Wednesday, March 14, 2012

झमेलि‍या बि‍आह :: (नाटक: जगदीश प्रसाद मण्‍डल) रवि भूषण पाठक

जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक तेसर नाटक। ऐ सँ पहिले मिथिलाक बेटीकम्‍प्रोमाइज। तीनू नाटक अपन औपन्‍यासिक विस्‍तार आ काव्‍यात्‍मक दृष्टिसँ परिपूर्ण। लेखक समकालीन विश्व आ गद्यक पारस्‍परिकतासँ नीक जकाँ परिचित छथि, तँए हिनकर संपूर्ण रचना-संसारमे समकालीनताक वैभव पसरल अछि, जत्ते वैचारिक, ओतबे रूपगत। समकालीनताक प्रति हिनकर झुकाव झमेलिया बि‍आहक एकटा विशेष स्‍वरूप दैत छैक। बारह सालक नेनाक बि‍आहक ओरियाओन करैत माएबापक चित्र जत्ते हँसबै छैक, माएक बेमारी ओतबे सुन्न। लेखकक रचना संसारमे काल-देवताक लेल विशेष जग्‍गह, तँए ई नाटक प्रहसनक प्रारंभिक रूपगुण देखाबितो किछु आर अछि। पहिले दृश्‍यमे सुशीला कहैत छथिन राजा दैवक कोन ठेकान..., अगर दुरभाखा पड़तै तँ सुभाखा किअए ने पड़ै छै...। आ राजा, दैवक कर्तव्‍यक प्रति ई उदासीनताक अनुभव समस्‍त आस्तिकता आ भाग्‍यवादिताकेँ खंडित करैत अछि।

सभ नाटकमे भरत मुनिकेँ खोजनाइ जरूरी नइ, ओना उत्‍साही विवेचक अर्थ-प्रकृति, कार्यावस्‍था आ संधिक खोज करबे करता, आ कोनो तत्‍व नइ मिलतनि‍ तँ चिकडि़ उठता। यद्यपि लेखकक उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट अछि। शास्‍त्रीय रूढ़ि‍ जेनानान्‍दी पाठ, मंगलाचरण, प्रस्‍तावना, भरतवाक्‍यक प्रति लेखक कोनो आकर्षण नइ देखबैत छथिन। एतबे नइ पाश्चात्‍य नाट्य सिद्धांतकेँ हूबहू (देकसी) खोजएबलाकेँ आलस सेहो लागतनि‍। तँए झमेलिया बि‍आह नाटकमे स्‍टीरियोटाईप संघर्ष देखबाक ईच्‍छुक भाय लोकनि कनेक बचि बचा के चलब। विसंगति आ समस्‍या नाटकक फार्मूलाकेँ नाटकमे खोजएबलाकेँ सेहो झमेला बुझा सकैत छनि, किएक तँ लेखक कोनो फार्मूलाकेँ स्‍वीकारि के नइ लिखैत छथिन ।
सीधा-सीधी अंक-बि‍हीन झमेलिया बि‍आह नओ गोट दृश्‍यमे बँटल अछि: अनेक दृश्‍यस्‍य एकांकी। ने बहुत छोट आ ने नमहर। तीन चारि घंटाक बिना झमेलाकेँ झमेलिया बि‍आह। एकेटा परदा या बॉक्‍स सेटपर मंचित होमए योग्‍य। मात्र घर वा दरबज्‍जाक साज-सज्‍जा। तेरहटा पुरुष आ चारिटा स्‍त्री पात्रक नाटक। छोट-छोट रसगर संवाद, संघर्ष आ उतार-चढ़ावक संभावनासँ युक्‍त। ने केतौ नमहर स्‍वगत ने नमहर संवाद। असंभव दृश्‍य, बाढि़, हाथी-घोड़ा, कार जीपक कोनो योजना नइ। संवादक द्वारा विभिन्‍न बरियाती या यात्राक कथासँ जिज्ञासा आ आद्यांत आकर्षण। क‍थामे चैता केर रमणीयता आ मर्यादा, तँए जोगीराक दिशाहीनता आ उद्दाम वेग नइ भेटत। गंभीर साहित्‍य सर्वदा अपन समैक अन्‍न, खून पसेनाक गंधसँ युक्‍त होइत अछि। आ झमेलिया बि‍आह सेहो पावनि-तिहार, भनसा घरक फोड़न-छौंक, सोयरी, श्‍मशान आ पकमानक बहुवर्णी गंधसँ युक्‍त अछि, एकदम ओहिना जेना पाब्‍लो नेरूदा विभिन्न कोटिक गंधकेँ कवितामे खोजैत छथिन।

झमेलिया बि‍आहक सामाजिक आ सांस्‍कृतिक आधारपर कनेक विचार करू। ई ओइ ठामक नाटक अछि, जतए कर्मपर जन्‍म, संयोग आ कालदेवताकेँ अंकुश छैक, जइठामक लोक मानैत छथिन जे कखनो मुँहसँ अवाच कथा नै निकाली। दुरभक्‍खो विषाइ छै। सामाजिक रूपेँ ओ वर्ग जेकर हँसी-खुशी माटिक तरमे तोपा गेल अछि। लैंगिक विचार हुनकर ई जे पुरुख आ स्‍त्रीगणक काज फुट-फुट अछि। आ विकासक उदाहरण ई कि जइठीन मथ-टनकीक एकटा गोटी नै भेटै छै तइठीन साल भरि पथ-पानिक संग दवाइ खाएब पार लागत?
मुदा जगदीशजी केवल सातत्‍य आ निरंतरताक लेखक नइ छथिन, परिवर्तनक छोट-छोट यतिपर अपन कैमरासँ फ्लैश दैत रहैत छथिन। तँए यथास्थितिवादक लेल अभिशप्‍त होइतो यशोधर बुझैत छथिन जे मनुक्‍खक मनुखता गुणमे छिपल छै नै कि रंगमे। आ सुशीला सामाजिक स्थितिपर बिगड़ैत छथिन कि विधाताकेँ चूक भेलनि जे मनुक्‍खोकेँ सींघ नांगरि किअए ने देलखिन। आ ई नाटक कालदेवताक ओइ खंडसँ जुड़ैत अछि जतए पोता श्‍याम तेरह के थर्टिन आ तीन के थ्री कहैत छथिन। ऐठाम अखबार आबैत छैक आ राजदेव देशभक्तिक परिभाषाकेँ विस्‍तृत बनेबाक लेल कटिबद्ध छथिन। खेतमे पसीना चुबबैत खेतिहर, सड़कपर पत्‍थर फोड़ैत बोनिहार, धारमे नाव खेबैत‍ खेबनिहार सभ देश सेवा करैत अछि, आ राजदेव सभकेँ देशभक्‍त मानैत छथिन।

झमेलिया बि‍आहक झमेला जिनगीक स्‍वाभाविक रंग परिवर्तनसँ उद्भूत अछि, तँए जीवनक सामान्‍य गतिविधिक चित्रण चलि रहल अछि कथाकेँ बिना नीरस बनेने। नाटकक कथा विकास बिना कोनो बिहाड़ि‍क आगू बढ़ैत अछि, मुदा लेखकीय कौशल सामान्‍य कथोपकथनकेँ विशिष्‍ट बनबैत अछि। पहिल दृश्‍यमे पति-पत्नीक बातचितमे हास्‍यक संग समए देवताक क्रूरता सानल बुझाइत अछि। दोसर दृश्‍यमे झमेलिया अपन स्‍वाभाविक कैशोर्यसँ समैकेँ द्वारा तोपल खुशीकेँ खुनबाक प्रयास करैत अछि। पहिल दृश्‍यमे व्‍यक्ति परिस्थितिकेँ समक्ष मूक बनल अछि, आ दोसर दृश्‍यमे व्‍यक्तित्‍व आ समैक संघर्ष कथाकेँ आगू बढ़बैत‍ कथा आ जिनगीकेँ दिशा निर्धारित करैत अछि। तेसर दृश्‍य देशभक्ति आ विधवा विवाहक प्रश्नकेँ अर्थ विस्‍तार दैत अछि, आ ई नाटकक गतिसँ बेशी जिनगीकेँ गतिशील करबाक लेल अनुप्राणित अछि ।
चारिम दृश्‍यमे राधेश्‍याम कहैत छथिन जे कमसँ कम तीनक मिलानी अबस हेबाक चाही। आ, लेखक अत्‍यंत चुंबकीयतासँ नाटकीय कथामे ओइ जिज्ञासाकेँ समाविष्‍ट कऽ दैत छथिन कि पता नइ मिलान भऽ पेतै आ कि‍ नइ। ई जिज्ञासा बरियाती-सरियातीक मारिपीट आ समाजक कुकुड़ चालिसँ निरंतर बनल रहैत छैक। आ पांचम दृश्‍यमे मिथिलाक ओ सनातन खोटिकरमा पुराण। दहेज, बेटी, बि‍आह आ घटकक चक्रव्‍यूह! आ लेखकक कटुक्ति जे ने केवल मैथिल समाज बल्कि समकालीन बुद्धिजीवी आ आलोचनाक लेल सेहो अकाट्य अछि: कतए नै दलाली अछि। एक्‍के शब्‍दकेँ जगह-जगह बदलि-बदलि सभ अपन-अपन हाथ सुतारैए ।
आ घटकभायकेँ देखिअनु। समैकेँ भागबा आ समैमे आगि लगबाक स्‍पष्‍ट दृश्‍य हुनके देखाइ छनि। अपन नीच चेष्‍टाकेँ छुपबैत बालगोविन्‍दकेँ एक छिट्टा आर्शीवाद दैत छथिन। बालगोविन्‍दकेँ जाइते हुनकर आस्तिकताक रूपांतरण ऐ बि‍न्‍दुपर होइत अछि भगवान बड़ीटा छथिन। जँ से नै रहितथि तँ पहाड़क खोहमे रहैबला केना जीबैए। अजगरकेँ अहार कतए सँ अबै छै। घास-पातमे फूल-फड़ केना लगै छै....... बातचितक क्रममे ओ बेर-बेर बुझबैक आ फरिछाबैक काज करैत छथि। मैथिल समाजक अगिलगओना। महत्‍व देबै तँ काजो कऽ देत नइ तँ आगि लगा कऽ छोड़त !!!!!

छठम दृश्‍यमे बाबा आ पोतीक बातचित आ बरियाती जएबा आ नइ जएबाक औचित्‍यपर मंथन। बाबा राजदेव निर्णय नइ लऽ पाबै छथिन। बरियाती जएबाक अनिवार्यतापर ओ बिच-बिचहामे छथिन छइहो आ नहियो छै। समाजमे दुनू चलै छै। हमरे बि‍आह मे मामेटा बरियाती गेल रहथि। मुदा खाए, पचबै आ दुइर होइक कोनो समुचित निदान नइ भेटैत छैक। बरियाती-सरियातीक व्‍यवहार शास्‍त्र बनबैत राजदेव आ कृष्‍णानंद कथे-बि‍हनिमे ओझरा कऽ रहि जाइत छथि। दस बरिखक बच्‍चाकेँ श्राद्धमे रसगुल्‍ला मांगि-मांगि कऽ खाइबला हमर समाज बि‍आहमे किएक ने खाएत? तँए कामेसर भाय निशाँमे अढ़ाय-तीन सए रसगुल्‍ला आ किलो चारिएक माछ पचा गेलखिन आ रसगुल्‍लो सरबा एतए ओतए नइ आंतेमे जा नुका रहल !!!

