सोच· सरोज ‘खिलाडी’ नेपालके पहिल रेडियो नाटक संचालक
सोच
(भैसा गामक
बेरोजगार मुदा राजनीतिक पार्टीक सदस्य छथि। भैसा टेढ़-टेढ़ बात करऽमे माहिर मुदा सत्य
आ इमानदार पात्र छथि, मतलब भैसा मजकिया
छथि। आइ भैसा सभटा काम छोड़ि कऽ परसू बरियाती जाइ कऽ तैयारीमे जुटल छथि।)
भैसाः— (गंभीर मुद्रामे क्यालकुलेटर आ कापी पेन लऽकऽ) कम सँ कम कएटा रसबरी हम खा सकै छी? फेर अओर २
मिठाइ सेहो खाइ कऽ अछि हमरा। रसबरी कनीकऽ घटाबऽ
पड़लै। दोसर कागजमे… (सोचैत) लगभग रसबरी २२० पिस मात्रे, लालमोहन तँ
की खाउ? कम्मेसम खबै ११० पिस, लड्डु तँ के पुछै छै? मात्र ८०
पिस। आ अओर –अओर मिठाइ मिला जुला कऽ ६० गो। दही नै
खबै, मन खराब भऽ जाएत, नामक लेल मात्रे खबै, मात्र २–३ तौला। (अचानक) जा ककक। हिसाब जोरऽके चक्करमे तँ काला नुन आ
जमाइनक फक्की खाइ के बिसरि गेलीऐ। (पुरिया निकालैत) जल्दी सँ खा लू। दू दिनसँ भुकले छी, मिठाइ खाएला जल्दी सँ काला नुन, जमाइन खा लू, तखन ने हिसाब
किताब चुक्ता होतै। दू दिन आरो बाकिए छै, जम्मा चारि दिन भुकले रहऽ पड़त। ठिके छै, लेकिन मिठाइ नै छोड़बै। (पुरिया निकालैत) एक बेर फेर काला नुन, जमाइन खा
लू। (ताबतेमे गामक छौड़ा पचासग्राम
हड़बड़ाइत दौगैत भैसा लग अबैए आ..)
पचासग्रामः— (हड़बड़ाइत) होउ भैसा, भैया होउ भैसा, भैया।
भैसाः— (रजका फटकारैत) हइ, कथीला बाप—बाप चिचिआइ छे? कथी भेलौअ आइ?
पचासग्राम
(हकमैत)ः— तोरा माइकेँ तीन-चारि गो हथियारधारी छौड़ा सभ पकड़ि
कऽ लऽ गेलौहँ।
भैसाः— (औगता कऽ कनैत) हथियारधारी पकड़ि
कऽ लऽ गेलैए? हे भगबान, आँइ रे, केमहर गेलैए उ सभ?
पचासग्रामः— नदी दिसन गेलैए।
भैसाः— नदी दिसन? वएह दिन आइल रहै ५—७ टा छौड़ा सभ चन्दा लेबऽ। तँ नै देलिऐ,
पक्के ओहे सभ होतै। हम कोनो नै चिन्हने छिऐ?
ठिक हइ, हम ओकर सबहक अड्डेपर जाइ छिऐ। देर करबै तँ
कि होतै नै होतै।
पचासग्रामः— हम तँ कहै छियौ नै जा, फोन—तोन करतौ तँ फोनसँ बात कऽलिहऽ।
भैसाः— हइ, फोनक भरोसे बैसु? हट, हमरा जाइ दे।
(भैसा हड़बड़ाइत दौगैत नदी तरफ जाइ छथि आ अड्डापर भैसाकेँ १टा हथियारधारी पकड़ि कऽ पुछैए।)
हथियारधारीः— हइ, के छे तोँ?
भैसाः— भैसा। तोँ सभ हमर माइकेँ
अपहरण कऽ कए लैले हँ।
बता हमर माइ काहाँ हइ?
(हथियारधारी भैसाकेँ पकड़ि कऽ वएह ठामक इन्चार्ज लग लऽ जाइत
अछि आ..)
हथियारधारीः— हजुर, ओ बुढ़िया भूमी देवीके बेटा यिहे हइ। माइकेँ छोड़ाबऽ आइल हए।
भैसाः— इन्चार्ज साहेब, हमरा माइकेँ
छोड़ि दु। हम सभ तोहर कथी बिगारने छियौ?
इन्चार्जः—(बजबैत) रे अग्नी?
अग्नी ः— जी।
इन्चार्जः— रे वएह दिन चन्दा माँगऽ गेले तँ कथी कहलकौ ई छौड़ा?
अग्नीः— कहे, भगवान हाथ पएर नै देने छौ कमाइला?
इन्चार्जः— सभकेँ अपन—अपन काम छै, हमर सभकेँ कामे छै अपहरण कर के, मारि के पिट के। (भैसापर तकैत) सुन छौड़ा, ५०
हजार लऽ कऽ आ। आ माइकेँ लऽ जो। आ सुन, आइ दिनसँ
ऐठाम नै अबिहे, हम सभ अपने फोन करबौ।
भैसाः— लेकिन हमरा लग पाँचो सय रुपैया नै हइ। हम गरीब आदमी तोरा सभकेँ कतऽ सँ ओते रुपैया आनि
दियौ?
