A History of Maithili Literature क Volume–I मे मिथिलामे उपलब्ध नाटकादिकेँ जयकान्त मिश्र कीर्त्तनिञा नामे संबोधित कएलनि जाहि प्रसंगमे आपत्ति प्रस्तुत कएलनि रमानाथ झा अभिव्यञ्जनाक प्रथम अंकमे। हुनका द्वारा स्थापित मतक खण्डन करैत ओकरा कीर्त्तनिञा नाच कहलनि। एहिपर मैथिली आलोचनाक क्षेत्रमे विवादक एक परम्पराक शुरुआत भेल। प्रोफेसर मिश्र हुनक मतक खण्डन कएलनि उक्त पत्रिकाक अग्रिम अंकमे। तत्पश्चात् रमानाथ झा प्रबन्ध संग्रह (१३७१ साल)मे मैथिली नाटकपर एक बृहत् आलोचना कएलनि। इहो कीर्तनिञा नाटक (१९६५) नामक एक स्वतन्त्र पुस्तक अपन मतक समर्थनमे प्रकाशित कएलनि जाहिमे हुनक मतक खण्डनमे तर्क देलनि जे मैथिलीमे शोध कोना हो, इतिहासमे परम्पराक नामकरण कीर्त्तनिञा नामक सार्थकता, नटुआ आ नटकियामे भेद, नाच ओ नाटकक अभेद सम्बन्धी प्रमाण, नाटक शब्दक व्यापक अर्थ, मिथिलामे अभिनयक परम्परा, कीर्तनिञामे पात्रक प्रवेश - निष्क्रमण, पात्रक संख्या, योग्यता, मिथिलामे कीर्तनिञाक परम्परा, मिथिलामे नाटकक परम्पराक अभाव, कीर्तनिञा संस्कृत नाटक थिक तथा एकर नटुआक अयोग्यता आदि विषयपर प्रकाश देलनि।
एहि प्रसंगमे हुनक मान्यता छलनि, जे ई नेपालक जगाओल धनराशि थिक। इतिहास बुझबाक हेतु बड़ तहमे जाए पड़त। हुनक कथन छलनि जे इतिहासकारकेँ इमानदार आ निष्पक्ष होएब परमावश्यक अछि- रमानाथ झा वाज ए कन्जरवेटिव इमैजनेटिव हिस्टोरियन।
उपर्युक्त परिप्रेक्ष्यमे मैथिली आलोचक लोकनि दू भागमे विभक्त भऽ गेलाह। किछु वर्षक पश्चात् प्रोफेसर प्रेमशंकर सिंह (१९४२) मैथिली नाटक ओ रंगमंच (१९७८) एक नव बिन्दु दिस संकेत कयलनि जे ई ने कीर्त्तनिञा नाटक थिक ने कीर्तनिञा नाच, प्रत्युत एहि सब नाटकादिककेँ ओ लीला नाटक कहलनि। प्रोफेसर सिंह एहि दिशामे विचार करबाक एक नव दिशाक बोध करौलनि जे विचारणीय थिक।
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