जगदीश प्रसाद मंडल
एकांकी
सतमाए
विद्यालय। समए माघक 3 बजे। स्कूलक अग्नेय (आंगन)मे बुद्धिधारी बाबू (प्रधानाचार्य) विपत्तिबाबू (सहयोगी शिक्षक) कुरसीपर आ पुलकित (चपरासी) स्टूपलपर बगलमे बैस गप-सप्प करैत।
बुद्धिधारी बाबू- आब विद्यालयमे नै मन लगैए। होइए जे कखन रिटायर भऽ जाइ। कखनो कऽ तँ एहनो भऽ जाइए जे भोलेनट्री रिटायरमेंट लऽ ली।
पुलकित- से किअए मासएब?
बुद्धिधारी- तहूँ तँ पनरह-बीस बर्खसँ संगे रहिते छह देखते छहक जे की मान-प्रतिष्ठा( स्कूधलोक आ शिक्षकोक छल आ अखन की अछि।
पुलकित- ऐ युगमे मान-प्रतिष्ठा। लऽ कऽ धो-धो चाटब। भने दिन-राति दरमाहा बढ़बे करैए, सुखसँ जीबू।
बुद्धिधारी- (कनडेरिये आँखिये पुलकित दिस देख) तू जे सवाल उठेलह पुलकित ओ बड़-भारी अछि। मुदा प्रश्न तोहर छिअह तँए जबाब देब उचित भऽ गेल।
(जिज्ञासासँ विपतिबाबू बुद्धिधारी बाबूक नजरिपर आँखि गाड़ि मनकेँ असथिर कऽ सुनैक बाट तकऽ लगलाह)
पुलकित- मासएब, जहिना खेतक आड़ि-धुर बाढ़िक बेगमे विगड़ि जाइत तहिना भऽ गेल अछि।
(पुलकितक दोहराओल प्रश्न सँ बुद्धिधारी बाबूक मन आरो अमता गेलनि। मुदा धैर्यसँ शक्ति जगबैत)
बुद्धिधारी- पुलकित, जते सुख आ चैनसँ जीबए चाहैत छी ओते दुख आ बेचैनी बढ़ल जाइए। तोंही कहह जे बिना काजक बोइन जे भेटतह ओ अन्न देहमे लगतह।
पुलकित- (धड़फड़ा कऽ) से कोना लगत। काजमे जते देह दुहाइत अछि ओते भूख जगै छै जते भूख जगै छै ओते अधिक अन्न पचै छै। देह थकबे ने करत तँ भूख कन्ना जागत। जँ भूख नै जागत तँ खाइक क्षुधा कन्ना हएत? जेहन खाइ अन्न तेहन बने मन, जेहन बने मन, जते जगे अर्पण।
बुद्धिधारी- अपने विद्यालयक खिस्साण कहै छिअए। जै दिनमे एलौं ओइ दिनमे एगारह गोटे शिक्षक रही आ चारू किलास मिला कऽ साढ़े चारि साए विद्यार्थी रहए। साइंस, कौमर्स आ आर्ट तीनू फेक्लमटी रहए।
पुलकित- चपरासी कतेक रहए?
बुद्धिधारी- (मुस्की दैत) एक्केटा। काजो कम रहए। अच्छा सुनह। सभ किलासमे सेक्शिन चलैत रहए। अखन देखहक जे रजिष्टदरमे छह सौ विद्यार्थी आ सत्तरह गोटे शिक्षक छी।
पुलकित- हँ, से तँ छी।
बुद्धिधारी- मुदा की देखै छहक जे आइ मात्र चर्तुदसी छी, ने शिक्षक ऐलाह आ ने छात्र।
पुलकित- छुट्टी दरखास आएल की नै?
बुद्धिधारी- एकोटा नै।
पुलकित- मासएब, ऐ बुढ़ाढ़ीमे कते माथा-पच्चीट करब। भरमे-सरम अपन जिनगी आ परिवारकेँ देखियौ।
बुद्धिधारी- से उचित हएत?
पुलकित- रूइया जकाँ जे माथ धुनि-धुनि उड़ेबे करब तइसँ सीरक कन्ना बनत?
(विपति बाबूपर नजरि दैत)
बुद्धिधारी- एते दिन तँ नै कहलौं विपति बाबू किएक तँ साल नै लागल छल मुदा आब तँ सालसँ ऊपर भऽ गेल। एकटा बात पुछू?
विपति बाबू- एकटा किअए हजारटा पुछि सकै छी। जखन सभ दिन एकठाम रहै छी, एक पेशा अछि, तखन पूछैक लेल आदेशक की प्रयोजन?
बुद्धिधारी- अहाँ विआह कऽ लिअ?
विपति बाबू- यएह जे दूटा बेटो-बेटी अछि।
बुद्धिधारी- मानै छी। मुदा ई कहू जे बेटा-बेटीक उम्र कते अछि?
विपति बाबू- अपने विद्यालयमे बेटा एगाढ़मामे पढ़ैत अछि आ बेटी नाइन्थकमे।
बुद्धिधारी- (आंगुरपर हिसाब जोड़ि) चौदह-पनरह बर्खक बेटा आ बारह-तेहर बर्खक बेटी हएत?
