Wednesday, August 24, 2011

रविभूषण पाठक नाटक ‘रिहर्सल’

रविभूषण पाठक
नाटक ‘रिहर्सल’

‘रिहर्सल’ नाटक मिथिला मे व्याप्त सांस्कृतिक संकट क’ एकटा छोट रूपक अछि ।मिथिला मे जाति बदलल मुदा जाति क’चालि नहि बदलल ।जाति अपन बदरंग भूमिका क’ साथ जीवित अछि । जाति ,धर्म,राजनीति आ साहित्य क’ कॉकटेल एकटा गेन्हायल आ कुत्सित दृश्य उपस्थित करैत अछि।’रिहर्सल’ नाटक एहि दृश्य के ने ग्लेमराइज करैत अछि ने रूपांतरित करैत छैक ।एहि ठाम टी एस एलियट क’ओहि विचार के महत्वपूर्ण नहि मानल गेल अछि कि भोक्ता आ रचयिता क’ बीच मे दूरी रचनात्मकता क’ लेल अनिवार्य अछि ।गाम मे मंचन क’ समय एहि विकट तथ्य सॅ अवगत भेलहूॅ कि नाटकीय अभिरूचि क’ परिष्कार एखनहु अपरिहार्य अछि ।गाम में नवतुरिया छौराछपाठी सॅ जे सहयोग भेटल ,ओ गदगद क’ देलक ।नाटक मे संशोधन-परिवर्धन क’ तमाम गुंजाइश के बावजूद ई अपन मूल रूप मे अछि ।उदयनाचार्य मिथिला पुस्तकालय क’ प्रथम वर्षाब्दी क’ अवसर पर आयोजित कार्यक्रम क’ लेल एकर लेखन दू-तीन दिन मे संपन्न भेल छल ।ई नाटक शुरूए सॅ कचकूह रहि गेल ।मुदा कचरस क’ अपन आनन्द होइत छैक । ई हमर लेखन सॅ बेशी अहॉ क’ धैर्य क’ परीक्षा छी ।मिथिला क’ रंग परम्परा क’शत-शत नमन।प्रथम मंचन क’सब कलाकार आ दर्शक के सहयोग क’ लेल धन्यवाद ।नाटक केर एकटा प्रतिभाशाली अभिनेता क’ अनुपस्थिति हरदम खलत ।ओ अपन पारिवारिक तनाव क’ चलते एहि दुनिया क’ रंगमंच सॅ विदा भ’गेलाह ।मात्र पचीस वर्ष क उम्र मे आत्महत्या क’चयन सॅ हुनकर मानसिक तनाव व व्यथा क’अनुमान लगायल जा सकैत अछि । नाटक मे जाति सब क नाम काल्पनिक लिखल गेल अछि । मुदा नाटक मे तथाकथित छोटका आ बड़का के संघर्ष सॅ समाज क’ संरचना आ प्रवृत्ति स्पष्ट अछि ।
प्रथम अंक

प्रथम दृश्य


;एकता सम्भ्रंात व्यक्ति क’घर ।चारिटा कुरसी राखल ।बिछावन लागल ,दीवाल पर विद्यापति , रवीन्द्र नाथ ,निराला ,प्रसाद ,मोहन राकेश ,हरिमोहन झा आ यात्री क’ फोटो । चौकी पर एकटा सूतल व्यक्ति रेडियो सॅं भैरवी गीत क’ प्रसारण। व्यक्ति परमेश बैसि के झूमि रहल छथि । गीत बन्द आ केओ किवाड़ खट -खटा रहल अछि । परमेश हड़बड़ाइत छथि आ ओढ़ना ओढ़ि लैत छथि )
नेपथ्य सॅ आवाज -(हेमचन्द्र क आवाज ) परमेश बाबू छी अओ....... परमेश बाबू कत’ चलि गेलाह ....... परमेश बाबु छी अओ । केवाड़ मे धक्का मारैत छथि आ केवाड़ खुलि जाइत अछि।
हेम चन्द्र - परमेश बाबू सूतल किएक छी ?
परमेश - (मंॅुह पर सॅ ओढ़ना हटबैत) हमर तबियत खराब अछि, बुखार अछि ।
हेमचन्द्र - चलु डाक्टर सॅ देखवा लिय’। आइ सॉझ मे नाटक अछि, स्वस्थ नहि रहब त’ मंचन कोना हेतइ।
परमेश - हम मंचन योग्य नहि छी, हमर भूमिका दोसर के द’ दियऊ।
हेमचन्द्र - बहुत नीक ! आइ नाटक क’ दिन अहॉ ई बात कहि रहल छी ,बुझि पडै़छ बात दोसर अछि....... साफ साफ बाजू ने कि बात ?
(खवास दू गिलास शरबत आ एक हत्था केरा क’ संग प्रवेश करैत अछि। परमेश पहिले केरा खाइत छथि फेर शरबत पी के ढ़करैत छथि ।
हेमचन्द्र - हद कएलहॅु परमेश बाबु । कहैत छी जी बुखार अछि आ एक हत्था केरा गीलि गेलहु ।
परमेश - देखू हेम चन्द्र बाबू हम अहॅा संग दस वरिस सॅ काज क’ रहल छी ‘‘रंग चेतना मंच ‘‘ क’ क्रिया कलाप में आब देख रहत छी जे आन लोक क’ भागीदारी बड्ड बेसी बढि गेल। पुरान लोक सब नेपथ्य मे जा रहल छथि आ चोर- चुहार सब के मलाईदार रोल मिलि रहल अछि ।
हेमचन्द्र - जे दस क’ संस्था अछि, ओहि मे एहिना कमी बेसी होइत छैक, एकरा मून सॅ निकालू परमेश बाबू।
परमेश - कोना निकालू मोन सॅ, ई जे रामप्रवेश अछि से हमर बराबरी कर’ चाहैत अछि। विसार जाति के एतेक हिम्मत । ओ आब कालीदास आ विद्यापति क’ रोल करत।
हेमचन्द्र - मतलब ?
