प्रथम दृश्य
(मंचपर चौकीपर शंकर सुतल अछि, गंगाक प्रवेश।)
गंगा- बउआ-बउआ, सुतल
छहक की, देखहक बाबू दरबाजा पर बजबै छऽ।
शंकर- कि, आ..हू हू हू…।
गंगा- कि भेलऽ? एना किए कराहै
छहक। माय गे, माय हो, देेह तँ
झरकैत छह। बउआ आँखि खोलऽ, (रूदन स्वरमे) हयौ सुनै छिऐ,
दौड़ू यौ, देखियौ बउआ कऽ कि भेल। यौ,
आँखि ताँखि उलटेने छै यौ, जल्दी आउ ने।
(रामाक धोती सम्हारैत आंगनमे प्रवेश।)
रामा- एना चिकरनाइ भोकरनाइसँ काम नै चलत।
जाउ दौड़ कऽ गोसाईं घरसँ गंगाजल नेने आउ।
(गंगा दौड कऽ जाइत अछि आ गंगाजलक डिब्बा नेने
अबैत अछि आ कनैत-कनैत कहैत अछि।)
गंगा- हे काली माइ, हमरा कोइखक लाज
राखब। हमर लालकेँ ठीक कइर दिअ। हम सहि कऽ साँझ देब।
रामा- पहिले गंगाजल लाउ ने तब कोबला-पाती
करैत रहब। (रामा अपन पत्नीकेँ हाथसँ झटैक कऽ गंगाजलक डिब्बा छीन लैत अछि आ शंंकरक
उपर गंगाजल छीट हुनकर मुॅंह वएह जलसँ धोइ दैत अछि।)
रामा- बउआ उठऽ, केना लगै छऽ आब।
शंंकर- बाबूजी, हमर माथा दर्दसँ
फाटल जाइत अछि आ जाड़ सेहो होइत अछि।
रामा- अच्छा लए, ई कम्बल ओढ़ि कऽ
सुइत रहऽ, कनिकबे कालमे सभ ठीक
भऽ जेतऽ। यै सुनै छिऐ शंकरक माय।
गंगा- कि कहै छिऐ?
रामा- बउआक माथपर पीरी परहक भभूत लगाउ आ
अकरा अराम करऽ दियौ।
पटाक्षेप
दोसर दृश्य
(पति-पत्नी अपन कक्षमे बेटाक हालत पर विचार
विमर्श करैत।)
गंगा- की भेल, किए अहाँ
काल्हिसँ चुप छिऐ? की कोनो अभास भऽ रहल अछि? कहू ने, के भइडाही केने छइ। एक बेर अहाँ नाम
कहि दिअ, अखने झोटा पकड़ि पोटा निकालि देबै आ घिसियाबैत
पूरा गाम ओंघरेबै। सँइखोउकी बेटखोइकी सभ ककरो नीक देखै लेल नै चाहै छइ।
रामा- (जोरसँ) बन्द करु अपन सत्यनरायलनक
कथा। ई ककरो केलहा नै अपने घरक गोसाँइ अछि। आइ तक ककरो एहेन बोखार देखने रहिऐ। अपन
देहमे अतेक आगि देविये रखैत अछि। जरूर हमरासँ कोनो गलती भेल जे हमरा पर मइया तमसा
गेलखिन। हमरा हिनका शांत करै लेल गुहार लगबइये पड़त।
गंगा- अहाँ तँ अपने भगत छी। कौल्हका दिन
निक अछि, काल्हिये बैसकी बैठाउ। हम जाइ छी, पूजाक
सामग्री जुटबै लेल।
(गंगाक प्रस्थान होइत अछि आ रामा गम्भीर
सोचमे डुबल रहैत अछि।)
पटाक्षेप
तेसर दृश्य
(एगो दौरामे पूजा सामग्री एकट्ठा करि गंगा आ
शंंकरक आगमन, हुनके पाछू दू-चाइर लोकनी सेहो अबैत अछि।)
गंगा- बउआ बाबू आबै छऽ, ताबे तूँ पूजा
करऽ। ई फूल अक्षत चढ़ा कऽ धूप देखबऽ।
शंकर- (फूल जल चढ़बैत कहैत छथि) आब
की करब?
गंगा- अतऽ कल जोइड़ बैठू।
(रामाक संगे चारि लोग जे ढोल आ झाइल लेन अछि,
हुनकर प्रवेश।)
रामा- शंकरक माय, सभ तैयारी कऽ
लेलौं? गंगाजल संगेमे राखने रहब।
(रामा गोसाँइ निपैत अछि आ फूल अक्षत चढ़ा कऽ माँक प्रार्थना करऽ लगैत अछि। चारू लोकनी डाला बिचमे रखैत माँक
गुहार लगबैत अछि आ ढोल झाइल सेहो बजबैत अछि।)
चारू लोकनी- तोहरे दुआरे मइया हम
अर्जी लगैलियइ
हेऽऽऽऽऽऽऽऽऽ हूंऽऽऽऽऽऽऽ
बोल जय गंगे,
बोल जय गंगे,
बोल जय गंगे।
बोल की कष्ट छउ, किए बजेलऽ हमरा, बोल, बोल, की भेलउ?