विपति बाबू- करीब-करीब।
बुद्धिधारी- पान-सात बर्खमे बेटी सासुर चलि जाएत। जे हवा बनि रहल अछि ओइमे जँ बेटाकेँ इंजीनियर वा एम.बी.ए. नै कराएब सेहो नै बनत।
विपति बाबू- जँ से नै कराएब तँ हँसारते हएत। तइपर सँ इहो दोख लागत जे माए मरिते बेटा-बेटीकेँ विपति कुभेला करै छै।
बुद्धिधारी- (किछु सोचैत) कहलौं तँ ठीके। मुदा जँ अपना काजमे कमी नै आनब तँ लोक बाजत किअए। कहुना तँ पच्चीटस-तीस हजार महिना उठैबते छी। असानीसँ सभ काज चला सकै छी।
विपति बाबू- (मुड़ी डोलबैत) एक तरहक विचार अछि।
बुद्धिधारी- (नमहर साँस छोड़ैत) ई भार हमरा ऊपर रहल। जहिना एक-एक समस्याो डोरीक सूत जकाँ बाँटल अछि तहिना ओकरा खोलि कऽ उघारि-उघारि सोझराबए पड़त।
पुलकित- (फड़कि कऽ) मासएब, कँटहो बाँस तँ लोके काटि कऽ घरमे लगबैए आ ई कोन ओझरी छिऐ।
बुद्धिधारी- एक आदमीक समस्याओ (ओझरी) कतेकोकेँ ओझरबैत अछि। तँए अौगता कऽ किछु बाजि देब वा करैले डेग उठा देब, अनुचित हएत। (घड़ी देख कऽ) सवा तीन बजिये गेल। काजो नहिये जकाँ अछि। चाभी लऽ कऽ क्ला सोक कोठरी आ आॅफिसो बन्न कऽ दहक।
(पुलकित चाभीले बढ़ए लगल। दुनू गोटे कुरसीपर सँ उठि गेलाह। दुनू कुरसियो आ स्टूीलो आॅफिसमे रखि कोठरी बन्न कऽ पुलकित अबैत अछि।)
बुद्धिधारी- विपति बाबू, अहाँक जिनगी देख मनमे उदिग्नौता उठि रहल अछि।
विपति बाबू- किअए?
बुद्धिधारी- अपना सभ समाजक उच्चि श्रेणीक रहितो जिनगी आ मनुष्येक रहस्य। नै बुझि रहल छी। जे सहजे निम्न श्रेणीक (बौद्धिक) छथि ओ कोना बुझत। जँ से नै बुझत तँ अमती काँट जकाँ ओझरी (जिनगीक) कोना छोड़ा पाओत?
विपति बाबू- (मुड़ी डोलबैत) बड़ गंभीर बात कहलौं।
बुद्धिधारी- सदैत इच्छाा रहैए जे सबहक परिवार नीक जकाँ फड़ै-फुलाइ मुदा से कहाँ भऽ पबैए। जहिना आगू बढ़ल चिन्ताज ग्रस्तड (दुखी) तहिना पछुआएल। आखिर एना होइ किअए छै?
पुलकित- मासएब, अनेरे मन भरिओने छी। हँसि-खेल जिनगी गुदस कऽ ली सभसँ नीक।
(पुलकितक बात बुद्धिधारीक करेजकेँ आरो बेध देलकनि। मुदा कोढ़मे चोट लगने असीम दरदो होइत तँ मुँहसँ हसियो फुटैत।)
बुद्धिधारी- (मुस्की दैत) पुलकित, औझका दरमाहा तँ फोकटेमे भेल किने?
पुलकित- फोकटमे कन्ना भेल। भरि दिन बरदाएल जे रहलौं।
बुद्धिधारी- अच्छाभ चलह संगे, तोरे ऐठाम चाह पीब।
पुलकित- दुआर पर तँ नहिये पीआएब दोकानमे जरूर पीया देब।
बुद्धिधारी- से किअए?
पुलकित- घरवारी व्रत केने छथि। ओ तँ अनेरे पेटकान लधने हेती। तइपर चाह बनबए कहबनि। बाढ़नि सूप छोड़ि आरो किछु भेटत।
बुद्धिधारी- तखन तँ तोहर घरवाली बड़ धर्मात्माक छथुन?
पुलकित- सोलहन्नी। बिना धरमत्मेाक भरि दिन खटै छी आ दरमाहा हुनका हाथ पड़ै छन्हि।
बुद्धिधारी- धर्मो कते रंगक होइए?
पुलकित- मासएब, अहीं मुँहे ने सुनने छी, जते रंगक लोक तते रंगक धरम। कियो कोदारि पाड़ि पसिना चुबा धरम-करम (धर्म-कर्म) बुझैए, तँ कियो बम-गोली लऽ धर्म-कर्म बुझैए। कर्म तँ दुनू करैए।
दोसर दृश्य-
“विपति बाबूक दरबज्जाक। सुलक्षणी माए आ शिव कुमार (विपति बाबूक बेटा) दरबज्जा़पर बैसल।”
(बुद्धिधारी, विपति बाबू आ पुलकितक प्रवेश। सुलक्षणीकेँ गोड़ लगैत बुद्धिधारी। उठि कऽ ठाढ़ होइत सुलक्षणी कुरसीकेँ आँचरसँ झाड़ैत।)
सुलक्षणी- ऐपर बैसू। (बुद्धिधारीकेँ बैसते) बाल-बच्चाल सभ आनन्दतसँ छथि किने?
