मायानन्दक रेडियो-रूपक-शिल्प
समय परिवर्त्तनशील अछि, जकर प्रभाव अभिव्यक्तिक माघ्यम पर पड़ैछ आ साहित्यक स्वरूप विधान सेहो परिवर्त्तित भ’ गेल। अभिव्यक्तिक परिवर्त्तनक फलस्वरूप नाट्यक रूप-विधान पूर्णत: परिवर्त्तित भ’ गेल अछि। रेडियो रूपक औहने सुंदर पाठ्य सामग्री भ’ सकैछ जेना संस्कृतक अमर कवि अपन नाटकक सभमे देलनि। रेडियोक आविष्कारक फलस्वरूप रेडियो-रूपककेँ जकरा दृश्य काव्यक अन्तर्गत गणना कयल जाइत छल ओ आब श्रव्य-काव्यक श्रेणीमे परिवर्त्तित भ’ गेल अछि। रेडियो-रूपक एक नवरूपमे हमरा समक्ष आयल अछि। जाहि कला कृतिकेँ रंगमंचपर प्रेक्षकक समक्ष प्रस्तुत कयल जाइत छल ओ आब स्टूडियोमे अभिनीत भ’ कए श्रोताक कान धरि पहुँचि गेल अछि। पूर्वमे नाट्य-प्रेमी नाटकक समक्ष प्रस्तुत होइत छलाह, किन्तु आब नाटकक हुनका समक्ष प्रस्तुत होमय लागल अछि। आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे प्रेक्षक मात्र श्रोता रहि गेल अछि आ रेडियो सम्पन्न आ विभिन्न घरक प्रेक्षागृह बनि गेल अछि।
वस्तुत: रेडियो रूपक रंगमंचीय नाटकक दृश्य-पक्ष हैबाक कारणेँ शुद्ध शब्दमे निहित भावना पक्षमे कतहु-कतहु अवरोध्ा आबि सकैछ ओतय रेडिया-रूपकमे भावना पक्ष निर्वाध गतिशील रहैछ। रेडियो-रूपक पूर्णत: श्रव्य काव्यथिक।ध्वनि एकर मूलभूत अपार थिक ध्वनि भावाव्यक्तिक सशक्त साधन थिक। जे कार्य चित्रकारमे रंगक माघ्यमे करैछ रेडियो रूपककार आ प्रस्तुतकर्ता घ्वनिक माघ्यमे करैछ। एडवर्ड सेकविल वेस्टक कथान छनि जे आत्यन्तिक नमनीयता आ काल्चनात्मक सांकेतिकताक शक्तिक कारणेँ ई रंगमंच आ चित्रपटसँ अधिक नाटकीयताक सृष्टि करैत अछि।
अभिव्यक्तिक माघ्यमक परिवर्त्तनक प्रभाव मैथिली साहित्य चिन्तक मनीषी लोकनिपर सेहो पड़लनि कारण समयक जे मॉंग छलैक ओहिसँ साहित्य मनीषी लोकनि कोनो निरपेक्ष रहि सकैत छथि। एकर परिणाम भेल जे मैथिली साहित्यमे रेडियो-रूपकक रचनाक शुभारम्भ भेल तथा बीसम शताब्दीक उत्तरार्द्धमे ई विधा पूर्ण विकसित भ’ गेल जकर प्रभाव रचनाकार लोकनिपर पड़लनि।
स्वातंत्र्योत्तर काल मैथिली भाषा आ साहित्यक हेतु उत्थान कालक रूपमे जानल जाइत अछि, कारण कतिपय साहित्य-चिन्तक प्रादुर्भाव भेल जे मनसा-वाचा-कर्मणा अपन मातृभाषाक उन्नयनार्थ साहित्यिक गतिविधिमे सहयोग देलनि ताहि परिप्रेक्ष्यमे वर्त्तमान शताब्दी पल्लवित-पुष्पित भ’ रहल अछि। मैथिली भाषा आ साहित्यिक क्षेत्रमे गत शताब्दीमे क्रान्तिक बीज वपन भेल जे साहित्यिक गतिविधिकेँ दिश्ा संकेत करबामे सहायक सिद्ध भेल। कतिपय साहित्य सेवी तपः सपूत नव स्फूर्ति आ नव स्पन्दनक संग साहित्य ओ भाषाक सम्वर्द्धनमे अपन अभूतपूर्व साहित्यिक अवदानक संग प्रवेश कयलनि जे साहित्यक स्रोत एक नव स्पन्दनसँ भरय लागल तथा ओहिमे जे अभाव छल तकर पूत्यर्थ रचनाधर्मी साहित्य चिन्तक अत्यंत लगनशीलता आ तन्मयताक संग एकर सम्वर्द्धनार्थत्पर भेलाह जकर परिणाम भेल जे मातृभाषाक विशाल भण्डार केँ भरबाक निमित्त ओ सब कृत संकल्प भेलाह।
गत शताब्दीक चतुर्थ दशकमे मातृभाषाक उन्नयनार्थ एक नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा सम्पन्न साहित्य चिन्तकक प्रादुर्भाव भेल जे उपन्यासकारक रूपमे कथाकारक रूपमे, गीतकारक रूपमे आ समीक्षकक रूपमे सम्पोषित कयलनि ओ छथि मायानन्द मिश्र (1934) जनिक अक्षय कृतिसँ मैथिली पाठक नीक जकाँ परिचित छथि; किंतु ओ एक विशिष्ट रेडियो-रूपककार सेहो छथि तकर परिचय अद्यापि नहि भेटि पौलनि अछि तकर दोषी मैथिलीक इतिहासकार आ आलोचक छथि। एहि प्रसंगमे इतिहासकार आ आलोचक सर्वथा मौन छथि। ने जानि किएक ई एक अनुत्तरित प्रश्न अछि। रेडियोमे जीविकापन्न करबाक कारणेँ ओ समय-समयपर भवानन्दक नामे रेडियो-रूपकक रचना कयलनि। हिनक पॉंच रेडियो-रूपक अद्यापि हमरा दृष्टिपथपर आयल अछि ओ थिक, एके बापक बेटा, नवलोकः नवगप्प, गुड़-चाउर, अपन आन आ इतिहासक विसरल (अभियान-2) शेष चारू अद्यापि अप्रकाशित अछि, किन्तु सभक प्रसारण आकाशवाणी पटनासँ भेल अछि।