सातम दृश्‍य सभसँ नमहर अछि, मुदा बि‍आह पूर्व वर आ कन्‍यागतक झीका-तीरी आ घटकभाय द्वारा बरियाती गमनक विभिन्‍न रसगर प्रसंगसँ नाटक बोझिल नइ होइत छैक। आ घटक भायपर धि‍यान देबै, पूरा नाटकमे सभसँ बेशी मुहावरा, लोकोक्ति, कहबैकाक प्रयोग ओएह करैत छथिन। मात्र सातमे दृश्‍यकेँ देखल जाए खरमास (बैसाख जेठ) मे आगि-छाइक डर रहै छै (अनुभव के बहाने बात मनेनइ)..... पुरूष नारीक संयोगसँ सृष्टिक निर्माण होइए (सिद्धांतक तरे धि‍यान मूलबि‍ंदुसँ हटेनइ)...... आगूक विचार बढ़बैसँ पहिने एक बेर चाह-पान भऽ जाए (भोगी आ लालुप समाजक प्रतिनिधि) ...... जइ काजमे हाथ दइ छी ओइ काजकेँ कइये कऽ छोड़ै छी (गर्वोक्ति)....... जिनगीमे पहिल बेर एहेन फेरा लागल (कथा कहबासँ पहिले धि‍यान आकर्षित करबाक सफल प्रयास).... खाइ पीबैक बेरो भऽ गेल आ देहो हाथ अकड़ि‍ गेल...... कुटुम नारायण तँ ठरलो खा कऽ पेट भरि लेताह मुदा हमरा तँ कोनो गंजन गृहणी नहिये रखतीह। (प्रकारांतरसँ अपन महत्‍व आ योगदान जनबैत ई ध्‍वनि जे हमरो कहू खाए लेल)

आठमो दृश्‍यमे बालगोविन्‍द, यशोधर, भागेसर, घटकभाय बि‍आह आ बरियातीकेँ बुझौएल के निदान करबा हेतु प्रयासरत् छथि, आ लेखक घटकभायकेँ पूर्ण नांगट नइ बनबैत छथिन, मुदा ओकर मीठ-मीठ शब्‍दक निहितार्थकेँ नीक जकाँ खोलि दैत छथिन। ऐ दृश्‍यमे बाजल बात, मुहावरा, लोकोक्ति आ प्रसंग, उदाहरणक बले ओ अपन बात मनबाबए लेल कटिबद्ध छथिन। हुनकर कहबैकापर धि‍यान दिओ- जमात करए करामात..., जाबत बरतन ताबत बरतन....., नै पान तँ पानक डंटियेसँ....., सतरह घाटक सुआद......., अनजान सुनजान महाकल्‍याण।
मुदा घटकभायकेँ ऐ सुभाषितानिक की निहितार्थ? ई अर्थ पढ़बाक लेल कोनो मेहनति‍ करबाक जरूरी नइ। ओ राधेश्‍यामकेँ कहै छथिन जखन बरियाती पहुंचैए तखन शर्बत ठंडा गरम, चाह-पान, सिगरेट-गुटका चलैए। तइपर सँ पतोरा बान्‍हल जलपान, तइपर सँ पलाउओ आ भातो, पूड़ि‍ओ आ कचौडि़यो, तइपर सँ रंग-बि‍रंगक तरकारियो आ अचारो, तइपर सँ मिठाइयो आ माछो-मासु, तइपर द‍हियो, सकड़ौड़ि‍ओ आ पनीरो चलैए।

नाटकक नओम आ अंतिम दृश्‍य। बाबा राजदेव आ पोती सुनीताक वार्तालाप, आखिर ऐ वार्तालापक की औचित्‍य? जगदीश जी सन सिद्धहस्‍त लेखक जानै छथिन जे बीसम आ एकैसम सदीक मिथिला पुरुषहीन भऽ चुकल छैक। यात्री जीक कवितापर विचार करैत कवयित्री अनामिका कहैत छथिन बिहारक बेशी कनियाँ विस्‍थापित पतिगणक कनियाँ छथि। सिंदूर तिलकित भाल ओइ ठाम सर्वदा चिंताक गहींर रेखाक पुंज रहल छैक।
....भूमंडलीकरणक बादो ई स्थिति अछि जे मिथिला, तिरहुत, वैशाली, सारण आ चंपारण यानी गंगा पारक बिहारी गाम सभ तरहेँ पुरुषबि‍हीन भऽ गेल छैक। ......सभ पिया परदेशी पिया छथि ओइठाम। गाममे बचल छथि वृद्धा, परित्‍यक्‍ता आ किशोरी सभ। एहन किशोरी, जेकर तुरते तुरत बि‍आह भेलै या फेर नइ भेल होए, भेलए ऐ दुआरे नइ जे दहेजक लेल पैसा नइ जुटल हेतैक।बि‍आह आ दहेजक ऐ समस्‍याक बीच सुनीताकेँ देखल जाए। एक तरहेँ ओ लेखकक पूर्ण वैचारिक प्रतिनिधि अछि। यद्यपि कखनो-कखनो राजदेव, कृष्‍णानंद आ यशोधर सेहो लेखकक विचार व्‍यक्‍त करैत छथिन। सुनीता, सुशीला आ राजदेव मिथिलाक स्‍थायी आबादी, आ घटकभाइक बीच रहबाक लेल अभिशप्‍त पीढ़ी। कृष्‍णानंद सन पढ़ल-लिखल युवकक स्‍थान मिथिलाक गाममे कोनो खास नइ। आ लेखक बिना कोनो हो-हल्‍ला केने नाटकमे ऐ दुष्‍प्रवृत्तिकेँ राखि देने छथि। जीवन आ नाटकक समांतरता ऐठाम समाप्‍त भऽ जाइत छैक आ दूटा अर्द्धवृत्‍त अपन चालि स्‍वभावकें गमैत जुड़ि पूर्णवृत्‍त भऽ जाइत अछि।

Saturday, March 10, 2012

मैथिली नाटक आ आधुनिक रंगमंच- (गजेन्द्र ठाकुर)


मैथिली नाटक आ आधुनिक रंगमंच
नाट्य शास्त्रमे वर्णन अछि जे नाटकक उत्पत्ति इन्द्रक ध्वजा उत्सवसँ भेल।
मैथिली नाटक आ रंगमंचक इतिहास ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागम आ अंकिया नाटसँ प्रारम्भ होइत अछि।
कोलकातामे १८५० . आसपास आधुनिक रंगमंच- ब्रिटिश क्लबमे शुरू भेल, मुदा बाहरी लोकक प्रवेश ओतए नै छल।
पूर्व पीठिका:
अंकिया नाटमे सेहो प्रदर्शन तत्वक प्रधानता छल। कीर्तनियाँ एक तरहेँ संगीतक छल आ एतहु अभिनय तत्वक प्रधानता छल। अंकीया नाटकक प्रारम्भ मृदंग वादनसँ होइत छल।
शास्त्रीय आधार:
मोहनजोदड़ो सभ्यतासँ प्राप्त कांस्य प्रतिमा नृत्यक मुद्राक संकेत दैत अछि, वर्तमान कथक नृत्यक ठाठ मुद्रा सदृश, दहिन हाथ ४५ डिग्रीक कोण बनेने आ वाम हाथ वाम छाबापर, संगहि वाम पएर किछु मोड़ने। ऋगवेदक शांखायन ब्राह्मणमे गीत, वाद्य आ नृत्य तीनूक संगे-संग प्रयोगक वर्णन अछि, ऐतरेय ब्राह्मणमे ऐ तीनूक गणना दैवी शिल्पमे अछि। ऋगवेद १०.७६.६ मे उषाक स्वर्णिम आभा कविकेँ सुसज्जित ऋषिक स्मरण करबैत छन्हि। ऋगवेदमे लोक नृत्यक (प्रान्चो अगाम नृतये) सेहो उल्लेख अछि। महाव्रत नाम्ना सोमयागमे दासी सभक (३-६ दासीक) सामूहिक नृत्यक वर्णन अछि। शांखायन १.११.५ मे वर्णन अछि जे विवाहमे ४-८ सुहागिनकेँ सुरा पियाओल जाइत छ्ल आ चतुर्वार नृत्य लेल प्रेरित कएल जाइत छल। वैदिक साहित्यमे विवाह विधिमे पत्नीक गायनक उल्लेख अछि। सीमन्तोन्नयन विधिमे पति वीणावादकसँ सोमदेवक वादयुक्त गान करबाक अनुरोध करैत छथि। अथर्ववेदमे वसा नाम्ना देवताक नृत्य ऋक्, साम आ गाथासँ सम्बन्धित होएबाक गप आएल अछि, सोमपानयुक्त ऐ नृत्यमे गन्धर्व सेहो होइत छलाह, से वर्णित अछि। अथर्ववेद १२.१.४१ मे गीत, वादन आ नृत्यक सामूहिक ध्वनिक वर्णन अछि। वैदिक कालमे साम संगीतक अलाबे गाथा आ नाराशंसी नाम्ना लौकिक गाथा-संगीतक सेहो प्रचलन छल। ऋक १,११५,२ मे उषाकालक सूर्योदयक बिम्ब सुन्दरीक पाछाँ जाइत युवकसँ भेल अछि। ऋक १,१२४,११ मे अरुणोदयमे लाल आभा आ बिलाइत अन्हारक संग, चूल्हिमे आगि वर्णन अछि आ बिम्ब अछि- गामक तरुणी रक्त वर्णक गाएकेँ चरबाक लेल छोड़ैत छथि। अथर्ववेद ४,१५,६ मे सामूहिक नाराक वर्णन अछि। यजुर्वेद ४०,१६ मे वर्णन अछि- सूर्यमण्डल सुवर्णपात्र अछि जे सूर्यकेँ आवृत्त कएने अछि। यजुर्वेद १७,३८-४१ मे संग्राम लेल बाजा संग जाइत देवसेना आ यजुर्वेद १७,४९ मे कवचक मर्मर ध्वनि वर्णित अछि। ऋगवेद १,१६४,२ आ यास्क ४,२७ मे संवत्सर, चक्रक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,,३ मे सोमरसक उत्सक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,,४ ओकर तटपरसात ऋषि आँखि, कान आदि अछि। अथर्ववेद १०,,३१ मे शरीरकेँ अयोध्या कहल गेल अछि, गीता ५,१३ मे शरीरकेँ पुर कहल गेल अछि।
यजुर्वेदमे नाट्य: यजुर्वेदमे किछु पारिभाषिक शब्दक विवरण अछि जेना सूत, शैलूष, चित्रकारिणी, ऐसँ लगैत अछि जे नाट्यमंडपक कल्पना छल।
कला, साहित्य आ संगीतक समाज लेल कोन प्रयोजन, एकर नैतिक मानदण्ड की हुअए, ऐ दिस सेहो प्राच्य आ पाश्चात्य विचारक अपन विचार राखलन्हि। प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि। मुदा कला, संगीत आ साहित्य कखनो काल स्वान्तः सुखाय सेहो होइत अछि, एकरा पढ़ला, सुनला, देखला आ अनुभव केलासँ प्रसन्नता होइत छै, मानसिक शान्ति भेटै छै तँ कखनो काल ई उद्वेलित सेहो करैत छै। एरिस्टोटल मुदा कहै छथि जे कलाकार ज्ञानसँ युक्त होइ छथि आ विश्वकेँ बुझबामे सहयोग करै छथि। शब्दोचारण आ कला निर्माणक बाद बोध्य बौस्तुक उत्पत्ति होइ छै। शब्द आ ध्वनि, रूप, रस, राग, छन्द, आ अलंकारसँ ओकर औचित्य सिद्ध होइत छै।
तखन मन्दिरक उत्सव राजाक प्रासादमे होइबला नाटक स्वतंत्र भऽ गेल एकर उपयोग वा अनुप्रयोग दोसर विषयकेँ पढ़ेबामे सेहो होमए लागल।

