Friday, August 31, 2012

हम पुछैत छी: विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंचक संस्थापक मैथिली नाटक आ रंगमंचक आइ धरिक सभसँ पैघ नाम बेचन ठाकुरसँ मुन्नाजीक गपशप


गमैया नाटकक परि‍वेशजन्य आधुनिक मैथिली समानान्तर नाटक आ रंगमंचक सृजनकर्त्ता एवं नि‍स्वा‍र्थ भावनासँ रचनारत श्री बेचन ठाकुर जीसँ हुनक रचनात्मक प्रक्रि‍या मादे युवा विहनि कथाकार मुन्नाजी द्वारा कएल गेल वि‍भि‍न्न प्रश्नक उतारा अहाँ सबहक समक्ष देल जा रहल अछि‍।

मुन्नाजी- प्रणाम ठाकुरजी!
बेचन ठाकुर- प्रणाम मुन्ना भाय!

मुन्नाजी- साहि‍त्यक मुख्य‍: दू गोट वि‍धाक एतेक रास प्रकारमे सँ अपने नाटकक सर्जनकेँ प्राथमि‍कता देलौं कि‍ए? एकर कोनो वि‍शेष कारण तँ नै अछि‍? अहाँक समानान्तर रंगमंच जे आन्दोलन शुरू कएने अछि ओकर मादेँ किछु कहए चाहब।
बेचन ठाकुर- मुन्नाजी, अहाँकेँ तँ बुझले हएत जे मैथिलीमे जातिवादी रंगमंच, खास कऽ महेन्द्र मलंगिया (ओकर आंगनक बारमासासँ लऽ कऽ छुतहा घैल धरिमे ई जातिवादी शब्दावली भरल अछि) आ हुनकर विचारधाराक लोक, कोन तरहेँ पत्र-पत्रिकाक माध्यमसँ आ सरकारी आ गएर सरकारी फण्ड आ सहयोगक माध्यमसँ गएर सवर्णक प्रति गारि आदिक प्रयोग कऽ रहल छथि, ओकर संस्कृतिकेँ तोड़ि कऽ प्रस्तुत कऽ रहल छथि, ओकरा लेल एहेन मैथिलीक प्रयोग कऽ रहल छथि जकरासँ ई सिद्ध हुअए जे ओ सभ मैथिली भाषी छथिए नै, कतौ बाहरसँ आएल छथि। आब मलंगियाक संस्था ई काज हिन्दीसँ मैथिलीमे अनूदित नाटकमे सेहो केलक, रामेश्वर प्रेमक नाटकक मैथिलीमे “जल डमरू बाजे” रूपमे घृणित अनुवाद आ मंचन भेल, गएर सवर्ण लेल तथाकथित छोटहा मैथिलीक प्रयोग कएल गेल, हिन्दीमे रामेश्वर प्रेम ऐ तरहक प्रयोग नै केने छथि, रामेश्वर प्रेम सेहो ई हेबऽ देबा लेल दोषी छथि।  हिन्दी सन कोनो भाषा आ मैथिलीकेँ मिश्रित कऽ ओ लोकनि ई सिद्ध करबामे लागल छथि जे ईएह मिश्रित भाषा मिथिलाक भाषा छी, आ ऐ तरहेँ मैथिलीकेँ मारबा लेल बिर्त छथि; किछु थोपड़ीक लोभेँ सेहो ओ ई कऽ रहल छथि। ओना तँ जइ पत्रिका आ सरकारी-गएर सरकारी माध्यममे एकर चर्च होइए ओकर पढ़निहारक संख्या तँ शून्ये अछि मुदा ओ सभ जँ अहाँ पढ़ू तँ लागत जे जे अछि से जातिवादी रंगमंचे अछि, ओना ओ वास्तविकतामे मैथिली रंगमंचक दसो प्रतिशत नै अछि। आ यएह सभ कारण शुरूसँ विद्यमान छल जइ कारणसँ हम समानान्तर रंगमंच पछिला २५ सालसँ चलबैत रहलौं। मुदा एकर कोनो विवरण मैथिलीक जातिवादी पत्रिकामे नै आएल। मुदा जखन पहिल विदेह मैथिली नाट्य उत्सव २०१२ भेल तँ ९०% लोकक समानान्तर रंगमंचक धाह ओइ जातिवादी रंगमंचकेँ/ मानसिकताकेँ बुझा पड़ऽ लगलै। रामदेव झा अपन दूटा पुत्र विजयदेव झा आ शंकरदेव झाक संग मैदानमे आबि गेलाह आ अपशब्दक प्रयोगक शुरुआत केलन्हि। मलंगिया जी अपन दुनू पुत्र ललित कुमार झा आ ऋषि कुमार झाक संग मैदानमे आबि गेलाह आ अपशब्दक प्रयोगक शुरुआत केलन्हि। तँ दुनू गोटेमे (रामदेव झा आ महेन्द्र झा मलंगियामे) समानता फेर सोझाँ आबि गेल। जातिवादी रंगमंच साहित्य अकादेमी पुरस्कारक लेल मलंगियाक नाम उठेलक, कमल मोहन चुन्नू नाटककारकेँ नाटक लेल पुरस्कार देबाक गप केलन्हि आ महेन्द्र मलंगिया लेल ऐ पुरस्कारक अनुशंसा केलन्हि, ओ कहलन्हि जे आइ धरि ई नै भेल अछि जे मैथिलीमे नाटककारकेँ नाटक लेल पुरस्कार भेटल अछि, ओ रामदेव झाकेँ भेटल