भऽ जाएब छू- गजेन्द्र ठाकुर
(बाल चौबटिया-सड़क नाटक)
सूत्रधार: आउ, आउ। ऐ चौबटिया नाटक, सड़क नाटक देखबाले आउ।
(सूत्रधार लोक सभ दिस तकै छथि।| हमर कलाकार सभ गप-शप करैत हल्ला जेकाँ करैत छथि।)
भीड़सँ आएल पुरुष कलाकार: (कलाकार सभक गोलसँ बहार भऽ निकलैत)- की हौ। की सभ बाजि रहल छह हौ। की छिऐ ?
सूत्रधार: सभ जुमि कऽ आउ। घेराबा बना लिअ। मैथिली चौबटिया नाटकले घेरा बना कऽ ठाढ़ भऽ जाऊ। चोटगर नाटक हएत।
भीड़सँ निकलि कऽ आएल दोसर महिला कलाकार: चल रे चल। एकरा सभक मैथिली नाटक हेबऽ दही। नाटक देखलासँ भोजन चलतौ रौ।
सूत्रधार: नै यै दाइ। भुखलेबला लेल ई नाटक छै। पेटक भूख, मोनक भूख आ बोलीक भूख।
महिला कलाकार: से छै। तखन आबै जाइ जो।
सूत्रधार: आबै जाउ, आबै जाउ। आइ हएत बच्चा, किशोर, युवा, प्रौढ़ आ बूढ़क लेल नाटक। स्त्री-पुरुषक लेल नाटक। चिड़ै-चुनमुनी लेल नाटक, गाछ-बृच्छ लेल नाटक, हबा-बसात लेल नाटक। सूर्य-चन्द्र-तरेगण लेल नाटक। मूर्त-अमूर्त लेल नाटक। देश लेल नाटक। निन्न आ सपना लेल नाटक।
(महिला सूत्रधार बिच्चहिमे आबि जाइ छथि। भीड़सँ आएल वएह महिला कलाकार महिला सूत्रधार बनि सकै छथि।)
महिला सूत्रधार: हे। सोझे कहू ने जे ककरा लेल ई नाटक नै छै। एना पैघ-पैघ गप किए दऽ रहल छी।
सूत्रधार: कोनो नाम छुटि गेलै की ?
महिला सूत्रधार: यएह लिअ। सेहो हमहीं कहू। आब ताम-झाम शुरू करू आ देखाउ जे की विस्तार लेने अछि ई नाटक।
सूत्रधार: बेस तँ शुरू करू।
(कलाकार सभ एक दोसरामे मिज्झड़ भऽ एक-एकटा फराक पाँती बनबैत छथि। छोट, किशोर, युवा आ बूढ़क पाँती। स्त्री-पुरुषक पाँती। चिड़ै-चुनमुनी जेकाँ छोट बौआ आ छोट बुच्ची बजैत अछि। किशोर सभ हाथमे गाछ-बृच्छक हबा-बसातमे हिलैत पातक फोटो लऽ लैत छथि। युवा पुरुष सूर्य-तरेगणक फोटो आ युवा स्त्री-चन्द्रक फोटो लेने अबैत अछि लेने अछि तँ बूढ़ आ बूढ़ी भूत-प्रेत, भगवान आ स्वप्नक फोटो हाथमे लऽ लैत छथि।)
१ छोट बौआ: हम ओम। हम चिड़ै। नै भगजोगनी।
२ छोट बुच्ची: हम आस्था। हम चुनमुनी। हा हा (हँसैत)। भगजोगनी।
३ किशोर बौआ: हम जयन्त। हम गाछ।
४ किशोर बुच्ची: हम अपाला। हम बृच्छ। हेँ हेँ (हँसैत)।
५ युवा: हम विजय। हम सूर्य तरेगण।
६ युवती: हम विजया। हम चन्द्र माने चन्दा। खी-खी (हँसैत)।
७ वृद्ध: (थड़थड़ाइत) हम नेकलाल। हम भूत-प्रेत-राकश...।
८ वृद्धा: हम रामवती। हम स्वप्न माने कल्पना। हम...हम...हम...।
(कल्पनाक भाव-भंगिमा तीन बेर करैत छथि।)
सूत्रधार: अहाँ सभक काज की ?
महिला सूत्रधार: अहाँ सभक काज की ?
