मैथिली लोक रंग / मैलोरंग अपन प्रस्तुति मुक्ति पर्व (नटुआ नाच शैली मे) आयोजन 29 अगस्त, 2011 क’ श्रीराम सेंटर के प्रेक्षागृह मे आयोजित केलक. एहि नाटक के देखबाक लेल आयल अहाँ सब गोटे के मैलोरंग परिवार दिस स’ हार्दिक धन्यवाद.
एहि प्रस्तुति मे आर्थिक सहयोग संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार; साहित्य कला परिषद, दिल्ली सरकार; सुलभ इंटरनेशनल, आ इण्डिया ऑन फोन आ दिल्ली इस्टीट्यूशन ऑफ एरोनोटिकल साइंस देने छल. एहि सब संस्थान के हम सब आभारी छी.
एहि प्रस्तुति के प्रचार प्रसार ( नेट ) मोहल्ला लाइव आ मैथिलीक पहिल ई-पत्रिका इ-समाद केने छल. एहि दुनू पत्रिकाक संपादक के हम सब हृदय स’ आभारे छी..
आगुओ हिनकर सभहक सहयोग आ अहाँ लोकनि के आशीर्वाद मैलोरंग संग रहत से विश्वास अछि. एक बेर फेर सब गोटे के धन्यवाद.
- निर्देशक प्रकाश झा,मैलोरंग (http://rangkarm.wordpress.com/)
Thanks for the news, but the report by prakash jha says “मैथिलीक पहिल ई-पत्रिका इ-समाद”, it is nothing but casteist bias, and is mockery of facts, it is not the first e-paper/ magazine/ internet news portal, but i doubt if it is even in first top ten, the chronological list is available at this link, http://www.videha.co.in/feedback.htm ,you can see it yourself, all the blogs come with date of posting, when every thing is available datewise and online, then there should not be such gross misrepresentation. One can only imagine the kind of wrong-history writing in the field of stage and drama.
-Bechan Thakur
विदेह मैथिली नाट्य उत्सव 'Videha Maithili Drama Festival'- the encyclopaedia of Maithili Stage and Drama/ VIDEHA PARALLEL MAITHILI THEATRE
Wednesday, August 31, 2011
मैथिली नाटकक एकटा समानान्तर दुनियाँ- गजेन्द्र ठाकुर
मैथिली नाटकक एकटा समानान्तर दुनियाँ
रामखेलावन मंडार- गाम कटघरा, प्रखण्ड- शिवाजीनगर, जिला समस्तीपुर। हिनके संग बिन्देश्वर मंडल सेहो छलाह। उठैत मैथिली कोरस आ - माँ गै माँ तूँ हमरा बंदूक मँगा दे कि हम तँ माँ सिपाही हेबै- एखनो लोककेँ मोन छन्हि। एहि मंडली द्वारा रेशमा-चूहड़, शीत-बसन्त, अल्हा-ऊदल, नटुआ दयाल ई सभ पद्य नाटिका पस्तुत कएल जाइत छल।
मैथिली-बिदेसिया- पिआ देसाँतरक टीम सहरसा-सुपौल-पूर्णियाँसँ अबैत छल।
हासन-हुसन नाटिका होइत छल।
रामरक्षा चौधरी नाट्यकला परिषद, ग्राम- गायघाट, पंचायत करियन, पो. वैद्यनाथपुर, जिला- समस्तीपुर विद्यापति नाटक गोरखपुर धरि जा कऽ खेलाएल छल। एहि मंडली द्वारा प्रस्तुत अन्य नाटक अछि- लौंगिया मेरचाइ, विद्यापति, चीनीक लड्डू आ बसात।
मैथिली नाटकक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित आ सम्मानित कएल जएबाक प्रयास होएबाक चाही।
रामखेलावन मंडार- गाम कटघरा, प्रखण्ड- शिवाजीनगर, जिला समस्तीपुर। हिनके संग बिन्देश्वर मंडल सेहो छलाह। उठैत मैथिली कोरस आ - माँ गै माँ तूँ हमरा बंदूक मँगा दे कि हम तँ माँ सिपाही हेबै- एखनो लोककेँ मोन छन्हि। एहि मंडली द्वारा रेशमा-चूहड़, शीत-बसन्त, अल्हा-ऊदल, नटुआ दयाल ई सभ पद्य नाटिका पस्तुत कएल जाइत छल।
मैथिली-बिदेसिया- पिआ देसाँतरक टीम सहरसा-सुपौल-पूर्णियाँसँ अबैत छल।
हासन-हुसन नाटिका होइत छल।
रामरक्षा चौधरी नाट्यकला परिषद, ग्राम- गायघाट, पंचायत करियन, पो. वैद्यनाथपुर, जिला- समस्तीपुर विद्यापति नाटक गोरखपुर धरि जा कऽ खेलाएल छल। एहि मंडली द्वारा प्रस्तुत अन्य नाटक अछि- लौंगिया मेरचाइ, विद्यापति, चीनीक लड्डू आ बसात।
मैथिली नाटकक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित आ सम्मानित कएल जएबाक प्रयास होएबाक चाही।
Sunday, August 28, 2011
मैथिली नाट्य संस्था भंगिमाक कार्यकारिणीक चुनाव
मैथिली नाट्य संस्था भंगिमाक आम सभा बैसारमे नव कार्यकारिणीक चुनाव सर्व सम्मतिसँ भेल ।
श्री कुणाल- अध्यक्ष ,
श्री मोदनरायण झा-उपाध्यक्ष
श्री जयदेव मिश्र-सचिव
श्री रवि भूषण मुकुल -संयुक्त सचिव
श्री नवेन्दु झा -संगठन सह प्रचार सचिव
श्री उमाकांत झा- कोषाध्यक्ष
चयनित कएल गेलाह।
समस्त चुनाव कार्यक्रम श्री प्रेम कान्त झाक देखरेखमे सम्पन्न भेल ।
(सूचना: साभार: कुमार गगन)
श्री कुणाल- अध्यक्ष ,
श्री मोदनरायण झा-उपाध्यक्ष
श्री जयदेव मिश्र-सचिव
श्री रवि भूषण मुकुल -संयुक्त सचिव
श्री नवेन्दु झा -संगठन सह प्रचार सचिव
श्री उमाकांत झा- कोषाध्यक्ष
चयनित कएल गेलाह।
समस्त चुनाव कार्यक्रम श्री प्रेम कान्त झाक देखरेखमे सम्पन्न भेल ।
(सूचना: साभार: कुमार गगन)
Thursday, August 25, 2011
विदेह नाट्य (आ फिल्म) उत्सव २०१२/ [किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए, कतेक सए सालसँ अछि दुश्मन ई दुनियाँ तैयो।]
विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: ज्योति सुनीत चौधरी आ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक-सूचना-सम्पर्क-समाद पूनम मंडल आ प्रियंका झा।
[किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए,
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: ज्योति सुनीत चौधरी आ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक-सूचना-सम्पर्क-समाद पूनम मंडल आ प्रियंका झा।
[किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए,
कतेक सए सालसँ अछि दुश्मन ई दुनियाँ तैयो।]
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा [इकबाल]
सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा [इकबाल]
बेचन ठाकुर |
जगदीश प्रसाद मण्डल |
गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.।कथाकार (गामक जिनगी-कथा संग्रह आ तरेगण- बाल-प्रेरक लघुकथा संग्रह), नाटककार(मिथिलाक बेटी-नाटक), उपन्यासकार(मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत- उपन्यास)। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि। विदेह सम्पादकक समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
उमेश मण्डल |
प्रकाशित कृति: निश्तुकी- कविता संग्रह (2009)।
गजेन्द्र ठाकुर |
मुन्नाजी |
शिव कुमार झा 1973-
शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,पिताक नामः स्व. काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘, माताक नामः स्व. चन्द्रकला देवी,जन्म तिथिः 11-12-1973,शिक्षाः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थानः मातृक- मालीपुर मोड़तर, जि. - बेगूसराय, मूलग्रामः ग्राम-पत्रालय - करियन, जिला - समस्तीपुर, पिन: 848101,संप्रतिः प्रबंधक, संग्रहण,जे. एम. ए. स्टोर्स लि.,मेन रोड, बिस्टुपुर जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधिः वर्ष 1996 सँ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार-प्रसार हेतु डॉ. नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्वमे संलग्न। प्रकाशित कृति: क्षणप्रभा-कविता-संग्रह, अंशु-समालोचना।
प्रीति ठाकुर |
पूनम मण्डल |
आशीष अनचिन्हार |
धीरेन्द्र कुमार |
VIDEHA DRAMA FESTIVAL:-
VIDEHA- http://www.videha.co.in/ , Ist Maithili Fortnightly ejournal ISSN 2229-547X Maithili Literature Movement, 88 issues, 11,900 pages of Maithili literature(52.3 lac words corpora), 11000 manuscripts transcripted,50000 word Maithili english database maintained,276 authors,3.14 lac + hits. 100+ audio files; 100+ hours Maithili Video files.+ Modern Photographs/ painting/mithila painting archive/ +scanned versions of Maithili Books for free download, Children literature/ Maithili cartoon archive;but its just beginning.
THE STAGE, MUSIC, FILM AND DRAMA IN MAITHILI AS PER NATYASHASTRA IS THE THEME OF FIRST VIDEHA DRAMA FESTIVAL 2012.
THE PARALLEL TRADITION OF MAITHILI DRAMA/ MUSIC/ ART/ CRAFT/ POTTERY/ FILMS WILL BE ARCHIVED AND AWARDED/ REWARDED.
विद्यापतिक पिआ देशाँतर (विद्यापतिक बिदेसिया)-(संकल्पित नाटिका)- गजेन्द्र ठाकुर
भोजपुरीक साहित्य मैथिलीसँ कम समृद्ध अछि मुदा से अछि मात्र परिमाणमे, गुणवत्ताक दृष्टिमे ई कतेक क्षेत्रमे आगाँ अछि। भोजपुरीक भिखाड़ी ठाकुरक बिदेसियाक सन्दर्भमे हम ई कहि रहल छी। भिखाड़ी ठाकुर कलकत्तामे प्रवासी रहथि, घुरि कय अयलाह आऽ भोजपुर क्षेत्रमे अपन कष्टक वर्णन जाहि मर्मस्पर्शी रूपसँ गामे-गामे घुमि कय आऽ गाबि कय सुनओलन्हि से बनल बिदेसिया नाटक। मिथिलामे प्रवास आजुक घटना छी, गामक-गाम सुन्न भऽ गेल अछि। मिथिलाक बिदेसिया लोकनि देशक कोन-कोनमे पसरि गेल छथि। मुदा पहिने भोजपुर इलाका जेकाँ प्रवासक घटना मिथिलामे नहि छल। प्रवास मोरंग धरि सीमित छल जे नेपालक मिथिलांचल क्षेत्र अछि। आऽ ताहिसँ मैथिलीमे लोकगाथाक सूक्ष्म विवरणक बड़ अभाव, जे अछियो से लोकगाथा नायकक विवरण नहि वरन महाकाव्यक नायकक मैथिलीमे विवरण जेकाँ अछि आऽ बोझिल अछि, भिखाड़ी ठाकुरक बिदेसियाक जोड़ नहि। सलहेसक कथाक विवरण लिअ, क्षेत्रीय परिधि पार करिते सलहेस राजासँ चोर बनि जाइत छथि आऽ चोरसँ राजा। तहिना चूहड़मल क्षेत्रीय परिधि पार करिते जतए सलहेस राजा बनैत छथि ओतय चोर बनि जाइत छथि आऽ जतय सलहेस चोर कहल जाइत छथि ओतुक्का राजाक/ शक्तिशालीक रूपेँ जानल जाइत छथि। मुदा एहि सभपर कोनो शोध नहि भए सकल अछि। एहि क्रममे विद्यापतिक पदावलीक पद सभमे तकैत हमरा समक्ष विभिन्न प्रकारक गीत सभ सोझाँमे आयल। एहिमे जे अधिकांश छल से रहय प्रेमी-प्रेमिकाक विरहक विवरण करैत अछि आऽ बिदेसियाक जे मूल कनसेप्ट अछि- रोजी-रोटी आऽ आजीविका लेल मोन-मारि कय प्रवास, ताहिसँ फराक अछि। तखन जाऽ कय हमरा सात टा विशुद्ध बिदेसिया जकरा विद्यापति पिआ-देशाँतर कहैत छथि भेटल। एहिमे स्वाभाविक रूपेँ ६ टा विद्यापतिक नेपाल पदावलीसँ भेटल, आऽ एकटा नगेन्द्रनाथ गुप्तक संग्रीहीत पदावलीसँ।
विद्यापतिक पिआ देशाँतर
दृश्य १
स्टेजपर हमर बिदेसिया बिदेस नोकरीक लेल बिदा होइत छथि आऽ जुवती गबैत छथि- गीतक बीचमे एकटा पथिक अबैत छथि आऽ मंचक दोसर छोड़पर चोर लोकनि धपाइत नुकायल छथि। मंचक दोसर छोड़पर कोतवाल आऽ शुभ्र धोतीधारी पेटपर हाथ देने निफिकिर बैसल छथि।