बुद्धिधारी- भगवानक कृपासँ सभ आनन्दिीत अछि।
सुलक्षणी- भगवान नीक करथि। एहिना सभ दिन परिवार फुलाइत-फड़ैत रहए।
बुद्धिधारी- एकटा विचार लेल एलौं?
सुलक्षणी- हम कोन जोकरक छी जे अहाँकेँ विचार देब। तखन तँ जे बुझै छी सएह ने कहब।
बुद्धिधारी- विपति बाबूकेँ बड़ कष्टु होइ छन्हिच। तँए विचार भेल जे ओ दोसर विआह कऽ लथि।
सुलक्षणी- (कने काल चुप रहि) जहिना बेटा विपति अछि तहिना अहूँकेँ बुझै छी बौआ। तँए बजैमे धड़ी-धोखा नै होइए। हमर आशा कते दिन? वृद्ध भेलौं, कखन छी कखन नै, तेकर कोनो ठेकान नै अछि।
बुद्धिधारी- तँए ने विचार करैक जरूरत अछि।
सुलक्षणी- दुनियाँमे ने सभ मनुक्खै एक रंग अछि आ ने एक रंग चालि-चाढ़ि छै। नीको छै अधलो छै। (कहि चुप भऽ जाइत)
बुद्धिधारी- अहाँक विचार की अछि?
सुलक्षणी- के अपन परिवारकेँ उजड़ैत-उपटैत देखए चाहत।
बुद्धिधारी- अपन जे अखन परिवार अछि, ओ कोना लहलहाइत रहत अइले ने विचारैक जरूरत अछि?
सुलक्षणी- विपति हमर बेटा छी आ शिवकुमार पोता छी। दुनू कन्ना नीक-नहाँति जिनगी बिताओत सएह ने मनमे अछि। पोती तँ पाँच वर्खक बाद सासुर जाएत।
बुद्धिधारी- (मूड़ी डोलबैत) हँ, कहलौं तँ नीके, मुदा.....?
सुलक्षणी- मुदा की?
बुद्धिधारी- मुदा यएह जे जहिना पोखरिमे करहर-सौरखीक जनमौटी गाछक पात पकड़ि ओरिया कऽ गाछ पकड़ि जड़िमे (िनच्चारमे) पहुँच उखाड़ल जाइत अछि तहिना केलासँ परिवारक कल्यािण हएत।
सुलक्षणी- बौआ, अहाँक बात नै बुझलौं?
बुद्धिधारी- परिवारमे जते गोरे छी सबहक जिनगीक डोर पकड़ि-पकड़ि ठढ़ धड़बऽ पड़त। तखने जा कऽ सुढ़िआएत।
सुलक्षणी- (मूड़ी डोलबैत) कहलौं तँ ठीके मुदा समाजो तँ तेहन अछि जे नीक-अधला बात बाजि मनकेँ घोर कऽ दैत अछि। जइसँ लोकक विचारमे धक्का लगै छै। (कहि चुप भऽ जाइत)
(बिचहिमे पुलकित)
पुलकित- मासएब आ चाची, दुनू गोरेकेँ कहै छी। विपति भाय एकबतरिये हेता। हमर जे घरवाली मरल रहैत तँ ककरोसँ पुछबो ने कैरतिऐ आ दोहरा कऽ विआह कऽ नेने रहितौं।
(पुलकितक बात सुिन)
बुद्धिधारी- (हँसैत) पुलकित, परिवारक संग समाजोक विचार करए पड़ै छै।
पुलकित- समाजकेँ अपने ठेकान नै छै। नीकोकेँ अधला कहैत अछि आ अधलोकेँ नीक।
बुद्धिधारी- हँ, से तँ अछि।
पुलकित- (अपना विचारपर जोर दैत) मासएब, जे समाज ककरो घर नै बना सकैए ओकरा कोन अधिकार छै जे ककरो घर उजाड़ै।
बुद्धिधारी- कहलह तँ ठीके मुदा धड़फड़मे किछु करबो तँ सब नीके नै होइत अछि। अधलो भऽ सकैत अछि।
पुलकित- हँ, से तँ होइतो अछि।
बुद्धिधारी- तँए ने विचारक जरूरत अछि। तू तँ विपति बाबूक परेशानी देख धाँय दे बजलह। तोरह विचार कटैबला नै छह।
पुलकित- एक बेर आरो चाह पीबू तखन मन आरो खनहन हएत। जइसँ झब दे रस्ता भेटत।
(पुलकितक बात सुनि)
विपति बाबू- बौआ (शिवकुमार) चाह बनौने आबह। पुलकितक कपमे कनी बेसी कऽ चीनी देने अबिहह।
पुलकित- हम की आन दुआरे चाह पीबै छी मीठे दुआरे पीबै छी की। जावतो जीबै छी तावतो जँ हँसी-खुशीसँ नै जीयब तँ अनेरे जीबिये कऽ की करब। (चाह अबैत अछि सभसँ पहिने पुलकितेक कप बढ़बैत अछि।)
बुद्धिधारी- हमरो कपक चाह कनी पुलकितमे ढारि दहक।
पुलकित- ऍंह, मासएब केहेन गप बजै छी। अनकर हिस्साद खाएब से पचत।
बुद्धिधारी- (हँसैत) हमरा आन बुझै छह?
