[ अभिनय पाठशाला (रंगमंच आ फिल्म लेल)- विदेह नाट्य (आ फिल्म) उत्सव २०१२ क पूर्वपीठिका]
(ऐ आलेखक आधार हमर तीन मासमे देल ४० टा संस्कृतमे अनूदित व्याख्यान अछि जे हम श्री अरविन्द आश्रममे ओड़ीसाक प्राइमरी स्कूल लेल चयनित शिक्षक-शिक्षिका प्रशिक्षुकेँ देने रही। हम जतेक हुनका सभकेँ पढ़ेलौं, तइसँ बेसी हुनका सभसँ सिखलौं। ओ सभ आब ओड़ीसाक सुदूर क्षेत्रमे पढ़ा रहल छथि। ई अलेख हुनके लोकनिकेँ समर्पित अछि।-–गजेन्द्र ठाकुर)
१
अभिनय की अछि ? बच्चा सभ अपन समान पसारि किछु-ने-किछु काज करिते रहैत अछि। हमर बेटी फुसियाहींक चाह बनबैत अछि आ हमरा दैत अछि। हम सेहो ओकरा फुसियांहीक घुट-घुट पी जाइ छी। मुदा फेर ओ असली सूप अनैए, हम काज कऽ रहल छी, हम बिन मुँह घुमेने घुट-घुट चाह पीबाक अभिनय करै छी, मुदा बेटी कहैए, “ई असली छी”। हमर भक टूटैए आ हम असली दुनियाँमे आबि जाइ छी।
बच्चा नाटकसँ शिक्षा लैए, लोककेँ आ वातावरणकेँ बुझबाक प्रयास करैए।
तखन मन्दिरक उत्सव आ राजाक प्रासादमे होइबला नाटक स्वतंत्र भऽ गेल आ एकर उपयोग वा अनुप्रयोग दोसर विषयकेँ पढ़ेबामे सेहो होमए लागल। दोसर विषयक विशेषज्ञक सहभागिता आवश्यक भऽ गेल। स्वतंत्र रूपेँ सेहो ई विषय अछि आ एकर अनुप्रयोग सेहो कएल जाइत अछि। पारम्परिक नाटक पेशेवर नाटकसँ जुड़त, उदाहरण स्वरूप कएल गेल नाटक, मंचक साजसज्जा, आ असल नाटकक मंचन रंगमंचक इतिहास बनत। मुदा ऐ सँ पहिने रंगमंचक प्रारम्भिक ज्ञानक संग नाटक पढ़बाक आदतिक विकसित भेनाइ सेहो आवश्यक अछि। आ से पढ़बा काल एकर मंच प्रबन्धन आ अभिनयक दृष्टिसँ विश्लेषण सेहो आवश्यक अछि।
राजनैतिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक घटनाक्रमक जानकारी सम्बन्धित प्रस्तुतिक सन्दर्भमे देब आवश्यक होइत अछि। भरतक नाट्यशास्त्रक अतिरिक्त कालिदास, भास आ शूद्रकक नाटकक परिचय सेहो आवश्यक।
रंगमंचसँ जुड़ल लोककेँ लिटल आ ग्रेट ट्रेडिशन, दुनूक अनुभव आ जानकारी हेबाक चाही।
बच्चा नाटक आ रंगमंचसँ जुड़त तँ जिम्मेवार नागरिक बनत, आर्थिक रूपेँ आत्म-निर्भर बनत आ सक्रिय नागरिक सेहो बनत।
२
चैतन्य महाप्रभुकेँ जात्राक संगीत आ नृत्य युक्त वीथी मंचनक प्रयोग संदेशक प्रसार लेल केलन्हि।
नाट्य शास्त्रमे वर्णन अछि जे नाटकक उत्पत्ति इन्द्रक ध्वजा उत्सवसँ भेल। नाट्य शास्त्र नाटककेँ दू प्रकारमे १.अमृत मंथन आ २.शिवक त्रिपुरदाह, मानैत अछि। एहेन लगभग दस टा दृश्य वा रूपकक प्रकार भरत लग छलन्हि (दशरूपक) आ ओइमे नृत्य, संगीत आ अभिनय सम्मिलित छल; आ ऐ दशरूपकक अतिरिक्त श्रव्य गीत सभ छल।
पाँचम शताब्दी ई. पू. मे पाणिनी शिलालिन् आ कृशाश्वक चर्चा करै छथि जे नट सूत्रक संकलन केने रहथि। नट माने अभिनेता आ रंग माने रंगमंच। नटक पर्यायवाची होइत अछि, भरत, शिलालिन् आ कृशाश्व!
