मैथिली नाटकक एकटा समानान्तर दुनियाँ
रामखेलावन मण्डल गाम- कटघटरा, प्रखण्ड– शिवाजीनगर,
जिला- समस्तीपुर, हिनके संग बिन्देश्वर मण्डल सेहो छलाह।
उठैत मैथिली कोरस आ माँ गै माँ तूँ हमरा बंदूक मंगा दे कि हम तँ माँ सिपाही
हेबै- एखनो लोककेँ माेन छन्हि। एे मंडली द्वारा रेशमा-चूहड़, शीत-वसन्त,
अल्हाऊदल, नटुआ दयाल ई सभ पद्य नाटिका प्रस्तुत कएल जाइत छल। पूर्णियासँ पिआ
देसाँतर (मैथिली बिदेसिया)क
टीम सुपौल-सहरसा-समस्तीपुर आदि ठाम अबैत छल। हसन हुसन
नाटिका होइत छल। रामरक्षा चौधरी नाट्यकला परिषद, ग्राम- गायघाट, पंचायत करियन,
पो. वैद्यनाथपुर, जिला- समस्तीपुर विद्यापति नाटक गोरखपुर धरि खेलाएल छल। ऐ
मंडली द्वारा प्रस्तुत अन्य नाटक अछि- लौंगिया मेरचाइ, विद्यापति, चीनीक
लड्डू आ बसात।
अंकिया नाटमे प्रदर्शन तत्वक प्रधानता छल। कीर्तनियाँ एक
तरहेँ संगीतक छल आ एतौ
अभिनय तत्वक प्रधानता छल। अंकीया नाटकक प्रारम्भ मृदंग वादनसँ होइत छल।
सभ साहित्यिक विधा
दू प्रकारक होइत अछि। लोकधर्मी आ नाट्यधर्मी, लोकधर्मी भेल ग्राम्य आ नाट्यधर्मी
भेल शास्त्रीय उक्ति। ग्राम्य माने भेल कृत्रिमताक अवहेलना मुदा अज्ञानतावश किछु
गोटे एकरा गाममे होइबला नाटक बुझै छथि, आ बुझै छथि जे गमैया नाटक दब होइ छै।
लोकधर्मीमे स्वभावक अभिनयमे प्रधानता रहैत अछि, लोकक क्रियाक प्रधानता रहैत अछि,
सरल आंगिक प्रदर्शन होइत अछि, आ ऐ मे पात्रक से ओ स्त्री हुअए वा पुरुष, तकर
संख्या बड्ड बेसी रहैत अछि। नाट्यधर्मीमे वाणी मोने-मोन, संकेतसँ, आकाशवाणी
इत्यादि द्वारा होइए आ नृत्यक समावेशसँ, वाक्यमे विलक्षणतासँ, रागबला संगीतसँ, आ
साधारण पात्रक अलाबे दिव्य पात्रक आगमन सेहो ऐमे रहैए। कोनो निर्जीव/ वा जन्तु
सेहो संवाद करऽ लगैए, एक पात्रक डबल-ट्रिपल रोल, सुख दुखक आवेग संगीतक माध्यमसँ
बढ़ाओल जाइए।
वैदिक आख्यान,
जातक कथा, ऐशप फेबल्स, पंचतंत्र आ हितोपदेश आ
संग-संग चलैत रहल लोकगाथा सभ। सभ ठाम
अभिजात्य वर्गक कथाक संग लोकगाथा रहिते अछि। ऋगवेदक शिथिर, दूलभ, इन्दर आदि शब्द जनभाषाक
साहित्यीकरणक प्रमाण अछि। ओना एकर प्रारम्भिक प्रयोग अशोकक अभिलेखसँ तेरहम शताब्दी
ई. धरि भेटि जाएत मुदा पारिभाषिक रूपमे जइ प्राकृतक एतए चर्चा भऽ रहल अछि ओ पहिल ई.सँ छठम ई. धरि
साहित्यक भाषा दू अर्थे रहल, पहिल संस्कृत साहित्यक नाटकमे
जन सामान्य आ स्त्री पात्र लेल शौरसेनी, महाराष्ट्री आ मागधीक (वररुचि चारिम
प्राकृतमे पैशाचीक नाम जोड़ै छथि) प्रयोग सेहो भेल (कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम्,
मालविकाग्निमित्रम्, शूद्रकक मृच्छकटिकम्, श्रीहर्षक रत्नावली, भवभूतिक
उत्तररामचरित, विशाखादत्तक मुद्राराक्षस) आ दोसर जे फेर ऐ
प्राकृत सभमे साहित्यक निर्माण स्वतंत्र रूपेँ होमए लागल। फेर ऐ प्राकृत भाषाकेँ सेहो व्याकरणमे बान्हल गेल आ तखन ई भाषा अलंकृत होमए
लागल आ अपभ्रंश आ अवहट्ठक प्रयोग लोक करए लगलाह, ओना अपभ्रंश प्राकृतक संग प्रयोग
होइत रहए, तकर प्रमाण सेहो उपलब्ध अछि। मोटा-मोटी गद्य लेल
शौरसेनी, पद्य लेल महाराष्ट्री आ धार्मिक साहित्य लेल मागधी-अर्धमागधीक प्रयोग
भेल। नाटकमे स्त्री-विदूषक बजैत रहथि शौरसेनीमे, मुदा पद्य गाबथि महाराष्ट्रीमे, नाटकक तथाकथित निम्न श्रेणीक लोक मागधी बजैत छलाह।
मैथिली नाट्य साहित्य आ नाट्य साहित्यक समीक्षाशास्त्र
बच्चा
आ पैघ नाटकसँ शिक्षा लैए, लोककेँ आ वातावरणकेँ बुझबाक प्रयास करैए। मन्दिरक उत्सव
आ राजाक प्रासादमे होइबला नाटक स्वतंत्र भऽ गेल आ एकर उपयोग वा अनुप्रयोग दोसर
विषयकेँ पढ़ेबामे सेहो होमए लागल। दोसर विषयक विशेषज्ञक सहभागिता आवश्यक भऽ गेल।
स्वतंत्र रूपेँ सेहो ई विषय अछि आ एकर अनुप्रयोग सेहो कएल जाइत अछि। पारम्परिक
नाटक पेशेवर नाटकसँ जुड़त, उदाहरण स्वरूप कएल गेल नाटक, मंचक साजसज्जा, आ असल नाटकक
मंचन रंगमंचक इतिहास बनत। मुदा ऐ सँ पहिने रंगमंचक प्रारम्भिक ज्ञानक संग नाटक
पढ़बाक आदतिक विकसित भेनाइ सेहो आवश्यक अछि। आ से पढ़बा काल एकर मंच प्रबन्धन आ
अभिनयक दृष्टिसँ तकर विश्लेषण सेहो आवश्यक अछि। बच्चा आ पैघ नाटक आ रंगमंचसँ जुड़त
तँ जिम्मेवार नागरिक बनत, आर्थिक रूपेँ आत्म-निर्भर बनत आ सक्रिय नागरिक सेहो बनत।
नाट्य
शास्त्रमे वर्णन अछि जे नाटकक उत्पत्ति इन्द्रक ध्वजा उत्सवसँ भेल। नाट्य शास्त्र
नाटककेँ दू प्रकारमे १.अमृत मंथन आ २.शिवक त्रिपुरदाह, मानैत अछि। एहेन लगभग दस टा
दृश्य वा रूपकक प्रकार भरत लग छलन्हि (दशरूपक) आ ओइमे नृत्य, संगीत आ अभिनय
सम्मिलित छल; आ ऐ दशरूपकक अतिरिक्त श्रव्य गीत सभ सेहो छल।
पाँचम
शताब्दी ई. पू. मे पाणिनी शिलालिन् आ कृशाश्वक चर्चा करै छथि जे नट सूत्रक संकलन
केने रहथि। नट माने अभिनेता आ रंग माने रंगमंच। नटक पर्यायवाची होइत अछि, भरत,
शिलालिन् आ कृशाश्व!