परमेश - देबा क’ छल त’ कोनो खबास वला रोल द’ देतिअइ । बड्ड बेसी त’ उगना क रोल द’ दियओ, एना जे लीड रोल राम प्रवेश के देबइ त हम ,,,,,,,,,,,,,,,
हेमचन्द्र - औ परमेश बाबू । नाटक मे ई सब बात घुसेबए त’ कोना काज चलत। ठीक छैक हम देखैत छी ,,,,,,,,,
(हेम चन्द जी जाइत छथि आ प्रकाश मद्ध्रिम होइत अछि। )
अंक - प्रथम
दृश्य - द्वितीय

(राम प्रवेश क’ घर ।दीवाल पर तुलसी, कबीर, मार्क्स, नागार्जुन क’ फोटो ।किछु राजनीतिक दल क’ पोस्टर सेहो एक टा कोन मे दू टा लाठी । जमीन पर दरी बिछाओल । राम प्रवेश आ हुनकर दू टा साथी हरमुनिया ढोलक झालि क’ संग उपस्थित ।कोनो धुन बाजि रहल अछि।
(हेमचन्द्र क’ प्रवेश)
हेमचन्द्र - राम प्रवेश जी छी अओ? बड्ड टॉसगर धुन बाजि रहल अछि ।
राम प्रवेश -- आबू कक्का जी बैसू ।
ओ नथिया वाली क प्रेम में
नाक हमर कटि गेल...........
(हेम चन्द्र जी । किछु कह’ चाहैत छथि )
हेमचन्द्र - राम प्रवेश जी आइए नाटक अछि ।
हम त’ बुझलहुॅ अहॉ संवाद यादि करति होएब ।
रामप्रवेश - आब त’ दस वरिस भ’ गेल इएह सब क’ रहल छी आबहु संवादे रटाएब ?
हेमचन्द्र - संवाद रटनए कोनो कुकार्य त’ नहि अछि ।
रामप्रवेश - हम सब वरिष्ठ कलाकार भेलहुॅ। आब एते अनुभव त’ अछिए जे कतहु अटकब त मोनो सॅ जोड़ि़ सकैत छी ।
(पुनः गाबैत छथि
‘‘हमर नेता जी
बड़ निम्मन लगै छथि
कुरता आ टोपी
सुरेबगर लगै अछि ‘‘)
हेमचन्द्र अपन मूड़ी नीचा केने बैसल छथि
रामप्रवेश - बात ई जे चुनाव नजदीक आबि गेल ।एहि बेर हम विधायक जी क’ तरफ सॅ प्रचार करब ।बूझू जे हम, महेन्द , देवनाथ आ बौआझा मतलब कि पूरा मंडली ।
(प्रसन्न मुद्रा़ मे गरदनि हिला हिला क’ बाजि रहल छथि )
‘‘हमर नेता देवदूत
ओ छथि मिथिला के पूत
हमर नेता के ़़़़़़.............
जिताबियौ ओ लोक सब
जिताबियौ ओ लोक सब ........
(हेमचन्द्र क’ चेहरा पर क्रोध आबि रहल छन्हि)
हेमचन्द्र - राम प्रवेश अहॉ हमरा बेइज्जत क’ रहल छी । हम अहॅा क’ दुआरि पर दू घंटा सॅ बैसल छी आ अहॅा तेसरे राग अलापने छी ।राति मे नाटक कोना हेतए एकर अहॅा के कोनो चिन्ता नहि ।
रामप्रवेश - हम चिन्ता क’ के कि करब ?जखन चिन्ता क’ के हम अप्पन ईच्छा पूरा नहि क’ सकइ छी त’ दोसर के चिन्ता क’ के कि द’ देबए ।
हेमचन्द्र - कि मतलब ?
रामप्रवेश क’ साथी - गायक जी असंतुष्ट छथि । हिनका वौसिओन्ह ।
रामप्रवेश - अहॅा चुप रहू । देखियौ कक्का जी हमर व्यक्तिगत समस्या त’ व्यक्तिगते अछि ,ओहि क’ लेल हमरा ककरो सॅ शिकायत किएक रहत? मुदा, जहॉ तक नाटक क’ बात छैक ,,,,, (दू सेकेण्ड चुप भ’ के बाजैत छथि ) अहॉ त’ जानैत छी जे हमर की स्तर अछि आ’ परमेश क’ की ? ई गलती त देवता सॅ भेलेन्ह जे ओ हमरा बीकू जाति मे जन्म नहि देलाह ।धर्म आ समाज त’ पहिले गीलि गेलाह आब साहित्य आ नाटको के गीलि के बैसताह । सब प्रमुख भूमिका त’ बीकूए सब डकारि रहल अछि।

प्रथम अंक
दृश्य - तीन
(हेमचन्द्र क’ घर, विद्यापति,शेक्सपीयर ,कालिदास ,जयशंकर प्रसाद, नार्गाजुन क’ फोटो दीवाल पर टांगल अछि । दीवाले पर किछु विशिष्ट पोशाक,मुखौटा सेहो राखल अछि । हेमचन्द्र माथ पर हाथ राखि बैसल छथि )
धीरेन्द्र क प्रवेश ।
धीरेन्द्र - कक्का गोड़ लगैत छी,बीस किलो राहड़ि क दालि भेजि देलहुॅ । खबास आनलक कि नहि?
हेमचन्द्र -- दालि के मॉगने छल ?
धीरेन्द्र -- मॅगबा क की प्रयोजन ?हमर घर अहॉ क’ घर ।
हेमचन्द्र -- घर त’ ठामे अछि । सत सत बाजू राहड़ि भेजलहुॅ ,कोनो रोल करवा क’ अछि की?
धीरेन्द्र -- हें हे ह...... देतिअई त’ नीके छल ।
हेमचन्द्र - कोन रोल चाहैत छी ?
धीरेन्द्र -- हें हे हें विद्यापति बला रहतए रे तखन........
हेमचन्द्र -- लाज धरम उठा क’ पी गेलऊॅ? अपन राहड़ि अपने संग राखू आ भागू एहि ठाम सॅ उठू़..... उठू ।
धीरेन्द्र -- (कनैत)- कक्का जी गोड़ पकड़ैत छी । एक बेर विद्यापति बला रोल द दिअओ । अहॉ क पुतहू के सेहो कहि देलिएन्ह। दरभंगा वाली त’ आइ राति मे देखवा क’ लेल अओतीह ।
हेमचन्द्र -- कनिया के कहि देलिएन्ह ,,,,,से ककरो सॅ पुछलिअइ?
