Saturday, November 24, 2012

जनकपुरमे रेकर्डिङ्ग स्टूडियोक स्थापना (रिपोर्ट सुजीत कुमार झा)



जनकपुरधाम, अगहन ६ ।
जनकपुरमे गीत रेकर्डिङ्गकेँ स्टूडियो स्थापना भेल अछि ।
क्याम्पस चौक स्थित कामेश्वर मल्लिकक घरमे निशान्त अडियो भिडियो एण्ड सपोर्ट सिस्टम नवरस नामक ओ रेकर्डिङ्ग स्टूडियोकेँ मंगलदिन एक समारोहबीच वन तथा भू–संरक्षण मन्त्री यदुवंश झा उद्घाटन कएलन्हि ।
ओ स्टूडियोमे हरेक प्रकारक गीत रेकर्डिङ्ग करवाक प्रविधि रहल समारोहमे
नवरसक संचालक सुनिल मल्लिक जानकारी देलन्हि ।
समारोहमे मन्त्री झा मैथिली भाषा, साहित्य कला संस्कृतिक विकासक लेल निजी स्तर सँ जे प्रयास भऽ रहल अछि ओ प्रशंसनीय रहल उल्लेख कएलन्हि ।
एहि स्टूडियोक माध्यम सँ मैथिली कलाक विकास हएत हुनक कथन छल ।

ओ अवसरपर नेहा प्रिदर्शनीद्वारा गाओल गेल गीतक गीति एल्वम ‘नेहा’केँ लोकार्पण कएल गेल । ओ गीति एल्वमकेँ वन तथा भू–संरक्षण मन्त्री यदुवंश झा आ मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमल संयुक्त रुप सँ लोकार्पण कएलन्हि ।
स्टूडियोक निर्देशक कामेश्वर मल्लिकक अध्यक्षतामे सम्पन्न ओ उद्घाटन तथा विमोचन समारोहमे डा. राजेन्द्र विमल, डा. रेवती रमण लाल, विद्यापति कोषक संयोजक अयोध्या नाथ चौधरी, नेकपा माओवादीक नेता रोशन जनकपुरी, मिथिला नाट्य कला परिषदक पूर्व अध्यक्ष सुनिल मिश्र, मैथिली विभागक प्रमुख परमेश्वर कापड़ि, कान्तिपुरक श्याम सुन्दर शशि, रेडियो मिथिला आ मिथिला डटकमक सम्पादक सुजीत कुमार झा, अनिल चन्द्र झा, नेहा प्रियदर्शनी सहितक वक्तासभ बाजल छलथि ।

Tuesday, November 20, 2012

दिल्ली इब्सन फेस्टिवल ०१ दिसम्बर २०१२ सँ ०७ दिसम्बर २०१२ धरि

-दिल्ली इब्सन फेस्टिवल ०१ दिसम्बर २०१२ सँ ०७ दिसम्बर २०१२ धरि (वेबसाइट http://www.delhibsenfestival.com/ )
-ड्रामाटिक आर्ट आ डिजाइन अकादेमी आ रोयल नॉर्वे एम्बेसीक तत्वावधानमे इब्सनक नाटकक प्रदर्शन हएत।


Tuesday, November 13, 2012

गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत



गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर
विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्यशास्त्रक संकल्पनाक संग गजेन्द्र ठाकुरक उल्कामुखक अपार सफलताक बाद...
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे ...
"समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर...

गजेन्द्र ठाकुरक "गंगा ब्रिज"
रिटायरमेंट आ मृत्युक बीच संघर्षमे के जीतत...
तँ की हारि जाइ
तँ की छोड़ि दिऐ
इच्छा जीतत आकि जीतत ईर्ष्या
संकल्प हमर जे एहि धारकेँ मोड़ि देब
मुदा किछु ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ईर्ष्या जे हम धारकेँ नहि मोड़ि पाबी
बहैत रहए ओ ओहिना
ओहिना किए ओहूसँ भयंकर बनि

संकल्प जे हम केने छी
इच्छा जे अछि हमर/ से हारि जाए
आ जीति जाए द्वेष/ जीति जाए ईर्ष्या
हा हारबो करी तेना भऽ कऽ जे लोक देखए!/ जमाना देखए!!
तेना कऽ हारए संकल्प हमर/ इच्छा हमर
धारकेँ रोकि देबाक/ ठाढ़ भऽ जएबाक सोझाँ ओकर
आ मोड़ि देबाक संकल्प ओहि भयंकर उदण्ड धारकेँ
मुदा किछु आर ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ओ द्वेष चाहैए जे हमर प्रयास/ धारकेँ मोड़बाक प्रयास
मोड़लाक प्रयासक बाद भऽ जाए धार आर भयंकर
पुरान लीखपर चलैत रहए भऽ आर अत्याचारी
आ हम जाए हारि
आ हारी तेना भऽ कऽ जे लोक राखए मोन
मोन राखए जे कियो दुस्साहसी ठाढ़ भऽ गेल छल धारक सोझाँ
तकर भेल ई भयंकर परिणाम
जे लोक डरा कऽ नहि करए फेर दुस्साहस
दुस्साहस ठाढ़ हेबाक उदण्ड-अत्याचारी धारक सोझाँमे
लऽ ली हम पतनुकान/ आ से सुनि थरथरी पैसि जाए लोकक हृदयमे

मुदा हम हँसै छी
हारि तँ जाएब हम मुदा हमर साधनासँ जे रक्तबीज खसत
से एक-एकटा ठोपक बीआ बनि जाएत सहस्रबाढ़नि झोँटाबला
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ अछि हमर ई बुढ़िया डाही।



मैथिली नाटककेँ.....................
नव आयाम दैत ............................
नाटकक नव युगमे प्रवेश प्रवेश करबैत अछि.......
 "गंगा ब्रिज".......................................................
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत............................
निर्देशक बेचन ठाकुर..................................................................
मंच "समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर.........................................................................

