छुतहर/ छुतहर घैल/ छुतहा घैल- समीक्षा- गजेन्द्र ठाकुर
जातिवादी रंगमंचक प्रतिनिधि नाटक-
छुतहर/ छुतहर घैल/ छुतहा घैल- समीक्षा
छुतहा
घैल महेन्द्र मलंगियाक नवीन नाटकक नाम छन्हि। ऐ छोटसन नाटकक भूमिका ओ दस पन्नामे
लिखने छथि।
पहिने
ऐ भूमिकापर आउ।
हुनका कष्ट छन्हि जे रमानन्द झा “रमण” हुनका सुझाव देलखिन्ह जे “छुतहर घैल”केँ मात्र “छुतहर” कहल जाइ छै। से ओ तीन टा गप उठेलन्हि-
पहिल-
“तों
कहियो पोथी के लेखी,
हम
कहियो अँखियन के देखी।”
दोसर-
यात्री जीक विलाप कविता-
“काते
रहै छी जनु घैल छुतहर
आहि
रे हम अभागलि कत बड़।”
आ
कहै छथि जे ओइ कविताक विधवा आ ऐ नाटकक कबूतरी देवीकेँ शिवक महेश्वरो सूत्र आ
पाणिनीक दश लकारसँ (वैदिक संस्कृत लेल पाणिनी १२ लकार आ लौकिक संस्कृत लेल दस लकार
निर्धारित कएने छथि..खएर…) कोन मतलब छै?
तेसर
ओ अपन स्थितिकेँ कापरनिकस सन भेल कहैत छथि, जे लोकक कहलासँ की हेतै आ गाम-घरमे लोक “छुतहर
घैल” बजिते छैक!!
मुदा
ऐ तीनू बिन्दुपर तीनू तर्क मलंगियाजीक विरुद्ध जाइ छन्हि। “अँखियन देखी” आ लोकव्यवहार “छुतहर” मात्र कहल जाइत देखलक आ सुनलक अछि,
घैलचीपर छुतहरकेँ अहाँ राखि सकै छी? लोइटसँ
बड़ैबमे पान पटाओल जाइ छै तखन मलंगियाजीक हिसाबे ओकरा “लोइट
घैल” कहबै। घैल, सुराही, कोहा, तौला, छुतहर,
लोइट, खापड़ि, कुड़नी,
कुरवाड़, कोसिया, सरबा, सोबरना, ऐ सभ
बौस्तुक अलग नामकरण छै। फूलचन्द्र मिश्र “रमण” (प्रायः फूलचन्द्रजी “छुतहा घैल” शब्दक सुझाव हँसीमे देने हेथिन्ह, आ जँ नै तँ
ई एकटा नव भाषाक नव शब्द अछि!!)क सुझाव मानैत मलंगिया जी “छुतहर घैल” केँ “छुतहा
घैल” कऽ देलन्हि, ई ऐ गपक द्योतक
जे हुनका गलतीक अनुभव भऽ गेलन्हि मुदा रमानन्द झा “रमण”क गप मानि लेने छोट भऽ जइतथि से खुट्टा अपना हिसाबे गाड़ि देलन्हि। आ
बादमे रमानन्द झा “रमण” चेतना
समितिसँ ओइ पोथीकेँ छपेबाक आग्रह केलखिन्ह आ, चेतना समिति
मात्र २५टा प्रति दैतन्हि तेँ ओ अपन संस्था मैलोरंगसँ
एकरा छपबेलन्हि, ऐ सभसँ पाठककेँ
कोन सरोकार? आब आउ यात्रीजीक गपपर, यात्रीजीकेँ हिन्दी पाठकक सेहो ध्यान राखऽ पड़ै छलन्हि, हुनका मोनो नै रहै छलन्हि जे कोन कविता हिन्दीमे छन्हि, कोन मैथिलीमे आ कोन दुनूमे, से ओ छुतहर घैल
लिखि देलन्हि, एकर कारण यात्रीजीक तुकबन्दी मिलेबाक
आग्रहमे सेहो देखि सकै छी। आ फेर आउ कॉपरनिकसपर, जँ
यात्री जी वा मलंगिया जी “घैल छुतहर”, “छुतहर घैल” वा “छुतहा
घैल” लिखिये देलन्हि तँ की नेटिव मैथिली भाषी छुतहरकेँ,
“घैल छुतहर”, “छुतहर घैल” वा “छुतहा घैल” बाजब
शुरू कऽ देत? से कॉपरनिकस सेहो मलंगियाजीक विरुद्ध छथिन्ह।
कॉपरनिकसक