भरतक  नाट्यशास्त्र:
नाटक दू प्रकारक लोकधर्मी नाट्यधर्मी, लोकधर्मी भेल ग्राम्य नाट्यधर्मी भेल शास्त्रीय उक्ति। ग्राम्य माने भेल कृत्रिमताक अवहेलना मुदा अज्ञानतावश किछु गोटे एकरा गाममे होइबला नाटक बुझै छथि। लोकधर्मीमे स्वभावक अभिनयमे प्रधानता रहैत अछि, लोकक क्रियाक प्रधानता रहैत अछि, सरल आंगिक प्रदर्शन होइत अछि, मे पात्रक से स्त्री हुअए वा पुरुष, तकर संख्या बड्ड बेसी रहैत अछि। नाट्यधर्मीमे वाणी मोने-मोन, संकेतसँ, आकाशवाणी इत्यादि; नृत्यक समावेश, वाक्यमे विलक्षणता, रागबला संगीत, साधारण पात्रक अलाबे दिव्य पात्र सेहो रहै छथि। कोनो निर्जीव/ वा जन्तु सेहो संवाद करऽ लगैए, एक पात्रक डबल-ट्रिपल रोल, सुख दुखक आवेग संगीतक माध्यमसँ बढ़ाओल जाइत अछि।
नाट्यधर्मक आधार अछि लोकधर्म। लोकधर्मीकेँ परिष्कृत करू नाट्यधर्मी भऽ जाएत।
लोकधर्मीक दू प्रकारक- चित्तवृत्यर्पिका (आन्तरिक सुख-दुख) बाह्यवस्त्वनुकारिणी (बाह्य- पोखरि, कमलदह) नाट्यधर्मी-सेहो दू प्रकारक कैशिकी शोभा (अंगक प्रदर्शन- विलासिता गीत-नृत्य-संगीत) अंशोपजीवनी (पुष्पक विमान, पहाड़ बोन आदिक सांकेतिक प्रदर्शन)
सम्पूर्ण अभिनय- आंगिक (अंगसँ), वाचिक(वाणीसँ), सात्विक(मोनक भावसँ) आहार्य (दृश्य आदिक कल्पना साज-सज्जा आधारित) आंगिक अभिनय- शरीर, मुख चेष्टासँ; वाचिक अभिनय- देव, भूपाल, अनार्य जन्तु-चिड़ैक भाषामे; सात्विक- स्तम्भ(हर्ष, भय, शोक), स्वेद (स्तम्भक भाव दबबैले माथ नोचऽ लागब आदि), रोमंच (सात्विकक कारण देह भुकुटनाइ आदि), स्वरभंग ( वाणीक भारी भेनाइ, आँखिमे नोर एनाइ), वेपथु (देह थरथरेनाइ आदि), वैवर्ण्य (मुँह पीयर पड़नाइ), अश्रु (नोर ढ़ब-ढ़ब खसनाइ, बेर-बेर आदि), प्रलय (शवासन आदि द्वारा); आहार्य- पुस्त (हाथी, बाघ, पहाड़ आदिक मंचपर स्थापन), अलंकार (वस्त्र-अलंकरण), अंगरचना (रंग, मोंछ, वेश केश), संजीव (बिना पएर-साँप, दू पएर-मनुक्ख चिड़ै चारि पएरबला-जन्तु जीव-जन्तुक प्रस्तुति)द्वारा होइत अछि।
 दूटा आर अभिनय- सामान्य (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय) चित्राभिनय (नाट्यशास्त्र २२म अध्याय): चतुर्विध अभिनयक बाद सामान्य अभिनयक वर्णन, आंगिक, वाचिक सात्विक अभिनयक समन्वित रूप अछि मे सात्विक अभिनयक प्रधानता रहैत अछि। चित्राभिनय आंगिकसँ सम्बद्ध- अंगक माध्यसँ चित्र बना कऽ पहाड़, पोखरि चिड़ै आदिक अभिनय विधान।
 नाट्य-मंचन अभिनय: कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाट्य निर्देशकक लेल पठनीय नाटक अछि। रंगमंच निर्देश, जेना, रथ वेगं निरूप्यसूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं, इति शरसंधानम् नाटयति, वृक्ष सेचनम् रुपयति, कलशम् अवरजायति, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति, शकुन्तला परिहरति नाट्येन, नाट्येन प्रसाधयतः, कहि कऽ वास्तविकतामे नै वरन् अभिनयसँ कएल जाइत अछि। नाट्येन प्रसाधयतः, एतए अनसूया प्रियम्वदा मुद्रासँ अपन सखी शकुन्तलाक प्रसाधन करै छथि कारण से चाहे तँ उपलब्ध नै अछि, चाहे तँ ओतेक पलखति नै अछि। तहिना वृक्ष सेचनम् रुपयति सँ गाछमे पानि पटेबाक अभिनय, कलशम् अवरजायति सँ कलश खाली करबाक काल्पनिक निर्देश, रथ वेगं निरूप्य सँ तेज गतिसँ रथमे यात्राक अभिनय, इति शरसंधानम् नाटयति सँ तीरकेँ धनुषपर चढ़ेबाक निर्णय, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं सँ हरिणकेँ मारि खसेबाक दृश्य देखबाक निर्देश, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति सँ दुश्यन्तक शकुन्तलाक मुँहकेँ उठेबाक इच्छा, शकुन्तला परिहरति नाट्येन सँ शकुन्तला द्वारा दुश्यन्तक प्रयासकेँ रोकबाक अभिनयक निर्देश होइत अछि।
भरतक रंगमंच: मे होइत अछि- पाछाँक पर्दा, नेपथ्य (मेकप रूम बुझू), आगमन निर्गमनक दरबज्जा, विशेष पर्दा जे आगमन निर्गमन स्थलकेँ झाँपैत अछि, वेदिका- रंगमंचक बीचमे वादन-दल लेल बनाओल जाइत अछि, रंगशीर्ष- पाछाँक रंगमंच स्थल; मत्तवर्णी-आगाँ दिस दुनू कोणपर अभिनय लेल होइत अछि रंगपीठ अछि सोझाँक मुख्य अभिनय स्थल।
अभिनय मूल्यांकन: अध्याय २७ मे भरत सफलताकेँ लक्ष्य बतबै छथि, मंचन सफलतासँ पूर्ण हुअए। दर्शक कहैए, हँ, बाह, कतेक दुखद अन्त, तँ तेहने दर्शक भेलाह सहृदय, भरतक शब्दमे, से नाटककार ओकर पात्रक संग एक भऽ जाइत छथि।
 नाट्य प्रतियोगिता होइत छल ओतए निर्णायक लोकनि पुरस्कार सेहो दै छलाह।
भरत निर्णायक लोकनि द्वारा धनात्मक ऋणात्मक अंक देबाक मानदण्डक निर्धारण करैत कहै छथि जे-
.ध्यानमे कमी, .दोसर पात्रक सम्वाद बाजब, .पात्रक अनुरूप व्यक्तित्व नै हएब, .स्मरणमे कमी, .पात्रक अभिनयसँ हटि कऽ दोसर रूप धऽ लेब, .कोनो वस्तु, पदार्थ खसि पड़ब, .बजबा काल लटपटाएब, .व्याकरण वा आन दोष, .निष्पादनमे कमी, १०.संगीतमे दोष, ११.वाक् मे दोष, १२.दूरदर्शितामे कमी, १३.सामिग्रीमे कमी, १४.मेकप मे कमी, १५. नाटककार वा निर्देशक द्वारा कोनो दोसर नाटकक अंश घोसियाएब, १६.नाटकक भाषा सरल साफ नै हएब, सभ अभिनय मंचनक दोष भेल।
निर्णायक सभ क्षेत्रसँ होथि, निरपेक्ष होथि। नाटकक सम्पूर्ण प्रभाव, तारतम्य, विभिन्न गुणक अनुपात, भावनात्मक निरूपण ध्यानमे राखल जाए।
स्टेजक मैनेजर- सूत्रधार- ओकर सहायकपरिपार्श्वक- नाटकक सभ क्षेत्रक ज्ञाता होथि। मुख्य अभिनेत्री संगीत नाटकमे निपुण होथि, मुख्य अभिनेता- नायक- अपन क्षमतासँ नाटककेँ सफल बनबै छथि।अभिनेता- नट- चयन एना करू, जँ छोट कदकाठीक छथि तँ वाणवीर लेल, पातर-दुब्बर होथि तँ नोकर, बकथोथीमे माहिर होथि तँ बिपटा, तरहेँ पात्रक अभिनेताक निर्धारण करू। संगीत-दलक मुखिया- तौरिक- केँ संगीतक सभ पक्षक ज्ञान हेबाक चाही जइसँ बाजा बजेनहार- कुशीलव- केँ निर्देशित कऽ सकथि।
नाट्य-मंचन अभिनय
कालिदासक अभिज्ञान शाकुन्तलम् नाट्य निर्देशकक लेल पठनीय नाटक अछि। रंगमंच निर्देश, जेना, रथ वेगं निरूप्यसूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं, इति शरसंधानम् नाटयति, वृक्ष सेचनम् रुपयति, कलशम् अवरजायति, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति, शकुन्तला परिहरति नाट्येन, नाट्येन प्रसाधयतः, कहि कऽ वास्तविकतामे नै वरन् अभिनयसँ कएल जाइत अछि। नाट्येन प्रसाधयतः, एतए अनसूया प्रियम्वदा मुद्रासँ अपन सखी शकुन्तलाक प्रसाधन करै छथि कारण से चाहे तँ उपलब्ध नै अछि, चाहे तँ ओतेक पलखति नै अछि। तहिना वृक्ष सेचनम् रुपयति सँ गाछमे पानि पटेबाक अभिनय, कलशम् अवरजायति सँ कलश खाली करबाक काल्पनिक निर्देश, रथ वेगं निरूप्य सँ तेज गतिसँ रथमे यात्राक अभिनय, इति शरसंधानम् नाटयति सँ तीरकेँ धनुषपर चढ़ेबाक निर्णय, सूत पश्यैनं व्यापाद्यमानं सँ हरिणकेँ मारि खसेबाक दृश्य देखबाक निर्देश, मुखमस्याः समुन्नमयितुमिच्छति सँ दुश्यन्तक शकुन्तलाक मुँहकेँ उठेबाक इच्छा, शकुन्तला परिहरति नाट्येन सँ शकुन्तला द्वारा दुश्यन्तक प्रयासकेँ रोकबाक अभिनयक निर्देश होइत अछि। भारत आ पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतक अध्ययनसँ ई ज्ञात होइत अछि जे मानवक चिन्तन भौगोलिक दूरीकक अछैत कतेक समानता लेने रहैत अछि। भारतीय नाट्यशास्त्र मुख्यतः भरतक नाट्यशास्त्रआ धनंजयक दशरूपकपर आधारित अछि। पाश्चात्य नाट्यशास्त्रक प्रामाणिक ग्रंथ अछि अरस्तूक काव्यशास्त्र भरत नाट्यकेँ कृतानुसार” “भावानुकारकहैत छथि, धनंजय अवस्थाक अनुकृतिकेँ नाट्य कहैत छथि। भारतीय साहित्यशास्त्रमे अनुकरण नट कर्म अछि, कवि कर्म नहि। पश्चिममे अनुकरण कर्म थिक कवि कर्म, नटक कतहु चरचा नहि अछि। अरस्तू नाटकमे कथानकपर विशेष बल दैत छथि। ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि। भरत कहैत छथि जे नायकसँ संबंधित कथावस्तु आधिकारिक आ आधिकारिक कथावस्तुकेँ सहायता पहुँचाबएबला कथा प्रासंगिक कहल जएत। मुदा सभ नाटकमे प्रासंगिक कथावस्तु होअए से आवश्यक नहि, पश्चिमी रंगमंचक नाट्यविधान वास्तविक अछि मुदा भारतीय रंगमंचपर सांकेतिक। जेना अभिज्ञानशाकुंतलम् मे कालिदास कहैत छथि- इति शरसंधानं नाटयति। भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल? नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण (विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी

बौद्ध चर्यागीतक बाद महाराज नान्यदेव सरस्वती हृदयालंकार फेर विद्यापति आ संगीतज्ञ जयतक शिव सिंहक दरबारमे हेबाक लोकोक्ति विद्यापतिक पुरुष परीक्षाक कथा सभमे पुरुषक कला संगीतक प्रेम ओकर पुरुषार्थ सन महत्वपूर्ण मानल गेल अछि। शुभङ्कर ठाकुरक श्रीहस्तमुक्तावली सेहो मिथिलाक ग्रन्थ मानल जाइत अछि ओना पाण्डुलिपिक उपलब्धताक आधारपर किछु विद्वान एकरा असमक रचना मानैत छथि ऐ ग्रन्थमे अभिनयसँ सम्बन्धित हस्त परिचालनक विषद विवरण उपलब्ध अछि।ने अकबरीमे विद्यापतिक नचारीक चर्च
विदेह नाट्य उत्सव २०१२ मे भरत नाट्य शास्त्र आधारित नाटक रंगमंच संकल्पना आधारित गजेन्द्र ठाकुर लिखित आ श्री बेचन ठाकुर निर्देशित “उल्कामुख” मंचित कएल गेल, जे मैथिलीमे ऐ तरहक पहिल प्रयास छल, ऐमे पेण अभिनेत्री लोकनिक माध्यमसँ नाटक मंचन भेल, ऐमे पुरुख पात्रक अभिनय सेहो महिला कलाकार द्वारा भेल। भरत नाट्यशास्त्रक आधारपर रंगमंचक ड्राइंग श्रीमती एस.एस.जानकीक छल।  ऐ तरहक एकटा प्रयास संस्कृत रंगमंचपर चेन्नैमे कएल गेल छल।




भरत नाट्यशास्त्रक आधारपर रंगमंचक ड्राइंग श्रीमती एस.एस.जानकी


मैथिली नाटकक एकटा समानान्तर दुनियाँ
रामखेलावन मंडार- गाम कटघरा, प्रखण्ड- शिवाजीनगर, जिला समस्तीपुर। हिनके संग बिन्देश्वर मंडल सेहो छलाह। उठैत मैथिली कोरस - माँ गै माँ तूँ हमरा बंदूक मँगा दे कि हम तँ माँ सिपाही हेबै- एखनो लोककेँ मोन छन्हि। एहि मंडली द्वारा रेशमा-चूहड़, शीत-बसन्त, अल्हा-ऊदल, नटुआ दयाल सभ पद्य नाटिका पस्तुत कएल जाइत छल।
मैथिली-बिदेसिया- पिआ देसाँतरक टीम सहरसा-सुपौल-पूर्णियाँसँ अबैत छल।
हासन-हुसन नाटिका होइत छल।
रामरक्षा चौधरी नाट्यकला परिषद, ग्राम- गायघाट, पंचायत करियन, पो. वैद्यनाथपुर, जिला- समस्तीपुर विद्यापति नाटक गोरखपुर धरि जा कऽ खेलाएल छल। एहि मंडली द्वारा प्रस्तुत अन्य नाटक अछि- लौंगिया मेरचाइ, विद्यापति, चीनीक लड्डू बसात।
मैथिली नाटकक समानान्तर दुनियाँकेँ सेहो अभिलेखित सम्मानित कएल जएबाक प्रयास होएबाक चाही।
नाट्य रंगमंच समिति सभ
भंगिमा, पटना ; चेतना समिति, पटना, जमघट-, मधुबनी; मिथिला विकास परिषद, कोलकाता; अखिल भारतीय मिथिला संघ, कोलकाता; मिथिला कला केन्द्र, कोलकाता; मैथिली रंगमंच, कोलकाता; कुर्मी-क्षत्रिय छात्रवृत्ति कोष, कोलकाता; आल इण्डिया मैथिल संघ, कोलकाता; कर्ण गोष्ठी:जयन्त लोकमंच, कोलकाता; मिथिला सेवा संस्थान, कोलकाता; मिथि यात्रिक, कोलकाता; वैदेही कला मंच, कोलकाता; कोकिल मंच, कोलकाता;  मिथिला कल्याण परिषद, रिसरा, कोलकाता (निर्देशन मुख्य रूपसँ श्री दयानाथ झा द्वारा १९८२ ई.सँ। सम्प्रति श्री रण्जीत कुमार झा निर्देशन कऽ रहल छथि, ०८.०१.२०१२ केँ हुनकर निर्देशनमे तंत्रनाथ झा लिखित उपनयनक भोज मंचित भेल।) ; झंकार, कोलकाता; मिथिला सेवा समिति बेलुर, कोलकाता; उदय पथ, कोलकाता। मिथिला नाट्य परिषद (मिनाप), जनकपुर; रामानन्द युवा क्लब, जनकपुरधाम; युवा नाट्य कला परिषद (युनाप), परवाहा, धनुषा; आकृति (उपेन्द्र भगत नागवंशी), जनकपुर; रंग वाटिका, नेपाल; चबूतरा, शिरोमणि मैथिली युबा क्लब, गांगुली, भैरब, मैथिली सांस्कृतिक युबा क्लब, बौहरबा, श्री सरस्वती सांस्कृतिक नाट्य कला परिषद, गाम तिलाठी (सप्तरी, नेपाल); अरुणोदय नाट्य मंच, राजबिराज; सरस्वती नाट्य कला परिषद, मेंहथ, मधुबनी; मैथिली लोकरंग (मैलोरंग), दिल्ली; मिथिलांगन, दिल्ली। मधुबनीक पजुआरिडीह टोलमे श्रीकृष्ण नाट्य समिति श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ झा आ गंगा झाक निर्देशनमे मैथिली नाटक मंचित होइत रहल अछि। सांस्कृतिक मंच, लोहियानगर, पटना; चित्रगुप्त सांस्कृतिक केन्द्र, जनकपुर; गर्दनीबाग कला समिति, पटना; मिथिलाक्षर, जमशेदपुर; मैथिली कला मंच, बोकारो; उगना विद्यापति परिषद, बेगूसराय; मिथिला सांस्कृतिक परिषद, बोकारो स्टील सिटी; भानुकला केन्द्र, विराटनगर; आंगन, पटना; नवतरंग, बेगूसराय; भारतीय रंगमंच, दरभंगा; भद्रकाली नाट्य परिषद, कोइलख, मिथिला अनुभूति दरभंगा, विदेह अंतर्राष्ट्रीय ई-जर्नलक नाट्य उत्सव।
निर्देशन: श्री कमल नारायण कर्ण (चीनीक लड्डू-ईशनाथ झा/ चारिपहर- मूल बांग्ला किरण मैत्र, मैथिली अनुवाद- निरसन लाभ), श्री श्रीकान्त मण्डल (चन्द्रगुप्त मूल बांग्ला डी.एल.राय, मैथिली अनुवाद- बाबू साहेब चौधरी/ पाथेय- गुणनाथ झा/ नायकक नाम जीवन- नचिकेता); श्री विष्णु चटर्जी आ श्री श्रीकान्त मण्डल (निष्कलंक- जनार्दन झा); प्रवीर मुखोपाध्याय; वीणा राय, मोहन चौधरी, बाबू राम सिंह, गोपाल दास, कुणाल, रवि देव, दयानाथ झा, त्रिलोचन झा, शम्भूनाथ मिश्र, काशी झा, अशोक झा, गंगा झा, गणेश प्रसाद सिन्हा, नवीन चन्द्र मिश्र, जनार्दन राय, श्री कृष्णचन्द्र झा रसिक, शिवनाथ झा, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अखिलेश्वर, सच्चिदानन्द, रमेश राजहंस, मोदनाथ झा, विभूति आनन्द, जावेद अख्तर खाँ, कौशल किशोर दास, प्रशान्त कान्त, अरविन्द रंजन दास, मनोज मनु, रोहिणी रमण झा, भवनाथ झा, उमाकान्त झा, लल्लन प्रसाद ठाकुर, रघुनाथ झा किरण, महेन्द्र मलंगिया, कुमार शैलेन्द्र, विनीत झा, किशोर कुमार झा, कुमार गगन, विनोद कुमार झा, के.अजय, छत्रानन्द सिंह झा, नीलम चौधरी, काजल, मनोज कुमार पाठक, आशनारायण मिश्र, श्री श्रीनारायण झा, प्रमिला झा, तनुजा शंकर, केशव नन्दन, ब्रह्मानन्द झा, संजीव तमन्ना, किसलय कृष्ण, प्रकाश झा, मुन्नाजी संजय कुमार चौधरी, कमल मोहन चुन्नू, अंशुमान सत्यकेतु, श्याम भास्कर, प्रेम कुमार, संगम कुमार ठाकुर, एल.आर.एम. राजन, भास्करानन्द झा, आशुतोष कुमार मिश्र, आनन्द कुमार झा, मनोज मनुज, संजीव मिश्र, स्वाति सिंह, स्वर्णिम, आशुतोष यादव अभिज्ञ, अशोक अश्क, दिलीप वत्स, तरुण प्रभात, माधव आनन्द, नरेन्द्र मिश्र, भारत भूषण झा, किशोर केशव, बेचन ठाकुर, उपेन्द्र भगत नागवंशी, अनिल चन्द्र झा, अंशुमान सत्यकेतु, आनंद कुमार झा, हेमनारायण साहू, रामकृष्ण मंडल छोटू, धीरेन्द्र कुमार,उत्पल झा, अभिषेक के. नारायण, चन्द्रिका प्रसाद।
नाटक: नाटककार
धूर्त्तसमागम तेरहम शताब्दीमे ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा रचल गेल। ज्योतिरीश्वर ठाकुर धूर्त्तसमागममे मैथिली गीतक समावेश कएलन्हि। ई प्रहसनक कोटिमे अबैत अछि।मैथिलीक अधिकांश नाटक-नाटिका श्रीकृष्णक अथवा हुनकर वंशधरक चरित पर अवलंबित एवं हरण आकि स्वयंबर कथापर आधारित छल। मुदा धूर्त्तसमागममे साधु आ हुनकर शिष्य मुख्य पात्र अछि। धूर्त्तसमागम सभ पात्र एकसँ-एक ध्होर्त्त छथि।ताहि हेतु एकर नाम धूर्त्तसमागम सर्वथा उपयुक्त अछि।प्रहसनकेँ संगीतक सेहो कहल जाइछ,ताहि हेतु एहि मे मैथिली गीतक समावेश सर्वथा समीचीन अछि।एहिमे सूत्रधार,नटी स्नातक,विश्वनगर,मृतांगार,सुरतप्रिया,अनंगसेना,अस्ज्जाति मिश्र,बंधुवंचक,मूलनाशक आऽ नागरिक मुख्य पात्र छथि।सूत्रधार कर्णाट चूड़ामणि नरसिंहदेवक प्रशस्ति करैत अछि।फेर ज्योतिरीश्वरक प्रशस्ति होइत अछि। एहिमे एक प्रकारक एब्सर्डिटी अछि,जे नितांत आधुनिक अछि।जे लोच छैक से एकरा लोकनाट्य बनबैत छैक। विश्वनगर स्त्रीक अभावमेब्रह्मचारी छथि।शिष्य स्नातक संग भिक्षाक हेतु मृतांगार ठाकुरक घर जाइत छथि तँ अशौचक बहाना भेटैत छन्हि। विश्वनगर शिष्य स्नातक संग भिक्षाक हेतु सुरतप्रियाक घर जाइत छथि। फेर अनंगसेना नामक वैश्याकेँ लय कय गुरु-शिष्यमे मारि बजरि जाइत छन्हि। फेर गुरु-शिष्य अनंगसेनाक संग असज्जाति मिश्रक लग जाइत छथि तँ ओतय मिश्रजी लंपट निकलैत छथि।... मिश्रजी लंपट निकलैत छथि।...जे जुआ खेलायब आपांगना संगम ईएह दूटा केँ संसारक सार बुझैत छथि। असज्जति मिश्र पुछैत छथि जे के वादी आके प्रतिवादी।स्नातक उत्तर दैत छथि-जे अभियोग कहबाक लेल हम वादी थिकहुँ आशुल्क देबाक हेतु संन्यासी प्रतिवादी थिकाह। विश्वनगर अपन शुल्कमे स्नातकक गाजाक पोटरी प्रस्तुत करैत छथि। विदूषक असज्जाति मिश्रक कानमे अनंगसेनाक यौनक प्रशंसा करैत अछि। असज्जाति मिश्र अनंगसेनाकेँ बीचमे राखि दुनूक बदला अपना पक्षमे निर्णय लैत अछि। एम्हर विदूषक अनंगसेनाक कानमे कहैत अछि, जे ई संन्यासी दरिद्र अछि, स्नातक आवारा अछि आई मिश्र मूर्ख तेँ हमरा संग रहू। अनंगसेना चारूक दिशि देखि बजैछ , जे ई तँ असले धूर्तसमागम भय गेल।
विश्वनगर स्नातकक संग पुनः सुरतप्रियाक घर दिशि जाइत छथि। एमहर मूलनाशक नौआ अनंगसेनासँ साल भरिक कमैनी मँगैछ। ओहुनका असज्जातिमिश्रक लग पठबैत अछि। मूलनाशक असज्जातिमिश्रकेँ अनंसेनाक वर बुझैत अछि। गाजा शुल्कमे लय असज्जति मिश्रकेँ गतानि कए बान्हि तेना मालिश करैत अछि जे ओबेहोश भय जाइत छथि। ओहुनका मुइल बुझि कय भागि जाइत अछि। विदूषक अबैत अछि, हुनकर बंधन खोलैत अछि आपुछैत अछि जे हम अहाँक प्राणरक्षा कएल अछि, जे किछु आन प्रिय कार्य होय तँ से कहू। असज्जाति कहल जे छलसँ संपूर्ण देशकेँ खएलहुँ, धूर्त्तवृत्तिसँ ई प्रिया पाओल, सेहो अहाँ सन आज्ञाकारी शिष्य पओलक, एहिसँ प्रिय आब किछु नहि अछि। तथापि सर्वत्र सुखशांति हो तकर कामना करैत छी।
जीवन झा