पुलकित- नै मासएब, मुँहसँ निकलि गेल। अच्छाक कनी ढारि दिऔ।
(चाह पीब पान खा)
बुद्धिधारी- चाची, विपति बाबू जँ दोसर विआह करथि तँ अहाँकेँ कोनो विरोध नै ने?
सुलक्षणी- नै। आब हमरा की चाही। वस एतबे ने जे पाँच कर भोजन आ पाँच हाथ वस्त्रब भेटैत रहए।
बुद्धिधारी- वाउ, शिवकुमार, अहाँ मनमे की बनैक (पढ़ैक) विचार अछि?
शिवकुमार- अखन तँ हाइये स्कूेलमे छी। मुदा मनमे अछि जे चाहे इंजीनियरिंग वा एम.बी.ए. पढ़ी।
बुद्धिधारी- बहुत बढ़िया। मुदा जखन इंजीनियर वा एम.बी.ए. करबह तखन तँ नोकरी करए कारखाना वा शहर-बजार जेबह। परिवारो (पत्नी) जेथुन।
(शिवकुमार गुम भऽ जाइत अछि)
बुद्धिधारी- चुप किअए भेलह। बाजह।
शिवकुमार- हँ।
बुद्धिधारी- बात तोंही कहह जे दादी मरि जेथुन, तों परिवारक संग शहर चलि जेबह, बहीन सासुर चलि जेतह, ऐठाम विपति बाबूक दशा की हेतनि?
शिवकुमार- मासएब, अहाँ बाबूक संगियेटा नै छिअनि, गुरूओ छी। अपने जे कहब शिरोधार्य अछि।
बुद्धिधारी- विपति बाबू, दुनियाँमे मनुष्य खराब नै होइत अछि। ओकरा बनबैमे नीक-अधला होइ छै। जइसँ नीक-अधला बनैत अछि।
पुलकित- हँ, से तँ होइ छै।
बुद्धिधारी- माएक लेल बेटा-बेटीक लेल पिता आ पत्नीक (विवाहक बाद) लेल पति बनि आगूक जिनगी बना जीब। यएह अंतिम बात अछि। पुलकित एकटा कनियाँ ताकह।
तेसर दृश्य-
तेतरी आ खजुरिया बिपरीत दिशासँ अबैत बाटपर भेँट।
खजुरिया- फुल कतऽ दौड़ल जाइ छी। पएरपर पएर नै पड़ैए?
तेतरी- की कहब फुल, देखियौ जे सूर्ज सिरपर आबि गेल, अखैन तक भानस नै चढ़ैलौं। अपने (पति) नहाइले गेल हेता भानस चढ़ेबे ने केलौं।
खजुिरया- किअए ने अखैन तक भानस चढ़ेलौंहेँ?
तेतरी- की पुछै छी फुल, (मुस्की दैत) रजकुमराकेँ देखियौ जे पहिलुका (विआही) बौह छोड़ि कऽ अबलट लगाकेँ चलि गेल छेलै जे ऐहेन पुरूखसँ खनदान नै बढ़त। जखैन ओ (रजकुमरा) चुमौन कऽ लेलक तखैन फेर घुरि कऽ अपने फुरने चलि आएल।
खजुरिया- चलि एलै तँ राखि लिअ। जहिना अबलट लगा पड़ाएल जे ऐ पुरूखसँ खनदान नै बढ़तै तहिना कमाएत-खाएत अपन रहत। जखैन रहेक मन हेतै रहत जाइक मन हेतै जाएत। तइले एते मत्था -पच्चीन करैक कोन जरूरत छै?
तेतरी- जेहने खेलाड़ि मौगी छै तेहने रजकुमरा अपने अछि। हँसि-हँसि बजैत रहैए तँए बुझै छिऐ। नमरी अछि, नमरी।
खजुरिया- ओइ पाछु अहाँक भानसक अबेर किअए भऽ गेल। झगड़ा ककरो आ काज छुटि गेल अहाँकेँ?
तेतरी- नून आनए दोकान विदा भेलौं आकि हल्ला सुनलिऐ, भेल जे ककरो किछु भऽ गेलै। ससरि कऽ गेलौं तँ यएह रमा-कठोला देखलिऐ। ओही लटारममे लागि गेलौं।
खजुरिया- फेर भेलै की?