धीरेन्द्र --रातु क’ बात छलइ यौ कक्का जी । आब जे नहि देबइ रोल त नाक कटि जायत । (नेपथ्य सॅ महिला आवाज - हेमचन्द्र जी क पत्नी मानिनि)
मानिनि -- धीरेन्द्र बाबू छथि । हुनका रोकब, एकटा सूइया लेवा क’ अछि ।
हेमचन्द्र --कोन सूइया क’ बात करैत छथि (धीरैन्द्र सॅ)
धीरेन्द्र -- काल्हि माथ मे दर्द छलन्हि । एकटा सूइया त काल्हिए द’ देने छलियइ दोसर आइ देबइ ।
हेमचन्द्र -- ई सूया कहिया सॅ द’ रहल छी ।
धीरेन्द्र -- एक हपता भ’ गेल । काकीए सॅ बोहिनी कएलहुॅ । दिन मे दू-तीन टा सूइया ककरो ने ककरो जरुरे घोपि दैत छिअइ।
हेमचन्द्र -- ( धीरेन्द्र के डेनियाबैत )
हमरा कनिया क तू सूइया भोकबहक त’ तोरा हम भाला भोकि देब’ । चल’ निकल’ एहि ठाम सॅ । (नेपथ्य सॅ - हेमचन्द जी छी अओ)
हेमचन्द्र -- आबू - आबू महेश जी ।
महेश -- नाटक क’ व्यवस्था त’ सब भ’ गेल होयत ।
हेमचन्द्र -- औखन तक किछु नहि भेल अछि आ असंभव लागि रहल अछि जे किछु होयत ।
महेश -- चलू बाहर चलू सब व्यवस्था भ’ जेतइ ।
(दूनू प्रस्थान करैत छथि, रस्ता मे दिगम्बर सॅ भेंट भ’ जाइत छैक)
हेमचन्द्र -- दिगम्बर जी हम आदमी के भेजि रहल छी तीन - चारि टा चौकी भेजि देबइ ।
दिगम्बर - एहि बेर चौकी नहि देब ।हमरा ओहि ठाम पाहुन आबि रहल छथि ।
हेमचन्द्र -- पाहुन त’ चारि दिन बाद अओताह।
दिगम्बर - तैयो एहि बेर नहि देब ।
(पुनः आगू बढैत छटि)
महेश - ई बिसार जति क’ आदमी सभ नाटक कि बूझत असभ्य !नीच !देखियौ कोनो बीकू जाति क’ आदमी भेटत आ काज भ’ जायत ।देखियौ पीताम्बर कक्का आबि रहल छथि (पीताम्बर सॅ ) कक्का सुनब..... ई - तीन टा छौरा -छपाठी जा रहल अछि चौकी द’ देबए ।
पीताम्बर - अओ बाबू । सभ चीज त’ बड्ड नीक मुदा चौकी टूिट जायत तखन ? । एहने नाटक करैत छी अहॉ सब । सब पात्र दुर्बासा आ विश्वामित्र जॅका कूदैत रहैत अछि । पछिला बेर चौकी क’ पच्चड़ टूटि गेल छल।
( हेमचन्द्र आ महेश प्रस्थान करैत छथि)
हेमचन्द्र -- देखलिअइ बीकू जाति क’ क्रिया कर्म ।
चौकी नहि देताह । पच्चड़ टूटि गेलेन्ह... । राखह चौकी अपना,,,,, ओहि में ।
महेश -- लागैत अछि एहि बेर जात्रा खराब भ’ गेल । सुनु ने ,,,,, चलू हनुमान जी क’ प्रणाम क’ के पहिने चन्दा वला काज शुरु क’ दैत छी ।
( दूनू प्रस्थान करैत छथि )
अंक - प्रथम
दृश्य चारि

मन्दिर क’ प्रॉगन। ओहि मे पॉच सात आदमी बैसि के तास खेला रहल छथि । चारि टा मुख्य खिलाड़ी आ प्रत्येक के पाछू मे तीन तीन आ चारि चारि टा आदमी बैसल अछि । भदेश एकता पत्ती दैत अछि एहि पर दू टा जोड़ सॅ हॅसि पड़ैत आछि )
भदेश - नहि नहि हम ई नहि दिय’ चाहैत छलहूॅ ,ई गलती सॅ गिर पड़ल ।
कलेश -- अहॅा बड्ड चालू छी । बीबी लागि गेल त’ गलती सॅ गिरि पड़ल ।(कुद्ध भ’ के ) एना पत्ता उठाएब त हाथ तोडि देब।
भदेश -- रौ बहि !चुप रह, काल्हि तीन तीन बेर बीबी लगेने छलियउ।यादि छओ कि नहि ,आई फेर लगेबओ।
‘बीबी को लगाया जाएगा’ ।(सस्वर)
कलेश -- ‘फॅासी पर चढाया जाएगा’ । (सस्वर )
भदेस-- बीबी को लगाया जाएगा ।
हेमचन्द्र -- कि अओ बाबू सब । एना जे एक दोसर बीबी लगबैत रहबए त’ शेष काज कोना हेतए।
(कलेश भदेस क’ दिसि ताकैत छथि,दुनू बेशर्म जॅका मुसकिया दैत छैक )
कलेश -- अओ भदेस जी ताबत एक बेर चूने-तमाकू चल दिअओ । हेमचन्द्र जी सेहो अएलाह, कनेक हिनको बात सुनि लेल जाओ ।
महेश - आई नाटक अछि । आ बात ई जे रुपया के व्यवस्था एकदमे नहि अछि से हमसब सोचलहूॅ जे गाम सॅ किछु चन्दा चुटकी भ जाए ।
भदेश -- एखन त हमसब एतहि छी ।
खेल बड्ड क्रिटिकल स्टेज मे अछि । औखन नहि जाएब। कलेश जी के पानि छोड़एवा क’ अछि । सॉझ मे अहॉ सॅ भेट क’ लेब ।
कलेश - ई कि पनि छोड़एताह? । औखन त’ एके बेर लगेलिएन्ह ,,,,,,,,,,,बेस अहॉ हमरो साथी द’ दिअओ । नाटक क’ बाद हम मिलि लेब ।