पुरस्कारकेँ खारिज करैत कहलन्हि जे रामदेव झाकेँ जइ नाटक- एकांकी लेल पुरस्कार भेटलन्हि से कथाकेँ कथोपकथनमे लिखल मेहनति मात्र अछि (मिथिला दर्शनमे हुनकर लेख)। आ जखन महेन्द्र मलंगियाकेँ जातिवादी रंगमंचक मैथिली एकांकी संग्रहक ठेका साहित्य अकादेमीसँ चन्द्रनाथ मिश्र अमर”-रामदेव झा (ससुर-जमाएक जोड़ी)क अनुकम्पासँ भेटलन्हि तँ ओ मैथिलीक (जातिवादी रंगमंचक) १९ टा सर्वश्रेषठ एकांकीमे रामदेव झाक पिपासालेने रहथि, आब लिअ, रामदेव झा सर्वश्रेष्ठ नाटककार भऽ गेलाह!! आ ओइ पोथीक भूमिकामे चन्द्रनाथ मिश्र अमर”-रामदेव झा केँ खुश रखबा लेल गोविन्द झा आ सुधांशु शेखर चौधरीक मजाक तँ उड़ेनहिये छथि संगमे राधाकृष्ण चौधरी आ मणिपद्मकेँ किए ओ ऐ संग्रहमे शामिल नै केलन्हि, ओइ लेल हास्यास्पद तर्क सेहो देने छथि। गुणनाथ झाकेँ ओ शामिल किए नै केलन्हि!! सर्वहाराक रंगमंचकेँ ओ शामिल किए करितथि, ई संकलन तँ जातिवादी रंगमंचक छल किने!! आ जँ अहाँ जातिवादी रंगमंचक विरोध करब तँ मलंगिया जीक दुनू बेटा ललित कुमार झा, ऋषि कुमार झा फोन नम्बर +२३४८०३९४७२४५३ सँ अहाँकेँ धमकी देत जेना ललित कुमार झा उमेश मण्डल जी केँ देलन्हि वा विजयदेव झा +९१९४७०३६९१९५ नम्बरसँ धमकी देत जेना ओ उमेश मण्डल जी केँ २६ अगस्त २०१२ केँ धमकी देलन्हि। आ आब अहाँ सोचमे पड़ि जाएब जे ई लोकनि कखन एक दोसराक पक्षमे आबि जाइ छथि आ कखन विरोधमे, कखन रामदेव झा नाटककार बनि जाइ छथि आ कखन खारिज भऽ जाइ छथि। जातिवादी रंगमंच आपसमे खण्ड-पखण्ड अछि, मुदा विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन आ विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंचक विरोधमे ई सभ एक भऽ जाइत अछि। कमल मोहन चुन्नूकेँ नाटककार जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ लघुकथा संग्रह गामक जिनगीलेल टैगोर साहित्य सम्मान भेटलासँ एतेक कष्ट भेलन्हि जे ओ एक बेर फेर घर-बाहरमे मलंगिया जीकेँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटए, से फतवा जारी कऽ देलन्हि ई कहि कऽ जे मलंगिया जी मैथिलीक (जातिवादी रंगमंचक दृष्टिकोणसँ) सर्वश्रेष्ठ नाटककार छथि, मुदा ऐबेर ओ ई सतर्की केलन्हि जे सर्वश्रेष्ठ समालोचक, लघुकथाकार आ कविक नाम सेहो जोड़लन्हि, आ हुनको सभकेँ साहित्य अकादेमी भेटए से चर्च कऽ देलन्हि, जे आरोप नै लागएकहबाक आवश्यकता नै जे ऐ लिस्टक सभ समालोचक, लघुकथाकार आ कवि चुन्नू जीक ब्राह्मण जातिक छथिदोसर हुनका पढ़ल नै छन्हि। सर्वहारा वर्ग नीक जेकाँ बुझि गेल जे ई साहित्य आ ई रंगमंच ओकरा लेल नै अछि, से ओ अपनाकेँ ऐसँ कात कऽ लेलक, आ जँ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन आ विदेह मैथिली समानान्तर रंगमंच नै अबितए तँ मामिला खतमे छल। हम आगाँ २५ साल धरि ई समानान्तर रंगमंच चलबैत रहब। पछिला २५ सालमे जतेक सफलता भेटल अछि ओइसँ हम उत्साहित छी, अगिला पचीस सालमे जँ हम जातिवादी रंगमंचक किरदानीक कारण मैथिलीसँ भागल सर्वहारा वर्गक किछु आर गोटेकेँ मैथिलीसँ जोड़ि सकब आ जे काज हमरासँ छूटि जाएत से अगिला पीढ़ी करत। जातिवादी रंगमंच आब सरकारी आ गएर सरकारी संस्थाक हथियार बनि कऽ रहि गेल अछि, ई ढहब शुरू भऽ गेल अछि, किछु ऊपरी सुधार, नामे लेल सही, ई कऽ रहल अछि। हमर लक्ष्य अछि जे अगिला पचीस सालमे ई जड़िसँ खतम भऽ जाए।