जीवकोपार्जनार्थ मायानन्द आकाशवाणी पटनाक चौपाल कार्यक्रमसँ विगत अनेक वर्ष धरि सम्वद्ध रहलाह तेँ हुनका समय-समयपर रेडियो रूपकक रचनाक प्रतिवद्धता रहलनि। ओ रेडियो-रूपकक शिल्पक सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पक्षक सूक्ष्मताक संग अघ्ययन कयलनि। हिनक उपलब्ध रेडियो रूपकमे हमर पारिवारिक, सामाजिक आ ऐतिहासिक पहलूक चित्रण भेल अछि। कलाकार युग-जीवनक प्रति अधिक जागरूक रहैछ तथा ओकर प्रयास रहैछ जे संसारकेँ खुजल ऑंखिए देखय। मायानन्द सजग मानवतावादी कलाकार छथि तेँ ओ युगीन समस्याक प्रति अपन जागरूकता देखौलनि। आधुनिक आर्थिक वैषम्यसँ उत्पन्न रिक्तताक स्थिति, समाजक मघ्यवर्गीय लोकक वेरोजगारी, ओकर दुर्दशा, सामाजिक यथार्थ आदिकेँ ओ अपन रेडियो रूपकमे चित्रित क’ कए ओहिपर तीक्ष्ण व्यंग्य सेहो कयलनि। यथार्थक पृष्ठभूमिपर आधारित आदर्श-स्वर हिनक रेडियो-रूपकमे मुख्य स्वर थिक।
कथानक :
मायानन्दक रेडियो-रूपकमे युगीन समस्याक प्रति अधिक जागरूकता देखबामे अबैछ। आधुनिक आर्थिक वैषम्यसँ उत्पन्न स्थिति समाजक मघ्यवर्गीय लोकक वेरोजगारी, ओकर दुर्दशा, संघर्ष आदिकेँ ओ अपन रेडियो रूपमे उपस्थापित कयलनि। एहि परिप्रेक्ष्यामे हमर समाजक पारिवारिक यथार्थकेँ अंंकित करबाक उपक्रम कयलनि जाहिसँ कथाक विकास सरल गतिसँ भेल अछि। कथाकार हैबाक कारणेँ ओ रेडियो-रूपकक कथानकक निर्माणमे अपन कुशलताक परिचय देलनि। ई अपन रेडियो रूपकक कथानक निर्माणमे जिज्ञासा तत्वपर विशेष बल देलनि। हिनक प्राय: सब रेडियो-रूपक कोनो-ने-कोनो रहस्यपर आधारित अछि जकरा उद्घाटित कयल गेल अछि जाहिसँ रूपक चमत्कारिक बनि गेल अछि। हिनक कथानक संघर्षपर आधारित अछि। कथानक निर्माणमे विशेष कौशल परिलक्षित होइत अछि। ओहिमे संघर्ष अछि, गति अछि।
एक्के बापक बेटाक कथानक एक आदर्श भातृप्रेमक उदाहरण प्रस्तुत करैत अछि। हरि आ मदन दूनू भय छथि। हरि एक आफिसमे अल्प वेतन भोगी मुलाजिम अछि। अपन छोट भाय मदनकेँ शिक्षित-दीक्षित करबामे ओ कोन-कोन ने बेलना बेललनि, किन्तु यथासमय नाेकरी-चाकरीक व्यवस्था नहि भ’ पौलनि तँ एक ट्यूशनक व्यवस्था कयलनि जाहिमे अपन वेतनक टाका मिला क’ ओकर अहाँक तुष्टि कयलनि। अन्तत: एहि रहस्यक उद्घाटन तखन होइछ जखन मदनक डिप्टी कलक्टरक परिणाम अबैत अछि। पारिवारिक परिवेशमे अल्प आयक कारणेँ कर्जक भारसँ आयल रिक्तताक एक सुखद सोहान वातावरणमे परिवर्त्तित भ’ जाइछ। अध्ाुुनातन संदर्भमे एहन भ्रातृ प्रेम कतहु नहि देखबामे अबैछ। रेडियो रूपककार एक एहन वातावरणक निर्माण करबामे सफल भ’ पौलनि अछि जे भ्रातृ प्रेमक अद्भूत उदाहरण प्रस्तुत करैछ।
पारिवारिक पृष्ठभूमिपर केन्द्रित अछि नव लोकः नवगप्पक कथानक। किसुन एवं विसुन दूनू भैयारी नोन-पानि जकॉं सम्मिलत रहैत छलाह, किन्तु जिलेबी साहूक कर्जक तगादाक कारणेँ पारस्परिक प्रेम एहन तिक्त वातावरणक निर्माण करबामे सक्षम होइछ जे एक दोसराक जानी दुशमन मानि संयुक्त परिवारके खण्डित करबाक हेतु डेग उठयबाक उपक्रम करैत छथि। मधुकान्तक सत्प्रयासेँ सब समस्याक समाधानोपरान्त तिक्तता मधुरिमामे परिवर्त्तित भ’ जाइछ तथा संयुक्त परिवार यथावत रहि जाइत अछि। रेडियो-रूपककार समाजिक परिवेशमे परिवर्त्तित विचारधाराक धरातलपर नव दिशा समाजकेँ एहिमे देबाक उपक्रम कयलनि अछि जे नवतावादी सर्वथा नव आयामक सृजन करबामे सहायक होहत छथि जे टूटैत परिवार पुन: संगठित भ’ जाइत अछि। अन्यथा विखण्डित भ’ जाइत।