मैथिली
नाटक जे आइ धरि मात्र नृत्य-संगीतसँ बेशी आ चित्रकला आ दस्तकारीसँ मामूली रूपसँ
जुड़ल छल, से समानान्तर रंगमंचक हस्तक्षेपक कारण आब भौतिकी, जीव विज्ञान, इतिहास,
भूगोल, आ साहित्यसँ सेहो जुड़ि रहल अछि, तकर आर प्रयास हेबाक चाही।
ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागम, विद्यापतिक
गोरक्षविजय, कीर्तनिञा नाटक, अंकीयानाट,
मुंशी रघुनन्दन दासक मिथिला नाटक, जीवन
झाक सुन्दर संयोग, ईशनाथ झाक चीनीक लड्डू, गोविन्द झाक बसात, मणिपद्मक तेसर कनियाँ,
नचिकेताजीक “नायकक नाम जीवन, एक छल राजा”, श्रीशजीक पुरुषार्थ, सुधांशु शेखर चौधरीक भफाइत चाहक जिनगी, राम
भरोस कापड़ि भ्रमरक महिषासुर मुर्दाबाद, गंगेश गुंजनक
बुधिबधिया, नचिकेताक नो एण्ट्री: मा प्रविश; माने ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागमक अबसर्डिटी सँ नचिकेताक
नो एण्ट्री: मा प्रविश क उत्तर आधुनिक अबसर्डिटी; मैथिली नाटकक एकटा वृत्त
सम्पूर्ण भेल।
उत्तर आधुनिकताक लक्षण: एके गोटेक कएक तरहक चरित्र निकलि बाहर अबैत अछि, कोनो
घटनाक सम्पूर्ण अर्थ नै लागि पबैत अछि, सत्य कखन असत्य भऽ जाएत तकर कोनो ठेकान नै। उत्तर आधुनिकताक सतही चिन्तन आ तेहन चरित्र सभक भरमार लागल अछि,
आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नै अछि। जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक
तरहेँ नै कएक तरहेँ सोचल जा सकैत
अछि- ई दृष्टिकोण विद्यमान अछि। कारण, नियन्त्रण आ योजनाक
उत्तर परिणामपर विश्वास नै, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर
बेशी विश्वास दर्शाओल जाइत अछि। गणतांत्रिक आ नारीवादी
दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास सोझाँ अबैत
अछि, तेँ नारीवाद आ मार्क्सवाद उत्तर आधुनिक दृष्टिकोणक विरोध केलक अछि। नीक-खराबक भावना रहि-रहि खतम होइत रहैत अछि। सभ मुखौटामे रहि जीबि रहल छथि।
भारत
आ पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतक तुलनात्मक अध्ययनसँ ई ज्ञात होइत अछि जे मानवक चिन्तन भौगोलिक दूरीकक अछैत
कतेक समानता लेने रहैत अछि। भारतीय नाट्यशास्त्र मुख्यतः भरतक “नाट्यशास्त्र” आ धनंजयक दशरूपकपर आधारित अछि।
पाश्चात्य नाट्यशास्त्रक प्रामाणिक ग्रंथ अछि अरस्तूक “काव्यशास्त्र”। भरत नाट्यकेँ “कृतानुसार” “भावानुकार” कहैत छथि, धनंजय अवस्थाक अनुकृतिकेँ नाट्य कहैत छथि। भारतीय साहित्यशास्त्रमे
अनुकरण नट कर्म अछि, कवि कर्म नै।
पश्चिममे अनुकरण कर्म थिक कवि कर्म, नटक कतौ चरचा नै अछि। अरस्तू नाटकमे कथानकपर विशेष बल
दै छथि। ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना,
विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत
अछि। भरत कहैत छथि जे नायकसँ संबंधित कथावस्तु आधिकारिक आ आधिकारिक कथावस्तुकेँ
सहायता पहुँचाबएबला कथा प्रासंगिक कहल जाएत। मुदा सभ
नाटकमे प्रासंगिक कथावस्तु हुअए से आवश्यक नै, नो एण्ट्री: मा प्रविश नाम्ना उत्तर-आधुनिक नाटकमे नहिये कोनो तेहन आधिकारिक कथावस्तु अछि आ नहिये कोनो प्रासांगिक, कारण ऐमे नायक कोनो सर्वमान्य नायक नै अछि। कोनो
पात्र कमजोर नै छथि आ समय-परिस्थितिपर रिबाउन्ड करैत छथि।
कथा इतिवृत्तिक दृष्टिसँ प्रख्यात, उत्पाद्य आ मिश्र तीन
प्रकारक होइत अछि। प्रख्यात कथा इतिहास पुराणसँ लेल जाइत अछि आ उत्पाद्य कल्पित
होइत अछि। मिश्रमे दुनूक मेल होइत अछि। अरस्तू कथानककेँ सरल आ जटिल दू प्रकारक
मानैत छथि। अरस्तू इतिवृत्तकेँ दन्तकथा, कल्पना आ इतिहास ऐ तीन प्रकारसँ सम्बन्धित मानैत छथि। अरस्तूक ट्रेजेडीक चरित्र यशस्वी आ कुलीन छथि- सत् असत् केर मिश्रण। भरत नृत्य संगीतक प्रेमीकेँ
धीरललित, शान्त प्रकृतिकेँ धीरप्रशान्त, क्षत्रिय प्रवृत्तिकेँ धीरोदत्त आ ईर्ष्यालूकेँ धीरोद्धत्त कहैत छथि।
भारतीय सिद्धांत कार्यक आरम्भ, प्रयत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति आ फलागम धरिक पाँच टा
अवस्थाक वर्णन करैत अछि। प्राप्त्याशामे फल प्राप्तिक प्रति निराशा अबैत अछि तँ
नियताप्तिमे फल प्राप्तिक आशा घुरि अबैत अछि। पाश्चात्य सिद्धांतमे अछि आरम्भ,
कार्य-विकास, चरम घटना, निगति आ अन्तिम फल। प्रथम तीन अवस्थामे ओझराहटि अबैत अछि, अन्तिम दू मे सोझराहटि। कार्यावस्थाक पंच विभाजन- बीया, बिन्दु, पताका, प्रकरी
आ कार्य अछि। पताका आ प्रकरी अवान्तर कथामे होइत अछि।
बीआक विकसित रूप कार्य अछि, अरस्तू एकरा बीआ, मध्य आ अवसान कहैत छथि। आब आउ सन्धिपर,
मुख-सन्धि भेल बीज आ आरम्भकेँ जोड़एबला, प्रतिमुख-सन्धि
भेल बिन्दु आ प्रयत्नकेँ जोड़एबला, गर्भसन्धि भेल पताका आ
प्राप्त्याशाकेँ जोड़एबला, विमर्श सन्धि भेल प्रकरी आ
नियताप्तिकेँ जोड़एबला आ निर्वहण सन्धि भेल फलागम आ कार्यकेँ जोड़एबला। पाश्चात्य
सिद्धांत स्थान, समय आ कार्यक केन्द्र तकैत अछि।
अभिनवगुप्त कहैत छथि जे एक अंकमे एक दिनक कार्यसँ बेशीक समावेश नै हुअए आ दू अंकमे एक वर्षसँ बेशीक घटनाक समावेश नै हुअए। त्रिकक विरोध ड्राइडन कएने छलाह आ शेक्सपिअरक नाटकक स्वच्छन्दताक ओ
समर्थन कएलन्हि।
भारतमे नाटकक दृश्यत्वक
समर्थन कएल गेल मुदा अरस्तू आ प्लेटो एकर विरोध कएलन्हि। मुदा १६म शताब्दीमे
लोडोविको कैस्टेलवेट्रो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि। डिटेटार्ट सेहो दृश्यत्वक समर्थन
कएलन्हि तँ ड्राइडज नाटकक पठनीयताक समर्थन कएलन्हि। देसियर पठनीयता आ दृश्यत्व
दुनूक समर्थन कएलन्हि। अभिनवगुप्त सेहो कहने छलाह जे पूर्ण रसास्वाद अभिनीत भेला