मुन्नाजी- अहाँक नाटकक कथानकमे केहेन स्थिति वा परि‍वेशक समावेश रहैए।
बेचन ठाकुर- जखन हम परि‍वारक संग वा पड़ोसीक संग गमैया नाच वा नाटक देखैले जाइत रही तँ हुनके सभसँ प्रेरि‍त भऽ नाटकक प्रति‍ अभि‍रूचि‍ जागल आ दि‍नोदि‍न बढ़ैत रहल आ तँइ हमर नाटकक कथानकमे समाजक स्थिति-परि‍स्थिति आ ओकर यथासंभव समाधानक परि‍वेश रहैए।

मुन्नाजी- अहाँ जहि‍या नाटक लेखन प्रारम्भ केलौं, कहू जे तहि‍या आ आजुक सामाजि‍क, सांस्कृिति‍क उपस्थापन वा बदलावक प्रति‍ अहाँक नजरि‍ये केहेन स्थि़‍ति‍ देखना जाइछ?
बेचन ठाकुर- कओलेज जीवनसँ कि‍छु-कि‍छु लि‍खैक प्रयास करैत रहलौं जैमे नाटक मुख्य रहल। नाटकक दृष्टि‍एँ प्रारंभि‍क सामाजि‍क आ सांस्कृतिक स्थिति तथा आजुक स्थितिमे बड्ड अंतर देखना जाइए। गमैया नाटक जस-के-तस पड़ल अछि‍, कनी-मनी आगू घुसकल अछि‍। मुदा शहरी नाटक अपेक्षाकृत आगू अछि, मुदा ओतए सोचक अभाव अछि‍।

मुन्नाजी- आइ नाटक कथानक, शि‍ल्प एवं तकनीकी दृष्टिकोणे उम्दा स्तरक प्राप्तिक संग थि‍येटरमे आबि जुमल अछि‍, अहाँ थि‍येटरमे प्रदर्शित आ गमैया नाटकक बीच कतेक फाँट देखै छी। आ कि‍ए?
बेचन ठाकुर- कथानक, शि‍ल्प एवं तकनीकी दृष्टिएँ थि‍येटर आ गमैया नाटकमे बड्ड फाँट देखै छी। दर्शकक आ कलाकारक साक्षरता, स्त्री-पुरूषक भूमि‍का, साज-बाजक ओरि‍यान, इजोतक जोगार इत्यादि‍मे बड्ड फाँट अछि‍। फलस्वरूप गमैया नाटक अपेक्षाकृत पछुआएल रहि‍ गेल अछि मुदा विषय वस्तुमे ई आगाँ अछि‍।

मुन्नाजी- गाममे आइयो बाँस-बत्ती आ परदाक जोगारे नाट्य प्रदर्शन होइछ आ दर्शक सेहो जुटैछ तँ अपने गमैया नाटक अतीतक दशा आ भवि‍ष्यक दि‍शा मादे की कहब?
बेचन ठाकुर- गमैया नाटकक प्रदर्शनमे दर्शकक भीड़ रहैए। कारण गाम-घरमे मनोरंजनक साधनक सामूहि‍क स्तरपर अभाव छै। शहरक देखादेखी आब गामो-घरक स्थितिमे सुधार भऽ रहलैए। तैं गमैया नाटकक दशा भवि‍ष्यमे अवश्य सुधरत, वि‍श्वास अछि‍।

