हम पुछैत छी: मुन्नाजी
पुरनके जमानासँ लिखैत, नव कालमे देखार भेल दिग्गज कथाकार श्री धीरेन्द्र कुमार जीसँ मुन्नाजी पुछलनि हुनक संपूर्ण कथा यात्राक तीत-मीठ अनुभव जे प्रस्तुत अछि अपने सबहक सोझा-
(1) मुन्नाजी- धीरेन्द्रजी प्रणाम! अहाँ आइसँ कतेक दशक पहिने “मिथिला मिहिर”क माध्यमे कथा-यात्रा प्रारम्भ केलौं। पहिल कथा कोन आ कहिया छपल?
धीरेन्द्र कुमार- नमस्कार मुन्नाजी, हम सतरि दशकसँ लिखब शुरू केने रही। रमानंद रेणुक सानिध्य भेटल छल। मिथिला मिहिरक सम्पादक भीमनाथ झा पहिल पहिल कथा प्रकाशित केने छलाह। पहिल कथा कोन अछि से मोन नै अछि।
(2) मुन्नाजी- एतेक पहिने प्रारम्भ भेल कथायात्रा आगू चलि किएक ठमकि गेल ओकर कोनो विशेष कारण तँ नै?
धीरेन्द्र कुमार- 92क बाद हमरा लागल छल हम जे लिखै छी ओकर पढ़ुआ कम लोक छथि आ कथामे जे कथ्य होइ छै ओ समाजक प्रत्यक्ष स्तर कम अबैत अछि। ओकर बाद भारतीय कम्युनिष्ट पार्टीसँ प्रभावित भेलौं आ ए.आइ.टी.सी.सँ सम्बद्ध भ' जमीनपर काज करए लगलौं। 1995-96मे आकाशवाणीसँ कथा-वाचनक आमंत्रण भेटल छलए, जत' अधिकारीसँ वाद-विवाद भ' गेल। ओ अधिकारी के छलाह मोन नहि अछि। हँ, सीताराम शर्माजी ऐ गप्पक संकेत पहिने द' देने छलाह। हमरा प्रतीत भेल छल जे अन्याय आ भ्रष्टाचारक विरूद्ध जँ किछु क' सकी सएह सार्थक।
(3) मुन्नाजी- अहाँ जहिया कथा लिखब शुरू केलौं तहिया आओर आजुक कथा रचनाक तुलनात्मक परिवेश केहेन देखना जाइछ?
धीरेन्द्र कुमार- भाषा जीवंत होइ छै। तै समैमे अधुनातन प्रयोगक आभाव छल मुदा आइ साहित्य समाजक संगे ताल मिला क' चलि रहल अछि। तै लेल आजुक रचना सभ दृष्टव्य अछि।
(4) मुन्नाजी- अहाँ एखन धरि कतेक कथा लिखलौं आ कतए-कतए छपल, पुन: रचनात्मक मुख्यधारामे जुड़बाक सुत्र की छल?
धीरेन्द्र कुमार- करीब पचास कथा प्रकाशित अछि। मिथिला मिहिर, मिथिला दर्शन वैदेही आदिमे। विभूति आनंदक तगेदा आ उमेश मण्डलजीक सम्पर्क हमरा कलम पकड़ा देलक।
(5) मुन्नाजी- अहाँक कथाक रचनात्मक प्रक्रिया केहेन कथानकपर केन्द्रित रहैछ आ तकर की कारण?
धीरेन्द्र कुमार- उदात-प्रेम आ समाजक छोट-छोट दुख जे प्रत्यक्षत: देखबामे कम अबैत अछि। हम समाजक निम्नवर्गमे तथाकथित समाजसँ गिनल जाइ छी ओहो गरीब परिवारमे जन्म। गरीब संगे उठनाइ-बैसनाइ। ऐमे ग्लानि नै आनि कमजोर बुझै छी।
(6) मुन्नाजी- अहाँ मैथिली रचना आन्दोलनमे जातिवादी वा समूहवाजी फाँटकेँ कोन नजरिये देखै छी, की ऐसँ प्रभावित भऽ अहाँक रचनात्मक धारासँ पुन: हेरा जेबाक वा बिला जेबाक संभावना तँ नै देखाइछ?
धीरेन्द्र कुमार- मैथिली रचनामे आ प्रोत्साहनमे गुटबंदी, राजनीति अवस्य अछि। हिंदी साहित्योकेँ इतिहास देखल जा सकैत अछि। मुदा हम ऐ गुटबंदीसँ प्रभावित कहियो नै भेलाैं। हमरा संगे, अग्नि पुष्प, नरेन्द्र झा, उदय मिश्र, विभूति आनंद, शैलेन्द्र, रतिनाथ, साकेतानंद, प्रभास कुमार चौधरी, मोहन भारद्वाज, ज्योतिवर्द्धन, शैवाल सभ संगे रहलौं। रचनात्मक स्तर आ व्यक्तिगत स्तरपर हम कहियो उपेक्षित नै भेलाैं।
दमदार रचना आत्मतोष अवस्स पहुँचबैत अछि। ओकरा कोनो गुटबंद सदाक लेल झांपि नै सकैत अछि। हँ तखन किछु समए तँ जरूर अपना प्रभावमे दाबि वा कतिया सकैत अछि जे बेबस्थाक दोष भेल। ओना हमरा एकर कोनो भय नै अछि। रचना हमरा लेल स्वांत:सुखाय अछि।
(7) मुन्नाजी- गएर बाभनक रचनाकारक समूहक सक्रिय उपस्थितिसँ अहाँ अपनाकेँ कतेक प्रभावित मानै छी, ओकरा माध्यमे अपन गातक मजगुती देखाइछ वा प्रतिद्वन्दिता?
धीरेन्द्र कुमार- एे प्रश्नक जबाब ऊपर आबि गेल अछि।
(8) मुन्नाजी- कथाक अतिरिक्त आओर की सभ लिखै छी, तकर की कारण?
धीरेन्द्र कुमार- रचनाकार कोनो विधा किए लिखै छथि ई िनर्भर अछि अभ्यास, कुशलता आ सहजतापर। जँ कौशल अछि तँ किछु लिख सकैत। एम्हर नाट्य विद्यालय दिल्लीसँ सम्पर्क भेलापर नाटक दिस रूझान भेल। नाटकमे परिस्थितिजन्य गीत होइत छैक- तँए कविता।
(9) मुन्नाजी- नवतुरक रचनाकारक प्रति केहेन अभिव्यक्ति रखैत छी ऐसँ केहेन आशा देखाइछ?
धीरेन्द्र कुमार- नवतुरिया रचनाकारसँ आशा अछि। पहिने ज्ञानवर्द्धन, शास्त्रक ज्ञान, समाजक अनुभव, जटिल मनोवृत्तिक अध्ययन आ अन्य भाषाक साहित्यक ज्ञान प्राप्त करताह। जिज्ञासु हृदेसँ दुनियाकेँ देखताह, नवीन प्रयोगसँ कथ्यक प्रस्तुितकरण करताह। तै दिस नवतुरक रचनाकारमे किछु प्रयत्नशील छथि।
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