मैथिली नाटक जे आइ धरि मात्र नृत्य-संगीतसँ बेशी आ चित्रकला आ दस्तकारीसँ मामूली रूपसँ जुड़ल छल, से आब भौतिकी, जीव विज्ञान, इतिहास, भूगोल, आ साहित्यसँ सेहो जुड़ए, तकर प्रयास हेबाक चाही।
३
अभिनय पाठशाला:
विभिन्न औजारकेँ पकड़बाक आ चलेबाक विधि: ओकर ग्रीसिंग आदि केनाइ, ओकरा सुरखित रखनाइ सिखाउ। घरकेँ कोना साफ राखी, साफ आ अव्यवस्थित घरमे अन्तर, कोन चीजकेँ बेर-बेर साफ करऽ पड़ैए, कोनकेँ नै से सिखाउ। कनियाँ-पुतराक निर्माण, तार, फाटल-पुरान कपड़ा, टूटल चूड़ी/ गहना, पुरान साड़ी, रुइया आदिसँ मुँह, आँखि आदिक चित्रण होइत अछि। शरीरक चमड़ा लेल प्लास्टिक आदि वा कपड़ापर रंगक परत लगाउ। ऊन आदिसँ केस बनाएब, वीर, योद्धा आदि बनबैले तलवार लेल काठी आ पैघ जुत्ता, आ फेर मजदूर गुड़िया आदि बनेनाइ सिखाउ। माने सभ तरहक पात्रक निर्माण।
मवेशी पन्हेनाइ, दूध दुहनाइ, लथारसँ बचबाक अभिनय, दही पौरनाइ, लस्सी घोटनाइ, आँखि आ हाथक मिलान ई सभ काल्पनिक रूपेँ सिखाउ। खेल जेना करिया झुम्मरि आदिक परिचय दियौ।
कागचक नाव आ हवाइ जहाज बनेनाइ आ रेखाचित्र बनेनाइ सिखाउ। लिखलकेँ बुझबाक आ विषयकेँ बुझबाक तरीका अछि रंगमंच।
अभिनय- चलनाइ, चलनाइ सेहो कएक प्रकारक होइत अछि, हड़बरा कऽ चलनाइ, कोनो बोझ, कोदारि आदि उठा कऽ चलनाइ, जोशमे, दुखमे चालि आ थाकल ठेहिआयल चालि, नेङरा कऽ चलनाइ, भेड़ चालि, नारा लगबैत चलब, दू-तीन टा संगीक संग चलब, ई सभ बच्चा वा प्रौढ़ अभिनेताकेँ नीक जकाँ सिखाउ। स्पर्श:- गरम वस्तु छूनाइ, ठंढ़ा छूब, कड़गर आ मोलायम वस्तु छूब, फ़ेर तकर प्रतिक्रिया, भय-आसक्ति-तामस-लाज-नै करए बला भाव, जिद्द, दुःख, हँसी (खीखीसँ मुँह बन्न कऽ हँसबा धरि), देखनाइ खुशीसँ, आश्चर्यसँ, विभिन्न प्रकारक दृश्यपर प्रतिक्रिया सेहो देखेबाक आवश्यकता अछि। बजार, स्कूल, घर, सभा आदि कार्य, स्मरण शक्ति, शब्दावली, ध्यान, व्यक्तित्व, क्षमता, विचारधारा, स्वाभिमान, इच्छा, शारीरिक विश्वास प्रदर्शन, उत्साह, स्त्री-पुरुष विमर्श, मनोविज्ञान, कविता, गद्य, गीत, कथा आ प्रहेलिकाक समावेश, तकर स्मरण आ वाचन ऐ सभपर ध्यान देब आवश्यक अछि। अंग प्रचालन, नृत्य, संगीत, हस्त संचालन, कसरत (सम्मिलित रूपेँ), हवाक झोंकाक भीतर आएब, ऐ सँ खिड़की खुजब किछु माथपर खसब आदिक काल्पनिक अनुभव, ऐ सभक अनुभव बच्चा सभकेँ कराउ। वातावरण, गति, रूप, आकार-प्रकारक अनुभव। अपनसँ अलग प्रकारक व्यक्तित्वक अभिनय, ध्वनि आ दृश्यक संबंध आ दुनूक संगे-संग पुनरावृत्ति, वास्तविक आ काल्पनिक दुनूक मंचन, कोनो विषयपर वार्तालाप, किताब, अखबार, वृत्तचित्रक विषय, तात्कालिक विषय, जबरदस्ती यादि कराएब गलत मुदा सुनि-सुनि कऽ मोन राखब नीक। खेल- दूटा दल बना कऽ अभिनय, दल बना कऽ सेहो, एक दल सुतत, दोसर दल नढ़िया/ कौआ बनि उठाएत,श्लोक आदिक समवेत पाठ, ई सभ अभ्यास कराउ।