जीवन झा लिखित नाटक सुन्दर संयोग, (1904), मैथिली सट्टक (1906), नर्मदा सागर सट्टक (1906) आ सामवती पुनर्जन्म (1908)।
ऐ चारू नाटकक सामवेद विद्यालय काशीमे कएक बेर मंचन १९२० ई.सँ पहिनहिये भऽ चुकल अछि,"सुन्दर संयोग" एतैसँ प्रकाशित सेहो भेल
सुन्दर संयोगक किछु आर मंचन:

१९७४ ई. माली मोड़तर (हसनपुर चीनीमिलक बगलमे), लक्ष्मीनारायण उच्च विद्यालय परिसरमे- निर्देशक श्री कालीकान्त झा "बूच", मुख्य अतिथि श्री फजलुर रहमान हासमी। दुर्गापूजामे। आयोजक देवनन्दन पाठक चीफ इन्जीनियर, आ केशनन्दन पाठक (ऑडीटर टीका बाबू), उद्घाटन: उदित राय मुखिया।
१९७६: करियन, समस्तीपुर। निर्देशक: कामदेव पाठक।

१९८१: पण्डित टोल, टभका (दलसिंहसरायक बगलमे): संयोजक डॉ उमेन्द्र झा "विमल", पूर्व प्रो. भाइस चान्सलर, का.सि. संस्कृत वि.वि.; आ म.म. चित्रधर मिश्र जे दरभंगा किलाक भीतरक शंकर मन्दिरक अधिष्ठाता रहथि आ म.म. उमेश मिश्र आ म.म. गंगानाथ झा हिनकर शिष्य रहथिन्ह।

१९८३:मउ बाजितपुर (विद्यापति नगरक बगलमे)
संस्कृत परम्परा आ पारसी थियेटरक गुणसँ ओतप्रोत ऐ नाटक सभक अन्यान्यो ठाम मंचन भेल अछि।

ईशनाथ झा
उगना: ई नाटक सभ महाशिवरात्रिकेँ गौरीशंकर स्थान, जमथुरिमे खेलाएल जाइत अछि। विद्यापति शिव-भक्त, हुनकर गीत-नचारी सुनबा लेल सिव विद्यापतिक घरमे उगना नोकर बनि आबि गेला। एक बेर विद्यापति यात्रापर छला आ उगना संगमे छलन्हि। रस्तामे पियास लगलापर उगना जटाक गंगधारसँ पानि निकालि विद्यापतिकेँ पियेलन्हि मुदा विद्यापतिकेँ ओइमे गंगाजलक स्वाद भेटलन्हि आ ओ उगनाक केश भीजल देखि सभटा बुझि गेलाह। उगना अपन असल रूपमे एलाह। मुदा उगना कहलखिन्ह जे विद्यापति ई गप ककरो नै कहताह नै तँ ओ अन्तर्धान भऽ जेताह। पार्वती चालि चलन्हि, विद्यापतिक पत्नी उगनाकेँ बेलपत्र अनबा लेल पठेलन्हि आ देरी भेलापर ओ उगनापर बाढनि उसाहलन्हि, विद्यापथि भेद खोलि देलन्हि आ उगना बिला गेलाह.. चीनीक लड्डू: सुधाकांत-प्रेमकांतक पिता गुजरि जाइ छथि आ से देखभाल मामा धर्मानन्द ट्रस्टी जकाँ करै छथि आ हुनकर सभक समर्थ भेलाक बाद सुधाकांतकेँ भार दऽ घुरि जाइ छथि। सुधाकांतक मुंशी बटुआ दास प्रेमकांतक पत्नी चण्डिका आ खबासनी छुलहीक सहयोगसँ बखरा करबा दै छथि, सुधाकान्त अपनो हिस्सा प्रेमकान्तकेँ दऽ दै छथि। सुधाकांत, पत्नी सुशीला आ बेटा सुकमार घरसँ बाहर कऽ देल जाइ छथि। सुधाकांतकेँ टी.बी. रोग मारि दै छन्हि। बटुआ दासक संगति प्रेमकांतकेँ सेहो दरिद्र कऽ दैत अछि। माम धर्मानन्द सुकमारकेँ अपन सम्पति लिखि दै छथि कारण हुनका सन्तान नै छन्हि। प्रेमकांत आ बटुआ दास सुकुमारकेँ  मारबाक प्रयत्नमे बिख मिला कऽ चीनीक लड्डू सनेसमे सुकमारकेँ दै छथि मुदा ओइसँ बटुआ दास मरि जाइए, आ भेद खुजैए।
उदयनारायण सिंह नचिकेता
नायकक नाम जीवन : नवल नव विचारक अछि, शक्तिराय धनिक, कलुषित अछि आ अपन सहयोगी विनयपर चोरिक आरोप लगा ओकर बेटीक अपहरण आ बलात्कार करबैए। विनय आत्महत्या कऽ लैए। नवल आ ओकर मित्र प्रकाश आ दीपक सभटा भेद खोलैए। ओकर प्रेमिका बलात्कारक परिणामस्वरूप आत्महत्या करैए। नवल विक्षिप्त भऽ जाइए। एक छल राजा: एकटा राजा अभिमान कुमार देवक दिन मदिरा आ वैश्याक पाछाँ खराप भेलै। ओकरा एक्केटा बेटी मोहिनी छै, टकाक अभावमे ओकर बियाह नै भ्हऽ पाबि रहल छै। मुंशी विरंची, सेवक चतुरलाल आ धर्मकर्मवाली पत्नी संगे नाटक आगाँ बढ़ैए। मोहिनी आ शिक्षक शुभंकरक बीच प्रेम होइ छै। नो एण्ट्री: मा प्रविश: पोस्टमोडर्न ड्रामा, जकर एबसर्डिटी एकरा ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागम लग घुरबै छै। स्वर्ग आकि नर्कक द्वारपर मुइल सभ अबै छथि आ खिस्सा-खेरहा सुनबै छथि, बादमे पता चलैए जे चित्रगुप्त/ धर्मराज सभ नकली छथि आ द्वारपर लागल अछि ताला, नो एण्ट्री।
गोविन्द झा 
बसात: कृष्णकांत पिता द्वारा ठीक कएल युवती पुष्पा संग विवाह नै करै छथि, ओ शिक्षितसँ विवाह करऽ चाहै छथि, लिलीसँ प्रेम करै छथि। हुनकर पिता घर त्यागि दै छथि। पुष्पा घर छोड़ि महिला जागरणमे लागि गेलथि। पिताकेँ ताकैमे कृष्णकान्त असफल होइ छथि, लिलीकेँ छोड़ि रेलगाड़ीसँ कटऽ चाहै छथि, आश्रमक लोक हुनका बचा लै छन्हि, ओतए पिता, पुष्पा सभसँ भेँट होइ छन्हि, लिली सेहो बताहि भेलि ओतऽ आबि जाइ छथि।


