Monday, September 3, 2012

सोच· सरोज ‘खिलाडी’ नेपालके पहिल रेडियो नाटक संचालक

सोच· सरोज ‘खिलाडी’ नेपालके पहिल रेडियो नाटक संचालक


सोच
(भैसा गामक बेरोजगार मुदा राजनीतिक पार्टीक सदस्य छथि। भैसा टेढ़-टे बात करमे माहिर मुदा सत्य आ इमानदार पात्र छथि, मतलब भैसा मजकिया छथि। आ भैसा सटा काम छोड़ि कऽ परसू बरियाती जाइ कऽ तैयारीमे जुटल छथि।)
भैसा— (ंभीर मुद्रामे क्यालकुलेटर आ कापी पेन ल) कम स कम कएटा रसरी हम खा सकै छी? फेर ओर २ मिठा सेहो खा अछि हमरा। रसबरी कनीक घटाबलै। दोसर कागजमे(सोचैत) लगभग रसरी २२० पिस मात्रे, लालमोहन त की खाउ? कम्मेसम खबै ११० पिस, लड्डु त के पुछै छै? मात्र ८० पिस। आ ओर –अओर मिठा मिला जुला क ६० गो। दही नै खबै, मन खराब भजा, नामक लेल मात्रे खबै, मात्र २३ तौला। (अचानक) जा ककक। हिसा जोरके चक्करमे त काला नुन आ जमाइनक फक्की खाके बिसरि गेली। (पुरिया निकालैत) जल्दी स खा लूदू दिनस भुकले छी, मिठाइ खाएला जल्दी स काला नुन, जमाइन खा लू, तखन ने हिसाब किताब चुक्ता होतै। दू दिन आरो बाकिए छै, जम्मा चारि दिन भुकले रहत। ठिके छै, लेकिन मिठा नै छोबै। (पुरिया निकालैत) एक बेर फेर काला नुन, जमाइन खा लू(ताबतेमे गामक छौड़ा पचासग्रामड़ाइत दौगैत भैसा लग अबै..)
पचासग्रामः— (ड़ाइत) होउ भैसा, भैया होउ भैसा, भैया।
भैसाः— (रजका फटकारैत) हइ,थीला बापबाप चिचिआइ छे? थी भेलौइ?
पचासग्राम (हकमैत)ःतोरा माके ती-चारि गो हथियारधारी छौड़ा पकड़ि कऽगेलौहँ
भैसा— (औगता क कनैत) हथियारधारी पकड़ि गेलैए? हे भगबान, इ रे, केमहर गेलै उ सभ?
पचासग्रामदी दिसन गेलै
भैसादी दिसन?एह दिन आइल रहै ५७ टा छौड़ा चन्दा लेब। त नै देलिऐ, पक्के ओहे स होतै। हम कोनो नै चिन्हने छिऐ? ठिक हइ, हम ओकर सबहक अड्डेपर जाछि। देर करबै तकि होतै नै होतै।
पचासग्रामहम त कहै छियौ नै जा, फोनतोन करतौ फोनस बात कऽलिहऽ
भैसाइ, फोनक भरोसे बैसु? हट, हमरा जाइ दे।
(भैसा हड़ाइत दौगैत नदी रफ जाइ छथि आ अड्डापर भैसाके १टा हथियारधारी पकड़ि पुछैए।)
थियारधारीइ, के छे तोँ?
भैसाभैसा। तो हमर माइकेँ अपहरण क लैले हँ। बता हमर मा काहाँ हइ?
(थियारधारी भैसाके पकड़िएह ठामक इन्चार्ज लग लजाइत अछि ..)
थियारधारीःहजुर, ओ बुढ़िया भूमी देवीके बेटा यिहे ह। माइके छोड़ा आइल ह
भैसाःइन्चार्ज साहेब, हमरा माइके छोड़ि दु। हम स तोहर कथी बिगारने छियौ?
इन्चार्ज—(बजबैत) रे अग्नी?
अग्नीजी
इन्चार्जरे वएह दिन चन्दा माँगगेले तथी कहलकौ छौड़ा?
अग्नीकहे, भगवान हानै देने छौ कमाइला?
इन्चार्जके अपनअपन काम छै, हमर सके कामे छै अपहरण कर के, मारि के पिट के। (भैसापर तकैत) सुन छौड़ा, ५० हजार ल आ। आ माइकेजो। आ सुन, आइ दिनसँ ऐठाम नै अबिहे, हम स अपने फोन करबौ।
भैसालेकिन हमरा लग पाँचो सय रुपैया नै ह। हम गरीब आदमी तोरा सके कत ओते रुपैया आनि दियौ?
इन्चार्जतखन एकटा काम कर, तो अपन मतारी हा धो ले। जो चलि जो घर, तोरा मतारी के चालिस टुकरा बोरामे न्द कदीमे फेक देबौ, कुता-ढ़ियाक पेट भरि तै।
भैसा— (पित स) रे मरदाबा के बेटा छे फरचीया नले अकेले अकेले। बन्दुकक बलस हिम्मत दखबै छे कायर।
इन्चार्ज— की रे? तो हमरा चुनौती देले हँ। रे तोरा सन सन चारि टाके हम अकेले उठा क फेक सकै छी, आ खेलबे, आ।
भैसा— ई तो अपन स कुताके कही, कि तो जे हारबे त हमर माइके छोड़ि देतौ आ गोली नै चलेतौ।
इन्चार्ज— (सैत) सुन ले रे छौड़ा भ, ई जीत जएतै त केउ गोली नै चलबीहे। बुझले?
(इन्चार्ज भैसाक माय लग जा क)
इन्चार्जबुढ़िया, तोहर बेटा हमरा फरचियाबके धमकी देलकौ(भैसापर तकैत) समझ गेलौ?
मायनै ओ जते, नै तो जएबा, आ कहु जएबे करबा त सुन क होतै हमरे कोख, कोनो मायक कोख।
इन्चार्जःबुढ़िया, तो भावनात्मक बात नै कर, मारि देख मारि
(इन्चार्ज आ भैसा मारि करबाक लेल भीड़ि जात अछि। इन्चार्ज भैसाके एक मुक्का दमारिक शुरुआत करैत अछि। इन्चार्जक मुक्का भैसाके लगिते भैसाक माय आह ककहि क चिचयाइत अछि आ भैसाक मुक्का इन्चार्जके लगिते फेरु भैसाक माय आह ककहिक चिचियात छथि। भैसाक मायके चिचयाइत सुनिक आदमीक ध्यान ओकर मायक तरफ जात अछि।)
इन्चार्जगइ बुढ़िया, हम ओकरा मारलि आ ओ हमरा। लेकिन तोहर मुहस खुन कथी ला निकलै छौ?
माय:- हम तखनीए कहलियौ कि केउ मारतै ककरो त चोट हमरे लागत।
इन्चार्ज— (सैत) सुनही रे छौड़ा भ, पिटतै हमरा, चोट लगतै एकरा
(केउ हसै छथि)