पति-पत्नीक हास-परिहासपर केन्द्रित अछि गुड़ चाउर कथानक। पारिवारिक पृष्ठक भूमिमे कलहक जड़ि होइत अछि गहना-गुरिया जकरा लेल पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष्ा उत्पन्न भ’ कए प्रेमक पवित्र बंधनकेँ तोड़ि दैत अछि। द्वारिका अपन पत्नी लक्ष्मीकेँ आध्ा सेरक सूति गढ़बा दैत छथि जकर फलस्वरूप संयुक्त-परिवारमे विघ्नक बीजारोपण होइछ तथा माधव पत्नी जयाकेँ ई घटना सर्वथा अनसोहॉंत लगैत छनि। जया माधवकेँ सतत प्रेरित करैत छथि जे साझी आश्रममे रहबाक अब कोनो अर्थ नहि रहि गेल अछि। शनै:-शनै: समस्या एतेक गम्भीर भ’ जाइछ जे एहि घटनाकेँ ल’ कए द्वाारिका आ माधव संयुक्त परिवारक परम्पराकेँ खण्डित क’ कए भीन-बखरा करबाक हेतु उताहुल भ’ जाइत छथि। किन्तु लक्ष्मीकेँ ई स्वीकार नहि होइत छनि जे हुनका पसिन नहि। अन्तत: भीन-बखराक बात खटाईमे पड़ि जाइत अछि तथा दुनू भाय संयुक्त परिवारमे रहबाक अभिलाषी बनि जाइत छथि।
अपन आन रेडियो रूपकमे सामाजिक वातावरणक विशिष्ट संदर्भकेँ रेखांकित करैत अछि जे हमर समाजमे एहन-एहन महनुभाव एखनो वर्त्तमान छथि जनिक सतत इएह प्रयास रहैछ जे एहन विषम वातावरणक निर्माण करी से भाय-भायक बीच जे आपसी प्रेम, स्नेह, आ सद्भावना अछि ओ तिक्ततामे परिवर्त्तित भ’ जाय। शीतल झा एक एहने पात्र छथि जे मुखियाक चुनावक अवसरपर शिवान्त आ विष्णुकान्तकेँ चुनावमे एक दोसराक विरोधी रूपमे वर्णित क’ कए अपन उल्लू सोझ करबाक प्रयासमे लागि झूठ-फूस, प्रपंचक ताना वाना बुनि क’ दुनू भायकेँ चुनाव लड़बाक हेतु सतत उत्प्रेरित करैत रहैत छथि तथा दुनू पक्षसँ पर्याप्त टाका-पैसा ऐठि क’ अपन स्वार्थ सिद्धि करबामे कनियो कुंठित नहि होइत छथि। किन्तु वास्तविकताक रहस्योद्घाटन तखन जा क’ होइत अछि जखन कि पिताक वर्खीक अवसरपर दुनू भायकेँ एहि प्रसंगमे विस्तारसँ विवेचन करबाक अवसर भेटैत छनि तथा शीतल झाक वास्तविकतासँ अवगत होइत छथि।
सामाजिक कथानकक अतिरिक्त हिनक एक रेडियो रूपक थिक इतिहासक विसरल जाहिमे रूपककार इतिहासक एक आवृत अघ्यायकेँ अनावृत करबाक उपक्रम कयलनि अछि। एहिमे मल्ल जनपदक भट्टारक सूर्यकूलभूषण सम्राटक ओहि कथांश दिस संकेत कयलनि अछि जे भारतक प्राचीनतम विश्व विद्यालय वैदिक साहित्य आ परित्तनीक सूत्र अघ्ययनार्थ गेल रहथि, किंतु पितृत्यक देहावसानोपरांत सुखद जीवनक परित्याग क’ कए सम्राट पदकेँ सुशोभित कयलनि। आचार्य नागभद्रक पट्ट शिष्य श्रेष्ठ आर्य शिल्पीके पारखी सम्राट तत्क्षण हुनक शिल्प कलासँ परिचित भ’ जाइत छथि जनिक शिल्प-ज्ञान समग्र आर्यावर्त्तमे प्रख्यात तथा यशोध्वज दिग-दिगन्तमे व्याप्त छल। सम्राटक आदेशानुरूप शिल्पीकेँ दुर्गाक भव्य प्रतिमा निर्माण आज्ञा भेटैछ, किन्तु दुर्योगसँ एहन नहि भ’ पौलक आ मूर्ति निर्माण भ’ गेलैक राजकुमारी मारूतिका जे साम्राज्ञी छलीह। सम्राट क्रोधान्ध भ’ सूर्योदयसँ पूर्व ओकरा राज्य निष्कासनक आज्ञा देल गेलैक। कतोक दिनक पश्चात् आर्य शिल्पी विक्षिप्तता अवस्थामे मल्ल सम्राट रूद्र सिंहक समक्ष प्रस्तुत कयल जाइछ। सम्राट एहि विषयसँ अवगत रहथि जे नागभद्रक अथवा हुनक शिष्यक द्वारा बनाओल निर्मित प्रतिमामे प्राण प्रतिष्ठा स्वयं भ’ जाइत छैक। सम्राट इच्छा व्यक्त कयलनि जे एक एहन काल्पनिक अलौकिक नारीक कामना अछि जकर छवि इन्द्रधनुषोसँ अधिक आकर्षक, जकर कान्ति सघन जलदमे छिटकैत विद्युतलतोसँ अधिक प्रखर, जकर मादकता सोमरस पर्यन्तकेँ नीरस तथा कोमलता नवीनताकेँ कठोर बना दैत छैक। सम्राट इच्छा छलनि जे मल्ल जनपद विदैश्वकेँ पराकाष्ठाक काव्य-निर्माणक आधार दैक तथा सौन्दर्य स्नेहीकेँ महान् पवित्र मंदाकिनीक नीक स्नानक फल दैक। राजाक आज्ञा शिरोधार्य क’ कए मूर्ति निर्माणार्थ छओ पक्षक कलावधि देल जाइछ।
