विदेह मैथिली नाट्य उत्सव 'Videha Maithili Drama Festival'- the encyclopaedia of Maithili Stage and Drama/ VIDEHA PARALLEL MAITHILI THEATRE
Saturday, September 29, 2012
Sunday, September 23, 2012
गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत
गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर
विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्यशास्त्रक संकल्पनाक संग गजेन्द्र ठाकुरक उल्कामुखक अपार सफलताक बाद...
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे ...
"समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर...
गजेन्द्र ठाकुरक "गंगा ब्रिज"
रिटायरमेंट आ मृत्युक बीच संघर्षमे के जीतत...
तँ की हारि जाइ
तँ की छोड़ि दिऐ
इच्छा जीतत आकि जीतत ईर्ष्या
संकल्प हमर जे एहि धारकेँ मोड़ि देब
मुदा किछु ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ईर्ष्या जे हम धारकेँ नहि मोड़ि पाबी
बहैत रहए ओ ओहिना
ओहिना किए ओहूसँ भयंकर बनि
संकल्प जे हम केने छी
इच्छा जे अछि हमर/ से हारि जाए
आ जीति जाए द्वेष/ जीति जाए ईर्ष्या
हा हारबो करी तेना भऽ कऽ जे लोक देखए!/ जमाना देखए!!
तेना कऽ हारए संकल्प हमर/ इच्छा हमर
धारकेँ रोकि देबाक/ ठाढ़ भऽ जएबाक सोझाँ ओकर
आ मोड़ि देबाक संकल्प ओहि भयंकर उदण्ड धारकेँ
मुदा किछु आर ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ओ द्वेष चाहैए जे हमर प्रयास/ धारकेँ मोड़बाक प्रयास
मोड़लाक प्रयासक बाद भऽ जाए धार आर भयंकर
पुरान लीखपर चलैत रहए भऽ आर अत्याचारी
आ हम जाए हारि
आ हारी तेना भऽ कऽ जे लोक राखए मोन
मोन राखए जे कियो दुस्साहसी ठाढ़ भऽ गेल छल धारक सोझाँ
तकर भेल ई भयंकर परिणाम
जे लोक डरा कऽ नहि करए फेर दुस्साहस
दुस्साहस ठाढ़ हेबाक उदण्ड-अत्याचारी धारक सोझाँमे
लऽ ली हम पतनुकान/ आ से सुनि थरथरी पैसि जाए लोकक हृदयमे
मुदा हम हँसै छी
हारि तँ जाएब हम मुदा हमर साधनासँ जे रक्तबीज खसत
से एक-एकटा ठोपक बीआ बनि जाएत सहस्रबाढ़नि झोँटाबला
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ अछि हमर ई बुढ़िया डाही।
मैथिली नाटककेँ.....................
नव आयाम दैत ............................
नाटकक नव युगमे प्रवेश प्रवेश करबैत अछि.......
"गंगा ब्रिज".......................................................
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत............................
निर्देशक बेचन ठाकुर..................................................................
मंच "समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर.........................................................................
“विदेह मैथिली नाट्य महोत्सव २०१३”-निर्देशक बेचन ठाकुर [किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए, कतेक सए सालसँ अछि दुश्मन ई दुनियाँ तैयो।] कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा [इकबाल]
एखनो जीबैत अछि कलकत्ता रंगमंच : अशोक झा (रिपोर्ट रूपेश कुमार झा त्योँथ)
एखनो जीबैत अछि कलकत्ता रंगमंच : अशोक झा
कलकत्ता. मैथिली रंगमंच आ कलकत्ता केर सम्बन्ध रौद-छांह केर अछि. एहना मे केओ कलकतिया रंगमंच आ रंगकर्म कें कम क' नहि आंकय. ई बात मिथिला विकास परिषदक राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक झा परिषदक बैसार मे कहलनि. ओ जनओलनि जे किछु लोक कलकत्ता रंगमंच केर विषय मे अनाप बजै अछि. हुनका सभ कें नहि बिसरबाक चाही जे कलकत्ता एक सं एक रंगकर्मी, नाटककार ओ निर्देशक देलक अछि. मिथिला विकास परिषद् केर संगहि एतय कोकिल मंच सेहो समय-समय पर नाट्य मंचन करैत अछि. मिथिला विकास परिषद् द्वारा १९८३ सं धारावाहिक रूपें लगभग अढाइ दर्जन नाटकक मंचन भेल अछि. हम सभ एखनो नाटक करब त्यागने नहि छी. आगामी कार्यक्रम घोषणा हम शीघ्र करब.
