दुर्गानन्द मण्डल
नाटक बेटीक अपमानपर एक नजरि
मैथिली साहित्यक एकटा विधा नाटक अछि, जे विधा सभ दिन रौदियाहे सन रहल। गिनल-चुनल नाटककारक किछु नाटक जे आंगुरपर गनल जा सकैत अछि, दोगा-दोगी कोनो पुस्तकालयक शोभा मात्र बढ़ौलक। एकटा समए छल जइमे नाटककार जे नाटक लिखलनि तइमे वाक्-पटुता नै रहबाक कारणे वा शुद्ध-अशुद्ध उच्चारण नै भेने वा समुचित वाद-संवादक संग समदियाक अभाव सभ दिन देखल गेल। चूँकि ओना हम जत्ते-जे ढकि ली मुदा एकटा सत्यकेँ स्वीकार करए पड़त जे हम मैथिल छी। हमरा लोकनिक मातृभाषा मैथिली भेल। मुदा माएकेँ माँ कहैत कनेको लाज विचार नै होइए। जेना कि आँखिसँ लाजक पानि खसि पड़ल। तात्पर्य, मैथिल होइतो दोसर भाषाक दासताक शिकार भेल छी आ ओकर भोग भोगि रहल छी, बुझाइत अछि जेना मैथिलीक लेल एेठामक माइटिये उसाह भऽ गेल अछि, जइपर गदपुरनि मात्र उपजि सकैए। मुदा ओहेन उसाह माटिपर “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी” लिखि नाटकार बेचन ठाकुर, चनौरागंज, मधुबनी, मैथिली नाट्य जगतमे एकर सफल मंचन कऽ महावीरी झंडा गाड़ि समस्त मैथिली, मैथिल आ मिथिलाक मान-सानकेँ मात्र बढ़ेबे टा नै कलनि अपितु चारि-चाँद लगा देलनि। ऐ लेल ठाकुर जीकेँ समस्त मैथिल भाषी आ नाट्य प्रेमीक तरफसँ हम कोटिश: धन्यैवाद दैत अपार हर्ष महसूस कऽ रहल छी। हमरा विश्वास अछि जे अपने ई दुनू रचना जेकर मंचन अपने अपनहि कोचिंग संस्थानक छात्र-छात्रा लोकनिसँ करा, ई साबित कऽ देलौं जे मिथिलाक माटिमे अखनो ओतेक शक्ति बचल अछि जइपर केसरो उपजि सकैत अछि।
नाटककारक नाटकक विषय अति उत्तम छन्हि। वर्त्तमान शताब्दीक सभ मनुख ऐ बातसँ भिज्ञ अछि, सरकारी सर्वेक्षणसँ सेहो स्पष्टकत अछि जे दिनानुदिन लिंगानुपात बढ़ि रहल अछि। सभ राज्यक अनुपात थोड़े ऊपर-नीचाँ भऽ सकैए मुदा कियो ऐ बातसँ मुँह नै मोड़ि सकै छथि जे प्रति हजार लड़िका-लड़िकीक बीच एकटा बड़का खाधि बढ़ैत जा रहल अछि, जइ खाधिमे लड़िकीक अनुपात निरंतर नीचाँ मुँहेँ गिड़ैत जा रहल अछि आ हमरा लोकनि कानमे तूर-तेल दऽ निचेनसँ सूतल छी। जौं ई क्रम जारी रहल तँ आगू की हएत से तँ सोचू!! ई एकटा प्रश्नवाचक चिन्ह छोड़बामे नाटककार एकदम सफल रहला अछि। एतबे नै, आजुक वैज्ञानिक युगमे यंत्रादिक सहायतासँ ई जानि जे माइक गर्भमे पलैत बच्चाक, बेटा नै बेटी छी.... िनर्मम हत्याई करबामे कनिक्को कलेजा नै कँपैए!! जेकर कोनो कसूर नै ओकरा कुट्टी-कुट्टी काटि खुने-खुनामे कऽ माइक गर्भसँ बहार कऽ दै छिऐ। जइ बेथे ओइ बच्चाक माए पनरह दिन धरि बिछौन धेने रहैत अछि। ऐठाम एकटा गप हम फरिछा कऽ कहि दिअ चाहै छी, ओ बेथा हुनकर ओइ बेटीक प्रतिये नै जेकर ओ हत्या करौलनि अछि, अपितु शारीरिक बेथा छन्हि जइ लेल एत्ते आ एहेन कुकर्म करै छथि। ओइ िनर्दोष बच्चाक माए-बाप दुनू ततबाए दोषी छथि। ओ ई नै बूझि रहल छथि जे जइ बेटीक ओ हत्याए करौलनि जौं ओ बेटी आइ नै रहैत तँ की अपने रहितौं? जौं बेटी नै हएत तँ सृष्टिक रचना संभव अछि? जौं हँ तँ केना वा नै तँ एहेन अपराध कऽ स्वयं किएक एतेक पैघ हत्यारा साबित भऽ रहल छी। रानी झांसी, लक्ष्मीबाई, सावित्री, अहिल्या, सती अनुसुइया, इन्दिरा गांधी, मैडम क्यूरी, मदर टेरेसा..., ईहो सभ तँ बेटीये छलीह। जौं हिनको हत्या पूर्वहिमे कऽ देल गेल रहैत तँ आइ.....। तखन आँखि रहैत एना हम सभ आन्हर किएक? बुइध रहैत मुर्खाहा जकाँ काज किए करै छी?