(आब छोट बौआकेँ –ओमकेँ- १ छोट बुच्ची- आस्थाकेँ- २ एना ८ धरि कहब।)
१ सँ ८ (संगे-संग): हम सभ कोनो काजकेँ ढंगसँ कऽ देब, कहि कऽ तँ देखू।
महिला सूत्रधार: चिड़ै-चुनमुनी, दुनू गोटे आउ आ भगजोगनी बनि जाउ।
(१ सँ ८ संगे-संग चिकड़ऽ लगैत अछि। तखने १ आ २ झोंझसँ निकलि कऽ बगलमे राखल झोरासँ भगजोगनीक फोटो आ दूटा लेजर लाइट लऽ अनै छथि आ शेष छह गोटे एकटा चद्दरिसँ दुनू गोटेकेँ अढ़ कऽ दै छथि।)
१ : (लेजर लाइट बड़बै छथि): कतऽ छी आस्थू।
२ : (चद्दरिसँ बहार भऽ लेजर लाइट बड़बैत) हमदेख लेलौं ई संकेत। हम ओतऽ छलौं झोँझमे।
१ आ २ (संगे संग बजैत): हँ भऽ गेल।
७ आ ८ (संगे बजैत): की भऽ गेल?
१: देखलौं नै जे कोना प्रकाशसँ हमसभ एक दोसराकेँ ताकि लेलौं।
७: ई तँ जखन हम मनुक्ख रही, माने मुइलाक पहिने, तखन खूब प्रयोग करैत रही। की यै रामवती।
८: करैत तँ रही, मुदा प्रकाश संग कतेक गर्मी आबि जाइ छलै। गुमारसँ जान चलि जाइ छल।
७: हे, प्रकाश हेतै तँ गर्मी तँ बहार हेबे करतै।
८: नेकलालजी। सोलह आना ऊर्जामे सँ पन्द्रह आना गर्मी आ एक आना मात्र प्रकाश आनै छलौं अहाँ। बड़का वैज्ञानिक बनै छलौं। प्रकाश तँ आबै छल मुदा गुमारसँ जान चलि जाइ छल।
७: अहाँ तँ छीहे कल्पना। मुइलाक बाद तेँ ने बनि गेलौं कल्पना।
८: आ तेँ ने अहाँ बनि गेलौं भूऽऽऽऽऽत, प्रेऽऽऽऽऽत, राकश।
७: (कने तमसाइत) हे तँ अहीं कहू जे प्रकाश बिन गर्मीक भेट सकैए। (लोकसभ दिस हाथ पसारि कऽ तकैत अछि)
५: (सोझाँ अबैत): नै, ई सम्भव नै अछि।
६: ई सम्भव अछि विजय।
५: आबि गेली विजया!!! (आश्चर्यसँ हाथ पसारैत अछि।) हिनकासँ कने पूछू जे हिनका लग अपन प्रकाश छन्हि की?
८: नै छन्हि मुदा तैयो रातिमे जे हिनकासँ इजोरिया छिटकैए से ठंढा तँ लगिते अछि।
७: हा!!! कल्पना!!! अपने फुरेने बजैत जाउ…बजैत जाउ…!!!
८: अहाँ जँ जिबैतेमे हमर गप सुइतौं, कल्पना करितौं तँ बना सकितौं बिन गुमारबला प्रकाश। ठंढ़ा प्रकाश।
७: सुनऽ हौ ओम-आस्था, बिन गुमारबला प्रकाश !! (आश्चर्य प्रकट करैत हाथ पसारैत अछि।) आब तोँहीं सभ बताबह जे बिन गुमारबला प्रकाश सम्भव नै छै।
१ आ २ : (आशचर्यसँ हाथ पसारैत) प्रकाशसँ गर्मी निकलतै तँ भगजोगनी तँ मरिये जेतै।
८: तखन तों सभ कोना जीवित छह।
१: माने?