ओ भारतीय भाषा परिषद् मे आयोजित मिथिला महोत्सव केर तेसर दिनक कार्यक्रम केर अंतिम तैयारीक समीक्षा लेल कार्यकर्ता केर बैसार मे बाजि रहल छलाह. हुनक वक्तव्य सं कलकत्ता केर नाट्य दर्शक केर आस एक बेर फेर जागल अछि.
Saturday, September 22, 2012
जगदीश मल्लिक (श्री जगदीश मल्लिककेँ विदेह हस्तकला सम्मान- २०१२ देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार लेलनि।)
जगदीश मल्लिक (श्री जगदीश मल्लिककेँ विदेह
हस्तकला सम्मान- २०१२ देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार लेलनि।)
बे.ठाकुर- अहाँकेँ ऐ कार्यक प्रति रुचि केना आ कहियासँ जगल?
जगदीश मल्लिक- पथिया, कोनियाँ, चंङेरा,
बिआहक डाला बनेनाइ हमर खानदानी
पेशा अछि, बच्चेसँ ई सिखाएल गेल।
बे.ठाकुर- ऐ कार्य करबामे अहाँकेँ के प्रोत्साहित करैत अछि?
जगदीश मल्लिक- हमरा लेल ई काज हमर जीविका अछि, हमर माए-बाबू विशेष रूपसँ हमरा प्रोत्साहित करैत रहथि।
बे.ठाकुर- अहाँकेँ कार्य करबामे की प्रोत्साहित करैत अछि?
जगदीश मल्लिक- लोककेँ हमर काजक महीनी नीक लगै छै, सएह हमरा प्रोत्साहित करैत अछि।
बे.ठाकुर- पहिल बेर कोन कृति/ काजसँ अहाँ आरम्भ केलौं आ कहियासँ?
जगदीश मल्लिक- पथिया, कोनियाँ, चंङेरा,
बिआहक डाला, बिअनि, घिरनी,
फिरकी, गुड़चल्ला, बच्चेसँ बनबै छी।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन काजमे १.“सोच”, २.“कोनो पुरान वा नव लीख” वा ३ “शिल्प” ऐ तीनूमे सँ केकरा प्रधानता दै छी?
जगदीश मल्लिक- हम अपन काजमे शिल्पकेँ ऐ तीनूमे सँ बेसी प्रधानता दइ छी।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन काजक दिशाकेँ, रूपकेँ एक पाँतिमे कोन रूपमे वर्णन करब।
जगदीश मल्लिक- हमर शिल्प लोककेँ नीक
लगै छै, हमरा लोक बिसरि जाइए मुदा हमर शिल्पकेँ मोन राखैए।
बे.ठाकुर- अहाँक काजक समाजमे कोन स्थान छै? की ऐसँ समाजमे परिवर्तन एतै?
जगदीश मल्लिक- लोकक आवश्यकताक पूर्ति
होइ छै, हम सभ अखनो समाजसँ अलगे छलौं मुदा हमर सभक शिल्प अछूत नै अछि।
बे.ठाकुर- अहाँ जइ विधामे लागल छी ओकर की व्यक्तिगत विशेषता छै, ई ऐ क्षेत्रमे कार्यरत दोसर लोकक काजसँ कोन अर्थे भिन्न छै?
जगदीश मल्लिक- हम ऐ विधामे
लागल छी, ऐ क्षेत्रमे लोकक एगो विशेष पहचान रहबाक चाही छलै मुदा से नै छै। सुन्दर कलाकृति बनेनहार अछोप
छै!!
बे.ठाकुर- अहाँक विधाक क्षेत्रमे आन के सभ छथि आ ओ कोन तरहक विशिष्ट काज कऽ रहल छथि?
जगदीश मल्लिक- हमरा विधाक
क्षेत्र जातीय आधारपर अछि आ एकसँ एक बस्तु सभ बनबै छथि।
बे.ठाकुर- की अहाँक काज अहाँक जीवन-यापनक काजमे, घरेलू काजमे बाधा होइए वा सहायता पहुँचाबैए?
