। एकांकीकार कौआ ल’ गेल कान मे एहने एक घटनाक नियोजन करबाक उपक्रम कयलनि अछि। डाक्टरक पुत्र मनोज तथा धन्नूक पुत्र मोहनक विवाह अपहरण क’ कए करबाक अपवाहसँ दुनू मित्र किंकर्त्तव्यविमूढ़ भ’ जाइत छथि, किन्तु वास्तविकताक रहस्योद्घाटन होइत समग्र चिन्ता प्रसन्नतामे परिवर्त्तित भ’ जाइछ।
हास्य-व्यंग्यसँ उब-डूब करैत हिनक एक एकांकी थिक वाइचान्स। शिक्षा प्रकाशसँ कोसो दुर रहलाक कारणेँ बिजलीकान्त कोना अपन पिताकँ ठकलनि तकर यथार्थतासँ परिचय करौलनि अछि एकांकीकार। मधुकांत पुत्रक परीक्षोत्तीर्ण भेलाक कारणेँ सुनता सत्यनाराण पूजाक धूमधामसँ आयोजन कयलनि, किन्तु यथार्थ वस्तु स्थितिसँ अवगत भेलापर हुनक मानसिक स्थिति कोन तरहक भ’ जाइत छनि तकरे एहिमे उद्घाटित कयल गेल अछि।
पात्र :
पात्र एकांकी प्रणेताक मानसिक सन्तान होइछ। ओकरामे रक्त बीज संचरण करैछ। ओहिमे संकल्प-विश्वासक गोत्रता तथा जीवन दर्शनमे वंशजता रहैछ। ओकर समस्त अभिजात्य कौलिक रहैछ जकर सम्पूर्ण वर्ण शुद्व सेहो रहैछ। समग्रत: अपन प्रणेताक जीवन्त रंग-साक्षत्कारक जीवन्त रचना थिक। ओहिमे रागात्मकता, आसंग सृजन-संकल्पना, नाट्यानुभव, रंग- संस्कार तथा रंग-राशिक तात्विक संधातसँ उद्भूत रंगपुत्र अछि। एकांकी प्रणेताक आन्तरिक रंगयज्ञक रंग कुण्डसँ उत्पन्न तथा वरदान रूपमे प्राप्त रंग सिद्धि रंगवंशी रंगकुमार अछि। एकांकी प्रणेताक रंग प्रक्रियामे रचनामे पात्र केहन होइछ? ओ रंग-प्रक्रियामे कतयसँ अबैत अछि? एहि प्रश्नसँ बँचि क’ आगाँ जायब युक्ति संगत नहि होयत। एखन धरि बहुधा पात्रक गुण-प्रकार वर्ग तथा ओकरा संगक बात होइत अबैत हो, अधिकांशतः पृष्ठपेषण होइत अछि। पात्रक रंग प्रक्रियापर बड़ कम विचार भेल अछि। पात्र तँ रचनाकारक मानसिक सन्तान होइछ। रचनाकारक जीवनगत प्रतिवद्धतामे पात्रक मर्यादा थिक। ओ सेहो जीवनक प्रति ओहिना प्रतिवद्ध होथि।
हिनक पात्र योजनापर दृष्टिपात करैत छी तँ स्पष्ट भ’ जाइछ जे ओ मध्य एवं निम्नवर्गीय सामाजिक परिवेशक प्रतिनिधित्व करैत देखल जाइत अछि जकरा समक्ष रोजी-रोटीक संगहि-संग अपन जीवको्पार्जनार्थ विविध समस्या सुरसा सदृश मुह बौने ठाढ़ छैक। एहि दृष्टिएँ ब्रह्मस्थान एवं घरैयालूरिक अधिकांश पात्र निम्न गमैया सामाजिक परिवेशक प्रतिनिधत्व करैत अछि। ननदिओकेँ ननदि, मलरवि, दिशाबोध, वाइचान्स, कौआ ल’ गेल कानक अधिकांश पात्र सेहो ओही श्रेणीमे अबैत छथि। मध्यम वर्गीय श्रेणीमे घरैयालूरिक महेन्द्र बाबू ब्रह्मस्थानक हरिवंश बाबू एवं ननदिओकेँ ननदकि चेयरमैन प्रतिनिधित्व करैत छथि। उच्च वर्गक पात्रक अभाव हिनक एकांकीमे अछि।
वस्तुत: हिनक पात्रक संघर्षमे सामाजिक समायोजन (सोसल एडजस्टमेण्ट)क भावना सन्निहित अछि। हिनक आत्मसम्मानी पात्र अपन प्रकृतिक विरोधी नकारात्मक प्रवृत्तिक सामाजिक प्रवत्तिसँ अपन मेल नहि बैसा पबैत अछि। अतएव समायोजनक स्थितिमे ओ मानसिक आशांतिक अनुभव करैत अछि जे कोहुना ओहि मानसिक तनावसँ मुक्ति भेटय एकरा हेतु ओ अपन समायोजनक कारण भूत विरोधी प्रवृत्तिकेँ परास्त करय चाहैछ। एहि प्रयासमे ओकर समाज-विरोधी प्रवृत्तिसँ संघर्ष करय पड़ैत छैक।
एहि प्रकारेँ आत्मसम्मानी पात्रक संघर्ष सामाजिक समायोजनक दिशामे कयल गेल एक प्रयास थिक। इएह हुनक अन्त:स्थ सामाजिक प्रेरणाकेँ व्यावहारिक क्षेत्रमे आनि क’ उपस्थित क’ दैत अछि। एहन संघर्षमय प्रयासक फलस्वरूप आत्मसमानी पात्रक व्यक्तित्व निर्मित्त भेल अछि जे हिनक मिथिलांचलक समाजक एकांकीक अनुपम देन थिक। ब्रह्मस्थानक पचकौड़ी एही श्रेणीक पात्र अछि जे अपन आत्म-सम्मानक रक्षार्थ ब्रह्मस्थानकेँ कोड़ि क’ हुनक अस्तित्वकेँ मेटैबाक लेल तैयार अछि।
सत्ता आँखिक सोझॉं नव-दर्शनक निर्माण करैत अछि जहिमे एकमात्र स्व रहैत अछि। स्वार्थान्ध सत्ताकेँ जीवित रखबाक हेतु मदति कयनिहार व्यक्ति आत्मकेन्द्रित बनि जाइत अछि। किन्तु ओकरा संधर्ष ओ करैत अछि जकरा लोकतन्त्रमे विश्वास एवं निष्ठा छैक। जे व्यक्ति सत्ताक विरोधमे नारा लगबैत अछि तकरापर विपत्तिक पहाड़ टूटि पड़ैत छैक। तथापि नैतिकता आ सत्ताक बलपर व्यक्तिक मनोबल बढ़ैत छैक आ असत् वृत्तिक संरक्षक कालजयी सेहो सद्वृत्तिसँ डेराय लगैत अछि। एहि प्रकारक जन-जागृतिक कार्य एकमात्र साहित्ये द्वारा संभावित अछि। हरिवंश बाबू गामक मुखिया छथि तेँ हुनक आज्ञाक बिना गामक एक पात पर्यन्त नहि हिल पबैत अछि। ओ एतेक वेसी स्वार्थान्ध छथि जे ओ अपन स्व क पूर्तिक निमित्त निरीह सुगियापर प्रहार करबामे कनेको कुठित नहि होइत छथि, कारण ओ हुनकर बेटा नूनू बचबाक आज्ञाक उल्लंघन कयलक अछि, जाहिसँ हुनका चोट पहुँचैत छनि। यद्यपि ओकर बेटा मखना अठारह दिनसँ ज्वराक्रान्त छैक माया, मोह, तथा ममता नामक कोनो वस्तु हुनक अन्तरात्मामे नहि छनि। तेँ निर्दयता पूर्वक व्यवहार करैत छथि जकर परिणाम अत्यन्त भयावह हाेइछ।
जाहि ग्रामांचलमे अशिक्षा एवं अन्ध श्रद्धाक प्रभाव रहत ओतय निर्धनता तथा शोषणक परम्परा निश्चित रूपेँ रहतैक। अधंश्रद्धाक प्रतीक छथि पंचकौड़ी तथा हुनक पत्नी सुगिया जे ब्रह्मस्थानपर कबुला पाती क’ कए मखनाक नीके होयबाक कामना करैत अछि। शोषित वर्गमे एकता अवश्य अछि तथापि ओ अन्यायसँ डेरायल रहैत अछि, किन्तु ओहिसँ मुक्त होयबाक इच्छा अवश्य रखैत अछि। मुदा सामाजिक परिवर्त्तित परिवेशमे से सम्भव नहि भ’ पबैत अछि।
वर्त्तमान परिवेशमे एक दोसराक उपयोग करबाक पाछॉं बेहाल अछि। एहि लेल कोनो तरहक योग्यता अपेक्षित नहि, प्रत्युत एक हथकण्डाक प्रयोजन अछि। मुदा एतबा निश्चित अछि जे लोक अपन लाभक लेल आेकर उपयोग दोसरापर करैत अछि। ई परम्परा समाजमे सतत चलैत रहैत अछि। एक बेर आक्टोपसक शिंकजामे पड़ि़ गेलापर वापसीक मार्ग अवरूद्व भ’ जाइत छैक। घरैयालूरिक महेन्द्र बाबू आ ब्रह्मस्थानक हरिवंश बाबू एही श्रेणीक पात्र छथि। जतय महेन्द्र बाबू अहि श्रेणीक प्रतिनिधि छथि जे शोषित वर्गक शोषण सूदिपर रूपैया लगा क’ करैत छथि, आ समाजक साइलॉक सदृश छथि जे खदुकाक कोंढ़-करेज पर्यन्त खोरैैबामे कनियो कुठित नहि होइत छथि ततहि हरिवंशबाबू एक अहंकारी व्यक्ति छथि, जे शोक वर्गपर अत्याचार करैत छथि। यद्यपि शोषित समाज हुनका सभक गतिविधिसँ पूर्णरूपेण परिचित अछि तथापि बेर-घड़ीपर वैह काज अबैत छथिन तेँ विरोध करबाक प्रश्ने ने उठैछ।
अत्यल्य पात्रक प्रयोग क’ कए दिशाबोध एकांकीक रचना एकांकीकार कयलनि। एहिमे कुल चारि पात्र अछि। नूनू, हुनक वृद्ध पिता, सुन्दर तथा हुनक युवती पत्नी। हमर सामाजिक परिवेशक उक्त चारू पात्र मानसिक विश्लेषण करबामे सक्षम भेलाह अछि। आधुनिक सामजिक परिवेशक प्रतीक छथि सुन्दर जे भौतिकवादी युगमे अपन जीवनकेँ सुखी-सम्पन्न सानन्दित बनयाबामे निम्नसँ निम्न स्तरपर जा सकैत छथि। किन्तु युवती पत्नीक विद्रोही तेवर एतेक बेसी प्रखर अछि जे हुनका सोझाँमे ओ अँटकि नहि पबैत छथि। किन्तु नूनू कर्तव्यनिष्ठ पात्र छथि जे एम.ए. इन फिलॉसफी रहितहुँ अपन कर्त्तव्यपरायणता संगहि संग पितृ एवं मातृभक्तिकेँ अपन पुनीत कर्त्तव्य बुझैत छथि। ओ दिग्भ्रमित सुन्दरकेँ आदर्श जीवन एवं कर्त्तव्यपरायणता पाठ अपन व्यवहारसँ पढ़ा क’ दिशाबोध करबैत छथि। नूनूक चरित्रसँ शिक्षित भ’ कए सुन्दर अपन संग मायक इलाजक लेल तत्परता देखायब अपन पुनीत कर्तव्य बुझैत छथि। एकांकीकार दिग्भ्रमित सामाजिक परिवेशक जे वास्तविक मानसिकता भेल जा रहल अछि तकर यथार्थतासँ जन सामान्यकेँ परिचित करयबाक प्रयास कयलनि अछि जे आध्ाुनिक परिवेशमे उपेक्षणीय नहि प्रत्युत ग्रहणीय अछि।
संवाद :
रंग रचना चाक्षुष यज्ञ थिक तथा रङ्गानुष्ठान ओकर कर्मकाण्ड। संवादक ऋचा स्तवनसँ युग पुरुषकेँ साक्षात् कयल जाइत अछि। रंगानुभव यज्ञ पुरुषक एहि गायित्री गायनसँ अवगाहन पबैत अछि आ सम्पूर्ण रंगकर्ममे प्रत्यक्ष होइत अछि। अतएव संवादक मन्त्रोचारसँ रंग कर्मक साक्षात्कार होइत अछि। एहि ऋचा गायनक निश्चित व्याकरण अछि। एहि प्रकारेँ संवादक प्रस्तुतीकरणक सेहो एक संहिता अछि जे ओहिमे निहित अछि। संवाद रंगानुभवक आत्मज थिक। संवाद रंग कर्मक व्यवहार ओ आचारण थिक निर्देशक, सूत्रधार ओ रंगकर्मीक संवादमे रंगकर्म, मंचन आ अभिनयक दिशाक अन्वेषण करैत छथि। कारण संवादक प्रत्येक शब्द, वाक्य रंगसिद्धिमे रहैत अछि। अतएव पूर्ण संवाद रचनामे एक तँ प्रत्येक शब्दसँ रंगकर्मक किरण फुटैत अछि, दोसर सम्पूर्ण संवाद एहन रंगसिद्ध शब्दक अनुशासित समन्वयसँ एक एहन आलोक विम्ब प्रस्तुत करैत अछि जे रंगकर्मक दिशा संकेत करैत अछि।
