Tuesday, November 13, 2012

गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत



गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर
विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्यशास्त्रक संकल्पनाक संग गजेन्द्र ठाकुरक उल्कामुखक अपार सफलताक बाद...
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे ...
"समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर...

गजेन्द्र ठाकुरक "गंगा ब्रिज"
रिटायरमेंट आ मृत्युक बीच संघर्षमे के जीतत...
तँ की हारि जाइ
तँ की छोड़ि दिऐ
इच्छा जीतत आकि जीतत ईर्ष्या
संकल्प हमर जे एहि धारकेँ मोड़ि देब
मुदा किछु ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ईर्ष्या जे हम धारकेँ नहि मोड़ि पाबी
बहैत रहए ओ ओहिना
ओहिना किए ओहूसँ भयंकर बनि

संकल्प जे हम केने छी
इच्छा जे अछि हमर/ से हारि जाए
आ जीति जाए द्वेष/ जीति जाए ईर्ष्या
हा हारबो करी तेना भऽ कऽ जे लोक देखए!/ जमाना देखए!!
तेना कऽ हारए संकल्प हमर/ इच्छा हमर
धारकेँ रोकि देबाक/ ठाढ़ भऽ जएबाक सोझाँ ओकर
आ मोड़ि देबाक संकल्प ओहि भयंकर उदण्ड धारकेँ
मुदा किछु आर ईर्ष्या अछि सोझाँ अबैत
ओ द्वेष चाहैए जे हमर प्रयास/ धारकेँ मोड़बाक प्रयास
मोड़लाक प्रयासक बाद भऽ जाए धार आर भयंकर
पुरान लीखपर चलैत रहए भऽ आर अत्याचारी
आ हम जाए हारि
आ हारी तेना भऽ कऽ जे लोक राखए मोन
मोन राखए जे कियो दुस्साहसी ठाढ़ भऽ गेल छल धारक सोझाँ
तकर भेल ई भयंकर परिणाम
जे लोक डरा कऽ नहि करए फेर दुस्साहस
दुस्साहस ठाढ़ हेबाक उदण्ड-अत्याचारी धारक सोझाँमे
लऽ ली हम पतनुकान/ आ से सुनि थरथरी पैसि जाए लोकक हृदयमे

मुदा हम हँसै छी
हारि तँ जाएब हम मुदा हमर साधनासँ जे रक्तबीज खसत
से एक-एकटा ठोपक बीआ बनि जाएत सहस्रबाढ़नि झोँटाबला
घृणाक विरुद्ध ठाढ़ अछि हमर ई बुढ़िया डाही।



मैथिली नाटककेँ.....................
नव आयाम दैत ............................
नाटकक नव युगमे प्रवेश प्रवेश करबैत अछि.......
 "गंगा ब्रिज".......................................................
विदेह नाट्य उत्सव २०१३ मे मंचित हएत............................
निर्देशक बेचन ठाकुर..................................................................
मंच "समकालीन रंगमंचीय वास्तुकला"क आधारपर.........................................................................

“विदेह मैथिली नाट्य महोत्सव २०१३”-निर्देशक बेचन ठाकुर [किछु तँ छै जे हमर अस्तित्व नै मेटाइए, कतेक सए सालसँ अछि दुश्मन ई दुनियाँ तैयो।] कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन, दौरे-ज़माँ हमारा [इकबाल]
चित्र साभार विकीपीडिया


गंगा ब्रिज (नाटक)- गजेन्द्र ठाकुर
कल्लोल एक
दृश्य १
स्टेजक एक कात किछु मजदूर सभ खट-खुट कऽ गिट्टी पजेबा तोड़ि रहल छथि लगैए जे गंगापुलक मरोम्मति भऽ रहल अछि, कारण किछु मजदूर जय माँ गंगे कहि मंचक नीचाँ प्रणाम सेहो कऽ रहल छथि। स्टेजक दोसर कात दूटा लोक नीचाँ राखल नगाड़ा-ढोलपर चोट दऽ रहल अछि। तखने एकटा ढोलहो देनहारक प्रवेश।

