Friday, June 29, 2012

सुन्दर संयोग, सामवती पुनर्जन्म आदिक १९२० ई. सँ पहिने भेल मंचन

जीवन झा लिखित नाटक सुन्दर संयोग, (1904), मैथिली सट्टक (1906), नर्मदा सागर सट्टक (1906) आ सामवती पुनर्जन्म (1908)
ऐ चारू नाटकक सामवेद विद्यालय काशीमे कएक बेर मंचन १९२० ई.सँ पहिनहिये भऽ चुकल अछि, "सुन्दर संयोग" एतैसँ प्रकाशित सेहो भेल।

सुन्दर संयोगक किछु आर मंचन:

१९७४ ई. माली मोड़तर (हसनपुर चीनीमिलक बगलमे), लक्ष्मीनारायण उच्च विद्यालय परिसरमे- निर्देशक श्री कालीकान्त झा "बूच", मुख्य अतिथि श्री फजलुर रहमान हासमी। दुर्गापूजामे। आयोजक देवनन्दन पाठक चीफ इन्जीनियर, आ केशनन्दन पाठक (ऑडीटर टीका बाबू), उद्घाटन: उदित राय मुखिया।

१९७६: करियन, समस्तीपुर। निर्देशक: कामदेव पाठक।

१९८१: पण्डित टोल, टभका (दलसिंहसरायक बगलमे): संयोजक डॉ उमेन्द्र झा "विमल", पूर्व प्रो. भाइस चान्सलर, का.सि. संस्कृत वि.वि.; आ म.म. चित्रधर मिश्र जे दरभंगा किलाक भीतरक शंकर मन्दिरक अधिष्ठाता रहथि आ म.म. उमेश मिश्र आ म.म. गंगानाथ झा हिनकर शिष्य रहथिन्ह।

१९८३:मउ बाजितपुर (विद्यापति नगरक बगलमे)



संस्कृत परम्परा आ पारसी थियेटरक गुणसँ ओतप्रोत ऐ नाटक सभक अन्यान्यो ठाम मंचन भेल अछि। -मलंगियाक जातिवादी रंगमंचक ई दुष्प्रचार कऽ रहल अछि जे ऐ नाटकक मंचन आइ धरि भेले नै छै जखन कि मलंगिया जीक जन्मसँ पहिने कएक बेर एकर मंचन भेल छै - मलंगिया जीक संस्था एकरो पुनर्लेखित कऽ "सुन्दर संयोग" नाटक केँ सेहो जातिवादी तँ नै बना देतै, मलंगिया जीक इजाद कएल तथाकथित राड़बला मैथिली आ ब्राह्मणबला सामन्तवादी मैथिली आ दोसर "खदेरन की मदर" वा "बुझता है कि नहीं" बला भ्रष्ट हिन्दीक संगम कए कऽ।

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