संवाद पात्रक बहुविधि व्यक्तित्वक दर्पण थिक, ओकर विधायिका चारिित्रकताक समानुपातिक विकासक मानदण्ड थिक। संवाद रचनामे नाटकक प्रणेताक अत्यन्त कठिन भूमिका रहैत छनि। हुनका एकहि संग विविध पात्रक भूमिकामे उतरि क’ ओकर मनःस्थितिक अनुरूप संवाद रचना करय पड़ैत छनि। कतहु संवाद आरोपित नहि लागय, पात्रक प्रकृति ओ रंगवेदनाक प्रतिकूल नहि हो जकरा सतत ध्यानमे राखय पड़ैत छनि।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे हिनक संवाद योजनापर दृक्पात कयलापर स्पष्ट प्रतीत हाेइत अछि जे ओ प्रत्येक पात्रक संवाद-योजना ओकर परिस्थितिक अनुकूलहि निरूपण कयलनि अछि। प्रहसनमे जतय हास्य-व्यंग्यक प्रमुखता रहैत अछि ततय ओ तदनुरूपहि संवाद-योजना कयलनि अछि। हिनक प्रत्येक संवाद एहन बुझना जाइछ जेना ओ स्वयं पात्रक रूपमे उपस्थित भ’ कए अपन बात ओकरा मुहे कहयबाक प्रयास कयलनि अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक एक विशेषता अछि जे एकांकीकार ओहिमे पात्रोचित भाषाक संगहि-संग ग्राम्य भाषाक प्रयोग एतेक सहजताक संग कयलनि अछि जकर परिणाम भेल अछि जे हिनक भाषा-शैली अत्यन्त मर्मस्पर्शी बनि गेल अछि। यद्यपि ई संस्कृतक पण्डित छथि जनिका तत्सम शब्दक प्रयोग करबामे विशेष आभिरुचि रहबाक चाही, किन्तु ई भाषा प्रयोगमे एतेक, उदारचेता छिथ जे हिनक चाहे काव्य भाषा हो चाहे गद्यभाषा हो ओहिमे ठेंठसँ ठेंठ शब्दावलीक एतेक प्रचुर परिमाणमे प्रयोग करैत छथि जे पाठकक मर्मकेँ स्पर्श करबामे सहायक होइत अछि। जतेक दूर धरि एकांकी ओ प्रहसनमे भाषा प्रयोगक प्रश्न अछि ओहि परिप्रेक्ष्यमे निर्विवाद रूपेँ जा सकैछ जे लोकोक्तिक प्रयोग करबामे ई महारथ हासिल कयने छथि जे पाठकक ध्यानाकर्षित करैत अछि। प्रहसन ओ एकांकीक भाषाशैली वा संवाद योजना प्रस्तुत करबाक शैली एतेक सक्षम अछि जे नेपथ्यमे कोनो प्रकारक आडम्बर करबाकक प्रयोजन नहि पड़ैछ। रंगमंचक व्यवस्थाक एहन संकेत पात्रक माध्यमे देलनि अछि जे ओकर भूमिकाक नहि निर्माण करैछ। पात्र जखन परस्पर वार्तालाप करैछ तखन अपन मौन, आवेग, स्थिर दृष्टिएँ, कखनो-कखनो हँसि क’ कखनो- कखनो बीचमे रूकि क’ नाटकीय प्रभाव गम्भीर बना दैत अछि। एहि प्रकारेँ मंचीय सम्भावनासँ परिपूर्ण हिनक प्रहसन ओ एकांकी सामाजिक जीवनक विभिन्न समस्याकेँ जहिना-तहिना प्रस्तुत कयलक अछि।
मिथिलांचलमे प्रचलित मुहावरा ओ लोकोक्तिक प्रयोगमे हिनक काव्य भाषाक संगहि-संग गद्यभाषाक वैशिष्ट्य अछि। हिनक एहि प्रवृत्तिक प्रतिफल प्रहसन ओ एकंाकीमे सेहो उपलब्ध होइत अछि जकर किछु बानगीक अवलोकन कयल जा सकैछ यथा पेट काटि क’ पोसल पूत सैह कहै फलनामा भूत, परिलागब, दाँत निचोड़ब, हक्कर पेलब, जीक पातर, नङो-चङो करब, मनक मनोरथ मनहि बिलटल, आन करैत आन भेल हो रामा, गाल लगायब, अमार लगायब, बहिरा नाचे अपने तालेँ, कुकुर माछी काटब, रनरनायब फिरब, बङौर लगाएब, भोथहा कलम, सनक सवार, मन लोहछब, गुमाने फाटब, पाँतरमे पड़ब, काछर काटब वंश कुड़हरि, नुड़िऐल फिरब, कन्ही गायकेँ भिन्ने बथान, कटहरमे नेढ़ा लगाएब, भोँडो छुड़ल ओ पेटो नहि भरल, सोनक दोस की सोनारक दोस, पहाड़ ढ़ाहब, छौड़ी सिखाबय बूढ़, दादीकेँ बुड़िसटही, खोप सहित कबुतराय नमः, रड़ धुम्मस करब, दम्म ने दुस्सर खाली बात पकठोस, गप्पीक खरिहान, दूरक ढ़ोल साहओन, पेट छूटल गोनू झाक ढ़ाकी, कनहा नछत्तर, नाक दम ठेकब, यमराजक पित्ती, आँखि गुड़रब, कमला कातक दड़ारि जकाँ मुँह बायब, जीवइ छी ने मरइ छी हुकुर-हुकुर करइ छी, भोकना बिलाड़, सुखि क’ टिटही, फिफिआइत रहब, छुहुक्का उड़ब, खगल लोक, डाँर पीठ एक्कठा होयब, हकलिलो भेल फिरब, खगले लोक की ने करय, पेट पहाड़, सुरता लागब, घूड़ घूऑं करब, टटी लागब, लते पत्त दौड़ब, जोगार धरायब, छप्पन छूरी चमकायब, कबुला करब, जिन्न पोसब, आँखि फुटब, एक बजा बय सतरह आबे, अकाश ठेकब, साटिधट राखब, लटारहम करब, खेखनियाँ करब, कुर्रकाई करब, ऑंटागील करब, उत्तम खेती मध्यम वान, अधम चाकरी भीख निदान, हाथ पकड़ब, सेवा सँ मेवा पायब, कौआ ल’ गेल कान, इयादि। एहिसँ स्पष्ट भ’ जाइछ जे हिनका भाषापर अद्भूत अधिकार छनि तथा पात्रक मुहे सुनैत देरी दर्शककेँ स्वयं आत्मबोध भ’ जाइत छैक।
एकांकी एवं प्रहसनक भाषा अन्य साहित्यिक विधादिक तुलनामे एक पृथक संस्कारसँ संयुक्त अछि। यथार्थक आग्रह कारणेँ ओकरा सामान्य जीवनक बोली वर्णक भाषासँ निकट होयब अनिवार्य अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसन सामान्य भाषाक भीतरहिसँ संचरित संस्कारित भेल अछि। एहि रूपमे एकांकीक वस्तुक लेल तथ्ये नहि करैछ, प्रत्युत सम्पूर्ण रचनातन्त्रक निर्माण सेहो करैछ। वस्तुत: हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषा सम्पूर्ण सम्प्रेषणक भाषा थिक जाहिमे एक-एक शब्द कहल गेल अछि ओ महत्वपूर्ण नहि महत्वपूर्ण अछि एक समग्र प्रभाव आ ओ जे नहि कहल गेल अछि, जे, ध्वनित-व्यंजित मात्र कयल जाइत अछि। भाषा हिनक व्यक्तित्वमे रचल-बचल छनि जे सामजिक परिवेश, मानसिक चेतना सब मिलि क’ हिनक भाषिक प्रतिभाक निर्माण करबयमे सहायक भेल अछि। हिनक सर्जनात्मक बोध, चयन ओ संयोजनक सायास आग्रह सामान्यसँ विशिष्ट बना देलनि अछि।
गीत :
अमर मूल रूपेँ कवि छथि तेँ एकांकीमे सेहाे स्थल-स्थलपर हिनक काव्य प्रतिभाक प्रस्फुटन भेल छनि जकर प्रतिफल घरैयालूरि, हाकिमक हाकिम एवं श्रमदानमे सेहो हिनक काव्य-प्रतिभासँ पाठक एवं दर्शक परिचित होइत अछि घरैयालूरिमे ढ़ोलक झालिपर गबैत एक मण्डली प्रवेश करैत अछि जकर विषय-वस्तु थिक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा देखाओल गेल गृह-उद्योग एवं कुटीर-उद्योग, तकर महत्तापर प्रकाश देल गेल अछि। एहि एकांकीमे प्रयुक्त गीतक महत्व मूलस्वर थिक जनसामान्यकेँ एहि दिस आकर्षित करब। हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदिमे सहो उक्त परम्पराक पालन कयल गेल अछि, जखन मिडिल स्कूलक प्रागंणमे चेयर मैन साहेब उपस्थित भ’ छात्र लोकनिकेँ वार्षिकोत्सवक अवसरपर पारितोषिक देबाक लेल जाइत छथि तखन हुनक स्वागतार्थ स्वागतगानक आयोजन कयल जाइत अछि। श्रमदान एकांकीमे सेहो एहि परम्पराक निर्वाह कयल गेल अछि। स्वयं सेवकक दल कान्हपर कोदारि आ हाथमे छिट्टा ल’ कए श्रमक महत्ताकेँ प्रतिदिन करैत मातृभूमि भारत माताक आह्वान करैत छथि जे मानवतापर दानवताक स्पष्ट झाँकी भेटि रहल अछि। एहन विषम स्थितिमे दलितक उद्धारक हेतु एहिसँ उत्तम साधन आ की भ’ सकैछ ? श्रमक माध्यमे हमरा सभक उद्धार संभावित अछि। एहिसँ प्रेरित भ’ कए गबैया सब मिलि क’ देशक निर्माण, अपन भाग्यक निर्माण तथा भावी संतानक भविष्य निर्माणक हेतु कोसीक वन्दना करैत देखल जाइत छथि जाहिमे मातृभमिक कल्याणार्थ क्रान्तिकारी डेग उठबैत विश्व बन्धुत्वक भावनासँ प्रेिरत भ’ कए अबला-वृद्ध वनिता देशक नव-निर्माणक हेतु सन्नद्ध भ’ जाइत छथि जे त्याग तस्पया, आलस्य, भय, आदिक परित्याग क’ देशक निर्माणमे लागि जाथि। उपर्युक्त तीनू एकांकी गीतक शब्द-विन्यास संगीत परम्परानुरूप अछि।
उद्देश्य :
चन्द्रनाथ मिश्र अमरक जतबे एकांकी ओ प्रहसन प्रकाशमे आलय अछि ओहिमे एकांकीकार मिथिलांचलक परिप्रेक्ष्यमे जाहि सामाजिक समस्यादिकेँ प्रस्तुत कयलनि अछि ओ मात्र मिथिलांचलेक समस्या धरि सीमित नहि अछि, प्रत्युत सम्पूर्ण भारतवर्षक ओहि सामाजिक परिवेशक समस्या थिक जाहि परिवेश मे भारतीय निम्न एवं मध्यवित परिवार गुजर बसर करैत अछि। हमरा जनैत एकांकी ओ प्रहसनक रचनाक पाछाँ एकांकीकारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहलनि अछि जे एकरा माध्यमे मिथिलांचक सामाजिक परिवेश पुननिर्माणक संगहि-संग समाजमे एक एहन चेतना अानब जाहिसँ जर्जरित समाजक कायाकल्प कैल जा सकइयै। एक सफल शिक्षक होयबाक कारणेँ व्यावहािरक जीवनक अनुभवक आधारपर एक युगद्रष्टा साहित्कार सदृश ओ इएह सन्देश देबाक उपक्रम कयलनि जे शिक्षा जगतमे आमूल परिवर्त्तन, परिवर्द्धन ओ परिमार्जनक प्रयाेजन अछि। एहि पृष्ठभूिममे ओ अपन एकांकी ओ प्रहसनक विषयवस्तुक चयन कयलनि जे व्यावहारिक जीवनमे जनसामान्यक हेतु लाभप्रद सिद्ध भ’ सकय।
प्रत्येक व्यक्तिक जीवनक एक सुनिश्चित उद्देश्य होइछ। ओहि ध्येयक प्रािप्तक हेतु व्यक्ति सब किछु तन-मन-धन समर्पित क’ दैत अछि। पुस्तक मनुष्यक गुरु एवं मित्रक संगहि सब किछु अछि। ओहिसँ फराक रहि क’ मनुष्यकेँ सुखक अनुभूति नहि भ’ सकैछ। मृगतृष्णाक पाछाँ-पाछाँ दौड़लासँ मनुष्यकेँ मात्र थकाने होइत छैक। किन्तु पुस्तकमे व्यस्त रहलापर मानसिक समाधान ओ ज्ञानक संगहि सम्मान भेटैछ। अतएव समाजसँ किछु माँगबाक लालसासँ नीक थिक जे अध्ययन- अध्यापनक सत्य दुनिया अपनायब राजमार्ग थिक। चन्द्रनाथ मिश्र अमरक विफुल साहित्य साधनाकेँ देखि प्रतिभाषित होइत अछि जे हिनक साहित्य साधना निशिचत रूपेँ हिनक राजमार्ग छनि जकरा अनुसरण क’ कए एतेक अवदान मैथिली साहित्यकेँ श्रीवृद्वि बनयबामे द’ पौलनि ओ जाहि सामाजिक परिवेशक प्रश्न एकांकी ओ प्रहसनमे उठौलनि ओ निश्चित रूपेँ मिशिलाक पृष्ठभूमिमे एक अभिशाप थिक।
ब्रहास्थान एक उल्लेखनीय एकांकीक रूपमे पाठकक समक्ष अबैत अछि जाहिमे एकांकीकार निम्नवर्गीय गमैया समाजक प्रतीक रूपमे सुगिया ओ पंचकौड़ीकेँ प्रस्तुत क’ कए ई जनयबाक उपक्रम कयलनि अछि जे युग-युगसँ सीदित अछि, पीड़ित अछि, जकरापर अत्याचार तँ अवश्य होइत छैक, किन्तु अपन आक्रोशकेँ गामक मुखिया हरिवंश बाबूपर नहि प्रकट क’ कए ब्रह्मस्थानपर प्रकट करैत अछि जे भगवान सेहो शोषक वर्गक संग मिलि क’ अत्याचार करबामे सहयोग देबामे कनेको कुंठित नहि होइत छथि। जाहि समाजमे अशिक्षा ओ अन्धश्रद्धाक प्रभाव छैक ओतय गरीब तथा मजदूरक शोषणक परम्परा बनि क’ रहि जाइत अछि। ओकर मानसिकता एहन छैक जे ओ ने तँ भगवानक विरोध क’ सकैत अछि आ ने शोषक वर्गक प्रतिनिधि बनि क’ मूक रहि सकैछ। ओ अन्यायसँ डेरायल अछि तथा ओहिसँ मुक्ति पयबाक आकांक्षी सेहो अछि। एतय संघर्ष दोसर पक्ष सेहो अछि जे मुखिया एहि अन्यायक एक पुर्जा मात्र अछि।