उत्तर भेटैत अछि, मुदा पठनसँ सेहो रसास्वाद भेटैत अछि। पश्चिमी रंगमंचक नाट्यविधान
वास्तविक अछि मुदा भारतीय रंगमंचपर सांकेतिक। जेना अभिज्ञानशाकुंतलम् मे कालिदास
कहैत छथि- इति शरसंधानं नाटयति। सैमुअल जॉनसन सेक्सपिअरक
नाटकमे हास्य आ दुखद तत्वपर लिखलन्हि। प्लेटो- प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला
नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि। प्लेटोक ई विचार स्पार्टासँ
एथेंसक सैन्य संगठनक न्यूनताकेँ देखैत देल विचारक रूपमे सेहो देखल जएबाक चाही। काव्य/
नाटकक ओ ऐ रूपेँ विरोध केलन्हि जे सम्वादकेँ रटि कऽ बाजैसँ
लोक एकटा कृत्रिम जीवन दिस आकर्षित होएत। अरिस्टोटल कविताकेँ मात्र अनुकृति
नै मानै छथि, ओ ऐ मे दर्शन आ सार्वभौम सत्य सेहो देखै छथि। ओ
नाटकक दुखान्तकेँ आ अनुकृतिकेँ निसास छोड़ैबला कहै छथि जे आनन्द, दया आ भयक बाद अबैत अछि। सम्वाद दू तरेहेँ भऽ सकैए- अभिभाषण वा गप द्वारा।
गपमे दार्शनिक तत्व कम रहत। प्राचीन ग्रीसमे कविता भगवानक
सनेस बूझल जाइत छल। एरिस्टोफिनीस नीक आ अधला ऐ दू तरहक कविता देखै छथि तँ
थियोफ्रेस्टस कठोर, उत्कृष्ट आ भव्य ऐ तीन तरहेँ कविताकेँ
देखै छथि। कविता आ संगीत अभिन्न अछि। मुदा यूरोपक सिम्फोनी जइमे ढेर रास वादन एके
संगे विभिन्न लयमे होइत अछि, सिद्धांतमे अन्तर अनलक। यएह सभ
किछु नाटकक स्टेज लेल सेहो लागू भेल। नाटकमे भावनापूर्ण सम्वाद आ क्रियाकलापक योग
रहत। जीवन झा मैथिली नाट्य साहित्यमे हुनका द्वारा आनल नूतन कथ्य-शिल्प लेल मोन राखल
जाइत छथि, संस्कृत आ पारसी तत्वक सम्मिश्रण नीक जकाँ जीवन झा केने छथि।
उत्तर आधुनिकता: ई तार्किकता आ आधुनिकताक
वस्तुनिष्टताकेँ ठाम-ठाम नकारैत अछि, विज्ञानक ज्ञानक
सम्पूर्णतापर टीका अछि ई, जे देखि रहल छी से सत्य नै सपनो भऽ सकैत अछि, सत्य-असत्य, सभ अपन-अपन
दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन करैत छथि। ई आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण होइत अछि आ नीक-खराबक भावना रहि-रहि खतम होइत रहैत अछि। लोक मुखौटामे
रहि जीबि रहल छथि, कोनो घटनाक सम्पूर्ण अर्थ नै लागि पबैत अछि, सत्य कखन असत्य भऽ जाएत
तकर कोनो ठेकान नै, उत्तर आधुनिकताक सतही चिन्तन आ तेहन चरित्र सभक
भरमार लागल रहैए उत्तर आधुनिक नाटकमे जतए आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नै अछि। जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नै कएक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण एतए विद्यमान
अछि। कारण, नियन्त्रण आ
योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नै वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास दर्शाओल गेल अछि।
गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे
हास-परिहास सोझाँ अबैत अछि। दर्शक कथानकक मध्य उठाओल विभिन्न समस्यासँ अपनाकेँ परिचित
पबैत छथि। जे द्वन्द ऐ तरहक नाटक मे रहैए जीवनमे तइ तरहक द्वन्दक नित्य सामना लोक करैत छथि।
भरतक
नाट्यशास्त्र:
१९५६
ई. संगीत-नाटक अकादेमी द्वारा प्रथम राष्ट्रीय नाट्य उत्सव- कालिदासक अभिज्ञान
शाकुन्तलम् (संस्कृत) सँ उत्सवक प्रारम्भ (गोवा ब्राह्मण सभा द्वारा) भेल, नाटकक
कालखण्डक अनुरूप मंच आ पहिराबाक अध्ययन हेबाक चाही। पारसी नाटकक किछु प्रसिद्ध
नाटक जेना इन्दर सभा, आलम आरा आ खोन्ने नहाक (सेक्सपियरक हेमलेट आधारित) सिनेमा
बनि सेहो प्रस्तुत भेल।
नाटक
दू प्रकारक लोकधर्मी आ नाट्यधर्मी, लोकधर्मी भेल ग्राम्य आ नाट्यधर्मी भेल
शास्त्रीय उक्ति। नाट्यधर्मक आधार अछि लोकधर्म। लोकधर्मीकेँ परिष्कृत करू आ ओ
नाट्यधर्मी भऽ जाएत।
लोकधर्मीक
दू प्रकार- चित्तवृत्यर्पिका (आन्तरिक सुख-दुख) आ बाह्यवस्त्वनुकारिणी (बाह्य-
पोखरि, कमलदह)। नाट्यधर्मी-सेहो दू प्रकारक कैशिकी शोभा (अंगक प्रदर्शन- विलासिता
गीत-नृत्य-संगीत) आ अंशोपजीवनी (पुष्पक विमान, पहाड़ बोन आदिक सांकेतिक प्रदर्शन)। सम्पूर्ण
अभिनय- आंगिक (अंगसँ), वाचिक(वाणीसँ), सात्विक(मोनक भावसँ) आ आहार्य (दृश्य आदिक
कल्पना साज-सज्जा आधारित)। आंगिक अभिनय- शरीर, मुख आ चेष्टासँ; वाचिक अभिनय- देव,
भूपाल, अनार्य आ जन्तु-चिड़ैक भाषामे; सात्विक- स्तम्भ (हर्ष, भय, शोक), स्वेद
(स्तम्भक भाव दबबैले माथ नोचऽ लागब आदि), रोमांच (सात्विकक कारण देह भुकुटनाइ आदि),
स्वरभंग (वाणीक भारी भेनाइ, आँखिमे नोर एनाइ), वेपथु (देह थरथरेनाइ आदि), वैवर्ण्य
(मुँह पीअर पड़नाइ), अश्रु (नोर ढब-ढब खसनाइ, बेर-बेर आदि), प्रलय (शवासन आदि
द्वारा); आ आहार्य- पुस्त (हाथी, बाघ, पहाड़ आदिक मंचपर स्थापन), अलंकार
(वस्त्र-अलंकरण), अंग-रचना (रंग, मोंछ, वेश आ केश), संजीव (बिना पएर-साँप, दू
पएर-मनुक्ख आ चिड़ै आ चारि पएरबला-जन्तु जीव-जन्तुक प्रस्तुति) द्वारा होइत अछि। दूटा
आर अभिनय प्रकार- सामान्य (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय) आ चित्राभिनय (नाट्यशास्त्र
२२म अध्याय): चतुर्विध अभिनयक बाद सामान्य अभिनयक वर्णन, ई आंगिक, वाचिक आ सात्विक
अभिनयक समन्वित रूप अछि आ ऐ मे सात्विक अभिनयक प्रधानता रहैत अछि। चित्राभिनय
आंगिकसँ सम्बद्ध- अंगक माध्यसँ चित्र बना कऽ पहाड़, पोखरि चिड़ै आदिक अभिनय विधान। नाट्य-मंचन
आ अभिनय: कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाट्य निर्देशकक लेल पठनीय नाटक अछि।
रंगमंच निर्देश, जेना, रथ वेगं निरूप्य,
सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं, इति शरसंधानम् नाटयति, वृक्ष सेचनम् रुपयति, कलशम्