धनछी रागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
हम जुवती, पति गेलाह बिदेस। लग नहि बसए पड़उसिहु लेस।
हम युवती छी आऽ हमर पति बिदेस गेल छथि। लगमे पड़ोसीक कोनो अवशेष नहि अछि।
सासु ननन्द किछुआओ नहि जान। आँखि रतौन्धी, सुनए न कान।
सास आऽ ननदि सेहो किछु नहि बुझैत छथि। हुनकर सभक आँखिमे रतौँधी छन्हि आऽ ओऽ सभ कानसँ सेहो किछु नहि सुनैत छथि।
जागह पथिक, जाह जनु भोर। राति अन्धार, गाम बड़ चोर।
हे पथिक! निन्नकेँ त्यागू। काल्हि भोरमे नहि आऊ। अन्हरिया राति अछि आऽ गाममे बड्ड चोर सभ अछि।
सपनेहु भाओर न देअ कोटबार। पओलेहु लोते न करए बिचार।
कोतबाल स्वनहुमे पहड़ा नहि दैत अछि आऽ नोत देलोपर विचार नहि करैत अछि।
नृप इथि काहु करथि नहि साति।
पुरख महत सब हमर सजाति॥
ताहि द्वारे राजा ककरो दण्ड नहि दैत छथि आऽ सभटा पैघ लोक एके रंग छथि।
विद्यापति कवि एह रस गाब। उकुतिहि भाव जनाब।
विद्यापति कवि ई रस गबैत छथि। उकतीसँ भाव जना रहलीह अछि।
विद्यापति कविक प्रवेश होइत छन्हि। कोतवालक लग शुभ्र-धोतीधारी आऽ एकटा गरीबक आगमन होइत अछि। कोतवाल आभाससँ धोतीधारीक पक्षमे निर्णय सुनबैत छथि आऽ मंचक दोसर कोनपर बैसलि जुवती माथ पिटैत छथि। गीतक अन्तिम चारि पाँती विद्यापति कवि गबैत छथि।
दृश्य २
जुवती एकटा दोकान खोलने छथि, सांकेतिक। मंचक दोसर छोरसँ सासु आऽ ननदिकेँ जएबाक आऽ क्रेता पथिकक अयबाक संग युवती गेनाई शुरू करैत छथि आऽ सभ पाँतिक बाद विद्यापति मंचपर अबैत छथि अर्थ कहैत छथि आऽ अंधकारमे विलीन भऽ जाइत छथि। मुदा अन्तिम पाँती विद्यापति गबैत छथि आऽ जुवती ओकर अर्थ बँचैत छथि।
मालवरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि, ठामे ठामे बस गाम।
एहि गाछक छाह बड्ड शीतल अछि। ठामे-ठाम गाम बसल अछि।
हम एकसरि, पिआ देसाँतर, नहि दुरजन नाम।
हम असगरि छी, प्रिय परदेसमे छथि, कतहु दुर्जनक नाम नहि अछि।
पथिक हे, एथा लेह बिसराम। हे पथिक! एतय विश्राम करू।
जत बेसाहब किछु न महघ, सबे मिल एहि ठाम।
जे किछु कीनब, किछुओ महग नहि। सभ किछु एतय भेटत।
सासु नहि घर, पर परिजन ननन्द सहजे भोरि।
घरमे सासु नहि छथि, परिजन दूरमे छथि आऽ ननदि स्वभावसँ सरल छथि।
एतहु पथिक विमुख जाएब तबे अनाइति मोरि।
एतेक रहितो जे अहाँ विमुख भय जायब तँ आब हमर सक्क नहि अछि।
भन विद्यापति सुन तञे जुवती जे पुर परक आस।
विद्यापति कहैत छथि- हे युवती! सुनू जे अहाँ दोसराक आस पूरा करैत छी।
दृश्य ३
एहि गीतमे विद्यापति नहि छथि। जुवतीक ननदि पथिककेँ दबाड़ि रहल छथि, से देखि जुवतीकेँ अपन पिआ देशाँतर मोन परि जाइत छन्हि। ओ ननदि आऽ सखीकेँ सम्बोधित कय गीत गबैत छथि। गीतक अर्थ सखी कहैत छथि, सभ पाँतीक बाद।
धनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
परतह परदेस, परहिक आस। विमुख न करिअ, अबस दिस बास।
परदेसमे नित्य दोसराक आस रहैत अछि। से ककरो विमुख नहि करबाक चाही। अवश्य वास देबाक चाही।
एतहि जानिअ सखि पिअतम-कथा।
हे सखी! प्रियतमक लेल एतबी कथा बुझू।
भल मन्द नन्दन हे मने अनुमानि। पथिककेँ न बोलिअ टूटलि बानि।
हे ननदि! मोनमे नीक-अधलाहक अनुमान कऽ पथिककेँ टूटल गप नहि बाजू।
चरन-पखारन, आसन-दान। मधुरहु वचने करिअ समधान।
चरण पखारू, आसन दियौक आऽ मधुर वचन कहि सान्त्वना दियन्हि।
ए सखि अनुचित एते दुर जाए। आओर करिअ जत अधिक बड़ाइ।
हे सखी पथिक एतयसँ दूर जायत से अनुचित से ओकर आर बड़ाई करू।
दृश्य ४
जुवती आ ननदि नगर आबि ठौर धेने छथि। एकटा पथिक आबि आश्रय मँगैत छथि तँ जुवती गबैत छथि आऽ ननदि सभ पाँतीक बाद अर्थ कहैत छथि। बीचमे चारि पाँती बिना अर्थक नेपथ्यसँ अबैत अछि। फेर जुवती आगाँ गबैत छथि आ ननदि अर्थ बजैत छथि। अन्तमे अन्तिम दू पाँती विद्यापति आबि गबैत छथि। दृश्यक अन्तमे ननदि कहैत छथि जे हम जे ओहि दिन पथिककेँ दबाड़ि रहल छलहुँ से अहाँकेँ नीक नहि लागल रहए, मुदा आइ पथिककेँ आश्रय किएक नहि देलियैक।
कोलाररागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
हम एकसरि, पिअतम नहि गाम। तेँ मोहि तरतम देइते ठाम।
हम एकसरि छी आऽ प्रियतम गाममे नहि छथि। ताहि द्वारे राति बिताबए लेल कहाबामे हमरा तारतम्य भऽ रहल अछि।
अनतहु कतहु देअइतहुँ बास। दोसर न देखिअ पड़ओसिओ पास।
यदि क्यो लगमे रहितथि तँ दोसर ठाम कतहु बास देखा दैतहुँ।
छमह हे पथिक, करिअ हमे काह। बास नगर भमि अनतह चाह।
हे पथिक क्षमा करू आऽ जाऊ आऽ नगरमे कतहु बास ताकू।
आँतर पाँतर, साँझक बेरि। परदेस बसिअ अनाइति हेरि।
बीचमे प्रान्तर अछि सन्ध्याक समय अछि आऽ परदेसमे भविष्यकेँ सोचैत काज करबाक चाही।
मोरा मन हे खनहि खन भाँग। जौवन गोपब कत मनसिज जाग।
चल चल पथिक करिअ प... काह। वास नगर भमि अनतहु चाह।
सात पच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसान्तर आन्तर भेल।
बारह वर्ष अवधि कए गेल। चारि वर्ष तन्हि गेला भेल।
घोर पयोधर जामिनि भेद। जे करतब ता करह परिछेद।
भयाओन मेघ अछि, रतुका गप छी सोचि कए निर्णय करू।
भनइ विद्यापति नागरि-रीति। व्याज-वचने उपजाब पिरीति।
विद्यापति कहैत छथि, ई नगरक रीति अछि जे कटु वचनसँ प्रीति अनैत अछि।
दृश्य ५
अहू दृश्यमे विद्यापति नहि छथि। एकटा पथिक अबैत छथि मुदा सासु-ननदि ककरो नहि देखि बास करबासँ संकोचवश मना कय आगाँ बढ़ि जाइत छथि। जुवती गबैत छथि।
घनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
उचित बसए मोर मनमथ चोर। चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।
कामदेव रूपी चोरक लेल हमर अवस्था ठीक अछि। बुढ़िया चेरी पहरा दऽ रहल छथि।
बारह बरख अवधि कए गेल। चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।
बारहम बरखक रही तखन ओऽ गेलाह आऽ आब चारि बर्ख तकर भऽ गेल।
बास चाहैत होअ पथिकहु लाज। सासु ननन्द नहि अछए समाज।
सास आऽ ननदि क्यो संग नहि छथि आऽ पथिक सेहो डेरा देबासँ लजाइत छथि।
सात पाँच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसाँतर आँतर भेल।
ओऽ कामदेव लेल घर सजा कय देशान्तर चलि गेलाह आऽ हमरा सभक बीचमे अन्तर आबि गेल।
पड़ेओस वास जोएनसत भेल। थाने थाने अवयव सबे गेल।
पड़ोसक बास जेना सय योजनक भऽ गेल सभ सर-सम्बन्धी जतय ततय चलि गेलाह।
नुकाबिअ तिमिरक सान्धि। पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।
लोकक समूह अन्हारमे विलीन भऽ गेल, पड़ोसिन फाटकि बन्न कय लेलन्हि।
मोरा मन हे खनहि खन भाग। गमन गोपब कत मनमथ जाग।
हमर मोन क्षण-क्षण भागि रहल अछि। कामदेव जागि रहल छथि गमनकेँ कतेक काल धरि नुकाएब।
दृश्य ६
एहि दृश्यमे सेहो नहि तँ ननदि छथि नहिये सासु आऽ नहिये विद्यापति। एकटा अतिथि अबैत छथि आकि तखने मेघ लाधि दैत अछि आऽ जुवती गबैत छथि।
धनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
अपना मन्दिर बैसलि अछलिहुँ, घर नहि दोसर केवा।
अपन घरमे बैसल छलहुँ, घरमे क्यो दोसर नहि छल,
तहिखने पहिआ पाहोन आएल बरिसए लागल देवा।
तखने पथिक अतिथि अएलाह आऽ बरखा लाधि देलक।
के जान कि बोलति पिसुन पड़ौसिनि वचनक भेल अवकासे।
की बजतीह ईर्ष्यालु पड़ोसिन से नहि जानि, बजबाक अवसर जे भेटि गेलन्हि।
घोर अन्धार, निरन्तर धारा दिवसहि रजनी भाने।
दिनहिमे रात्रि जेकाँ होमय लागल।
कञोने कहब हमे, के पतिआएत, जगत विदित पँचबाने।
हम ककरा कहब आऽ के पतियायत। कारण कामदेव ख्याति तँ जगत भरिमे अछि।
दृश्य ७
मंचक एक दिससँ सासुक मृत्युक बाद हुनकर लहाश निकलैत छन्हि आ मंचपर अन्हार होइत अछि। फेर इजोत भेलापर ननदिक वर हुनका सासुर लय जाइत छन्हि। पथिक रस्तापर छथि दर्शकगणक मध्य आऽ दर्शकगणकेँ इशारा करैत जुवती गीत गबैत छथि आऽ विद्यापति सभ पाँतिक बाद अर्थ कहैत छथि। अन्तिम दू पाँति विद्यापति गीत आ अर्थ दुनू बजैत छथि- विद्यापति अन्तिम दू पाँति आ ओकर अर्थ कैक बेर दोहराबैत छथि।
नगेन्द्रनाथ गुप्त सम्पादित पदावली-
सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
सासु चलि बसलीह, ननदि सेहो सासुर गेलीह
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
क्यो नहि सम्भाषणक लेल पर्यन्त,
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
एतुका एहन बेबहार, ककरो क्यो पुछारी नहि करैत अछि।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
हमर पिअतमकेँ कहब, हम असगरे कतेक दिन रहब।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
पथिक हुनका कहबन्हि, हमरा सन रमणिक रसक तेज कखन धरि रहत।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।
विद्यापति गबैत छथि, विरहनि घूमि-घूमि कय पथिककेँ कहि रहल छथि।
विद्यापति गबैत-गबैत कनेक खसैत छथि- अन्हार पसरय लगैत अछि तँ एक गोटे जुवती दिस अन्हारसँ अबैत अस्पष्ट देखना जाइत छथि। की वैह छथि पिआ देसान्तर!! हँ, आकि नहि!!!
पिआ देसान्तरक घोल होइत अछि आ मंचपर संगीतक मध्य पटाक्षेप होइत अछि।
पिआ देसान्तरक ई कन्सेप्ट सुधीगणक समक्ष अछि आ बिदेसियाक वर्तमान दुर्दशाक बीच ई महाकवि विद्यापतिक प्रति ससम्मान अर्पित अछि।
विद्यापतिक पिआ देशाँतर
दृश्य १
स्टेजपर हमर बिदेसिया बिदेस नोकरीक लेल बिदा होइत छथि आऽ जुवती गबैत छथि- गीतक बीचमे एकटा पथिक अबैत छथि आऽ मंचक दोसर छोड़पर चोर लोकनि धपाइत नुकायल छथि। मंचक दोसर छोड़पर कोतवाल आऽ शुभ्र धोतीधारी पेटपर हाथ देने निफिकिर बैसल छथि।
धनछी रागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
हम जुवती, पति गेलाह बिदेस। लग नहि बसए पड़उसिहु लेस।
हम युवती छी आऽ हमर पति बिदेस गेल छथि। लगमे पड़ोसीक कोनो अवशेष नहि अछि।
सासु ननन्द किछुआओ नहि जान। आँखि रतौन्धी, सुनए न कान।
सास आऽ ननदि सेहो किछु नहि बुझैत छथि। हुनकर सभक आँखिमे रतौँधी छन्हि आऽ ओऽ सभ कानसँ सेहो किछु नहि सुनैत छथि।
जागह पथिक, जाह जनु भोर। राति अन्धार, गाम बड़ चोर।
हे पथिक! निन्नकेँ त्यागू। काल्हि भोरमे नहि आऊ। अन्हरिया राति अछि आऽ गाममे बड्ड चोर सभ अछि।
सपनेहु भाओर न देअ कोटबार। पओलेहु लोते न करए बिचार।
कोतबाल स्वनहुमे पहड़ा नहि दैत अछि आऽ नोत देलोपर विचार नहि करैत अछि।
नृप इथि काहु करथि नहि साति।
पुरख महत सब हमर सजाति॥
ताहि द्वारे राजा ककरो दण्ड नहि दैत छथि आऽ सभटा पैघ लोक एके रंग छथि।
विद्यापति कवि एह रस गाब। उकुतिहि भाव जनाब।
विद्यापति कवि ई रस गबैत छथि। उकतीसँ भाव जना रहलीह अछि।