सामाजिक यथार्थ विषयक चयन करबाक पाछाँ चन्द्रनाथ मिश्र अमरक मुख्य उद्देश्य छनि समाज-सुधार तथा जनसामान्यकेँ एहि दिस आकार्षित करब। एकांकीकार समाजक अन्यायपर प्रकाश द' कए जनसामान्यमे चैतन्य उत्पन्न कयलनि अछि। ओना तँ सभ देशक नाटकककार सामाजिक विषयकेँ आधार बना क’ कतिपय एकांकी ओ प्रहसनकार रचना कयलनि अछि जे पाठक वा दर्शकक आकर्षणक केन्द्र बनल अछि। भारतीय एकांकीकार ओ प्रहसनकार सामाजिक यथार्थक पूर्ण उपयोग कयलनि। प्रस्तुत एकांकीकार सामाजिक विषयक आधार बना क’ सुधार करबाक दिशामे प्रयास कयलनि। ओ मिथिलांचलक सामाजिक जीवनमे विस्तृत कुरीतिकेँ देखलनि तथा ओहिपर व्यंग्यात्मकताक शैलीमे प्रहार कयलनि। एकांकीकारक सुधारक वृत्तिक परिणाम स्वरूप समाजक जीवैत-जैत चित्र जनसाधारणक सोझाँ प्रस्तुत भेल तथा नवीन भावनाक विकासक लेल मार्ग प्रशस्त भेल। समाजक परिष्कार भावनासँ प्रेरित भ’ कए ओ एकांकी एवं प्रहसनक रचना कयलनि तथा सामाजिक परिवेशक अन्तर्गत वर्गगत बिडम्बनाकेँ नष्ट करबाक अद्देश्यसँ ओ हास्य-व्यंगयकेँ प्रमुख साधन बनौलनि।
संभवतः एहि वास्तविकतासँ अवगत नहि रहलाक कारणेँ डाॅ. दुर्गानाथ झा श्रीश (1929-2000) मैथिली साहित्यक इतिहास (1991)मे हिनकापर जे आरोप लगौलनि जे हिनक एकांकी जाहि प्रचार-प्रसारक स्वर अत्यन्त प्रमुख भेलासँ प्रत्येक एकांकी, सरकारी प्रचार साहित्य जकाँ लगैत अछि (पृष्ठ-301)। हमारा दृष्टिएँ दुर्गानाथ झा श्रीशक ई कथन सर्वथा दिग्भ्रमित विचार थिक, कारण साहित्यक प्रमुख उद्देश्य होइछ जे समाजमे घटित भेनिहार घटनाक यथार्थ पाठक ओ दर्शककेँ अवगत करायब, समाजक अभावमे साहित्य महत्वहीन भ’ जाइछ। एकांकीकार समाजक यथार्थक चित्रण क’ वास्तविकतासँ अवगत करयबाक प्रयास कयलनि जे सर्वथा ग्रहणीय अछि, अनुकरणीय अछि, कारण हुनक एकांकी ओ प्रहसनक विषय-वस्तु समाजोन्मुखी तथा समयक जे माँग छल तकरा परिप्रेक्ष्यमे लिखल गेल अछि।
नि:सारण :
चन्द्रनाथ मिश्र अमर अपन प्रहसन ओ एकांकीमे हास्य-व्यंग्यक अवतारणाक लेल विविध पात्र एवं परिस्थिति कथा-वस्तुमे नियोजित कयलनि अछि, कारण हुनक समसायिक सामाजिक परिवेशक अन्तर्गत एही प्रकारक ज्वलन्त समस्या छल जकर ओ अत्यन्त सूक्ष्मताक संग विश्लेषण कयलनि। प्रहसनक कथा अतिरंजित होइत अछि आ प्रहसनक पात्रक विविध क्रियाकलाप सेहो दर्शककेँ हँसबैत अछि। यद्यपि प्रहसन उहपासाम्क होइत अछि तथापि ओहिमे सुधारक भावना सन्निहित रहैत अछि जे हिनक प्रहसनक केन्द्र-विन्दु थिक।
एकांकीमे सामाजिक समस्याक विभिन्न पहलूकेँ ओ प्रभावोत्यादक शैलीमे प्रभावशाली ढंगसँ प्रस्तुत कयलनि अछि।एकांकीकार यथास्थान सहज स्फूर्तिसँ मार्मिक विचारकेँ अभिव्यक्त कयनिहार ग्राम्य भाषाक माध्यमे प्रस्तुत कयलनि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषा तथा ओकरा प्रस्तुत करबाक शैली एतेक सक्षम अछि जे नेपथ्यमे कोनो प्रकारक आयोजनक प्रयोजने नहि पड़ैछ। ई एकांकी ओ प्रहसनमे रंग-व्यवस्थाक एहन संकेत पात्रक माध्यमे देलनि अछि जाहिसँ एकर भूमिका निर्माण स्वयं भ’ जाइछ। एक पात्र दोसरा संग वार्तालाप करैत अपन अावेग, मौन एवं स्थिर दृष्टिएँ बीच-बीचमे रूकि क’ नाटकीय प्रभावकेँ गम्भीर बना देलनि अछि। एहि प्रकारेँ मंचीय सम्भावनासँ परिपूर्ण हिनक ओ प्रहसनक सामाजिक जीवनक यथार्थताक विभिन्न समस्याकेँ एहि प्रकारेँ रू-ब-रू प्रस्तुत कयलनि अछि जाहिसँ ओ लोकनि बिनु भेने नहि रहि सकैछ। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषामे सूक्ष्मता एवं प्रत्यक्षता अछि।
चन्द्रनाथ मिश्र अमर अपन समसामयिक जीवनक दैनिक, आर्थिक सामाजिक समस्याकेँ विचार प्रधान ढंगसँ सोझरयबाक प्रयास कयलनि। ओ काल्पनिक जीवनसँ हरि क’ यथार्थक सहरजमीनपर अयलाह। कथानक, पात्र, चरित्र चित्रण, भाषा, वेशभूषा, सभमे यथार्थताक प्रति अभिरुचि हिनक एकांकी ओ प्रहसनक विशिष्टता अछि। यथार्थवादी प्रगतिशील समस्याकेँ ओ एकांकी एवं प्रहसनमे स्थान देलनि। ई नाटकीय भाषाक संस्कार कयलनि, नव भावक संजीविनी ओकरा देलनि एवं कलाक विभिन्न रूपमे सार्थक प्रयोग कयलनि तथा वर्त्तमान मैथिली गद्यकेँ दिशा देलनि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनमे रस-निष्पत्ति स्वयं होइत अछि। विशेषत: हास्य-व्यँग्यक ई मैथिलीमे सिद्धस्त लेखक छथि जकर प्रतिरूप हिनक समग्र साहित्यमे उपलब्ध होइत अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसन आभिनयोपयोगी अछि जकरा प्रस्तुत करबाक हेतु कोनो तामझामक आयोजनक प्रयोजन नहि पड़ैछ। हिनक एकांकी-प्रहसन जहिना पठनीय अछि तहिना अभिनीय सेहो। एहि प्रकारेँ हिनक एकांकी-प्रहसनक माध्यमे मिथिलांचलक सामाजक समस्त सामाजिक जीवनक झलक भटैत अछि जे विविध रूपमे प्रत्यक्षीकरण भ’ जाइत अछि।
आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारक फलस्वरूप समाजिक परिवेशमे तीव्र गतिएँ परिवर्त्तन भ’ रहल अछि। परम्परागत घारणादि, प्रथादि, व्यवस्थादि, आदर्शादिसँ लोकक धारणा शनै:-शनै समाप्त होमय लागल अछि। अतीतक व्यवस्था आदि वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे जीवनयापनक लेल पर्याप्त नहि, रहि गेल अछि। समाजमे एक विचित्र स्थिति उत्पन्न भ’ गेलैक अछि। एहन अवस्थामे समाजसँ बनब तथा समाजकेँ बनायब नाट्य प्रक्रियाक आधार भूत हेतु बनि गेल अछि। तेँ नाटकककारकेँ सामाजिकक रुचिसँ प्रभावित हैबाक होइत छनि। संगहि हुनका समाजकेँ सुरुचि सम्पन्न बनयबाक प्रयत्न करय पड़ैत छनि। नाटककमे नाटकककारक मानसिकताक विम्ब रहैत अछि ई प्रतिविम्ब आत्मनिष्ठ एवं स्वयं पूर्ण होइछ। नाटकककारक मानसिकता हुनक गृहीत संस्कार तथा समाजमे घटित घटनादिक परिणाम होइत अछि।
यद्यपि मैथिली साहित्यमे समस्त पूर्वांचालक भाषाक अपेक्षा नाट्य-साहित्य समृद्धशाली परम्पराक दिग्दर्शन एकर प्रारम्भिकावस्थहिसँ दृष्टिगत होइत अछि तथापि एकांकी साहित्यपर दृष्टिपात करैत छी तँ एकर उदय ओ विकास बीसम शताब्दीक चतुर्थ दशाब्दसँ प्रारम्भ होइत अछि। वर्त्तमान युगमे जीवनक व्यस्तता, अशांति, कार्याधिक्यक कारणेँ अवकाशाभाव तथा जीवनक बढ़ैत द्वन्द्व एकर विकासक मूलमे अछि। शिक्षा प्रचारिक फलस्वरूप विद्यालय, महाविद्यालय ओ विश्वविद्यालयमे अभिनयोपयोगी एकांकीक निरन्तर माँग तथा रेडियो-टेलीभिजनक प्रचार-प्रसारक फलस्वरूप एकांकीक लोकप्रियता बढ़ैत गेल अछि। द्वितीय विश्व युद्धक अवसरपर गद्य-साहित्यक प्रचारात्मक साधनक आवश्यकता भेलैक। फलत; एकांकीक अनेक रूपक विकास भेलैक जाहिमे रेडियो प्ले फीचर फेंटेसी आदि प्रमुख अछि। किन्तु मैथिली एकांकीक विकास ओ प्रचार-प्रसार स्वातंत्र्योत्तर युगमे भेल अछि।बीसम शताब्दीक विगत पाँच दशकसँ मैथिली साहित्यक गतिविधिपर दृष्टिनिक्षेप कयनिहार सर्वाधिक चर्चित साहित्य-मनीषीमे जनिक गणना जाइत छनि ओ छथि अग्रगण्य साहित्य-चिन्तक, सशक्त कवि, उपन्यासकार, कथाकार, एकांकीकार, प्रहसनकार, इतिहासकार अनुवादक, सम्पादक, ओ आलोचकक रूपमे विशिष्ट स्थान रखनिहार चन्द्रनाथ मिश्र अमर (1925)। हिनक वास्तविक प्रतिभाक प्रस्फुटन भेल हास्य-व्यंग्यसँ संयुक्त काव्य-सृजनसँ। एही कारणेँ मैथिली पाठकक सर्वाधिक चर्चित व्यक्ति रूपमे ख्याति अर्जित कयलनि। तथापि हुनक जतबहि एकांकी ओ प्रहसन अद्यापि उपलब्ध भ’ रहल अछि ओहि आधारपर हुनका श्रेष्ट एकंाकीकार ओ प्रहसनकारक रूपमे गणना कयल जाय तँ एहिमे कोनो अत्युक्ति नहि। हिनक वैशिष्ट्य एहि विषयकेँ ल’ कए अछि जे ओ एकांकी ओ प्रहसनमे जँ गंगा-यमुनाक धारा प्रवाहित कयलनि अछि तँ ओहिमे हास्य-व्यंग्यक लुप्त सरस्वती सेहो दृष्टिगत होइत अछि जे हिनक रचना धार्मियताक वैशिष्टय थिक।
चन्द्रनाथ मिश्र अमर स्वयं एक कशुल अभिनेता, कुशल निर्देशकक रूपमे अपन यथार्थ प्रतिभाक परिचय अपन कार्य-कालमे देलनि, जकर फलस्वरूप समाजमे ओ प्रतिष्ठा अर्जित कयलनि। एम. एल. एकेडमी लहेरियासरायमे अध्यापनक प्रारम्भिक कालहिसँ सेवा निवृति काल धरि भिन्न-भिन्न उत्सवपर नाटकक, एकंाकी प्रहसनक मंचनमे निर्देशकक रूपमे सम्वद्ध रहलाह जकर प्रतिफल हमरा लोकनि देखि चुकल छी जे मैथिली फिल्मक अभ्युत्थानार्थ कन्यादानमे लालकाकामे अभिनय क’ कए मैथिली रंगमंचक विकासार्थ अभियानक अवदान देलनि जकर फलस्वरूप ओ समस्त मिथिलांचलमे लोकप्रियता अर्जित कयलनि। इएह कारण अछि जे हिनकामे रंगमंचोपयोगिता अद्यापि अक्षुण्ण छनि, जकर प्रतिफल ई भेल जे कतिपय नाटकक एकांकी ओ प्रहसनक मंचन हिनक कुशल निर्देशनमे भेल। ओ समाजकेँ अत्यन्त समीपसँ देखलनि तथा ओकर सजीव चित्र अपन एकांकी ओ प्रहसनमे सामाजिक यथार्थक वास्तविक मूल्यांकनमे भेल अछि। ई अपन एकांकी ओ प्रहसनमे मिथिलांचलक सामाजिक जीवनक यथार्थवादी स्वरूपक उपस्थापन कयलनि। ओ नव समाजक कल्पना कयलनि तथा आधुनिक जीवनसँ आयल विकृतिकेँ केन्द्र-विन्दु बनौलनि जे सामाजिक परिप्रक्ष्यकेँ जनबामे सहायक सिद्ध भेल।मैथिलीक विभिन्न पत्रिकादिक अन्वेषण अनुसंधान ओ सर्वेक्षणोपरान्त अद्यापि हिनक जे एकांकी ओ दृष्टि पथपर आयल अछि ओ थिक टोपी (वैदेही 1950) समाधान (1955)मे संग्रहीत प्रहसन आधुनिक पाठ्य प्रणाली दुइ एकांकी निरक्षरता निवारक पाठशाला एवं श्रमदान, घरैया लूरि (वैदेही नवम्बर-दिसम्बर 1958), मलरवि (मिथिला दर्शन 1965) बाइचान्स (मिथिला मिहिर 14मार्च1965) ब्रह्मस्थान (पटना रेडियोसँ प्रसारित) हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदि, दिशा बोध (मिथिला मिहिर 16 जुलाइ 1978) पत्रिकादि एवं विभिन्न संग्रहमे संगृहीत अछि। एम्हर आबि क’ ओ समग्र एकाकी एवं प्रहसनक संग्रह प्रकाशित कयलनि अछि खजवा टोपी (2005)क नामे जाहिमे कौआ ल’ गेल कान (1998) एक नव एकांकी दृष्टिगत भेल अछि। एहि ट्टष्टिसँ हुनक कुल मिला क’ एगारह एकांकी प्रकाशित अछि जाहि दुइ प्रहसन अा शेष एकांकीक परिप्रेक्ष्यमे हिनक मूल्यांकन करबाक उपक्रम कयल जा रहल अछि। ओ मैथिलीक एहि विधान्तर्गत एक नव प्रतिमान उपस्थित करबामे सहायक भेलाह।