तेतरी- की हेतै। मन दुनूक लसिआएल बुझि पड़ल। मुदा हारल तँ दुनू अछि। लाजे लोक लगमे की बाजत तँए दुनू अनकर मन पतिअबै छै। अखैन जाए दिअ फुल। निचेनमे सब गप कहब।
खजुरिया- भानस हेबे करतै मुदा अधा गप कहि कऽ छोड़ि देलिऐ। अखैनसँ पेटमे उनटैत-पुनटैत रहत। अनका पुरूख जकाँ कि हिनकर पुरूष छन्हिि जे मुँह अलगौतनि?
तेतरी- मुँह जे अलगौत से कोनो सपेत कऽ। कमा कऽ हाथमे आनि दै छथि मुदा नूनसँ हरैद धरि तँ हमरे जोरह पड़ैए। भरि दिन दौड़ैत-दौड़ैत तबाह रहै छी।
खजुरिया- एकटा गप सुनलिऐहेँ?
तेतरी- की? नै!
खजुरिया- गाममे नै छेलखिन?
तेतरी- गाममे कि कोनो एक्केटा गप चलैए जे सभ एक्के गप सुनत? रंग-विरंगक गप पुरवा-पछवा जकाँ सदिखन चैलते रहैए कि?
खजुरिया- अखैन इहो अगुताएल छथि आ हमरो काज सभ अछि। कखनो निचेनमे दुनू फुल गप कऽ लेब।
तेतरी- तोहुँ हद करै छह। आ जे बिसरि जा?
खजुरिया- एहनो गप विसरल जाइए।
तेतरी- हँ, तँ विसरल जाइए कि? आ जे अहूसँ निम्मनन गप आबि जाए तँ हल्लुतक गप लोक विसरिये जाइए किने?
खजुरिया- हँ, बेस कहलथि। मुदा खरिआइर कऽ नै कहबनि। उपरे-झापरे कहि दै छिअनि।
तेतरी- हँ, सएह कहह।
खजुरिया- पढ़ि-लिखि कऽ तँ आरो लोक गाम घिनबैए।
तेतरी- से की?
खजुरिया- ऍंह, की कहबनि?
तेतरी- नै-नै, कनी फरिया कऽ कहू।
खजुरिया- बिपैत मासटर दोसर विआह करताह?
तेतरी- तँ ई कोन बड़-भारी बात भेल। वेचाराक स्त्री मरि गेलनि भानस-भातमे दिक्कत होइत हेतनि।
खजुिरया- ऍंह, एहिना बुझै छथिन।
तेतरी- से की?
खजुरिया- आइ जँ बेटा-बेटी नै रहितनि तखैन जँ करितथि तँ एकटा सोहनगर होइतै। जखैन बेटा-बेटी ढेरबा-जवान भेल तखैन किअए करै छथि।
तेतरी- (मुँह बन्न केने) हूँ।
खजुरिया- हमरा काकाकेँ देखलखिन। बेचारेकेँ तँ एक्केटा बेटी भेलनि आ काकी मरि गेलनि। कतबो लोक हिला-डोला कऽ रहि गेल तैयो मानलखिन।
तेतरी- हँ, से तँ बेस कहलौं।
तेतरी- (कनी काल चुप रहि) हूँ...।
खजुरिया- भानसो भातक दिक्कत कि होइ छन्हिट। अखैन हाथी सन माइयो छेबे करनि, बेटियो भानस करै जोकर भइये गेलनि तखैन किअए करै छथि। पुरूखक किरदानी बुझबै।
तेतरी- अपने फुरने करै छथि आकि घरोक लोकक विचार छन्हि ?
खजुरिया- ऍंए, हद करै छी। अहाँ नै देखै छिऐ जे आबक बेटा-बेटी माए-बापसँ केहेन पुछै छै।
तेतरी- से तँ ठीके कहै छी। मुदा सभ की एक्के-रंग होइए। हमरे घरबला छथि, मरैयौ बेर तक माइयेक कहलमे रहला। बेटो ने मनाही केलकनि।
खजुरिया- बेटा कि मनाही करतनि। चुमौन कऽ कऽ कनी घर आबए दियौ तखैन ने हुरया हा देखबै। जहिना बुढ़ीकेँ अतर-गुलाबसँ मालिश करतनि तहिना ने बेटो-बेटीकेँ टेमपर खाइले देतनि।
तेतरी- सभ सतमाए की एक्के रंग होइए। ने सभ वियौहती नीके होइए आ ने सभ समदाही अधले होइए। पुरूखे की सभ एक्के रंग होइए?
खजुिरया- हँ, से तँ बेस कहलौं। मुदा ओहिना नै ने लोक बजैए।
तेतरी- से बाजह। गामेमे सोनमाकेँ देखै छिऐ। जहियासँ समदाही एलै तहियासँ घरमे लछमी आबि गेलै। से तँ मनुक्खछ-मनुक्खुपर छै।
खजुरिया- मुदा नीके औतनि तेकर कोन बिसवास?
तेतरी- से तँ ठीके।
खजुिरया- मुदा..?
तेतरी- मुदा की? यएह ने जे जेहेन परिवारक लोक रहत तेहने ने नवका मनुक्खघ बनत।
खजुिरया- ई की विपति मासटरकेँ बुझै छथिन?