२: प्रकाश तँ ठंढ़ा होइ छै।
१: हमर पुछरीसँ बहराइए प्रकाश, शीतल प्रकाश।
२: करैए मोन ठंढ़ा। दैए संकेत आ ताकि लै छी हम सभ एक-दोसराकेँ।
८: ओह, हम तकैत रहि गेलौं रातिमे दूर देशक चन्द्रमा आ करैत रहि गेलौं कल्पना। मुदा अहाँ नेकलाल, किए नै देख सकलौं रातिमे घुमैत भग जोगनी सभकेँ।
७: असफल वैज्ञानिक छी हम। राकश बनि घुमै छी, प्रकाशक ऊर्जासँ जड़ै छी। कल्पने, हम नै कऽ सकलौं कल्पना, नै तँ बनि जइतौं भगजोगनी।
८. जे पूरा कऽ दैतौं अहाँ हमर ओ कल्पना तँ हमहूँ बनि जइतौं भगजोगनी, । नै कटितै एतेक रास गाछ-बृच्छ, बोन देखू कतेक दूर भेल देखाइए (दूर बाध दिस आंगुर देखबैत अछि।)
३ आ ४ (समवेत स्वरमे) असगर भऽ गेल छी हम सभ। सूर्य तरेगन चन्द्रमा सन असगर।
(ऐ दुनूकेँ छोड़ि कऽ सभ कलाकार भीड़मे मिज्झर भऽ जाइ छथि।)
४: असगरे रहि गेल छी हम सभ। किछु दिनमे खतम भऽ जाइ जाएब।
३: लगैए सएह। बनि जाएब भूत, प्रेत, राकश।
(तखने भूत-प्रेत बनल वृद्ध अबैए।)
७: से किए, अहाँ सभक ई स्थिति कोना भेल।
३: अहाँ द्वारे।
४: अहीं दुआरे।
७: आब हम की कऽ देलौं।
३: कागच बनबैले हमरा काटलौं।
४: मकान बनबैले हमरा काटलौं।
७: मुदा से तँ जरूरी छल। से तँ करैए पड़ितै किने।
३: तँ हमरा रोपलौं किए नै। कल्पना किए नै केलौं।
(तखने वृद्धाक प्रवेश होइए।)
८: कहू। कल्पना किए नै केलौं?
७: कोन कल्पना।
८: कल्पना जे कतेक काटी आ तकर कतेक गुना रोपी।
७: मुदा हम तँ रोपलौं।
३: अहाँ रोपलौं यूकेलिप्टस।
४: अहाँ रोपलौं विदेशी गाछ।
३: खून..नै नै..पानि पीब गेल सभटा ऐ जमीनक।
७: हे सभटा हमरे दोख नै दै जाउ। की अहाँ सभ ऊर्जा नै खर्च करै छी? हम वैज्ञानिक छी। सभटा बुझल अइ हमरा।
(३ आ ४ समवेत स्वरमे गीत गाबै छथि।)
ऑक्सीजन जरा भोजन बनबै छी
काज मोताबिक सेहो जरबै छी
जाड़क मासमे गरम रहै छी
नै होइ छै सगरो गरमी तँए
(नाचऽ लगै जाइए।)
७: बुझल अछि हमरा ई सभ। मुदा गर्मी कम्मे सही आनै तँ छी।
३: मुदा सेहो अहीं सभ लेल।
७: हमरा सभ लेल। कोना..कोना?
४: जाड़मे फूल तोड़ैकाल हाथ नै ठिठुरए अहाँ सभक तेँ कमलक फूलकेँ गरम राखै छी।
७: हे तँ कियो अहाँकेँ काटैए तँ अपन सुरक्षा अपने किए नै करै छी।
८: कल्पना..सोचू सोचू।
३: करै छी।
४: जतेक सक बनि पड़ैए, ततेक करै छी।
(३ आ ४ समवेत स्वरमे गीत गाबै छथि।)
काँट देखा कऽ दूर भगाबी
फल खुआ कऽ भूख भगाबी
फूल तोड़ि कऽ, लऽ जाउ
देवता पितरपर अहाँ चढ़ाउ
(नाचऽ लगै जाइए।)
३: फल-फूलक लालचो दै छिऐ।
४:काँट देखा कऽ डराबितो छिऐ
३: मुदा तैयो नै मानै जाइए।
८: कल्पना..सोचू, सोचू।
७: (वृद्धा रामवती दिस तकैत।) हे कल्पने। हमरा जे अहाँ कहै छलौं जे कतेक काटी, तकर कतेक गुना रोपी, से हिनको सभकेँ कहियौन्ह ने।
८: हिनकर सभक पएर तँ माटिमे रोपल छन्हि, ई सभ कोना कऽ से करताह।
७: (मुँह दुसैत) कल्पना..सोचू..सोचू।
(३ आ ४ समवेत गाबऽ लगैए आ वृद्धक मुँह गीत सुनबाक क्रममे झूस हेबऽ लगै छै; मुदा गीत सुनैत-सुनैत वृद्धा मुदित भऽ जाइए। )
बीया फँसैए महीसक केसमे
लऽ जाइए ओ दूरदेशमे
झाड़ैए देह पहुँचाबैए ओतए
रोपने पएर, चलि जाइ ओतए!!!!