“विदेह मैथिली नाट्य महोत्सव २०१३”-निर्देशक बेचन ठाकुर [किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए, कतेक सए सालसँ अछि दुश्मन ई दुनियाँ तैयो।] कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा [इकबाल]
चित्र साभार विकीपीडिया


गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर
कल्लोल एक
दृश्य १
स्टेजक एक कात किछु मजदूर सभ खट-खुट कऽ गिट्टी पजेबा तोड़ि रहल छथि लगैए जे गंगापुलक मरोम्मति भऽ रहल अछि, कारण किछु मजदूर जय माँ गंगे कहि मंचक नीचाँ प्रणाम सेहो कऽ रहल छथि। स्टेजक दोसर कात दूटा लोक नीचाँ राखल नगाड़ा-ढोलपर चोट दऽ रहल अछि। तखने एकटा ढोलहो देनहारक प्रवेश।

ढोलहो देनहार : गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। (ढोलहो दैत) सुनै जाउ, सुनै जाउ।गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि।
एकटा लोक (डंका बजेनाइ छोड़ि मजदूर सभकेँ अकानैत ढोलहो देनहार लग अबैए , मुदा दोसर लोक आस्ते आस्ते डंका बजबिते रहैत अछि): देखै छिऐ जे काज तँ चलिये रहल छै, तखन फेर?
ढोलहो देनहार: एतबे मजदूरसँ काज नै चलतै। पूरा पुल हिल रहल छै। (ढोलहो दैत) सुनै जाउ, सुनै जाउ।गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि।
दोसर लोक (डंका बजेनाइ छोड़ि कऽ ढोलहो देनहार लग अबैए): एतबे दिनमे कोना ई हाल भऽ गेलै। सुनै छिऐ जतेक पाया ऐ पुलमे छै ततेक कए करोड़ टाका एकरा बनबैमे खर्च भेल रहै।
ढोलहो देनहार:काज ढंगसँ नै भेल रहै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...। गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। सुनै जाउ, सुनै जाउ।
एकटा लोक: देखै छिऐ, जहिया बनिये रहल छलै, बनि कऽ तैयारो नै भेल रहै, तहियेसँ ऐ पुलक मरोम्मति शुरू छै।
दोसर लोक: चिप्पीपर चिप्पी पड़ि रहल छै। उद्घाटनसँ पहिनहिये सँ चिप्पी पड़नाइ शुरू भऽ गेल रहै।
ढोलहो देनहार: सरकारी पुल छिऐ, चिप्पी नै पड़तै तँ इन्जीनियर आ ठिकेदारक घरपर छज्जा कोना एतै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...।
एकटा लोक: हौ ढोलहोबला, से तँ बुझलिऐ, मुदा से ने कहऽ जे दुनियाँ मे आनो ठाम पुल बनै छै, से ओतुक्का इन्जीनियर आ ठिकेदारक घरपर छज्जा पड़ै छै आकि नै हौ।
ढोलहो देनहार: किजा ने गेलिऐ, मुदा सुनै छिऐ अंग्रेजबला पुल मजगूत होइ छलै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...।
दोसर लोक: हौ, अनेरक पाइ आबै छलै लूटिक तँ जे एकाध टा पुल अंग्रेज बनेलकै से मजगूते ने हेतै हौ।
एकटा लोक:ई इन्जीनियर आ ठिकेदार सभ लूटिमे अंग्रेजसँ कम नै छै, मुदा पुल मजगूत किए नै बनबै छै हौ। ओइ बनबैमे अंग्रेज सन किए नै छै हौ।
दोसर लोक: मजगूत बना देतै तँ फेर मरोम्मतिक ठेका कोना भेटतै हौ। की हौ ढोलहोबला..
ढोलहो देनहार: किजा ने गेलिऐ। सुनै जाउ, सुनै जाउ...। गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। सुनै जाउ, सुनै जाउ।


(ढोलहो बला चलि जाइए। पाछाँसँ दू-दूटा तिरंगा झण्डा लेने बच्चा सभ अबैए। संगमे दूटा शिक्षक छै। एकटा शिक्षक (वा शिक्षिका) आगाँ-आगाँ आ एकटा शिक्षक (वा शिक्षिका) पाछाँ-पाछाँ चलि रहल छथि। सभ मजदूरकेँ एक-एकटा झण्डा दऽ देल जाइ छै। ओइ दुनू टा लोककेँ सेहो एक-एकटा झण्डा देल जाए”- ई गप शिक्षक इशारामे कहै छथि, मुदा झण्डा घटि गेलै, से ओ दुनू खाली हाथ रहि जाइ छथि आ सभक मुँह ताकऽ लगै छथि।
मजदूरक सोझाँ ओ दुनू लोक ठाढ़ भऽ जाइए आ फेर डंके लग आबि ठाढ़ भऽ जाइए आ आश्चर्यसँ देखऽ लगैए।
त्रिवार्णिक झण्डा लऽ कऽ बाकी सभ गोटे मंचपर छितरा जाइ छथि आ स्टेजपर ठाढ़ भऽ जाइ छथि। उल्लासक वातावरण सगरे पसरल अछि, दुनू लोककेँ छोड़ि सभक मुँहपर (मजदूर सभक सेहो) हँसी-प्रसन्नता आबि जाइ छै
जखन सभ ठाढ़ भऽ जाइ छथि तखन दुनू शिक्षक (वा शिक्षिका) बच्चा सभक आगाँ आ दर्शक सभक सोझाँ ठाढ़ भऽ जाइ छथि।
१५ अगस्त ई नारा दुनू शिक्षक बाजै छथि आ “स्वतंत्रता दिवस सभ मिलि कऽ (दुनू लोक केँ छोड़ि कऽ) बाजै छथि।

शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बौआ-बुच्ची। आइ ई त्रिवार्णिक झण्डा हमरा सभक हाथमे फहरा रहल अछि। पहिने हम सभ दोसराक अधीन छलौं, पराधीन छलौं, ई झण्डा झुकल छल, फहरा नै सकै छलौं। झण्डा फहराइत रहए ओइ लेल हमरा सभकेँ जोर लगाबैत रहऽ पड़त। (चारू दिस हाथ पसारैत) ऐ इलाकामे आब खुशी पसरत। जमीन्दारक राज खतम भऽ गेल। सभ कियो पढ़ि सकै छथि। झगड़ा-झाँटी, युद्ध, आब सभ खतम भऽ गेल। हमरा सभक जीवनमे एकटा नवका भोर आएल अछि। नवका शिक्षा, नवका खेतीक चलनि हएत।  
शिक्षक (वा शिक्षिका) २: बड़का चिमनीक धुँआ आ बड़का-बड़का बान्ह। बिलैंतसँ आबैबला सभ समान चिमनीबला फैक्ट्रीमे तैयार हएत। बड़का-बड़का बान्ह ओइ धारकेँ बान्हि-छेक कऽ सञ्जत कऽ देत। खूब उपजत खेत, बर्खा बरखत इन्द्रक नै हमरा सभक प्रतापसँ। खेते-खेत बहत धार, हएत पटौनी। छोट-पैघक भेद मेटा जाएत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: छोट-पैघक भेद मेटा जाएत? बड़का चिमनीक धुँआ आ बड़का-बड़का बान्ह छोट-पैघक भेद मेटाएत?
शिक्षक (वा शिक्षिका) २: हँ। पटौनी हएत खेते-खेत। बिलैंतसँ आबैबला सभ समान आब एतै चिमनीबला फैक्ट्रीमे तैयार हएत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बड़का बान्ह आ बड़का फैक्ट्रीसँ ढेर रास समस्या सेहो आबै छै। ओकर निदान जरूरी छै। विकास एकभग्गो भऽ जाएत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) २: विकास एकभग्गू कोना हएत?
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बड़का फैक्ट्री सभ ठाम नै लागि सकत, कतौ-कतौ लागत, ओतऽ बोनिहारक पड़ैन हएत। बड़का बान्ह बनलासँ ओकर भीतरक गामसँ सेहो लोकक पड़ैन हएत। बड़का बान्ह जँ मजगूत नै हएत तँ ओ टूटत आ प्रलय आएत। बड़का फैक्ट्री आ बड़का बान्ह लोकक जिनगीकेँ छहोछित कऽ देत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) २:एक पीढ़ीकेँ तँ बलिदान देबैए पड़त। बच्चा सभ, बाजै जाउ। अहाँ सभ देश लेल अपनाकेँ समर्पण करब आकि नै।
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बच्चा सभ, बाजै जाउ, अहाँ सभ की बनऽ चाहै छी। समाजकेँ की देबऽ चाहै छी।
बच्चा: हम इन्जीनियर बनब आ सड़क, पुल, नहर बनाएब। जइसँ लोकक दुःख दूर हेतै।
बच्चा २: हमहूँ इन्जीनियर बनब। बड़का-बड़का बान्ह, बड़का-बड़का चिमनीक धुँआ। धुँआ सुंघैमे हमरा बड्ड नीक लागैए। कतेक नीक दिन आएत, बड़का-बड़का बान्ह, बड़का-बड़का चिमनी देश भरिमे पसरि जाएत।
बच्चा: मुदा धुँआसँ खोँखी होइ छै। हमर माए खोँखी करैत रहैए। हमरा धुँआसँ परहेज अछि।
बच्चा २:मुदा हमर माए तँ भनसाघर जाइतो नै अछि। मुदा हम जाइ छी, चोरा-नुका कऽ, आ धुँआक गंध, बड़का देवार, ई सभ हमरा बड्ड नीक लगैए।
शिक्षिका : नीकगप। मुदा विकास केहन हुअए, ई सभ हमरा सभक हाथमे नै अछि। पटना आ दिल्लीमे ई निर्णय हएत जे हमरा सभ लेल केहन विकास हेबाक चाही।
शिक्षिका: नीकगप, नीक गप जे हमरा सभक विकास लेल पटना आ दिल्लीमे सोचल जा रहल अछि मुदा ओतऽ बैसि कऽ वा एकाध दिनक हलतलबीमे कएल दौड़ासँ ओ सभ उचित निर्णय लऽ सकता? जे से, मुदा हम सभ समाज लेल काज करी, से सतत ध्यान रहए। पूरा इमानदारीसँ, जान जी लगा कऽ ऐ देशक इतिहास हमरा सभकेँ बनेबाक अछि, से ध्यान रहए। आइ १५ अगस्त १९४७ केँ हम ई प्रण ली, वचन दी।
सभ बच्चा: हम सभ वचन दै छी, हम सभ पूरा इमानदारीसँ जान जी लगा कऽ ऐ देशक नव इतिहास लिखब।
(“१५ अगस्त ई नारा दुनू शिक्षक बाजै छथि आ “स्वतंत्रता दिवस सभ मिलि कऽ (दुनू लोक केँ छोड़ि कऽ) बाजै छथि। बच्चा आ शिक्षक सभ मजदूर सभसँ झण्डा आपस लऽ लै छथि। मजदूर सभ फेर बैसि कऽ ठक-ठुक करऽ लगैए। दुनू लोक ओतै हतप्रभ ठाढ़ रहैए। फेर पर्दाक पाछाँ कोनमे देखऽ लगैए जेना ककरो एबाक प्रतीक्षा कऽ रहल हुअए। तखने दुनू हरबड़ा कऽ जाइए आ एकटा कुर्सी आनि कऽ राखैए। कटा ४०-४५ बर्खक अभियन्ता मंचपर अबैए। अभियन्ता कनेक हाँफि रहल अछि, कुर्सी देखिते ओ धबसँ ओइ कुर्सीपर बैसि जाइए। फेर साँस स्थिर कऽ ठाढ़ होइए। ठक-ठुक बन्द भऽ जाइ छै आ मजदूर सभ फ्रीज भऽ जाइए, ओ दुनू लोक कोन दिस दंका लग चलि जाइए आ फ्रीज भऽ जाइए। अभियन्ता बाजऽ लगैए।