तेतरी- हम तँ नीके बुझै छिअनि।
खजुरिया- घुइयाँ पुरूखक चालि यएह बुझथिन। मूड़ी गोंति कऽ चललासँ हेतनि। महकारी जकाँ पुरूख होइए। तरे-तर तना ने बिठुआ काटि लेतनि जे बुझबे ने करथिन।
तेतरी- जाए दिऔ नीक की अधला अपना परिवारमे हेतनि तइसँ हमरा-हिनका की?
खजुिरया- हमरा की? एना किअए बजै छी। गाम की हमर नै छी जे जेकरा जे मन फुड़तै से करत आ टुटुर-टुटुर देखैत रहब।
तेतरी- अनकर झगड़ा मोल लेब।
खजुरिया- किअए ने लेब? झगड़ाक डर करब तँ एक्को दिन गाममे बास हएत।
तेतरी- (आँखि उठा कऽ ऊपर दिस देख) बड़ अबेर भऽ गेल। आइ बात-कथा सुनबे करब।
खजुरिया- एकटा बात तँ कहबे ने केलिएनि?
तेतरी- की?
खजुरिया- ढोरबा फेर चुमौन केलकहेँ।
तेतरी- ओकरा तँ मारे धियो-पुतो आ घरोवाली छइहे?
खजुरिया- (विहुँसैत) छठम छऐ।
तेतरी- निरलज्जाफ-निरलज्जी। सभ सभ उठा कऽ पीब नेने अछि। जहिना पुरूखक धनमंडल अछि तहिना मौगीक। एकरा सभले रौदी-दाही अबिते अछि।
चारिम दृश्य -
(चिन्ता मणिक दरबज्जाा)
चिन्तानमणि- (स्वसयं) हे भगवान अधमरू जिनगीमे किअए फँसौने छी। अइसँ नीक जे मौगैत दिअ। आशाकेँ जते हृदएसँ लगबए चाहैत छी ओते ओ पिछड़ि-पिछड़ि हटैत जाइए आ जिनगीकेँ अन्हा र बनौने जाइए। अपनो भ्रम भेल जे आशा-निराशा (अन्हाँर-इजोत) केँ शब्दलकोषक शब्द मात्र बुझलिऐ। मुदा आइ बुझि रहल छी जे खाली शब्दआकोषेक शब्दब नै जिनगी छी। एते दिन माइयो बापक उत्तरी गरदनिमे लटकने घर-घरारी उपटैत छल मुदा आब तेसरो उत्तरी लटकए लगल। खाइर, जे जिनगी देलह ओ तँ भोगबे करब। मुदा मरैयो बेर तक माछी जकाँ नाकपर नै बैसऽ देब। जाधरि (जाबे आँखि तकै छी तकै छी बन्न हएत-हएत)
(पुलकितक प्रवेश)
चिन्तातमणि- अहाँ के छी, किनकासँ काज अछि?
पुलकित- आदर्श स्कू लक चपरासी छी, बुद्धिधारी बाबू पठौलनि अछि।
चिन्ता-मणि- (आँखि ऊपर उठबैत) के....। बुद्धिधारी बाबू। आदर्श स्कूझलक शिक्षक। ओ तँ हमरा नै जनैत छथि, फेर.....।
पुलकित- पता चललनि जे चिन्ता मणि बाबूकेँ कन्याल छन्हि। जँ ओ कन्याकक विआह विपति बाबूक संग करए चाहथि तँ....?
चिन्ता-मणि- विपति बाबू...।
पुलकित- हँ-हँ। ओहो सहयोगिएक रूपमे काज करै छथि।
चिन्ता-मणि- ओ अविवाहिते छथि।
पुलकित- नै। पत्नी मरि गेलखिन। दोहरा कऽ करताह।
चिन्ता-मणि- (व्यखग्र होइत) दोहरा कऽ करताह। सौतीनक तर तँ नै भेल। मुदा दोती बरसँ कुमारि कन्या क विआह....। की अपन बेटीक भरि-भरि दिनक उपासक पूजाक फल भगवान यएह देलखिन। मुदा उपाइये की? मृत्युकाल साधारण खढ़ोक आशा पाबि चुट्टी धारक धारामे उगैत-डूबैत जान बचाइये लैत अछि। आशा भेट रहल अछि। बाउ, उमेर कते छन्हित?
पुलकित- हम दुनू गोरे एक बत्तरिये छी। घरो एक्केठीन अछि। (पुलकितकेँ निच्चा सँ ऊपर माथ धरि निहारि-निहारि चिन्तामणि देखै छथि)
चिन्तातमणि- बालो-बच्चा। छन्हिअ?
पुलकित- हँ। एकटा बेटा एकटा बेटी छन्हिम।
चिन्ता-मणि- तखन दोहरा कऽ किअए विआह करताह?
पुलकित- माए बूढ़े छन्हिक, विआहक बाद बेटी सासुरे बसए लगतनि। नँउऐ-कौंउएे कऽ बचलनि बेटा। बेटो सभ तेहेन ढाठी धऽ लेलक जे ओइसँ नीक बेटिये। जे कमसँ कम पावनि-तिहारमे नै सनेस तँ वेनो पठेबे करैए। तँए जुगक अनुकूल अपन-अपन आशा बना जिनगी चलबैत रही।
चिन्ता-मणि- नीक-नहाँति अहाँक बात नै बुझलौं?