आर्य शिल्पीक अपूर्ण सौन्दर्य आ ओकार शिल्प ज्ञानपर आकर्षित भ’ कए राजकुमारी तुँगभद्रा शनै:-शनै: ओकार सामीप्य सुखक लाभक आकाकांक्षिणी बनि जाइछ तथा अपन अगाध स्नेह जलसँ ओकरा अभिसिक्त करबाक उपक्रम करैछ, किन्तु आर्य शिल्पीक समक्ष हुनक अरण्य रोदन निष्फल भ’ जाइछ। मूर्ति निर्माणमे शिल्पी ततेक ने तन्मय भ’ जाइछ जे मूर्तिक सौन्दर्य रेखा आर्य महारानी मारुति तथा नासिका आ भौं तुंगभद्रा सदृश स्वयंमेव बनि जाइछ। सम्राट आर्य शिल्पीक मूर्ति कलापर आकर्षित भ’ महामात्यक समक्ष विचार व्यक्त कयलनि जे तुँगभद्रा आ आर्य शिल्पी एकत्रित भ’ कए नूतन-शिल्पकलाक सृष्टि करथि, कारण राजकुमारी संगीत कलामे निपुण छलीह। एकर सुखद परिणाम हैत जे मल्ल जनपद सौन्दर्य सम्पदाक लेल पुन: विश्वभंरमे अपन ज्योति जगाओल। आर्य िशल्पीक मूर्त्तिकला क्षमता सर्वदा राजकुमारी तुंगभद्राक अनुरूप अछि। सम्राट व्यक्तिक मूल्य वैयक्तिक योग्यताक आधारपर अंकित करबाक आकांक्षी छथि। आर्य शिल्पी एवं तुंगभद्राक समाचारसँ मल्ल साम्राज्ञी उज्जैनक राजकुमारी मारुति जे मल्ल सम्राट रूद्रपतिक अर्धांगिणी छथि ओ अतीव विह्रलता, मंद, कल्पन आ स्पन्दनक अनुभव क’ रहल छथि, कारण कोनो समयमे मारुति स्वयं आर्य शिल्पीक छलीह, किन्तु परिस्थितिक विपरीतताक फलस्वरूप ओ आर्य शिल्पीकेँ अपन बनयबासे असमर्थ भ’ गेल छलीह तथा पिताक आज्ञानुरूप महामहिम मल्ल सम्राटक रूद्रपतिक अर्धांगिणी बनबा लेल विवश भ’ गेल छलीह। एक नारीक जे विवशता होइछ जकर फलस्वरूप ओ आर्य शिल्पीकेँ अपनयबामे असक्षम भ’ गेलीह।
परिवर्त्तित परिवेशमे वास्तविकताक रहस्योद्घाटन तखन होइछ जखन सम्राट रूद्रपति अपन कन्याक हेतु ओही आर्य शिल्पीक चयन करबाक अभिलाषी भेलाह जे पूर्वमे राजमाताक प्रेमी छल। राजमाता अर्थात् मारुति स्वयं आर्य शिल्पीक समक्ष प्रस्तुत भ’ कए वास्तविकताकेँ उद्घाटन करैत छथि। यथास्थितिसँ परिचित भ’ कए आर्य शिल्पी सम्राटकेँ बिनु कोनो सूचना देने अदृश्य भ’ जाइत छथि।
हिनक समग्र रेडियो-रूपक पारिवारिक परिवेशपर केन्द्रित अछि। स्वतंत्रताक पश्चात् पारिवारिक स्वरूपपर एतेक शीघ्रतासँ परिवर्त्तन भेल अछि जे संयुक्त परिवारक मान्यता शनै:-शनै: खंण्डित होमय लागल आ एकांगी परिवारक उदय होमय लगलैक ताहि परिप्रेक्ष्यमे संयुक्त परिवारक पारम्परिक ढॉंचाकेँ सुरक्षित रखबाक उद्देश्यसँ उत्प्रेरित भ’ ओ अपन समग्र रेडियो-रूपकमे ओकर मान्यताकेँ पुनस्थापित करबाक कल्पना कयलनि। ओ इतिहासक ओहि अघ्यायपर दृक्पात कयलनि जाहि दिस साहित्यकारक घ्यान नहि आकर्षित भेल छलनि। इतिहासक बिसरलक कथानकमे पर्याप्त नाटकीय तत्व अछि आ ई एक प्रभावशाली रेडियो-रूपक थिक।
पात्र :
मायानन्दक रेडियो रूपकक वैशिष्ट्य थिक ओ कथा-विन्यासमे अत्यल्प पात्रक प्रयोग कयलनि अछि। पात्रक चुनावमे ओ अपन कल्पना शक्तिक प्रयोग क’ कए अत्यंत कुशलताक संग पात्रक चयन कयलनि। हिनक रेडियो-रूपकमे प्रयुक्त पात्रक मन-मे कोनो-ने-कोनो द्वन्द्व अवश्य अछि। हुनक प्रत्येक पात्रक मानसिक द्वन्द्वक सूक्ष्मसँ सूक्ष्म परतकेँ उदघाटित करबामे सफलता प्राप्त कयलनि अछि। हिनक पात्रक मनोभाव आ द्वन्द्वकेँ अत्यंत कुशलताक संग उद्घाटित करबामे सक्षम भेलाह अछि।