अवरजायति, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति, शकुन्तला परिहरति नाट्येन, नाट्येन
प्रसाधयतः, कहि कऽ वास्तविकतामे नै वरन् अभिनयसँ ई कएल जाइत अछि। नाट्येन
प्रसाधयतः, एतए अनसूया आ प्रियम्वदा मुद्रासँ अपन सखी शकुन्तलाक प्रसाधन करै छथि
कारण से चाहे तँ उपलब्ध नै अछि, चाहे तँ ओतेक पलखति नै अछि। तहिना वृक्ष सेचनम्
रुपयति सँ गाछमे पानि पटेबाक अभिनय, कलशम् अवरजायति सँ कलश खाली करबाक काल्पनिक
निर्देश, रथ वेगं निरूप्य सँ तेज गतिसँ रथमे यात्राक अभिनय, इति शरसंधानम् नाटयति
सँ तीरकेँ धनुषपर चढ़ेबाक निर्णय, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं सँ हरिणकेँ मारि
खसेबाक दृश्य देखबाक निर्देश, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति सँ दुश्यन्तक
शकुन्तलाक मुँहकेँ उठेबाक इच्छा, शकुन्तला परिहरति नाट्येन सँ शकुन्तला द्वारा
दुश्यन्तक ऐ प्रयासकेँ रोकबाक अभिनयक निर्देश होइत अछि।
भरतक
रंगमंच: ऐ मे होइत अछि- पाछाँक पर्दा, नेपथ्य (मेकप रूम बुझू), आगमन आ निर्गमनक
दरबज्जा, विशेष पर्दा जे आगमन आ निर्गमन स्थलकेँ झाँपैत अछि, वेदिका- रंगमंचक
बीचमे वादन-दल लेल बनाओल जाइत अछि, रंगशीर्ष- पाछाँक रंगमंच स्थल; मत्तवर्णी- आगाँ
दिस दुनू कोणपर अभिनय लेल होइत अछि आ रंगपीठ अछि सोझाँक मुख्य अभिनय स्थल।
अभिनय
मूल्यांकन माने नाट्य समीक्षा: अध्याय २७ मे भरत सफलताकेँ लक्ष्य
बतबै छथि, मंचन सफलतासँ पूर्ण हुअए। दर्शक कहैए, हँ, बाह, कतेक दुखद अन्त, तँ
तेहने दर्शक भेलाह सहृदय, भरतक शब्दमे, से ओ नाटककार आ ओकर पात्रक संग एक भऽ जाइत
छथि। नाट्य प्रतियोगिता होइत छल आ ओतए निर्णायक लोकनि पुरस्कार सेहो दै छलाह। भरत
निर्णायक लोकनि द्वारा धनात्मक आ ऋणात्मक अंक देबाक मानदण्डक निर्धारण करैत कहै
छथि जे- १.ध्यानमे कमी, २.दोसर पात्रक सम्वाद बाजब, ३.पात्रक अनुरूप व्यक्तित्व नै
हएब, ४.स्मरणमे कमी, ५.पात्रक अभिनयसँ हटि कऽ दोसर रूप धऽ लेब, ६.कोनो वस्तु,
पदार्थ खसि पड़ब, ७.बजबा काल लटपटाएब, ८.व्याकरण वा आन दोष, ९.निष्पादनमे कमी,
१०.संगीतमे दोष, ११.वाक् मे दोष, १२.दूरदर्शितामे कमी, १३.सामिग्रीमे कमी, १४.मेकप
मे कमी, १५. नाटककार वा निर्देशक द्वारा कोनो दोसर नाटकक अंश घोसियाएब, १६.नाटकक
भाषा सरल आ साफ नै हएब, ई सभ अभिनय आ मंचनक दोष भेल। निर्णायक सभ क्षेत्रसँ होथि,
निरपेक्ष होथि। नाटकक सम्पूर्ण प्रभाव, तारतम्य, विभिन्न गुणक अनुपात, आ भावनात्मक
निरूपण ध्यानमे राखल जाए। स्टेजक मैनेजर- सूत्रधार- आ ओकर सहायक –परिपार्श्वक-
नाटकक सभ क्षेत्रक ज्ञाता होथि। मुख्य अभिनेत्री संगीत आ नाटकमे निपुण होथि, मुख्य
अभिनेता- नायक- अपन क्षमतासँ नाटककेँ सफल बनबै छथि। अभिनेता- नट- क चयन एना करू,
जँ छोट कदकाठीक छथि तँ वाणवीर लेल, पातर-दुब्बर होथि तँ नोकर, बकथोथीमे माहिर होथि
तँ बिपटा, ऐ तरहेँ पात्रक अभिनेताक निर्धारण करू। संगीत-दलक मुखिया- तौरिक- केँ
संगीतक सभ पक्षक ज्ञान हेबाक चाही जइसँ ओ बाजा बजेनिहार- कुशीलव- केँ निर्देशित कऽ
सकथि।
मैथिली
नाटक: बड्ड रास भाषण मैथिली आ आन नाटकक प्राचीनसँ आधुनिक काल धरि रहल तारतम्यक
विषयमे देल गेल अछि। मुदा सत्य यएह अछि जे भारत वा नेपालक कोनो कोनमे रंगमंच आ
रूपकक निर्देश भरतक नाट्यशास्त्रक अनुरूपेँ उपलब्ध नै अछि, ओकर पुनः स्थापन भरिगर
काज तँ अछिये, मुदा समानान्तर रंगमंच एकर प्रयास केलक अछि। बिनु ज्ञानक कालिदासक
नाटकक लघुरूप भयंकर विवाद उत्पन्न करैत अछि। लोक नाट्यक नाट्यशास्त्रक अनुरूप
निरूपण कऽ उपरूपकक मंचनक सम्भावना मैथिलीमे अछि। बेचन ठाकुर जीक निर्देशनमे विदेह
नाट्य उत्सव २०१२ ऐ दिशामे एकटा प्रयास छल।
मैथिली
नाटक आ रंगमंच लेल एकटा समीक्षाशास्त्र:
गद्यमे
कथा होइत अछि आ विस्तारक अनुसार ई लघुकथा, कथा आ उपन्यासमे विभक्त कएल जाइत अछि तइ
सन्दर्भमे उपन्यास (वा बीच-बीचमे नाटक) क पद्य रूपान्तरण महाकाव्य कहल जाएत। जँ
ऋगवैदिक परम्परामे जाइ तँ महाकाव्यकेँ गीत-प्रबन्ध कहल जएबाक चाही। लक्ष्मण-परशुराम
सम्वाद हुअए वा मंथरा आ कैकेयीक सम्वाद आकि रावण आ अंगदक सम्वाद, सभ ठाम नाटकक
सम्वाद शैली सन रोचक पद्य अहाँकेँ भेटत। कथा-गल्प, आख्यान आ उपन्यास आ
किछु दूर धरि नाटक आ एकांकी मनोरंजनक लेल सुनल-सुनाओल-पढ़ल जाइत अछि वा मंचित कएल
जाइत अछि। ई उद्देश्यपूर्ण भऽ सकैत अछि वा ऐमे निरुद्देश्यता-एबसर्डिटी सेहो रहि सकै छै- कारण जिनगीक भागादौड़ीमे निरुद्देश्यपूर्ण साहित्य सेहो मनोरंजन प्रदान करैत अछि।
वन-एक्ट प्ले भेल एकांकी आ प्ले भेल नाटक। कथोपकथनक गुंजाइश
कम राखि वा कोनो उपस्थापनासँ पहिने राखि लघुकथा आ कथाकेँ सशक्त बनाओल जा सकैत अछि,
अन्यथा ओ एकांकी वा नाटक बनि जाएत। भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल?
नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण
(विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ
सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी।
सर्जनात्मक
साहित्यमे नाटक सभसँ कठिन अछि, फेर कविता अछि आ तखन कथा, जँ अनुवादकक दृष्टिकोणसँ
देखी तखन। नाटकमे नाटकक पृष्ठभूमि आ परोक्ष निहितार्थकेँ चिन्हित करए पड़त संगहि
पात्र सभक मनोविज्ञान बूझए पड़त। कालिदासक संस्कृत नाटकमे संस्कृतक अतिरिक्त अपभ्रंशक प्रयोग गएर अभिजात्य
वर्गक लेल प्रयुक्त भेल तँ चर्यापदक भाषा सेहो मागधी मिश्रित अपभ्रंश छल।
आइ आवश्यकता अछि जे मैथिली नाटक आ रंगमंचमे जातिवादी शब्दावली ककरो अपमानित
करबा लेल प्रयोग नै कएल जाए। पुरान लोककथा वा आख्यान नव सन्दर्भमे उपयुक्त तखने भऽ