ढोलहो देनहार : गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। (ढोलहो दैत) सुनै जाउ, सुनै जाउ।गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि।
एकटा लोक (डंका बजेनाइ छोड़ि मजदूर सभकेँ अकानैत ढोलहो देनहार लग अबैए , मुदा दोसर लोक आस्ते आस्ते डंका बजबिते रहैत अछि): देखै छिऐ जे काज तँ चलिये रहल छै, तखन फेर?
ढोलहो देनहार: एतबे मजदूरसँ काज नै चलतै। पूरा पुल हिल रहल छै। (ढोलहो दैत) सुनै जाउ, सुनै जाउ।गंगा ब्रिज। पवित्र गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि।
दोसर लोक (डंका बजेनाइ छोड़ि कऽ ढोलहो देनहार लग अबैए): एतबे दिनमे कोना ई हाल भऽ गेलै। सुनै छिऐ जतेक पाया ऐ पुलमे छै ततेक कए करोड़ टाका एकरा बनबैमे खर्च भेल रहै।
ढोलहो देनहार:काज ढंगसँ नै भेल रहै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...। गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। सुनै जाउ, सुनै जाउ।
एकटा लोक: देखै छिऐ, जहिया बनिये रहल छलै, बनि कऽ तैयारो नै भेल रहै, तहियेसँ ऐ पुलक मरोम्मति शुरू छै।
दोसर लोक: चिप्पीपर चिप्पी पड़ि रहल छै। उद्घाटनसँ पहिनहिये सँ चिप्पी पड़नाइ शुरू भऽ गेल रहै।
ढोलहो देनहार: सरकारी पुल छिऐ, चिप्पी नै पड़तै तँ इन्जीनियर आ ठिकेदारक घरपर छज्जा कोना एतै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...।
एकटा लोक: हौ ढोलहोबला, से तँ बुझलिऐ, मुदा से ने कहऽ जे दुनियाँ मे आनो ठाम पुल बनै छै, से ओतुक्का इन्जीनियर आ ठिकेदारक घरपर छज्जा पड़ै छै आकि नै हौ।
ढोलहो देनहार: किजा ने गेलिऐ, मुदा सुनै छिऐ अंग्रेजबला पुल मजगूत होइ छलै। सुनै जाउ, सुनै जाउ...।
दोसर लोक: हौ, अनेरक पाइ आबै छलै लूटिक तँ जे एकाध टा पुल अंग्रेज बनेलकै से मजगूते ने हेतै हौ।
एकटा लोक:ई इन्जीनियर आ ठिकेदार सभ लूटिमे अंग्रेजसँ कम नै छै, मुदा पुल मजगूत किए नै बनबै छै हौ। ओइ बनबैमे अंग्रेज सन किए नै छै हौ।
दोसर लोक: मजगूत बना देतै तँ फेर मरोम्मतिक ठेका कोना भेटतै हौ। की हौ ढोलहोबला..
ढोलहो देनहार: किजा ने गेलिऐ। सुनै जाउ, सुनै जाउ...। गंगापर बनल ऐ पुलक मरोम्मति लेल मजदूर चाही। स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध सभ कियो आवेदन दऽ सकै छथि। सुनै जाउ, सुनै जाउ।