मुन्नाजी- अहाँ एतेक रास वि‍भि‍न्न तरहक नाटक लि‍ख मंचन कैयौ कऽ हेराएल वा बेराएल रहलौं, कि‍ए? मलंगिया जीक रंगमंचक एकटा निर्देशक प्रकाश झा हमरा कहलन्हि जे अहाँ भरि दिन केश कटैत रहैत छी, रंगमंच अहाँ किए ने गेलिऐ!
बेचन ठाकुर- हम एकटा नि‍जी शि‍क्षकक दृष्टिएँ अपन वि‍द्यार्थीक बौद्धि‍क वि‍कास हेतु अपन कोचिंगक प्रांगणमे कोनो वि‍शेष अवसरपर, तैमे खास कऽ सरस्वती पूजामे, रंगमंचीय सांस्कृति‍क कार्यक्रमक बेबस्था‍ करै छी जैमे अपन निर्देशनमे वि‍द्यार्थी द्वारा कार्यक्रम संपादि‍त होइए। ओइ तरहेँ दर्जनो नाटकक मंचन सराहनीय ढंगसँ भऽ चुकल अछि‍। 
मलंगियाजीक जातिवादी रंगमंचक विरोधमे समानान्तर रंगमंच अछि तँ अहाँ हुनका लोकनिसँ की आशा करै छी! (हँसैत) ओना हमर ठाकुर टाइटिल सँ हुनका लोकनिकेँ भेल हेतन्हि जे हम नौआ ठाकुर छी, तेँ ओ ई बाजल छथि। मुदा जँ किओ ई काज कऽ रहल छथि आ अपन संस्कृतिक रक्षा कऽ रहल छथि, जेना नौआ ठाकुर लोकनि, तँ की हर्ज। विद्यापति ठाकुर, जे बिस्फीक नौआ ठाकुर रहथि, केँ बिदापत नाचक माध्यमसँ जिआ कऽ राखलन्हि नौआ ठाकुर लोकनिविद्यापति आ मैथिलीकेँ हजार साल धरि जिआ कऽ राखलन्हि, तँ ऐमे ककरो किए कष्ट छै? आब तँ ओ लोकनि विद्यापतिकेँ ब्राह्मण बनेबामे लागल छथि। ओना हम बरही जातिक छी, से महेन्द्र झा मलंगिया जी आ प्रकाश झा जीकेँ अहाँ भेँट भेलापर कहि देबन्हि।
सूत्रक अभावमे हम हेराएल रही।  मुदा आब प्राप्त सूत्र आ बेबस्थाक कृतज्ञ छी।

मुन्नाजी- अहाँ नाटकक अति‍रि‍क्त अओर की सभ लि‍खै छी, सभसँ मनलग्गू कोनो वि‍धाक कोन प्रकारक अहाँ प्रेमी छी आ कि‍ए?
बेचन ठाकुर- हम नाटकक अति‍रि‍क्त विहनि कथा, लघुकथा, राष्ट्रीय गीत, भक्तिगीत, कवि‍ता, टटका घटनापर आधृत गीत इत्यादि‍ लि‍खबाक प्रयास करैत रहै छी। गोष्ठीमे उपस्थित भऽ कऽ कथा पाठो केलौंहेँ। सभसँ मनलग्गू वि‍धा  हमर संगीत अछि‍। ओना हमर प्रति‍ष्ठाक वि‍षय गणि‍त अछि‍।

मुन्नाजी- जाति‍-वर्ग वि‍भेद अहाँक रचनाकेँ कतेक प्रभावि‍त कऽ पौलक अछि‍, अपने ऐ जातीय वि‍षमताक टापर-टोइयामे अपनाकेँ कतऽ पबै छी?
बेचन ठाकुर- जाति‍-वर्ग वि‍भेद हमर रचनाकेँ अंशत: प्रभावि‍त केलक। ऐमे हम अपनाकेँ अपन जगहपर अड़ल पबै छी।

मुन्नाजी- नाटक वा अन्यान्य रचनात्मक सक्रि‍यताक मादे अपनेक अगि‍ला रूखि‍ की वा केहेन रहत?
बेचन ठाकुर- नाटक वा अन्यान्य रचनात्मक सक्रि‍यताक मादे अपन अगि‍ला रूखक संबंधमे कि‍छु नि‍श्चि‍त नै कहल जा सकैए, समानान्तर रंगमंच तँ चलिते रहत। इच्छा प्रबल अछि‍। जतए धरि‍ संभव भऽ सकत करब।

मुन्नाजी- अपनेक अमूल्य उतारा हेतु बहुमूल्य समए देबाक लेल हार्दिक धन्यवाद!
बेचन ठाकुर- अपनेक प्रश्नक यथासंभव जबाबसँ अपनाकेँ गौरवान्वित बुझि‍ अपनेकेँ हार्दिक धन्यवाद ज्ञापि‍त करैत हमरो अपार हर्ष होइए।

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