विद्यापति कविक प्रवेश होइत छन्हि। कोतवालक लग शुभ्र-धोतीधारी आऽ एकटा गरीबक आगमन होइत अछि। कोतवाल आभाससँ धोतीधारीक पक्षमे निर्णय सुनबैत छथि आऽ मंचक दोसर कोनपर बैसलि जुवती माथ पिटैत छथि। गीतक अन्तिम चारि पाँती विद्यापति कवि गबैत छथि।
दृश्य २
जुवती एकटा दोकान खोलने छथि, सांकेतिक। मंचक दोसर छोरसँ सासु आऽ ननदिकेँ जएबाक आऽ क्रेता पथिकक अयबाक संग युवती गेनाई शुरू करैत छथि आऽ सभ पाँतिक बाद विद्यापति मंचपर अबैत छथि अर्थ कहैत छथि आऽ अंधकारमे विलीन भऽ जाइत छथि। मुदा अन्तिम पाँती विद्यापति गबैत छथि आऽ जुवती ओकर अर्थ बँचैत छथि।
मालवरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि, ठामे ठामे बस गाम।
एहि गाछक छाह बड्ड शीतल अछि। ठामे-ठाम गाम बसल अछि।
हम एकसरि, पिआ देसाँतर, नहि दुरजन नाम।
हम असगरि छी, प्रिय परदेसमे छथि, कतहु दुर्जनक नाम नहि अछि।
पथिक हे, एथा लेह बिसराम। हे पथिक! एतय विश्राम करू।
जत बेसाहब किछु न महघ, सबे मिल एहि ठाम।
जे किछु कीनब, किछुओ महग नहि। सभ किछु एतय भेटत।
सासु नहि घर, पर परिजन ननन्द सहजे भोरि।
घरमे सासु नहि छथि, परिजन दूरमे छथि आऽ ननदि स्वभावसँ सरल छथि।
एतहु पथिक विमुख जाएब तबे अनाइति मोरि।
एतेक रहितो जे अहाँ विमुख भय जायब तँ आब हमर सक्क नहि अछि।
भन विद्यापति सुन तञे जुवती जे पुर परक आस।
विद्यापति कहैत छथि- हे युवती! सुनू जे अहाँ दोसराक आस पूरा करैत छी।
दृश्य ३
एहि गीतमे विद्यापति नहि छथि। जुवतीक ननदि पथिककेँ दबाड़ि रहल छथि, से देखि जुवतीकेँ अपन पिआ देशाँतर मोन परि जाइत छन्हि। ओ ननदि आऽ सखीकेँ सम्बोधित कय गीत गबैत छथि। गीतक अर्थ सखी कहैत छथि, सभ पाँतीक बाद।
धनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
परतह परदेस, परहिक आस। विमुख न करिअ, अबस दिस बास।
परदेसमे नित्य दोसराक आस रहैत अछि। से ककरो विमुख नहि करबाक चाही। अवश्य वास देबाक चाही।
एतहि जानिअ सखि पिअतम-कथा।
हे सखी! प्रियतमक लेल एतबी कथा बुझू।
भल मन्द नन्दन हे मने अनुमानि। पथिककेँ न बोलिअ टूटलि बानि।
हे ननदि! मोनमे नीक-अधलाहक अनुमान कऽ पथिककेँ टूटल गप नहि बाजू।
चरन-पखारन, आसन-दान। मधुरहु वचने करिअ समधान।
चरण पखारू, आसन दियौक आऽ मधुर वचन कहि सान्त्वना दियन्हि।
ए सखि अनुचित एते दुर जाए। आओर करिअ जत अधिक बड़ाइ।
हे सखी पथिक एतयसँ दूर जायत से अनुचित से ओकर आर बड़ाई करू।
दृश्य ४
जुवती आ ननदि नगर आबि ठौर धेने छथि। एकटा पथिक आबि आश्रय मँगैत छथि तँ जुवती गबैत छथि आऽ ननदि सभ पाँतीक बाद अर्थ कहैत छथि। बीचमे चारि पाँती बिना अर्थक नेपथ्यसँ अबैत अछि। फेर जुवती आगाँ गबैत छथि आ ननदि अर्थ बजैत छथि। अन्तमे अन्तिम दू पाँती विद्यापति आबि गबैत छथि। दृश्यक अन्तमे ननदि कहैत छथि जे हम जे ओहि दिन पथिककेँ दबाड़ि रहल छलहुँ से अहाँकेँ नीक नहि लागल रहए, मुदा आइ पथिककेँ आश्रय किएक नहि देलियैक।
कोलाररागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
हम एकसरि, पिअतम नहि गाम। तेँ मोहि तरतम देइते ठाम।
हम एकसरि छी आऽ प्रियतम गाममे नहि छथि। ताहि द्वारे राति बिताबए लेल कहाबामे हमरा तारतम्य भऽ रहल अछि।
अनतहु कतहु देअइतहुँ बास। दोसर न देखिअ पड़ओसिओ पास।
यदि क्यो लगमे रहितथि तँ दोसर ठाम कतहु बास देखा दैतहुँ।
छमह हे पथिक, करिअ हमे काह। बास नगर भमि अनतह चाह।
हे पथिक क्षमा करू आऽ जाऊ आऽ नगरमे कतहु बास ताकू।
आँतर पाँतर, साँझक बेरि। परदेस बसिअ अनाइति हेरि।
बीचमे प्रान्तर अछि सन्ध्याक समय अछि आऽ परदेसमे भविष्यकेँ सोचैत काज करबाक चाही।
मोरा मन हे खनहि खन भाँग। जौवन गोपब कत मनसिज जाग।
चल चल पथिक करिअ प... काह। वास नगर भमि अनतहु चाह।
सात पच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसान्तर आन्तर भेल।
बारह वर्ष अवधि कए गेल। चारि वर्ष तन्हि गेला भेल।
घोर पयोधर जामिनि भेद। जे करतब ता करह परिछेद।
भयाओन मेघ अछि, रतुका गप छी सोचि कए निर्णय करू।
भनइ विद्यापति नागरि-रीति। व्याज-वचने उपजाब पिरीति।
विद्यापति कहैत छथि, ई नगरक रीति अछि जे कटु वचनसँ प्रीति अनैत अछि।
दृश्य ५
अहू दृश्यमे विद्यापति नहि छथि। एकटा पथिक अबैत छथि मुदा सासु-ननदि ककरो नहि देखि बास करबासँ संकोचवश मना कय आगाँ बढ़ि जाइत छथि। जुवती गबैत छथि।
घनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
उचित बसए मोर मनमथ चोर। चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।
कामदेव रूपी चोरक लेल हमर अवस्था ठीक अछि। बुढ़िया चेरी पहरा दऽ रहल छथि।
बारह बरख अवधि कए गेल। चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।
बारहम बरखक रही तखन ओऽ गेलाह आऽ आब चारि बर्ख तकर भऽ गेल।
बास चाहैत होअ पथिकहु लाज। सासु ननन्द नहि अछए समाज।
सास आऽ ननदि क्यो संग नहि छथि आऽ पथिक सेहो डेरा देबासँ लजाइत छथि।
सात पाँच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसाँतर आँतर भेल।
ओऽ कामदेव लेल घर सजा कय देशान्तर चलि गेलाह आऽ हमरा सभक बीचमे अन्तर आबि गेल।
पड़ेओस वास जोएनसत भेल। थाने थाने अवयव सबे गेल।
पड़ोसक बास जेना सय योजनक भऽ गेल सभ सर-सम्बन्धी जतय ततय चलि गेलाह।
नुकाबिअ तिमिरक सान्धि। पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।
लोकक समूह अन्हारमे विलीन भऽ गेल, पड़ोसिन फाटकि बन्न कय लेलन्हि।
मोरा मन हे खनहि खन भाग। गमन गोपब कत मनमथ जाग।
हमर मोन क्षण-क्षण भागि रहल अछि। कामदेव जागि रहल छथि गमनकेँ कतेक काल धरि नुकाएब।
दृश्य ६
एहि दृश्यमे सेहो नहि तँ ननदि छथि नहिये सासु आऽ नहिये विद्यापति। एकटा अतिथि अबैत छथि आकि तखने मेघ लाधि दैत अछि आऽ जुवती गबैत छथि।
धनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
अपना मन्दिर बैसलि अछलिहुँ, घर नहि दोसर केवा।
अपन घरमे बैसल छलहुँ, घरमे क्यो दोसर नहि छल,
तहिखने पहिआ पाहोन आएल बरिसए लागल देवा।
तखने पथिक अतिथि अएलाह आऽ बरखा लाधि देलक।
के जान कि बोलति पिसुन पड़ौसिनि वचनक भेल अवकासे।
की बजतीह ईर्ष्यालु पड़ोसिन से नहि जानि, बजबाक अवसर जे भेटि गेलन्हि।
घोर अन्धार, निरन्तर धारा दिवसहि रजनी भाने।
दिनहिमे रात्रि जेकाँ होमय लागल।
कञोने कहब हमे, के पतिआएत, जगत विदित पँचबाने।
हम ककरा कहब आऽ के पतियायत। कारण कामदेव ख्याति तँ जगत भरिमे अछि।
दृश्य ७
मंचक एक दिससँ सासुक मृत्युक बाद हुनकर लहाश निकलैत छन्हि आ मंचपर अन्हार होइत अछि। फेर इजोत भेलापर ननदिक वर हुनका सासुर लय जाइत छन्हि। पथिक रस्तापर छथि दर्शकगणक मध्य आऽ दर्शकगणकेँ इशारा करैत जुवती गीत गबैत छथि आऽ विद्यापति सभ पाँतिक बाद अर्थ कहैत छथि। अन्तिम दू पाँति विद्यापति गीत आ अर्थ दुनू बजैत छथि- विद्यापति अन्तिम दू पाँति आ ओकर अर्थ कैक बेर दोहराबैत छथि।
नगेन्द्रनाथ गुप्त सम्पादित पदावली-
सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
सासु चलि बसलीह, ननदि सेहो सासुर गेलीह
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
क्यो नहि सम्भाषणक लेल पर्यन्त,
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
एतुका एहन बेबहार, ककरो क्यो पुछारी नहि करैत अछि।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
हमर पिअतमकेँ कहब, हम असगरे कतेक दिन रहब।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
पथिक हुनका कहबन्हि, हमरा सन रमणिक रसक तेज कखन धरि रहत।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।
विद्यापति गबैत छथि, विरहनि घूमि-घूमि कय पथिककेँ कहि रहल छथि।
विद्यापति गबैत-गबैत कनेक खसैत छथि- अन्हार पसरय लगैत अछि तँ एक गोटे जुवती दिस अन्हारसँ अबैत अस्पष्ट देखना जाइत छथि। की वैह छथि पिआ देसान्तर!! हँ, आकि नहि!!!
पिआ देसान्तरक घोल होइत अछि आ मंचपर संगीतक मध्य पटाक्षेप होइत अछि।
पिआ देसान्तरक ई कन्सेप्ट सुधीगणक समक्ष अछि आ बिदेसियाक वर्तमान दुर्दशाक बीच ई महाकवि विद्यापतिक प्रति ससम्मान अर्पित अछि।
Wednesday, August 24, 2011
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली नाटक प्रस्तुति (मधुबनी जिलाक पजुआरिडीह टोल)-ऐतिहासिक संकलन
मधुबनी जिलाक पजुआरिडीह टोलमे १९५० ई. मे श्री कृष्ण नाट्य समितिक स्थापनाक संग नाट्य मंचन प्रथाक सुदृढ़ परम्पराक प्रारम्भ भेल जे श्री कृष्ण चन्द्र झा "रसिक"क नेतृत्वमे होइत रहल। १९६६ ई. मे "बसात" आ तकर बाद "चिन्नीक लड्डू" १९७० ई. सँ श्री शिवदेव झा एकरा आगाँ बढ़ेलन्हि जे विद्यापति (१९६७), उगना (१९७०), सुखायल डारि नव पल्लव (१९७५), काटर (१९८०), कुहेस (१९८५)सँ आगाँ बढ़ल।
१९९० ई.सँ गाममे काली पूजा प्रारम्भ भेल, ओतए चारि रातिमे एक राति मैथिली नाटक श्री गंगा झा क निर्देशनमे हुअए लागल।
१९९०- बड़का साहेब - लल्लन प्रसाद ठाकुर
१९९२- लेटाइत आँचर- सुधांशु शेखर चौधरी
१९९३- कुहेस- बाबू साहेब चौधरी
१९९४- समन्ध- कृष्णचन्द्र झा "रसिक"
१९९५- बकलेल - लल्लन प्रसाद ठाकुर
१९९६- उगना- ईशनाथ झा
१९९७- अन्तिम गहना- रोहिणी रमण झा
१९९८- आतंक- अरविन्द अक्कू
१९९९- प्रायश्चित- मंत्रेश्वर झा
२००१- फाँस- मूल बांग्ला एस. गुहा नियोगी, अनुवाद- रामलोचन ठाकुर
२००२- राजा शैलेश- कृष्णचन्द्र झा "रसिक"
२००३- अन्तिम गहना-- दोहरायल गेल
२००४- उगना- - दोहरायल गेल
२००५- किशुनजी- किशुनजी- मूल बांग्ला श्री मनोज मित्र अनु. रामलोचन ठाकुर
२००६- कालिदासक बखान- ?
२००७-लौंगिया मिरचाई- लल्लन प्रसाद ठाकुर
२००८- पहिल साँझ- सुधांशु शेखर चौधरी
२००९- कुहेस- - दोहरायल गेल
२०१०- ताल मुट्ठी- अरविन्द अक्कू
१९९० ई.सँ गाममे काली पूजा प्रारम्भ भेल, ओतए चारि रातिमे एक राति मैथिली नाटक श्री गंगा झा क निर्देशनमे हुअए लागल।
१९९०- बड़का साहेब - लल्लन प्रसाद ठाकुर
१९९२- लेटाइत आँचर- सुधांशु शेखर चौधरी
१९९३- कुहेस- बाबू साहेब चौधरी
१९९४- समन्ध- कृष्णचन्द्र झा "रसिक"
१९९५- बकलेल - लल्लन प्रसाद ठाकुर
१९९६- उगना- ईशनाथ झा
१९९७- अन्तिम गहना- रोहिणी रमण झा
१९९८- आतंक- अरविन्द अक्कू
१९९९- प्रायश्चित- मंत्रेश्वर झा
२००१- फाँस- मूल बांग्ला एस. गुहा नियोगी, अनुवाद- रामलोचन ठाकुर
२००२- राजा शैलेश- कृष्णचन्द्र झा "रसिक"
२००३- अन्तिम गहना-- दोहरायल गेल
२००४- उगना- - दोहरायल गेल
२००५- किशुनजी- किशुनजी- मूल बांग्ला श्री मनोज मित्र अनु. रामलोचन ठाकुर
२००६- कालिदासक बखान- ?