मनुष्य जेहन देखबामे लगैछ भीतरसँ ओ ओहन नहि रहैछ। मनुष्यक वाह्य व्यवहार कोनो स्थितिमे ओकर वास्तविक चरित्रक परिचायक भइये ने सकैछ। मायानन्द एक मनोवैज्ञानी सदृश पात्रक अन्त: स्थलमे प्रवेश क’ कए मानवक कृत्रिम आवरणकेँ हटा क’ वास्तविक रूपकेँ स्पष्ट करबाक प्रयास अपन प्रत्येक रेडियो-रूपकमे कयलनि अछि। मनुष्यक आन्तरिक रूप अत्यंत संवेदनशील, भाव-प्रवण आ कोमल होइत अछि। ओ एहने पात्रक चयन कयलनि वा पात्रक जीवन क्षण्ाकेँ उद्घाटित कयलनि जाहिमे द्वन्द्वक तीव्रता अछि। मनोवैज्ञानिक पात्रक प्रभाव हुनक नाटकीय शिल्पपर प्रचुर परिमाणमे पड़ल अछि। हुनक विशिष्टता थिक जे ओ हरेक पात्रक भावनाक सधनता आ तीव्रताकेँ सरलतासँ पाठकक समक्ष प्रस्तुत कयलनि। हिनक रेडियो रूपकक धरातल मुख्यत: भावनात्मक अछि।
हिनक रेडियो रूपकमे पात्रक शील-निरूपणक विनियोगमे रूपककारक सफलता एहिमे अछि जे अत्यल्प पात्रक प्रयोग द्वारा घटनाकेँ मार्मिकताक संग उपस्थ्ति करबामे सक्षम भ’ पौलनि। अपन: आनमे तीन पुरुष पात्र आ दू महिला पात्री, गुड़ चाउरमे दू पुरुष एवं दू स्त्री पात्र, नवलोकः नवगप्पमे पॉंच पुरुष आ दू स्त्री पात्र तथा इतिहासक बिसरलमे चारि पुरुष आ तीन स्त्री पात्रक प्रयोग रेडियो रूपककार कयलनि अछि जे हुनक विलक्षण शिल्पक प्रमाण थिक।
इतिहासक बिसरल एक मनोवैज्ञानिक रेडियो रूपक थिक जकरा अर्न्तगत प्रत्येक पात्रक मानसिक यातनाक प्रसंगमे विस्तार पूर्वक विश्लेषण रूपककार कयलनि अछि। आर्य शिल्प, तुंगभद्रा, मारुति एवं महाराज रुद्रसिंह सभ मानसिक द्वन्द्वसँ गुजरि रहल अछि। महाराजक उत्कट अभिलाषा छलनि जे आर्य शिल्पी आ तुंगभद्राक सम्मिलित प्रयाससँ एक नूतन सौन्दर्य कलाक निर्माण संभव अछि, किन्तु साम्राज्ञी मारुति जे यथार्थ वस्तुस्थितिसँ अवगत छथि। ओ नहि चाहैत छथि जे एहन कार्य महाराज द्वारा कयल जाय तदर्थ ओ प्रयत्नशील भ’ आर्य शिल्पीकेँ ओतयसँ विदा भ’ जयबाक अनुरोध करैत छथि। प्रतिपाद्य रेडियो रूपकक पात्रक मानसिक अंतर्द्वन्द्व अपन पराकाष्ठासँ गुजरि रहल अछि।
दू भायक बीच अनार्द्वन्द्वक रूप भेटैछ अपन आन, गुड़ चाउर, नवलोक नवगप्प एवं एक्के बापक बेटामे। प्रत्येक पात्र अपना अनुसारेँ प्रत्येक कार्यकेँ क्रिया रूप देबापर उताहुल अछि, किन्तु स्थितिक यर्थाथतासँ अवगत भेलापर सभ एकहि भ’ जाइत अछि।
रेडियो रूपकमे मनोवैज्ञानिक चित्रणक अनेक सुविधा प्राप्त अछि जकर प्रयोग रूपककार पात्रक मानसिक ओझरौंठकेँ अत्यंत सरलासँ अंकित करैत छथि। एहिमे सामाजिक जीवनक विविध्ा रूपिणी यथार्थताकेँ अंकित कयल जा सकैछ जे अन्तरकेँ उद्वेलित कयनिहार द्वन्द्वक चित्रण भेल अछि। समाजमे भेटनिहार किछु विशेष प्रकारक व्यक्तिकेँ घ्यानमे राखि क’ एहि रेडियो रूपक सभक रचना भेल अछि।
संवाद :
संवाद लेखनमे मायानन्द अत्यंत निपुण छथि। वातावरण आ प्रसंगक अनुरूप छाेट-पैघ सब प्रकारक संलाप हिनक रेडियो रूपकमे उपलब्ध होइछ। रेडियोपर हिनक नाटकक सफलताक रहस्य ई अछि जे रेडियोक लेल जाहि संसिलष्ट कथानकक एकाग्रता निश्चित दिशा आ सशक्त संलापक अपेक्षा हाेइत अछि तकर निर्वाह हिनक रेडियो रूपकमे उपलब्ध होइछ। हिनक रेडियो रूपकमे वाचिक तीव्रताक प्रचुरता अछि। अति संक्षिप्त संलाप द्वारा कोना घटना विकास आ भाव व्यंजनाक काज भ’ सकैछ तकर उदाहरण हिनक रेडियो रूपकमे उपलब्ध होइछ।