(मारि फेरु शुरु होत अछि। एमकी बेरक मारि लगातार पाँच मिनट चलैत अछि। पाँच मिनट तक माय आह क आह क चिचयाइत छथि। माय पाँच मिनटक बाद बेहोस भसि ड़ैत छथि। तखन)
इन्चार्ज—(माय तरफ देखैत) बाप रे, भैसाक मायके मुहस खुने-खुन निकलल छै। कोन आश्चार्य भेलै? चोट बास्तवमे एकरे मायके लगलै
भैसाआब कथी तोहर माय आ हमर माय। तोरो पिटलियौ चोट लगलै हमरे मायके। तखन त हमर तोहर सक माय भेलै नै?
न्चार्जअच्छा, एकटा बात, छौड़ाके पिट क देखिऐ, एकरा चोट लगै छै कि नै
(इन्चार्ज एकटा छौड़ाके पिटै छथि। मुदा छटपटाइत अछि भैसाक माय। इन्चार्ज डरस ओकर मायक पर पकड़ि कनैत कहै छथि..)
इन्चार्जमाय उठू, हमरासलती भेल, माफ करु। हा पुरे नेपालक माय छी। हमर सोच गलत छल। सक माय के होइ छै। ककरो बेटा आ घरबला मरै छै त दुख होइ छै मायकेँ, नेपाल मायके। हमसभ, मधेशी, हिमाली आ पहाड़ी जनता एके मायक सन्तान छी। आइस हम ककरो अपहरण नै करब आ ककरोस चन्दा नै मँगबै।
(कनैत.. हमरा माफ कदिअ.. बजैत अछि।)

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