२००७-लौंगिया मिरचाई- लल्लन प्रसाद ठाकुर
२००८- पहिल साँझ- सुधांशु शेखर चौधरी
२००९- कुहेस- - दोहरायल गेल
२०१०- ताल मुट्ठी- अरविन्द अक्कू
विदेह मैथिली नाट्य उत्सव २०१२ - सहभागिता सूचना
विदेह द्वारा २०१२ क जनवरी-फरवरी मासमे पहिल“विदेह मैथिली नाट्य महोत्सव २०१२” आयोजित कएल जाएत। हमरा एकर संयोजक बनाओल गेल अछि, तइ लेल हम विदेहसँ जुड़ल सभ गोटेकेँ धन्यवाद दैत छियन्हि आ ई कार्यक्रम सेहो ऐतिहासिक हएत से विश्वास दिअबैत छियन्हि।
नाट्य उत्सव कमसँ कम दू ठाम हएत:
(1) चनौरागंज, झंझारपुर (जिला मधुबनी)
(2) निर्मली (जिला सुपौल)
सिनेमा, नाटक आ रंगमंच सम्बन्धी वार्ता आ प्रदर्शनी सेहो आयोजित कएल जाएत। जे कियो अपन संस्थाक नाटक वा मैथिली सिनेमाक प्रचार-प्रसार हेतु सामिग्री , जेना पाम्फलेट , सी.डी. आदि, पठाबए चाहै छथि तँ से ई-मेल सँ (bechan.ganj@gmail.com वा umeshberma@gmail.com ) आ डाकसँ Bechan Thakur, Village Chanauraganj, Via-Jhanjharpur, District- Madhubani वा Umesh Mandal, Ward no- 6, Nirmali , Supaul, BIHAR, INDIA मो.- 9572450405, 9931654742) पठा सकै छथि।
THE STAGE, MUSIC, FILM AND DRAMA IN MAITHILI AS PER NATYASHASTRA IS THE THEME OF FIRST VIDEHA DRAMA FESTIVAL 2012.मैथिली नाटक/ संगीत/ कला/ मूर्तिकला/ फिल्मक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित आ सम्मानित कएल जाएत।"
विदेह मैथिली नाट्य उत्सवक साइट www.maithili-drama.blogspot.com पर सभ सूचना देल जाएत।
विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: ज्योति सुनीत चौधरी आ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक-सूचना-सम्पर्क-समाद पूनम मंडल आ प्रियंका झा।
नाट्य उत्सव कमसँ कम दू ठाम हएत:
(1) चनौरागंज, झंझारपुर (जिला मधुबनी)
(2) निर्मली (जिला सुपौल)
सिनेमा, नाटक आ रंगमंच सम्बन्धी वार्ता आ प्रदर्शनी सेहो आयोजित कएल जाएत। जे कियो अपन संस्थाक नाटक वा मैथिली सिनेमाक प्रचार-प्रसार हेतु सामिग्री , जेना पाम्फलेट , सी.डी. आदि, पठाबए चाहै छथि तँ से ई-मेल सँ (bechan.ganj@gmail.com वा umeshberma@gmail.com ) आ डाकसँ Bechan Thakur, Village Chanauraganj, Via-Jhanjharpur, District- Madhubani वा Umesh Mandal, Ward no- 6, Nirmali , Supaul, BIHAR, INDIA मो.- 9572450405, 9931654742) पठा सकै छथि।
THE STAGE, MUSIC, FILM AND DRAMA IN MAITHILI AS PER NATYASHASTRA IS THE THEME OF FIRST VIDEHA DRAMA FESTIVAL 2012.मैथिली नाटक/ संगीत/ कला/ मूर्तिकला/ फिल्मक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित आ सम्मानित कएल जाएत।"
विदेह मैथिली नाट्य उत्सवक साइट www.maithili-drama.blogspot.com पर सभ सूचना देल जाएत।
विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X
सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: शिव कुमार झा आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। भाषा-सम्पादन: नागेन्द्र कुमार झा आ पञ्जीकार विद्यानन्द झा। कला-सम्पादन: ज्योति सुनीत चौधरी आ रश्मि रेखा सिन्हा। सम्पादक-शोध-अन्वेषण: डॉ. जया वर्मा आ डॉ. राजीव कुमार वर्मा। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक-सूचना-सम्पर्क-समाद पूनम मंडल आ प्रियंका झा।
चेतना समिति ओ नाट्यमंच - प्रेमशंकर सिंह
चेतना समिति ओ नाट्यमंच
सांस्कृतिक, साहित्यिक आ कलाक मुख्य केन्द्र रहल अछि बिहारक प्रशासनिक राजधानी पटना। जीवकोपार्जनार्थ मिथिलांचलवासी प्रचुर परिमाणमे एहि महानगरमे निवास करैत छथि। मैथिली भाषा-भाषीक एतेक विशाल जनसंख्या वाला महानगरक मातृभाषानुरागी लोकनिक सत्प्रयाससँ अपन भाषा आ साहित्य ओ रंगमंचक विकासमे महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कयलक समानार्थी अछि, कारण एहि क्षेत्रमे जे किछु अवदान अछि ओ पटना आ चेतना समितिक योगदान एकहि बात थिक। आब ई प्रयोजनीय भ’ गेल अछि जे जनमानस ओहि अवदानकेँ जानय आ जँ महत्वपूर्ण अछि तँ ओकर मुक्त कण्ठे प्रशंसा क’ कए ओकरा स्वीकार करय। रंगमंचक क्षेत्रमे चेतना समितिक नाट्यमंचक अवदानक पूर्ण मिथिलाञ्चल एवं मिथिलेत्तार क्षेत्रक अवदानसँ परिचित होयबाक हेतु प्रेमशंकर सिंह (1942)क मैथिली नाटकक ओ रंगमंच (1978), मैथिली नाटकक परिचय (1981), जीवन झा (1987), नाट्यान्वाचय (2002)क एवं चेतना समिति ओ नाट्यमंच (2008)क अवलोकन कयल जा सकैछ।
ई निर्विवाद सत्य थिक जे मिथिलाञ्चल आ मिथिलेत्तर क्षेत्रमे मैथिली रंगमंचक शौकिया रंगमंचक संख्या अत्यन्त सीमित अछि। यद्यपि बीसम शताब्दीक तृतीय, चतुर्थ आ पंचम दशकमे समग्र भारतीय स्वतंत्रता-संग्राममे संलिप्त रहला, जाहि कारणेँ नाटकक सदृश समवेदक कलात्मक सृजन विकसित नहि भ’ पौलक, तथापि यत्र-तत्र पौराणिक, ऐतिहासिक तथा सामाजिक नाटकक मंचन होइत रहल। एहन प्रस्तुतिक मूल उद्देश्य छलैक राष्ट्र आ समाजक समक्ष एक उच्च कोटिक आदर्श प्रस्तुत करब। एहन शौकिया रंगमंच अत्यल्प संख्यामे समाजक संग जुड़ल आ एहिसँ आगॉं बढ़ि क’ ओ ने तँ जीवनक अभिन्न अंगे बनि सकल आ ने सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक विकासक माघ्यमे।
स्वतंत्रात्मक पश्चात् व्यक्ति-व्यक्तिक दृष्टिकोणमे परिवर्त्तन भेलैक आ समाजमे सांस्कृतिक साहित्यिक एवं कलात्मक विकासक अवरुद्ध द्वार खुजि गेलैक। स्वाधीनोत्तर युगमे सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं कलात्मक स्थितिक यथार्थ चित्रण जानबाक, बुझबाक आवश्यकता महसूस भेलैक समाज एवं जनमानसकेँ। सामान्य जनमानसक सुख-दु:ख, आशा-निराशा, कुण्ठा संत्रास, असन्तोष, क्षोभ, क्रोध एवं जीजिविषाकेँ वाणी देबाक हेतु नाटकककारक अन्तर उद्वेलित भेलनि आ एहि दिशामे सोझे-सोझ स्थितिक वर्णन करबाक हेतु नाटकक आश्रय लेलनि । शनै:-शनै: रंगमंच सामाजिक जीवनक सन्निकट अबैत गेल आ वर्त्तमान स्थितिमे तँ ओ एक अभिवाज्य अंग बनि गेल अछि। एकर परिणाम एतबे नहि भेलैक जे शौकियाक संगहि-संग अर्द्ध व्यावसायिक वा व्यावसायिक स्तरपर जनमानस रंगमंचक महत्वकेँ स्वीकारलक। एहिमे सबसँ क्रान्तिकारी परिवर्त्तन भेल जे महिला समुदाय एहिमे अपन सहभागिता देब प्रारम्भ कयलनि। हुनका सभक सक्रिय सहभागिताक फलस्वरूप शनै:-शनै: ई मानव जीवनक अविभाज्य अंग बनय लागल, किन्तु अत्यन्त दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति थिक जे मिथिलाञ्चल वा मिथिलेत्तर क्षेत्रमे अद्यापि व्यावसायिक रंगमंचक प्रादुर्भावे नहि भेलैक।
पटना सदृश महानगरमे चेतना समितिक तत्वावधानमे नाट्यभिनयक यात्राक शुभारम्भ भेलैक तकरे फलस्वरूप नाट्यमंचनक परम्पराक सूत्रपात भेलैक जाहिमे गृहिणी महिला वर्गक सहभागितासँ एकर प्राणमे नव स्पन्दन भरलक जे अनुर्वर छल। चेतना समितिक स्थापनोपरान्त सांस्कृतिक गतिविधिक संगहि-संग रंगमंचक क्षेत्रमे नवजागरणक संचार भेलैक सन् 1954 ई. सँ। किन्तु आम्भिक कालमे अनवरत एकाँकीक मंचन होइत जकर विवरण्ा आगाँ प्रस्तुत कयल जायत, मुदा सन् 1973 ई. सँ अद्यपर्यन्त एकांकी वा नाटकक मंचन होइत अाबि रहल अछि। भारतीय गणतंन्त्रमे एहन कोनो महानगर, नगर आ कस्बा नहि अछि जतय नियमित रूपसँ नाट्य-प्रस्तुति नहि होइत अछि, किन्तु नाट्यमंच अपन प्रस्तुतिसँ एकरा मूर्त्त रूप प्रदान करबामे सक्षम सिद्ध भेल अछि।
चेतना समितिक तत्वावधानमे आयोजित विद्यापति पर्वक प्रति शनै:-शनै: जनमानसमे एक प्रबल ज्वारक उद्भावना होइेत देखि एकर कार्यकारिणी समितिक अघ्यक्ष दिवाकर झा (1914-1997) एवं सचिव जटाशंकर दास (1923-2006) अनुभव कयलनि जे ई संस्था मात्र साहित्यिक गतिविधिपर केन्द्रित नहि रहय, प्रत्युत एकरामे अत्यधिक गतिशीलता अनबाक हेतु आ ओहन जनमानसक संग।जोड़बाक प्रयोजन बुझलनि जकरा हेतु मनोरंजनक किछु एहन कार्यक्रम सुनिश्चित कयल जाय जे अधिकाधिक संख्यामे जन्मानस एहि आयोजनमे सहभागी बनि सकथि तथा एकर क्रिया-कलापमे अपन उपस्थिति दर्ज करा सकथि। एहि सोचकेँ क्रिया रूप देबाक निमित कार्यकारिणी समिति एक उपसमिितक गठन कयलक जाहिमे बाबू लक्ष्मीपति सिंह (1907-1979), आनन्द मिश्र (1924-2006), गोपाल जी झा गोपेश (1931-2007) एवं कामेश्वर झाकेँ ई भार देल गेलनि जे एकरा कोना क्रियान्वित कयल जाय ताहि प्रसंगमे अपन ठोस विचार कार्यकारिणी समितिक समक्ष प्रस्तुत करथि। उपसमितिक सदस्य लोकनि एक स्वरेँ अपन विचार कार्यकारिणीक समक्ष प्रस्तुत कयलनि जे मिथिलांचलक गौरव-गरिमाक पुनर्राख्यान आ नाट्य साहित्यिक पुरातन परम्पराकेँ पुनरूजीवित करबाक हेतु एहि मंचसँ नाट्यभिनयक परम्पराक शुभारम्भ कलय जाय। उपसमितिक विचारसँ सहसत भ’ कार्यकारिणी समिति जनमानसक हृदयमे मातृभाषानुरागकेँ जागृत करबाक निमित नाट्योजनक प्रयोजनीयताक आवश्यकता अनुभव कयलक तथा एकरा क्रियान्वित करबाक दिशामे प्रयासरत भेल।
समिति अपन प्रयोगवस्थामे नाट्ययोजनक शुभारम्भ नाटकसँ नहि क’ कए एकांकीसँ करबाक निश्चय कयलक, कारण ओहि समय मैथिलीमे अभिनयोपयोगी नाटकक सर्वथा अभाव छलैक आ एकहि नाटकककेँ बारम्बार अभिनीत करब समुचित नहि बुझलक उपसमितिक स्दस्य लोकनि अभिनयोपयोगी एकांकीक अन्वेषण करब प्रारम्भ कयलनि। अभिनयोपयोगी एंकाकीक हेतु मैथिलीक वरेण्य साहित्य-मनीषी लोकनिक संग सम्पर्क साधल गेल। एहि दिशामे उपसमितिकेँ सफलता भेटलैक जे समकालीन मैथिली साहित्यपर अपन अमिट छाप छोड़ निहार बहुविधावादी रचनाकार हरिमोहन झा (1908-1989) सँ सम्पर्क साधल गेल आ हुनकासँ अनुरोध कयल गेल जे एक एहन एकांकी अभिनेयार्थ समितिकेँ उपलब्ध कराबथि जाहिमे मिथिलाक विद्या-वेदायन्ताक गौरवगाथाक उल्लेख हो। ओ समितिक एहि आग्रहकेँ स्वीकार क’ मण्डन मिश्र (1958) एकांकीक रचना क’ कए ओकर पाण्डुलिपि समितिक तत्कालीन पदाधिकारी लोकनिकेँ उपलब्ध करौलथिन जे मिथिलाक अतीतकेँ उद्भाषित करैछ जाहिसँ जनमासन रचित भ’ सकथि।