अभियन्ता: (कुर्सीकेँ झमाड़ैत) एना। एना हिलि रहल अछि ई, ई गंगा ब्रिज। सीमेन्ट, बालु, गिट्टीक कंक्रीटसँ बनल ई पुल कठपुलासँ बेशी हिलैए। जहिया आबै छी, मरोम्मतियेक काज चलैत रहै छै। वन-वे, एक दिस; एक्के दिसुका मात्र भऽ कऽ रहि गेल अछि ई। एक्के दिस पुल खुजल छै, दोसर दिस कोना चलत, अदहा पुलपर मरोम्मतिक काज भऽ रहल अछि। (तखने ओ आभासी रूपमे हिलऽ लगैए आ ओकर बाजब थरथरा उठै छै।) ई पुल तँ एत्ते हिलि रहल अछि जत्ते गामक कठपुलो नै हिलैए।
(तखने एकटा ठिकेदार अबैए।)
ठिकेदार (अभियन्तासँ): हइ इन्जीनियर। तोहूँ वएह कऽ वएह रहि गेलेँ। बालुकेँ एना कऽ चालनिसँ चालू, ओना कऽ चालू, जेना ओ चाउर दालि हुअए मुदा हम सेहो चाललौं। ठीक छै ठीक छै। तूँ कहै छलेँ जे रोटी बनेबा लेल जेना चालै छी तहिना पुल बनेबा लेल चालू, तखने नीक रोटी सन नीक पुल बनत। ठीक छै ठीक छै। फेर एतेक सीमेन्ट, एतेक बालु, एतेक.. हम कहने रही जे हम तोहर सभ गप मानब, मुदा तखन नेता, दोसर इन्जीनियर, गुण्डा, एकरा सभकेँ कमीशन कतऽ सँ देबै? तोरा कहलासँ बालु चालऽ लगलौं कमीशन बन्द कऽ देलिऐ। हमर तँ किछु नै भेल मुदा तोहर बदली भऽ गेलौ, तोहर दरमाहा बन्न भऽ गेलौ। बच्चा सभक नाम स्कूलसँ कटाबऽ पड़लौ, गाम पठाबऽ पड़लौ बच्चा सभकेँ। हम कहने रहियौ तोरा, जे बालु चालब, एतेक सीमेन्ट, एतेक बालु, सभ निअमसँ देबै। हमरा की? इलाकाक पुल, सड़क जतेक मजगूत रहतै ततेक ने नीक। हमरो लेल नीके। मुदा हमरा बूझल छल जे तोहर बदली भऽ जेतौ। चीफ इन्जीनियर, नेताक दहिना हाथ.. पहिने हमरे कहने रहए तोरा रोलरक नीचाँमे पिचड़ा कऽ दैले.. बइमान चीफ इन्जीनियर। देख, पहिने हमरो होइ छल जे तोहूँ ओकरे सभ जेकाँ छेँ, अपन रेट बढ़ाबैले ई सभ कऽ रहल छेँ। मुदा बादमे हम देखलौं जे नै, तूँ अलग छेँ। मुदा हम की करू? हम अपन बच्चाक नाम स्कूलसँ नै कटबा सकै छी। मुदा जौँ तोरा सन चीफ इन्जीनियर आबि जाए.... कहियो से दिन आबए... तखन हम फेरसँ बालु चालब शुरू करब आ वएह चालल बालु, एत्ते बालु एत्ते सीमेन्टमे मिलाएब। एत्ते बालु, एत्ते सीमेन्ट, सभटा ओहिना जेना अहाँ तूँ कहै छलेँ। मुदा जखन तोरा सन कियो आबए तखने किने। ताधरि तँ...
(अभियन्ता आ ठिकेदारक प्रस्थान। लागल जेना फ्रीज लोककेँ अभियन्ता आ ठिकेदारक गपक विषयमे बुझल नै भेलै जेना ई सभ आभाषी छल। दुनूटा लोक फ्रीज स्थितिसँ घुरि असथिरसँ डंका बजबऽ लगैए आ तखन मजदूर सभ सेहो फ्रीज स्थितिसँ आपस आबि जाइए आ फेरसँ ठकठुक करऽ लगैए। दुनू लोक डंकाक अबाज आस्ते-आस्ते तेज करऽ लगैए आ फेर ठक-ठुकक अबाज मद्धिम पड़ि जाइए आ डंकाक अबाजक संग पर्दा खसैए।)