(बिन हिलने दुनू गोटे हाथसँ दूर इशारा करैत अछि।)
३: बीयामे तेना कऽ नोकसी सन फाँस बनबै छिऐ जे ओ मालक देहमे बाझि कऽ दूर चलि जाए ।
४: आ दूर जा कऽ बीया ओतऽ नव गाछ जनमाबए।
३: पराग लऽ कऽ टिकली दूर जाइए।
४: दोसर गाछकेँ ओइ परागसँ पुष्ट करैए..दूर देशमे।
८: कल्पना..ऽऽऽऽऽ।
(वृद्ध माथपर हाथ धऽ बैस जाइए, मुदा वृद्धा सेहो ओकर बगलमे बैस जाइए, आकाश दिस चिन्तित भऽ तकैत।)
४: जयन्त आब लगैए हमसभ खतम भऽ जाएब। जइ देशक वैज्ञानिक कल्पना नै करैत होथि ओतऽ की हएत? (हाथ घुमा कऽ पुछै छथि।)
३: अपाले। ओतऽ भविष्यक गाछ-बृच्छ विहीन कल्पना सत्य भऽ जाइए।
४: जेना एतऽ भेल अछि।
(३ आ ४ कानि कऽ गाबैए।)
जड़ि कटने भऽ जाएब छू
फूल पात सभ, लऽ लू
मरि गेल सभटा बुतरू
(दुनू खोंखी करऽ लगैए।)
(१ सँ ८ सभ बैसि जाइए आ गाबैए।)
जड़ि कटने भऽ जाएब छू।
जड़ि कटने भऽ जाएब छू
फूल पात सभ, लऽ लू
मरि गेल सभटा बुतरू
(सभ खोंखी करऽ लगैए।)
(बाल चौबटिया-सड़क नाटक)
सूत्रधार: आउ, आउ। ऐ चौबटिया नाटक, सड़क नाटक देखबाले आउ।
(सूत्रधार लोक सभ दिस तकै छथि।| हमर कलाकार सभ गप-शप करैत हल्ला जेकाँ करैत छथि।)
भीड़सँ आएल पुरुष कलाकार: (कलाकार सभक गोलसँ बहार भऽ निकलैत)- की हौ। की सभ बाजि रहल छह हौ। की छिऐ ?
सूत्रधार: सभ जुमि कऽ आउ। घेराबा बना लिअ। मैथिली चौबटिया नाटकले घेरा बना कऽ ठाढ़ भऽ जाऊ। चोटगर नाटक हएत।
भीड़सँ निकलि कऽ आएल दोसर महिला कलाकार: चल रे चल। एकरा सभक मैथिली नाटक हेबऽ दही। नाटक देखलासँ भोजन चलतौ रौ।
सूत्रधार: नै यै दाइ। भुखलेबला लेल ई नाटक छै। पेटक भूख, मोनक भूख आ बोलीक भूख।
महिला कलाकार: से छै। तखन आबै जाइ जो।
सूत्रधार: आबै जाउ, आबै जाउ। आइ हएत बच्चा, किशोर, युवा, प्रौढ़ आ बूढ़क लेल नाटक। स्त्री-पुरुषक लेल नाटक। चिड़ै-चुनमुनी लेल नाटक, गाछ-बृच्छ लेल नाटक, हबा-बसात लेल नाटक। सूर्य-चन्द्र-तरेगण लेल नाटक। मूर्त-अमूर्त लेल नाटक। देश लेल नाटक। निन्न आ सपना लेल नाटक।
(महिला सूत्रधार बिच्चहिमे आबि जाइ छथि। भीड़सँ आएल वएह महिला कलाकार महिला सूत्रधार बनि सकै छथि।)
महिला सूत्रधार: हे। सोझे कहू ने जे ककरा लेल ई नाटक नै छै। एना पैघ-पैघ गप किए दऽ रहल छी।
सूत्रधार: कोनो नाम छुटि गेलै की ?