हिनक, एकांकी ओ प्रहसनमे पाठक एवं दर्शककेँ मिथिलांचलक समाजक प्रतिविम्ब भेटैछ। ओ अपन एकांकी एवं प्रहसनमे समाजमे प्रचलित समस्यादिक स्पष्ट अंकन, सूक्ष्म निरीक्षण एवं विषय उपस्थापन अत्यन्त प्रभाव पूर्ण शैलीमे कयलनि। ओ जाहि समस्याकेँ उपस्थित कयलनि अछि, ओ ओहि कालक सापेक्ष धरि सीमित नहि रहल, प्रत्युत भविष्य कालीन परिणामक स्पष्ट अंकन करबामे सहायक भेल। हमर धारण अछि जे भविष्यमे सेहो हिनक एकाकी एंव प्रहसन ओहिना प्रभाव अनुभूत हैत। कतिपय समस्या एहन अछि जे कोनो स्थितिमे कहियो नष्ट नहि हैत - जेना दलितपर भेनिहार अन्याय, अत्याचार, शोषण, पीड़न शिक्षाक परिवर्त्तित स्वरूप, भ्रष्टाचार, राजनीतिक भ्रष्टता, सामाजिक असमानता इत्यादिकेँ ओ एकांकी एवं प्रहसनमे युगीन सन्दर्भकेँ महत्व देलनि। ओ जीवन पर्यन्त अध्ययन-अध्यापनसँ सम्वद्ध रहलाह आ समाजक विभिन्न स्तरक विद्यार्थीकेँ अत्यन्त समीपसँ दैखलनि। अोकर कतिपय समस्यादि जे हुनक मनमे गड़लनि तकर ओ एकांकी एवं प्रहसनमे सजीव रूपेँ प्रस्तुत करबाक उपक्रम कयलनि। जेना कोनो कानून बनैत अछि सर्वसाधारणकेँ न्याय दियबाक हेतु, किन्तु कखनो-कखनो न्यायमे एतेक बेसी जड़ता आबि जाइत छैक जे ओहिसँ न्याय नहि भेटि पबैछ। अतएव परिवर्त्तनशील समाजक लेल आवश्यकता अछि जे कानूनमे सेहो समय-समयपर परिवर्त्तन हो। कैंसर अत्यन्त पीड़ादायक बिमारी छैक जकर औषधि नहि छैक। एकमात्र मृत्युक अतिरिक्त आन कोनो उपाय नहि छैक। तखन दोसर यथार्थ दया मरणक कानून हैबाक चाही।मैथिली दृश्य काव्यमे ई दस्तक देलनि प्रहसनकारक रूपमे। हिनक पहिल प्रहसन प्रकशित भेल टोपी। एहि प्रहसन अनुशीलनसे अवबोध होइछ जे एहिपर व्यंग्यसम्राट हरिमोहन झा (1908-1984) क प्रसिद्ध प्रहसन बौआक दाम (1946)क स्पष्ट प्रभाव अछि। फ्रेंच नाटकककार मौलियर (1622-1673) जहिना अपन नाटककमे हास्यक आयोजनक हेतु कतिपय साधनकेँ अपनौलनि तहिना ई अपन टोपी प्रहसनमे सेहो एकर आयोजन कयलनि, किन्तु स्थल-स्थलपर एहि जार्ज बनार्ड शाँ (1856-1950)क समान गम्भीर व्यंग्यक रूप परिलक्षित होइत अछि।
अाधुनिक पाठ्य-प्रणाली (1955)मे प्रहसनकार सरकारक आधुनिक शिक्षा नीतिक परिप्रेक्ष्यमे एक शिक्षकक हैसियतसँ जे अनुभव कयलनि तकरे पृष्ठभूमिमे एकरा परिवर्त्तित सामाजिक परिवेशमे प्रस्तुत कयलनि अछि। मैथिलीक इतिहासकार एकर गणना एकांकीक श्रेणीमे कयलनि अछि, किन्तु ई विशुद्ध रूपेँ प्रहसन थिक, जाहिमे हास्य-व्यंग्यक धारा प्रवाहित भेल अछि। प्राचीन ओ नवीन शिक्षा प्रणालीक परिप्रेक्ष्यमे प्रहसनकार एकर कथा भित्तिक निर्माण कयलनि अछि जे पाठक एवं दर्शककेँ मनोरंजन करबाक हेतु प्रचुर अवसर प्रदान करैत अछि। प्रचीन परम्परानुसार जतय साले साल धौत परीक्षोतीर्ण पंडित लोकनि दरभंगा महाराजक ओतय गौरवान्विक होइत छलाह ततहि आधुनिक पाठ्य-प्रणालीक परिप्रेक्ष्यमे परीक्षा तँ सत्यनाराण पूजाक समान संकरातिञेँ-संकरातिञेँ भ’ रहल अछि। एतय प्रहसनकार समसामयिक समाजमे प्रचलित सरकारक आधुनिक पाठ्य-प्रणालीमे प्रचलित शिक्षा नीतिपर व्यंग्य करैत छथि जखन देश स्वतन्त्र भेल छल, नव-नव योजना कार्यान्वित भेल जाहिसँ शिक्षा जगत सेहो बाँचल नहि रहि सकल। परिवर्त्तित परिवेशमे प्रहसनकारक व्यंग्य कतेक मर्मस्पर्शी थिक तकर अवलोकन तँ करू :
बचकानी :बापरे! से धरि सत्ते, छोट-छोट नेना सब हक्कर पेलैत
चढ़ले भानसमे सँ काँचे कोचिल खा क’ तीन-तीन
कोस दौड़ल जाइत अछि आ’ सुनैत छिऐक जे स्कूलपर
एकरा सबसँ टकुरी- चर्खा कटबैत जाइत छैक।
(समाधान, निर्माण प्रकाशन, लहेरियासराय, 1955, पृष्ठ-15)
स्वातन्त्र्योत्तर भारतमे नवीन शिक्षा-नीतिक तहत स्कूलपर बुनिआदी शिक्षाकेँ प्रश्रय देल गेलक तथा एकरा क्रियान्वित करबाक हेतु पाठ्यक्रममे अावश्यक परिवर्त्तन कयल गेल, जकरा समकालीन सामाजिक परिवेशमे स्वीकार करबाक स्थितिमे समाज एकदम नहि छल। समाजक एहन मानसिकतापर प्रहसनकार हस्य-व्यंग्यसँ युक्त धारा प्रवाहित कयलनि अछि:
बुद्वन :हौ तौं मौसम्मातक बेटा बेटा थिकाह जे चर्खा लेबह ओ
तँ गाँधी बाबा एकटा रास्ता देखा गेलथिन्ह जे राडँ,
मसोम्मात अपन गुजर करत, जकर जीवन पहाड़ छैक आ’
तोरा कथीक चिन्ता छह? कोन वस्तुक कम्मी छह ? (समाधान पृष्ठ-19)
आधुनिक पाठ्यप्रणाली प्रहसनक वैशिष्ट्य अछि जे प्रहसनकार सामाजिक परिवेशक यथार्थ मानसिकताक घटना चक्रक आधारपर हास्य-व्यंग्यक आयोजन क’ कए जतहि एक भाग समाजकेँ हँसौलनि अछि ततहि दोसर भाग ओकरा माध्यमे मानसिक स्थितिकेँ परिवर्त्तित करबाक प्रयास कयलनि अछि। उपर्युक्त प्रहसनक मंचन एम. एल. एकेडमी, लहेरियासरायक वार्षिकोत्सवक अवसरपर भेल जतय तत्कालीन बिहार सरकारक शिक्षा मंत्री हरिनाथ मिश्र उपस्थित रहथि। एकर निर्देशन प्रहसनकार स्वयं कयने रहथि।
एकांकी :
देशक पुननिर्माणक आवश्यकता एवं सामाजिक चेतनाकेँ ल’ कए मैथिलीमे एकांकी लिखनिहारमे एक सजग एकांकीकारक रूपमे मैथिली एकांकी द्वारपर दस्तक देलनि। एहि दृष्टिएँ हिनक निरक्षरता निवारक पाठ्शाला, श्रमदान, घरैया लूरि, ब्रह्मस्थान, हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदि, मलरवि, दिशा बोध एवं कौआ ल’ गेल कान, इत्यादि मैथिलीमे उल्लेखनीय एकांकीक रूपमे चर्चित अछि जाहि आधारपर हिनका मैथिलीक सफल एकांकीक रूपमे परिगणित कयल गेल छनि। हिनक उपलब्ध एकांकीक विश्लेषण नाटकीय तत्वक आधारपर करब समीचीन होयत। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी थिक तेँ ओकर मूल्यांकन सामाजिक दृष्टिएँ अपेक्षित अछि।
वस्तु :नाट्य तत्वक अन्तर्गत वस्तुक सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान अछि। वस्तु द्वारा एकांकीक गतिशील होइत अछि। रस-निष्पत्ति, चरित्रक सजीवता एवं गतिशीलताक लेल वस्तुक निर्माण कयल जाइत अछि। एहि दृष्टिएँ वस्तु एकांकीक प्रमुख तत्वक रूपमे स्वीकारल गेल अछि। एकरा अन्तर्गत कार्यावस्था वा व्यापार तत्व एकांकीकेँ सफल ओ सप्राण बनबाक उद्देश्यसँ कयल जाइत अछि। कार्यक गाति द्रुतगतिएँ बढ़यबाक दिशामे वस्तु-विन्यास श्रेष्ठ माध्यम थिक, कार्य एकांकीक प्रमुख साध्य थिक। नाटकीय सौष्ठवकेँ वस्तु-संगठन एवं व्यापक समुचित योजनाक रूपमे देखल जाइत अछि। एहि प्रसंगमे पाश्चात्य आलोचक ई.एम. फार्स्टरक कथन छनि जे कथानक घटनाक ओ कालक्रमानुसार वर्णन थिक जाहिमे कार्य-कारण-सम्बंधपर विशेष बल रहैत अछि। नाटकक वा एंकाकीमे संघर्ष वा द्वन्द्वक महत्ता सर्वोपरि अछि। तेँ वस्तु विन्यासक वा एकांकीमे संधर्ष वा द्वन्द्वक महत्ता सर्वोपरि अछि। तेँ वस्तु विन्यासक अन्तर्गत कथानकपर दबाब ओकर प्रतिक्रियाक अंकन कयल जाइछ। वस्तु-विन्यास लेखकक उद्देश्यक अनुरूप क्रमवद्धता एवं विस्तार ग्रहण करैछ। अतएव एकांकीकार वस्तु-विन्यास करबा काल जीवनमे घटित भेनिहार समसामयिक जीवनसँ सम्वद्ध रहैत छथि, कारण मानव जीवनसँ विच्छिन्न कोनो साहित्य उत्कृष्ट नहि भ’ सकैछ।
निरक्षता निवारक पाठशाला (1955)मे एकांकीकार जाहि समसामयिक समस्याक उपस्थापन एहिमे कयलनि अछि तकर संकेत ओ पचास वर्ष पूर्वहि कयने रहथि तकर प्रतिरूप बीसम शताब्दीक नवम दशकमे सरकारक माध्यमे निरक्षरकेँ साक्षार बनयबाक दिशामे प्रयास भेल अछि। सरकार वयस्क शिक्षा योजनापर करोड़क करोड़ रूपैया खर्च करैत जा रहल अछि जकर मूल उद्देश्य छैक जे कोहुना प्रत्येक भारतीयकेँ साक्षर बनाओल जाय। साहित्य-चिन्तक कतेक दूरदर्शी होइत छथि तकर वास्तविकताक परिचय एहि एकांकीक प्रणयनसँ पाठक वा दर्शककेँ उपलब्ध होइत छनि। समसामियक परिवेशमे सरकार वयस्क शिक्षा नीतिकेँ क्रियान्वित करबाक हेतु नुक्कड़ नाटकक आयोजन करैत अछि। जनसामान्यकेँ एहि दिशामे आकर्षित करबाक कतिपय प्रलोभन दैत अछि। तथापि ओकर कतेक परिणाम ओकरा भेटि रहल छैक तकरा स्पष्ट करबाक प्रयोजन नहि, प्रत्युत्त अनुभव करबाक योग्य थिक। किन्तु एकांकीकार समाजक एहि ज्वलन्त समस्याक सम्बन्धमे कतेक पूर्व ध्यानाकर्षित कयने छलाह तकर स्पष्टीकरण उक्त एकांकीक मननसँ स्पष्ट भ’ जाइत अछि। नेना बाबू ने तेना सोने झाकेँ शिक्षित करबाक निमित्त प्रयासरत भेलाह जकर फलस्वरूप ओ शिक्षित भ’ गेलाह। एकरा माध्यमे एकांकीकार एहि विषयकेँ उद्घाटित करबाक उपक्रम कयलनि अछि जे देशक उन्नति तखने सम्भव अछि जखन प्रत्येक भारतीय शिक्षित क’ कए ज्ञानक ज्योति प्रज्वलित क’ कए एकर वास्तविक महत्व बुझथि। तखने मातृभूमिक स्वतन्त्रताक वास्तविक अर्थ बुझबामे तथा अपन अधिकार ओ कर्त्तव्यक पालनमे सक्षम भ’ सकताह अन्यथा सब प्रयास निरर्थक अछि। एहि निमित्त आवश्यक अछि जे जनसामान्यकेँ शिक्षित कयल जाय। एहि प्रसंगमे चतुर्भुजक कथन छनि:
जतेक पढ़ल लिखल लोक छी से यदि प्रतिज्ञा करी आ’ कम-सँ
कम दस व्यक्तिकेँ शिक्षित बनाबी। एक सँ दस, दस सँ सै,
सै सँ हजार तुरन्त भ’ जैत। तैं हेतु साँझखन जे समय
घूड़लग बितबैत अछि से एही काजमे लगाबी तँ कोन क्षति। (समाधान, पृष्ठ-7)
उपर्युक्त वातावरणक पृष्ठभूमिमे एकांकीकार समाजक समक्ष एक प्रतिमान उपस्थित कयलनि अछि जे शिक्षित समाज भ’ कए अपन सामाजिक दायित्वक संगहि-संग राष्ट्रीय दायित्वकेँ बुझि देशक प्रति अपन त्याग कर्तव्यकेँ बुझथि। ई तखने सम्भव भ’ सकैछ जे लोक अपन अधिकार ओ कर्त्तव्यक प्रतिपूर्ण साकांक्ष भ’ पौताह अन्यथा ई संभव नहि। एहि दृष्टिएँ एकर कथानक समाजकेँ अपन अधिकार ओ कर्तव्यक प्रति दिशा-बोध करबैत अछि।