अभिनयोपयुक्त एकांकीक पाण्डुलिपि उपलब्ध भेलाक पश्चात् समितिक पदाधिकारी लोकनि अत्यधिक उत्साहित भ’ निर्णय लेलनि जे अद्यापि मैथिली रंगमंचपर महिला अभिनेत्रीक भूमिकामे मिथिलाञ्चल वा मिथिलेत्तर क्षेत्रमे पुरुष अभिनेतहि द्वारा अभिनेत्रीक भूमिकाक निष्पादन कराओल जाइत छल, ताहि परम्पराकेँ खण्डित करबाक दिशामे समिति सोचब प्रारम्भ कयलक। ई अनुभव कयल जाय लागल जँ महिला कलाकार उपलब्ध भ’ जाथि तँ नाट्य मंचन विशेष स्वाभाविक भ’ जायत। मुदा ई एक जटिल समस्या छल। महिला कलाकार औतीह कतयसँ? कोनो मैथिलीक मंचपर आबि अभिनय करथि से सोचनाइयो साहसक काज छल, तखन प्रस्ताव राखब आ मना क’ हुनका मंचपर उतारब आ ओर कठिन छल। समिति मैथिली रंगमंचपर एक क्रान्ति अनबाक दिशामे प्रयासरत भेल, कारण समितिक सतत प्रयास रहल अछि ले एहि मंचसँ एहन अभिनव कार्य कयल जाय जकर सुपरिणाम हैत जे जनमानसक हृदयमे रंगमंचक प्रति आकर्षण भावनाक उदय होयतैक तथा नाट्यभिनयमे स्वाभाविकता आ ओ तँ कोनो मैथिलानी रंगमंचार आबि अभिनय करथि ई सोचबो निराधार छल। ई अत्यन्त साहसक काज छल, तखन किनको समक्ष एहन प्रस्ताब रखबाक आ हुनका मना क’ मंचपर उतारब ओहूसँ कठिन छल। समिति सोचलक जे ओही मैथिलीनीक समक्ष प्रस्ताव राखल जाय जनिका हृदयमे मैथिल संस्कृतिक उत्कर्षमय परम्परामे आयोजित होइत सांस्कृतिक अनुष्ठनावा कार्यक्रमक प्रति आकर्षण आ आगाध श्रद्धा होइन। समिति एहि विषयसँ पूर्ण परिचित छल जे हरिमोहन झा उदारवादी प्रगतिशील विचार-धाराक साहित्य-मनीषी छथि तेँ समितिक पदाधिकारी लोकनि हुनक आश्रयमे उपस्थित भ’ अपन मनोभावनाकेँ रूपायित करबाक निमित्त हुनकासँ सविनय साग्रह अनुरोध कयलक जे एहि योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक निमित्त कृपया अपन धर्मपत्नी सुभद्रा झा (1911-1982)केँ अपन एकांकीमे भारतीक भूमिकामे अभिनय करबाक अनुमति प्रदान कयल जाय। किछु क्षणतँ ओ इत्तस्ततःक स्थितिमे आबि गोलाह जे की कयल जाय? ओ अपन रचनादिमे मिथिलाञ्चल नारी जागरणक गखनाद करैशं रहथि तेँ ओ अपन उदारवादी दृष्टिकोणक परिचय दैत सहर्ष सांस्कृतिक चेतना सम्पन्न, मैथिल समाजक समक्ष एहि चुनौतीकेँ स्वीकार क’ कए युग-युगसँ आबि रहल बन्धन केँ तोड़ि मंचपर अयलीह आ सुभद्राकेँ मण्डन मिश्रक पत्नी भारतीक भूमिकामे रंगमंचपर उपस्थित हैबाक अनुमति देलथिन जे सर्वप्रथम मैथिलानी रंगकर्मीकरूपमे मैथिली रंगमंचपर अवतारित भ’ एहि अवरुद्ध धाराक द्वारकेँ भविष्यक हेतु खोलि देलनि जकरा एक ऐतिहासिक घटना कहब समुचित हैत आ मैथिल समाजक हेतु प्रकाश स्तम्भ बनि गेलीह।
मैथिली रंगमंचपर सुभद्रा झा पदार्पण महिला रंगकर्मीमे एक क्रान्ति आनि देलक। चेतना समिति एवं रंगमंच हेतु ई एक ऐतिहासिक घटना भेलैक आ मैथिली रंगमंचक इतिहासमे एक नव अघ्यायक शुभारम्भ भेलैक। हुनकासँ अनुप्राणित भ’ पटना विश्वविद्यालक स्नातकोत्तर विभागक एक छात्रा पनिभरनीक भूमिकामे रंगमंचपर उपस्थिति दर्ज करौलनि ओ छलीह अहिल्या चौधरी। एहि एकांकी अभिनय भेल छल लेडी स्टीफेन्सस हालमे। मण्डन मिश्रक भूमिकामे उतरल रहथि आविर्तक उपसम्पादक यदुनन्दन शर्मा आ हुनक पत्नी भारतीक भूमिकामे सुभद्रा झा। पनिभरनीक भूमिका कयने रहथि अहिल्या चौधरी आ ठिठराक भूमिकाक निर्वाह कयने रहथि इण्डियन नेशनलक इन्द्रकान्त झा।
विगत शताब्दीक षष्ठ दशकक उतरार्द्ध अर्थात् सन् 1958 ई. मे चेतना समितिक रंगमंचपर एहि एकांकीक सफलतापूर्वक मंचस्थ कयल गेल तथा महिला रंगकर्मी अपन सहभागितासँ एकरा अधिक प्राणवन्त बनौलनि। सुभद्रा झा एवं अहिल्या चौधरीक मैथिली रंगमंचपर उपस्थिति आ हुनका सभक अभिनय कौशल एतेक बेसी प्रभावोत्पादक भेल जे महिला वर्ग एहि कलाक प्रदर्शनमे अपन कुशल कलाकारिताक परिचय देलनि जाहिसँ प्रोत्साहित भ’ अधुनातन रंगमंच एतेक विकसित भ’ सकल अछि तकर श्रेय आ प्रेय हुनके लोकनिकेँ छनि। समाजक प्रति सोच, अपन उतरदरयित्वक प्रति प्रतिवद्धता, त्याग, सेवा-भावना आ कर्म निष्ठाक परिणाम थिक जे महिला रंगकर्मी सचेष्टता, तत्परता आ अपन अभिनय-कौशलक परिचय द’ रहल छथि। मैथिली रंगमंचक इतिहासमे एकर ऐतिहासिक महत्व छैक।
समिति द्वारा प्रस्तुत एंकाकीक मंचन अनेक दिन धरि पटनाक अतिरिक्त अन्यो स्थानपर चर्चित-अर्चित होइत रहल, जाहिसँ अनुप्राणित भ’ समितिक पदाधिकारी लोकनिक विचार भेलनि जे प्रतिवर्ष विद्यापति स्मृित पर्वोत्सवपर कोना-ने-कोनो रुकांकीक मंचन अवश्य कयल जाय, कारण जनमानसक अभिरुचि नाट्यमंचन दिस विशेष जागृत भेल आ अधिकाधिक संख्यामे जनमानसक सहभागिता होमय लागल।
पुन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमिपर अाधृत गोविन्द झा (1923) एकांकी वीर कीर्ति सिंहक मंचन कयल गेल जाहिमे कीर्ति सिंहक अग्रज वीर सिंहक राजतिलक कराय हुनके हाथे कीर्ति सिहंकेँ सिंहासनारूढ करयबाक जटिल समस्या छल जे मौलिक एवं मातृस्नेहक विलक्षण आदर्शकेँ रंगमंचपर प्रस्तुत करब कठिन समस्या छल। एहू एकांकीक मंचन स्थानीय लेडी स्टीफेन्सस हालक प्रागंनमे भेल छल। समितिक तत्कालीन सचिव रूपनारायण ठाकुरकेँ आशंका छलनि जे ऐतिहासिकताक पृष्ठभूमिमे लिखित एकांकीक मंचन कठिन होइछ, तेँ बारम्बार ओकर असफलताक आशंका व्यक्त करैत रहथि, किन्तु संयोगसँ एकर प्रस्तुति अत्यन्त सफल भेल। दर्शकक मानस पटलपर एकर स्वस्थ प्राभाव पड़लैक। यद्यपि गणपति ठाकुरक मुहेँ असलानसँ दान रूपमे प्राप्त राज्य स्वीकार करयबासँ हुनक उज्ज्वल चरित्र धूमिल भ’ जाइछ तथापि निर्देशक हुनक चारित्रिक उत्कर्षकेँ एक्शनसँ प्रस्तुत कयलनि।
सामाजिक पृष्ठभूमिपर आधारित एकांकी गोविन्द झाक मोछसंहारक (1965) कतोक घटना एहि रूपेँ विन्यस्त अछि जकरा मंचपर प्रस्तुत करब ओहि समय मे मंचीय-कौशलक अभाव रहितहुँ अत्यन्त सफलता पूर्वक ओकर मंचन भेल। एहि एकांकीमे महिला अभिनेत्रीक अभाव छल तेँ एकर प्रस्तुतिमे कोनो प्रकारक कठिनताक अनुभव निर्देशककेँ नहि भेलनि। एकर निर्देशन कयने रहथि गोपाल जी झा गोपेश।मिथिलाक प्रतिनिधि (1963) एकांकीक मंचन सेहो चेतनाक मंचपर भेल अछि जकर लेखक आ निर्देशन गोविन्द झा स्वयं कयलनि। एहिमे दू महिला अभिनेत्रीक छैक जकर अभिनयमे महिला अभिनेत्रीक भूमिकामे पुन: प्राचीन परम्पराकेँ स्थापित कयल गेल जे पुरुष द्वारा महिला अभिनेत्री भूमिकाक निर्वाह करओल गेल।
सन् 1962 ई. मे चीनी आक्रमणक पृष्ठभूमिमे गोपालजी झा गोपेश लिखित गुड़ूक चोट धोकड़े जानय तथा भारत-पाक युद्धक समय विनु विवाहे द्विरागमक मंचन चेतनाक तत्वावधानमे विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर मंचित भेल छल लेडी स्टीफेन्सस हालक प्रंतगनमे। एहि प्रस्तुतिमे भारती ब्लाक वर्क्सक प्रोप्राइटर अर्जुन ठाकुरक संगहि-संग नगीना कुमर एवं निरंजन झा महिला अभिनेत्रीक रूपमे मंचपर उपस्थित भेल रहथि। पुरुष पात्रकेँ महिलाक भूमिकामे देखि क’ जनमानसँकेँ कोनो आश्चर्य नहि होइत छलैक एवं नायक-नायिकाक क्रिया-कलाप मे मर्यादाक वचनपर कोनो आश्चर्य वा व्यवधान नहि होइत छलैक। एहि अभिनयमे भाग लेनिहार अन्य कलाकारमे इण्डियन नेशनक बेचन झा, प्रियनारायण झा आ राजेन्द्र झा प्रभृति अपन-अपन भूमिकाक निर्वाह सफलता पूर्वक कयलनि। उक्त दुनू एकांकीमे गीतगाइनिक भूमिकामे कमला देवी एवं हुनक सखी लोकनिक सहयोग चेतनाक मंचकेँ उपलब्ध भेल छलैक।
चेतना द्वारा नियमित मंचक स्थापनाक पूर्व विद्यापति पर्वोत्सवपर जे एकांकी मंचित भेल ओ निम्नस्थ अछि:
वर्ष एकांकी एकांकीकार
1958 मण्डनमिश्र हरिमोहन झा
1959 मोछ सहांर गोविन्द झा
1960 मिथिलाक प्रतिनिधि गोविन्द झा
1961 चंगेराक सनेस गोविन्द नारायण झा
1962 गूड़क चोट धाकडे़ जानय गोपाल जी झा गोपेश
1965 वीर कीर्ति सिंह गोविन्दझा 1966 बिनु विवाहे द्विरागमन गोपाल जी झा गोपेश
उपर्युक्त परम्पराक जे शुभारम्भ भेल छलैक ताहिमे कतिपय अपरिहार्य कारणेँ व्यतिक्रम भ’ गेलैक तथा समिति द्वारा रंगमंचक दिशामे जे प्रयास भेल छल ओ किछु अन्तरालक पश्चात् अवरुद्ध भ’ गेलैक।
किन्तु ताराकान्त झा (1927) जखन समितिक सचिवचक पदभार ग्रहण कयलनि तखन ओ एकर क्रियाकलापकेँ व्यापक फलक पर अनबाक प्रयास कयलनि। हुनक सोच छलनि समितिक विविध आयोजनादि एकहि स्थानपर केन्द्रित नहि रहय: प्रत्युत प्रचार-प्रसारक दृष्टिएँ पटना स्थित विभिन्न मुहल्ला सभमे एकर आयोजनकेँ मूर्त्त रूप प्रदान कयल जाय। ओ अपन एहि योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक निमित्त अमरनाथ झा जयन्तीक आयोजन कंकड़बागक लोहिया नगरमे आयोजित करबाक निर्णय कयलनि जाहिमे समितिकेँ गजेन्द्र नारायण चौधरी, वासुकिनाथ झा, गणेशशंकर खर्गा सदृश कर्मठ कार्यकर्ता उपलबध भेलैक।
नाट्यमंच :
शनै:-शनै: चेतना समितिक अपन उतरोत्तर विकास-यात्राक उत्थान वा उत्कर्षमे पहुँचि विविध रूपे मिथिलाक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विधाकेँ सम्पोषित करबाक दिशामे प्रयासरत भेल। ई अपन गौरवमय परम्पराक अनुरूप विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर नाट्य मंचनक परम्परा पुर्नस्थापित करबाक तत्कालीन अघ्यक्ष कुमार तारानन्द सिंह (1920-) एवं सचिव ताराकान्त झा सोचलनि जे समितिक गतिविधि अत्यधिक प्राणवन्त बनाओल जाय, कारण ओ लोकनि दूरदर्शी व्यक्ति रहथि जनिका कार्यकालमे समिति कतिपय नव-नव योजनाकेँ क्रियान्वित करबाक प्रयास कयलक। मैथिली नाटकक ओ रंगमंचकेँ विस्तृत एवं व्यापक रूप देबाक निमित्त कार्यकारिणी समिति एक अनौपचारिक समितिक गठन कयलक जकर थींक टैंकक सदस्य रहथि गजेन्द्र नारायण चौधरी, वासुकिनाथ झा (1940), छत्रानन्द सिंह झा (1946) एवं गोकुलनाथ मिश्रकेँ अधिकृत कयल गेलनि आ एहि योजनाकेँ कोना मूर्त्त रूप देल जाय ताहि हेतु प्रस्ताव देबाक भार देल गेलनि जकर सुपरिणाम भेल जे नाटकक ओ रंगमंचक विकासार्थ रंगकर्मीक नाट्यमंच (1972) नामक एक प्रभावी प्रभागक स्थापना कयलक जकर उद्देश्य भेलैक नवीन टेकनिक नाटकक अन्वेषण ओकर मंचन तथा प्रकाशन। नाट्यायोजनकेँ मूर्त्त रूप प्रदान करबाक उत्तरदायित्व देल गेलनि नवयुवक नाट्य कर्मी छत्रानन्द सिंह झाकेँ जे रेडियोसँ सम्वद्ध रहथि आ नाट्यमंचक तकनिकक सैद्धान्तिक एवं व्यवाहारिक पक्षक अधिकारिक जानकारी छलनि। अत्याधुनिक नाटकक आ रंगमंचक दिशामे समिति क्रान्तिकारी डेग उठौलक जकर प्रयाससँ रंगमंचकेँ नव-दिशा भेटलैक तथा नाट्यमंचनक परम्पराक शुभारम्भ भेलैक समिति द्वारा।