वर्कशॉपमे:- -किनको कोनो काजमे दिक्कत होइन्ह तँ दोसरकेँ ओकर सहायता लेल कहू, -ककरो सुझावपर आपसमे सलाह लिअ आ मिल कऽ विचार करू, क्षमता अनुसारे काज दियौ, जे नीकसँ काज केलनि तकरा प्रशंसा सेहो भेटबाक चाही, मीठ बाजब सिखाउ, सही बाजब सिखाउ, बजबासँ पहिने अपन बेर अएबा धरि रुकू, निर्देशक पालन करू, बौस्तुकेँ बाँटि कऽ आ मिल कऽ प्रयोग केनाइ सिखाउ, कर्तव्यक बोध कराउ, जिम्मेवारी दियौ, सामूहिक कार्यमे भाग लिअ, अन्य सामाजिक व्यवहार अपनाउ, अवलोकन आ श्रवण द्वारा सम्भाषण आ अभिनय सिखाउ, अनुकरण द्वारा अभिनय सिखाउ, कोनो चीज दोहरा कऽ अभिनय सिखाउ, प्रशंसा/ प्रोत्साहनसँ सिखाउ, मनोरंजन आ आनन्दयुक्त वातावरण बनेने रहू, नमगर व्याख्यान नै दियौ, उदाहरण, अभ्यास आ प्रोत्साहन बेशी कारगर हएत (भाषणक बदला), दण्डसँ बचू, दू बच्चाक तुलनासँ बचू, कोनो बच्चाकेँ दोसर बच्चाक नजरिमे नै खसाउ, बाहरी लोकसँ बच्चा सभक भेँट करबाउ, त्योहार/ उत्सव संग मिल मनाउ, मिलि जुलि कतौ घुमैले जाउ, स्नेहसँ देखू/ मुस्की दियौ/ माथ हिला कऽ समर्थन करू/ पीठ ठोकू/ माता-पिताकेँ ओकर प्रशंसा करू/ मुदा बेर-बेर ओकर प्रशंसा ओकर सोझाँमे नै करू/ चॉकलेट आदिक लालच नै दियौ/ कोनो एहेन चीज नै गछि लिअ जे अहाँ पूर्ण नै कऽ सकी। पाँचसँ कम उमेरक बच्चाकेँ गलतीक कारण नै बताउ- ओतेक बुद्धि ओइ उमेरमे नै होइ छै। मुँहसँ/ इशारासँ, आवाज आ मुँह हिला कऽ गलती करबासँ रोकू, आवश्यकता हुअए तँ छोट-मोट दण्ड, पाँचसँ बेशी उमेरक बच्चाकेँ दियौ, मुदा ओकरा मारियौ नै, लज्जित नै करियौ/ शिकाइत नै करियौ, निर्णय लेबाक आदति दियौ, भागेदारीक सुखक अनुभव कराउ, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सिखबियौ, आत्मनिर्भर भेनाइ सिखबियौ, स्वभावक विषयमे बतबियौ, बात करबाक कला, आपसक सम्बन्ध, सार्वजनिक सम्पत्तिक आदर केनाइ सिखबियौ, पर्यावरणक ध्यान रखनाइ सिखबियौ, भावनाकेँ ठेस नै पहुँचबियौ, प्रश्न करबाक कला सिखबियौ, जीवनक नायक केहेन हेबाक चाही से बतबियौ, आत्मशक्तिक शक्तिक वर्णन करू, अपन गामकेँ बूझब सिखबियौ, धर्म-राजनीतिक-जातिक गुत्थी बुझबियौ।
अभिनयक पाठशालाक कार्यशाला लेल आवश्यक तत्व:
