Sunday, August 21, 2011

जगदीश प्रसाद मंडल एकांकी- कल्याणी

जगदीश प्रसाद मंडल
एकांकी-

कल्याणी



पहि‍ल दृश्य-

(जहलक दृश्य। जेलक भीतरसँ जेलर, कल्यानणी, प्रति‍ज्ञा आ दूटा सि‍पाही नि‍कलैत। फाटकक बाहर आबि‍ कल्यााणीयो आ प्रति‍ज्ञो पाछु घुि‍र जहलकेँ नि‍ग्हा‍रि‍-निग्हालरि‍ देखैत अछि‍‍।)

जेलर : अखन धरि‍ हम जेलर आ अहाँ दुनू गोटे कैदी छलौं। मुदा आब जहि‍ना अहाँ दुनू गोटे छी तहि‍ना हमहूँ एकटा अदना मनुक्खप छी। जेलक जि‍म्मेलदार होइक नाते कहै छी जे जँ कि‍छु अभाव भेल हुअए ओ बि‍सरि‍ जाएब। संगे इहो कहै छी जे पुन: कैदी बनि‍ जहल नै देखी।
कल्याबणी : (मुस्कुखराइत) कहलौं तँ बड़ सुन्नर बात मुदा जइठाम एक्को इंच जमीन नारीक लेल सुरक्षि‍त नै अछि‍‍ तइठा)म......?

जेलर : की‍ सुरक्षि‍त?

कल्याणी : सुरक्षि‍त यएह जे नारीक लेल स्वमतंत्र जि‍नगी कल्प नाक सि‍वा आरो की अछि‍‍। जाधरि‍ नारी अपन शक्तिक‍केँ जगा संघर्ष नै करत ताधरि‍ मनुष्यीक जि‍नगीसँ उतड़ि‍ पशुक जि‍नगी जीबैक लेल बाध्यक रहबे करत। तँए जरूरत अछि‍‍ अपन शक्तिय‍ नारी जगतक लेल उपयोग करए। जखने आजादीक लेल डेग उठौत तखने अहाँक जेल आगू ऐबे करत।

प्रति‍ज्ञा : कते दि‍न जहलक डरे नारी अपन स्वितंत्र जि‍नगीकेँ बान्हिन‍ कऽ राखि‍ सकैए। जेम्हछर देखू तेम्हतर नारीपर अत्या चारे-अत्याचार जहि‍ना घरक भीतर तहि‍ना घरक बाहर। सगतरि‍ एक्के रामा-कठोला भऽ रहल छै। घरसँ नि‍कलि‍ते कतौ अपहरण तँ कतौ छेड़खानी सदति‍काल होइते रहैत अछि‍‍‍। एहेन स्थिँ‍ति‍मे इज्ज त-आबरूक संग जीब कहाँ धरि‍ संभव अछि‍‍।

जेलर : (मूड़ी डोलबैत) कि‍छु अंशमे अहाँ कहब मानल जा सकैत अछि‍।

कल्याणी : (झपटि‍ कऽ) कि‍छु अंशमे कि‍अए कहै छि‍ऐ हँ, ई बात जरूर जे जहि‍ना सभ मनुष्यरक जि‍नगी समान नै अछि‍ तहि‍ना अत्याँचारोक अछि‍‍। मुदा जेहन माहौल बनल अछि‍‍ ओइ‍‍सँ की आभास भेट रहल अछि‍।

जेलर : (नम्‍हर साँस छोड़ैत) खैर, हमर ओकाति‍ये कते अछि‍ जे अहाँक सभ प्रश्नेक उत्तर दऽ सकै छी। मुदा एते जरूर आग्रह करब जे पुन: जहलक आँखि नै देखी।
कल्याणी : जँ जहलक डर करब तँ जि‍नगी कोना भेटत। हँ, ई बात जरूर जे छोटसँ छोट आ पैघसँ पैघ सैकड़ो घेराक बीच जहलो एकटा घेरा छी। मुदा ओकरा टपैक तँ दुइये टा उपाए अछि‍। या तँ कूदि‍ कऽ टपि‍ जाय वा तोड़ि‍ दि‍अए।

जेलर : (मूड़ी डोलबैत) धि‍या-पूताक खेल नै छी।

कल्याणी : मानै छी जे धि‍या-पूताक खेल नै छी मुदा अहूँ सुनि‍ लि‍अ जे जै‍ पौरूष पाबि‍ नर पुरूष कहबैक अधि‍कारी बनल अछि‍ ओ ि‍सर्फ पुरूषेक नै नारि‍योक धरोहर सम्पछदा छी। अखन धरि‍ नारी जगतक नजरि‍ ओइ‍‍ दि‍शा दि‍स‍ नै बढ़ल अछि‍ तँए आँखि‍ मूनि‍ सभ अत्यानचार झेल‍ रहल अछि‍। जखने ओइ‍ दि‍शा दि‍स‍ देख‍ आगू डेग उठौत तखने......।