महिला सूत्रधार: यएह लिअ। सेहो हमहीं कहू। आब ताम-झाम शुरू करू आ देखाउ जे की विस्तार लेने अछि ई नाटक।
सूत्रधार: बेस तँ शुरू करू।
(कलाकार सभ एक दोसरामे मिज्झड़ भऽ एक-एकटा फराक पाँती बनबैत छथि। छोट, किशोर, युवा आ बूढ़क पाँती। स्त्री-पुरुषक पाँती। चिड़ै-चुनमुनी जेकाँ छोट बौआ आ छोट बुच्ची बजैत अछि। किशोर सभ हाथमे गाछ-बृच्छक हबा-बसातमे हिलैत पातक फोटो लऽ लैत छथि। युवा पुरुष सूर्य-तरेगणक फोटो आ युवा स्त्री-चन्द्रक फोटो लेने अबैत अछि लेने अछि तँ बूढ़ आ बूढ़ी भूत-प्रेत, भगवान आ स्वप्नक फोटो हाथमे लऽ लैत छथि।)
१ छोट बौआ: हम ओम। हम चिड़ै। नै भगजोगनी।
२ छोट बुच्ची: हम आस्था। हम चुनमुनी। हा हा (हँसैत)। भगजोगनी।
३ किशोर बौआ: हम जयन्त। हम गाछ।
४ किशोर बुच्ची: हम अपाला। हम बृच्छ। हेँ हेँ (हँसैत)।
५ युवा: हम विजय। हम सूर्य तरेगण।
६ युवती: हम विजया। हम चन्द्र माने चन्दा। खी-खी (हँसैत)।
७ वृद्ध: (थड़थड़ाइत) हम नेकलाल। हम भूत-प्रेत-राकश...।
८ वृद्धा: हम रामवती। हम स्वप्न माने कल्पना। हम...हम...हम...।
(कल्पनाक भाव-भंगिमा तीन बेर करैत छथि।)
सूत्रधार: अहाँ सभक काज की ?
महिला सूत्रधार: अहाँ सभक काज की ?
(आब छोट बौआकेँ –ओमकेँ- १ छोट बुच्ची- आस्थाकेँ- २ एना ८ धरि कहब।)
१ सँ ८ (संगे-संग): हम सभ कोनो काजकेँ ढंगसँ कऽ देब, कहि कऽ तँ देखू।
महिला सूत्रधार: चिड़ै-चुनमुनी, दुनू गोटे आउ आ भगजोगनी बनि जाउ।
(१ सँ ८ संगे-संग चिकड़ऽ लगैत अछि। तखने १ आ २ झोंझसँ निकलि कऽ बगलमे राखल झोरासँ भगजोगनीक फोटो आ दूटा लेजर लाइट लऽ अनै छथि आ शेष छह गोटे एकटा चद्दरिसँ दुनू गोटेकेँ अढ़ कऽ दै छथि।)
१ : (लेजर लाइट बड़बै छथि): कतऽ छी आस्थू।
२ : (चद्दरिसँ बहार भऽ लेजर लाइट बड़बैत) हमदेख लेलौं ई संकेत। हम ओतऽ छलौं झोँझमे।
१ आ २ (संगे संग बजैत): हँ भऽ गेल।
७ आ ८ (संगे बजैत): की भऽ गेल?
१: देखलौं नै जे कोना प्रकाशसँ हमसभ एक दोसराकेँ ताकि लेलौं।
७: ई तँ जखन हम मनुक्ख रही, माने मुइलाक पहिने, तखन खूब प्रयोग करैत रही। की यै रामवती।
८: करैत तँ रही, मुदा प्रकाश संग कतेक गर्मी आबि जाइ छलै। गुमारसँ जान चलि जाइ छल।
७: हे, प्रकाश हेतै तँ गर्मी तँ बहार हेबे करतै।
८: नेकलालजी। सोलह आना ऊर्जामे सँ पन्द्रह आना गर्मी आ एक आना मात्र प्रकाश आनै छलौं अहाँ। बड़का वैज्ञानिक बनै छलौं। प्रकाश तँ आबै छल मुदा गुमारसँ जान चलि जाइ छल।
७: अहाँ तँ छीहे कल्पना। मुइलाक बाद तेँ ने बनि गेलौं कल्पना।
८: आ तेँ ने अहाँ बनि गेलौं भूऽऽऽऽऽत, प्रेऽऽऽऽऽत, राकश।
७: (कने तमसाइत) हे तँ अहीं कहू जे प्रकाश बिन गर्मीक भेट सकैए। (लोकसभ दिस हाथ पसारि कऽ तकैत अछि)
५: (सोझाँ अबैत): नै, ई सम्भव नै अछि।
६: ई सम्भव अछि विजय।
५: आबि गेली विजया!!! (आश्चर्यसँ हाथ पसारैत अछि।) हिनकासँ कने पूछू जे हिनका लग अपन प्रकाश छन्हि की?