-शारीरिक आ अभिनय क्षमताक विश्लेषण/ शरीर रचना शास्त्रक ज्ञान/ नाटकक समाजशास्त्रीय दृष्टिसँ भेद/ नाट्य मंचनक जीबाक साधनसँ रहल जुड़ाव आ प्रभाव/ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आ राजनैतिक वातावरणक अध्ययनक दृष्टिसँ नाट्य मंचक प्रकारक सम्बन्ध, सिखबाक आ बुझबाक कलाक विकास, कोनो अवधारणाकेँ बनेनाइ आ ओकरा बुझि कऽ मंचन केनाइ, अभिनय लेल चलबाक आ बजबाक अभ्यास आ नाटक संस्कृतिक अंग बनि जाए तकर प्रयास, इतिहासक कालखण्ड आ ओइ कालखण्ड सभक नाटकक परिचय, तखुनका कालकेँ मंचपर स्थापित करब आ ऐ लेल इतिहास, भूगोल आ सामाजिक, सांस्कृतिक, रजनैतिक, आर्थिक अवस्थाक परिचय कराउ। पेशागत रंगकर्मक अवलोकनसँ मंचक पाछाँ होइबला काजक विषयमे जानकारी भेटत। नाटकक कालखण्डक अनुरूप मंच आ पहिराबाक अध्ययन, विभिन्न कालखण्डक नाटकक रेकॉर्डिंग वा मंचनकेँ जा कऽ देखबाक आवश्यकता आ ओइ कालक फोटो, चित्रकला आ आन सूचनाक संकलन। संगीत-नाटक अकादेमी, दिल्लीमे ढेर रास डोक्यूमेन्ट्री देखबा लेल आ ढेर रास सान्द्र मुद्रिका किनबा लेल उपलब्ध अछि।
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कोलकातामे १८५० ई.क आसपास आधुनिक रंगमंच- ब्रिटिश क्लबमे शुरू भेल, मुदा बाहरी लोकक प्रवेश ओतए नै छलै। जात्रा आधारपर- विद्यासुन्दर (प्रेमी-प्रेमिकाक कथा)- बांग्ला खेलाएल जाइ छल, भारतेन्दु सेहो रासलीलाक आधारपर लिखलन्हि। विष्णुदास भावे- सीता स्वयंवर (१८४३ई.), मराठीमे यक्षगण (कर्णाटक)क आधारपर एकटा प्रयोग छल। हबीब तनवीर- नजीर कविपर- आगरा बाजार आ मृच्छकटिकम् (शूद्रकक संस्कृत नाटकक हिन्दीमे), शम्भु मित्र, बी.वी.कारन्थ, के.एन.पणिक्कर, रतन थियाम (चक्रयुध- अभिमन्यु कथापर, गीत-नृत्य आधारित, किछु लोक एकरा बैले बुझलन्हि।), पणिक्कर आ कारन्थ स्वर आ बोलक प्रयोग केलन्हि। कारन्थ-आलापक सेहो प्रयोग केलन्हि। १९५६ ई. संगीत-नाटक अकादेमी द्वारा प्रथम राष्ट्रीय नाट्य उत्सव- कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् (संस्कृत) सँ उत्सवक प्रारम्भ- गोवा ब्राह्मण सभा द्वारा। पणिक्करक मध्यम व्यायोग- भास (संस्कृत) आ थियाम- भास उरुमुगम (मणिपुरी) केलथि जइमे कलाकार नृत्यशैलीमे आस्तेसँ आबथि आ जाथि।
विजय तेन्दुलकरक घासीराम कोतवाल, जकर आधार छल नाना फड़णवीस आ दोसर पुणेक भ्रष्ट ब्राह्मण (दशावतार आधारित पारम्परिक शैलीमे),आ शान्तत- कोर्ट चालू आहे; गिरीश कर्णाडक हयवदन (कथासरित्सागर- यक्षगण आधारित); मोहन राकेशक आषाढ़ का एक दिन, शम्भू मित्र- डायरेक्टर- रवीन्द्रनाथ, इब्सेन (डॉल्स हाउस), उत्पल दत्त- कल्लोल (तरंगक ध्वनि) ई सभ आधुनिक रंगमंचकेँ आगाँ बढ़ेलन्हि।
५