हेमचन्द्र -- ठीक छैक अहॉ सॅ हम बाद मे ल’ लेब मुदा आओर व्यवस्था सब कोना हेतए । आई छोडू तास-वास । आउ चलू मंचे क’ पास ।
कलेस - हमसब सॉझ मे ओहि ठाम पहुॅच जायब । अॅहा सब चलै-चलू। ( ठोर मे तम्बाकू राखैत छी ) ( हेमचन्द्र आ महेश विदा होइत छथि । रास्ता मे एकटा शराबी - सुदर्शन सॅ भेंट होइत अछि, सुदर्शन लट पटा क बाजि रहल अछि।
सुदर्शन -- हयौ हेमचन्द्र बाबू । चलि जाउ घर बैसू। आब के नाटक करत आ के नाटक देखत । जाउ चलि जाउ .......।सभ अपन अपन काज मे मगन अछि आ अहॉ नाटक लेल फिफिया रहल छी । जाउ चलि जाऊ।
महेश - चलू कक्का जी चलू।
हेमचन्द्र -- ओ एकदम सत्त कहि रहल अछि ।
(हेमचन्द्र आ महेश प्रस्थान करैत छथि । किछु आगॉ बढला पर दू टा युवक मजीत आ मदन मिलैत अछि । मजीत मुॅह लटकेने एकात भ’ गेल अछि आ मदन नजदीक भ’ जाइत अछि।
मदन -- चचा बात ई जे मजीत कहलक जे हम रोल नही करब।
हेमचन्द्र -- किएक ने करत ओ रोल ?।
मदन -- ओ कहैत अछि जाबत एक बोतल क’ व्यवस्था नहि हेतइ । हमर कंसेंट्रेशन नहि बनत ।
हेमचन्द्र -- बनइ वा नहि बनए। बोतल त’ नहिए एतए।
महेश -- अरे रुकू चचा जी । सुनह मदन ,एमहर आब’ । मजीत कें कहि दहक जे सॉझ मे व्यवस्था भ जेतइ। (हेमचन्द्र ओहि ठाम सॅ प्रस्थन करैत छथि )
महेश - आर कि दिक्कत छैक बताबह ।
मदन -- यदि दू टा बाई जी भ’ जेतइ तखन आर बेसी आनन्द...... । बेसी मजा..... अहॉ बूझिते छी ।
महेश -- बाई जी आब एहिखन कत’ सॅ आएत ।
मदन -- अहॉ पैसा दिअ हम आ मजीत बखरी चलि जाएब । चारि घंटा क’ अन्दर दू टा टंच बाइ जी क’ व्यवस्था भ’ जायत।
महेश -- हमरा मून होइत अछि हमहॅू चली।
मदन -- एकदम चलू । आहूॅ अपन पसन्द बताएब । (महेश,मदन आ मजीत जाइत छथि )
हेमचन्द्र(स्वगत)-ई कोन नाटक भ’ रहल अछि हमरा गाम मे । एहि नाटक सॅ दूरे-दूर रहल जाए ।क्षमा करथु विद्यापति आ उगना । आब स्थिति हमरा नियंत्रण मे नहि अछि ।

अंक - द्वितीय
प्रथम दृश्य


(बखरी बजार क’ रौनक । दू टा पान वला घूमि घूमि पान बेचि रहल अछि तीन टा शराबी बैसि के कानि रहल अछि।)
दलाल -- कैसा चाहिए बताईए ? पंजाबी, सिन्धी ,बंगाली बिहारी, गुजराती ,यूपी वाली बताईए ,,,,बताईए ,,,,,,,शर्माइए नही ।
महेश -रौ बहि ई कि भ’ रहल छैक ?
हमरा त’ डर भ’ रहल अछि ।
मदना -- डरबा क’ कोन बात । हम सॅंग छी ने, हम एहि ठाम चारि साल सॅ आबि रहल छी ।
महेश -- वाह भतीजा वाह ।
दलाल -- अरे बताब’ भइ । शरम काहे लें हो जेहन पैसा ओहन मजा । फुल मजा ,फ्री मजा ।
मदन -- चलू ने देखैत छिऐक ।
महेश -- तू जाह । हम एतइ छि । हमरा आबि कॅे बताबह।
( मदन अन्दर जाइत अछि आ महेश अन्दर दिस कान आ ऑखि गड़इबा क प्रयास करैत छथि)
मदन -- आर केओ नहि अछि की?
दलाल -- अरे इस पीक टाइम में जो मिल रहा है बस बुक कर लीजिए और फिर हमारी जानों में क्या कमी है।
कमर देखिए....... देखिए
(बाहर ई सुनि महेश उछलि पडै़त अछि)
मदन -- अहॉ क’ नाम ?
नर्तकी प्रथम -- मेमामालिनी ।
(बाहर महेश खूब प्रसन्न होइत छवि )
मदन -- अहॉ क’ की नाम ?
नर्तकी द्वितीय -मेश्वर्या राय
(बाहर मे महेश उछलि पडैत अछि)
मदन -- अहॉ क
नर्तकी तृतीय-- नीना कुमारी ।
मदन - अच्छा हम बाहर जा रहल छी । पूछि के बताएब ।
दलाल -- सुन’ एडवांस द’ के बाहर निकल’ नहि त’फेर हमर दोष नहि ।
मदन -- ठीक छैक ई लिय’ ।
(मदन बाहर आवैत अछि )
महेश -- ओ सभ कत’ रूकि गेलीह।
मदन -- तैयार भ’ रहल छथि।
महेश - आर सभ ठीक ने ।
मदन-मतलब ?
महेश-मतलब ई जे -----(बजबा में लटपटाइत छथि )
मदन -- हॉ ठीके अछि । मुदा मेश्वर्या राय क’ ऑखि कने कमजोर छन्हि । मेमामालिनी के बच्चे मे लकवा मारि देलकन्हि, तेॅ ओ नाचि नहि पाबैत छथि ।
महेश -- आ नीना कुमारी ?