इन्चार्जः— तखन एकटा काम कर, तोँ अपन मतारीसँ हाथ धो ले। जो चलि जो घर, तोरा मतारी केँ चालिस टुकरा कऽ कऽ बोरामे बन्द कऽ कऽ नदीमे फेक देबौ, कुता-नढ़ियाक पेट भरि जएतै।
भैसाः— (पित सँ) रे मरदाबा के बेटा छेँ
तँ फरचीया नऽ ले अकेले अकेले। बन्दुकक
बलसँ हिम्मत दखबै छेँ कायर।
इन्चार्जः— की रे? तोँ हमरा चुनौती देले हँ।
रे तोरा सन सन चारि टाके हम अकेले उठा कऽ फेक सकै छी, आ खेलबे, आ।
भैसाः— ई तोँ अपन सभ कुताकेँ कही, कि तोँ जे हारबे तँ हमर माइकेँ छोड़ि देतौ आ गोली
नै चलेतौ।
इन्चार्जः— (हँसैत) सुन ले रे छौड़ा सभ,
ई जीत जएतै तँ केउ गोली नै चलबीहे। बुझले?
(इन्चार्ज
भैसाक माय लग जा कऽ)
इन्चार्जः— बुढ़िया, तोहर बेटा हमरा फरचियाबऽ के धमकी देलकौअ। (भैसापर
तकैत) समझ ई गेलौ?
मायः— नै ओ जएते, नै तोँ जएबा, आ कहु जएबे करबा तँ सुन कऽ होतै हमरे कोख, कोनो
मायक कोख।
इन्चार्जः— बुढ़िया, तोँ भावनात्मक बात नै कर, मारि देख मारि।
(इन्चार्ज आ
भैसा मारि करबाक लेल भीड़ि जाइत अछि।
इन्चार्ज भैसाकेँ एक मुक्का दऽ कऽ
मारिक शुरुआत करैत अछि। इन्चार्जक मुक्का
भैसाकेँ लगिते भैसाक माय आह कऽकऽ
कहि कऽ चिचयाइत अछि आ
भैसाक मुक्का इन्चार्जकेँ लगिते फेरु भैसाक माय आह कऽकऽ कहिकऽ चिचियाइत छथि। भैसाक मायकेँ चिचयाइत
सुनिकऽ सभ आदमीक ध्यान ओकर मायक तरफ जाइत अछि।)
इन्चार्जः— गइ बुढ़िया, हम ओकरा मारलिऐ
यऽ आ ओ हमरा। लेकिन तोहर मुहसँ खुन कथी ला निकलै छौ?
माय:- हम तखनीए कहलियौ कि केउ मारतै
ककरो तँ चोट हमरे लागत।
इन्चार्जः— (हँसैत) सुनही रे ई छौड़ा सभ, पिटतै हमरा, चोट लगतै एकरा।
(सभ केउ हँसै छथि।)
(मारि फेरु शुरु होइत अछि। एमकी बेरक मारि लगातार पाँच मिनट चलैत अछि।
पाँच मिनट तक माय आह कऽकऽ आह कऽकऽ चिचयाइत छथि। माय पाँच मिनटक
बाद बेहोस भऽ कऽ खसि पड़ैत छथि। तखन…)
इन्चार्जः—(माय तरफ देखैत) बाप रे, भैसाक मायके मुँहसँ खुने-खुन निकलल छै। ई कोन आश्चार्य भेलै? चोट बास्तवमे एकरे मायकेँ लगलैए।
भैसाः— आब कथी तोहर माय आ हमर माय। तोरो पिटलियौअ तँ चोट लगलैए हमरे मायकेँ। तखन तँ हमर तोहर
सभक माय भेलै नै?
इन्चार्जः— अच्छा, एकटा बात, ओइ छौड़ाकेँ पिट कऽ देखिऐ, एकरा चोट लगै छै कि नै।
(इन्चार्ज
एकटा छौड़ाकेँ पिटै छथि। मुदा छटपटाइत अछि भैसाक माय। इन्चार्ज डरसँ ओकर मायक पएर पकड़ि कऽ कनैत कहै छथि..)
इन्चार्जः— माय उठू, हमरासँ गलती भेल, माफ करु। अहाँ तँ पुरे नेपालक माय छी। हमर सोच गलत छल। सभक माय एके होइ छै। ककरो
बेटा आ घरबला मरै छै तँ दुख होइ छै मायकेँ, नेपाल मायकेँ। हमसभ, सभ
मधेशी, हिमाली आ पहाड़ी
जनता एके मायक सन्तान छी। आइसँ हम ककरो अपहरण नै करब आ ककरोसँ चन्दा नै मँगबै।
(कनैत.. हमरा माफ कऽ दिअ.. बजैत अछि।)
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