आधुनिक परिवेशमे दिन प्रतिदिन समसामयिक समाजक व्यक्ति आराम तलब बनल जा रहल अछि। ओ जेना श्रमक महत्वसँ अपरिचित भ’ गेल अछि। व्यक्ति-व्यक्तिमेे एतेक वेसी ऊर्जा छैक जे ओ सम्भव कार्य सेहो सम्भव क’ सकल अछि। तेँ मानव जीवनमे श्रम सर्वोपरि साधन थिक। एकांकीकार श्रमदान (1955) एकांकीमे समाजकेँ श्रमोन्मुख बनयबाक उद्देश्यसँ, शैशवावस्थहिसँ श्रमक महत्वकेँ बुझयबाक हेतु एहि एकांकीक रचना कयलनि। स्वातन्त्र्योत्तर भारतक सर्वतोमुखी विकासक शिक्षाक नव नीतिमे एकर उपयोगिताकेँ उद्घाटित करबाक उद्देश्यसँ अाधुनिक पाठान्तर्गत बुनियादी शिक्षाकेँ महत्व देबाक उद्देश्यसँ श्रमदान करबाक प्रवृत्ति जगेबाक लेल एहि एकांकीक ओ रचना कयलनि। एकरा माध्यमे आर्थिक स्वतन्त्रता तँ आसानीसँ भेिट जा सकैछ। अतएव तन-मन, धनसँ अपन मातृभूमिक सेवामे तत्पर भ’ जयबाक प्रयोजन अछि। व्यक्ति-व्यक्तिमे एहि भावनाकेँ जगयबाक हेतु जे प्रयास भेल ओ तँ अपन स्थानपर रहल, किन्तु विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तरपर ए.सी.सी., एन.सी.सी., एन.एस.एस., सदृश योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक लेल स्थापना कयल गेलैक जकर मूल उद्देश्य छलैक श्रमदान करबाक प्रवृत्ति जगेबाक तथा भावी संतनिकेँ शेशवास्थाहिसँ अनुशासनक सूत्रमे बान्हल जाय जे भविष्यक हेतु लाभ प्रद भ’ सकैछ तेँ तँ ज्ञान-धन कहैछ:
देशक एक-एक गोटेसँ निवेदन अछि जे निर्माण कार्यमे
तन-मन-धनसँ सहायता करू। श्रमदानक भुखलि
भारत माता अहाँक आह्वान कै रहल अछि।(सामाधन, पृष्ठ -27)।
एहि प्रवृत्तिक उदय भेलासँ देशक नव-निर्माण निश्चित रूपेँ हैबाक सम्भावना अछि। सरकार एहि शिक्षा नीतिक सराहना करैत छनि आ जे स्कूल एवं कालेजमे पढ़निहारपर दबाव वा जनमानस उत्साहित भ’ कए एहि दिशामे कार्यरत हैताह। तखन सुन्दर लालक कथन छनि:जे सोचलक ई बात बड़ बुधियार छल। देखहक आब पढ़ैत
छैक बारहोवर्णक धियापूता, सबकेँ नोकरी गेटतैक नहि,
तखन सब बेकार भेल गामेपर एहि खोन्हीसँ ओहि
खोन्ही ढ़हनाइत फिरैत छल से तँ नहि ने हैत। (समाधान, पुष्ठ-32)।
अनादि कालहिसँ समाज दुह वर्गमे विभाजित रहल अछि जकरा धनीक-गरीब वा शोषक-शोषित वा सम्पन्न-विपन्न आदि विविध संज्ञासँ विभिन्न समयमे सम्बोधित कयल जाइत रहल अछि। सामाजिक विषमता सबसेँ ज्वलन्त समस्या थिक जकर फलस्वरूप समाजक विभाजन भ’ गेलैक नया समाजन्क वर्त्तमान स्वरूप विलुपित भ’ गेल। आर्थिक परिस्थिित वा हित-सम्बन्धक आधारपर समाज मुख्यत: तीन श्रेणीमे विभाजित अछि। उच्च वर्ग, मध्य वर्ग ओ निम्न वर्ग। उपर्युक्त आधारपर समाजक अन्तर्गत वर्ग वैषम्यक आगमन भेलैक। सामाजिक वातावरणक उपर्युक्त पृष्ठभूमिमे हिनक ब्रह्मस्थान एक उल्लेखनीय एकांकी थिक, जाहिमे एकांकीकार शोषित वा गरीब वा विपन्न वर्गपर होइत अत्याचारक वास्तविकतासँ अवगत करौलनि अछि। ग्रामीण परिवेशमे एहन परम्परा रहल अछि जे गामक डिहबाक अर्थात ब्रह्मस्थान गामक न्यायालय प्रतीक मानल जाइत छल, जतय नीक अधलाहक विश्लेषण क’ कए दोषीकेँ दण्ड देल जाइत छलैक, जकर ओ साक्षी होइत छलाह। समाजक आचार संहिताक ओ प्रतीक होइत छलाह। ब्रह्मस्थान जतय गाममे रहनिहारक सुख-दुःखक समान रूपेण सहभागी हाेइत छथि। समाज कल्याण जनिक सर्वप्रमुख वैशिष्ट्य छनि तथा सामाजिक कल्याणमे अपन कल्याण मानैत छथि। एहन न्यायालयमे बैसि क’ लोक दूधक दूध आ पानिक पानि न्याय करबामे वस्तुतः सक्षम होइत छथि। वैह डिहबार समाजमे सतत पूजित होइत रहल छथि तथा समाज हुनक सम्मान करैत आयल अछि।
बदलैत समाजिक परिवेशमे एहन मान्यतामे परिवर्त्तन भेल जकर परिणाम भेल अछि जे स्वातंत्र्योत्तर भारतमे राम राज्यक स्थापनाक उद्देश्यसँ ग्राम पंचायतक स्थापना कयल गेलैक तथा ओकर प्रधान मुखियाक हाथमे गामक न्याय करबाक उत्तरदायित्व देल गेलनि। मुदा मुखिया न्याय की करैत छथि ओ तँ अन्यायक प्रतीक बनि क’ अपन राक्षसी प्रवृत्तिसँ समाजपर अत्याचार करैत छथि। एही यर्थाथताक पृष्ठभूिममे एकांकीकार ब्रह्मस्थान एकांकीक कथाभित्तिक निर्माण कयलनि अछि।
गामक मुखिया हरिवंश बाबूकेँ युग-युगान्तरसँ दीन-हीन जनमानसकेँ शोषित करबाक अभ्यास छनि। सुगियाक बेटा मखना विगत अठारह दिनसँ ज्वराक्रान्त छैक जे हुनक शोषण नीतिक फलस्वरूप अकस्मात् काल-क्वलित भ’ जाइत अछि। सुगियाक मात्र एतबे अपराध छैक जे समयपर हुनका ओतय पानि भरबाक हेतु नहि जाइत अछि, जकर इनाम ओकरा भेटैत छैक मारि-गारि सुनबैत निर्ममतापूर्वक पीटब ओ अपमानित करब। सुगियाक अन्घभक्त पति पचकौड़ी अपन पुत्रक मृत्युसँ आहत भ’ परम्परागत न्यायालयक प्रतीक ब्रह्मस्थानक अस्तित्वकेँ मेटैयबाक लेल कटिबद्ध अछि, किन्तु ठकाइक बात मानि अपन विचारकेँ बदलि दैछ। अन्ततः ओही ब्रह्मस्थानमे गामक सब क्यो उपस्थित भ’ वर्त्तमान मुखिया हरिवंश बाबूकेँ पदच्युत क’ कए एक नव मुखियाक चुनावक नारा दैत अछि।
एकांकीकार शोषित वर्गक बीच युगयुगान्तरसँ चल आबि रहल आक्रोशसँ कथानकक निर्माण कयलनि अछि। प्रतिपाद्य एकांकीमे मूलत: दुइ विचारधारासँ संघर्षरत अछि। एक तँ परम्परासँ चल अाबि रहल बहियाक प्रति शोषक वर्गक नृशंस हत्या दोसर भाग समसामयिक सामाजिक परिवेशमे प्रचलित चुनाव-पद्धति तथा आधुनिक मुखियाक क्रियाकलापक वास्तविकतापर जे अन्हरजाली छल तकरा हटयबाक उपक्रम कयल गेल अछि। परिवर्त्तित परिवेशमे समाजमे विद्रोहक स्वर अत्यन्त तीव्र भ’ गेल अछि तेँ सामाजिक परिवेशकेँ परिवर्त्तित करबाक प्रयोजन अछि। एकंाकीकार इएह प्रवृत्ति छनि।
कतोक शताब्दीक गुलामीक पश्चात् भारतकेँ स्वतन्त्रता प्राप्त भेलैक। देशक नव-निर्माणक हेतु कतिपय योजनादि क्रियान्वित करबाक दिशामे सरकार प्रयासोन्मुख भेल। सरकारक दिससँ सेहो कतिपय योजनाकेँ कार्यरूप देबाक हेतु प्रयास कयल गेल। एकर एक मात्र उद्देश्य छलैक कोहुना व्यक्ति-व्यक्ति जे गरीबीक मारिसँ कुहरि रहल अछि ताहिसँ मुक्ति दियबाक दिशामे प्रयास कयल जाय। अधिकांश ग्रामीण गामक परित्याग क’ शहरोन्मुख हैबाक दिशामे प्रयास करय लागल। तकर भीषण दुष्परिणाम भेलैक जे गामक गाम जनशून्यताक कगारपर पहुँचय लागल। समाजक समक्ष एक विषम स्थिति उत्पन्न होमय लगलैक। एहना स्थितिमे ग्रामीण परिवेशकेँ बचयबाक लेल जनमानसमे एहन वातावरणक निर्माण कयल गेल जे ओ ओही परिवेशमे रहि अपन जीवकोपार्जनार्थ अपन कौलिक धन्धाकेँ पुनः स्वीकार करय। एकर दूटा प्रभाव पड़ितैक। एक तँ लोक अपन गृह-उद्योग दिस उन्मुख होइत आ दोसर शहरी परिवेशपर अनावश्यक दबाब नहि पड़ितैक।
एहि परिप्रेक्ष्यमे हिनक एकांकी घरैया लूरि (1958) एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थिक। विसुनदेव ग्रामीण परिवेशक परित्याग क’ विसेस्सरक संग कलकत्ता सदृश महानगरीय परिवेशमे रोजगारक तलाशमे जयबाक आकांक्षी अछि। मुदा विसेस्सर शहरी परिवेशसँ परिचित रहलाक कारणेँ ओकर वास्तविक कठिनाइसँ अपन बाल संगी मित्र विसुनदेवकेँ एहन निर्णय करबासँ सर्वथा मना करैत अछि :
हम सौचैत छिऔक जे तोरा की करक चाहिअउ तोहूँ नीक
जकाँ सोचि ले। (वैदही, नवम्बर-दिसम्बर 1958, पृष्ठ -407)
विसेस्सर, अपन नेक सलाह दैत छैक जे अपन पुश्तैनी अथार्त् करघा चला क’ अपन परिवारक संग, सुखी सम्पन्न रहि सकैत अछि। एकर ओ समुचित प्रबन्ध सेहो क’ दैत छैक, जकर परिणाम होइछ जे विसुनदेव गामहिमे रहि अपन रोजगार क’ कए सुखी-सम्पन्न भ’ जाइत अछि। विसुनदेवक देखा-देखी गोविन्द मिस्त्री, सैनी ठठेेरी एवं झिंगुर चमार द्वारा निर्मित पलंग, झालि ओ ढ़ोलक बाजारमे छुहुक्का उड़ि जाइत अछि। एकांकीकारक मान्यता छनि, जे आधुनिक शिक्षा प्रणाली व्यक्ति - व्यक्तिकेँ रोजगार मुहैया नहि करा सकैछ। जा धरि व्यक्ति पुश्तैनी धन्धाकेँ नहि अपनाओत ता धरि ओकर सामाजिक परिवेश कोनो तरहक सुधारक सम्भावना नहि दृष्टिगत होइछ। अतएव एकांकीक मूलस्वर छैक अपन कौलिक धन्धाक अनुरूपहि प्रशिक्षित भ’ कए काज करब। तखने हमर सामािजक परिवेश परिवर्त्तित भ’ सकैछ तथा व्यक्ति-व्यक्ति सुखी सम्पन्न बनबाक कामनाक पूर्ति भ’ सकैछ।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीक रामराज्यक सपना एकरे फलस्वरूप साकार भ’ सकैछ। हमर प्रचीन सामाजिक व्यवस्थामे प्रत्येक जातिक कार्य ओकर सामाजिक परिवेशानुसारेँ विभाजित छलैक, तेँ वेरोजगारीक समस्या नहि उत्पन्न होइत छलैक। वर्णाश्रमक जे व्यवस्था हमर समाजमे कयल गेल छलैक तकर मूल परिकल्पना इएह छलैक। किन्तु परिवर्त्तित परिवेशमे लोक ओहिसँ विमुख भ’ अछि तेँ वेरोजगारीक समस्या समाज ओ सरकारक समक्ष्ा उपस्थित भ’ गेल गेल अछि। प्रतिपाद्य एकांकीमे एकांकीकार मूल रूपेँ कुटीर-उद्योग एवं गृह-उद्योग दिस जन सामान्यक ध्यानाकर्षण कयलनि अछि। अत्याधुनिक परिवेशमे समाजमे, देशमे, पुननिर्माण तथा सामाजिक चेतनाक आवश्यकता अछि। एकांकीकार अपन व्यक्तिगत जीवनक व्यावहारिक अनुभवक आधारपर समाज ओ देशमे प्रचलित योजनान्तर्गत घरैया लूरिक केन्द्र-विन्दुमे निरूपित कयलनि अछि। ओ समाजक ओहि पक्ष दिस संकेत कयलनि अछि जे अत्याधुनिकताक चक्रवातमे पड़ि़ कौलिक क्रिया-कलापके तिलांजलि द’ कए शहरोन्मुख हैबाक आकांक्षी भ’ गेल अछि। किन्तु प्रयोजन अछि जनमानसमे दिशा-निर्देशनक जकर फलस्वरूप ओकर कायाकल्प कयल जा सकैछ। उचित दिशा बोधक फलस्वरूप विसुनदेव, गोविन्द मिस्त्री, सैनी ठठेरी ओ झिंगुर चमार समािजक परिवेशमे रहि क’ अपन आर्थिक स्थितिकेँ सुधारबामे सक्षम भ’ सकलाह आ उन्नतिक शिखरपर चढ़ि समाजक अन्य व्यक्तिकेँ अपन कौलिक व्यवसाय दिस उन्मुख कयलनि।