८: नै छन्हि मुदा तैयो रातिमे जे हिनकासँ इजोरिया छिटकैए से ठंढा तँ लगिते अछि।
७: हा!!! कल्पना!!! अपने फुरेने बजैत जाउ…बजैत जाउ…!!!
८: अहाँ जँ जिबैतेमे हमर गप सुइतौं, कल्पना करितौं तँ बना सकितौं बिन गुमारबला प्रकाश। ठंढ़ा प्रकाश।
७: सुनऽ हौ ओम-आस्था, बिन गुमारबला प्रकाश !! (आश्चर्य प्रकट करैत हाथ पसारैत अछि।) आब तोँहीं सभ बताबह जे बिन गुमारबला प्रकाश सम्भव नै छै।
१ आ २ : (आशचर्यसँ हाथ पसारैत) प्रकाशसँ गर्मी निकलतै तँ भगजोगनी तँ मरिये जेतै।
८: तखन तों सभ कोना जीवित छह।
१: माने?
२: प्रकाश तँ ठंढ़ा होइ छै।
१: हमर पुछरीसँ बहराइए प्रकाश, शीतल प्रकाश।
२: करैए मोन ठंढ़ा। दैए संकेत आ ताकि लै छी हम सभ एक-दोसराकेँ।
८: ओह, हम तकैत रहि गेलौं रातिमे दूर देशक चन्द्रमा आ करैत रहि गेलौं कल्पना। मुदा अहाँ नेकलाल, किए नै देख सकलौं रातिमे घुमैत भग जोगनी सभकेँ।
७: असफल वैज्ञानिक छी हम। राकश बनि घुमै छी, प्रकाशक ऊर्जासँ जड़ै छी। कल्पने, हम नै कऽ सकलौं कल्पना, नै तँ बनि जइतौं भगजोगनी।
८. जे पूरा कऽ दैतौं अहाँ हमर ओ कल्पना तँ हमहूँ बनि जइतौं भगजोगनी, । नै कटितै एतेक रास गाछ-बृच्छ, बोन देखू कतेक दूर भेल देखाइए (दूर बाध दिस आंगुर देखबैत अछि।)
३ आ ४ (समवेत स्वरमे) असगर भऽ गेल छी हम सभ। सूर्य तरेगन चन्द्रमा सन असगर।
(ऐ दुनूकेँ छोड़ि कऽ सभ कलाकार भीड़मे मिज्झर भऽ जाइ छथि।)
४: असगरे रहि गेल छी हम सभ। किछु दिनमे खतम भऽ जाइ जाएब।
३: लगैए सएह। बनि जाएब भूत, प्रेत, राकश।
(तखने भूत-प्रेत बनल वृद्ध अबैए।)
७: से किए, अहाँ सभक ई स्थिति कोना भेल।
३: अहाँ द्वारे।
४: अहीं दुआरे।
७: आब हम की कऽ देलौं।
३: कागच बनबैले हमरा काटलौं।
४: मकान बनबैले हमरा काटलौं।
७: मुदा से तँ जरूरी छल। से तँ करैए पड़ितै किने।
३: तँ हमरा रोपलौं किए नै। कल्पना किए नै केलौं।
(तखने वृद्धाक प्रवेश होइए।)
८: कहू। कल्पना किए नै केलौं?