 जारी....
(चित्र साभार विकीपीडिया)



Saturday, November 10, 2012

रमेश रञ्जन झाद्वारा लिखित मैथिली भाषाक नाटक "मुर्दा" नाटकक विमोचन सम्पन्न (रिपोर्ट सुजीत कुमार झा )


मैथिलीक चर्चित युवा साहित्यकार रमेश रञ्जन झाक नयाँ कृति ‘मुर्दा’नाटककेँ सोमदिन विमोचन  ।
मैथिली विकास कोषद्वारा प्रकाशित ओ पुस्तककेँ होटल सीता प्यालेसमे सोमदिन भोरमे नेपालक चर्चित लेखक डा. अभि सुवेदी द्वारा विमोचन, कोषक अध्यक्ष जीवनाथ चौधरी जानकारी देलन्हि अछि ।
रमेश रञ्जनक एहि सँ पूर्व संगोर उपन्यासक अतिरिक्त रत्तवर्षा कविता संग्रह प्रकाशित अछि ।
नेपाल संगीत तथा नाट्य प्रतिष्ठानक प्राज्ञ रहल रमेश रञ्जन साहित्यक अधिकांश क्षेत्रमे कलम चलबैत छथि ।
बैरियर के तोड़त ?


प्राज्ञ रमेश रञ्जन झाद्वारा लिखित मैथिली भाषाक नाटक मुर्दाक विमोचन समारोहमे प्रमुख अतिथिक आसन सँ बजैत नेपाली भाषाक चर्चित लेखक डा. अभि सुवेदी मैथिलीक लेल बहुत रास बैरियर लागल अछि, ओकरा तोड़ने विना एकर सहज विकास होबए नहि सकत उल्लेख कएलन्हि अछि ।
डा. सुवेदी त्रिभुवन विश्व विद्यालयमे अंग्रेजी विषयक शिक्षक छथि । देश विदेशक प्रमुख पत्रिकासभमे हुनकर लेख प्रकाशित होइत रहैत अछि । अर्थात ओ बहुत अनुभवी लोक छथि । हुनकर अनुमान गलत नहि भऽ सकैत अछि ।
कारण नेपालमे सभ सँ बेसी बाजए बला दोसर भाषा मैथिली अछि । नेपाल भारतक मैथिली भाषीक संख्या ५ करोड़ सँ बेसी अछि । एकर बादो मैथिलीक विकास नहि भऽ रहल अछि । एखनो मैथिली भाषी अपन स्वर्णीम इतिहासेकेँ गुणगान करैत अछि ।
नेपालमे संविधानक संग संघीयताक बात उठैत अछि तऽ सभ सँ बेसी विरोध मिथिलेकेँ नामपर होइत अछि । फेर एकर विरोध कोनो अन्य लोक नहि अपनाकेँ मधेशी कहएबला मैथिलीसभ करैत छथि ।
अर्थात सभ सँ बडका बैरियर मैथिलीसभ स्वयं छथि जेना लगैत अछि ।
हुनकासभकेँ बुझौने आगा नहि बढल जा सकैत अछि । तहिना राजनीतिक दलकेँ कोना मिथिला मैथिलीक प्रमुख मुद्दा बनैक ताहिकेँ लेल काज करय पड़त ।
तहिना मैथिली भाषा, साहित्य, कला, संस्कृतिक विकासक लेल निजि स्तर सँ सेहो प्रयास होएब आवश्यक अछि ।
किछु वर्ष इम्हर काज तऽ भेल अछि । जेना पुस्तक प्रकाशन बढव, लेखकद्वारा मात्र नहि कोनो संस्थाद्वारा सेहो पुस्तक प्रकाशन होएब, मैथिली भाषामे निमन्त्रण कार्ड मात्र नहि पत्रपत्रिका सेहो प्रकाशित होएब, देशक दर्जनो रेडियो एफएममे मैथिली भाषाक कार्यक्रम आ समाचार प्रशारण भऽ रहल अछि ।
बैरियर जे अछि ओ टुटत तऽ मैथिलीक विकासकेँ किओ नहि रोकि सकैत अछि । ई बैरियर तोड़ए लेल सम्पूर्ण मैथिलकेँ एक बेर संकल्प लेबहे पड़त ।