नाट्यमंचक स्थापनाक पश्चात् मौलिक नाट्य रचना हेतु प्राचीन एवं अर्वाचीन नाटकककारक आह्वान क’ कए नव-नव नाटकक अन्वेषणक प्रक्रिया प्रारम्भ भेल। एहि प्रकारेँ रंगमंचक एक सुदृढ परम्पराक स्थापना भेल जे विद्यापति स्मृति पर्व समारोहक अवसरपर वा समिति द्वारा आयोजित कोनो महत्वपूर्ण अवसरपर नाट्यमंचनक एक सशक्त माघ्यम स्थापित भेल। समितिक नाट्यमंच एक सार्थक भूमिकाक निर्वहण कयलक जकर लाभ नाटकककारक संगहि-संग रंगमंचकेँ निम्नस्थ लाभ भेटलैक:
1. आधुनिक परिप्रेक्ष्यमे नवीन नाट्य-साहित्यक विकास यात्राक शुभारम्भ।
2. आधुनिक तकनिकक रंगमंचक स्थापना।
3. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर मैथिली नाटकक आ रंगमंचकेँ स्थापित करबाक प्रयत्न।
4. अभिनेता-अभिनेत्रीक संगहि-संग कुशल निर्देशकक अन्वेषण।
5. नाटय-लेखनक दिशामे प्रतिभान नाटकककारकेँ प्रोत्साहन।
6. अमंचित एवं अप्रकाशित नाटकक पाण्डुलिपिकेँ आमंत्रित क’ कए विशेषज्ञक अनुशंसा पर मंचन।
7. मंचनोपरान्त नाटकक प्रकाशन।
बीसम शताब्दीक सप्तदशकोत्तर कालावधिमे समितिक नाट्यमंच प्रभाग नाटकक लेखक लोकनिसँ नव-नव प्रवृत्ति आ नव-शिल्पक नाट्य रचनाक अनुरोध करब प्रारम्भ कयलक तथा मंचोपरान्त ओकर प्रकाशनक भार वहन करबाक दायित्व स्वीकारलक। नाट्यमंच प्रभाग द्वारा विद्यापति स्मृतिपर्वोत्सव वा अन्याय कोनो आयोजनोत्सवपर मौलिक, अनूदित वा उपन्यास वा कथाक नाट्य-रूप प्रस्तुत करबाक परम्पराक शुभारम्भ कयलक जे नाट्यलेखन आ मंचनक दिशामे ऐतिहासिक घटना थिक जे नव-नव प्रतिभाशाली नाट्य-लेखक लोकनिकेँ प्रोत्साहन भेटलनि तथा प्राचीन आ अर्वाचीन अभिनेता, अभिनेत्री आ निर्देशक लोकनि एकर प्रस्तुतिमे सहभागी बनलाह। अभिनयोपयोगी आ मंचोपयोगी नाटकक जे अभाव साहित्यान्तर्गत छल तकर पूत्यर्थ समितिक नाट्य प्रभागक ई निर्णय निश्चित रूपेण नाट्य-लेखन ओकर मंचन तथा ओकर प्रकाशनमे नव-दिशाक संकेत कयलक।
चेतना अपन कार्यक्रमकेँ व्यापक बनयबाक हेतु पूर्व निर्णयानुरूप सन् 1973 ई. मे अमरनाथ झा जयन्तीक आयोजन कंकड़बाग कॉलनीक लोहियानगरमे हैैबाक निर्णय भेलैक तथा इहो निर्णय भेलैक जे एहि अवसरपर एक नाट्याभिनयक आयोजन कयल जाय जाहिमे सहयोगी भेलाह वासुकिनाथ झा, गणेशशंकर खर्गा, अमरनाथ झा एवं छत्रानन्द सिंह झा। जखन ई प्रचार भेलैक जे एहि कॉलनीमे अमरनाथ झा जयन्तीक अवसरपर नाट्याभिनयक सेहो योजना छैक तखन कौलनीवासी सभक सहयोग पर्याप्त मात्रामे भेटय लगलनि। ओहि अवसरपर जनमानसक मनोरंजनार्थ हवेली रानी नाटकक मंचन भेल छल, जाहिमे रोहिणी रमण झा जे आब मैथिलीक नाटकककार आ अभिनेताक रूपमे चर्चित छथि अभिनेत्री रूपमे रंगमंचपर उतरल रहथि। एहि नाट्य योजनामे कतिपय सहयोगीक बल भेटल जाहिमे उल्लेखनीय छथि इण्डियन नेशनक इन्द्रकान्त झा बेचन झा, आर्यावर्त्तक शिवकान्त झा, राजभाषा विभागक महादेव झा मिथिलेन्दु एवं वेदानन्द झा जनसम्पर्क विभागक एहि आयोजनक ऐतिहासिक महत्व छैक जे बिहारक तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पाण्डेय एही मंचसँ बिहार पब्लिक सर्भिस कमीशनमे मैथिलीक स्वीकृति आ मिथिला विश्वविद्यालयक स्थापनाक उद्घोषणा कयने रहथि।
प्रारम्भिकावस्थामे अभिनयोपयुक्त नाटकक अभाव रहलैक ओकरा संगहि-संग रंगमंचकेँ नवरूप देबाक प्रयास भेलैक। समयाभावक कारणेँ समितिक नाट्यमंच प्रभाग द्वारा एकर प्रयोग प्रारम्भ भेलैक दिगम्बर झा लिखित एकांकी टुटैत लोकसँ। पुन: समितिकेँ महिला अभिनेत्रीक अन्वेषणक प्रक्रिया प्रारम्भ कयलक जाहिमे ओकरा कठिनताक सामना करय पड़लैक, किन्तु संयोगसँ रेडियोक अभिनेत्री प्रेमलता मिश्र प्रेम, कुमारी भारती मिश्र तथा अभिनेयताक रूपमे छात्रानन्द सिंह झा, जगन्नाथ झा, नरसिंह प्रसाद आ वेदानन्द झाक अविस्मरणीय सहयोगक फलस्वरूप ई प्रदर्शन अत्यन्त सफल भेल जाहिसँ आयोजक संगहि-संग संयोगकक सेहो उत्साहवर्द्धन भेलनि। एहि एकांकीक निर्देशन कयने रहथि गणेश प्रसाद सिन्हा तथा बिहार आर्ट थियेटरक संस्थापक अनिल कुमार मुखर्जीक अपरिमित तकनिक सहयोग भेटलनि। एहि एकांकीक मंचनक संग प्रथमे-प्रथम आधुनिक रंगमंचक अवधारणाक एकरा बानगी प्रस्तुतमे भेल।
नाट्यमंचक विधिवत स्थापानोपरान्त जनमानसक मनोवृत्तिमे नाटकक आ रंगमंचक प्रति प्रतिवद्धताक संगहि-संग नाट्यमंचनक हेतु प्रतीक्षातुर रहब एक औत्सुकयक भावनाक उदय होइतहि समितिक पदाधिकारी लोकनि एकरा प्रति अपन सचेष्टता आ तत्पारता देखायब प्रारम्भ कयलनि तकरे परिणाम थिक जे नाट्यमंच मौलिक आ नव तकनिकक नाट्यक हेतु अन्वेषण करब प्रारम्भ कयलक। नाट्यमंचक संयोगक छत्रानन्द सिंह झाकेँ ई गुरुतर भार देल गेलनि जे अग्रिम वर्ष चेतनाक नाट्यमंचक तत्वावधानमे समसामयिक समस्यासँ सम्बन्धित एहन मौलिक नाट्य लेखकसँ सम्पर्क क’ कए नव तकनिकक नाटकक हेतु प्रयास करथि। एहि हेतु ओ हिन्दीक वरिष्ठ नाटककार आ मिथिला मिहिरक तत्कालीन सम्पादक सुधांशु शेखर चौधरी (1920-1990)सँ सम्पर्क साधि हुनकासँ एक एहन नाटकक अनुरोध कयलनि जे जनमानसक हृदयकेँ स्पर्श कयनिहार हो। एहि प्रसंगमे नाटककारक कथन छनि, आकाशवाणी पटनाक बटुक भाइक आ चेतना समितिक वर्त्तमान सचिव गजेन्द्र नारायण चौधरी ठोंठ मोकि हमरासँ भफाइत चाहक जिनगी लिखा लेलनि आ हम मैथिली नाटककारक रूपमे चीन्हल आ जानल जा सकलहुँ। (भफाइत चाहक जिनगीक आत्म-कश्य) ओ हुनक अनुरोधनि मैथिलीमे प्रथमे-प्रथम काल खण्डी नाटकक लिखलनि भफाइत चाहक जिनगी जकरा नाट्यमंचक तत्वावधानमे सन् 1974 ई. मे शहीद स्मारकक प्रांगणमे प्रस्तुत कयल गेल जाहिमे प्राय: पैंतीस हजारसँ बेसी मैथिल समाजक छॉंटल-बीछल लोक दम साधि नाटकक एक-एक शब्द पीबैत रहल, एक-एक दृश्यकेँ अपलक देखैत रहल। एहि प्रदर्शनक सफलताक प्रमुख करण छलैक जे एहि प्रकारक नाट्यायोजन चेतना समिति द्वारा पूर्वमे नहि भेल छल तेँ दर्शककेँ ई सर्वथा नवीनताक आभास भेटलैक। नाटकक सफलता एहिमे रहलैक जे अपेक्षित घ्वनि प्रकाश अा उपयुक्त प्रेक्षागृहक अभावोमे नाट्यमंच चुनल बीछल कलाकारक सक्रिय सहभागिताक फलस्वरूप एकरा रूपायित कयल जा सकल। अग्रिम वर्ष ओकर प्रकाशनक व्यवस्था कयल गेलैक जकर परिणाम भेलैक जे जनमानसक जन-मन-रंजनक साधनक संगहि समकालीन समाजमे व्याप्त वेरोजगारीक समस्याक हृदयस्पर्शी कथानक जनमानसक आकर्षणक केन्द्र विन्दु बनि गेलैक।
एहि प्रस्तुतिमे सहभागी रहथि छत्रानन्द सिंह झा, हृदयनाथ झा, वेदानन्दझा, अशर्फी पासवान आजनवी, बन्धु, फन्नत झा, परमानन्द झा, चन्द्रप्रकाश झा, मोदनाथ झा, मनमोहन चौधरी, शम्भुदेव झा, रामनरेश चौधरी, प्रेमलता मिश्र प्रेम, कुमारी रमा चन्द्रकान्ति, सुरजीत कुमार एवं सुनील कुमार। अपार जन समुदायक उपस्थितिमे ई नाटक प्रशंसिते नहि, प्रत्युत बहुतो दिन धरि चर्चाक विषय बनल रहल। नाटकक सफलतामे नाटकमे कलाकार लोकनिक ओ अदम्य उत्साहक संग-संग बिहार आर्ट थियेटर जन सम्पर्क विभाग आ भारत सरकारक संगीत एवं नाटकक विभागक कलाकार लोकनिक सहयोगकेँ अस्वीकारल नहि जा सकैछ।
वस्तुत: एहि प्रस्तुतिक सफलतासँ समितिक पदाधिकारी लोकनि पुन: हुनकासँ एक नव नाटकक रचनाक अनुरोध कयलक। आधुनिकताक सन्दर्भमे एक सेटक नाटककमे सुधांशु शेखर चौधरीक कथा-वस्तु मूल प्रवाह संग-संग एक वा एकसँ अधिक अन्तर प्रवाहक प्रयोग रहल अछि। ओ नाट्य मंचक संयोजक छत्रानन्द सिंह झाक प्रस्तुतिसँ एतेक प्रभावित भेलाह जे अपन दोसर नाटकक ढ़हैत देवाल लेटाइत आँचरक रचना क’ कए हुनका देलथिन प्रस्तुति करबाक हेतु। पुन: एहू काल-खण्डी नाटकक प्रदर्शन एतेक प्रभावकारी भेल आ जनमानस नवनाट्य प्रस्तुतिक हेतु वर्षभरि प्रतीक्षातुर रहय लागल। एहि प्रकारेँ नाट्यमंच नाटकक आ रंगमंचक दिशामे अपन डेग आगू बढबैत गेल। नाट्य-प्रदर्शनक सफलताक पाछॉं नाट्यामंचक प्रतिवद्ध कलाकार लोकनिक अदम्य उत्साहक फलस्वरुप एकर नाट्याभिनय अपार जनमानसक समक्ष भेल। एहि नाटककमे प्रतिभगी कलाकार लोकनिमे हृदयनाथ झा, मोदनाथ झा, अशर्फी पासवान अजनवी, शंभुदेव झा, रामनरेश चौधरी, सत्यनारायण राउत, वीरेन्द्रकुमार झा, फन्नत झा, बालाशंकर, कल्पनादास एवं प्रेमलता मिश्र प्रेम। एहि नाट्ययोजनक सब श्रेय कलाकार लोकनिक परिश्रमक संगहि-संग बिहार आर्ट थियेटर एवं जनसम्पर्क विभागक कलाकारकेँ रहलनि।
चेतना समितिक ई अभिनव प्रयास भेलैक जे मिथिलाञ्चलक पुरातन सांस्कृतिक विरासत तथा नाट्य साहित्यक अविच्छिन्न समृद्धिशाली आ गौरवशाली परम्परामे एक नव प्राणक स्पन्दन भरबाक निमित नियमित रूपेँ प्राचीन एवं अर्वाचीन प्रतिभाशाली नाट्य-लेखकक आह्वान क’ कए नाट्य लेखनक दिशामे प्रोत्साहन, मंचोपरान्त ओकर प्रकाशनक व्यवस्थित परम्पराक व्यवस्था कयलक सन् 1973 ई. सँ जे जनमानसक मनोरंजनक संगहि-संग नाट्य-साहित्यिक सम्वर्द्धनक दिशामे गतिशील भेल जे विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर संगहि-संग अमरनाथ झा, हरिमोहन झा, ललितनारायण मिश्र एवं जयनाथ मिश्र जयन्तीक अवसरपर मौलिक, अन्य भारतीय भाषासँ अनूदित वा मैथिलीक प्रसिद्ध उपन्यास वा कथाक नाट्य रूपान्तरणक परम्पराक शुभारम्भ कयलक जे अद्यपर्यन्त अव्याहत रूपेँ चलि आबि रहल अछि। एकर सुपरिणाम एतबा अवश्य भेलैक जे अद्यापि निरस्थ नाटकक मंचन समितिक तत्वाधानमे भेल अछि जकरा ऐतिहासिक घटना कहब विशेष समुचित हैत, कारण भंगिमा (1984)केँ छोड़ि क’ मिथिलाञ्चल वा मिथिलेत्तर क्षेत्रक कोनो नाट्य संस्था अद्यापि एतेक परिभाषामे नाट्यायोजन नहि क’ सकल अछि। एकरा द्वारा मंचित नाटकककेँ विविध काल-खंडमे सुविधानुसार विभन्न दशकमे प्रदर्शित नाटकक तिथिक अनुसारेँ कयल जा रहल अछि।
अमरनाथ झा जयन्तीक आयोजनपर महेन्द्र मलंगिया (1946) क ओकरा आडन्नक बारहमासा, गुणनाथ झाक पाथेय, गंगेश गुंजन (1941)क चौबटियापर/बुधिबधिया एवं रोहिणीरमण झाक अन्तिम गहना, हरिमोहन झा जयन्तीपर हुनकहि द्वारा लिखित एकांकी अयाची मिश्र (1956), हुनक प्रसिद्ध कथा पॉंच पत्रक एकल अभिनय एवं छत्रानन्द सिंह झाक आदर्श कुटुम्बक नाट्य रूपान्तरण, ललित नारायण मिश्र जयन्तीपर तन्त्रनाथ झा (1909-1994)क उपनयनाक भोज (1949) एवं अरविन्द अक्कू गुलाब छडी तथा जयनाथ मिश्रक जयन्तीपर हरिमोहन झाक प्रसिद्ध कथा कन्याक जीवनक नाट्य रूपान्तरण विभूति आनन्द द्वारा तित्तिर दाइकेँ मंचस्थ कयल गेल जकर विवरण निम्नास्थ अछि :
विगतीत शताब्दीक अष्टम दशकमे मंचित एकांकी / नाटकक:
तिथि नाटकक नाटकककार अभिनीत स्थान अवसर निर्देशक
10 नवम्बर 1973 टुठैत लोक दिगम्बर झा शहीद स्मारक विद्यापति पर्व गणेशप्रसाद सिन्हा