ई रेडियो रूपकमे संलाप सहज बोलचालक भाषामे लिखलनि अछि। ओहिमे वाकपटुता देखयबाक हेतु भेटैछ जे हास्य-व्यंग्यक सृजनक हेतु उपयुक्त अछि। संलापमे गति अछि। बातसँ बात क्रमिक रूपेँ बहराइत अछि जे हिनक रेडियो रूपकक वैशष्ट्य अछि। संलाप लेखनमे हिनका कुशलता छनि जे रेडियो रूपककेँ नीरस नहि होमय दैछ। संलापमे पात्र, प्रसंग एवं भावक अनुरूप परिवर्त्तित होइत रहैछ जाहिसँ रोचकता आबि जाइछ।
भाषा :
रेडियो रूपकक सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय थिक भाषा आ ई भाषा लिखलनि नहि, प्रत्युत भाषित होइछ। अतएव एहन भाषाक प्रयोग हो सर्वसाधारणकेँ बोधगम्य होइक। मायानन्दक रेडियो रूपकमेँ अप्रचलित शब्द जे साधारण जनमानससँ उठि जकॉं गेल अछि तकर प्रयोग अपन नाटकीय भाषान्तर्गत कयलनि। ओ भाषाकेँ व्यावहारिक रूपकेँ रेडियो रूपकमे स्थान देलनि। इएह कारण अछि जे हुनक भाषा कतहु अव्यवस्थित नहि भ’ पौलक। ओ शब्दकेँ तोड़ि- मड़ोड़ि क’ कहु विकृत नहि कयलनि। हुनक भाषाक रसधार सर्वथा स्वच्छन्द आ स्वाभाविक रुपेँ प्रकाशित भेल। ओ सब प्रकारक भावक प्रकाशनक क्षमता हुनक भाषामे अछि। परिस्थितिक अनुकूल ओ शब्दक चयन कयलनि। लोकोक्ति आ मुहावराक सफल प्रयोग हुनक भाषाक सौन्दर्यमे अपूर्व अभिवृद्धि कयलक अछि। हिनक भाषा-नैसर्गिक रसाद्र आ भावपूर्ण अछि। ओहिमे तन्मयता, सार्थकता आ स्वाभाविकताक सहज समावेश अछि। मायानन्दक रेडियो रूपकक विशेषता थिक जे स्थल-स्थलपर ओ एहन मार्मिक लोकोक्ति आ मुहावराक प्रयोग कयलनि जकर फलस्वरूप हुनक रूपकक संवाद अत्यंत प्राणवन्त बनि गेल अछि।
डा. नागेन्द्र आलोचक की आस्थामे हालीक काव्यमे एहि विषयकेँ स्पष्ट कयलनि अछि जे गद्य हाे अथवा पद्य दुनूमे रोजमर्राक घ्यान राखब आवश्यक अछि। भावनाक सटीक अभिव्यक्ति लोकोक्ति आ मुहावरा द्वारा सम्भव अछि। भावनाक सहजताक कारणेँ ओकार अभिव्यक्तिकेँ लेल सहज, स्वाभाविक भाषा ओ एकरे माघ्यमे सम्भव अछि। मानवक अत्यधिक जीवन्त, भाव-प्रवण आ ऐन्द्रिय अनु- अनिवार्यता ओहि भाषासँ सम्वद्ध होइत अछि जे यथार्थमे बजैत अछि।
हिनक एकांकी सभ चौपालसँ प्रसारित भेल जकर जनसाधारणसँ सम्पर्क हैबाक कारणेँ अलंकृत अर्थात् सजह स्वाभाविक आ सरल अछि, कारण एहन भाषामे कोनो प्रकारक आडम्बरक स्थान नहि रहैत अछि। इएह कारण अछि जे हिनक भाषा सर्वसाधारणक हेतु बोधगम्य अछि। भाषापर हिनका अधिकार छनि। हिनक भाषा मुहावरेदार अंलकृत आ काव्यात्मक अछि। हिनक भाषा व्यावहारिक जीवनक भाषा थिक।
एहि तथ्यकेँ उद्घाटित करबाक उद्देश्यसँ हिनक प्रत्येक रेडियो रूपकमे प्रयुक्त लोकोक्ति आ मुहावरापर विचार करब आवश्यक प्रतीत भ’ रहल अछि। लोक भाषाक यथार्थ रूपकेँ ओ अपन रेडियो रूपकमे उपस्थित कयलनि जकरा पाछॉं हुनक उद्देश्य छलनि जे श्रोतापर एकर प्रभाव पड़य।
अपनः आन रेडियो रूपकमे ई निम्नस्थ लोकोक्ति एवं मुहावराक प्रयोग कयलनि अछि यथा: चिकरब-भोकरब, नङव्टे नाचने, घोडा पर चढल, कुर्सी-फुर्सी, मजिस्टर दरोगा, मन हनछिनआएब, चिकचाक, चुटट्ाक लोह तँ सोझे रहैछ, एक्केटा प्राण दू ठॉं बाटल, बसुलाक धार वस्तुकेँ अपना दिस झीकब, जकरे पात खोइ तकरे पात भूर करब, ऑंखिक देखल-कानक सुनल, अनका घरमे आगि लगा क’ तपनिहारक कमी नहि, जकरे खयबैक तकरे गयबैक, ताल लागब, पॉंच हाथ तड़पब, आँखि लाल पीयर करब, अनटोटल गप्प, मुँह ने कान बीचमे दोकान, सोंसे नगर घिनाएब, लारब-चारब, अपने मने पैघ, आगि झायब, बाभनक गाममे राड़ पजिआड़, इनारमे, अतह करब, अनटोटल गप्प, भेङा महिसक कानि, कटांउझि करब, दू टा आत्मा एक्के, मुँह पुरुख बनब, नाङटे