जनकपुरधाम, कातिक २० ।
रमेश रञ्जन झाद्वारा लिखित मैथिली भाषाक नाटक ‘मुर्दा’क सोमदिन एक समारोह बीच विमोचन कार्यक्रम सम्पन्न भेल अछि ।
नेपाली भाषाक चर्चित लेखक डा. अभि सुवेदी जनकपुरक रामानन्द चौक स्थित सीता प्यालेस होटलमे विमोचन कएलन्हि अछि ।
ओ नाटकक प्रकाशक मैथिली विकास कोष रहल अछि ।
नेपाल संगीत तथा नाट्य प्रतिष्ठानक प्राज्ञ सेहो रहल रमेश रञ्जनक ई तेसर कृति रहल अछि । एहि सँ पूर्व ‘संगोर’ उपन्यास आ रक्तवर्षा कविता संग्रह प्रकाशित अछि ।
रामानन्द युवा क्लवद्वारा प्रकाशित कथा यात्राक सम्पादन सेहो रमेश कएने छथि ।
मैथिली विकास कोषक अध्यक्ष जीवनाथ चौधरीक अध्यक्षतामे भेल विमोचन समारोहमे वक्तासभ मैथिली साहित्यक विकासक लेल प्रकाशन कार्यपर जोड़ देबए सुझाव देलन्हि । नेपालक धर्तीपर मैथिली नाटकक स्वर्णीम इतिहास भेलाक बादो दू दर्जन सँ बेसी मैथिली नाटक प्रकाशन नहि होएब दुःखक बात रहल हुनक सभक कथन छल ।
कार्यक्रममे नेपाली भाषाक चर्चित लेखक डा. अभि सुवेदी मैथिलीक लेल बहुतरास बैरीयरसभ लागल अछि ओकरा तोडने विना एकर सहज विकास होबए नहि सकत उल्लेख कएलन्हि ।
मैथिली भाषाक लेखकसभ बहुत प्रतिभावानसभ होइतो अवसरकेँ अभावमे बहुत काज होबए नहि सकल हुनक कथन छल ।
नेपाली आ मैथिली भाषाक सम्बन्धक विषयमे चर्चा करैत ओ कहलन्हि दुनू भाषाक साहित्यकारसभकेँ मिलि कऽ आगा बढए पड़त ।
समारोहमे मैथिलीक वरिष्ठ साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमल रमेशक नाटक मुर्दाक चर्चाक करैत मैथिलीक लेल एकटा महत्वपूर्ण पुस्तक बनल उल्लेख कएलन्हि अछि ।
मैथिली भाषाक पुस्तक प्रकाशनक संख्यामे वृद्धि भेल प्रति प्रशन्नता व्यक्त करैत डा. विमल कहलन्हि एतबे पर्याप्त नहि अछि, फेर व्यावसायिक रुप सँ कोना मैथिलीक पुस्तक सभ निकलैक ताहि पर सभकेँ ध्यान देबए पड़त ।
नेकपा एमालेक पोलिटव्यूरो सदस्य रामचन्द्र झा रमेश रञ्जनक साहित्य यात्राकेँ प्रशंसा करैत अपनो कृति जल्दिए प्रकाशन करब घोषणा कएलन्हि ।

गौरीनाथक मैथिली उपन्यास "दाग" केर पहिल अध्याय "ब्रह्म-शक्ति"क मंचन २५ नवम्बर २०१२ केँ


दाग (उपन्‍यास) : गौरीनाथ

बहुत दिन भेल, एक्कैस वर्ष, मातृभाषाक प्रति अनुरागक एक टा विशेष क्षण मे मैथिली मे लिखबाक लेल उन्मुख भेल रही—1991 मे— एहि एक्कैस वर्ष मे लगभग दू गोट कथा-संग्रह जोगर कथा आ दू गोट वैचारिक (आलोचनात्मक, संस्मरणात्मक आ विवरणात्मक) पुस्तक जोगर लेख यत्र-तत्र प्रकाशित आ छिडि़आयल रहितो ओकरा सभ केँ पुस्तकाकार संग्रहित करबाक साहस एखन धरि नइँ भेल। ई प्राय: अनके कारणेँ, जकर चर्चा बहुत आवश्यक नइँ। मुदा, ई उपन्यास एहि लेल पुस्तकाकार अपने सभक समक्ष प्रस्तुत क’ रहल छी जे एकरा पत्र-पत्रिका द्वारा प्रस्तुत करबाक सुविधा हमरा लेल नइँ छल। मुदा हमरा लग ई विश्वास छल जे मैथिलीक ओ पाठक वर्ग पढ़’ चाहताह जे प्राय: तेरह वर्ष सँ 'अंतिका’ पढ़ैत आयल छथि। मैथिली पत्रकारिताक दीर्घकालीन ओहि इतिहास—जे मैथिली पत्रिका पाठकविहीन आ घाटा मे बहराइत अछि—केँ फूसि साबित करैत जे पाठक वर्ग 'अंतिका’ केँ निरंतर 'घाटारहित’ बनौने रहलाह हुनक स्नेह पर हमरा आइयो विश्वास अछि। निश्चये ओ पाठक वर्ग हमर उपन्यास सेहो कीनिक’ पढ़ताह आ हमर पुरना विश्वास केँ आरो दृढ़ करताह।
—लेखक




Price : 150.00 INR
स्त्री आ शूद्र दुनू केँ हीन आ मर्दनीय मान’वला कुसंस्कृतिक अवसानक कथा जे अपन तथाकथित 'ब्रह्मïशक्ति’क छद्ïम अहंकार मे परिवर्तनक ईजोत देखिए ने पबै यए...जखन देख’ पड़ै छै तँ पाखंडक कील-कवच ओढि़ लै यए, अहुछिया कटै यए, घिनाइ यए आ अंतत: एक टा 'दाग’ मे बदलै यए जे कुसंस्कृतिक स्मृति शेषक संग परिवर्तनक संवाहक, स्त्री आ शूद्रक, संघर्ष-प्रतीक सेहो अछि।
उपन्यास पठनीय अछि, विचारोत्तेजक अछि आ मैथिली मे बेछप।