सकैए जखन नाटककारमे सामर्थ्य हुअए। नाटक आ रंगमंच जातिभेदकेँ दूर करबाक आ सामंजस्य
उत्पन्न करबाक हथियार भऽ सकैए मुदा यावत लोक ओकरा देखत नै तावत कोना ई हएत? ऐ लेल
नाटककार आ रंगमंच निर्देशकमे प्रतिभा हेबाक चाही जइसँ ओ गूढ़ विषयकेँ सोझरा कऽ राखि
सकथि। मात्र विषय वा मात्र मनोरंजन श्रेष्ठताक आधार नै बनि सकत। जातिवादी रंगमंच
मनोरंजनक नामपर जे खेल खेलाएल तकर परिणाम मैथिलीकेँ भेटि चुकल छै। समस्या, समाधान,
मनोरंजन आ शिल्पमे सामंजस्य बनाबए पड़त।
आधुनिक मैथिली नाटक: मैथिली
नाट्य संस्था आ नाट्य निर्देशक
धूर्त्तसमागम: तेरहम शताब्दीमे ज्योतिरीश्वर ठाकुर
द्वारा रचल गेल जे संस्कृत आ मैथिलीमे उपलब्ध अछि।
ज्योतिरीश्वर ठाकुरक संस्कृत धूर्त्तसमागममे सेहो मैथिली गीतक समावेश अछि। ई प्रहसनक कोटिमे अबैत अछि।
मैथिलीक अधिकांश नाटक-नाटिका श्रीकृष्णक अथवा हुनकर वंशधरक
चरितपर अवलंबित आ हरण आकि स्वयंवर
कथापर आधारित छल। मुदा धूर्त्तसमागममे साधु आ हुनकर शिष्य मुख्य पात्र अछि।
धूर्त्तसमागमक सभ पात्र एकसँ-एक धूर्त
छथि। तइ हेतु एकर नाम धूर्त्तसमागम सर्वथा उपयुक्त अछि। प्रहसनकेँ
संगीतक सेहो कहल जाइए तइ हेतु ऐमे
मैथिली गीतक समावेश सर्वथा समीचीन अछि। ऐमे सूत्रधार, नटी, स्नातक, विश्वनगर, मृतांगार, सुरतप्रिया, अनंगसेना, अस्ज्जाति मिश्र, बंधुवंचक, मूलनाशक आ नागरिक मुख्य पात्र छथि। सूत्रधार कर्णाट
चूड़ामणि नरसिंहदेवक प्रशस्ति करैत अछि। फेर ज्योतिरीश्वरक प्रशस्ति होइत अछि। ऐमे एक प्रकारक एब्सर्डिटी अछि जे नितांत
आधुनिक अछि आ ऐमे जे लोच छै से एकरा लोकनाट्य बनबै छै। विश्वनगर
स्त्रीक अभावमे ब्रह्मचारी छथि। शिष्य स्नातक संग भिक्षाक हेतु मृतांगार ठाकुरक घर
जाइत छथि तँ अशौचक बहाना भेटै छन्हि। विश्वनगर शिष्य स्नातक संग भिक्षाक हेतु
सुरतप्रियाक घर जाइत छथि। फेर अनंगसेना नामक वैश्याकेँ लऽ
गुरु-शिष्यमे मारि बजरि जाइ छन्हि। गुरु-शिष्य अनंगसेनाक संग असज्जाति मिश्र लग
जाइ छथि, मिश्रजी लंपट छथि जे जुआ खेलाएब आ संगम ईएह दूटाकेँ संसारक सार बुझै छथि। असज्जाति मिश्र पुछै छथि जे के वादी आ
के प्रतिवादी? स्नातक उत्तर दै छथि- अभियोग कहबाक लेल हम
वादी थिकौं आ
शुल्क देबाक हेतु संन्यासी प्रतिवादी
थिकाह। विश्वनगर अपन शुल्कमे स्नातकक गाजाक पोटरी प्रस्तुत करै छथि। विदूषक
असज्जाति मिश्रक कानमे अनंगसेनाक यौनक प्रशंसा करैत अछि। असज्जाति मिश्र
अनंगसेनाकेँ बीचमे राखि दुनूक बदला अपना पक्षमे निर्णय लैत अछि। एम्हर विदूषक
अनंगसेनाक कानमे कहैत अछि- ई संन्यासी दरिद्र अछि, स्नातक आवारा अछि आ
ई मिश्र मूर्ख तेँ हमरा संग रहू।
अनंगसेना चारूक दिशि देखि बजैछ- ई तँ असले धूर्तसमागम भऽ गेल। विश्वनगर स्नातकक संग
पुनः सुरतप्रियाक घर दिशि जाइ छथि। एमहर मूलनाशक नौआ अनंगसेनासँ साल भरिक कमैनी मंगैए। ओ
हुनका असज्जाति मिश्रक लग पठबैत अछि।
मूलनाशक असज्जाति मिश्रकेँ अनंसेनाक वर बुझैत अछि। गाजा शुल्कमे लऽ असज्जाति मिश्रकेँ
गतानि कऽ बान्हि तेना मालिश करैत अछि जे ओ
बेहोश भऽ जाइत छथि। ओ
हुनका मुइल बुझि कऽ भागि जाइत अछि। विदूषक अबैत अछि
आ
हुनकर बंधन खोलैत अछि आ
पुछैत अछि जे हम अहाँक प्राणरक्षा कएल
अछि आ
जे किछु आन प्रिय कार्य हुअए तँ से कहू। असज्जाति कहैए- जे छलसँ संपूर्ण देशकेँ खएलौं, धूर्त्तवृत्तिसँ ई प्रिया पाओल, सेहो अहाँ सन आज्ञाकारी शिष्य पओलक, ऐसँ प्रिय आब किछु नै अछि, तथापि सर्वत्र
सुखशांति हुअए तकर कामना करैत छी।
विद्यापति ठाकुरक गोरक्षविजय नाटक। ऐसँ
पहिने -धूर्तसमागमकेँ छोड़ि- कृष्णपर आधारित नाटकक प्रचलन छल। ऐ अर्थमे ई सेहो
एकटा क्रांतिकरी नाटक कहल जाएत। नाथ संप्रदाय
किंवा गोरक्ष संप्रदायक प्रवर्त्तक योगी गोरक्षनाथक कथा लऽ ऐ नाटकक कथावस्तु संगठित भेल अछि। गोरक्षनाथक गुरु मत्स्येन्द्रनाथ योग
त्यागि कदलिपुरमे राजा बनि १८ टा रानीक संग भोग कऽ रहल छथि। गोरक्ष आ काननीपादकेँ द्वारपाल रोकि दैत अछि। मंत्री ढोलहो पिटबा दैत
अछि जे योगी सभक प्रवेश कतौ नै हुअए आ रानी सभकेँ राजाक मोन मोहने रहबाक हेतु कहल जाइत अछि।
गोरक्ष आ काननपाद नटुआक वेष धरैत छथि आ
मोहक नृत्य राजाकेँ देखबैत छथि। ऐ बीच राजाक एकमात्र पुत्र बौधनाथ
खेलाइत-खेलाइत मरि जाइत अछि। राजाक शंका नट पर जाइ छै आ ओकरा
मारबाक आदेश होइ छै। नट बच्चाकेँ जिआ दैत अछि। राजा हुनकर परिचय पुछैत छथि तखन ओ
हुनका अपन पूर्व जन्मक सभटा गप बता दै
छन्हि, जे अहाँ तँ जोगी
छी भोगी नै। ऐ नाटकक पात्रमे महामति(राजाक मंत्री) आ
महादेवी-मत्स्येन्द्रनाथक ज्येष्ठ रानी
सेहो छथि। मत्स्येन्द्रनाथ कदलीपुरक राजा आ
पूर्व जन्मक योगी छथि। मत्स्येन्द्रनाथ
अंतमे कहैत छथि जे गोरक्ष जेहन शिष्य हुअए आ महादेवी जेहन सभ नारी होथु।
जीवन झा
जीवन झा लिखित नाटक सुन्दर संयोग, (1904), मैथिली
सट्टक (1906), नर्मदा सागर सट्टक (1906) आ सामवती पुनर्जन्म (1908), ऐ चारू नाटकक
सामवेद विद्यालय काशीमे कएक बेर मंचन १९२० ई.सँ पहिनहिये भऽ चुकल अछि, "सुन्दर संयोग" एतैसँ प्रकाशित सेहो भेल। सुन्दर संयोगक किछु आर
मंचन: १९७४ ई. माली मोड़तर (हसनपुर चीनीमिलक बगलमे), लक्ष्मीनारायण
उच्च विद्यालय परिसरमे- निर्देशक श्री कालीकान्त झा "बूच", मुख्य अतिथि श्री फजलुर रहमान हासमी। दुर्गापूजामे। आयोजक देवनन्दन
पाठक चीफ इन्जीनियर, आ केशनन्दन पाठक (ऑडीटर टीका बाबू),
उद्घाटन: उदित राय मुखिया। १९७६: करियन, समस्तीपुर। निर्देशक: कामदेव पाठक। १९८१: पण्डित टोल, टभका (दलसिंहसरायक बगलमे): संयोजक डॉ उमेन्द्र झा "विमल",
पूर्व प्रो. भाइस चान्सलर, का.सि.