मदन -- हुनका लेल स्पेशल रुमाल चाही । ओ बात -बात मे कान’ लागैत छथि । कानैत - कानैत पोटा बह’ लागैत छैक ।
महेश-जखन ई नाचवे नहि करतीह,तखन ओहिठाम कथी ल’ जेतीह ।
दलाल- अरे भाई । एतना देखिएगा तब तो हो गया । हमसेे कोपरेट करिए हम भी आपसे कोपरेेट करेंगे । जो चाहिएगा हम भी पीछे नही हटेंगें ।
(तीनू नर्तकी: एकटा हारमोनियम वला , एकटा ढोलक बला, बडकी पेटी क साथ बाहर निकलैत अछि)
मेमामालिनी - ( महेश के कनखी मारैत )
न’ न’ नियौ।(नकियाबैत) सब का समान उठा लीजिए। (तीनू ग्रमीण तीनू नर्तकी क समान उठबैत अछि )

अंक -द्वितीय
दृश्य-द्वितीय

उद्घोषक -- आइ ‘चीनी क लड्ड’ू नाटक मंचित होमए वला छल। आइ लड्डू रसगुल्ला में बदलि गेल अछि । आशा अछि रस कनि कनि अहॉ सब के मुॅह मे जायत ।
मदन - कि नाटक भैरवी गीत सॅ शूरु कएल जाए?
मजीत -- अरे आइ त’ तीन - तीन टा भैरवी आइल छथि । आइ भैरवी गीत क’ कोन काज ।
महेश -- एना करबहक त’ गाम क’ लोक सब बिगड़ि जएथुन्ह । तखन फेर चन्दा चुटकी कोना हेतए ?
मदन -- ठीक छैक । धीरेन्द्र सॅ कहियौ जल्दी सॅ ओ भैरवी गीत समाप्त करए ।
( धीरेन्द्र गावैत छथि । भैरवी गीत क’ बाद मेमामालिनी मेश्वर्या राय आ नीना कुमारी आबैत छथि आ बेतरतीब नाच आ गाना गाब’ लागैत छथि ।नाच मे अश्लील मुद्रा क’ खास विनियोग ।)
हेमचन्द्र -- दैखियौ त’ महेश हमरा गाम मे केहन नर्तकी के उठा आनलक ।ताल -मात्रा सॅ एकरा कहियो भेंट नहि छैक ।
कलहेस -- एना नहि कहियौ हेमचन्द्र जी । मेमामालिनी क’ ऑखि क’ चंचलता बेजोड़ अछि ।
भदेस -- मेश्वर्या राय हमरा ह्रदय मे विक्षोभ उत्पन्न क’ रहल छथि। लागैत अछि जे ओ हमरे लेल नाचि रहल छथि, ओ हमरा बजा रहल छथि ।
मदन -- कि कक्का ? ठीक रहल नें ,खूब डोलि रहल छी ।
भदेस -- हॅ बौआ मस्त क देलहुॅ।
मदन -- किछू ईनामो - बकसीस भ’ जाइ।
भदेस -- ई लिय’ एक सौ एक ।
( हेमचन्द्र तमतमा क’ उठि जाइत छथि )
डदृघोषक -
एहन कुशल नृत्यांगना क नृत्य देखि कलेस जी भाव - विभोर भ’ गेल छथि आ भदेस जी आह्लाद सॅ बेहोश । बेहोशी सॅ पहिलेे ओ एक सौ एक टका द’ गेल छलाह । कलेस जी आ भदेस जी के नृत्यबोध क’ अभिनंदन - बन्दन ।
रंजिश करो जो हमसे भी
गुलाब को ना मायूस करो
हम उठते गिरते रहते हैं
ये दो दिन में मुरझाते हैैं।
(दर्शक में से एकटा उठि के नीना कुमारी क’ उठा के भाग’ चाहैत अछि ।
म्ंाच पर अव्यवस्था क’ माहौल ।
उद्घोषक -- दर्शक क’ उत्साह उफान पर अछि आ दर्शक सेंट परसेंट प्रतिक्रिया द’ रहल छथि । अर्थ ई जे गुलाब के मायूस हेबा क जरुरी नहि छैक । मीना कुमारी कें मंच पर सॅ बाहर ल’जाए वला उत्साही दर्शक क’ पहचान भ’ गेल अछि । घबराउ जूनि, नाटक एहिना चलति रहत । )
दलाल उद्धोषक सॅ - देखिए सर हमको कोपरेट करिए ,हम भी पूरा - पूरा करेंगें । आपको जो चाहिए हम पूरा देंगें ।
उद्घोषक -- हमरा अहॉ सॅ किछु नहि चाही । अहॉ अपन काज करु आ हम त कए रहल छी ।
(तावते मंच दिस तीन टा मोंट - डॉट युवक क प्रवेश । पीके ,खाके, जाके गाम क’ तीन टा उद्दण्ड युवक)
मजीत -- कि माई ?
पी के -- गॉव में ई नया -नया बात विचार सभ शुरु भ’ गेल आ हमरा जानकाारिये नहि ।
मजीत-- भाई अचानक वयवस्था भ’ गेल ।
खाके -- बन्द कर ई ताम -झाम आ उतार हरमजादी सब के। गॉव के रण्डी -खाना बना के राखि देलक।
मजीत -- सुनु जाके भाई हिनका सभ के ल जाउ।काल्हि सब बात - व्यवस्था भ’ जेतई।हिनका सब के दू दिन राखल जेतइ (तीनू कान मे किछु बतियाइत अछि)
(ओमहर सॅ धीरेन्द्र क’ प्रवेश)
धीरेन्द्र--महेश जी वाह । बड्ड नीक व्यवस्था ।
हेमचन्द्र जी की करताह वयवस्था । अहॉ क व्यवस्था मे जे झंकार अछि से पहिले एहि गॉव क मंच पर कहियो नहि रहल।
महेश-- अहॉ कोन रोल करब ?