मलरविमे एकांकीकार हास्य-व्यंग्यक अद्भूत धारा प्रवाहित कयलनि अछि। जहिना काव्यक क्षेत्रमे एहि प्रवृत्तिक प्रस्फुटन भेल अछि तहिना ओकर वास्तविक स्वरूप एहि एकांकीमे स्पष्ट अछि जे पण्डित लोकनि झूठक प्रपंच रहि सर्वसाधारणक शोषण करैत आयल छथि। एहिमे राउत लोकनिक तथा पंडित लोकनिक घूर्त्तताकेँ अत्यन्त मनोरंजक ढ़ंगे एकांकीकार प्रस्तुत कयलनि अछि।
स्वातन्त्र्योत्तर भारतक प्रमुख प्रवृत्ति जनसामान्यक समक्ष्ा आयल अछि भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचारी प्रवृत्ति हमर जीवनमे एहि प्रकारेँ प्रवेश क’ गेल अछि जे ओहिसँ मुक्तिक मार्ग नहि भेटि रहल अछि। जीवनमे डेग-डेगपर एकर नग्न रूप स्पष्ट अछि तथा समाजकेँ मुक्तिक मार्ग नहि भेटि रहल छैक। जँ परिचमी-एवसर्ड नाटकक लक्ष्य द्वितीय महायुद्वोत्तर विसंगतिक चित्रण करब छल तँ स्वातन्त्र्योत्तर भारतमे उपजल करब चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार एवं नूतन अन्ध धार्मिकतापर तीक्ष्ण-व्यंग्यक प्रहार करब मैथिली एकांकीकारक लक्ष्य बनि गेल छनि। अतएव स्वातंत्र्योत्तर भारतमे उपजल चरित्र हीनता एवं भ्रष्टाचारक केन्द्र-विन्दुपर तीक्ष्ण-व्यंग्यक प्रहार कयल गेल अछि।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे हिनक हाकिमक हाकिम वा ननदिओक नानदिमे स्पष्ट झाँकी भेटैत अछि। एहिमे एक निर्धन संस्कृत पाठशालाक शिक्षक चित्रक माध्यमे एकांकी ओहि भ्रष्टाचारी डिप्टीक चरित्रकेँ उपस्थित कयल गेल अछि जे आकंठ भ्रष्टाचारमे डूबल अछि। डिप्टी साहेब भ्रष्टाचारक प्रतीक छथि जनिक निर्दयतासँ शिक्षक समुदाय बेचैन रहैछ, किन्तु ओ एहि विषयकेँ सर्वथा बिसरि जाइत अछि जे ओकरो ऊपर कोनो अधिकारी छैक। संस्कृत पाठशालाक शिक्षक विद्यालयसँ अनुपस्थित रहलाक कारणेँ पाँच टाका घूस डिप्टीकेँ गछैत छथि, किन्तु टाकाक अभावक कारणेँ शीघ्रहि अदा करबासँ वंचित रहैत छथि। स्कूलक वार्षिकोत्सवमे पण्डित जी चेयरमेन साहेबक सोझॉं रूपैया दैत छथि। एहि घटनासँ डिप्टी साहेब आहत भ’ जाइत छथि, कारण ओ हुनक हाकिम छथिन। जहिना पारिवारिक जीवनमे ननदिक छैक, ओ अत्याचार करबामे कनेको कुंठित नहि होइछ। अतएव एकांकीकार अत्यन्त नियोजित ढ़ंगे सामाजिक परिप्रेक्ष्यमे घटित भेनिहार घटनाक चित्रांकन कयलनि अछि एहि एकांकीमे।
निर्धनता सामाजिक जीवनक अभिशाप थिक। जतय प्राचीन समयमे समाजवादी समाज छल ततय आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे व्यक्तिवादी समाजक स्थापना शनै:-शनै भ’ रहल अछि। एकर श्रेय छैक पश्चिमी संस्कृति ओ सम्यताकेँ। वर्त्तमान शताब्दीक उत्तरार्द्धमे सामाजिक परिवेशमे एतेक शीध्रतासँ परिवर्त्तन भ’ रहल अछि जे सामाजिक स्वरूप परिवर्तित भ’ गेल अछि। व्यक्ति आब एतेक बेसी आत्म केन्द्रित भ’ गेल अछि जे एकैसम शताब्दीक प्रवेश करैत-करैत अपन प्राचीन परिवेशक परित्याग करबाक हेतु विवश भ’ गेल अछि। हमर सामाजिक परिवेश कतेक दूषित भ’ गेल अछि तकर वास्तविकताक चित्रण एकांकीकार कयलनि अछि दिशाबोध एकांकीमे। सुन्दर युवावस्थाक प्रचण्ड बिहाड़िमे सामाजिक परिवेश परिवर्त्तित भ’ जयबाक कारणेँ एहन दिग्भ्रमित भ’ गेलाह जे अपन वृद्ध माता-पिता पर्यन्तकेँ अपन सुख-सुविधाक जिनगीमे बाधक मानैत छथि। किन्तु हुनक पत्नीपर परम्पराक छाप एतेक वेसी छनि जे आधुनिक परिवेशमे रहितहुँ ओ अपन मर्यादाक पृष्ठ पोषिकाक रूपमे जन सामान्यक समक्ष्ा प्रस्तुत होइत छथि। इएह कारण अछि जे हुनका अपन ससुर एवं सासुक प्रति असीम श्रद्धा ओ सद्भावना छनि। एकर पालन करबाक हेतु ओ अपन पतिक विरोध करैत छथि :
हम अहाँक गार्जियन किएक रहब, मुदा जे माय - बाप एतेक
सिद्धति सहि क’ पोसलनि - पाललनि, लिखौलनि - पढ़ौलनि,
ताहि मायक वास्ते दवाइ लय अहॉं कहैत छिएेक बूढ़ा
झीटय चाहैत छथि आ सिनेमामे पाइ फेकय जाइत छी से
उचित थिकैक। (मिथिला मिहिर 16 जुलाई, 1978)
सुन्दर पत्नीक मानसिक दशाक विश्लेषण करबामे सर्वथा असमर्थ छथि, कारण आधुनिकताक अन्हरजाली हुनका लागल छनि। तेँ पत्नीकेँ एकाकी छोड़िकेँ’ सिनेमाक लाथेँ घरसँ पड़ा जाइत छथि। एकांकीकार पति-पत्नीक वैचारिक भिन्नताकेँ यथार्थक घरातलपर आनि सामाजिक परिवेशमे बदलैत मानसिकताक विश्लेषण करबामे सफल भ’ पौलनि अछि। एतय ओ सामान्य पाठककेँ सोचबाक हेतु बाध्य करैत छथि जे अल्प वेतन भोगी कर्मचारीक मानसिकता आधुनिक सामाजिक परिवेशमे केहन भेल जा रहल अछि। ई मानसिकता मात्र किरानीक नहि, प्रत्युत समपूर्ण समाजक भ’ गेल अछि। सुन्दरकेँ परिस्थितिक वास्तविकताक ज्ञान तखन होइत छनि जखन ओ अपन बालसंगीकेँ नूनूकेँ अपन वृद्ध माता-पिताक प्रति अगाध आत्मीयता ओ श्रद्धा देखैत छथि जे वस्तुतः अनुकरणीय एवं सराहनीय अछि। पत्नीकेँ प्रताडि़़त क’ कए ओ नूनूक ओतय उपस्थित होइत छथि। नूनू एम्.ए. इन फिलॉसिपी छथि तथापि ओ नौकरीकेँ परामुखापेक्षी मानैत छथि, की इएह आधुनिक सभ्यता वा सामाजिक परिवेशक उपज थिक।
सामाजिक परिवेशमे एहन लोकक अभाव नहि जे वस्तुस्थितिक यथार्थतासँ बिनु अवगत भेनहि ओकर सत्यापनक पाछाँ अपस्याँत भ’ जाइत अछि। एकांकीकार कौआ ल’ गेल कान मे एहने एक घटनाक नियोजन करबाक उपक्रम कयलनि अछि। डाक्टरक पुत्र मनोज तथा धन्नूक पुत्र मोहनक विवाह अपहरण क’ कए करबाक अपवाहसँ दुनू मित्र किंकर्त्तव्यविमूढ़ भ’ जाइत छथि, किन्तु वास्तविकताक रहस्योद्घाटन होइत समग्र चिन्ता प्रसन्नतामे परिवर्त्तित भ’ जाइछ।
हास्य-व्यंग्यसँ उब-डूब करैत हिनक एक एकांकी थिक वाइचान्स। शिक्षा प्रकाशसँ कोसो दुर रहलाक कारणेँ बिजलीकान्त कोना अपन पिताकँ ठकलनि तकर यथार्थतासँ परिचय करौलनि अछि एकांकीकार। मधुकांत पुत्रक परीक्षोत्तीर्ण भेलाक कारणेँ सुनता सत्यनाराण पूजाक धूमधामसँ आयोजन कयलनि, किन्तु यथार्थ वस्तु स्थितिसँ अवगत भेलापर हुनक मानसिक स्थिति कोन तरहक भ’ जाइत छनि तकरे एहिमे उद्घाटित कयल गेल अछि।
पात्र :
पात्र एकांकी प्रणेताक मानसिक सन्तान होइछ। ओकरामे रक्त बीज संचरण करैछ। ओहिमे संकल्प-विश्वासक गोत्रता तथा जीवन दर्शनमे वंशजता रहैछ। ओकर समस्त अभिजात्य कौलिक रहैछ जकर सम्पूर्ण वर्ण शुद्व सेहो रहैछ। समग्रत: अपन प्रणेताक जीवन्त रंग-साक्षत्कारक जीवन्त रचना थिक। ओहिमे रागात्मकता, आसंग सृजन-संकल्पना, नाट्यानुभव, रंग- संस्कार तथा रंग-राशिक तात्विक संधातसँ उद्भूत रंगपुत्र अछि। एकांकी प्रणेताक आन्तरिक रंगयज्ञक रंग कुण्डसँ उत्पन्न तथा वरदान रूपमे प्राप्त रंग सिद्धि रंगवंशी रंगकुमार अछि। एकांकी प्रणेताक रंग प्रक्रियामे रचनामे पात्र केहन होइछ? ओ रंग-प्रक्रियामे कतयसँ अबैत अछि? एहि प्रश्नसँ बँचि क’ आगाँ जायब युक्ति संगत नहि होयत। एखन धरि बहुधा पात्रक गुण-प्रकार वर्ग तथा ओकरा संगक बात होइत अबैत हो, अधिकांशतः पृष्ठपेषण होइत अछि। पात्रक रंग प्रक्रियापर बड़ कम विचार भेल अछि। पात्र तँ रचनाकारक मानसिक सन्तान होइछ। रचनाकारक जीवनगत प्रतिवद्धतामे पात्रक मर्यादा थिक। ओ सेहो जीवनक प्रति ओहिना प्रतिवद्ध होथि।
हिनक पात्र योजनापर दृष्टिपात करैत छी तँ स्पष्ट भ’ जाइछ जे ओ मध्य एवं निम्नवर्गीय सामाजिक परिवेशक प्रतिनिधित्व करैत देखल जाइत अछि जकरा समक्ष रोजी-रोटीक संगहि-संग अपन जीवको्पार्जनार्थ विविध समस्या सुरसा सदृश मुह बौने ठाढ़ छैक। एहि दृष्टिएँ ब्रह्मस्थान एवं घरैयालूरिक अधिकांश पात्र निम्न गमैया सामाजिक परिवेशक प्रतिनिधत्व करैत अछि। ननदिओकेँ ननदि, मलरवि, दिशाबोध, वाइचान्स, कौआ ल’ गेल कानक अधिकांश पात्र सेहो ओही श्रेणीमे अबैत छथि। मध्यम वर्गीय श्रेणीमे घरैयालूरिक महेन्द्र बाबू ब्रह्मस्थानक हरिवंश बाबू एवं ननदिओकेँ ननदकि चेयरमैन प्रतिनिधित्व करैत छथि। उच्च वर्गक पात्रक अभाव हिनक एकांकीमे अछि।
वस्तुत: हिनक पात्रक संघर्षमे सामाजिक समायोजन (सोसल एडजस्टमेण्ट)क भावना सन्निहित अछि। हिनक आत्मसम्मानी पात्र अपन प्रकृतिक विरोधी नकारात्मक प्रवृत्तिक सामाजिक प्रवत्तिसँ अपन मेल नहि बैसा पबैत अछि। अतएव समायोजनक स्थितिमे ओ मानसिक आशांतिक अनुभव करैत अछि जे कोहुना ओहि मानसिक तनावसँ मुक्ति भेटय एकरा हेतु ओ अपन समायोजनक कारण भूत विरोधी प्रवृत्तिकेँ परास्त करय चाहैछ। एहि प्रयासमे ओकर समाज-विरोधी प्रवृत्तिसँ संघर्ष करय पड़ैत छैक।
एहि प्रकारेँ आत्मसम्मानी पात्रक संघर्ष सामाजिक समायोजनक दिशामे कयल गेल एक प्रयास थिक। इएह हुनक अन्त:स्थ सामाजिक प्रेरणाकेँ व्यावहारिक क्षेत्रमे आनि क’ उपस्थित क’ दैत अछि। एहन संघर्षमय प्रयासक फलस्वरूप आत्मसमानी पात्रक व्यक्तित्व निर्मित्त भेल अछि जे हिनक मिथिलांचलक समाजक एकांकीक अनुपम देन थिक। ब्रह्मस्थानक पचकौड़ी एही श्रेणीक पात्र अछि जे अपन आत्म-सम्मानक रक्षार्थ ब्रह्मस्थानकेँ कोड़ि क’ हुनक अस्तित्वकेँ मेटैबाक लेल तैयार अछि।
सत्ता आँखिक सोझॉं नव-दर्शनक निर्माण करैत अछि जहिमे एकमात्र स्व रहैत अछि। स्वार्थान्ध सत्ताकेँ जीवित रखबाक हेतु मदति कयनिहार व्यक्ति आत्मकेन्द्रित बनि जाइत अछि। किन्तु ओकरा संधर्ष ओ करैत अछि जकरा लोकतन्त्रमे विश्वास एवं निष्ठा छैक। जे व्यक्ति सत्ताक विरोधमे नारा लगबैत अछि तकरापर विपत्तिक पहाड़ टूटि पड़ैत छैक। तथापि नैतिकता आ सत्ताक बलपर व्यक्तिक मनोबल बढ़ैत छैक आ असत् वृत्तिक संरक्षक कालजयी सेहो सद्वृत्तिसँ डेराय लगैत अछि। एहि प्रकारक जन-जागृतिक कार्य एकमात्र साहित्ये द्वारा संभावित अछि। हरिवंश बाबू गामक मुखिया छथि तेँ हुनक आज्ञाक बिना गामक एक पात पर्यन्त नहि हिल पबैत अछि। ओ एतेक वेसी स्वार्थान्ध छथि जे ओ अपन स्व क पूर्तिक निमित्त निरीह सुगियापर प्रहार करबामे कनेको कुठित नहि होइत छथि, कारण ओ हुनकर बेटा नूनू बचबाक आज्ञाक उल्लंघन कयलक अछि, जाहिसँ हुनका चोट पहुँचैत छनि। यद्यपि ओकर बेटा मखना अठारह दिनसँ ज्वराक्रान्त छैक माया, मोह, तथा ममता नामक कोनो वस्तु हुनक अन्तरात्मामे नहि छनि। तेँ निर्दयता पूर्वक व्यवहार करैत छथि जकर परिणाम अत्यन्त भयावह हाेइछ।