संस्कृत वि.वि. आ म.म. चित्रधर मिश्र जे दरभंगा किलाक भीतरक शंकर मन्दिरक
अधिष्ठाता रहथि आ म.म. उमेश मिश्र आ म.म. गंगानाथ झा हिनकर शिष्य रहथिन्ह। १९८३:मउ
बाजितपुर (विद्यापति नगरक बगलमे)।
संस्कृत परम्परा आ पारसी थियेटरक गुणसँ ओतप्रोत जीवन झाक ऐ नाटक
सभक अन्यान्यो ठाम मंचन भेल अछि।
जातिवादी रंगमंचक ई दुष्प्रचार अछि, ऐ नाटकक पहिल मंचन मलंगिया जीक संस्था करत, जखनकि हुनकर जन्मसँ
पहिने कएक बेर ऐ नाटक सभक
मंचन भऽ चुकल छै। मलंगिया जीक संस्थाक पुनर्लेखन "सुन्दर संयोग" नाटक केँ सेहो जातिवादी तँ नै बना देतै, मलंगिया जीक
इजाद कएल तथाकथित राड़बला मैथिली आ ब्राह्मणबला सामन्तवादी मैथिली आ दोसर
"खदेरन की मदर" वा "बुझता है कि नहीं" बला भ्रष्ट हिन्दीक
संगम कए कऽ, ई शंका व्यक्त कएल जा रहल अछि। मलंगिया जीक जातिवादी रंगमंचक सरकारी फण्ड लै लेल पहिल मंचनक ई
झूठ पसारल जा रहल अछि।
ईशनाथ
झा
उगना: ई नाटक सभ महाशिवरात्रिकेँ गौरीशंकर स्थान, जमथुरिमे खेलाएल
जाइत अछि। विद्यापति शिव-भक्त, हुनकर गीत-नचारी सुनबा लेल महादेव विद्यापतिक घरमे उगना नोकर बनि आबि गेला। एक बेर विद्यापति यात्रापर छला
आ उगना संगमे छलन्हि। रस्तामे पियास लगलापर उगना जटाक गंगधारसँ पानि निकालि
विद्यापतिकेँ पियेलन्हि मुदा विद्यापतिकेँ ओइमे गंगाजलक स्वाद भेटलन्हि आ ओ उगनाक
केश भीजल देखि सभटा बुझि गेलाह। उगना अपन असल रूपमे एलाह। मुदा उगना कहलखिन्ह जे
विद्यापति ई गप ककरो नै कहताह नै तँ ओ अन्तर्धान भऽ जेताह। पार्वती चालि चललन्हि, विद्यापतिक पत्नी उगनाकेँ बेलपत्र अनबा लेल पठेलन्हि आ देरी
भेलापर ओ उगनापर बाढनि उसाहलन्हि, विद्यापति भेद खोलि
देलन्हि आ उगना बिला गेलाह।
चीनीक
लड्डू: सुधाकांत-प्रेमकांतक पिता गुजरि जाइ
छथि आ से देखभाल मामा धर्मानन्द ट्रस्टी जकाँ करै छथि आ हुनकर सभक समर्थ भेलाक बाद
सुधाकांतकेँ भार दऽ घुरि जाइ छथि। सुधाकांतक मुंशी बटुआ दास प्रेमकांतक पत्नी
चण्डिका आ खबासनी छुलहीक सहयोगसँ बखरा करबा दै छथि, सुधाकान्त अपनो हिस्सा
प्रेमकान्तकेँ दऽ दै छथि। सुधाकांत, पत्नी सुशीला आ बेटा सुकमार घरसँ बाहर कऽ देल
जाइ छथि। सुधाकांतकेँ टी.बी. रोग मारि दै छन्हि। बटुआ दासक संगति प्रेमकांतकेँ
सेहो दरिद्र कऽ दैत अछि। माम धर्मानन्द सुकमारकेँ अपन सम्पति लिखि दै छथि कारण
हुनका सन्तान नै छन्हि। प्रेमकांत आ बटुआ दास सुकुमारकेँ मारबाक प्रयत्नमे बिख मिला कऽ चीनीक लड्डू
सनेसमे सुकमारकेँ दै छथि मुदा ओइसँ बटुआ दास मरि जाइए, आ भेद खुजैए।
उदय
नारायण सिंह नचिकेता
नायकक
नाम जीवन : नवल नव विचारक अछि, शक्तिराय धनिक,
कलुषित अछि आ अपन सहयोगी विनयपर चोरिक आरोप लगा ओकर बेटीक अपहरण आ बलात्कार करबैए।
विनय आत्महत्या कऽ लैए। नवल आ ओकर मित्र प्रकाश आ दीपक सभटा भेद खोलैए। ओकर
प्रेमिका बलात्कारक परिणामस्वरूप आत्महत्या करैए। नवल विक्षिप्त भऽ जाइए।
एक
छल राजा: एकटा राजा अभिमान कुमार देवक दिन
मदिरा आ वैश्याक पाछाँ खराप भेलै। ओकरा एक्केटा बेटी मोहिनी छै, टकाक अभावमे ओकर
बिआह नै भऽ पाबि रहल
छै। मुंशी विरंची, सेवक चतुरलाल आ धर्मकर्मवाली पत्नी संगे नाटक आगाँ बढ़ैए। मोहिनी
आ शिक्षक शुभंकरक बीच प्रेम होइ छै।
नो
एण्ट्री: मा प्रविश: पोस्टमोडर्न
ड्रामा, जकर एबसर्डिटी एकरा ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागम लग घुरबैए। स्वर्ग आकि नर्कक द्वारपर मुइल सभ अबै छथि आ खिस्सा-खेरहा सुनबै छथि,
बादमे पता चलैए जे चित्रगुप्त/ धर्मराज सभ नकली छथि आ द्वारपर लागल अछि ताला, नो
एण्ट्री।
गोविन्द
झा
बसात: कृष्णकांत पिता द्वारा ठीक कएल युवती पुष्पा संग विवाह नै
करै छथि, ओ शिक्षितसँ विवाह करऽ चाहै छथि, लिलीसँ प्रेम करै छथि। हुनकर पिता घर
त्यागि दै छथि। पुष्पा घर छोड़ि महिला जागरणमे लागि गेलथि। पिताकेँ ताकैमे
कृष्णकान्त असफल होइ छथि, लिलीकेँ छोड़ि रेलगाड़ीसँ कटऽ चाहै छथि, आश्रमक लोक हुनका
बचा लै छन्हि, ओतए पिता, पुष्पा सभसँ भेँट होइ छन्हि, लिली सेहो बताहि भेलि ओतऽ
आबि जाइ छथि।
सुधांशु
शेखर चौधरी
भफाइत
चाहक जिनगी: महेश बेरोजगार अछि, ओ चाह दोकान
खोलैए ओ कवि सेहो अछि। इंजीनियर उमानाथक पत्नी चन्द्रमा दोकानपर देखलन्हि जे पुकार
भेलापर महेश कविता पाठ लेल जाइए, चन्द्रमा चाह बेचऽ लगै छथि,
उमानाथ तमसा जाइ छथि। महेशक संगी सरिता, जे आइ.ए.एस.क पत्नी छथि, आबै छथि।
लेटाइत
आँचर: दीनानाथक एकेटा पुत्री ममताकेँ पति
काटरक कारणसँ छोड़ि दै छन्हि। मुदा पुत्र मोदनाथक विवाहमे दहेज लेबाक प्रयत्नपर
पुत्र हुनका रोकै छन्हि।
गुणनाथ
झा
गुणनाथ
झा "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य
पत्रिकाक संचालन- सम्पादन केने छथि। मैथिलीमे आधुनिक नाटकक प्रणयन। हुनकर नाटक
कनियाँ-पुतरा, पाथेय, ओ मधुयामिनी,
सातम चरित्र, शेष नञि, आजुक लोक आ जय मैथिली सभक बेर-बेर मंचन भेल अछि। बाङ्गला एकाङ्की
नाट्य-संग्रह- ऐमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा नाटकक
संकलन ओ सम्पादन अजित कुमार घोष केने छथि आ तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद श्री
गुणनाथ झा द्वारा भेल अछि।
कनियाँ-पुतरा-
गुणनाथ झा जीक ई पहिल पूर्णाङ्क नाटक थिक। नाटक बहुदृश्य समन्वित
करैबला घूर्णीय मञ्चोपयुक्त अछि। कथा काटर प्रथापर आधारित अछि आ तकर परिणामसँ
मुख्य अभिनेता आ मुख्य अभिनेत्री मनोविकारयुक्त भऽ जाइत छथि, तइ मनोदशाक सटीक चित्रण आ विश्लेषण भेल अछि।
मधुयामिनी:
एकाङ्क नाट्य शैलीमे दूटा पात्र, पुरुष
संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहार आ स्त्री तकर विरोधी। संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहारक
सामंजस्यपूर्ण विजय होइत अछि। ई "लोक मञ्च"
मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित अछि।
पाथेय:
एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित, मुदा
पूर्णाङ्कक सभ विशेषता ऐमे भेटत। मुख्य अभिनेता मिथिलाक अधोगतिसँ दुखी भऽ गामकेँ
कर्मस्थली बनबैत छथि, स्वजन विरोध करै छथि। मुदा बादमे
पत्नी हुनकर संग आबि जाइ छथिन्ह। भाषा मधुर आ चलायमान अछि।