(ढोलहो बला चलि जाइए। पाछाँसँ दू-दूटा तिरंगा झण्डा लेने बच्चा सभ अबैए। संगमे दूटा शिक्षक छै। एकटा शिक्षक (वा शिक्षिका) आगाँ-आगाँ आ एकटा शिक्षक (वा शिक्षिका) पाछाँ-पाछाँ चलि रहल छथि। सभ मजदूरकेँ एक-एकटा झण्डा दऽ देल जाइ छै। ओइ दुनू टा लोककेँ सेहो एक-एकटा झण्डा देल जाए”- ई गप शिक्षक इशारामे कहै छथि, मुदा झण्डा घटि गेलै, से ओ दुनू खाली हाथ रहि जाइ छथि आ सभक मुँह ताकऽ लगै छथि।
मजदूरक सोझाँ ओ दुनू लोक ठाढ़ भऽ जाइए आ फेर डंके लग आबि ठाढ़ भऽ जाइए आ आश्चर्यसँ देखऽ लगैए।
त्रिवार्णिक झण्डा लऽ कऽ बाकी सभ गोटे मंचपर छितरा जाइ छथि आ स्टेजपर ठाढ़ भऽ जाइ छथि। उल्लासक वातावरण सगरे पसरल अछि, दुनू लोककेँ छोड़ि सभक मुँहपर (मजदूर सभक सेहो) हँसी-प्रसन्नता आबि जाइ छै
जखन सभ ठाढ़ भऽ जाइ छथि तखन दुनू शिक्षक (वा शिक्षिका) बच्चा सभक आगाँ आ दर्शक सभक सोझाँ ठाढ़ भऽ जाइ छथि।
१५ अगस्त ई नारा दुनू शिक्षक बाजै छथि आ “स्वतंत्रता दिवस सभ मिलि कऽ (दुनू लोक केँ छोड़ि कऽ) बाजै छथि।

शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बौआ-बुच्ची। आइ ई त्रिवार्णिक झण्डा हमरा सभक हाथमे फहरा रहल अछि। पहिने हम सभ दोसराक अधीन छलौं, पराधीन छलौं, ई झण्डा झुकल छल, फहरा नै सकै छलौं। झण्डा फहराइत रहए ओइ लेल हमरा सभकेँ जोर लगाबैत रहऽ पड़त। (चारू दिस हाथ पसारैत) ऐ इलाकामे आब खुशी पसरत। जमीन्दारक राज खतम भऽ गेल। सभ कियो पढ़ि सकै छथि। झगड़ा-झाँटी, युद्ध, आब सभ खतम भऽ गेल। हमरा सभक जीवनमे एकटा नवका भोर आएल अछि। नवका शिक्षा, नवका खेतीक चलनि हएत।  
शिक्षक (वा शिक्षिका) २: बड़का चिमनीक धुँआ आ बड़का-बड़का बान्ह। बिलैंतसँ आबैबला सभ समान चिमनीबला फैक्ट्रीमे तैयार हएत। बड़का-बड़का बान्ह ओइ धारकेँ बान्हि-छेक कऽ सञ्जत कऽ देत। खूब उपजत खेत, बर्खा बरखत इन्द्रक नै हमरा सभक प्रतापसँ। खेते-खेत बहत धार, हएत पटौनी। छोट-पैघक भेद मेटा जाएत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: छोट-पैघक भेद मेटा जाएत? बड़का चिमनीक धुँआ आ बड़का-बड़का बान्ह छोट-पैघक भेद मेटाएत?
शिक्षक (वा शिक्षिका) २: हँ। पटौनी हएत खेते-खेत। बिलैंतसँ आबैबला सभ समान आब एतै चिमनीबला फैक्ट्रीमे तैयार हएत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बड़का बान्ह आ बड़का फैक्ट्रीसँ ढेर रास समस्या सेहो आबै छै। ओकर निदान जरूरी छै। विकास एकभग्गो भऽ जाएत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) २: विकास एकभग्गू कोना हएत?
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बड़का फैक्ट्री सभ ठाम नै लागि सकत, कतौ-कतौ लागत, ओतऽ बोनिहारक पड़ैन हएत। बड़का बान्ह बनलासँ ओकर भीतरक गामसँ सेहो लोकक पड़ैन हएत। बड़का बान्ह जँ मजगूत नै हएत तँ ओ टूटत आ प्रलय आएत। बड़का फैक्ट्री आ बड़का बान्ह लोकक जिनगीकेँ छहोछित कऽ देत।
शिक्षक (वा शिक्षिका) २:एक पीढ़ीकेँ तँ बलिदान देबैए पड़त। बच्चा सभ, बाजै जाउ। अहाँ सभ देश लेल अपनाकेँ समर्पण करब आकि नै।
शिक्षक (वा शिक्षिका) १: बच्चा सभ, बाजै जाउ, अहाँ सभ की बनऽ चाहै छी। समाजकेँ की देबऽ चाहै छी।
बच्चा: हम इन्जीनियर बनब आ सड़क, पुल, नहर बनाएब। जइसँ लोकक दुःख दूर हेतै।
बच्चा २: हमहूँ इन्जीनियर बनब। बड़का-बड़का बान्ह, बड़का-बड़का चिमनीक धुँआ। धुँआ सुंघैमे हमरा बड्ड नीक लागैए। कतेक नीक दिन आएत, बड़का-बड़का बान्ह, बड़का-बड़का चिमनी देश भरिमे पसरि जाएत।
बच्चा: मुदा धुँआसँ खोँखी होइ छै। हमर माए खोँखी करैत रहैए। हमरा धुँआसँ परहेज अछि।
बच्चा २:मुदा हमर माए तँ भनसाघर जाइतो नै अछि। मुदा हम जाइ छी, चोरा-नुका कऽ, आ धुँआक गंध, बड़का देवार, ई सभ हमरा बड्ड नीक लगैए।
शिक्षिका : नीकगप। मुदा विकास केहन हुअए, ई सभ हमरा सभक हाथमे नै अछि। पटना आ दिल्लीमे ई निर्णय हएत जे हमरा सभ लेल केहन विकास हेबाक चाही।
शिक्षिका: नीकगप, नीक गप जे हमरा सभक विकास लेल पटना आ दिल्लीमे सोचल जा रहल अछि मुदा ओतऽ बैसि कऽ वा एकाध दिनक हलतलबीमे कएल दौड़ासँ ओ सभ उचित निर्णय लऽ सकता? जे से, मुदा हम सभ समाज लेल काज करी, से सतत ध्यान रहए। पूरा इमानदारीसँ, जान जी लगा कऽ ऐ देशक इतिहास हमरा सभकेँ बनेबाक अछि, से ध्यान रहए। आइ १५ अगस्त १९४७ केँ हम ई प्रण ली, वचन दी।
सभ बच्चा: हम सभ वचन दै छी, हम सभ पूरा इमानदारीसँ जान जी लगा कऽ ऐ देशक नव इतिहास लिखब।
(“१५ अगस्त ई नारा दुनू शिक्षक बाजै छथि आ “स्वतंत्रता दिवस सभ मिलि कऽ (दुनू लोक केँ छोड़ि कऽ) बाजै छथि। बच्चा आ शिक्षक सभ मजदूर सभसँ झण्डा आपस लऽ लै छथि। मजदूर सभ फेर बैसि कऽ ठक-ठुक करऽ लगैए। दुनू लोक ओतै हतप्रभ ठाढ़ रहैए। फेर पर्दाक पाछाँ कोनमे देखऽ लगैए जेना ककरो एबाक प्रतीक्षा कऽ रहल हुअए। तखने दुनू हरबड़ा कऽ जाइए आ एकटा कुर्सी आनि कऽ राखैए। कटा ४०-४५ बर्खक अभियन्ता मंचपर अबैए। अभियन्ता कनेक हाँफि रहल अछि, कुर्सी देखिते ओ धबसँ ओइ कुर्सीपर बैसि जाइए। फेर साँस स्थिर कऽ ठाढ़ होइए। ठक-ठुक बन्द भऽ जाइ छै आ मजदूर सभ फ्रीज भऽ जाइए, ओ दुनू लोक कोन दिस दंका लग चलि जाइए आ फ्रीज भऽ जाइए। अभियन्ता बाजऽ लगैए।