जाहि ग्रामांचलमे अशिक्षा एवं अन्ध श्रद्धाक प्रभाव रहत ओतय निर्धनता तथा शोषणक परम्परा निश्चित रूपेँ रहतैक। अधंश्रद्धाक प्रतीक छथि पंचकौड़ी तथा हुनक पत्नी सुगिया जे ब्रह्मस्थानपर कबुला पाती क’ कए मखनाक नीके होयबाक कामना करैत अछि। शोषित वर्गमे एकता अवश्य अछि तथापि ओ अन्यायसँ डेरायल रहैत अछि, किन्तु ओहिसँ मुक्त होयबाक इच्छा अवश्य रखैत अछि। मुदा सामाजिक परिवर्त्तित परिवेशमे से सम्भव नहि भ’ पबैत अछि।
वर्त्तमान परिवेशमे एक दोसराक उपयोग करबाक पाछॉं बेहाल अछि। एहि लेल कोनो तरहक योग्यता अपेक्षित नहि, प्रत्युत एक हथकण्डाक प्रयोजन अछि। मुदा एतबा निश्चित अछि जे लोक अपन लाभक लेल आेकर उपयोग दोसरापर करैत अछि। ई परम्परा समाजमे सतत चलैत रहैत अछि। एक बेर आक्टोपसक शिंकजामे पड़ि़ गेलापर वापसीक मार्ग अवरूद्व भ’ जाइत छैक। घरैयालूरिक महेन्द्र बाबू आ ब्रह्मस्थानक हरिवंश बाबू एही श्रेणीक पात्र छथि। जतय महेन्द्र बाबू अहि श्रेणीक प्रतिनिधि छथि जे शोषित वर्गक शोषण सूदिपर रूपैया लगा क’ करैत छथि, आ समाजक साइलॉक सदृश छथि जे खदुकाक कोंढ़-करेज पर्यन्त खोरैैबामे कनियो कुठित नहि होइत छथि ततहि हरिवंशबाबू एक अहंकारी व्यक्ति छथि, जे शोक वर्गपर अत्याचार करैत छथि। यद्यपि शोषित समाज हुनका सभक गतिविधिसँ पूर्णरूपेण परिचित अछि तथापि बेर-घड़ीपर वैह काज अबैत छथिन तेँ विरोध करबाक प्रश्ने ने उठैछ।
अत्यल्य पात्रक प्रयोग क’ कए दिशाबोध एकांकीक रचना एकांकीकार कयलनि। एहिमे कुल चारि पात्र अछि। नूनू, हुनक वृद्ध पिता, सुन्दर तथा हुनक युवती पत्नी। हमर सामाजिक परिवेशक उक्त चारू पात्र मानसिक विश्लेषण करबामे सक्षम भेलाह अछि। आधुनिक सामजिक परिवेशक प्रतीक छथि सुन्दर जे भौतिकवादी युगमे अपन जीवनकेँ सुखी-सम्पन्न सानन्दित बनयाबामे निम्नसँ निम्न स्तरपर जा सकैत छथि। किन्तु युवती पत्नीक विद्रोही तेवर एतेक बेसी प्रखर अछि जे हुनका सोझाँमे ओ अँटकि नहि पबैत छथि। किन्तु नूनू कर्तव्यनिष्ठ पात्र छथि जे एम.ए. इन फिलॉसफी रहितहुँ अपन कर्त्तव्यपरायणता संगहि संग पितृ एवं मातृभक्तिकेँ अपन पुनीत कर्त्तव्य बुझैत छथि। ओ दिग्भ्रमित सुन्दरकेँ आदर्श जीवन एवं कर्त्तव्यपरायणता पाठ अपन व्यवहारसँ पढ़ा क’ दिशाबोध करबैत छथि। नूनूक चरित्रसँ शिक्षित भ’ कए सुन्दर अपन संग मायक इलाजक लेल तत्परता देखायब अपन पुनीत कर्तव्य बुझैत छथि। एकांकीकार दिग्भ्रमित सामाजिक परिवेशक जे वास्तविक मानसिकता भेल जा रहल अछि तकर यथार्थतासँ जन सामान्यकेँ परिचित करयबाक प्रयास कयलनि अछि जे आध्ाुनिक परिवेशमे उपेक्षणीय नहि प्रत्युत ग्रहणीय अछि।
संवाद :
रंग रचना चाक्षुष यज्ञ थिक तथा रङ्गानुष्ठान ओकर कर्मकाण्ड। संवादक ऋचा स्तवनसँ युग पुरुषकेँ साक्षात् कयल जाइत अछि। रंगानुभव यज्ञ पुरुषक एहि गायित्री गायनसँ अवगाहन पबैत अछि आ सम्पूर्ण रंगकर्ममे प्रत्यक्ष होइत अछि। अतएव संवादक मन्त्रोचारसँ रंग कर्मक साक्षात्कार होइत अछि। एहि ऋचा गायनक निश्चित व्याकरण अछि। एहि प्रकारेँ संवादक प्रस्तुतीकरणक सेहो एक संहिता अछि जे ओहिमे निहित अछि। संवाद रंगानुभवक आत्मज थिक। संवाद रंग कर्मक व्यवहार ओ आचारण थिक निर्देशक, सूत्रधार ओ रंगकर्मीक संवादमे रंगकर्म, मंचन आ अभिनयक दिशाक अन्वेषण करैत छथि। कारण संवादक प्रत्येक शब्द, वाक्य रंगसिद्धिमे रहैत अछि। अतएव पूर्ण संवाद रचनामे एक तँ प्रत्येक शब्दसँ रंगकर्मक किरण फुटैत अछि, दोसर सम्पूर्ण संवाद एहन रंगसिद्ध शब्दक अनुशासित समन्वयसँ एक एहन आलोक विम्ब प्रस्तुत करैत अछि जे रंगकर्मक दिशा संकेत करैत अछि।
संवाद पात्रक बहुविधि व्यक्तित्वक दर्पण थिक, ओकर विधायिका चारिित्रकताक समानुपातिक विकासक मानदण्ड थिक। संवाद रचनामे नाटकक प्रणेताक अत्यन्त कठिन भूमिका रहैत छनि। हुनका एकहि संग विविध पात्रक भूमिकामे उतरि क’ ओकर मनःस्थितिक अनुरूप संवाद रचना करय पड़ैत छनि। कतहु संवाद आरोपित नहि लागय, पात्रक प्रकृति ओ रंगवेदनाक प्रतिकूल नहि हो जकरा सतत ध्यानमे राखय पड़ैत छनि।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे हिनक संवाद योजनापर दृक्पात कयलापर स्पष्ट प्रतीत हाेइत अछि जे ओ प्रत्येक पात्रक संवाद-योजना ओकर परिस्थितिक अनुकूलहि निरूपण कयलनि अछि। प्रहसनमे जतय हास्य-व्यंग्यक प्रमुखता रहैत अछि ततय ओ तदनुरूपहि संवाद-योजना कयलनि अछि। हिनक प्रत्येक संवाद एहन बुझना जाइछ जेना ओ स्वयं पात्रक रूपमे उपस्थित भ’ कए अपन बात ओकरा मुहे कहयबाक प्रयास कयलनि अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक एक विशेषता अछि जे एकांकीकार ओहिमे पात्रोचित भाषाक संगहि-संग ग्राम्य भाषाक प्रयोग एतेक सहजताक संग कयलनि अछि जकर परिणाम भेल अछि जे हिनक भाषा-शैली अत्यन्त मर्मस्पर्शी बनि गेल अछि। यद्यपि ई संस्कृतक पण्डित छथि जनिका तत्सम शब्दक प्रयोग करबामे विशेष आभिरुचि रहबाक चाही, किन्तु ई भाषा प्रयोगमे एतेक, उदारचेता छिथ जे हिनक चाहे काव्य भाषा हो चाहे गद्यभाषा हो ओहिमे ठेंठसँ ठेंठ शब्दावलीक एतेक प्रचुर परिमाणमे प्रयोग करैत छथि जे पाठकक मर्मकेँ स्पर्श करबामे सहायक होइत अछि। जतेक दूर धरि एकांकी ओ प्रहसनमे भाषा प्रयोगक प्रश्न अछि ओहि परिप्रेक्ष्यमे निर्विवाद रूपेँ जा सकैछ जे लोकोक्तिक प्रयोग करबामे ई महारथ हासिल कयने छथि जे पाठकक ध्यानाकर्षित करैत अछि। प्रहसन ओ एकांकीक भाषाशैली वा संवाद योजना प्रस्तुत करबाक शैली एतेक सक्षम अछि जे नेपथ्यमे कोनो प्रकारक आडम्बर करबाकक प्रयोजन नहि पड़ैछ। रंगमंचक व्यवस्थाक एहन संकेत पात्रक माध्यमे देलनि अछि जे ओकर भूमिकाक नहि निर्माण करैछ। पात्र जखन परस्पर वार्तालाप करैछ तखन अपन मौन, आवेग, स्थिर दृष्टिएँ, कखनो-कखनो हँसि क’ कखनो- कखनो बीचमे रूकि क’ नाटकीय प्रभाव गम्भीर बना दैत अछि। एहि प्रकारेँ मंचीय सम्भावनासँ परिपूर्ण हिनक प्रहसन ओ एकांकी सामाजिक जीवनक विभिन्न समस्याकेँ जहिना-तहिना प्रस्तुत कयलक अछि।
मिथिलांचलमे प्रचलित मुहावरा ओ लोकोक्तिक प्रयोगमे हिनक काव्य भाषाक संगहि-संग गद्यभाषाक वैशिष्ट्य अछि। हिनक एहि प्रवृत्तिक प्रतिफल प्रहसन ओ एकंाकीमे सेहो उपलब्ध होइत अछि जकर किछु बानगीक अवलोकन कयल जा सकैछ यथा पेट काटि क’ पोसल पूत सैह कहै फलनामा भूत, परिलागब, दाँत निचोड़ब, हक्कर पेलब, जीक पातर, नङो-चङो करब, मनक मनोरथ मनहि बिलटल, आन करैत आन भेल हो रामा, गाल लगायब, अमार लगायब, बहिरा नाचे अपने तालेँ, कुकुर माछी काटब, रनरनायब फिरब, बङौर लगाएब, भोथहा कलम, सनक सवार, मन लोहछब, गुमाने फाटब, पाँतरमे पड़ब, काछर काटब वंश कुड़हरि, नुड़िऐल फिरब, कन्ही गायकेँ भिन्ने बथान, कटहरमे नेढ़ा लगाएब, भोँडो छुड़ल ओ पेटो नहि भरल, सोनक दोस की सोनारक दोस, पहाड़ ढ़ाहब, छौड़ी सिखाबय बूढ़, दादीकेँ बुड़िसटही, खोप सहित कबुतराय नमः, रड़ धुम्मस करब, दम्म ने दुस्सर खाली बात पकठोस, गप्पीक खरिहान, दूरक ढ़ोल साहओन, पेट छूटल गोनू झाक ढ़ाकी, कनहा नछत्तर, नाक दम ठेकब, यमराजक पित्ती, आँखि गुड़रब, कमला कातक दड़ारि जकाँ मुँह बायब, जीवइ छी ने मरइ छी हुकुर-हुकुर करइ छी, भोकना बिलाड़, सुखि क’ टिटही, फिफिआइत रहब, छुहुक्का उड़ब, खगल लोक, डाँर पीठ एक्कठा होयब, हकलिलो भेल फिरब, खगले लोक की ने करय, पेट पहाड़, सुरता लागब, घूड़ घूऑं करब, टटी लागब, लते पत्त दौड़ब, जोगार धरायब, छप्पन छूरी चमकायब, कबुला करब, जिन्न पोसब, आँखि फुटब, एक बजा बय सतरह आबे, अकाश ठेकब, साटिधट राखब, लटारहम करब, खेखनियाँ करब, कुर्रकाई करब, ऑंटागील करब, उत्तम खेती मध्यम वान, अधम चाकरी भीख निदान, हाथ पकड़ब, सेवा सँ मेवा पायब, कौआ ल’ गेल कान, इयादि। एहिसँ स्पष्ट भ’ जाइछ जे हिनका भाषापर अद्भूत अधिकार छनि तथा पात्रक मुहे सुनैत देरी दर्शककेँ स्वयं आत्मबोध भ’ जाइत छैक।
एकांकी एवं प्रहसनक भाषा अन्य साहित्यिक विधादिक तुलनामे एक पृथक संस्कारसँ संयुक्त अछि। यथार्थक आग्रह कारणेँ ओकरा सामान्य जीवनक बोली वर्णक भाषासँ निकट होयब अनिवार्य अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसन सामान्य भाषाक भीतरहिसँ संचरित संस्कारित भेल अछि। एहि रूपमे एकांकीक वस्तुक लेल तथ्ये नहि करैछ, प्रत्युत सम्पूर्ण रचनातन्त्रक निर्माण सेहो करैछ। वस्तुत: हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषा सम्पूर्ण सम्प्रेषणक भाषा थिक जाहिमे एक-एक शब्द कहल गेल अछि ओ महत्वपूर्ण नहि महत्वपूर्ण अछि एक समग्र प्रभाव आ ओ जे नहि कहल गेल अछि, जे, ध्वनित-व्यंजित मात्र कयल जाइत अछि। भाषा हिनक व्यक्तित्वमे रचल-बचल छनि जे सामजिक परिवेश, मानसिक चेतना सब मिलि क’ हिनक भाषिक प्रतिभाक निर्माण करबयमे सहायक भेल अछि। हिनक सर्जनात्मक बोध, चयन ओ संयोजनक सायास आग्रह सामान्यसँ विशिष्ट बना देलनि अछि।
गीत :