लाल-बुझक्कर:
एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। दाही रौदीसँ झमारल निम्न आ मध्य-निम्न
वर्ग स्वतंत्रताक पहिनहियो आ बादो जीविकोपार्जन लेल प्रवास करबा लेल अभिशप्त छथि।
माता-पिता विहीन लाल बुझक्करजी कनियाँकेँ नैहरमे बैसा कऽ आ सन्तानहीन पित्ती
पितियैनकेँ छोड़ि नग्र प्रवास करै छथि।
सातम
चरित्र: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। मैथिली रंगमंचपर
महिला अभिनेत्रीक अभाव, सातम चरित्रक प्रतीक्षामे
पूर्वाभ्यास खतम भऽ जाइत अछि। ई "लोक मञ्च"
मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित अछि।
शेष
नञि: आधुनिक सामाजिक पूर्णाङ्क नाटक। पिता-माताक
मृत्युक बाद अग्रजक अनुजक प्रति पितृवत व्यवहार। अनुज चाकरी करै छथि, परिवर्तनशील सामाजिक परिस्थितिक शिकार भऽ अचिन्तनीय कार्यकलाप करै छथि
आ अग्रज प्रतारित होइ छथि। मुदा अग्रज मरणासन्न पत्नीक प्राणरक्षार्थ साहसपूर्ण
डेग उठा लैत छथि।
आजुक
लोक: पूर्णाङ्क नाटक। विषय निम्नमध्यवर्गीय
बेरोजगारी आ बियाहक दायित्वक बोझ।
जय
मैथिली: पूर्णाङ्क नाटक। मिथिलाक भाषिक-सांस्कृतिक
समस्या एकर कथावस्तु अछि।
महाकवि
विद्यापति: विद्यापतिक नव विश्लेषण।
जगदीश
प्रसाद मण्डल
मिथिलाक
बेटी- प्रथम दृश्य- महगीक विरोधमे कर्मचारीक
हड़ताल। महगीक कारण अछि नोकरी दिस झुकनाइ आ खेतीक ह्रास। भू-सम्पत्तिक ह्रास, दान दहेज
झर-झंझटक बढ़ोतरी। बिआहक लाम-झाम, पैसाक दुरूपयोग। कला प्रेमी धन सम्पत्तिकेँ तुच्छ बुझै छथि। कौरनेटियाक संग कओलेजक लड़की, जे नाच-गान सिखैत,
चलि गेलि। झर-झंझटमे पोकेटमारी सेहो, सरकारी
पदाधिकारीक बाजैपर रोक। अपहरणक बढ़ोत्तरी, रंग-विरंगक
अपहरणोक कारण िसर्फ पाइये नै जानोक खेलवाड़। सरकारी अफसरक नैतिक ह्रास। चम्मछक
घटना, सरकारी तंत्र कमजोर भेने असुरक्षाक वृद्धि। समाजक
विघटनमे जाति, सम्प्रदाय इत्यादिक योगदान, जइसँ इज्जत-आवरू धरि खतरामे। सिनेमाक प्रभावसँ नव पीढ़ी अपन सभ किछु-
कुल-खनदान-बेवहार छोड़ि बाहरी हवाक अनुकरणमे पगला रहल अछि। ढहैत सामंतमे संस्कारक छाप।
इनार-पोखरि स्त्रीगणक झगड़ाक अड्डा। मिथिला नारी शक्तिक प्रतीक सीता। दहेजक
मारिमे जाति-पाँतिक नास। धन-सम्पत्ति आचार-विचार नष्ट करैत कोट-कचहरीक
चपेटमे समाज, आपसी झगड़ाक कुप्रभाव। नवयुवकमे आत्मबलक अभाव, नारीक बीच असीम धैर्य, बाल-विधवा मनुष्यपर समाजक प्रभाव। पढ़लो-िलखल कारगरो लड़कीक मोल दहेजक
आगू चौपट अछि। ओना पुरूषक अपेक्षा नारीक महत्व, पुरूष
प्रधान व्यवस्थामे कम रहल गहना-जेबर सेहो अहितकर। नव पीढ़ीक नारीमे नव उत्साहक
जरूरत। नव-नव काज सिखैक हुनर। दोसर अंक- सामंती व्यसन- भांग। नव पीढ़ी सेहो प्रभावित। श्रम चोर मिहनतसँ मुँह चोराएब। भाग्य-भरोसपर
बिसवास। धनक प्रभावसँ परिवारक बिखरब। पिता-पुत्रक बीच मतभेद बलजोरी वा फुसला कऽ लड़का-लड़की बिआह। खेतक लेन-देनमे घोखाधड़ी। जबूरिया, दोहरी
रजिस्ट्री, घुसखोरी, कमाइ, प्रतिष्ठा। माइयो-बापक इच्छा रहैत जे बेटा
घुस लिअए। नोकरीक विरोध, पुरूष प्रधान व्यवस्थामे
नारीक रंग-बिरंगक शोषण। पढ़ौने आरो समस्या। तेसर अंक
- बहुराष्ट्रीय कम्पनीक कृषिपर दुष्प्रभाव, देशी उत्पादनक
अभाव। दहेज समर्थक समाज आ दहेज विरोधी समाज, दू तरहक
समाज। परम्परा आ परम्परा विरोधी नव जाग्रत समाज। खण्ड-पखण्डमे समाज टूटल। नव मनुष्यक
सृजन, नव तकनीक, नव सोच आ नव काज
पकड़ने बहुराष्ट्रीय प्रभावसँ परिवार, समाज आ कला संस्कृतिपर
दुष्प्रभाव, बेबस्था बदलने समाज बदलत। चारिम अंक-
पाइ भेने विचारोमे बदलाव जइसँ नव समाजक सूत्र पात-जन्म सेहो
होइए। रामविलास (मिस्त्री) मनुष्यक महत्व दैए जइसँ दहेजकेँ धक्का लगैए। पहिनेसँ मिथिलांचलक
लोक बंगाल, असाम, नेपाल, ढाका, धरि धनकटनी, पटुआ कटनीक लेल जाइत छल। शिक्षाक विसंगति, ओकरा मेटाएब। पाँचम अंक- आदर्श बिआह।
नव चेतनाक जागरण जे बेबस्था बदलत।
कम्प्रोमाइज-
सामंती समाजमे टुटैत कृषि आ किसानी जीवन, नव पूँजीवादी समाजमे कृषिकेँ पूँजी बनेबाक
बेबस्था, बुद्धिजीवी आ
श्रमिकक पलायनसँ गामक बिगड़ैत दशा, समन्वयवादी विचार-दर्शन।
झमेलिया
बिआह- मिथिलाक समाजमे अबैत बिआह-संस्कारक प्रक्रियामे
रंग-बिरंगक बाहरी प्रभाव, बाहरी प्रभावसँ रंग-बिरंगक विवाद,
झमेलक जन्म, झमेलियाक रूपमे बिआह
प्रक्रियामे होइत विवादक विषद चर्च।
वीरांगना- ग्रामीण
जीवनक बजारोन्मुख हएब, सस्ता श्रम-शक्ति भेटलासँ
पूँजीपति वर्ग द्वारा शोषण, श्रमक लूटसँ ग्रामीण लोक
जानवरोसँ बत्तर जिनगी जीबए लेल मजबूर, रूपैयाक लालचमे
नीच-सँ-नीच काज करबाक लेल तैयार लोक।
तामक
तमघैल- ढहैत सामंती समाजमे छिन्न-भिन्न होइत परिवार,
रीति-नीति एवं परिवारिक सम्बन्ध, छिन्न-भिन्न
होइत परिवारक आर्थिक आधार।
सतमाए-
कोनो संबंध दोषपूर्ण नै होइ छै बल्कि मनुष्यक बेबहार आ विचारमे
दोष होइत छैक, तही बेबहार आ विचारक सम्यक चर्च करैत ‘सतमाए’क आदर्श-रूप
प्रस्तुत कएल गेल अछि।
कल्याणी-
दिन-देखारे होइत अन्यायक प्रति सजगताक उल्लेख करैत नारी जागरणक
चित्रण, बुनियादी समस्या दिस इशारा करैत समस्याक
समाधान हेतु पैघसँ पैघ दाम चुकबए पड़ैत अछि, तेकर चित्रण।
समझौता-
समाजमे कृषिकेँ पूँजी बनेबाक लेल टुटैत कृषि संस्कृतिक बुनियादी
समस्याक वर्णन आ तकर निदान लेल समझौता हेतु सम्यक सोचक जरूरतिपर प्रकाश दैत
ओकर महत्व ओ आवश्यकताक वर्णन।
बेचन
ठाकुर
बेटीक
अपमान आ छीनरदेवी: भ्रूण हत्या,
महिला अधिकार (बेटीक अपमान) आ अन्धविश्वास (छीनरदेवी) पर आधारित दुनू नाटक मैथिली नाटककेँ नव दिशा दैत अछि।
अधिकार:
इन्दिरा आवास योजनाक अनियमितताकेँ आर.टी.आइ.(सूचनाक अधिकार) सँ
देखार करैबला आ रिक्शासँ झंझारपुरसँ दिल्ली जाइबला असली चरित्र मंजूरक कथा अछि।
विश्वासघात:
नेशनल हाइवेक जमीनक मुआवजामे ढेर रास पाइ देल जाइ छै आ ओकरा हड़पै
लेल पारिवारिक सम्बन्धक बलि चढ़ि जाइ छै।
विदेह
नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्य शास्त्र आधारित नाटक रंगमंच संकल्पना आधारित
गजेन्द्र ठाकुर लिखित आ श्री बेचन ठाकुर निर्देशित
जादू-वास्तविकतावादी “उल्कामुख” मंचित कएल
गेल, जे मैथिलीमे ऐ तरहक पहिल प्रयास छल, ऐमे मत्र अभिनेत्री लोकनिक माध्यमसँ नाटक मंचन