गुणनाथ झा 
"लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकाक संचालन- सम्पादन केने छथि। मैथिलीमे आधुनिक नाटकक प्रणयन। हुनकर नाटक कनियाँ-पुतरा, पाथेय, ओ मधुयामिनी, सातम चरित्र, शेष नञि, आजुक लोक आ जय मैथिली सभक बेर-बेर मंचन भेल अछि। बाङ्गला एकाङ्की नाट्य-संग्रह
ऐमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा नाटकक संकलन ओ सम्पादन अजित कुमार घोष केने छथि आ तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद श्री गुणनाथ झा द्वारा भेल अछि।
कनियाँ-पुतरा- गुणनाथ झा जीक ई पहिल पूर्णाङ्क नाटक थिक। नाटक बहुदृश्य समन्वित करैबला घूर्णीय मञ्चोपयुक्त अछि। कथा काटर प्रथापर आधारित अछि आ तकर परिणामसँ मुख्य अभिनेता आ मुख्य अभिनेत्री मनोविकारयुक्त भऽ जाइत छथि, तइ मनोदशाक सटीक चित्रण आ विश्लेषण भेल अछि।
मधुयामिनी: एकाङ्क नाट्य शैलीमे दूटा पात्र, पुरुष संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहार आ स्त्री तकर विरोधी। संयुक्त परिवारक पक्ष लेनिहारक सामंजस्यपूर्ण विजय होइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित।
पाथेय: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित, मुदा पूर्णाङ्कक सभ विशेषता ऐमे भेटत। मुख्य अभिनेता मिथिलाक अधोगतिसँ दुखी भऽ गामकेँ कर्मस्थली बनबैत छथि, स्वजन विरोध करै छथि। मुदा बादमे पत्नी हुनकर संग आबि जाइ छथिन्ह। भाषा मधुर आ चलायमान अछि।
लाल-बुझक्कर: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। दाही रौदीसँ झमारल निम्न आ मध्य-निम्न वर्ग स्वतंत्रताक पहिनहियो आ बादो जीविकोपार्जन लेल प्रवास करबा लेल अभिशप्त छथि। माता-पिता विहीन लाल बुझक्करजी कनियाँकेँ नैहरमे बैसा कऽ आ सन्तानहीन पित्ती पितियैनकेँ छोड़ि नग्र प्रवास करै छथि।
सातम चरित्र: एकाङ्क नाट्य शैलीमे रचित। मैथिली रंगमंचपर महिला अभिनेत्रीक अभाव, सातम चरित्रक प्रतीक्षामे पूर्वाभ्यास खतम भऽ जाइत अछि। "लोक मञ्च" मैथिली नाट्य पत्रिकामे प्रकाशित।
शेष नञि: आधुनिक सामाजिक पूर्णाङ्क नाटक। पिता-माताक मृत्युक बाद अग्रजक अनुजक प्रति पितृवत व्यवहार। अनुज चाकरी करै छथि, परिवर्तनशील सामाजिक परिस्थितिक शिकार भऽ अचिन्तनीय कार्यकलाप करै छथि आ अग्रज प्रतारित होइ छथि। मुदा अग्रज मरणासन्न पत्नीक प्राणरक्षार्थ साहसपूर्ण डेग उठा लैत छथि। 
आजुक लोक: पूर्णाङ्क नाटक। विषय निम्नमध्यवर्गीय बेरोजगारी आ बियाहक दायित्वक बोझ। 
जय मैथिली: पूर्णाङ्क नाटक। मिथिलाक भाषिक-सांस्कृतिक समस्या एकर कथावस्तु अछि। 
महाकवि विद्यापति: विद्यापतिक नव विश्लेषण।