अमर मूल रूपेँ कवि छथि तेँ एकांकीमे सेहाे स्थल-स्थलपर हिनक काव्य प्रतिभाक प्रस्फुटन भेल छनि जकर प्रतिफल घरैयालूरि, हाकिमक हाकिम एवं श्रमदानमे सेहो हिनक काव्य-प्रतिभासँ पाठक एवं दर्शक परिचित होइत अछि घरैयालूरिमे ढ़ोलक झालिपर गबैत एक मण्डली प्रवेश करैत अछि जकर विषय-वस्तु थिक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा देखाओल गेल गृह-उद्योग एवं कुटीर-उद्योग, तकर महत्तापर प्रकाश देल गेल अछि। एहि एकांकीमे प्रयुक्त गीतक महत्व मूलस्वर थिक जनसामान्यकेँ एहि दिस आकर्षित करब। हाकिमक हाकिम वा ननदिओक ननदिमे सहो उक्त परम्पराक पालन कयल गेल अछि, जखन मिडिल स्कूलक प्रागंणमे चेयर मैन साहेब उपस्थित भ’ छात्र लोकनिकेँ वार्षिकोत्सवक अवसरपर पारितोषिक देबाक लेल जाइत छथि तखन हुनक स्वागतार्थ स्वागतगानक आयोजन कयल जाइत अछि। श्रमदान एकांकीमे सेहो एहि परम्पराक निर्वाह कयल गेल अछि। स्वयं सेवकक दल कान्हपर कोदारि आ हाथमे छिट्टा ल’ कए श्रमक महत्ताकेँ प्रतिदिन करैत मातृभूमि भारत माताक आह्वान करैत छथि जे मानवतापर दानवताक स्पष्ट झाँकी भेटि रहल अछि। एहन विषम स्थितिमे दलितक उद्धारक हेतु एहिसँ उत्तम साधन आ की भ’ सकैछ ? श्रमक माध्यमे हमरा सभक उद्धार संभावित अछि। एहिसँ प्रेरित भ’ कए गबैया सब मिलि क’ देशक निर्माण, अपन भाग्यक निर्माण तथा भावी संतानक भविष्य निर्माणक हेतु कोसीक वन्दना करैत देखल जाइत छथि जाहिमे मातृभमिक कल्याणार्थ क्रान्तिकारी डेग उठबैत विश्व बन्धुत्वक भावनासँ प्रेिरत भ’ कए अबला-वृद्ध वनिता देशक नव-निर्माणक हेतु सन्नद्ध भ’ जाइत छथि जे त्याग तस्पया, आलस्य, भय, आदिक परित्याग क’ देशक निर्माणमे लागि जाथि। उपर्युक्त तीनू एकांकी गीतक शब्द-विन्यास संगीत परम्परानुरूप अछि।
उद्देश्य :
चन्द्रनाथ मिश्र अमरक जतबे एकांकी ओ प्रहसन प्रकाशमे आलय अछि ओहिमे एकांकीकार मिथिलांचलक परिप्रेक्ष्यमे जाहि सामाजिक समस्यादिकेँ प्रस्तुत कयलनि अछि ओ मात्र मिथिलांचलेक समस्या धरि सीमित नहि अछि, प्रत्युत सम्पूर्ण भारतवर्षक ओहि सामाजिक परिवेशक समस्या थिक जाहि परिवेश मे भारतीय निम्न एवं मध्यवित परिवार गुजर बसर करैत अछि। हमरा जनैत एकांकी ओ प्रहसनक रचनाक पाछाँ एकांकीकारक सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहलनि अछि जे एकरा माध्यमे मिथिलांचक सामाजिक परिवेश पुननिर्माणक संगहि-संग समाजमे एक एहन चेतना अानब जाहिसँ जर्जरित समाजक कायाकल्प कैल जा सकइयै। एक सफल शिक्षक होयबाक कारणेँ व्यावहािरक जीवनक अनुभवक आधारपर एक युगद्रष्टा साहित्कार सदृश ओ इएह सन्देश देबाक उपक्रम कयलनि जे शिक्षा जगतमे आमूल परिवर्त्तन, परिवर्द्धन ओ परिमार्जनक प्रयाेजन अछि। एहि पृष्ठभूिममे ओ अपन एकांकी ओ प्रहसनक विषयवस्तुक चयन कयलनि जे व्यावहारिक जीवनमे जनसामान्यक हेतु लाभप्रद सिद्ध भ’ सकय।
प्रत्येक व्यक्तिक जीवनक एक सुनिश्चित उद्देश्य होइछ। ओहि ध्येयक प्रािप्तक हेतु व्यक्ति सब किछु तन-मन-धन समर्पित क’ दैत अछि। पुस्तक मनुष्यक गुरु एवं मित्रक संगहि सब किछु अछि। ओहिसँ फराक रहि क’ मनुष्यकेँ सुखक अनुभूति नहि भ’ सकैछ। मृगतृष्णाक पाछाँ-पाछाँ दौड़लासँ मनुष्यकेँ मात्र थकाने होइत छैक। किन्तु पुस्तकमे व्यस्त रहलापर मानसिक समाधान ओ ज्ञानक संगहि सम्मान भेटैछ। अतएव समाजसँ किछु माँगबाक लालसासँ नीक थिक जे अध्ययन- अध्यापनक सत्य दुनिया अपनायब राजमार्ग थिक। चन्द्रनाथ मिश्र अमरक विफुल साहित्य साधनाकेँ देखि प्रतिभाषित होइत अछि जे हिनक साहित्य साधना निशिचत रूपेँ हिनक राजमार्ग छनि जकरा अनुसरण क’ कए एतेक अवदान मैथिली साहित्यकेँ श्रीवृद्वि बनयबामे द’ पौलनि ओ जाहि सामाजिक परिवेशक प्रश्न एकांकी ओ प्रहसनमे उठौलनि ओ निश्चित रूपेँ मिशिलाक पृष्ठभूमिमे एक अभिशाप थिक।
ब्रहास्थान एक उल्लेखनीय एकांकीक रूपमे पाठकक समक्ष अबैत अछि जाहिमे एकांकीकार निम्नवर्गीय गमैया समाजक प्रतीक रूपमे सुगिया ओ पंचकौड़ीकेँ प्रस्तुत क’ कए ई जनयबाक उपक्रम कयलनि अछि जे युग-युगसँ सीदित अछि, पीड़ित अछि, जकरापर अत्याचार तँ अवश्य होइत छैक, किन्तु अपन आक्रोशकेँ गामक मुखिया हरिवंश बाबूपर नहि प्रकट क’ कए ब्रह्मस्थानपर प्रकट करैत अछि जे भगवान सेहो शोषक वर्गक संग मिलि क’ अत्याचार करबामे सहयोग देबामे कनेको कुंठित नहि होइत छथि। जाहि समाजमे अशिक्षा ओ अन्धश्रद्धाक प्रभाव छैक ओतय गरीब तथा मजदूरक शोषणक परम्परा बनि क’ रहि जाइत अछि। ओकर मानसिकता एहन छैक जे ओ ने तँ भगवानक विरोध क’ सकैत अछि आ ने शोषक वर्गक प्रतिनिधि बनि क’ मूक रहि सकैछ। ओ अन्यायसँ डेरायल अछि तथा ओहिसँ मुक्ति पयबाक आकांक्षी सेहो अछि। एतय संघर्ष दोसर पक्ष सेहो अछि जे मुखिया एहि अन्यायक एक पुर्जा मात्र अछि।
सामाजिक यथार्थ विषयक चयन करबाक पाछाँ चन्द्रनाथ मिश्र अमरक मुख्य उद्देश्य छनि समाज-सुधार तथा जनसामान्यकेँ एहि दिस आकार्षित करब। एकांकीकार समाजक अन्यायपर प्रकाश द' कए जनसामान्यमे चैतन्य उत्पन्न कयलनि अछि। ओना तँ सभ देशक नाटकककार सामाजिक विषयकेँ आधार बना क’ कतिपय एकांकी ओ प्रहसनकार रचना कयलनि अछि जे पाठक वा दर्शकक आकर्षणक केन्द्र बनल अछि। भारतीय एकांकीकार ओ प्रहसनकार सामाजिक यथार्थक पूर्ण उपयोग कयलनि। प्रस्तुत एकांकीकार सामाजिक विषयक आधार बना क’ सुधार करबाक दिशामे प्रयास कयलनि। ओ मिथिलांचलक सामाजिक जीवनमे विस्तृत कुरीतिकेँ देखलनि तथा ओहिपर व्यंग्यात्मकताक शैलीमे प्रहार कयलनि। एकांकीकारक सुधारक वृत्तिक परिणाम स्वरूप समाजक जीवैत-जैत चित्र जनसाधारणक सोझाँ प्रस्तुत भेल तथा नवीन भावनाक विकासक लेल मार्ग प्रशस्त भेल। समाजक परिष्कार भावनासँ प्रेरित भ’ कए ओ एकांकी एवं प्रहसनक रचना कयलनि तथा सामाजिक परिवेशक अन्तर्गत वर्गगत बिडम्बनाकेँ नष्ट करबाक अद्देश्यसँ ओ हास्य-व्यंगयकेँ प्रमुख साधन बनौलनि।
संभवतः एहि वास्तविकतासँ अवगत नहि रहलाक कारणेँ डाॅ. दुर्गानाथ झा श्रीश (1929-2000) मैथिली साहित्यक इतिहास (1991)मे हिनकापर जे आरोप लगौलनि जे हिनक एकांकी जाहि प्रचार-प्रसारक स्वर अत्यन्त प्रमुख भेलासँ प्रत्येक एकांकी, सरकारी प्रचार साहित्य जकाँ लगैत अछि (पृष्ठ-301)। हमारा दृष्टिएँ दुर्गानाथ झा श्रीशक ई कथन सर्वथा दिग्भ्रमित विचार थिक, कारण साहित्यक प्रमुख उद्देश्य होइछ जे समाजमे घटित भेनिहार घटनाक यथार्थ पाठक ओ दर्शककेँ अवगत करायब, समाजक अभावमे साहित्य महत्वहीन भ’ जाइछ। एकांकीकार समाजक यथार्थक चित्रण क’ वास्तविकतासँ अवगत करयबाक प्रयास कयलनि जे सर्वथा ग्रहणीय अछि, अनुकरणीय अछि, कारण हुनक एकांकी ओ प्रहसनक विषय-वस्तु समाजोन्मुखी तथा समयक जे माँग छल तकरा परिप्रेक्ष्यमे लिखल गेल अछि।
नि:सारण :
चन्द्रनाथ मिश्र अमर अपन प्रहसन ओ एकांकीमे हास्य-व्यंग्यक अवतारणाक लेल विविध पात्र एवं परिस्थिति कथा-वस्तुमे नियोजित कयलनि अछि, कारण हुनक समसायिक सामाजिक परिवेशक अन्तर्गत एही प्रकारक ज्वलन्त समस्या छल जकर ओ अत्यन्त सूक्ष्मताक संग विश्लेषण कयलनि। प्रहसनक कथा अतिरंजित होइत अछि आ प्रहसनक पात्रक विविध क्रियाकलाप सेहो दर्शककेँ हँसबैत अछि। यद्यपि प्रहसन उहपासाम्क होइत अछि तथापि ओहिमे सुधारक भावना सन्निहित रहैत अछि जे हिनक प्रहसनक केन्द्र-विन्दु थिक।
एकांकीमे सामाजिक समस्याक विभिन्न पहलूकेँ ओ प्रभावोत्यादक शैलीमे प्रभावशाली ढंगसँ प्रस्तुत कयलनि अछि।एकांकीकार यथास्थान सहज स्फूर्तिसँ मार्मिक विचारकेँ अभिव्यक्त कयनिहार ग्राम्य भाषाक माध्यमे प्रस्तुत कयलनि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषा तथा ओकरा प्रस्तुत करबाक शैली एतेक सक्षम अछि जे नेपथ्यमे कोनो प्रकारक आयोजनक प्रयोजने नहि पड़ैछ। ई एकांकी ओ प्रहसनमे रंग-व्यवस्थाक एहन संकेत पात्रक माध्यमे देलनि अछि जाहिसँ एकर भूमिका निर्माण स्वयं भ’ जाइछ। एक पात्र दोसरा संग वार्तालाप करैत अपन अावेग, मौन एवं स्थिर दृष्टिएँ बीच-बीचमे रूकि क’ नाटकीय प्रभावकेँ गम्भीर बना देलनि अछि। एहि प्रकारेँ मंचीय सम्भावनासँ परिपूर्ण हिनक ओ प्रहसनक सामाजिक जीवनक यथार्थताक विभिन्न समस्याकेँ एहि प्रकारेँ रू-ब-रू प्रस्तुत कयलनि अछि जाहिसँ ओ लोकनि बिनु भेने नहि रहि सकैछ। हिनक एकांकी ओ प्रहसनक भाषामे सूक्ष्मता एवं प्रत्यक्षता अछि।
चन्द्रनाथ मिश्र अमर अपन समसामयिक जीवनक दैनिक, आर्थिक सामाजिक समस्याकेँ विचार प्रधान ढंगसँ सोझरयबाक प्रयास कयलनि। ओ काल्पनिक जीवनसँ हरि क’ यथार्थक सहरजमीनपर अयलाह। कथानक, पात्र, चरित्र चित्रण, भाषा, वेशभूषा, सभमे यथार्थताक प्रति अभिरुचि हिनक एकांकी ओ प्रहसनक विशिष्टता अछि। यथार्थवादी प्रगतिशील समस्याकेँ ओ एकांकी एवं प्रहसनमे स्थान देलनि। ई नाटकीय भाषाक संस्कार कयलनि, नव भावक संजीविनी ओकरा देलनि एवं कलाक विभिन्न रूपमे सार्थक प्रयोग कयलनि तथा वर्त्तमान मैथिली गद्यकेँ दिशा देलनि। हिनक एकांकी ओ प्रहसनमे रस-निष्पत्ति स्वयं होइत अछि। विशेषत: हास्य-व्यँग्यक ई मैथिलीमे सिद्धस्त लेखक छथि जकर प्रतिरूप हिनक समग्र साहित्यमे उपलब्ध होइत अछि। हिनक एकांकी ओ प्रहसन आभिनयोपयोगी अछि जकरा प्रस्तुत करबाक हेतु कोनो तामझामक आयोजनक प्रयोजन नहि पड़ैछ। हिनक एकांकी-प्रहसन जहिना पठनीय अछि तहिना अभिनीय सेहो। एहि प्रकारेँ हिनक एकांकी-प्रहसनक माध्यमे मिथिलांचलक सामाजक समस्त सामाजिक जीवनक झलक भटैत अछि जे विविध रूपमे प्रत्यक्षीकरण भ’ जाइत अछि।
No comments:
Post a Comment