धीरेन्द्र -- जे खूब टॉसगर होइ सएह देब । अहॉ क’ भाबहु सेहो देख’ आएल छथि । आ दू किलो घी हम काल्हि भेज देब ।
उद्धोषक -- आब मंच पर रंग चेतना मंच क प्रसिद्ध गायक हरिशचन्द्र जी आबि रहल छथि ।
(हरिशचन्द्र जी गीत गाबि रहल छथि । हुनका सॅ मनीत ,महेश आ मदन धक्का-मुक्की करैत छथि । )
अंक- द्वितीय
दृश्य-तृतीय

( नर्तकी सब के ठहराबए वला घर । अव्यवस्थित बिछावन सब । बिछावने पर हरमुनिया ढोलक राखल अछि । तीनू नर्तकी निकास क’ लेल जेबा क’ तैयार छथि । हुनका संग लोटा ल’के जेबा क’ लेल तीनू किशोर मे संघर्ष होइत छैक)
अग्रेश -- हम पहिने लोटा पकड़लहुॅ तें हम ल’ जायब ।
धरमेश -- तीनू के हमरे पपा आनलाह तें हमही ल’ जायब ।
रत्नेश -- हमर बाबू सभ सॅ बेसी चन्दा देने छथि तें हमर सोलिड हक ।
दलाल - देखिये भाइयों आप लोग लड़िए मत एक - एक ठो तीनो के साथ चले जाइए । आखिर आप के मॉ के उमर की है तीनांे ।
तीनों एक साथ - कि बाजलें रे हरामखोर (दलाल दिसि झपटैत अछि )
तीनू नर्तकी तीनू किशोर क’ सामने आबि जाइत अछि आ गाल - केश पर हाथ दैत अछि । तीनू किशोर शांत भ जाइत छथि आ एक -एक टा लोटा उठा विदा भ’ जाइत छथि । ओहि ढाम महेश आवैत छथि आ व्यग्रता सॅ घूमि रहल छथि )
महेश -- कत’ चलि गेलीह।
( ओमहर सॅ मदन आ मजीत सेहो आवैत छथि ।)
महेश -- अरे मदन अहॉ कि कर’ आयल छी । अहॉ हमर भतीजा भेलहुॅ । जाउ एत सॅ । जखन हम छी त अहॉ क’ कोन काज ।
मदन -- अहॉ क दू-तीन बेर देखलहुॅ अछि भतीजा -भतीजा करति । जी सम्हारि क’ बाजू।
महेश -- अहॉ त व्यर्थे नाराज भ’ रहल छी रहल छी । अहॉ क बाबा हमर कक्का लागैत छथि ।
मंज्ीत - सुनु महेश जी ई कक्का -भतीजा फरियाएब: जखन मदन कें वियाह हेतेन्ह ।औखन हम सब पार्टनर छी , तीन - चारि दिन शांते रहू । एखन हम सभ एक छी ।
मदन -- बूझू त बखरी में कंठ सॅ बकार नहि खुलैत छलन्हि एत’ कक्का बनि बैसल छथि ।
मजीत -- अहुॅ चुप रहू मदन । ठीक छैक अहॉ केेेेेे जे बतियेबा क’ अछि से बतिया लिय’ महेश जी । हमसब दस मिनट बाद आबैत छी ।
(तीनू नर्तकी आ तीनू किशोर आवैत छथि । महेश जी मुसकियाबैत छथि । )
महेश -- ठीक रहलए ने । कोनो दिक नहि ने मेल । बौआ सब अहॉ सब जाउ ।
धरमेश-- आ अहॉ कि करब ?
महेश --हमरा एकटा काज अछि ।
तीनू -- ठीक छैक अहॉ काज करु, हम बाद मे करब ।,,,,,,नहि नहि बाद मे आयब ।
( तीनू जाइत छथि )
महेश -- सुनू हेमा जी । अहॉ के हमही आनने छी । अगिलो बेर आनब । ई मदनबा आ मजीत क बात मे नहि आयब ।,,,,, गॉव मे सबसे बेसी जमीन हमरे......तीन टा हाथी आ बारह टा घोड़ा अलगे.....
( नेपथ्य सॅ - रे महेशबा, रे महेशबा केवार खोल । पीके,खाके आ जाके क’ प्रवेश । तीनहूॅ आबिते महेश पर टूटि पड़ैत अछि,नर्तकी भगबा क’ प्रयास करैत अछि ) ।
खाके - हमरा सॅ बिना पूछने तू एहि ठाम किएक बैसल छें ।
पीके -- आजुक व्यवस्था जल्दी कर ।
जाके -- जल्दी सॅ भाग नहि त’ हड्डी तोडि देबओ ।
महेश -- भाई बिसरि गेलियइ ,हमहूॅ आही संगे बैद्यनाथपुर हाईस्कूल में पढ़ने छलियइ एक बेर ,,,,
खाके -- चुप बेहूदा । बात सॅ तौं नहि मानवें ।
मेमामालिनी -- अच्छा महेश जी आप बाद में आइएगा।
अंक-तृतीय
प्रथम -दृश्य
(राम प्रवेश क’ घर। ओहि ठाम हरिश्चन्द्र सेहो वैसल छथि )
राम प्रवेश - जखन बूझले छल जे लुच्चा - लफंगा सब रण्डी नचा रहल अछि तखन अहॉ क जेबा क चाही ?
हरिश्चन्द्र -- अपन गॉव छल सोचलहुॅ जे हमरा के बजाओत। अपन घर छी ,अपन मंच छी ।
राम प्रवेश - किएक ने बिसार, हिमार, बकबल, समरल सब जाति क’ संघ बना के एकटा संस्था बनाओल जाए ।
हरिश्चन्द्र - संस्था कि करत ?
राम प्रवेष -- ओ सब दुर्गा पुजा करैत छथि, किएक ने हमसब काली पूजा करी ।
हरिश्चन्द्र -- बीकू आ छीकू के एकदम छॉटि देबइ ?
रामप्रवेश -- एखन बजेबइ ;तैयो नहि आयत
( नेपथ्य सॅ -- रामप्रवेश चा छी यौ )
राम प्रवेश -- हॅ हॅ मनोज आवह ।
मनोज -- गोड़ लागैत छी । पंजाब जा रहल छी, सोचलहुॅ जें भेट करैत जाउ । आब
माए - बाबू कें देखनिहार आहीं सब ने छी
राम प्रवेश --
ग्राम सॅ जा रहल छी । जाउ । जे धरती पेट भरए ओएह मॉ थिक । हमसब त’ सौचैत रही एकता संस्था बनबी जाहि में अहॉ क’ प्रमुख भूमिका रहए । मुदा अहॉ त जा रहल छी ।
( मनोज प्रस्थान करैत अछि )
राम प्रवेश -- जनार क’ भजन आ कठघोड़वा नाच मे मनोजवा क’ जोड़क कलाकार एहि परोपट्टा मे नहि छैक । मनोज क’ बाद रामेसर क’ स्थान छैक ।
हरिचन्द्र -- रामेसर सेहो जा रहल छवि ।
रामप्रवेश -- हे मॉ मिथिले । अपन धिया- पुता के कहिया घरि बिलमाबैत रहब ।
हरिश्चन्द्र -- समस्या त’ अछिए ।
( चारि - पॉच टा युवक क’ लाठी डंडा क’ साथ प्रवेश )
राम प्रवेश -- कि हौ मुक्खन , कथी क’ तैयारी छैक ?