पारसी रंगमंच:- मुम्बइक आर्थिक रूपेँ सम्पन्न पारसी समुदायक, एकरा हाइब्रिड (वर्णशंकर वा मिश्र) रंगमंच कहल जाइत अछि। १८५३ ई. मे एकर प्रारम्भ भेल। १९४० ई .धरि ई नीक-नहाँति चलैत रहल। सिनेमाक आगमनक बाद एकर मृत्यु भऽ गेल। एकरासँ जुड़ल लोक सिनेमाक क्षेत्रमे चलि गेलाह। पारसी नाटकक किछु प्रसिद्ध नाटक जेना इन्दर सभा, आलम आरा आ खोन्ने नहाक (सेक्सपियरक हेमलेट आधारित) सिनेमा बनि सेहो प्रस्तुत भेल।
विषय वस्तु: पारसी नाटकक विषय-वस्तु महाकाव्य आ पुराण आधारित छल। एकर विषय ऐतिहासिक आ सामाजिक छल। सभ बेर पर्दा खसबाक बाद हास्य कणिका खेलाएल जाइत छल। देश-विदेशमे पारसी थियेटरक प्रदर्शन होइत छल।रोमांच आ रहस्य एकर मुख्य अंग छल। चित्रित पर्दाक प्रयोग होइ छल। पर्दा कोनो रहस्य एलापर खसै छल। दर्शकक मांगपर रिटेक सेहो भऽ जाइ छलै आ ई रिटेक कोनो दृश्य वा कोनो गीतक पुनः प्रस्तुतिक रूपमे होइ छल, आ तइ लेल पर्दा फेरसँ उठि जाइ छलै। राजा रवि वर्मा आ पारसी थियेटर दुनू एक दोसरासँ प्रभावित छलाह। पारसी थियेटरक कलाकारक पहिराबा आ मंच सज्जापर राजा रवि वर्माक चित्रकलाक प्रभाव छल आ राजा रवि वर्मा अपन चित्रकलाक विषयक प्रेरणा पारसी थियेटरक दृश्यसँ ग्रहण करैत छलाह।
६
भरतक नाट्यशास्त्र:
नाटक दू प्रकारक लोकधर्मी आ नाट्यधर्मी, लोकधर्मी भेल ग्राम्य आ नाट्यधर्मी भेल शास्त्रीय उक्ति। ग्राम्य माने भेल कृत्रिमताक अवहेलना मुदा अज्ञानतावश किछु गोटे एकरा गाममे होइबला नाटक बुझै छथि। लोकधर्मीमे स्वभावक अभिनयमे प्रधानता रहैत अछि, लोकक क्रियाक प्रधानता रहैत अछि, सरल आंगिक प्रदर्शन होइत अछि, आ ऐ मे पात्रक से ओ स्त्री हुअए वा पुरुष, तकर संख्या बड्ड बेसी रहैत अछि। नाट्यधर्मीमे वाणी मोने-मोन, संकेतसँ, आकाशवाणी इत्यादि; नृत्यक समावेश, वाक्यमे विलक्षणता, रागबला संगीत, आ साधारण पात्रक अलाबे दिव्य पात्र सेहो रहै छथि। कोनो निर्जीव/ वा जन्तु सेहो संवाद करऽ लगैए, एक पात्रक डबल-ट्रिपल रोल, सुख दुखक आवेग संगीतक माध्यमसँ बढ़ाओल जाइत अछि।
नाट्यधर्मक आधार अछि लोकधर्म। लोकधर्मीकेँ परिष्कृत करू आ ओ नाट्यधर्मी भऽ जाएत।
लोकधर्मीक दू प्रकारक- चित्तवृत्यर्पिका (आन्तरिक सुख-दुख) आ बाह्यवस्त्वनुकारिणी (बाह्य- पोखरि, कमलदह)। नाट्यधर्मी-सेहो दू प्रकारक कैशिकी शोभा (अंगक प्रदर्शन- विलासिता गीत-नृत्य-संगीत) आ अंशोपजीवनी (पुष्पक विमान, पहाड़ बोन आदिक सांकेतिक प्रदर्शन)।