पुलकित- अपने पढ़ल-लिखल नै छी मुदा संगत पाबि किछु बुझल अछि। आगू बढ़ैक हाेड़मे समाज बिखंडित भऽ रहल अछि जइसँ गामक दशा दिनानुदिन गिरले जा रहल अछि।
चिन्तामणि- (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ भाइये रहल अछि।
पुलकित- अहीं कहू जे किसान परिवारमे जन्म लेनिहार किसान बनैत छलाह। पूर्वजक लगौल फुलवाड़ीकेँ कोर-कमठौनक संग पानि ढारैत छलाह जइसँ समाजक हरीयरी बढ़ैत रहल। मुदा कल-कारखाना दिस घुसकि समाजक (गामक) घर खसा रहल अछि। एहेन स्थिोतिमे की कएल जाए।
चिन्ताैमणि- बाउ, अहाँ चपरासी छी?
पुलकित- हँ। मुदा विपति बाबूक लंगोटिया संगी सेहो छी। हमर माए-बाप गरीब छलाह, नै पढ़ौलनि। ओ (विपति बाबू) बी.ए. पास कऽ कऽ हाइ स्कूलमे शिक्षक बनलाह। मुदा बच्चेनसँ जहिना रहलौं तहिना अखनो छी।
चिन्ता मणि- बेटा नै बेटी छी तँए जिनगीक प्रश्न अछि। ओना विअाह लेल डेग उठबैमे ने कोनो बाधा अछि आ ने संकोच। मुदा जते अधिकार हमरा अछि तइसँ मिसियो कम माएकेँ नै छन्हिज। तँए डेग उठबैसँ पहिने हुनको पूछि लेब जरूरी अछि। (जोरसँ) कतऽ छी कनी सुनि लिअ?
(सावित्रीक प्रवेश)
सावित्री- की कहलौं?
चिन्तातमणि- (मुस्कुधराइत) तीन सालक चिन्ता? हेट भऽ रहल अछि।
सावित्री- (विहुँसैत) से की? से की?
चिन्तातमणि- गीताक विआहक सूहकार आएल अछि। कने बुझने-सुझने अबै छी। जँ किछु धएल-धड़ल विचार हुअए तँ अखने कहि िदअ।
सावित्री- राखल जोगाएल विचार की रहत। पेटीमे राखल पुरान साड़ी जकाँ तरेतर सभ गुमसरि गेल। पहिरै जोकर नै रहल। मुदा तैयो तँ कहबे करब जे नोर बहबैत बेटी सरापे नै।
चिन्तारमणि- अहाँ अर्द्धांगिनी छी जेकर आड़िपर बेटा-बेटीक गाछ होइ छै। कोनो बात (विचार) जोर दऽ कऽ हँ नै कहाएब। अखन समए अछि तँए मनसँ विचार देब तखने डेग उठाएब।
सावित्री- बरक विषएमे किछु कहि दिअ?
पुलकित- शरीरसँ पूर्ण स्वस्था, हाइ स्कू लमे शिक्षक छथि। धतपत तीस-पेंइतीसक अवस्थान हेतनि। पहिल कनियाँ पैछला साल मरि गेलनि। तँए परिवारक लेल दोहरा कऽ विआह करब जरूरी छन्हिँ।
सावित्री- नौकरी करै छथि, तहूमे शिक्षक छथि। ई तँ दीब बात भेल। जाधरि नोकरी करै छथि ताधरि तलब भेटतनि आ छुटलाक (रिटायर) उत्तर पेन्श न। (मुस्कीक दैत) पाँच कर अन्न आ पाँच हाथ वस्त्रईक दुख गीताकेँ नै हएत। गामक नाओं कहू?
पुलकित- धरमपुर।
सावित्री- गामो तँ दुसैबला नहिये अछि। लगो अछि। जाबे जीब ताबे आवा-जाही रहबे करत। (पतिसँ) एक-दूटा बात विचारणीय अछि।
चिन्ता(मणि- (व्य्ग्र) से की, से की?
सावित्री- जहाँ धरि उमेरक बात अछि ओहो परमपराक अनुकूले अछि। राजा दशरथ तीनटा विआह केने रहथि। किअए केने छलाह? अही दुआरे ने जे पहिल कन्याँवसँ सन्ता न नै भेलनि। प्रश्नछ अछि जे सन्तापनक प्रतीक्षामे दस वर्ष समए लगले हेतनि?
चिन्ताँमणि- कने सोझरा कऽ कहियौ?