नाचब, रसातलमे पहुँचाएब, उजाहि उठब, मतिभ्रष्ट, नाक कटाय, अदगोइ-बदगोइ, पोल खुजब, कपार फारब, धोखा देब इत्यादि। एकके बापक बेटामे काबुलमे गदहा होइछ, गदैस-मदौस, किचकिच-किचकिच करब, आँखि गड़रब, भटकल भौंह, बेलसक गप्प पेट पोसब, भनभनायब, ललबबुआ बनब, रमा डोलबेनब, छिहइआछत रहब, बताह बनायब, बौआइत-ढ़हनाइत, ओलसन बोल, कान बरही, चूल्हिमे झोंकब, तम्मा ल’ कए माङव्ब, आगि लगाएव, गुड चाउरमे विधवा हैत सात घरक मुद्दइ, ठीकपर माङु हँसी करब, हुथनूड़, निसा देब बनब, हक्कन कानब, अकान बनब, कोसलिया करब, बकलेल सन, मनोरथ पुरब, झुकादेब, फरिछौट करब, रङताल बजरब, खोंताक चोंचा जकॉं मुँह लटकायब, किकहारि काटब, अकच्छ करब. सूइघाक नोक बरोबरि, नवलोकः नवगप्पमे मार बारहैनि, बिठुआ काटब, सुगरक गवाही हरिन देल दुनू पड़ा क’ जंगल गेल, देह ढ़ाहब, देहमे अागि लगायब, विसपिपरी, हाथीपर चढल एलाह आघोड़ापर तैयार, घर उजारब, कडरीक थम्मपर सितुआ चोख, कपार फूटब, गलहथ्या देब, तथड़ाड़ामे गारब, भाकसी झोंकब, कौआक रापे बेङ नैासरै, पार लागब, अन्हेड़ करब, नन्नो थान-बिहन्नबान, अपने कचियासँ घेंट ततारब, भुकायब, चौहाठी हिलायब, अपन बड़द कुड़हरिए नाथब, मुहपर जाभी लगाएब, चौहाठी हिलायब, अपन बड़द कुड़हरिए नाथब, मुहपर जाभी लगाएब, कोसिकाक दोखरा बालु फॉंकब, उकटा पैंची, खाधिमे खसायब, आगि उगलब, लथगोबर एवं इतिहासक बिसरलमे टकटकी लागब, संकल्प विकल्पमे ओझायब, छल करब आदि-आदि।
वातावरण :
मायानन्द घ्वनि आ शब्दक माघ्यमे वातावरणक निर्माण कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपकक विशिष्टता अछि जे हमर ग्रामीण परिवेशक मघ्यवित्त परिवारक यथार्थ स्थितिकेँ उद्घाटित करबाक उपक्रम कयलनि अछि जे वर्त्तमान परिवेशमे खण्डित भेल जा रहल अछि तकरा कोना बचाओल जाय ताहि दिस संकेत कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपकमे परिवारकेँ तोड़बाक जे प्रयास सामाजिक परिवेशमे ज्वलन्त भ’ गेल तकरा ओ जोड़बाक प्रयास कयलनि अछि अपन आन, गुड़ चाउर, नवलोक नवगप्प आ एक्के बापक बेटामे। परिवारिक परिवेशमे रहि क’ लोक कोना एक दोसरापर टीका-टिप्पणी करैत अछि, किन्तु वास्तविकताक धरातलपर ओ कतेक सटीक उतरैत अछि तकरा स्पष्ट करब रूपककारक अभीष्ट परिलक्षित भ’ रहल अछि। इतिहासक बिसरलमे काल्पनिकताक विलक्षण प्रयोग क’ कए रूपककार एहन वातावरण सृजन कयलनि अछि जे कथानकक विकासमे कतहु व्यवधान नहि भ’ पबैत अछि।
ई अपन रेडियो रूपकमे श्रव्य-माघ्यमे घ्यानमे रखलनि। शब्द आ घ्वनि द्वारा यथोचित वातावरणक निर्माण कयलनि वातावरणक अनुरूप छोट-छोट सब प्रकारक संपादक रचना कयलनि। घ्वनि-प्रभाव आ संगीतक माघ्यमे रेडियो रूपककार वातावरण-निर्माण प्रभावशील ढंगसँ प्रस्तुत करबाक प्रयत्न कयलनि अछि।
उद्देश्य :
मायानन्द उद्देश्यक एकतापर घ्यान केन्द्रित कयलनि अछि। ओ सभ स्थितिकेँ एकहि दिशा दिस प्रेरित कयलनि। हिनक रेडियो रूपकक उद्देश्य मनोरंजन रहल अछि। किछु रेडियो रूपकमे ओ सामाजिक असंगतिपर तीक्ष्ण व्यंग्य कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपकमे उद्देश्य अपन कथ्यकेँ रोचक एवं आकर्षक रूपमे प्रस्तुत करबाक प्रयास थिक जाहिमे रुपककारकेँ पर्याप्त सफलता भेटलनि अछि।
रंग-शिल्य :