सम्पूर्ण अभिनय- आंगिक (अंगसँ), वाचिक(वाणीसँ), सात्विक(मोनक भावसँ) आ आहार्य (दृश्य आदिक कल्पना साज-सज्जा आधारित)। आंगिक अभिनय- शरीर, मुख आ चेष्टासँ; वाचिक अभिनय- देव, भूपाल, अनार्य आ जन्तु-चिड़ैक भाषामे; सात्विक- स्तम्भ(हर्ष, भय, शोक), स्वेद (स्तम्भक भाव दबबैले माथ नोचऽ लागब आदि), रोमंच (सात्विकक कारण देह भुकुटनाइ आदि), स्वरभंग ( वाणीक भारी भेनाइ, आँखिमे नोर एनाइ), वेपथु (देह थरथरेनाइ आदि), वैवर्ण्य (मुँह पीयर पड़नाइ), अश्रु (नोर ढ़ब-ढ़ब खसनाइ, बेर-बेर आदि), प्रलय (शवासन आदि द्वारा); आ आहार्य- पुस्त (हाथी, बाघ, पहाड़ आदिक मंचपर स्थापन), अलंकार (वस्त्र-अलंकरण), अंगरचना (रंग, मोंछ, वेश आ केश), संजीव (बिना पएर-साँप, दू पएर-मनुक्ख आ चिड़ै आ चारि पएरबला-जन्तु जीव-जन्तुक प्रस्तुति)द्वारा होइत अछि।
दूटा आर अभिनय- सामान्य (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय) आ चित्राभिनय (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय): चतुर्विध अभिनयक बाद सामान्य अभिनयक वर्णन, ई आंगिक, वाचिक आ सात्विक अभिनयक समन्वित रूप अछि आ ऐ मे सात्विक अभिनयक प्रधानता रहैत अछि। चित्राभिनय आंगिकसँ सम्बद्ध- अंगक माध्यसँ चित्र बना कऽ पहाड़, पोखरि चिड़ै आदिक अभिनय विधान।
नाट्य-मंचन आ अभिनय: कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाट्य निर्देशकक लेल पठनीय नाटक अछि। रंगमंच निर्देश, जेना, रथ वेगं निरूप्य, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं, इति शरसंधानम् नाटयति, वृक्ष सेचनम् रुपयति, कलशम् अवरजायति, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति, शकुन्तला परिहरति नाट्येन, नाट्येन प्रसाधयतः, कहि कऽ वास्तविकतामे नै वरन् अभिनयसँ ई कएल जाइत अछि। नाट्येन प्रसाधयतः, एतए अनसूया आ प्रियम्वदा मुद्रासँ अपन सखी शकुन्तलाक प्रसाधन करै छथि कारण से चाहे तँ उपलब्ध नै अछि, चाहे तँ ओतेक पलखति नै अछि। तहिना वृक्ष सेचनम् रुपयति सँ गाछमे पानि पटेबाक अभिनय, कलशम् अवरजायति सँ कलश खाली करबाक काल्पनिक निर्देश, रथ वेगं निरूप्य सँ तेज गतिसँ रथमे यात्राक अभिनय, इति शरसंधानम् नाटयति सँ तीरकेँ धनुषपर चढ़ेबाक निर्णय, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं सँ हरिणकेँ मारि खसेबाक दृश्य देखबाक निर्देश, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति सँ दुश्यन्तक शकुन्तलाक मुँहकेँ उठेबाक इच्छा, शकुन्तला परिहरति नाट्येन सँ शकुन्तला द्वारा दुश्यन्तक ऐ प्रयासकेँ रोकबाक अभिनयक निर्देश होइत अछि।
भरतक रंगमंच: ऐ मे होइत अछि- पाछाँक पर्दा, नेपथ्य (मेकप रूम बुझू), आगमन आ निर्गमनक दरबज्जा, विशेष पर्दा जे आगमन आ निर्गमन स्थलकेँ झाँपैत अछि, वेदिका- रंगमंचक बीचमे वादन-दल लेल बनाओल जाइत अछि, रंगशीर्ष- पाछाँक रंगमंच स्थल; मत्तवर्णी-आगाँ दिस दुनू कोणपर अभिनय लेल होइत अछि आ रंगपीठ अछि सोझाँक मुख्य अभिनय स्थल।