गंगा- हे मइया, की गलती भेल
हमरासँ आ हमरा घरबलासँ। सभ दिन तँ अहींक पिरी निपैत आँखि
खुलैत यऽ हमर, कि अपराध भेल जे हमरा बेटाकेँ अहाँ चारि
दिनसँ मतेने छी।
रामा- अहिना भूइज कऽ खेबउ। अपना खाय छऽ
छप्पन प्रकार आ हमरा लऽ फूल अक्षत। एक दिशसँ सभकेँ भूइज-भूइज खेबउ।
गंगा- एना किए कहै छऽ, अगर हमरासँ कोनो
कुघटी भेल तँ हमरा माफ कइर दिअ, अहाँ जे कहब हम सभ करै
लेल राजी छी।
रामा- तँ ठीक छइ, हमरा
जानक बदले जान चाही। हमरा हर अमावश्याक राइतमे इकरंगा खस्सीक बैल देबही तँ तोहर
कल्याण भऽ जेतउ। ले ले, लेह अक्षत, बोल बोल जय गंगे, बोल बोल जय गंगे, बोल बोल जय गंगे।
गंगा- अहिना हएत भगवान, हम जानक बदले जान
देब।
रामा- होऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ हएऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
बोल जय गंगा, बोल बोल जय गंगे, बोल बोल जय गंगे। आब हम चलै
छी।
पटाक्षेप
चारिम दृश्य
(ग्रामीणक बीचमे)
गंगा- हयोउ, जब घरक देवता बैल मांगै छइ तँ
अहाँकेँ दइमे कि हिचकिचाहट भऽ रहल अछि। बउआ दिश देखियौ तँ, आइ पॉंच दिन भेल, बेदरा एक बेर नै आँखि खोलइ
यऽ।
रामा- आब अपन गहबरमे बैल नै पड़ैत अछि, हमर बाबा अपन
अंगोरिया आंगुर चिर कऽ बैल सौपने रहथि, ओही कऽ बदले लरू चढ़बैत रहथि। केना फेरोसँ बैल दी वएह सोचै छी।
गंगा- अहाँकेँ बेटाक चिंंता नै अछि? हम बैल देबै,
हम वचन देने छी।
एगो ग्रामीण- हो रामा, किए अतेक सोचै छऽ
तूँ। अपना मने तँ नइ दै छऽ। माँ मांगलकऽ। जाधरि तूँ बैल नइ देबहक शंंकर ठीक नइ
हेतऽ। बेटा लऽ दऽ दहक।
गंगा- सुगनी लग एक रंगा खस्सी छइ। लऽ आनू
गऽ। हम कहने रहिऐ तँ कहलकै, लऽ जाउ।
पटाक्षेप
अंतिम दृश्य
(ग्रामीणक भीड़क बीच बेहोस अवस्थामे शंंकर।)
गीत- काली मइया हे कनिये, काली मइया हे
कनिये
होइयो
न सहायऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ
रघुनाथ- हयोउ, कि बात छिऐ। यौ रामा, कक्काक अइठाम अतेक भीड़ कथी कऽ छिऐ।
एगो ग्रामीण- हुनका बेटा कऽ देहमे
काली समैल छइ, कहै छइ कि जानक बदले जान नइ देबही तँ अकरा भूइज कअ खेबउ। अखन वएह बइल
दैत अछि, ओकरे भीड़ छिऐ।
रघुनाथ- कहिया तक ई अंधविश्वास रहत अइ गाममे। चलू चलि कऽ
देखै छी।
(रामाक घरमे रघुनाथक आगमन।)
रघुनाथ- काकी, कतऽ अछि बउआ, देखू।
गंगा- रघुनाथ बउआ, आइब गेलहक सहरसँ।
अए, देखहक ने आइ छऽ सात दिन भऽ गेलैए, आँखि नइ खोलै छइ। जाधरि बइल नइ देबइ, नइ
छोड़थिन मइया।
(रघुनाथ शंंकरक नब्ज देखैत आ सिर पर हाथ राखि
आँखि देखैत कहैत छथि।)
रघुनाथ- काकी अहाँ सभ अपन मूर्खताक कारण अकरा
जानसँ माइर देबइ। अकरा दिमागी बुखार भेल अछि। अगर इलाजमे देर करबै तँ बेटा कतौ नइ
मिलत।
रामा- बेसी तूँ इंगलिस नइ बतिया, ई कोनो बुखार नइ
देवीक केलहा छिऐ, हमरा अपन काज करऽ दए।
रघुनाथ- हौ कक्का, एगो
बातक जबाब तूँ सभ ग्रामीण मिल कऽ दए। तोरा दुगो पुत्र छऽ,
एगो बिमार छऽ तँ कि तूँ एगो पुत्रक जान लऽ कऽ दोसर पुत्रक जान
बचेबहक, नइ ने। तँ फेर माँ काली ई कोना करथिन। हुनका लेल
तँ अइ संसारमे रहैबला हर जीव माँक संतान छी। फेर ओ ई कोना
करथिन। अंधविश्वासक चादरमे नइ लिपटल रहऽ। जागऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ आबो तँ जागऽ।
रामा- तूँ आइ हमर आँखि खोइल देलहक। चलऽ
बउआकेँ अस्पताल लऽ चली।
जानक बदले जान
देनाइ
अछि ई अंधविश्वासक
बाइन
करी
परन हम सभ ई कि
नइ लेब आब ककरो
प्राण।
इति।
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