Wednesday, August 24, 2011

हम पुछैत छी: बेचन ठाकुरसँ मुन्नाजीक गपशप

हम पुछैत छी: बेचन ठाकुरसँ मुन्नाजीक गपशप
गमैया नाटकक परि‍वेशजन्‍य सृजनकर्त्ता एवं नि‍स्‍वार्थ भावनासँ रचनारत श्री बेचन ठाकुर जीसँ हुनक रचनात्‍मक प्रक्रि‍या मादे युवा लघुकथाकार मुन्नाजी द्वारा कएल गेल वि‍भि‍न्न प्रश्‍नक उतारा अहाँ सबहक समक्ष देल जा रहल अछि‍।

मुन्नाजी- प्रणाम ठाकुरजी!
बेचन ठाकुर- प्रणाम मुन्ना भाय!

मुन्नाजी- साहि‍त्‍यक मुख्‍य: दू गोट वि‍धाक एतेक रास प्रकारमे सँ अपने नाटकक सर्जनक प्राथमि‍कता देलौं कि‍एक, एकर कोनो वि‍शेष कारण तँ नै अछि‍?
बेचन ठाकुर- जखन हम परि‍वारक संग वा पड़ोसीक संग गमैया नाच वा नाटक देखैले जाइत रही तँ हुनके सभसँ प्रेरि‍त भऽ नाटकक प्रति‍ अभि‍रूचि‍ जागल आ दि‍नोदि‍न बढ़ैत रहल।

मुन्नाजी- अहाँक नाटकक कथानकमे केहेन स्‍थि‍ति‍ वा परि‍वेशक समावेश रहैए।
बेचन ठाकुर- हमर नाटकक कथानकमे समाजक स्‍थि‍ति‍-परि‍स्‍थि‍ति‍ आ ओकर यथासंभव समाधानक परि‍वेश रहैए।

मुन्नाजी- अहाँ जहि‍या नाटक लेखन प्रारम्‍भ केलौं, कहू जे तहि‍या तहि‍या आ आजुक सामाजि‍क, सांस्‍कृति‍क उपरस्‍थापन वा बदलावक प्रति‍ अहाँक नजरि‍ये केहेन स्‍थि‍ति‍ देखना जाइछ?
बेचन ठाकुर- काओलेज जीवनसँ कि‍छु-कि‍छु लि‍खैक प्रयास करैत रहलौं जैमे नाटक मुख्‍य रहल। नाटकक दृष्‍टि‍ऍं प्रारंभि‍क सामाजि‍क आ सांस्‍कृति‍क स्‍थि‍ति‍ तथा आजुक स्‍थि‍ति‍मे बड्ड अंतर देखना जाइए। गमैया नाटक जस-के-तस पड़ल अछि‍, कनी-मनी आगू घुसकल अछि‍। मुदा शहरी नाटक हरेक क्षेत्रमे अपेक्षाकृत बड्ड आगू अछि‍।

मुन्नाजी- आइ नाटक कथानक, शि‍ल्‍प एवं तकनीकी दृष्‍टि‍कोणे उम्‍दा स्‍तरक प्राप्‍ति‍क संग थि‍येटरमे आबि‍ जुम अछि‍, अहाँ थि‍येटरमे प्रदर्शित आ गमैया नाटकक बीच कतेक फाँट देखै छी। आ कि‍एक?
बेचन ठाकुर- कथानक, शि‍ल्‍प एवं तकनीकी दृष्‍टि‍ऍं थि‍येटर आ गमैया नाटकमे बड्ड फाँट देखै छी। दर्शकक आ कलाकारक साक्षरता, स्‍त्री-पुरूषक भूमि‍का, साज-बाजक ओरि‍यान, इजोतक जोगार इत्‍यादि‍मे बड्ड फाँट अछि‍। फलस्‍वरूप गमैया नाटक अपेक्षाकृत पछुआएल रहि‍ गेल अछि‍।