जगदीश मल्लिक- हमर यएह जीवन यापन छी तेँ
ई सहायता पहुँचाबैए।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन आन रुचिक विषयमे बताउ।
जगदीश मल्लिक- ऐ केँ अलाबा
हमर सभक पुश्तैनी सुअर पालनक व्यवसाय अछि, मुदा नव पीढ़ी पढ़ि सेहो रहल अछि।
बे.ठाकुर- कोनो संदेश जे अहाँ देबए चाही।
जगदीश मल्लिक- ऐ सभसँ की हएत। लोकक
दिमागमे जे खेला छै तकरा दूर करए पड़त। सभकेँ समाजक अंग बुझए पड़त।
शिल्पीकेँ सम्मान देबए पड़त, कोनो काजकेँ खास कऽ हाथसँ करैबला काजकेँ सम्मान देबए पड़त।
कतेक शिल्पी मरि खपि गेला। मिथिलामे कलाक विस्तार केना हएत
जखन सुन्दर वस्तु बनबैबलाकेँ असुन्दर मानि बहिष्कार करब। अहाँ
लोकनि हमर शिल्पकेँ सम्मान देलौं ओइ लेल आभार। पढ़ाइ लिखाइ आ बदलल सोच दिमागी खेलाकेँ
दूर कऽ सकत, गलत सोचकेँ पटकनियाँ दऽ सकत, तखने शिल्प आ शिल्पकार आ हाथसँ काज केनिहारकेँ
सम्मान भेटतै। अहाँ सभ जीती तकर शुभकामना दै छी।
परिचए- श्री जगदीश मल्लिक, पिताक
नाओं- स्व. स्वरूप मल्लिक, गाम+पोस्ट- चनौरागंज, भाया- झंझारपुर, जिला-
मधुबनी (बिहार) केर स्थायी निवासी छथि। शिल्पकलामे हिनक प्रतिष्ठा छन्हि।
हिनक बनाओल पथिया, कोनियाँ, चंङेरा, बिआहक डाला इत्यादि प्रशंसनीय होइत छन्हि।
विदेह हस्तकला सम्मान- २०१२ सँ सम्मानित करैत विदेह परिवार प्रसन्नता महसूस
कएलक अछि।
Thursday, September 20, 2012
अमित रंजन (अमित रंजन केँ विदेह नृत्यकला सम्मान- २०१२ देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार लेलनि।)
अमित रंजन (अमित रंजन केँ विदेह नृत्यकला सम्मान- २०१२ देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार
लेलनि।)
बे.ठाकुर- अहाँकेँ ऐ कार्यक प्रति रुचि केना आ कहियासँ जगल?
अमित- जखन हम सभ कोइकेँ मंचपर नृत्य करैत देखलौं तँ
हमरा इच्छा भेल जे एना हमहूँ करितौं। 2005 ई.क ओ समए रहए।
बे.ठाकुर- ऐ कार्य करबामे अहाँकेँ के प्रोत्साहित करैत अछि?
अमित- श्री बेचन ठाकुर जीक प्रोत्साहन हमरा सभकेँ
भेटैत रहल अछि। ओ हमर गुरुजी सेहो छथि।
बे.ठाकुर- पहिल बेर कोन कृति/ काजसँ अहाँ आरम्भ केलौं आ कहियासँ?
अमित- पहिल बेर हम गीत गेलौं। स्कूलमे। शुरूमे बेसी
गीते गबैत छलौं। धीरे-धीरे नृत्यमे सोहो भाग लिअए लगलौं। ओना हमरा नृत्यमे बेसी
प्रत्साहन भेटल।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन काजमे १.“सोच”, २.“कोनो पुरान वा नव लीख” वा ३ “शिल्प” ऐ तीनूमे सँ केकरा प्रधानता दै छी?
अमित- हम ऐ तीनूमे सोचकेँ बेसी प्रधान्ता दइ छी।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन काजक दिशाकेँ, रूपकेँ एक पाँतिमे कोन रूपमे वर्णन करब।
अमित- हम अखन बी.ए. पार्ट-वनमे पढ़ैत छी। हिन्दी
ऑनर्स अछि। दसमामे मैथिली एच्छिक विषयमे पढ़ने छी। मैथिलीसँ प्रेम अछि।
मौका भटैत रहत तँ आरो किछु-किछु करैत रहब।
बे.ठाकुर- अहाँ जइ विधामे लागल छी ओकर की व्यक्तिगत विशेषता छै, ई ऐ क्षेत्रमे कार्यरत दोसर लोकक काजसँ कोन अर्थे भिन्न छै?