किंवदन्तीक सटीक प्रयोग मलंगियाजी नै कऽ सकलाह, प्रायः ओ गैलिलीयो सँ कॉपरनिकसकेँ कन्फ्यूज कऽ रहल छथि, कॉपरनिकसक सिद्धान्तक समर्थन पोप द्वारा भेल छल आ कॉपरनिकस पोप पॉल-३
केँ अपन हेलियोसेन्ट्रिक सिद्धान्तक चालीस पन्नाक पाण्डुलिपि समर्पित केने रहथि।
मलंगियाजी सनसनीखेज साहित्य पढ़बामे रुचि लै छथि, अमिताभ बच्चनक शराबी आदि फिल्मक
डायलोगक दर्श हुनकर नाटकमे भऽ जाएत, प्रायः ओ ई नाटककेँ चहटगर बनबैले करैत हेता! खएर मलंगियाजीक विज्ञानक प्रति अनभिज्ञता आ विज्ञानक सिद्धान्तकेँ
किवदन्तीसँ जोड़बाक सोचपर अहाँकेँ आश्चर्य नै हएत जखन अहाँ हुनकर खाँटी लोककथा सभक
अज्ञानताकेँ अही भूमिकामे देखब।
“अली
बाबा आ चालीस चोर”- सम्पूर्ण दुनियाँकेँ बुझल छै जे ई
मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि जे “अरेबियन नाइट्स (१००१ कथा)”
मे संकलित अछि आ ओइमे विवाद अछि जे ई अरेबियन नाइट्समे बादमे
घोसियाएल गेल वा नै, मुदा ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि,
ऐ मे कोनो विवाद नै अछि। बलबनक अत्याचार आदिक की की गप
साम्प्रदायिक मानसिकता लऽ कऽ मलंगिया जी कहि जाइ छथि से हुनकर लोककथाक प्रति सतही
लगाव मात्रकेँ देखार करैत अछि। “मिथिला तत्व विमर्श”
वा “रमानाथ झा”क
पंजीक सतही ज्ञान बहुत पहिनहिये खतम कऽ देल गेल अछि, आ
तेँ ई लिखित रूपसँ हमरा सभक पंजी पोथीमे वर्णित अछि जे
गोनू झा संस्कृत आ अवहट्ठ बला ब्राह्मण विद्यापति ठक्कुर सँ
३०० बर्ख पहिने भेलाह आ मैथिली पदावली बला नौआ ठाकुर महाकवि विद्यापति सँ
२०० बर्ख पहिने। मुदा मलंगियाजी ५० साल पुरान गप-सरक्काक आधारपर
आगाँ बढ़ै छथि। हुनका बुझल छन्हि जे गोनूकेँ धूर्ताचार्य कहल गेल छन्हि मुदा संगे
गोनूकेँ महामहोपाध्याय सेहो कहल गेल छन्हि, से हुनका नै
बुझल छन्हि!! गोनू झाक समयमे मुस्लिम मिथिलामे रहबे नै करथि तखन “तहसीलदारक दाढ़ी” कतऽ सँ आओत, लोकक कण्ठमे छुतहर छै ओकरा “छुतहा घैल”
कऽ दियौ, लोकक कण्ठमे “कर ओसूली”करैबलाक दाढ़ी छै ओकरा “तहसीलदार”क दाढ़ी कहि साम्प्रदायिक आधारपर
मुस्लिमकेँ अत्याचारी करार कऽ दियौ, आ तेहेन भूमिका लिखि
दियौ जे रमानन्द झा “रमण” आ आन
गोटे डरे समीक्षा नै करताह। एकटा पैदल सैनिक आ एकटा सतनामी (दलित-पिछड़ल वर्ग
द्वारा शुरू कएल एकटा प्रगतिवादी सम्प्रदाय)क झगड़ासँ शुरू भेल सतनामी विद्रोह
औरंगजेबक नीतिक विरोधमे छल आ ओइमे मस्जिदकेँ सेहो जराओल गेलै, मुदा गोनू झाक कर ओसूली अधिकारी मुस्लिम नै रहथि, लोककथामे ई गप नै छै, हँ जँ साम्प्रदायिक
लोककथाकार कहल कथामे अपन वाद घोसियेलक आ लिखै काल बेइमानी केलक तँ तइसँ मैथिली
लोककथाकेँ कोन सरोकार? फील्डवर्कक आधारपर जँ लोककथाक
संकलन नै करब तँ अहिना हएत। से मलंगियाजी बलबनक अत्याचार क कथा
“अलीबाबाक..”क कथाकेँ कहै छथि!