मुन्नाजी- गाममे आइयो बाँस-बत्ती आ परदाक जोगारे नाट्य प्रदर्शन होइछ आ दर्शक सेहो जुटैछ तँ अपने गमैया नाटक अतीतक दशा आ भवि‍ष्‍यक दि‍शा मादे की कहब?
बेचन ठाकुर- गमैया नाटकक प्रदर्शनमे दर्शकक भीड़ रहैए। कारण गाम-घरमे मनोरंजनक साधनक सामूहि‍क स्‍तरपर अभाव छै। शहरक देखादेखी आब गामो-घरक स्‍थि‍ति‍मे सुधार भऽ रहलैए। तैं गमैया नाटकक दशा भवि‍ष्‍यमे अवस्‍य सुधरत, वि‍श्वास अछि‍।

मुन्नाजी- अहाँ एतेक रास वि‍भि‍न्न तरहक नाटक लि‍ख मंचन कैयौ कऽ हेराएल वा बेराएल रहलौं कि‍एक?
बेचन ठाकुर- हम एकटा नि‍जी शि‍क्षकक दृष्‍टि‍ऍं अपन वि‍द्यार्थीक बौद्धि‍क वि‍कास हेतु अपन कोचि‍ंगक प्रांगणमे कोनो वि‍शेष अवसरपर तैमे खास कऽ सरस्‍वती पूजामे रंगमंचीय सांस्‍कृति‍क कार्यक्रमक बेबस्‍था करै छी जैमे अपन ि‍नर्देशनमे वि‍द्यार्थी द्वारा कार्यक्रम संपादि‍त होइए। ओइ तरहेँ दस-बारहटा नाटकक मंचन सराहनीय ढंगसँ भऽ चूकल अछि‍। सूत्रक अभावमे हम हेराएल रही। मुदा आब प्राप्‍त सूत्र आ बेबस्‍थाक कृतज्ञ छी।

मुन्नाजी- अहाँ नाटकक अति‍रि‍क्‍त आअोर की सभ लि‍खै छी, सभसँ मनलग्‍गु कोनो वि‍धाक कोन प्रकारक अहाँ प्रेमी छी आ कि‍एक?
बेचन ठाकुर- हम नाटकक अति‍रि‍क्‍त कथा, लघुकथा, राष्‍ट्रीय गीत, भक्‍ति‍ गीत, कवि‍ता, टटका घटनापर आधृत गीत इत्‍यादि‍ लि‍खबाक प्रयास करैत रहै छी। गोष्‍ठीमे उपस्‍थि‍त भऽ कऽ कथा पाठो कलौंहेँ। सभसँ मनलग्‍गू वि‍धा हमर संगीत अछि‍। ओना हमर प्रति‍ष्‍ठाक वि‍षय गणि‍त अछि‍।

मुन्नाजी- जाति‍-वर्ग वि‍भेदक अहाँक रचनाकेँ कतेक प्रभावि‍त कऽ पौलक अछि‍ अपने ऐ जातीय वि‍षमताक टापर-टोइयामे अपनाकेँ कतऽ पबै छी?
बेचन ठाकुर- जाति‍-वर्ग वि‍भेद हमर रचनाकेँ अंशत: प्रभावि‍त केलक। ऐमे हम अपनाकेँ अपन जगहपर अड़ल पबै छी।

मुन्नाजी- नाटक वा अन्‍यान्‍य रचनात्‍मक सक्रि‍यताक मादे अपनेक अगि‍ला रूखि‍ की वा केहेन रहत?
बेचन ठाकुर- नाटक वा अन्‍यान्‍य रचनात्‍मक सक्रि‍यताक मादे अपन अगि‍ला रूखक संबंधमे कि‍छु नि‍श्चि‍त नै कहल जा सकैए। इच्‍छा प्रबल अछि‍। जतए धरि‍ संभव भऽ सकत करब।

मुन्नाजी- अपनेक अमूल्‍य उतारा हेतु बहुमूल्‍य समए देवाक लेल हार्दिक धन्‍यवाद!
बेचन ठाकुर- अपनेक प्रश्नक यथासंभव जबाबसँ अपनाकेँ गौरवान्‍वि‍त बुझि‍ अपनेकेँ हार्दिक धन्‍यवाद ज्ञापि‍त करैत हमरो अपार हर्ष होइए।(साभार विदेह)

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