—कुणाल
गौरीनाथ मैथिलीक चर्चित आ मानल कथाकार छथि। पठनीयता आ रोचकता हिनकर गद्य मे बेस देखाइत अछि। माँजल हाथेँ ओ ई उपन्यास लिखलनि अछि। गौरीनाथ मैथिली साहित्यक आँगुर पर गनाइ वला लेखक मे छथि जे जाति-विमर्श केँ अपन विषय वस्तु बनौलनि। आन भारतीय भाषा मे साहित्यक जे लोकतांत्रिकीकरण भेल, तकर सरि भ’क’ हेबाक मैथिली एखनो प्रतीक्षे क’ रहल अछि। ई उपन्यास मैथिली साहित्यक लोकतांत्रिकीकरण लेल कयल एक टा सार्थक आ सशक्त प्रयास अछि।
'दाग’ अनेक अंतद्वंद्व सबहक बीच सँ टपैत अछि विश्वसनीयता, रोचकता आ लेखकीय ईमानदारीक तीन टा तानल तार पर एक टा समधानल नट जकाँ। एत’ सामंतवाद आ ब्राह्मणवादक मिझेबा सँ पहिनेक दीप सनहक तेज भ’ जायब देखाइत अछि। धुरखुर नोचैत नपुंसक तामस आ वायवीय जाति दंभ अछि। नवतुरियाक आर्थिक कारणेँ जाति कट्टरताक तेजब सेहो। दलित विमर्श अछि, ओकर पड़ताल सेहो। दलितक ब्राह्मणीकरण नहि भ’ जाय, तकरो चिंता अछि। दलित विमर्शक मनुष्यतावाद आ स्त्रीवादक नजरिञे पड़ताल सेहो।
आकार मे बेसी पैघ नहियो रहैत एहि मे क्लासिक सब सनहक विस्तार अछि अनेक रोचक पात्रक गाथाक बखान संग। आजुक मैथिल गाम जेना जीवंतता सँ एहि उपन्यासक पात्र बनि केँ सोझाँ अबैत अछि, से अनायासे फणीश्वरनाथ रेणु केँ मन पाडि़ दैत अछि। गामक नवजुबक सबहक दल यात्रीक नवतुरियाक योग्य वंशज अछि।
जँ आजुक मिथिला, ओकर दशा-दिशा आ संगहि ओत’ होइत सामाजिक परिवर्तन रूपी अमृत मंथनक खाँटी बखान चाही, तँ 'दाग’ केँ पढ़ू।
एहि रोचक आ अत्यंत पठनीय उपन्यासक व्यापक पाठक समाज द्वारा समुचित स्वागत हैत आ गाम-देहात सँ ल’क’ नगर परोपट्टा मे एहि पर चर्चा हैत, एहेन हमरा पूर्ण विश्वास अछि।
—विद्यानन्द झा
स्त्री आ दलित एहि दुनू विमर्श केँ एक संग समेट’वला उपन्यास हमरा जनतब मे मैथिली मे नहि लिखल गेल अछि। ई उपन्यास एहि रिक्ति केँ भरैत भविष्यक लेखन लेल प्रस्थान-विन्दु सेहो तैयार करैत अछि।
'दाग’ अपन कैनवास मे यात्रीक 'नवतुरिया’ आ ललितक 'पृथ्वीपुत्र’क संवेदना केँ सेहो विस्तार प्रदान करैत अछि। ताहि अर्थ मे ई मैथिली उपन्यास परंपराक एक टा महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हैत। 'नवतुरिया’क 'बम-पार्टी’क विकास-यात्रा केँ 'गतिशील युवा मंच’ मे देखल जा सकैत अछि। जाति, धर्म, लिंग आदि सीमाक अतिक्रमण करैत मनुष्य ओ मनुष्यताक पक्ष मे लेखकीय प्रतिबद्धताक प्रमाण थिक सुभद्रा सनक पात्रक निर्माण जे अपन दृष्टि सँ जातीय-विमर्श सँ आगाँक बाट खोजैत अछि, 'पहिने मनुष्य बचतै तखन ने प्रेम!’
अभिनव कथ्य आ शिल्पक संग मिथिलाक नव बयार केँ थाह’वला उपन्यास थिक 'दाग’।
—श्रीधरम