सावित्री- सन्ताान नै हेबाक घोषणा (fनर्णए) दस वर्ष पछातिये ने होइत छै। तै बीच तँ ओकर प्रतिकार होइ छै। जोग-टोनसँ लऽ कऽ दवाइ-विड़ोमे दस वर्ष लगिये जाइत अछि।
चिन्तामणि- हँ, से तँ होइते अछि।
सावित्री- पहिलसँ तेसर पत्नीक बीच पनरह-बीस बर्ख लगिये जाइत अछि। ऐ हिसावसँ लड़का (बर) उपयुक्त छथि। दोसर प्रश्ने अछि दोसर पत्नीक।
चिन्ताँमणि- हँ, से तँ अछिये।
सावित्री- दोसर पत्नी तँ ओतऽ अधला होइत अछि जतऽ सौतीन बनि जिनगी चलैत। से तँ नहिये अछि। रहल बच्चा क सतमाए होएब? सासुक लेल तँ पुतोहूए हएत।
चिन्तामणि- (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ अछिये?
सावित्री- ई तँ नीके भेल।
चिन्तामणि- कोना?
सावित्री- (हँसैत) जहिना गुरूसँ श्रेष्ठे सतगुरू होइत छथि तहिना।
चिन्तायमणि- नै बुझलौं?
सावित्री- माएसँ श्रेष्ठ सतमाए ऐ लेल श्रेष्ठ होइत जे माए अपन (कोखिक) सन्तालनक सेवा करैत (पालैत-पोसैत) जहन कि सतमाए दोसराकेँ। जँ आन बच्चाथक सेवा अपन बच्चार सदृश्य कियो करैत तँ वएह ने सतमाए भेली।
चिन्तामणि- मुदा.....?
सावित्री- हँ। अपना समाजमे सतमाएकेँ सौतिनिया डाहक प्रतीक बुझल जाइत अछि। ठाम-ठीम अछियो। मुदा (सत-माए) सतमाए तँ ओ भेली जे अपने बच्चाा जकाँ दोसरोक बच्चाछकेँ बुझि सेवा करए।
चिन्तामणि- (ठहाका मारि) आगू बढ़ै छी।
अंतिम दृश्य-
(चिन्तामणिकेँ पुलकित स्कू लक अग्ने़यमे ठाढ़ कऽ विपति बाबू आ बुद्धिधारी बाबूकेँ बजा अनैत)
चारू गोटे बैसल।
बुद्धिधारी- अपनेक नाओं?
चिन्ताधमणि- लोक चिन्ताकमणि कहैए।
बुद्धिधारी- अपनेकेँ कन्याो छथि?
चिन्ताधमणि- हँ।
बुद्धिधारी- (विपति बाबूकेँ देखबैत) यएह बर (लड़का) छथि। सहयोगी छथि। हिनक पत्नी पैछला साल मरि गेलखिन। बृद्ध माए आ दूटा बच्चात छन्हिय। आब अपन विचार देल जाउ?
चिन्ताचमणि- विद्यालयक आंगनमे बैसल छी तँए कहै छी। ओना हम बड़ गरीब छी। उनैस-बीस बर्खक बेटी अछि। तीन सालसँ विआहक बात मनमे नाचि रहल अछि मुदा कतौ नाकपर माछी नै बैस रहल अछि।
बुद्धिधारी- अपनेकेँ एको-पाइ खर्च नै हएत। विपति बाबू कमाइ छथि। सब खर्च करताह।
चिन्ताधमणि- केहेन बात बजै छी। ई कहू जे लाम-झामसँ बरिआती नै जाएत। मुदा अपना दरबज्जानपर सँ बेटी जमाएकेँ पाँच हाथ नव वस्त्र पहिरा अरिआति कऽ विदा नै करब से केहेन हएत?
बुद्धिधारी- जहन संबंध स्थाहपित कए रहल छी तहन भेद किअए?
चिन्ताधमणि- जहिना आमक गाछकेँ दोसर गाछक डारिमे बान्हि कलम बनाओल जाइत अछि तहिना ने दू परिवार मिल बनैत अछि। मुदा दुनूक अपन-अपन गुण तँ रहिते अछि।
बुद्धिधारी- नै बुझलौं?
चिन्ताधमणि- हमर कन्या मिथिलाक ललना छी। एक बेर जै पुरूषसँ हाथ पकड़बैत अछि जिनगी भरि स्वामी, पति आ गुरूभक्त बनि सेवा करैत अछि। कहियो अपन सीमाक उल्लंघन नै करैत अछि। भलहि राम सन बेटाकेँ पिता बनवास दऽ देलखिन मुदा कौशल्याभ बात कहाँ कटलकनि।
बुद्धिधारी- से की?
चिन्ताधमणि- यएह जे रामपर जते अधिकार पिता दशरथक छलनि तइसँ कम तँ माए कौशल्याक नै छलनि। मुदा कहाँ अपन अधिकारक प्रयोग केलनि। आँखि मुनि सुहकारि लेलकनि।
बुद्धिधारी- (नमहर साँस छोड़ैत) विपति बाबूक परिवार अलग छन्हिँ। जेहने अपने छथि तेहने माए छथिन। दुनू बच्चाअ तँ गाइयोक बच्चाकसँ कोमन आ सुशील अछि।
चिन्ता मणि- भाग्य। हमरा बेटीक जे लगौल फुलवाड़ीक माली बनि सेवा करत।
अंतिम दृश्य, मिथिलाक वियाहक।
समाप्त।
साभार- विदेह प्रथम ई पाक्षिक मैथिली पत्रिका
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