विभा रानीक नाटक भाग रौ:सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थ
साहित्यक प्रतिमान बदलैत रहैत अछि मुदा किछु तत्वक निरंतरता बनल रहैत अछि। नाटक साहित्यमे दू तत्वक महत्व कमोबेश सभ युगमे रहल अछि। प्रासंगिकता आ रंगमंचीयता एहने दू टा तत्व अछि। पहिलक सम्बन्ध मोटामोटी विषयवस्तु आ दोसरक सम्बन्ध शिल्पसँ अछि। विभा रानी लिखित “भाग रौ”क विश्लेषण ऐ दृष्टिसँ कएनाइ उचित अछि।
विभा रानी द्वारा ऐ नाटक मे भिखमंगा बच्चाक जीवन आ समाजक क्रूर दृष्टिक चर्चा कएल गेल अछि। लेखिका द्वारा चयनित विषय वस्तु मैथिलीए मे नइ बल्कि आनो-आन भाषामे विरल अछि। भिखमंगा बच्चा सभ आपसी वार्तामे समाज आ जिनगीक कतिपय क्रूर पक्षसँ परिचय करबैत अछि। समाज, सरकारक साथे-साथ भगवानोसँ उपेक्षित ई बच्चा भारतीय समाज आ राष्ट्रक महानतापर व्यंग्य करैत अछि।
भिखमंगा बच्चा सभ अपन जिनगीक क्षतिपूर्ति गोविन्दा, रितिक रोशन, शाहरूख, अभिषेक आदिक चर्चासँ करैत अछि आ अपन कथात्मक सन्दर्भ मे ई जेहन करूण साबित होइत अछि, रंगमंचीय दृष्टिसँ ओहने कलात्मक। यद्यपि विद्वान लोकनिकें हीरो हीरोइनक ई अतिचर्चा अनसोहाँत लागि सकैत छन्हि मुदा अपन संदर्भक मध्य ई रूचिगर आ प्रासंगिक बुझाइत अछि।
दानापुर माने दाना सँ पूरम पूरा। भाग रौ नाटकक कथा प्रसंग देशक एहने दाना दाना चुगएबला सभसँ वंचित आ कर्मठ वर्गक कथा छै।
ऐ वर्गक सभसँ अभिप्सित भूख, चाह आ गंध थिकै रोटीक गंध। पेटमे मरल सनकिरबोक थाह नइ मिललइ, ई देशक नीति-निर्माता आ प्रभु वर्गपर प्रचण्ड प्रहार अछि। भूखल बच्चा ऐ समाजमे अपन स्तर आ महत्वसँ परिचित अछि, तइ दुआरे बच्चा १ कहैत अछि- प्रधानमंत्री छें जे मरि जेबें तँ देसक काजधंधा थम्हि जेतै।
नाटकक भाषा विषय-वस्तुक अनुरूप करूण आ मारक अछि। तद्भव आ देशज शब्दक बाहुल्य नाटककेँ रूचिगर आ रंगमंचीय बनेने रहैत अछि।
-सिटी सँ साहेब भऽ गेलै तँ हमरा अओरक भूख-पियासक रंग बदलि गेलै की?, उपरोक्त वाक्यक प्रश्नवाचकता आ कथनगत असंभाव्यता एकटा तनावकेँ जन्म दैत अछि।
भिखमंगा सभ आपसी गपशपमे दूटा महिला राजनीतिज्ञक चर्चा सेहो करैत अछि आ विडंबना ई जे दुनू महिला परिवारवाद आ भारतीय राजनीतिक अनुर्वरताक पोषक छथि। बच्चा सभ कहैत अछि जे पढ़ि कऽ की बनब? ई या ई? दुर्भाग्य देखू जे दुनू महिला अपन विद्वता आ नैतिक शक्तिसँ जनमनक नेतृत्व नइ कएलक।
एहन समाज आ राजनीति एकटा खास तरहक भाषाक इस्तेमाल करैत अछि। ई भाषा प्रथम दृष्टया अश्लील आ मूलतः असंवेदनशील होइत अछि।
-ई डंडा एमहरसँ घुसतौ तँ मुँह दने निकलतौ।
वर्चस्व, आक्रमण आ यौनविद्वेषसँ भरल ई भाषा एकटा खास सामंती आ मर्दवादी समाजक मानसिकताकेँ पोषित करैत अछि।
ऐ समाजक बुद्धिजीवी एहन भाषाक उपयोग नै करैत अछि मुदा अपन अनुर्वरतामे इहो तेहने अछि। दू टा पत्रकार- युवक आ युवती- अपन शिक्षा आ संस्कारमे किछु अलग अछि मुदा इहो वर्ग सृजनशीलता आ नवोन्मेषसँ पूर्णतः रहित अछि। युवतीमे किछु नया करबाक संभावना अछि मुदा अंधकारक विराट आकाशमे ई संभव नै भेल।
ऐे वर्गक भाषामे एकटा खास किस्मक नफासत अछि। तत्सम बहुलता आ अंग्रेजी शब्द आ वाक्यक बाहुल्यसँ ई वर्ग अपन विशिष्ट अस्तित्व आ रूचिपर बल दैत अछि।