उसार-पुसार


ई उपन्यास हम लगभग दस वर्ष पहिने लिखब शुरू कयने रही। 2003 मे। एक्कैसम शताब्दीक नव गाम मे तखन धरि जे किछु थोड़ेक सामाजिकता बचल छल, एहि बीच सेहो खत्म जकाँ भ’ गेल। खगल केँ के देखै यए, हारी-बीमारी धरि मे तकैवला नइँ! अहाँक नीक जरूर दोसर केँ अनसोहाँत लगै छै। लोभ-लिप्साक पहाड़ समस्त सम्बन्ध आ हार्दिकता केँ धंधा आ नफा-नुकसान सँ जोडि़ देलक अछि।...गाम सँ बाहर रह’वला भाइ-भातिज केँ बेदखल करबाक यत्न बढ़ल अछि। खेती-किसानीक जगह व्यापार आ बाहरी पाइ पर जोर। सुखितगर होइते लोक शहर जकाँ आत्मकेन्द्रित भ’ रहल अछि आकि नव तरहक दबंग बनि रहल अछि, नंगटै पर उतरि रहल अछि। संगहि की ई कम दुखद जे जाति-धर्म, पाँजि-प्रतिष्ठा सनक मामिला मे एखनो; थोड़े कम सही; उग्र कोटिक सामाजिक एकता, आडम्बर आ शुद्धता देखाइते अछि?...
सवर्ण समाज दलित-अछूतक कन्या पर अदौ सँ मोहित होइत रहल आ एम्हर आबि विवाह आदिक सेहो अनेक घटना सोझाँ आयल। मुदा दलित युवकक संग गामक सिरमौर पंडितजीक कन्याक भागि जायब, घर बसायब आ ओकर स्वावलंबी हैब पागधारी लोकनि केँ नइँ अरघैत छनि तँ एकरा की कहबै?
खेतिहर समाज लेल खेती-किसानी सँ बढि़ ताग आ पाग कहिया धरि रहत से नइँ कहि सकब!...
ओना मिथिला-मैथिल-मैथिलीक मामिला मे 'पूबा-डूबा’क हस्तक्षेप पश्चिमक श्रेष्ठता-ग्रंथि केँ कहियो स्वीकार्य नइँ रहल—खासक’ शुद्धतावादी लोकनि आ पोंगा पंडित लोकनि केँ!...
निश्चये ओहेन व्यक्ति केँ मैथिल समाजक ई पाठ बेजाय लगतनि जे मनुक्ख आ मनुक्ख मे भेद करै छथि, एक केँ श्रेष्ठ आ दोसर केँ हीन बुझैत छथि!...
सिमराही-प्रतापगंज-ललितग्राम-फारबिसगंज बीचक आ कात-करोटक 'पूबा-डूबा’ गाम-घरक किछु शब्द (ककनी, कुरकुटिया, ढौहरी, दोदब आदि), किछु ध्वनि, भिन्न-भिन्न तरहक उच्चारण आ वर्तनीक विविधता कोसी-पश्चिमक किछु पाठक केँ अपरिचित भनहि लगनि, आँकड़ जकाँ प्राय: नइँ लगबाक चाहियनि किएक तँ कोसी पर नव बनल पुल चालू भ’ गेल अछि...जाति मे भागनि आकि अजाति मे, बेटी-बहिन घर-घर सँ भागबे करतनि...ताग आ पाग धयले रहि जयतनि!...नव-नव बाट आ पुल आकर्षक होइत छै! से जनै अछि छान-पगहा तोड़बा लेल आकुल-व्याकुल नव तुरक मैथिल कन्या! हँ, पंडिजी बुझैतो तकरा स्वीकार’ नइँ चाहैत छथि।
उपन्यासक अन्तिम पाँति पूरा क’ हम विश्रामक मुद्रा मे रही...कि पंडीजी, माने पंडित भवनाथ मिश्र, आबि गेलाह। पुछलियनि—पंडित कका, अंकुरक प्रश्नक उत्तर के देत? कहू, ओकर कोन अपराध?... पंडित कका किछु ने बजलाह, बौक बनि गेलाह!...मुदा हुनका आँखि मे अनेक तरहक मिश्रित क्रोध छलनि! ओ पहिने जकाँ दुर्वासा नइँ भ’ पाबि रहल छलाह, मुदा भाव छलनि—खचड़ै करै छह! हमरा नाँगट क’क’ राखि देलह आ आबो पुछै छह...जाह, तोरा कहियो चैन सँ नइँ रहि हेतह!...
अंकुरक छाती पर जे दाग अछि, तेहन-तेहन अनेक दाग सँ एहि लेखकक गत्र-गत्र दागबाक आकांक्षी पंडित समाज आ विज्ञ आलोचक लोकनि लग निश्चये अंकुरक सवालक कोनो उत्तर नइँ हेतनि। सुभद्राक तामस आ ओकर नजरिक दापक दाग सेहो हुनका लोकनिक आत्मा पर साइत नहिए बुझाइत हेतनि!... मुदा सुधी पाठक, दलित समाज सँ आगाँ आबि रहल नवयुवक लोकनि आ स्त्रीगण लोकनिक नव पीढ़ी जरूर एकर उत्तर तकबाक प्रयास करत, से हमरा विश्वास अछि।
—गौरीनाथ
01 सितम्बर, 2012

Tuesday, November 6, 2012

समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक/ ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस

-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/

-२ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक जीवनपर आधारित "उगना रे" पर कथक नृत्यांगना शोभना नारायणक नृत्य लोककेँ मंत्रमुग्ध केलक

 - ३ नवम्बरकेँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद, ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापति आ मैथिलीमे प्रेमक गीतपर भेल बहस -बहसमे भाग लेलनि उदय नारायण सिंह नचिकेता, देवशंकर नवीन, विभा रानी आ गजेन्द्र ठाकुर; आ मोडेरेटर रहथि अरविन्द दास -आकाशवाणी दरभंगा, हिन्दी अखबार सभक दरभंगा संस्करण, सी.आइ.आइ.एल. , साहित्य अकादेमी, नेशनल बुक ट्रस्ट आ अंतिका- मिथिला दर्शन, जखन-तखन, विद्यापतिकेँ पाग पहिरा कऽ विद्यापति पर्व केनिहार चेतना समितिक पत्रिका घर बाहर, झारखण्ड सनेस आदिक मैथिली साहित्यकेँ ब्राह्मणवादी बनेबाक प्रयासक विरुद्ध गएर ब्राह्मणवादी समानान्तर धाराक चर्च गजेन्द्र ठाकुर द्वारा भेल भेल -ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण विद्यापति आ ज्योतिरीश्वरक पश्चात बला कट्टर संस्कृत-अवहट्ठ बला विद्यापतिक बीच अन्तर गजेन्द्र ठाकुर रेखांकित केलन्हि ऐ सँ पहिने हिनी आ मणुपुरीक कार्यक्रम सेहो भेल

_MAITHILI -LOVE's OWN LANGUAGE03 NOVEMBER 2012
-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/
UGNA RE BY SHOBHNA NARAYAN 02 NOVEMBER 2012
-समन्वय २-४ नवम्बर २०१२ इण्डिया हैबीटेट सेन्टर भारतीय भाषा महोत्सव SAMANVAY 2-4 November 2012 IHC INDIAN LANGUAGES' FESTIVAL/ २ नवम्बरकेँ प्रारम्भ भेल