अमित- संगीसँ सिनेह अछि। गबैयोमे बड्ड मन लगैए।
बे.ठाकुर- की अहाँक काज अहाँक जीवन-यापनक काजमे, घरेलू काजमे बाधा होइए वा सहायता पहुँचाबैए?
अमित- हमर जीवन-यापनमे घरेलू काज कोनो महत्वपूर्ण नइए।
हम ओइ सभसँ अलग छी। खाली पढ़ै-लिखैक रहैए। तँए हमरा कोनो बाधा नै अछि। घरसँ बहुत
सहायता भेटैए।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन आन रुचिक विषयमे बताउ।
अमित- संगीसँ सिनेह अछि। गबैयोमे बड्ड मन लगैए।
परिचए- श्री अमित रंजन, पिताक
नाअों- श्री नागेश्वर कामत, गाम- पौराम, पोस्ट- चनौरागंज, भाया- झंझारपुर, जिला-
मधुबनी, बिहारक स्थायी निवासी छथि। १८ वर्षीय अमित १२म कक्षाक छात्र छथि।
अनुमण्डल स्तरपर नृत्यकलामे हिनका प्रथम पुरस्कार भेटल छन्हि। जे.एम.एस.
कोचिंग सेन्टर, चनौरागंजक प्रांगणमे आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रममे नृत्य
लेल सराहल जाइत रहला अछि। विदेह नृत्यकला सम्मान- २०१२ सँ सम्मानित करैत विदेह
परिवार प्रसन्नता महसूस करैत अछि।
यदुनन्दन पंडित, (यदुनन्दन पंडित केँ विदेह शिल्प कला सम्मान- २०१२देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार लेलनि।)
यदुनन्दन पंडित, (यदुनन्दन पंडित केँ विदेह शिल्प कला सम्मान- २०१२देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार
लेलनि।)
बे.ठाकुर- अहाँकेँ ऐ कार्यक प्रति रुचि केना आ कहियासँ जगल?
य.पंडित- हम ई काज माने मुर्ति बनेनाइ आ कुम्हारक जे
वर्तन होइए, बच्चेसँ यानी कि ताबए दसे बरखक रही तहियेसँ करै छी। ई काज हमर पिताजी
आ नानासँ सिखलौं।
बे.ठाकुर- ऐ कार्य करबामे अहाँकेँ के प्रोत्साहित करैत अछि?
य.पंडित- ऐ कार्य करबामे हमरा ग्राहकक संतुष्टि आ जश
प्रोत्साहित करैए।
बे.ठाकुर- पहिल बेर कोन कृति/ काजसँ अहाँ आरम्भ केलौं आ कहियासँ?
य.पंडित- शुरूमे हम छोट-छोट काज जेना हाथी बनेनाइ,
घोड़ा बनेनाइ शंकरजी, सरस्वती मूर्ति इत्यादिसँ काज शुरू केलौं यएह सभ प्रथम
काजमे अछि हमर। ओइ समैमे हम लगभग चौदह बर्खक रही।
बे.ठाकुर- की अहाँक काज अहाँक जीवन-यापनक काजमे, घरेलू काजमे बाधा होइए वा सहायता पहुँचाबैए?
य.पंडित- हमर काज हमरा जीवन-यापनक काजमे सहायता
पहुँचाबैए। चूकि ई काज हमरा समाजक जन्मजात वृत्ति अछि। ऐ काजसँ पूरा परिवारक
भरन-पोषन होइए। ई हमर जीविका छी।
परिचए- श्री यदुनन्दन पण्डित, पिताक
नाओं- श्री अशर्फी पण्डित, गाम+पोस्ट- बेलाराही, भाया- झंझारपुर, जिला- मधुबनी (बिहार)
केर स्थायी निवासी छथि। उम्र ५० बर्ख। हिनका बचपनसँ कुम्हारक कार्यमे अभिरूचि
छन्हि। माटिक बर्तन-बासन आदिक अतिरिक्त विभिन्न देवी-देवताक मूर्ति
बनेबामे सिद्धस्त छथि। उक्त कलासँ ई इलाकामे प्रसिद्ध छथि। सरस्वती सनक
देवीकेँ दूगो हाथ काटैबला कुम्हारकेँ कलाक संग मजाक बुझै छथि, मुदा अपने चारि हाथवाली प्रतिमा बना अपन क्षेत्रमे प्रसिद्धि हासिल
कएने छथि। विदेह शिल्प कला सम्मान- २०१२ सँ सम्मानित कऽ विदेह परिवार
हर्षित अछि।
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