हिनक रेडियो-रूपकमे रंग-संकेत आ दृश्य-विधानक अन्तर्गत प्रथम श्राव्य, द्वितीय श्राव्य तदनुरूप अछि। ओ मघ्यवर्गीय सामाजिक जीवनक पृष्ठभूमिमे रेडियो-रूपकक रचना कयलनि। हिनक सभ रेडियो-रूपकमे पारिवारिक समस्याक उद्घाटन कयलनि जे सामाजिक यथार्थपर आधारित अछि। समाजिक यथार्थपर आधारित रेडियो रूपकमे ओ वर्त्तमान आर्थिक वैषभ्य आ ओहिसँ उत्पन्न समस्या दिस संकेत कयलनि अछि। ओ रेडियोकेँ घ्यानमे राखि क’ एकर रचना कयलनि आ ओ ओहि मे सफल भेलाह। ई सभ सामाजिक समस्याकेँ अपन प्रतिपाद्य बनौलनि। ओ एकरा प्रभावोत्पादक बनयबाक हेतु घ्वनि-प्रभावक उचित प्रयोगपर घ्यानकेँ केन्द्रित कयलनि। श्रव्य-संकेत आ घ्वनि-प्रभावक व्यवहारक प्रयोग कुशलतापूर्वक ओ अपन रेडियो रूपकमे कयलनि। बिनु कोनो नैरटरक सहायता नेने प्रसंगकेँ नाटकीय रूपमे, प्रस्तुत करबामे सफलता ओ प्राप्त कयलनि। दृश्य परिवर्तनमे नवीनता अनबाक ई प्रयास कयलनि। जिज्ञासा आ कोतूहलताकेँ प्रतिष्ठित करबाक उपक्रम कयलनि।
मायानन्दक प्रत्येक रेडियो रूपक रेडियोपर ब्राडकास्ट भेल। रेडियोक माघ्यम थिक घ्वनि। आँखिक अपेक्षा ओ कानक लेल अधिक रहैत अछि। अतएव ओहिमे एक्शनक अभाव रहैत अछि। ई अपन रेडियो रूपकमे घ्वन्यात्मक मूल्यपर अधिक घ्यान देलनि अछि। ई अपन रेडियो रूपकमे कार्य-व्यापारक एकाग्रता आ पात्रक चरित्राकंनपर अधिक बल देलनि अछि। हिनक प्रत्येक रेडियो रूपकक अन्त प्रभावशाली रूपमे भेल अछि। दृश्य-परिवर्तनक कलात्मक प्रयोग देखबामे अबैछ। विषय प्रधानात्मक प्रभाव हिनक रचना शिल्पपर पड़ल अछि। विषय प्रधानाताक प्रभाव हिनक रंग शिल्पर पड़ल अछि। ई हास्य-व्यंग्य प्रधान, गम्भीर, रोमांचक, दुखान्त आदि रेडियो रूपक लिखलनि। ओ श्रव्य-शिल्पपर विशेष घ्यान रखलनि अछि।
नि:सारण :
रेडियो रूपक संक्षिप्त नाट्य रूप थिक। रेडियो रूपक मैथिली एकांकी एक शाखाक रूपमे स्वतत्र रूपसँ विकसित भेल अछि। मायानन्द अपन रेडियो रूपकमे नैरेशनक प्रयोग कतहु नहि कयलनि अछि। ओ श्रव्य-शिल्प सम्बन्धी कुशलताक परिचय एहि विधामे देलनि अछि। सर्वत्र श्रोताक द़ृष्टिसँ एकरा आकर्षक बनयबाक प्रयत्न कयलनि अछि। हिनक एहि कृतिमे घ्वनि-प्रभाव आ संगीतक व्यवहार कलात्मक रूपमे भेल अछि। भाषाशैली सब रूपकक अपन-अपन अछि। वातावरणक प्रसंग पात्रक अनुरूप अछि जहिसँ नाटकीय दृष्टिसँ प्रभावशाली बनि गेल अछि।
जतेक दूर धरि मायानन्दक रेडियो-रूपकक अछि ओ रेडियो रूपक-नाट्य-शिल्पक कसौटीपर अक्षरस: सटीक उतरैत अछि। हिनक रेडियो-रूपकमे कथानक-निर्माण, चरित्र-चित्रण,संवाद, उद्देश्य, वातावरण, भाषा-शैली, रंग-शिल्प, घ्वनि-प्रयोग आदि दृष्टिएँ, कुशलतासँ निर्वाह कयलनि अछि। हिनक रेडियो रूपक भावी-विकासक दिशा-निर्देशक क’ सकैछ।
रेडियो-रूपक मैथिली एकांकी शाखा रूपमे स्वतंत्र विधाक रूपमे विकसित भ’ रहल अछि। मैथिलीमे विभिन्न प्रकारक रेडियो रूपकक रचना निरन्तर भ’ रहल अछि। मायानन्द पाश्चात्य नाट्य-शिल्प आ नाट्य कृतिसँ धनिष्ठ रूपेँ सम्पर्कित भेलाह। रेडियो रूपक एक पैघ सशक्त माघ्यम, एक जीवित रंगमंच प्रदान कयलक अछि। रेडियोक प्रचार-प्रसार अधिक भेलासँ अनेक व्यक्तिकेँ एहि रूपक रचना करबाक हेतु प्रेरित कयलक। मैथिली रेडियो-रूपक लिखनिहारकेँ भारतीय अन्य भाषा सदृश अद्यापि सौविघ्य नहि उपलब्ध छनि तथापि जे एहन रचना उपलब्ध भ’ रहल अछि ओहि आधारपर रेडियो नाट्य-शिल्पकेँ जतेक विकसित हैबाक चाही ओ नहि भ’ सकल अछि। रेडियो, नाट्य-लेखनक लेल रेडियोकेँ निकटसँ देखबाक-समझबाक प्रयोजन अछि। प्रतिभा आ माघ्यमक धनिष्ट परिचय रेडियो-नाट्य-लेखन हेतु अनिवार्य अछि। आकाशवाणी सरकारी नियंत्रणमे अछि आ प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार ओतय पहुँचि क’ अपन प्रतिभाक। समुचित उपयोग नहि क’ पबैत छथि, कारण ओहि ठामक यान्त्रिकतासँ बन्हा जाइत छथि।
No comments:
Post a Comment