अभिनय मूल्यांकन: अध्याय २७ मे भरत सफलताकेँ लक्ष्य बतबै छथि, मंचन सफलतासँ पूर्ण हुअए। दर्शक कहैए, हँ, बाह, कतेक दुखद अन्त, तँ तेहने दर्शक भेलाह सहृदय, भरतक शब्दमे, से ओ नाटककार आ ओकर पात्रक संग एक भऽ जाइत छथि।
नाट्य प्रतियोगिता होइत छल आ ओतए निर्णायक लोकनि पुरस्कार सेहो दै छलाह।
भरत निर्णायक लोकनि द्वारा धनात्मक आ ऋणात्मक अंक देबाक मानदण्डक निर्धारण करैत कहै छथि जे-
१.ध्यानमे कमी, २.दोसर पात्रक सम्वाद बाजब, ३.पात्रक अनुरूप व्यक्तित्व नै हएब, ४.स्मरणमे कमी, ५.पात्रक अभिनयसँ हटि कऽ दोसर रूप धऽ लेब, ६.कोनो वस्तु, पदार्थ खसि पड़ब, ७.बजबा काल लटपटाएब, ८.व्याकरण वा आन दोष, ९.निष्पादनमे कमी, १०.संगीतमे दोष, ११.वाक् मे दोष, १२.दूरदर्शितामे कमी, १३.सामिग्रीमे कमी, १४.मेकप मे कमी, १५. नाटककार वा निर्देशक द्वारा कोनो दोसर नाटकक अंश घोसियाएब, १६.नाटकक भाषा सरल आ साफ नै हएब, ई सभ अभिनय आ मंचनक दोष भेल।
निर्णायक सभ क्षेत्रसँ होथि, निरपेक्ष होथि। नाटकक सम्पूर्ण प्रभाव, तारतम्य, विभिन्न गुणक अनुपात, आ भावनात्मक निरूपण ध्यानमे राखल जाए।
स्टेजक मैनेजर- सूत्रधार- आ ओकर सहायक –परिपार्श्वक- नाटकक सभ क्षेत्रक ज्ञाता होथि। मुख्य अभिनेत्री संगीत आ नाटकमे निपुण होथि, मुख्य अभिनेता- नायक- अपन क्षमतासँ नाटककेँ सफल बनबै छथि।अभिनेता- नट- क चयन एना करू, जँ छोट कदकाठीक छथि तँ वाणवीर लेल, पातर-दुब्बर होथि तँ नोकर, बकथोथीमे माहिर होथि तँ बिपटा, ऐ तरहेँ पात्रक अभिनेताक निर्धारण करू। संगीत-दलक मुखिया- तौरिक- केँ संगीतक सभ पक्षक ज्ञान हेबाक चाही जइसँ ओ बाजा बजेनहार- कुशीलव- केँ निर्देशित कऽ सकथि।
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मैथिली नाटक: बड्ड रास भाषण मैथिली आ आन नाटकक प्राचीनसँ आधुनिक काल धरि रहल तारतम्यक विषयमे देल गेल अछि। मुदा सत्य यएह अछि जे भारत वा नेपालक कोनो कोणमे रंगमंच आ रूपकक निर्देश भरतक नाट्यशास्त्रक अनुरूपेँ उपलब्ध नै अछि, ओकर पुनः स्थापन भरिगर काज तँ अछिये, मुदा प्रयास नै भेल सेहो नै अछि। बिनु ज्ञानक कालिदासक नाटकक लघुरूप भयंकर विवाद उत्पन्न करैत अछि। लोक नाट्यक नाट्यशास्त्रक अनुरूप निरूपण कऽ उपरूपकक मंचनक सम्भावना मैथिलीमे अछि। विदेह नाट्य (आ फिल्म) उत्सव २०१२ ऐ दिशामे एकटा प्रयास अछि।
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