10 नवम्बर 1974 भफाइत चाहक जिनगी सुधांशु शेखर चौधरी शहीद स्मारक विद्यापति पर्व गणेशप्रसाद सिन्हा
18 नवम्बर 1975 ढ़हैत देवाल/लेटाइत आँचर सुधांशु शेखर चौधरी शहीद स्मारक विद्यापति पर्व गणेशप्रसाद सिन्हा
6 नवम्बर 1976 पसिझैत पाथर रामदेव झा शहीद स्मारक विद्यापति पर्व नवीनचन्द्रा मिश्र
6 नवम्बर 1976 एक दिन एक राति सीताराम झा श्याम शहीद स्मारक विद्यापति पर्व रवीन्द्रनाथ ठाकुर
23 नवम्बर 1977 एकरा अन्तर्यात्रा जर्नादन राय शहीद स्मारक विद्यापति पर्व जनार्दन राय
25 नवम्बर1977 इन्टरव्यू जनार्दन राय शहीद स्मारक विद्यापति पर्व जनार्दन राय
25 नवम्बर 1977 रिहर्सल रवीन्द्रनाथ ठाकुर शहीद स्मारक विद्यापति पर्व रवीन्द्रनाथठाकुर 25 नवम्बर 197 ओझा जी दमनकान्त झा शहीद स्मारक विद्यापती पर्व रवीन्द्रनाथ ठाकुर
14 नवम्बर 1978 पाहिल सॉंझ सुधांशु शेखर चौधरी शहीद स्मारक विद्यापति पर्व अखिलेश्वर
14 नवम्बर 1978 हॉस्टल गेस्ट सच्चिदानन्द चौधरी शहीदस्मारक विद्यापति पर्व सच्चिदानन्द चौधरी
25 फरवरी 1979 ओकरा आङनक बारहमासा महेन्द्र मलंगिया आइ.एम.ए.हॉल अमरनाथ झा जयन्ती अखिलेरवर 4 नवम्बर 1979 ओंकरा आङनक बारहमासा महेन्द्र मंलगिया शहीद स्मारक विद्यापति पर्व अखिलेश्वर
4 नवम्बर 1979 चानोदाइ उषाकिरण खाँ शहीद स्मारक विद्यापति पर्व अखिलेश्वर
22 नवम्बर1980 एक कमल नोरमे महेन्द्र मलंगिया शहीद स्मारक विद्यापति पर्व अखिलेश्वर
एहि दशकक कालावधिमे कुल पन्द्रह एकांकी/नाटकक प्रस्तुति कयल गेल जाहिमे पॉंच नाटकक आ शेष दस एकांकी अछि। एहि दशाब्दक अन्तर्गत ख्याति अर्जित कयलक भफाइत चाहक जिनगी, ढ़हैत देवाल, लेटाइत आँचर। पहिल सॉंझ एवं ओकरा आङनक बारहमासा, कारण नाटकककार सामाजिक परिप्रेक्ष्यकेँ घ्यानमे राखि क’ एकर कथानक संयोजन कयलनि जे जनमानसपर अपन अमिट छाप छोड़बामे सहायक सिद्ध भेल। उपर्युक्त नाटकादिक कथानक द्रुतगामिता, घटना-उपघटनादिक विस्तारक संग समन्वित क’ कए नाटकककार नाट्य साहित्यान्तर्गत तेहन मानदण्ड स्थापित क’ देलनि जे अन्यतम भ’ गेलाह। एहि संस्था द्वारा जखन-जखन नाट्यायोजन कयल गेल तखन-तखन दर्शकक रूपमे सम्पूर्ण मैथिल समाज उनटि आयल जे एकर लोक प्रियताक प्रतिमान थिक।
बीसम शताब्दीक नवम दशकमे मंचित एकांकी/नाटकक :
तिथि नाटकक नाटकककार अमिनीत स्थान अवसर निर्देशक
22 फरवरी1961 पाथेय गुणनाथ झा आइ. एम. ए. हॉल अमरनाथ झा जयन्ती रमेश राजहंस
11 नवम्बर 1981 अागिधधाक रहल छै अरविन्द अक्कू बाल उदद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व मादनाथ झा
22 फरवरी ट 1982 चौबयिापर/बुधिबधिया गंगेश गंजन आइ. एम. ए. हॉल अमरनाथझा जयन्ती विभूति आनन्द
28 नवम्बर1982 अन्तिम प्रणाम गोविन्दझा बालउद्यानप्रांगण विद्यापतिपर्व जावेद अखतर खाँ
28 नवम्बर 1982 बेचारा भगवान अनुवादक शैलेन्द्रपटनिया बालउद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व कौशलदास दास
28 नवम्बर 1983 भर्तृहरि अनुवादक शारदानन्द झा बालउद्यानप्रांगण विद्यापतिपर्व जावेद अख्तर खाँ
8 नवम्बर1984 प्रायश्चित छात्रानन्दसिंह झा बाल उद्यान प्रांगण विद्यापतिपर्व विनोद कुमार झा
8 नवम्बर 1984 नवतुरिया उषाकिरण खाँ बान उद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व त्रिलोचन झा
8 नवम्बर 1984 टूलेट रवीन्द्रनाथ ठाकुर बाल उद्यान प्रागंण विद्यापति पर्व रवीन्द्रनाथ ठाकुर
26 नवम्बर1985 एना कत्तेदिन ? अरविन्द अक्कू बाल उद्यान प्रांगण अमरनाथ झा जयन्ती प्रशान्त कान्त
अन्हार जंगल अरविन्द अक्कू बाल उद्यान प्रांगन विद्यापति पर्व त्रिलोचन झा
5 नवम्बर 1987 जादूजंगल अनुवादक रोहिणीरमण झा बालउद्यानप्रांगण विद्यापतिपर्व अरविन्द रंजनदास
23 नवम्बर 1988 विद्यापति बैले सरोजा वैद्यनाथ बालउद्यान प्रांगण विद्यापतिपर्व सरोजावैद्यनाथ
23 नवम्बर 1988 जखते कहल कक्का हो रवीन्द्रनाथ ठाकुर बालउद्यानक प्रांगण विद्यापतिपर्व मनोज मनु
23 नवम्बर 1988 रुकमिणी हरण गोविन्द झा बालउद्यान प्रांगण विद्यापति पर्व कुणाल
18 सितम्बर 1989 अयाची मिश्र हरिमोहन झा विद्यापति भवन हरिमोहन झा जयन्ती 13 नवम्बर 1989 आतंक अरविन्द अक्कू बाल उद्यानक प्रांगण विद्यापतिपर्व त्रिलोचनझा
2 फरवरी1990 अपनयनाकभोज तन्त्रनाथ झा विद्यापति भवन ललितनारासण मिश्र जयन्ती भवनाथ झा
4 मार्च 1990 तितिरदाइ रूपकार विभूति आनन्द विद्यापति भवन जयनाथमिश्र जयन्ती किशोर कुमार झा
18 सितम्बर1990 आदर्श कुटुम्ब रूपकार छात्रानन्द सिंह झा विद्यापतिभवन हरिमोहनझा जयन्ती उमाकान्त झा
2 नवम्बर 1990 राजा सल्हेस रोहिणीरमण झा मिलरहाइस्कूल प्रांगण विद्यापतिपर्व प्रशान्तकान्त
अपन अस्तित्वक एक दशक पूर्ण कयलाक पश्चात् नाट्यमंच द्वारा 26 नवम्बर 1984 ई. मे ई एक नाट्य प्रतियोगिताक आयोजन कयलक जाहिमे प्रतिभागी नाट्यसंस्थाहि नाट्याभिनय कयलक। पटनामे प्रादुर्भूत रंगकर्मी सहमागी बनल। भंगिमाक प्रस्तुति छल प्रायश्चित छत्रानन्दसिंह झा द्वारा लिखित आ विनोद कुमार झा द्वारा निर्देिशत ई नाटकक अति प्राचीन कथ्थक संग मंचस्थ भेल। सीताक पाताल प्रवेश चिरपरिचित कथानकेँ नारी-मुक्ति-आन्दोलन चश्मासँ देखलापर एहि नाटकक कथानक प्रासंगिक छल अन्यथा गीत गाओल छल। नाटकक सम्वाद अत्यधिक सशक्त रहलाक कारणेँ नाट्य प्रस्तुति प्राणवन्त बनि गेल एहि नाटकक निर्देशन कयने रहथि विनोद कुमार झा हुनक अथक परिश्रमक झलक भैटल दर्शककेँ। ओना रामक गौरांग शरीर निर्देशकक राम-कथाक स्पष्ट अघ्ययन दिस प्रश्न चिह्न उपस्थित करैछ। एहि नाटकककेँ दर्शनीय बनयबाक पाछॉं विशिष्ट चमत्कारिक संवाद-योजना। प्रकाश-परिकल्पना आ प्रभावोत्पादक घ्वनिक माघ्यमे सीताक पाताल प्रवेश देखाओल गेल। एकर मंच-सज्जा पटनामे अद्यापि मंचित मैथिली नाटककमे सर्वोत्कृष्ट छल।
अरिपनक प्रस्तुति छल वैद्यनाथ मिश्र यात्रीक उपन्यास नवतुरिया (1954)क नाट्य रूपान्तरण कयने छलीह उषाकिरण खॉं जकर निर्देशन कयने रहथि त्रिलोचन झा। मृतपाय समस्यावला कथ्य आ छोट-छोट रेडियो टाइप दृश्यक रहितहुँ निर्देशक अपन प्रतिभाक बलेँ नीक प्रस्तुति कयने छलहि। अभिनेता लोकनिमे चुनि-चुनि क’ संवाद बजबाक प्रवृत्ति छल। किछु कलाकारक अभिनय अतीव प्रभावशाली छल, किन्तु शेष कलाकार पिछड़ि गेलाह, मंच-सज्जा नाटकक अनुरूप छल तथा पार्श्व-संगीत तथा प्रकाश अवस्था सामान्य छल।
नवनिर्मित नाटय-संस्था अभिनव भारतीक प्रस्तुति छल टूलेट जकर लेखक आ निर्देशक रहथि रवीन्द्रनाथ ठाककु,। निर्देशककेँ कलाकार लोकनिपर कोनो नियंत्रण नहि छलनि आ ओ सभ मंचपरक फूलदानसँ अत्यन्त हल्लुक हास्य उत्पन्नकरबामे सफल भेलाह। एकर प्रस्तुति ग्रामीण मंच सदृश प्रहसनक श्रेणीमे आबि गेल।
उपर्युक्त प्रतियोगितामे भंगिमाकेँ प्रथम, अरिपनकेँ द्वितीय आ अभिनव भारतीकेँ तृतीय घोषित क’ कए क्रमश: दू हजार एक सय, एकहजार पॉंच सय आ एक हजार एक सयक पुरस्कार चेतना समिति प्रदान कयने छल जे नाटकक आ रंगमंचक क्षेत्रमे एक साहसिक प्रयास कहल जा सकैछ।
विगत शताब्दीक अन्तिम दशकमे मंचित एकांकी/नाटक :
तिथि नाटकक नाटकककार अभिनीत स्थान अवसर निर्देशक
21 नवम्बर 1991 रक्त अरविन्द अटकूम मिलरहाइस्कूलप्रांगण विद्यापतिपर्व मनोजमनु
10 नवम्बर 1992 लीडर वनदेवी पुत्र भवनाथ मिलरहाइस्कूलप्रांगण विद्यापति पर्व रघुनाथ झा किरण
28 नवम्बर 1993 ओरिजन काम महेन्द्र मलंगिया मिलरहाइस्कूल प्रांगण विद्यापति पर्व महेन्द्र मलंगिया
17 नवम्बर 1994 अथअद्भुतानन्द संजय कुन्दन मिलर हाइ स्कूल प्रांगण विद्यापति पर्व कुमार शैलेन्द्र
6 नवम्बर 1995 एकरा चिनसा विनोद कुमार मिश्र बन्धु मिलरहाइ स्कूल प्रांगण विद्यापति पर्व प्रशान्त कान्त
29 नवम्बर 1996 केकर? अरविन्द अक्कू मिलर हाइ स्कूल प्रांगण विद्यापति पर्व कौशन किशोरदास
27अगस्त 1997 बरेहर हम आ बाहरे हमर नाटकक अरविन्द अक्कू विद्यापति भवन स्वतंत्रातक स्वर्णजयन्ती विनीतझा
14 नवम्बर 1997 पदुआ कक्का अयुल गाम अरविन्द अक्कू भारतीय नृत्यकला मंदिर विद्यापति पर्व विनीतझा
4 नवम्बर 1988 गुलाबछडी अरविन्द अक्कू मिलर हाइ स्कूल प्रांगण विद्यापति पर्व विनीत झा
2 फरवरी 1999 गुलाब छडी अरविन्द अक्कू विद्यापति-भवन ललित जयन्ती विनीतझा
23 नवम्बर 1999 अग्निपथक सामा कुमार शैलेन्द्र कृष्णमेमोरियलहॉल विद्यापतिपर्व किशोरकुमारझा
11 नवम्बर 2000 सेहन्ता रोहिणीरमण झा भारत स्काउट एण्डगाइड प्रांगण विद्यापतिपर्व- रघुनाथझा किरण
नाटकक ओ रंगमंचक प्रगतिक प्रारूप भेटैछ विगत शताब्दीक अन्तिम दशकमे प्रदर्शित नाटकादिमे। यद्यपि एहि दशाब्दमे मात्र बारह नाटकक प्रस्तुति भेल। भारतीय स्वतन्त्रताक पचास वर्ष पूर्ण भेलापर विहार सरकारक कला संस्कृति एवं युवा विभाग 15 अगस्तसँ 1 सितम्बर 1977 धरि विद्यापति भवनमे नाट्य समारोहक आयोजन कयलक जाहि मे चेतना समितिक नाट्यमंचकेँ प्रतिभागीक रूपमे आमंत्रित कयलक जाहि प्रतिभागी भ’ मैथिली नाटकक प्रस्तुति कयलक वाह रे हम आ वाह रे हमर नाटकक। एहिसँ प्रमाणित होइछ जे सरकारी स्तरपर सेहो चेतनाक नाट्यमंचक स्वीकृति प्राप्त अछि। आधुनिक समाजमे व्याप्त विभिन्न समस्यादिक परिप्रेक्ष्यमे नाटकककार लोकनि कथानक संयोजन कयलनि जकरा जनमानसक हृदयकेँ स्पर्श कयलक।
एकैसम शताब्दीक प्रथम दशकमे मंचित नाटक :
30 नवम्बर 2001 नवघर उठे कमल मोहल चुन्नू भारत स्काउटएण्ड गाइड प्रांगण विद्यापति पर्व रघुनाथ झा किरण
19 नवम्बर 2002 शपथग्रहण कुमार गगन भारत स्काउट एण्ड गाइड प्रांगण विद्यापतिपर्व किशोरकुमार झा
8नवम्बर 2003 राज्याभिषेक अरविन्द अक्कू भारत स्काउट एण्ड गाइड प्रांगण विद्यापति पर्व उमाकान्त झा
26 नवम्बर 2004 छूतहा घैल महेन्द्रमलंगिया भारत स्काउट एण्ड गाइड प्रांगण विद्यापति पर्व किशोर कुमार झा
15 नवम्बर 2005 जयजयजनताजर्नादन कुमार गगन विद्यापति भवन विद्यापति पर्व कुमार गगन
2 नवम्बर 2006 नदी गुगिआयलजाय मनोज मनु कॉपरेटिभफेडरेशन प्रांगण विद्यापतिपर्व मनोजमनु
24 नवम्बर 2007 अलखनिरंजन अरविन्द अक्कू कॉपरेटिभफेडरेशन प्रांगण विद्यापति पर्व कौशल किशोरदास