७: कोन कल्पना।
८: कल्पना जे कतेक काटी आ तकर कतेक गुना रोपी।
७: मुदा हम तँ रोपलौं।
३: अहाँ रोपलौं यूकेलिप्टस।
४: अहाँ रोपलौं विदेशी गाछ।
३: खून..नै नै..पानि पीब गेल सभटा ऐ जमीनक।
७: हे सभटा हमरे दोख नै दै जाउ। की अहाँ सभ ऊर्जा नै खर्च करै छी? हम वैज्ञानिक छी। सभटा बुझल अइ हमरा।
(३ आ ४ समवेत स्वरमे गीत गाबै छथि।)
ऑक्सीजन जरा भोजन बनबै छी
काज मोताबिक सेहो जरबै छी
जाड़क मासमे गरम रहै छी
नै होइ छै सगरो गरमी तँए
(नाचऽ लगै जाइए।)
७: बुझल अछि हमरा ई सभ। मुदा गर्मी कम्मे सही आनै तँ छी।
३: मुदा सेहो अहीं सभ लेल।
७: हमरा सभ लेल। कोना..कोना?
४: जाड़मे फूल तोड़ैकाल हाथ नै ठिठुरए अहाँ सभक तेँ कमलक फूलकेँ गरम राखै छी।
७: हे तँ कियो अहाँकेँ काटैए तँ अपन सुरक्षा अपने किए नै करै छी।
८: कल्पना..सोचू सोचू।
३: करै छी।
४: जतेक सक बनि पड़ैए, ततेक करै छी।
(३ आ ४ समवेत स्वरमे गीत गाबै छथि।)
काँट देखा कऽ दूर भगाबी
फल खुआ कऽ भूख भगाबी
फूल तोड़ि कऽ, लऽ जाउ
देवता पितरपर अहाँ चढ़ाउ
(नाचऽ लगै जाइए।)
३: फल-फूलक लालचो दै छिऐ।
४:काँट देखा कऽ डराबितो छिऐ
३: मुदा तैयो नै मानै जाइए।
८: कल्पना..सोचू, सोचू।
७: (वृद्धा रामवती दिस तकैत।) हे कल्पने। हमरा जे अहाँ कहै छलौं जे कतेक काटी, तकर कतेक गुना रोपी, से हिनको सभकेँ कहियौन्ह ने।
८: हिनकर सभक पएर तँ माटिमे रोपल छन्हि, ई सभ कोना कऽ से करताह।
७: (मुँह दुसैत) कल्पना..सोचू..सोचू।
(३ आ ४ समवेत गाबऽ लगैए आ वृद्धक मुँह गीत सुनबाक क्रममे झूस हेबऽ लगै छै; मुदा गीत सुनैत-सुनैत वृद्धा मुदित भऽ जाइए। )
बीया फँसैए महीसक केसमे
लऽ जाइए ओ दूरदेशमे
झाड़ैए देह पहुँचाबैए ओतए
रोपने पएर, चलि जाइ ओतए!!!!
(बिन हिलने दुनू गोटे हाथसँ दूर इशारा करैत अछि।)
३: बीयामे तेना कऽ नोकसी सन फाँस बनबै छिऐ जे ओ मालक देहमे बाझि कऽ दूर चलि जाए ।
४: आ दूर जा कऽ बीया ओतऽ नव गाछ जनमाबए।
३: पराग लऽ कऽ टिकली दूर जाइए।
४: दोसर गाछकेँ ओइ परागसँ पुष्ट करैए..दूर देशमे।
८: कल्पना..ऽऽऽऽऽ।
(वृद्ध माथपर हाथ धऽ बैस जाइए, मुदा वृद्धा सेहो ओकर बगलमे बैस जाइए, आकाश दिस चिन्तित भऽ तकैत।)
४: जयन्त आब लगैए हमसभ खतम भऽ जाएब। जइ देशक वैज्ञानिक कल्पना नै करैत होथि ओतऽ की हएत? (हाथ घुमा कऽ पुछै छथि।)
३: अपाले। ओतऽ भविष्यक गाछ-बृच्छ विहीन कल्पना सत्य भऽ जाइए।
४: जेना एतऽ भेल अछि।
(३ आ ४ कानि कऽ गाबैए।)
जड़ि कटने भऽ जाएब छू
फूल पात सभ, लऽ लू
मरि गेल सभटा बुतरू
(दुनू खोंखी करऽ लगैए।)
(१ सँ ८ सभ बैसि जाइए आ गाबैए।)
जड़ि कटने भऽ जाएब छू।
जड़ि कटने भऽ जाएब छू
फूल पात सभ, लऽ लू
मरि गेल सभटा बुतरू
(सभ खोंखी करऽ लगैए।)