मुक्खन -- हमसब चाहैत छी जे अपन सब जाति मिलि के एकटा यूनियन बनाबी । हमसब काली पूजा करी जे हमरा काली जी दिसि देखत, ओकर ऑखि निकाल लेवए । राम प्रवेश -- हओ मुक्खन एखन ऑखि - कान निकलवा क’ जरुरी नहि छैक ।
(अन्य युवक सब मुक्खन जिन्दाबाद क’ नारा लगब’ लागैत अछि । रामप्रवेश अपन मॅुह नीचा क लैत छथि)
मुक्खन -- दीपावली दिन हमसब शोले नाटक करब । हम पात्र क’ चुनाव क’ रहल छी ।
हरिश्चन्द्र -- शोले कोने नाटक भेल । विद्यापति नाटक राखू ।
मुक्खन -- विद्यापति खेलत बीकू सब । विद्यापति के हमसब नहि जानी ।
अंक-तृतीय
दृश्य -द्वितीय
( मुक्खन क’ घर ओहि ठाम पात्र - परिचय आ रिहर्सल भ रहल अछि )
मुक्खन -- गब्बर सिह क’ रोल हिमेश तोरा दैत छियओ ।
रमेश -- हॅ हॅ बकवल जाति क’ लोक सब आब गबबर क’ रोल करत ।
हिमेश-- मॅुह सम्हारि क बाज । कि बिसारि जाति क औरत सब कलाकारे जनमाबैत अछि । ( रमेश आ हिमेश गुत्थमगुत्थी भ’ जाइत छथि । बड्ड मुश्किल सॅ हुनका हटाओल जाइत अछि )
परेश -- मुक्खन जी कक्का एकता चिट्ठी देने छथि । ( मुक्खन चिट्ठी पढ़ि रहल अछि )
मुक्खन -- तों कतें चन्दा देबहक ?
परेश -- बाबू एक सौ एकावन देने छथि ।
मुक्खन -- तौं यदि दू सौ एक देबहक त’ हम तोरे गब्बर क’ रोल देब’ । ( धीरे सॅ कान मे )
परेश -- ठीक छैक हम द’ देब ।
मुक्खन -- रे मतरु , बसन्ती क’ रोल तू कर ।
रमेश -- हॅ हॅ हिमार जति क छोरा सब रण्डी क’ रोल में बड फिट बैसैत दैक ।
मतरु -- रइ रमेशबा मुॅह सम्हारि क’ बाज तूॅ त’ अपने गॉया छें । थियेटर क’ हरमुनिया मास्टर तोरा राखने रहओ । सब जनैत छैक ........
( रमेश आ मतरु हाथम - हाथा क’ रहल छथि तखने धीरेन्द्र क’ प्रवेश )
धीरेन्द्र -- बीस किलो राहड़ि क’ दालि नेने आयल छी । नीचा मे राखल अछि ( मुक्खन क कान मे )
मुक्खन -- कोन रोल लेब ?।
धीरेन्द्र -- हम जय बनब ।
मुक्खन -- जाउ जय बनू आ विजय करु ।
( एकटा और व्यक्ति प्रवेश करैत छथि ।)
ओ मुक्खन के ईशारा सॅ बजबैत अछि ।
समरेश -- कक्का कहलनि जे ठाकुर क’ रोल हमरा दिय’ । एकटा चिट्ठी भेजने छथि ।
( मुक्खन चिट्ठी ल’ के पढ’ लागैत छथि )
प्रिय मुक्खन !
शुभाशीष । समरेश के भेजि रहल छी । आगॉ चुनाव आबि रहल अछि ओहि मे अहॉ क लेल समरेश खूब काज करताह । सब छीकू जाति क’ बोट अहीं के मिलत । छीकू हजारों साल सॅ युद्वप्रिय जाति रहल अछि । आशा अछि समरेश के व्यक्तित्व क’ अनुकूल रोल अहॉ देबइ । हमरा विचार सॅ ओ ठाकुर क’ रोल में फिट रहत ।
अहॉ कें
धन्येश
म्ुाक्खन -- ठीक अछि समरेश बाबू अहॉ के हम ठाकुर क’ रोल देलहॅु ।
(अन्य कलाकार सॅ) -- ठीक छैक रिहर्सल कएल जाओ ।
( पहिने ठाकुर आ गब्बर आबैत छथि )
अपन - अपन संवाद यादि क’ लिय’
दूनू -- संवाद त’ यादे अछि ।
गब्बर -- हम बूझिते रही ,तों जरूर एबही.......तू कि तोहर बापो अइतओ ।
ठाकुर-तू बूझैत छें ने हम किएक आएल छी,हम तोरा बाप सॅ भेंट करेबओ ।
गब्बर -- फड़फड़ा जूनि ठाकुर । सब फरफरी एके लाति मे तोरा निकालि देबओ ।
ठाकुर -- रौ बहि ! समरल जाति क’ कलाकार हमर फरफरी निकालत ।
(दूनू एक - दोसर कें पकड़ि लैत छैक आ मुक्कम - मुक्की शुरु भ’ जाइत छैक )
मुख्खन -- कि भेल समरेश ?एना किस्क किएक क्रोध में आबि गेलहुॅ ।
समरेश -- ई हमरा स्कुले सॅ परेशान क’ रहल अछि । स्कूल मे कहैत छल फड़फड़ा जूनि ठाकुर ।
मुख्खन -- ठीक छैक रिहर्सल क’ कोनो काज नहि । हम पर्दा क’ पाछू सॅ बाजब आ अहॉ सब ओकर नकल करब ।
अंक -तृतीय
दृश्य- तृतीय
( हेमचन्द्र क’ घर । ओहि ठाम परमेश वैसल छथि । तखने मदन आ महेश प्रवेश करैत छथि )
महेश -- कक्का गोड़ लगैत छी ।
हेमचन्द्र -- भगवान ़अॅहा के सदबुद्वि देहि ।
महेश -- कक्का सुनलियई कि नइ , काल्हि सब ओ सब मिलि के शोले खेलि रहल अछि ।
परमेश -- त’ कोन अनर्थ भेल ?