वर्त्तमान शताब्दीमे अद्यापि सात नाटकक मंचन भेल अछि जाहिमे सभक प्रस्तुति दिनप्रतिदिन प्रगतिक पथपर अग्रसर अछि। प्रत्येक नाटकक अपन कथ्यक नवीनतासँ अनुप्राणित अछि तथा ओकर प्रस्तुतिमे शनै:-शनै: विकास भ’ रहल अछि जकर सुपरिणाम भेलैक जे अलखनिरंजनक प्रस्तुति एतेक आकर्षक आ कथानकक नवीनता आ समसामियक रहबाक कारणेँ जनमानसक हृदयकेँ स्पर्श कयलक। एहि प्रस्तुतिक सफलतासँ अनुप्राणित भ’ समितिक पदाधिकारी लोकि प्रतिभागी कलाकार लोकनि केँ पुरस्कृत करबाक निर्णय कयलना ई आयोजन 14 दिसम्बर 2007 केँ विद्यापति भवनमे आयोजित कयल गेल छल तथा नाटकक ओ रंगमंचक लब्धप्रतिष्ठ विद्वान प्रोफेसर प्रेमशंकर सिंह द्वारा प्रतिभागी कलाकार लोकनिकेँ नगद राशि एवं प्रमाण पत्रसँ सम्मानित कयल गेलनि जे हुनका सभक मनोबलकेँ बढ़यबाक दिशामे अहं भूमिकाक निर्वाह कयलक आ भविष्यक हेतु पाथेय सिद्ध हैत।
प्रकाशन :
रंगमंचक क्षेत्रमे चेतना समितिक नाट्यमंच प्रभाग एक प्रतिमान प्रस्तुत कयलक जे अद्यापि कुल मिला क’ सनतावन एकांकी/नाटकक अपन तत्वावधानमे मंचित करौलक अछि जे उपर्युक्त विवरणसँ स्पष्ट अछि। नाट्यमंचक तत्वावधानमे जतेक नाटकक अद्यापि मंचित भेल अछि तकर सूची वृहत्तर अछि जकरा देखलासँ अनुमान कयल जा सकैछ जे समिति नाट्य प्रेमीक समक्ष एक कीर्तिमान स्थापित करबामे पूर्ण सफल भेल अछि। समितिक ई प्रभाग द्वारा नवोदित नाट्यकारक नाट्य-कृतिकेँ प्रकाशित कयलक अछि जे अद्यापि मैथिली जगतक कोनो संस्था द्वारा नहि कयल गेल अछि। नाट्य लेखन, मंचोपरान्त ओकर कमी बेसीकेँ सुधारिक क’ प्रकाशित कयलक अछि यथा दिगम्बर झाक टूटैत लोक (1974), सुधांशु शेखर चौधरीक भफाइत चाहक जिनगी (1975) एवं ढ़हैत देवाल/लेटाइत ऑंचर (1976), महेन्द्र मलंगियाक ओकरा आङनक बारहमासा (1980), अरविन्द अक्कूक आगि धधकि रहल छै (1981), एना कत्ते दिन? (1985), अन्हार जंगल (1987), आतंक (1994), के ककर? (1986), वाह रे हम वाह रे हमर नाटकक (1998), पढ़ुआ कक्का अएला गाम (1994), गुलाबछड़ी (1999) राज्याभिषेक (2005), अलख निरंजन (2008), गंगेश गुंजनक चौबटियापर। बुधि बधिया (1982) गोविन्द झाक अन्तिम प्रणाम (1982) एवं रुक्मिणी हरण (1989), रोहिणीरमण झाक अन्तिम गहना (1929) एवं राजा सलहेस (1990), विभूति आनन्द का तित्तिर दाइ (1994) वनदेवी पुत्र भवनाथक लीडर (1994), कुमार शैलेन्द्रक अग्नि पथक सामा (2000), कमल मोहन चुन्नूक नव घर उठे (2001), कुमार गगनक शपथग्रहण (2003) एवं विनोद कुमार मिश्रक एकटा चिनमा (2006) आदि।
चेतनाक नाट्यमंचपर निम्नस्थ एकांकी/नाटकक मंचपर तँ अवश्य मंचित भेल, किन्तु ओ पुस्तकाकार रूपमे पाठकक समक्ष नहि आबि सकल अछि तकर एकमात्र कारण आर्थिक दवाब समितिक समक्ष रहल वा अन्यान्य भाषासँ अनूदित वा उपन्यासकेँ रूपान्तरित क’ कए मंचस्थ कयल गेल हो यथा सीताराम झा श्यामक एकदिन एक राति, जनार्दन रायक एकटा अन्तर्यात्रा एवं इन्टरव्यू, रवीन्द्रनाथ ठाकुरक रिहर्सल टूलेट, एवं जखने कहल कक्का हो, दमनकान्त झाक ओझा जी, सच्चिदानन्द चौधरीक हॉस्टलक गेस्ट, उषाकिरण खाँक चानोदाइ एवं नवतुरिया, शैलेन्द्र पटनियॉंक बेचारा भगवान, शारदानन्द झाक भर्तृहरि, रोहिणीरमण झाक जादू जंगल एवं सेहन्ता, छत्रानन्द सिंह आदर्श कुटुम्ब, संजय कुन्दनक अथ अद्धदानन्द, कुमार गगनक जयजय जनार्दन, महेन्द्र मलंगियाक छूत घैल, मनोज मनुक नदी गोंगिआयल जाय एवं अखनीन्द अक्कूक अलख निरंजन आदि।
समिति द्वारा मंचस्थ किछु नाटकक एहनो उपलब्ध भ’ रहल अछि जकर प्रकाशनमे निरर्थक विलम्ब देखि नाटककार ओकरा अन्यान्य संस्थादिसँ प्रकाशित करयबाक सयत्न प्रयास कयलनि यथा सुधांशु शेखर चौधरीक पहिल सॉझ (मैथिली अकादमी पटना 1989) रामदेव झाक पसिझैत पाथर (संकल्य लोक, लहेरियासराय 1989) अरविन्द अक्कूक रक्त (शेखर प्रकाशन, पटना 1992) महेन्द्र मलंगियाक ओरिजनल काम (ललित प्रकाशन, मलंगिया 2000) एवं छत्रानन्द सिंह झाक प्रायश्चित/सुनूजानकी (शेखर प्रकाशन, पटना 2007) आदि।
चेतनाक नाट्य प्रभाग नाट्यमंच द्वारा प्रस्तुति एतेक बेसी लोकप्रियता अर्जित कयलक, जनमानसकेँ आकर्षित कयलक जे नाटककमे भाग लेनिहार अभिनेतामे अभिनेत्रीकेँ पुरस्कृत करबाक घोषणा नाट्यप्रेमी जनमानस द्वारा भेल जाहिसँ नाट्यत्योजनामे प्रतिभागी कलाकार लोकनिकेँ प्रोत्साहन भेटब प्रारम्भ भेलनि तथा ओ सभ अत्यन्त मनोसोग पूर्वक एहिमे प्रतिभागी बनब प्रारम्भ कयलनि। एहि प्रकारक दू पारितोषिक चेतनाक मंचसँ घोषित भेल जकर आर्थिक भार ओ वहन कयलनि जनिक स्मृतिमे एकर स्थापना कयलनि।
शैलवाला मिश्र स्मृति पारितोषिक :
मधुबनी जिलाक चानपुरा ग्राम निवासी साइन्स कॉलेज पटनाक प्राक्तन प्रधानाचार्य एवं विश्वविद्यालय सेवा आयोगक प्राक्तन अघ्यक्ष सूर्यकान्त मिश्र अपन दिवंगता धर्मपत्नीक स्मृतिमे हुनक सांस्कृतिक कार्यक्रमक प्रति अनुराग विशेषतः अभिनयमे अभिरुचिक लेल चेतना समितिक नाट्य प्रभाग नाट्यमंच द्वारा आयोजित विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर अभिनीत नाटकक अभिनयमे सर्वोत्तम अभिनयक लेल शैलवाला स्मृति परितोषिकक घोषणा कयलनि। एहि निमित्त 1984 वर्षक लेल एक सय एक एवं भविष्यक हेतु एक हजार एक टाका फिक्स डिपोजिटमे रखबाक हेतु समितिकेँ समर्पित कयलनि। तदनुसार चेतना समितिक नाट्य प्रभाग नाट्यमंच द्वारा शैलवाला स्मृति पारितोषिक योजना प्रारम्भ कयलक जकरा अन्तर्गत निम्नस्थ सर्वोतम कलाकारकेँ सर्वोतम अभिनयक हेतु पुरस्कृत कयल गेल अछि, यथा :
वर्ष नाटकक नाटकककार पुरस्कृत कलाकार
1984 नवतुरिया नाटयरूपकार उषाकिरण खॉं हेमचन्द्र लाभ
1985 एनाकते दिन? अरविन्द अक्कू त्रिलोचन झा
1986 अन्हार जंगल अरविन्द अक्कू अशोक चौधरी
1987 जादू जंगल रोहिणी रमण झा प्रशान्त कान्त
1988 रुकमिणी हरण गोविन्द झा प्रेमलता मिश्र प्रेम
1990 राजा सलहेस रोहिणीरमण झा सुनीलकुमार झा
1991 रक्त अरविन्द अक्कू शारदा सिंह
1992 लीडर वनदेवी पुत्र भवनाथ शरारदा सिंह
1993 ओरिजनलकाम महेन्द्रमलंगिया सुभद्राकुमारी 1994 अथ अद्भुदानन्द संजय कुन्दन लक्ष्मीनारायण मिश्र
1995 एकटा चिनमा विनोद कुमार मिश्र शारदा सिंह
1996 के केकर ? अरविन्द अक्कू रघुवीर मोची
1997 पदुआ कक्का अएला गाम अरविन्द अक्कू अनीता मन्नू
1998 गुलाबछडी अरविन्द अक्कू अनीता मन्नू
1999 अगिनपथक सामा कुमार शैलेन्द्र रश्मि
2000 सेहन्ता रोहिणीरमण झा रश्मि
2001 नवघर उठे कमल मोहन चुन्नू कुमार गगन
2002 शपथ ग्रहण कुमार गगन मिथिलेश कुमार मिश्र
2003 राज्याभिषेक अरविन्द अक्कू कुमार गगन
2004 छूतहाघैल महेन्द्र मलंगिया रामश्रेष्ठ पासवान
2005 जय जय जनता जनार्दन कुमार गगन उमाकान्त झा
2006 नदी गोगिंआयल जाय मनोज मनु रामश्रेष्ठ पासवान
2007 अलख निरंजन अरविन्द अक्कू रामश्रेष्ठ पासवान
कामेश्वरी देवी पुरस्कार :
मिथिलाक सर्वांगीन विकासार्थ अपन जीवनक आहूति देनिहार मिथिलाक वरदपुत्र ललितनारायण मिश्रक धर्मपत्नी कामेश्वरी देवीक निधनोपरान्त हुनक स्मृतिमे हुनक ज्येष्ठ पुत्र विजयकुमार मिश्र चेतना समितिक वर्त्तमान अघ्यक्ष एवं हुनक परिवारक सहयोगसँ नाट्याभिनयमे प्रतिभागी कलाकारकेँ विद्यापति स्मृति पर्वोत्सवपर अभिनीत नाटकक लेल सर्वश्रेष्ठ अभिनयक लेल पुरस्कृत करबाक परम्पराक शुभारम्भ भेल एकैसम शताब्दीक प्रथम दशकमे।
2002 शपथ ग्रहण कुमार गगन आती
2003 राजयभिषेक अरविन्द अक्कू गुडि़या
2004 छूतहा घैल महेन्द्र मलंगिया गुडिया
2005 जय जय जनताजनार्दन कुमार गगन स्वाती सिंह
2006 नदी गुगुआएल जाय मनोज मनु सपनाकुमारी
2007 अलखनिरंजन अरविन्द अक्कू विजय लक्ष्मी
मैथिली रंगमंचकेँ व्यवस्थित स्वरूप प्रदान करबामे चेतना समितिक माँ पुत्र नाट्यमंच प्रभाग वर्त्तमान परिप्रेक्ष्यमे मिलक पाथर बनि गेल अछि जे जाहि दिशामे एकर प्रयास प्रारम्भ भेलैक आ ओकरा मूर्त्तरूप प्रदान करैत गेल तकर श्रेय आ प्रेय एकर समर्पित कलाकार लोकनिकेँ छनि। समितिक ई प्रयास कतेक सार्थक भेलैक जे नाट्यमंचक स्थापनोपरान्त नव-नव तकनिकसँ संयुक्त कयक नवीनतासाँ संयुक्त एकसँ एक कलाकारकेँ मंचपर आनि हुनका अपन यथार्थ प्रतिभाक प्रदर्शनार्थ स्वर्णिम अवसर प्रदान कयलक। चेतना द्वारा नाटकक ओ रंगमंचक विकास यात्राक मार्गकेँ प्रशस्त करबाक हेतु जे अभियान चलौलक ओ साहित्येतिहासमे स्वर्णक्षरमे अंकित होयबाक योग्य थिक। एकरा इहो श्रेय आ प्रेय छैक जे एकर समर्पित कलाकार लोकनि अपन अभिनय कौशलक प्रदर्शनार्थ समितिक नाट्यमंचसँ अनुप्राणित भ’ कतिपय नव-नव नाट्य-संस्थादि स्थापित भेलैक अरिपन (1982), भंगिमा (1984), कलासमिति, आङन, भाव तरंग, अभिनव भारती आदि-आदि रंगकर्मी संस्थादिक जन्मक मूलमे चेतना समितिक नाट्यमंच प्रभाग अछि।
चेतनाक नाट्यमंचक नियमित प्रदर्शनिक फलस्वरूप जनमानसकेँ नाटकक देखबाक लुतुक पड़ि गेलैक अछि जाहिसँ दर्शकक संख्यामे अपार वृद्धि भेलैक ताहिमे सन्देह नहि। मैथिली रंगमंचीय गतिविधिक व्यौरा अछि जे रंगकर्मक क्षेत्रमे चेतनाक नाट्यमंच प्रभागक अवदानसँ हमरा परिचय करबैत अछि जे इतिहासक दृष्टिएँ उल्लेखनीय अघ्याय थिक। एहिमे सन्देह नहि जे मैथिली रंग जगतकेँ चेतनाक देनक चर्चा-अर्चा रंगमंचक इतिहासमे सतत स्मरणीय रहत, कारण एकरा स्थायित्व प्रदान करबाक दिशामे ई एहन ठोस कार्य कयलक अछि एकर नाट्य प्रभाग आ करैत आबि रहल अछि आ आशा कयल जाइत अछि जे भविष्यमे सेहो उज्ज्वल आ कर्मरत हैत से विश्वास अछि।
वस्तुतः चेतना समिति नाटकक ओ रंगमंचक माघ्यममे मिथिलाक सांस्कृतिक, साहित्यिक आ कलाक प्रचार-प्रसारक सुकार्य करैत आबि रहस अछि। समिति रंगमंचक माघ्यमे सांस्कृतिक आ साहित्यक आन्दोलन चलौलक जे जनचेतना जगयबामे सहायक सिद्ध भेल। एकर प्रयासक फलस्वरूप नाट्य-लेखन आ मंचनक विकासक दिशामे लोकक प्रतिवद्धता बढ़लैक। निजी निर्देशक, निजी तकनिशियन आ विशुद्ध मैथिल अभिनेता-अभिनेत्रीक सहयोगसँ नाट्य-प्रस्तुति करबामे निजी व्यक्तित्व निर्माण कयलक अछि संगहि अपन प्रदर्शनसँ राष्ट्रीय स्तरक कतिपय कलाकार बनौलन्हि। समितिक सत्प्रयासक फलस्वरूप नव नाटकक, नव-शैली आ नव-कथ्यक जन्म द’ कए नव जागरणक शंखनाद कयलक अछि। एकरासँ प्रेरित भ’ नव-नव संस्थादिक उदय आ विकास रंगमंचकेँ निस्सन्देह स्मृद्धि कयलक अछि। एकरा ई श्रेय आ प्रेय छैक जे नाट्यान्दोलनमे तीव्रता अनलक आ रंगमंचकेँ स्थायीत्व प्रदान करबाक निमित्त अत्यधिक क्रियाशील अछि।
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