महेन्द्र मलंगिया
एक कमल नोरमे: माला पति राजेशकेँ सन्तान लेल दोसर बियाह लेल आग्रह करैए,  मुदा पति मना करै छै, ओकर सासु ज्योतिषक संग मिलि मालाक दोसराक संग बेहोशीमे अश्लील फोटो लैए आ राजेशकेँ देखबैए। राजेश मालाकेँ घरसँ बहार कऽ दैए आ ज्योतिषीक पुत्रीक बियाह राजेशसँ भऽ जाइ छै। माला आत्महत्या करैए। जुआयल कनकनी: जीबू अपन माता-पिता द्वारा आत्महत्या लेल काकीकेँ दोषी मानैए मुदा बादमे जखन ओ बुझैए जे बैजू ओकर बहिनक शील भंग केलक। फेर बदला आ पश्चाताप। ओकरा आँगनक बारहमासा: बारह मासमे बोनिहारकक जिनगीक विवरण। छुतहर/ छुतहर घैल/ छुतहा घैल
छुतहा घैल महेन्द्र मलंगियाक नवीन नाटकक नाम छन्हि। ऐ छोटसन नाटकक भूमिका ओ दस पन्नामे लिखने छथि।
पहिने ऐ भूमिकापर आउ।  हुनका कष्ट छन्हि जे रमानन्द झा रमणहुनका सुझाव देलखिन्ह जे छुतहर घैलकेँ मात्र छुतहरकहल जाइ छै। से ओ तीन टा गप उठेलन्हि- पहिल-
तों कहियो पोथी के लेखी,
हम कहियो अँखियन के देखी।
दोसर- यात्री जीक विलाप कविता-
काते रहै छी जनु घैल छुतहर
आहि रे हम अभागलि कत बड़।
आ कहै छथि जे ओइ कविताक विधवा आ ऐ नाटकक कबूतरी देवीकेँ शिवक महेश्वरो सूत्र आ पाणिनीक दश लकारसँ (वैदिक संस्कृत लेल पाणिनी १२ लकार आ लौकिक संस्कृत लेल दस लकार निर्धारित कएने छथि..खएर…) कोन मतलब छै?
तेसर ओ अपन स्थितिकेँ कापरनिकस सन भेल कहैत छथि, जे लोकक कहलासँ की हेतै आ गाम-घरमे लोक छुतहर घैलबजिते छैक!!
मुदा ऐ तीनू बिन्दुपर तीनू तर्क मलंगियाजीक विरुद्ध जाइ छन्हि। अँखियन देखीआ लोकव्यवहार छुतहरमात्र कहल जाइत देखलक आ सुनलक अछि, घैलचीपर छुतहरकेँ अहाँ राखि सकै छी? लोइटसँ बड़ैबमे पान पटाओल जाइ छै तखन मलंगियाजीक हिसाबे ओकरा लोइट घैलकहबै। घैल, सुराही, कोहा, तौला, छुतहर, लोइट, खापड़ि, कुड़नी, कुरवाड़, कोसिया, सरबा, सोबरना ऐ सभ बौस्तुक अलग नामकरण छै। फूलचन्द्र मिश्र रमण” (प्रायः फूलचन्द्रजी छुतहा घैलशब्दक सुझाव हँसीमे देने हेथिन्ह, आ जँ नै तँ ई एकटा नव भाषाक नव शब्द अछि!!)क सुझाव मानैत मलंगिया जी छुतहर घैलकेँ छुतहा घैलकऽ देलन्हि, ई ऐ गपक द्योतक जे हुनका गलतीक अनुभव भऽ गेलन्हि मुदा रमानन्द झा रमणक गप मानि लेने छोट भऽ जइतथि से खुट्टा अपना हिसाबे गाड़ि देलन्हि। आ बादमे रमानन्द झा रमणचेतना समितिसँ ओइ पोथीकेँ छपेबाक आग्रह केलखिन्ह आ, चेतना समिति मात्र २५टा प्रति दैतन्हि तेँ ओ अपन संस्थासँ एकरा छपबेलन्हि, ऐ सभसँ पठककेँ कोन सरोकार? आब आउ यात्रीजीक गपपर, यात्रीजीकेँ हिन्दी पाठकक सेहो ध्यान राखऽ पड़ै छलन्हि, हुनका मोनो नै रहै छलन्हि जे कोन कविता हिन्दीमे छन्हि, कोन मैथिलीमे आ कोन दुनूमे, से ओ छुतहर घैल लिखि देलन्हि, एकर कारण यात्रीजीक तुकबन्दी मिलेबाक आग्रहमे सेहो देखि सकै छी। आ फेर आउ कॉपरनिकसपर, जँ यात्री जी वा मलंगिया जी घैल छुतहर”, “छुतहर घैलवा छुतहा घैललिखिये देलन्हि तँ की नेटिव मैथिली भाषी छुतहरकेँ   घैल छुतहर”, “छुतहर घैलवा छुतहा घैलबाजब शुरू कऽ देत। से कॉपरनिकस सेहो मलंगियाजीक विरुद्ध छथिन्ह।
कॉपरनिकसक किंवदन्तीक सटीक प्रयोग मलंगियाजी नै कऽ सकलाह, प्रायः ओ गैलिलीयो सँ कॉपरनिकसकेँ कन्फ्यूज कऽ रहल छथि, कॉपरनिकसक सिद्धान्तक समर्थन पोप द्वारा भेल छल आ कॉपरनिकस पोप पॉल-३ केँ अपन हेलियोसेन्ट्रिक सिद्धान्तक चालीस पन्नाक पाण्डुलिपि समर्पित केने रहथि। खएर मलंगियाजीक विज्ञानक प्रति अनभिज्ञता आ विज्ञानक सिद्धान्तकेँ किवदन्तीसँ जोड़बाक सोचपर अहाँकेँ आश्चर्य नै हएत जखन अहाँ हुनकर खाँटी लोककथा सभक अज्ञानताकेँ अही भूमिकामे देखब।
अली बाबा आ चालीस चोर”- सम्पूर्ण दुनियाँकेँ बुझल छै जे ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि जे अरेबियन नाइट्स (१००१ कथा)मे संकलित अछि आ ओइमे विवाद अछि जे ई अरेबियन नाइट्समे बादमे घोसियाएल गेल वा नै, मुदा ई मध्यकालीन अरबी लोककथा अछि, ऐ मे कोनो विवाद नै अछि। बलबनक अत्याचार आदिक की की गप साम्प्रदायिक मानसिकता लऽ कऽ मलंगिया जी कहि जाइ छथि से हुनकर लोककथाक प्रति सतही लगाव मात्रकँण देखार करैत अछि। मिथिला तत्व विमर्शवा रमानाथ झाक पंजीक सतही ज्ञान बहुत पहिनहिये खतम कऽ देल गेल अछि, आ तेँ ई लिखित रूपसँ हमरा सभक पंजी पोथीमे वर्णित अछि। गोनू झा विद्यापति सँ ३०० बर्ख पहिने भेलाह, मुदा मलंगियाजी ५० साल पुरान गप-सरक्काक आधारपर आगाँ बढ़ै छथि। हुनका बुझल छन्हि जे गोनूकेँ धूर्ताचार्य कहल गेल छन्हि मुदा संगे गोनूकेँ महामहोपाध्याय सेहो कहल गेल छन्हि से हुनका नै बुझल छन्हि!! गोनू झाक समयमे मुस्लिम मिथिलामे रहबे नै करथि तखन तहसीलदारक दाढ़ीकतऽ सँ आओत। लोकक कण्ठमे छुतहर छै ओकरा छुतहा घैलकऽ दियौ, लोकक कण्ठमे कर ओसूलीकरैबलाक दाढ़ी छै ओकरा तहसीलदारक दाढ़ी कहि  साम्प्रदायिक आधारपर मुस्लिमकेँ अत्याचारी करार कऽ दियौ, आ तेहेन भूमिका लिखि दियौ जे रमानन्द झा रमणआ आन गोटे डरे समीक्षा नै करताह। एकटा पैदल सैनिक आ एकटा सतनामी (दलित-पिछड़ल वर्ग द्वारा शुरू कएल एकटा प्रगतिवादी सम्प्रदाय)क झगड़ासँ शुरू भेल सतनामी विद्रोह औरंगजेबक नीतिक विरोधमे छल आ ओइमे मस्जिदकेँ सेहो जराओल गेलै, मुदा गोनू झाक कर ओसूली अधिकारी मुस्लिम नै रहथि, लोककथामे ई गप नै छै, हँ जँ साम्प्रदायिक लोककथाकार कहल कथामे अपन वाद घोसियेलक आ लिखै काल बेइमानी केलक तँ तइसँ मैथिली लोककथाकेँ कोन सरोकार? फील्डवर्कक आधारपर जँ लोककथाक संकलन नै करब तँ अहिना हएत।
महेन्द्र नारायण राम लिखै छथि जे लोककथामे जातित-पाइत नै होइ छै, मुदा मलंगियाजी से कोना मानताह। भगता सेहो हुनकर कथामे एबे करै छन्हि। आ असल कारण जइ कारणसँ ई मलंगिया जीक नाटकक अभिन्न अंग बनि जाइत अछि से अछि हुनकर आनुवंशिक जातीय श्रेष्ठता आधारित सोच। हुनकर नाटकमे मोटा-मोटी अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक घीच तीरि कऽ सत्रहटा दृश्य अछि, जइमे पन्द्रहम दृश्य धरि ओ छोटका जाइतक (मलंगियाजीक अपन इजाद कएल भाषा द्वारा) कथित भाषापर सवर्ण दर्शकक हँसबाक, आ भगताक भ्रष्ट-हिन्दीक माध्यमसँ छद्म हास्य उत्पन्न करबाक अपन पुरान पद्धतिक अनुसरण करै छथि। कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह ओ सोलहम दृश्यसँ करै छथि मुदा बाजी तावत हुनका हाथसँ निकलि जाइ छन्हि। आइ जखन संस्कृत नाटकोमे प्राकृत वा कोनो दोसर भाषाक प्रयोग नै होइत अछि, मलंगियाजीक भरतकेँ गलत सन्दर्भमे सोझाँ आनब संस्कृतसँ हुनकर अनभिज्ञताकेँ देखार करैत अछि आ भरत नाट्यशास्त्रपर हिन्दीमे जे सेकेण्डरी सोर्सक आधारपर लोक सभ पोथी लिखने छथि, तकरे कएल अध्ययन सिद्ध करैत अछि।
मलंगियाजीक ई कहब अछि जे नाटक जँ पढ़बामे नीक अछि तँ मंचन योग्य नै हएत, वा मंचन लेल लिखल नाटक पढ़बामे नीक नै लागतहुनकर संस्कृत पाँतीकेँ उद्घृत करबासँ तँ यएह लगैत अछि। जँ नाटक पढ़बामे उद्वेलित नै करत तँ निर्देशक ओकर मंचनक निर्णय कोना लेत? आ मंचीय गुण की होइ छै, अढ़ाइ-अढ़ाइ पन्नाक सत्रहटा दृश्य, तथाकथित निम्न वर्गकेँ अपमानित करैबला जातिवादी भाषा, भगताक बुझता है कि नहीं?” बला हिन्दी आ ऐ सभक सम्मिलनक ई स्लैपस्टिक ह्यूमर”? आ जे एकर विरोध कऽ मैथिलीक समानान्तर रंगमंचक परिकल्पना प्रस्तुत करत से भऽ गेल नाटकक पठनीय तत्त्वक आग्रही आ जे पुरातनपंथी जातिवादी अछि से भेल नाटकक मंचीय तत्वक आग्रही!! की २१म शताब्दीमे मलंगियाजीक जाति आधारित वाक्य संरचना संस्कृत, हिन्दी वा कोनो आधुनिक भारतीय भाषाक नाटकमे (मैथिलीकेँ छोड़ि) स्वीकार्य भऽ सकत? आ जँ नै तँ ऐ शब्दावली लेल १८०० बर्ष पुरनका संस्कृत नाटकक गएर सन्दर्भित तथ्यकेँ, मूल संस्कृत भरत नाट्यशास्त्र नै पढ़ैबला नाटककार द्वारा, बेर-बेर ढालक रूपमे किए प्रयुक्त कएल जाइए? माथपर छिट्टा आ काँखमे बच्चा जँ कियो लेने अछि तँ ओ निम्न वर्गक अछि? ओकर आंगनक बारहमासामे ओ ऐ निम्न वर्गकेँ राड़ कहै छथि, कएक दशक बाद ई धरि सुधार आएल छन्हि जे ओ आब ओइ वर्गकेँ निम्न वर्ग कहि रहल छथि, ई सुधार स्वागत योग्य मुदा ऐ दीर्घ अवधि लेल बड्ड कम अछि। बबाजी कोना कथामे एलै आ गाजा कोना एलै आ ओइसँ बगियाक गाछक बगियाक कोन सम्बन्ध छै? मलंगियाजी अपन जाति-आधारित वाक्य संरचना, आ भ्रष्ट-हिन्दी मिश्रित वाक्य रचना कोना घोसिया सकितथि जँ भगता आ निम्न वर्गक छद्म संकल्पना नै अनितथि, ई तथ्य ओ बड्ड चतुराइसँ नुकेबाक प्रयास करै छथि, आ तेँ ओ मेडियोक्रिटीसँ आगाँ नै बढ़ि पबै छथि। आ तेँ हुनकामे ऐ नाट्य-कथाकेँ उद्देश्यपूर्ण बनेबाक आग्रह तँ छन्हि मुदा सामर्थ्य नै आबि पबै छन्हि।
सुधांशु शेखर चौधरी 
भफाइत चाहक जिनगी: महेश बेरोजगार अछि, ओ चाह दोकान खोलैए कवि सेहो अछि।इंजीनियर उमानाथक पत्नी चन्द्रमा दोकानपर देखलन्हि जे पुकार महेश कविता पाठ लेल जाइए, चन्द्रमा चाह बेचऽ लगै छथि, उमानाथ तमसा जाइ छथि। महेशक संगी सरिता, जे आइ.ए.एस.क पत्नी छथि, आबै छथि। लेटाइत आँचर: दीनानाथक एकेटा मात्र पुत्री ममताकेँ पति काटरक कारणसँ छोड़ि दै छन्हि। मुदा पुत्र मोदनाथक विवाहमे दहेज लेबाक प्रयत्नपर पुत्र हुनका रोकै छन्हि।
जगदीश प्रसाद मण्डल
मि‍थि‍लाक बेटी-प्रथम दृश्‍य- महगीक वि‍रोधमे कर्मचारीक हड़ताल। महगीक कारण- नोकरी दि‍स झुकने, खेतीक ह्रास। भू-सम्‍पत्ति‍क ह्रास, दान दहेज झर-झंझटक बढ़ोतरी। वि‍याहक लाम-झाम। पैसाक दुरूपयोग। कला प्रेमी धन सम्‍पत्ति‍केँ तुच्‍छ बुझैत। कौरनेटि‍याक संग कओलेजक लड़की, जे नाच-गान सि‍खैत, चलि‍ गेलि‍। झर-झंझटमे पोकेटमारी सेहो।सरकारी पदाधि‍कारीकेँ बाजैपर रोक। अपहरणक बढ़ोत्तरी, रंग-वि‍रंगक अपहरणोक कारण ि‍सर्फ पाइये नै जानोक खेलवाड़। सरकारी अफसरक नैति‍क ह्रास। चम्‍मछक घटना। सरकारी तंत्र कमजोर भेने असुरक्षाक वृद्धि‍।समाजक वि‍घटनमे जाति‍, सम्‍प्रदाय इत्‍यादि‍क योगदान, जइसँ इज्‍जत-आवरू धरि‍ खतरामे।सि‍नेमा, खेल-कूदक प्रभावसँ नव पीढ़ी अपन सभ कि‍छु- कुल, खनदान, वेवहार, छोड़ि‍, वाहरी हवाक अनुकरणमे पगला रहल अछि‍। ढहैत सामंतमे संस्‍कारक छाप। इनार-पोखरि‍ स्‍त्रीगणक झगड़ाक अड्डा। मि‍थि‍ला नारी शक्‍ति‍क प्रतीक सीतादहेजक मारि‍मे जाति‍-पाँति‍क नासधन-सम्‍पत्ति‍ आचार-वि‍चार नष्‍ट करैत कोट-कचहरीक चपेटमे समाज, आपसी झगड़ाक कुप्रभाव। नवयुवकमे आत्मवलक अभाव नारीक बीच असीम धैर्य-वाल-वि‍धवा मनुष्‍यपर समाजक प्रभाव। पढ़लो-ि‍लखल कारगरो लड़कीक मोल दहेजक आगू चौपट अछि‍। ओना पुरूषक अपेक्षा नारीक महत्‍व, पुरूष प्रधान व्‍यवस्‍थामे कम रहल गहना-जेबर सेहो अहि‍तकर। नव पीढ़ीक नारीमे नव उत्‍साहक जरूरत। नव-नव काज सि‍खैक हुनर। दोसर अंक- सामंती व्‍यसन- भाँग। नव पीढ़ी सेहो प्रभावि‍त। श्रम चोर मि‍हनतसँ मुँह चोराएबभाग्‍य-भरोसपर वि‍सवास। धनक प्रभावसँ परि‍वारक वि‍खरब। पि‍ता-पुत्रक बीच मतभेद बलजोरी वा फुसला कऽ लड़का-लड़की वि‍याह...। खेतक लेन-देनमे घोखाधड़ी। जबूरि‍या, दोहरी रजि‍स्ट्री। घुसखोरी कमाइ प्रति‍ष्‍ठा। माइयो-वापक इच्‍छा रहैत जे बेटा घुस लि‍अए। नोकरीक वि‍रोध... पुरूष प्रधान व्‍यवस्‍थामे नारीक रंग-वि‍रंगक शोषण। पढ़ौने आरो समस्‍या। तेसर अंक - बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनीक कृषि‍पर दुष्‍प्रभाव, देशी उत्‍पादनक अभावदहेज समर्थक समाज आ दहेज वि‍रोधी समाज दू तरहक समाजपरम्‍परा आ परम्‍परा वि‍रोधी नव जाग्रत समाजखण्‍ड-पखण्‍डमे समाज टूटलनव मनुष्‍यक सृजन नव तकनीक नव सोच आ नव काज पकड़ने बहुराष्‍ट्रीय प्रभावसँ परि‍वार, समाज आ कला संस्‍कृति‍पर दुष्‍प्रभाव, बेबस्‍था बदलने समाज बदलत। चारि‍म अंक- पाइ भेने वि‍चारोमे बदलाव। जाहि‍सँ नव समाजक सूत्र पात-जन्‍म सेहो होइत। रामवि‍लास (मि‍स्‍त्री) मनुष्‍यक महत्‍व दैत जइसँ दहेजकेँ धक्का लगैत। पहि‍नेसँ मि‍थि‍लांचलक लोक वंगल, असाम, नेपाल, ढाका, धरि‍ ध्‍न कटनी, पटुआ कटनीक लेल जाइत छल। शि‍क्षाक वि‍संगति‍। ओकरा मेटाएब। पाँचम अंक- आदर्श वि‍याह। नव चेतनाक जागरण जे बेबस्‍था बदलत।
कम्‍प्रोमाइज- सामंती समाजमे टुटैत कृषि‍ आ कि‍सानी जीवन, नब पूँजीवादी समाजमे कृषि‍केँ पूँजी बनेबाक बेबस्‍था, बुद्धि‍जि‍वी आ श्रमिकक पलायसँ गामक बि‍गड़ैत दशा, समन्‍वयवादी वि‍चार-दर्शन।
झमेलि‍या बि‍आह- मि‍थि‍लाक समाजमे अबैत बि‍आह-संस्‍कारक प्रक्रि‍यामे रंग-बि‍रंगक बाहरी प्रभाव, बाहरी प्रभावसँ रंग-बि‍रंगक वि‍वाद, झमेलक जन्‍म, झमेलि‍याक रूपमे बि‍आह प्रक्रि‍यामे होइत वि‍वादक वि‍षद चर्च।
बि‍रांगना- ग्रामीण जीवनक बजारोन्‍मुख हएब, सस्‍ता श्रम-शक्‍ति‍ भेटलासँ पूँजीपति‍ वर्ग द्वारा शोषण, श्रमक लूटसँ ग्रामीण लोक जानवरोसँ बत्तर जि‍नगी जीबए लेल मजबूर, रूपैयाक लालचमे नीच-सँ-नीच काज करबाक लेल तैयार लोक।
तामक तमघैल- ढहैत सामंती समाजमे छि‍न्न-भि‍न्न होइत परि‍वार, रीति‍-नीति‍ एवं परि‍वारि‍क सम्‍बन्‍ध, छि‍न्न-भि‍न्न होइत परि‍वारक आर्थिक आधार।
सतमाए- कोनो संबंध दोषपूर्ण नै होइत छै बल्‍कि‍ मनुष्‍यक बेबहार आ वि‍चारमे दोष होइत छैक तही बेबहार आ वि‍चारक सम्‍यक चर्च करैत ‘सतमाए’क आदर्शरूप प्रस्‍तुत कएल गेल अछि‍।
कल्‍याणी- दि‍न-देखारे होइत अन्यायक प्रति‍ सजगताक उल्लेख करैत नारी जागरणक चि‍त्रण, बुनि‍यादी समस्‍या दि‍स इशारा करैत समस्‍याक समाधान हेतु पैघ-सँ-पैघ दाम चुकबए पड़ैत अछि, तेकर चि‍त्रण।
समझौता- समाजमे कृषि‍केँ पूँजी बनेबाक लेल टुटैत कृषि संस्‍कृति‍क बुनि‍यादी समस्‍याक वर्णन आ तकर नि‍दान लेल समझौता हेतु सम्‍यक सोचक जरूरति‍पर प्रकाश दैत ओकर महत्व ओ आवश्‍यकताक वर्णन।