महेन्द्र
नारायण राम लिखै छथि जे लोककथामे जाइत-पाइत नै होइ छै, मुदा मलंगियाजी से कोना
मानताह। भगता सेहो हुनकर कथामे एबे करै छन्हि। आ असल कारण जइ कारणसँ ई मलंगिया जीक
नाटकक अभिन्न अंग बनि जाइत अछि से अछि हुनकर आनुवंशिक जातीय श्रेष्ठता आधारित सोच।
हुनकर नाटकमे मोटा-मोटी अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक घीच तीरि कऽ सत्रहटा दृश्य अछि, जइमे पन्द्रहम दृश्य धरि ओ छोटका जाइतक (मलंगियाजीक अपन इजाद कएल भाषा
द्वारा) कथित भाषापर सवर्ण दर्शकक हँसबाक, आ भगताक
भ्रष्ट-हिन्दीक माध्यमसँ छद्म हास्य उत्पन्न करबाक अपन पुरान पद्धतिक अनुसरण करै
छथि। कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह ओ सोलहम दृश्यसँ करै छथि मुदा बाजी तावत हुनका
हाथसँ निकलि जाइ छन्हि। आइ जखन संस्कृत नाटकोमे प्राकृत वा कोनो दोसर भाषाक प्रयोग
नै होइत अछि, मलंगियाजीक भरतकेँ गलत सन्दर्भमे सोझाँ आनब
संस्कृतसँ हुनकर अनभिज्ञताकेँ देखार करैत अछि आ भरत नाट्यशास्त्रपर हिन्दीमे जे
सेकेण्डरी सोर्सक आधारपर लोक सभ पोथी लिखने छथि, हुनका द्वारा तकरे कएल अध्ययन सिद्ध करैत अछि।
मलंगियाजीक
ई कहब अछि जे नाटक जँ पढ़बामे नीक अछि तँ मंचन योग्य नै हएत,
वा मंचन लेल लिखल नाटक पढ़बामे नीक नै लागत? हुनकर संस्कृत पाँतीकेँ उद्घृत
करबासँ तँ यएह लगैत अछि। जँ नाटक पढ़बामे उद्वेलित नै करत तँ निर्देशक ओकर मंचनक निर्णय
कोना लेत? आ मंचीय गुण की होइ छै, अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक सत्रहटा दृश्य, तथाकथित निम्न
वर्गकेँ अपमानित करैबला जातिवादी भाषा, भगताक “बुझता है कि नहीं?” बला हिन्दी आ ऐ सभक
सम्मिलनक ई “स्लैपस्टिक ह्यूमर”? आ जे एकर विरोध कऽ मैथिलीक समानान्तर रंगमंचक परिकल्पना प्रस्तुत करत
से भऽ गेल नाटकक पठनीय तत्त्वक आग्रही आ जे पुरातनपंथी जातिवादी अछि से भेल नाटकक
मंचीय तत्वक आग्रही!! की २१म शताब्दीमे मलंगियाजीक जाति आधारित वाक्य संरचना
संस्कृत, हिन्दी वा कोनो आधुनिक भारतीय भाषाक नाटकमे
(मैथिलीकेँ छोड़ि) स्वीकार्य भऽ सकत? आ जँ नै तँ ऐ
शब्दावली लेल १८०० बर्ष पुरनका संस्कृत नाटकक गएर सन्दर्भित तथ्यकेँ, मूल संस्कृत भरत नाट्यशास्त्र नै पढ़ैबला नाटककार द्वारा, बेर-बेर ढालक रूपमे किए प्रयुक्त कएल जाइए? माथपर
छिट्टा आ काँखमे बच्चा जँ कियो लेने अछि तँ ओ निम्न वर्गक अछि? ओकर आंगनक बारहमासामे ओ ऐ निम्न वर्गकेँ राड़ कहै छथि, कएक दशक बाद ई धरि सुधार आएल छन्हि जे ओ आब ओइ वर्गकेँ निम्न वर्ग कहि
रहल छथि, ई सुधार स्वागत योग्य मुदा ऐ दीर्घ अवधि लेल
बड्ड कम। बबाजी कोना कथामे एलै आ गाजा कोना एलै आ ओइसँ बगियाक गाछक बगियाक कोन
सम्बन्ध छै? मलंगियाजी अपन जाति-आधारित वाक्य संरचना,
आ भ्रष्ट-हिन्दी मिश्रित वाक्य रचना कोना घोसिया सकितथि जँ भगता
आ निम्न वर्गक छद्म संकल्पना नै अनितथि? ई तथ्य ओ बड्ड
चतुराइसँ नुकेबाक प्रयास करै छथि, आ तेँ ओ मेडियोक्रिटीसँ
आगाँ नै बढ़ि पबै छथि। निम्न वर्गक स्त्रीक जांघक तिल गोनूकेँ देखेबा लेल आ
स्वयं देखबा लेल मलंगिया व्यग्र छथि, थोपड़ी चाही!! ऐ तरहक जातिवादी नाटकक शृंखलाक
पाँती लगेने छथि मलंगिया, आ हुनकर जातिवादी रंगमंचसँ मैथिलीकेँ जतेक नुकसान
पहुँचबाक छलै, जे भोग मैथिलीकेँ भोगबाक छलै ओ मैथिली प्राप्त कऽ लेने अछि! गुणनाथ
झा ठीके कहै छथि जे आशा छल जे मलंगियाजी उमेरक संग आधुनिक नाटक आ रंगमंचकेँ बुझि
जेता, मुदा से नै भऽ सकल। मलंगियामे ऐ नाट्य-कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह तँ छन्हि मुदा सामर्थ्य
नै आबि पबै छन्हि।
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