-नॉट ए बैड आइडिया,
ही इज डफर, बी पेशेंट, सनक चालू वाक्य रंगमंचीय अछि।
रंगमंचीय उपकरणक रूपमे किछु नव प्रयोग सेहो अछि। नाटकमे समवेत स्वरमे गान या बलाघातसँ किछु खास कहबाक प्रयास कएल गेल अछि।
-हम सब किछु नै कऽ सकैत छी।, आ -हमसब.......मात्र पुतली भरि
; ई सभ अपन संदर्भमे बहुत अर्थवान अछि मुदा ऐठाम रंगमंचीय कौशल सेहो अपेक्षित अछि, अन्यथा अंतिम प्रभाव उड़ियएबाक संभावना अछि।
भाग रौ नाटकक असफलता सेहो स्पष्ट अछि। दोसर अंकक पहिल दृश्यमे मंगतू एक पृष्ठक स्वगत बाजैत अछि। ऐ दृश्यक उद्देश्य स्पष्ट रहितो रंगमंचीयता संदिग्ध अछि। दोसर अंकमे लेखिकाक नियंत्रण नाटकपर कम अछि। भिखमंगाबला संदर्भ जतेक जीवंत अछि, ओतेक पत्रकार आ प्रेसबला नै। मध्यांतरक बाद ऐ गुरूत्वाकर्षणक कमी एकदम स्पष्ट अछि।
नाटकक अंत एकटा कवितासँ होइत अछि। संयोगवश ऐ कविताक समानता आ समरूपता हिन्दी कवि शमशेर बहादुर सिंहक कविता -काल, तुझसे होड़ है मेरी, सँ बहुत ज्यादा अछि।
शमशेर- काल,
तुझसे होड़ है मेरी: अपराजित तू -
विभा -ओ काल...
अहीं सँ हँ, अहीं सँ अछि टक्कर हमर
शमशेर-भाव, भावोपरि
सुख, आनंदोपरि
सत्य, सत्यासत्योपरि
विभा-जे अछि सत्यो सँ बढ़ि कऽ सत्य
शिवो सँ बढ़ि कऽ शिव
अमरोसँ अमर
सुंदरतोसँ सुंदर.....
ई कविता नाटक “भाग रौ” क महत्वपूर्ण भाग नै अछि। तें एकर शमशेरक कवितासँ समानताक कोनो खास महत्व नै अछि। मैथिली नाटकक इतिहासमे विभारानी अपन ऐ नाटकक संग विशेष महत्वक उत्तराधिकारिणी छथि। विषयवस्तुमे नवोन्मेषक संगे-संग ट्रीटमेंटक अभिनवता “भाग रौ” नाटककेँ उल्लेखनीय बनबैत अछि।
रंगमंचीय उपकरणक रूपमे किछु नव प्रयोग सेहो अछि। नाटकमे समवेत स्वरमे गान या बलाघातसँ किछु खास कहबाक प्रयास कएल गेल अछि।
-हम सब किछु नै कऽ सकैत छी।, आ -हमसब.......मात्र पुतली भरि
; ई सभ अपन संदर्भमे बहुत अर्थवान अछि मुदा ऐठाम रंगमंचीय कौशल सेहो अपेक्षित अछि, अन्यथा अंतिम प्रभाव उड़ियएबाक संभावना अछि।
भाग रौ नाटकक असफलता सेहो स्पष्ट अछि। दोसर अंकक पहिल दृश्यमे मंगतू एक पृष्ठक स्वगत बाजैत अछि। ऐ दृश्यक उद्देश्य स्पष्ट रहितो रंगमंचीयता संदिग्ध अछि। दोसर अंकमे लेखिकाक नियंत्रण नाटकपर कम अछि। भिखमंगाबला संदर्भ जतेक जीवंत अछि, ओतेक पत्रकार आ प्रेसबला नै। मध्यांतरक बाद ऐ गुरूत्वाकर्षणक कमी एकदम स्पष्ट अछि।
नाटकक अंत एकटा कवितासँ होइत अछि। संयोगवश ऐ कविताक समानता आ समरूपता हिन्दी कवि शमशेर बहादुर सिंहक कविता -काल, तुझसे होड़ है मेरी, सँ बहुत ज्यादा अछि।
शमशेर- काल,
तुझसे होड़ है मेरी: अपराजित तू -
विभा -ओ काल...
अहीं सँ हँ, अहीं सँ अछि टक्कर हमर
शमशेर-भाव, भावोपरि
सुख, आनंदोपरि
सत्य, सत्यासत्योपरि
विभा-जे अछि सत्यो सँ बढ़ि कऽ सत्य
शिवो सँ बढ़ि कऽ शिव
अमरोसँ अमर
सुंदरतोसँ सुंदर.....
ई कविता नाटक “भाग रौ” क महत्वपूर्ण भाग नै अछि। तें एकर शमशेरक कवितासँ समानताक कोनो खास महत्व नै अछि। मैथिली नाटकक इतिहासमे विभारानी अपन ऐ नाटकक संग विशेष महत्वक उत्तराधिकारिणी छथि। विषयवस्तुमे नवोन्मेषक संगे-संग ट्रीटमेंटक अभिनवता “भाग रौ” नाटककेँ उल्लेखनीय बनबैत अछि।
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