मदन -- बूझू त’ एहि विद्वान क’ गाम मे जकरा जे मून होइत छैक से क’ रहल अछि ।
हेमचन्द्र -- अहॉ क’ रण्डी सब अनर्थ नइ केने छल ?
महेश -- मुदा नाटक त’ विद्यापति भेल छलए ने । ओ त’ बीच बीच में कनेक मोन बहलेवा क’ लेल छल ।
परमेश -- दोसर लोक सब मून बहला रहल अछि त’ अहॅा किएक परेशान छी ( एहि बीच में खाके ,पीक,े जाके आवैत छथि )
खाके -- अहॉ सब चूड़ी पहिरने रहू ,मुदा हम ई नहि होमए देबए ।
परमेश -- कि करबए अहॉ ?
जेके -- हम मंच के रक्त रंजित क देबए ।
हेमचन्द्र -- जकरा अहॉ रक्त रंजित करबए से अहॉ के छोड़त ?
जाके -- चलू भाइ ओतइ चलू । देखैत छियइ के माई क’ लाल स्टेज गाड़ई क लेल आवैत अछि
( कलेश आ भदेस प्रवेश करैत छथि )
कलेश -- बूझलहूॅ हेमचन्द्र बाबू ई बकवल सब भरि राति नाच करत आ सेर - सेर भरि मूतत।
भदेश -- बूझू जे जखन जखन पूवरिया हवा बहत ने, ई भरि अगहन तक महकैत रहत । हमरो इएह विचार जे नाटक नहि होई ।
प्रमेश -- अहॉ क’ कि विचार जे कसकव्ता सॅ रण्ड़ी आवए?
कलेस -- हॅ नजदीको सॅ काज चलत ।
हेमचन्द्र -- चुप रहू । बारहो महीना ताश खेलि के पखेरी - पसेरी भरि भूतैत छी केओ टोकलक अहॉ के ?
भदेश -- हओ ! कलेश जी चलू ई सब हारि मानि लेलाह । चलू जे भ’ रहल छैक ओहिए मे किछु जुगाड़ पानी कएल जाए।
(कनि दूर हटला क’ बाद कलेश -भदेश बतियाति छैक )
कलेश -- चलू ने मुक्खने के कहबए ।
जे करब से कर , मुदा आन तीन-चारि टा भगजोगनी के ।
भदेेश -- आर की ?
कम सॅ कम बखरी वला त’ निश्चिते आबए क’ चाही ।
अन्हरी ,बहिरी सब चलतय ।जतेक चन्दा चुटकी हेतए हम सब द’ देब ।
अंक -तृतीय
दृश्य-चारि
रामप्रवेश क’ घर । अकेले मे किछु गुनगुना रहल छथि ।
डूबल भॅवर मे नैया
सम्हारु मॉ
केओ नजर नहि आबए
सम्हारु मॉ
राति विकट अछि
बाट न सूझए
आबू दीप देखाबू
सम्हारु मॉ,,,,,,,,,,,
( हेमचन्द्रक’ प्रवेश )
हेमचन्द्र - के सम्हारताह । जगत जननी त’ मिथिला के बिसरि गेलखिन्ह । गरीबी त’ पहिनहु छल मुदा एहन सांस्कृतिक हैजा कहियो नहि फैलल ।
रामप्रवेश -- कक्का क्षमा करु । ककरा पता छल जे कनि कनि टा बात एते विषबेल बनत ।
हेमचन्द्र अहॉ जागि गेलहुॅ, तखन हमरा के रोकत ?
रामप्रवेश -- कक्का आब जे आदेश देबए से हम करब ।
(परमेश प्रवेश करैत छथि )
परमेश -- रामप्रवेश छी अओ ?
रामप्रवेश ‘-- परमेश आबह । आइ चारि साल बाद तों हमरा दलान पर अइलह। तोरा देखि हम फेर जबान भ’ गेलहुॅ ।
परमेश -- पुरनका बात सब बिसरु । हमरो ध्यान नहि रहल आ अमुख्य चीज मुख्य बनइत चलि गेल
हेमचन्द्र -- छोड़ू पछिला बात सब । आब ई बाजू जे कोन नाटक खेलल जाइ ।
रामप्रवेश -- ‘‘उदयनाचार्य’’ नाटक खेलल जाइ ।
हेमचन्द्र -- अहॉ कोन रोल लेब ।
रामप्रवेश -- हमरा जे देब से हम करब , ओना आचार्य क’ भूमिका मे परमेश फिट छथि, हमरा सारंग बला रोल द’ दिय । बड़ तेजस्वी बौद्ध भिक्षु अछि ।
परमेश -- आब हमरो रोल क मोह नहि अछि । सब सॅ बेसी महत्वपूर्ण अछि ओकरा जीनए ।
(रामप्रवेश उठि के परमेश के गला लगबैत छथि हेमचन्द्र उठि के दूनू मे मिलि जाइत छथि । ओमहर धीरेन्द्र हॉफैत आबैत छथि ।)
धीरेन्द्र -- कक्का - कक्का मुक्खन आ खाके मे जबरदस्त मारिपीट भ रहल अछि ।
हेमचन्द्र-- होमए दियओ ।
रामप्रवेश -- मर’ दियओ सब के ।
परमेश-- धीरेन्द्र जी जनचेतना मंच फेरि जीवित भ गेल अछि । खूब तैयारी करु ।
धीरेन्द्र -- हमरो तैयारी पूरा अछि । एहि बेर राहडि खूब फरल अछि । एक मून राहड़ि भेज देब ।
(तीनू हॅसि दैत छथि । रामप्रवेश गीत गावैत छथि आ प्रकाश धीरे धीरे क्षीण होइत अछि।)(साभार विदेह)

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