आनंद कुमार झा
टाटाक मोल : काटर प्रथापर आधारित नाटक। गरीनाथ सुमि‍त्राक 'पुत्र कामनार्थ' पॉच गोट कन्‍या‍। पहि‍ले बेटीक वि‍वाहमे हुनकर बहुत खेत बि‍का गेलनि‍। दोसर बेटीक कन्‍यादानक लेल मात्र बारह कट्ठा जमीन बॉचल छन्‍हि‍। बेटी प्रभा कॉलेजमे पढ़ैत छथि‍, अपन बहि‍नक देर प्रभाकरसँ सि‍नेह करै छथि‍, छोट मांगल-चांगल भाए महीस चरबैत छन्‍हि‍।
कलह :  आकाश बेरोजगार छथि‍। वि‍भाता सुमि‍त्रा अपन पुत्र राजीव लेल ज्‍येष्‍ठ पुत्रक संग यातना दैत छथि। एकटा अबोध नेनाक जन्‍म भेल.....।
बदलैत समाज :  एकटा ब्‍लड कैंसर पीड़ि‍त घूरन जी अपन बीमार पुत्रक वि‍आह करा दैत छथि‍। हुनका ओना बूझल नहि‍ छलनि‍ जे पुत्र अवधेश ब्‍लड-कैंसरसँ पीड़ि‍त अछि‍। भजेन्‍द्र मुखि‍याक पुत्र अवधेशक मृत्‍युक भऽ गेलनि‍। अंतमे वि‍धवा शोभाक एकटा सच्‍चरि‍त्र युवक वीजेन्‍द्रसँ पुर्नवि‍वाहक कल्‍पना कएल गेल।
धधाइत नवकी कनि‍याॅक लहास :  कि‍छु गहनाक खाति‍र शि‍खाक आत्‍महत्‍याक प्रयास।
हठात् परि‍वर्त्तन : देशभक्‍ति‍ नाटक।

गजेन्द्र ठाकुर
उल्कामुख: पहिल मंचनक निर्देशक रहथि बेचन ठाकुर। जादू वास्तवितावादी ऐ नाटकमे इतिहासक एकटा षडयंत्रकेँ उघारल गेल अछि , मंच परिकल्पना रहए भरतक नाट्यशास्त्रक अनुसार। आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह, आचार्य सरभ, शिष्य साही, शिष्य खिखिर, शिष्य नढ़िया, शिष्य बिज्जी  ऐ मे पात्र छथि। पहिलसँ चारिम कल्लोल धरिक पात्र बदलि जाइ छथि, दोसर रूपमे पाँचम कल्लोलसँ टा स्त्री पात्र बढ़ि जाइ छथि: रुद्रमति (माधवक माए) सोहागो (गंगाधरक माता), आनन्दा (गंगाधरक बहिन), मेधा (हरिकर- सेनापतिक बेटी)गंगेश आ वल्लभाक प्रेम ऐ नाटकक विषय अछि। मुदा पहिल दू अंकक बाद तेसर आ चारिम अंक जादू वास्तविकतावादक उदाहरण बनि जाइए। आ आबि जाइ छथि सोझाँ उदयन, दीना, भदरी, आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह, आचार्य सरभ, शिष्य साही, शिष्य खिखिर, शिष्य नढ़िया, शिष्य बिज्जी। आ शुरू भऽ जाइए इतिहासक एकटा षडयंत्रक अनुपालन। मुदा चारिम कल्लोलक अन्तमे भगता कहि दै छथि अपन शिष्यकेँ एकटा रहस्य.......जे विस्मरणक बादो आबि जाएत स्मरणमे।...बनि उल्कामुख... - पाँचम कल्लोलसँ संकेतक बदला वास्तविकता, कल्पनाक बदला सत्य... -पहिलसँ चारिम कल्लोल धरि मंचपर शतरंजक डिजाइन बनाएल घन राखल रहत, पाँचम कल्लोलसँ भूत आ कल्पनाक प्रतीक ओइ संकेतक बदला वास्तविकताक प्रतीक गोला राखल रहत। गंगेशक तत्त्वचिन्तामणिपर ढेर रास टीका उपलब्ध अछि, गंगेशकेँ कहल जाइ छन्हि तत्वचितामणिकारक गंगेश; मुदा हुनकर कविता भऽ गेल छन्हि "उल्कामुख"!!!
संकर्षण: नाटकमे एकटा पात्र, जे गाममे कहबैका आ दुष्ट-चलाक प्रवृत्तिक मानल जाइत अछि, दिल्ली एलापर (रस्ते सँ ओकर बुद्धि हेरेनाइ शुरू होइ छै) अपनाकेँ मूर्ख बुझैत अछि- बीचमे भारतक हरियाणाक एकटा कुकुरसँ सम्बन्धित लोककथा सेहो समाहित अछि
भऽ जाएब छू- (बाल चौबटिया-सड़क नाटक)- पर्यावरण आ विज्ञानकेँ सडक नाटकक माध्यमसँ पसारबाक अभियान।


बेचन ठाकुर

बेटीक अपमान आ छीनरदेवी: भ्रूण हत्या, महिला अधिकार आ अन्धविश्वासपर आधारित दुनू नाटक मैथिली नाटककेँ नव दिशा दैत अछि।
अधिकार: इन्दिरा आवास योजनाक अनियमितताकेँ आर.टी.आइ.(सूचनाक अधिकार) सँ देखार करैबला आ रिक्शासँ झंझारपुरसँ दिल्ली जाइबला असली चरित्र मंजूरक कथा अछि।
विश्वासघात: नेशनल हाइवेक जमीनक मुआवजामे ढेर रास पाइ देल जाइ छै आ ओकरा हड़पै लेल पारिवारिक सम्बन्धक बलि चढ़ि जाइ छै।