मनुक्ख तँ मनुक्ख छी ने, छागर-पाठी आकि गाए-महिंस तँ नै जे कतौ कोनो.....। तहूमे साढ़े-पारा अधिक भऽ जाए, गाए-महिंस कम, तखन की हएत? जौं हम-अहाँ ई नै सोचबै तँ के सोचताह? ऐ हत्याक पाछाँ एकटा अओर कारण अछि जेकर नाओं थिक दहेज। मुदा उहो तँ हमहीं अहाँ लेबाल आ देबालो छिऐ। अखनो समाजमे आ प्राय: गाम पाछाँ एक-आध गोटे जरूर छथि जे अपन बालकक बिआह एकटा नीक कुल-कनियाँ ताकि आदर्श बिअाह कऽ उदाहरण बनै छथि। ऐ काजक दोषीकेँ सजा नै दऽ िनर्दोषकेँ जानेसँ मारि दुनू परानी ऐ पापक भागीदारी छी। छीह.......।
शास्त्रो एकटा बात बतबैत अछि जे “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।” मुदा ओकर पूजा की करबै, ओइ देवीक संसारमे एबाक अधिकारे छीनि होइए, जे बड़का काज केलौं।
जतए समस्त विश्व ऐ समस्यासँ जरि रहल अछि ओतए नाटककार अपना नाटकक माध्यमे एकटा साधारणो लेखक सदृश अपन लेखनीक माध्यमे समाजमे ई संदेश देबामे पूर्णत: सफल छथि जे समए रहैत जौं नै चेतब तँ नाटकक मुख्य पात्र दीपक सदृश हाल हएत। जे अंतमे कनियाँक मुइला पछाति अपनेसँ भात पसाबथि, किएक तँ हुनक कनियाँ बरोबरि गर्भपात करेबाक कारणे शोनितक कमीसँ उड़ीस भऽ मुइलीह। एतबे नै, बेटीक अभावमे नगद गीनि आ तखन पुतोहु घर अनलाह। तखन हुनका कबीर साहैबक ई पाँति मोन पड़ैत छन्हि, “सन्तोक सभ दिन होत एक समाना।” आबो जौं नै चेतब तँ अहिना टाका दऽ बेटी बेसाहऽ पड़त। निरंतर चीज-बौस जकाँ बेटियोक दाम बढ़ैत जाएत, जेकरा किनैत-किनैत अहाँक प्राण निकलि जाएत। किएक तँ अपना समाजमे एकटा नै कएक टा मरूकियाबला अखनो जीविेते अछि, जे चारि लाख एकावन हजार टाका नगद आ सभ सरंजाम संगहि बरिआती ऊपरसँ। चेतु हे मैथिल आबो चेतु। नै तँ आब ओ दिन दूर नै जे गाड़ीपर नाव रहत। आब बेटी अपन अपमान बरदास नै कऽ सकैए।
ऐ प्रकारे नाटककार समाजक लेल एकटा पैघ संदेश दऽ रहल छथि जे गर्भपातसँ पैघ कोनो पाप नै होइत अछि। तँए ऐ पापसँ बची आ बेटीक बाप बनी। अहुना बेटा आ बेटी दुनू कोइखिक श्रृंगार होइए। ऐ तरहेँ श्री बेचन ठाकुर जी हमरा लोकनिक नीन तोड़ैमे सफल रहला। जे श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक प्रेरणापूर्ण आदर्शवादी व्यक्तिक हाथ हुनका माथपर छन्हि, हम सेहो बिनु मंगने शुभकामना दैत छियनि, रहबनि, जे अहिना नाटक लिखैत रहथु, मंचन करबैत रहथु। धन्यवादक पात्र श्रुति प्रकाशनक श्रीमती नीतू कुमारी आ नागेन्द्र झाजी केँ जे प्रकाशनक समस्त भार उठा कृतज्ञ हेबाक मौका देलखिन। जौं विदेह प्रथम पाक्षिक ई-पत्रिकाक सह सम्पादक उमेश मण्डल एवं सम्पादक गजेन्द्र बाबूकेँ, जिनक अथक सहयोगक प्रसादे प्रकाशनक रास्ता सुगम आ प्रकाशन सफल भेल, तँए नै लिखब-कहब तँ अनुचित।
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