अभियन्ता: (कुर्सीकेँ झमाड़ैत) एना। एना हिलि रहल अछि ई, ई गंगा ब्रिज। सीमेन्ट, बालु, गिट्टीक कंक्रीटसँ बनल ई पुल कठपुलासँ बेशी हिलैए। जहिया आबै छी, मरोम्मतियेक काज चलैत रहै छै। वन-वे, एक दिस; एक्के दिसुका मात्र भऽ कऽ रहि गेल अछि ई। एक्के दिस पुल खुजल छै, दोसर दिस कोना चलत, अदहा पुलपर मरोम्मतिक काज भऽ रहल अछि। (तखने ओ आभासी रूपमे हिलऽ लगैए आ ओकर बाजब थरथरा उठै छै।) ई पुल तँ एत्ते हिलि रहल अछि जत्ते गामक कठपुलो नै हिलैए।
(तखने एकटा ठिकेदार अबैए।)
ठिकेदार (अभियन्तासँ): हइ इन्जीनियर। तोहूँ वएह कऽ वएह रहि गेलेँ। बालुकेँ एना कऽ चालनिसँ चालू, ओना कऽ चालू, जेना ओ चाउर दालि हुअए मुदा हम सेहो चाललौं। ठीक छै ठीक छै। तूँ कहै छलेँ जे रोटी बनेबा लेल जेना चालै छी तहिना पुल बनेबा लेल चालू, तखने नीक रोटी सन नीक पुल बनत। ठीक छै ठीक छै। फेर एतेक सीमेन्ट, एतेक बालु, एतेक.. हम कहने रही जे हम तोहर सभ गप मानब, मुदा तखन नेता, दोसर इन्जीनियर, गुण्डा, एकरा सभकेँ कमीशन कतऽ सँ देबै? तोरा कहलासँ बालु चालऽ लगलौं कमीशन बन्द कऽ देलिऐ। हमर तँ किछु नै भेल मुदा तोहर बदली भऽ गेलौ, तोहर दरमाहा बन्न भऽ गेलौ। बच्चा सभक नाम स्कूलसँ कटाबऽ पड़लौ, गाम पठाबऽ पड़लौ बच्चा सभकेँ। हम कहने रहियौ तोरा, जे बालु चालब, एतेक सीमेन्ट, एतेक बालु, सभ निअमसँ देबै। हमरा की? इलाकाक पुल, सड़क जतेक मजगूत रहतै ततेक ने नीक। हमरो लेल नीके। मुदा हमरा बूझल छल जे तोहर बदली भऽ जेतौ। चीफ इन्जीनियर, नेताक दहिना हाथ.. पहिने हमरे कहने रहए तोरा रोलरक नीचाँमे पिचड़ा कऽ दैले.. बइमान चीफ इन्जीनियर। देख, पहिने हमरो होइ छल जे तोहूँ ओकरे सभ जेकाँ छेँ, अपन रेट बढ़ाबैले ई सभ कऽ रहल छेँ। मुदा बादमे हम देखलौं जे नै, तूँ अलग छेँ। मुदा हम की करू? हम अपन बच्चाक नाम स्कूलसँ नै कटबा सकै छी। मुदा जौँ तोरा सन चीफ इन्जीनियर आबि जाए.... कहियो से दिन आबए... तखन हम फेरसँ बालु चालब शुरू करब आ वएह चालल बालु, एत्ते बालु एत्ते सीमेन्टमे मिलाएब। एत्ते बालु, एत्ते सीमेन्ट, सभटा ओहिना जेना अहाँ तूँ कहै छलेँ। मुदा जखन तोरा सन कियो आबए तखने किने। ताधरि तँ...
(अभियन्ता आ ठिकेदारक प्रस्थान। लागल जेना फ्रीज लोककेँ अभियन्ता आ ठिकेदारक गपक विषयमे बुझल नै भेलै जेना ई सभ आभाषी छल। दुनूटा लोक फ्रीज स्थितिसँ घुरि असथिरसँ डंका बजबऽ लगैए आ तखन मजदूर सभ सेहो फ्रीज स्थितिसँ आपस आबि जाइए आ फेरसँ ठकठुक करऽ लगैए। दुनू लोक डंकाक अबाज आस्ते-आस्ते तेज करऽ लगैए आ फेर ठक-ठुकक अबाज मद्धिम पड़ि जाइए आ डंकाक अबाजक संग पर्दा खसैए।)


 जारी....
(चित्र साभार विकीपीडिया)



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