भेल, ऐमे पुरुख पात्रक अभिनय सेहो महिला कलाकार द्वारा भेल।
भरत नाट्यशास्त्रक आधारपर रंगमंचक ड्राइंग श्रीमती एस.एस.जानकी क छल। ऐ तरहक एकटा
प्रयास संस्कृत रंगमंचपर चेन्नैमे कएल गेल छल।
बेचन
ठाकुर जी आधुनिक समकालीन विषयपर नाटक लिखै छथि आ उच्च कोटिक निर्देशक छथि। भरतक नाट्यशास्त्रपर
आधारित मंच संकल्पनाकेँ पहिल बेर ई विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे मूर्तरूप देलन्हि।
हिनकर अनेक प्रयोगमे एकटा प्रयोग अछि पूर्ण रूपेण अभिनेत्री लोकनिक माध्यमसँ नाटक
मंचन करब, जइमे पुरुख पात्रक
अभिनय सेहो महिला कलाकार द्वारा भेल। आ ई ओ कतेको बेर केने छथि।
आनंद
कुमार झा
टाटाक
मोल : काटर प्रथापर आधारित नाटक। गरीबनाथ आ
सुमित्राक 'पुत्र कामनार्थ' पाँच
गोट कन्या। पहिले बेटीक विवाहमे हुनकर बहुत खेत बिका गेलनि। दोसर बेटीक कन्यादानक
लेल मात्र बारह कट्ठा जमीन बाँचल छन्हि। बेटी प्रभा
कॉलेजमे पढ़ैत छथि, अपन बहिनक देओर प्रभाकरसँ सिनेह
करै छथि, छोट मांगल-चांगल भाए महीस चरबैत छन्हि।
कलह
: आकाश बेरोजगार छथि।
विभाता सुमित्रा अपन पुत्र राजीव लेल ज्येष्ठ पुत्रक संग यातना दैत छथि। एकटा
अबोध नेनाक जन्म भेल.....।
बदलैत
समाज : एकटा ब्लड कैंसर
पीड़ित घूरन जी अपन बीमार पुत्रक विआह करा दैत छथि। हुनका ओना बूझल नै छलनि जे पुत्र अवधेश ब्लड-कैंसरसँ पीड़ित अछि। भजेन्द्र मुखियाक
पुत्र अवधेशक मृत्युक भऽ गेलनि। अंतमे विधवा शोभाक एकटा सच्चरित्र युवक
वीजेन्द्रसँ पुर्नविवाहक कल्पना कएल गेल।
धधाइत
नवकी कनियाँक लहास : किछु गहनाक खातिर शिखाक आत्महत्याक प्रयास।
हठात्
परिवर्त्तन : देशभक्ति
नाटक।
नाट्य रंगमंच
समिति सभ
मिथियात्रिक(कोलकाता), झंकार
(कोलकाता), मिथियात्रिक-झंकार (मिथियात्रिक
आ झंकार क विलय उपरान्त बनल कोलकाताक संस्था), भंगिमा, पटना ; चेतना
समिति, पटना, जमघट-, मधुबनी; मिथिला विकास परिषद, कोलकाता; अखिल भारतीय मिथिला संघ, कोलकाता; मिथिला कला केन्द्र, कोलकाता; मैथिली रंगमंच, कोलकाता; कुर्मी-क्षत्रिय छात्रवृत्ति कोष,
कोलकाता; आल इण्डिया मैथिल संघ, कोलकाता; कर्ण गोष्ठी:जयन्त लोकमंच, कोलकाता; मिथिला सेवा संस्थान, कोलकाता; मिथि यात्रिक, कोलकाता; वैदेही कला मंच, कोलकाता; कोकिल मंच, कोलकाता;
मिथिला कल्याण परिषद, रिसरा, कोलकाता (निर्देशन मुख्य रूपसँ श्री दयानाथ झा
द्वारा १९८२ ई.सँ। सम्प्रति श्री रण्जीत कुमार झा निर्देशन कऽ रहल छथि, ०८.०१.२०१२ केँ हुनकर निर्देशनमे तंत्रनाथ झा लिखित “उपनयनक भोज” मंचित भेल।) ; झंकार, कोलकाता; मिथिला
सेवा समिति बेलुर, कोलकाता; उदय
पथ, कोलकाता। मिथिला नाट्य परिषद (मिनाप), जनकपुर; रामानन्द युवा क्लब, जनकपुरधाम; युवा नाट्य कला परिषद (युनाप),
परवाहा, धनुषा; आकृति (उपेन्द्र भगत नागवंशी), जनकपुर;
रंग वाटिका, नेपाल; चबूतरा, शिरोमणि मैथिली युबा क्लब, गांगुली, भैरब, मैथिली
सांस्कृतिक युबा क्लब, बौहरबा, श्री
सरस्वती सांस्कृतिक नाट्य कला परिषद, गाम तिलाठी (सप्तरी, नेपाल); अरुणोदय
नाट्य मंच, राजबिराज; सरस्वती
नाट्य कला परिषद, मेंहथ, मधुबनी;
मैथिली लोकरंग (मैलोरंग), दिल्ली;
मिथिलांगन, दिल्ली। मधुबनीक पजुआरिडीह
टोलमे श्रीकृष्ण नाट्य समिति श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ
झा आ गंगा झाक निर्देशनमे मैथिली नाटक मंचित होइत रहल अछि। सांस्कृतिक मंच,
लोहियानगर, पटना; चित्रगुप्त सांस्कृतिक केन्द्र, जनकपुर;
गर्दनीबाग कला समिति, पटना; मिथिलाक्षर, जमशेदपुर; मैथिली कला मंच, बोकारो; उगना विद्यापति परिषद, बेगूसराय; मिथिला सांस्कृतिक परिषद, बोकारो स्टील सिटी;
भानुकला केन्द्र, विराटनगर; आंगन, पटना; नवतरंग,
बेगूसराय; भारतीय रंगमंच, दरभंगा; भद्रकाली नाट्य परिषद, कोइलख, मिथिला अनुभूति दरभंगा, सरस्वती
सांस्कृतिक नाट्यकला परिषद्, तिलाठी; श्री हरगौरी नाट्य कला परिषद, तिलाठी, विदेह अंतर्राष्ट्रीय
मैथिली ई-जर्नलक नाट्य उत्सव।
निर्देशन: कालीकान्त झा
"बूच", कामदेव पाठक, श्री कमल नारायण कर्ण
(चीनीक लड्डू-ईशनाथ झा/ चारिपहर- मूल बांग्ला किरण मैत्र, मैथिली अनुवाद-
निरसन लाभ), श्री श्रीकान्त मण्डल (चन्द्रगुप्त मूल
बांग्ला डी.एल.राय, मैथिली अनुवाद- बाबू साहेब चौधरी/
पाथेय- गुणनाथ झा/ नायकक नाम जीवन- नचिकेता); श्री विष्णु
चटर्जी आ श्री श्रीकान्त मण्डल (निष्कलंक- जनार्दन झा); प्रवीर
मुखोपाध्याय; वीणा राय, मोहन
चौधरी, बाबू राम सिंह, गोपाल दास,
कुणाल, रवि देव, दयानाथ झा, त्रिलोचन झा, शम्भूनाथ मिश्र, काशी झा, अशोक झा, गंगा झा, गणेश
प्रसाद सिन्हा, नवीन चन्द्र मिश्र, जनार्दन राय, श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक,
शिवनाथ झा, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अखिलेश्वर, सच्चिदानन्द, रमेश राजहंस, मोदनाथ झा, विभूति आनन्द, जावेद अख्तर खाँ, कौशल किशोर दास, प्रशान्त कान्त, अरविन्द रंजन दास, मनोज मनु, रोहिणी रमण झा, भवनाथ झा, उमाकान्त झा, लल्लन प्रसाद ठाकुर, रघुनाथ झा किरण, महेन्द्र मलंगिया, कुमार शैलेन्द्र, विनीत झा, किशोर कुमार झा, कुमार गगन, विनोद कुमार झा, के.अजय, छत्रानन्द सिंह झा, नीलम चौधरी, काजल, मनोज कुमार पाठक, आशनारायण मिश्र, श्री श्रीनारायण झा, प्रमिला झा, तनुजा शंकर, केशव नन्दन, ब्रह्मानन्द झा, संजीव तमन्ना, किसलय कृष्ण, प्रकाश झा, मुन्नाजी संजय कुमार चौधरी,
कमल मोहन चुन्नू, अंशुमान सत्यकेतु,
श्याम भास्कर, प्रेम कुमार, संगम कुमार ठाकुर, एल.आर.एम. राजन, भास्करानन्द झा, आशुतोष कुमार मिश्र, आनन्द कुमार झा, मनोज मनुज, संजीव मिश्र, स्वाति सिंह, स्वर्णिम, आशुतोष यादव अभिज्ञ, अशोक अश्क, दिलीप वत्स, तरुण प्रभात, माधव आनन्द, नरेन्द्र मिश्र, भारत भूषण झा, किशोर केशव, बेचन ठाकुर, उपेन्द्र भगत नागवंशी, अनिल चन्द्र झा, अंशुमान सत्यकेतु, आनंद कुमार झा, हेमनारायण साहू, रामकृष्ण मंडल छोटू, धीरेन्द्र कुमार,उत्पल झा, अभिषेक के. नारायण, चन्द्रिका प्रसाद, नागेन्द्र झा।
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