जेलर : (मुस्कुगराइत) हमर शुभकामना अहाँ सभक संग अछि‍।

(कल्या.णी आ प्रति‍ज्ञा आगू बढ़ैत। दुनू सि‍पाही फाटकक भीतर प्रवेश करैत। बीचमे जेलर ठाढ़ भऽ कल्यााणी दि‍स देखैत। दू डेग आगू बढ़ि‍ कल्या णी पाछु घुरि‍ कऽ तकैत। दुनूक–- जेलर आ कल्या‍णी- आँखिपर आँखि पड़ि‍ते‍ कल्याजणी मुस्कुरा दैत। जेलर आँखि नि‍च्चाँ कऽ लैत। पुन: कल्याशणी आगू डेग उठबैत। जेलरो भीतर दि‍स प्रवेश करैत। एकटा पएर भीतर आ एकटा पएर बाहर रहि‍ते पुन: कल्यालणी दि‍स देखैत। तै‍ काल कल्याटणि‍यो दुनू गोटे पाछु घुि‍र तकैत तँ जेलरपर नजरि‍ पड़ैत।)

जेलर : (दुनू हाथ जोड़ि‍) अंति‍म वि‍दाइ।
कल्याणी : (मुस्कीर दैत) अंति‍म वि‍दाइ नै पहि‍ल वि‍दाइ। जाधरि‍ अहाँक जहल रहत ताधरि‍ एक नै हजरो बेर‍ आएब।
(फाटक बन्न कऽ जेलर भीतर जाइत अछि‍। कल्या णी आ प्रति‍ज्ञा दू डेग आगू बढ़ि‍)
कल्याणी : अखन धरि‍ जहि‍ना अहाँ कओलेजक एकटा छात्रा छी तहि‍ना हमहूँ छी। मुदा आब तँ पढ़ाइक अंति‍मे समए छी। परीक्षो भइये गेल। रि‍जल्टज नि‍कलत जि‍नगीक लीला शुरू हएत।
प्रति‍ज्ञा : जि‍नगि‍ऐक लीला कि‍अए कहै छी नावालि‍कक सीमा सेहो टपि‍ गेलहुँ। जहि‍या जेल एलौं तहि‍या ने नावालि‍क छलौं। जै‍सँ देश आ समाजक प्रति‍ ने कोनो अधि‍कार छलए आ ने कोनो कर्तव्य । मुदा से तँ आब नै रहल। ओना बालबोधे जे कि‍छु केलहुँ ओहो कोनो अधला थोड़े केलहुँ।

कल्याँणी : अखन धरि‍ जे कि‍छु भेल ओ बाल-बोधक खेल भेल। मुदा जहलक भीतर नावालि‍कक सीमा टपि‍ वालि‍क भेलहुँ। १८वर्ष पूरा भेल। जि‍नगीक लेल आइ संकल्प ली जे जाधरि‍ नरीक अन्याैए होइत रहत ताधरि‍ चैनक साँस नै लेब।
प्रति‍ज्ञा : अखन धरि‍ ने अहाँकेँ ऐ‍ रूपे हम चि‍न्है।त छलौं आ ने अहाँ हमरा चि‍न्हैअ छलौं। तँए दुनू गोटे संकल्प क संग शपथ ली जे जाधरि‍ साँस रहत ताधरि‍ संग-संग रहब।
कल्याणी : नि‍श्चिर‍त। जे कि‍यो ऐ‍‍ धरतीपर जन्मं नेने अछि‍ सभकेँ स्वैतंत्र रूपे जीवैक अधि‍कार छे (कि‍छु काल चुप भऽ) सृष्टिक‍क शुरूहेसँ देखैत छी जे जहि‍ना ऋषि‍ भेलाह तहि‍ना ऋृषि‍का सेहो भेलीह। (पुन: रूकि‍) संग-संग ि‍जनगी बि‍तबि‍तहुँ पुरूष नारीक संग भीतरघात करैत-करैत सकपंज कऽ देलनि‍। जेकर परि‍णाम भेल जे ओकर पहाड़ सदृश्यत रूप बनि‍ गेल अछि‍।
प्रति‍ज्ञा : (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ बनि‍ गेल अछि‍। मुदा जहि‍ना रसे-रसे बंधन सक्कत होइत गेल तहि‍ना रसे-रसे तोड़हुँ पड़त। एक्के बेर‍ जँ सभ बंधनकेँ तोड़ए चाहब से संभव नै छै।

कल्याणी : (मूड़ी डोलबैत) ई तँ अछि‍‍। मुदा दुनि‍याँमे एहेन कोनो काज नै अछि‍‍ जेकरा मनुष्य नै कऽ सकैत अछि‍‍। तहन ई बात जरूर अछि‍‍ जे जे जेहन काज रहत ओहि‍क लेल ओइ‍‍ तरहक शक्तिे‍क जरूरत पड़ैत। तँए जरूरी अछि‍‍ जे जहि‍ना अखन हम दुनू गोटे मि‍ल संकल्प लेलहुँ तहि‍ना आरोकेँ जोड़ि‍ शक्तित‍क अनुकूल डेग उठाएब।
प्रति‍ज्ञा : हँ, से तँ कहलो गेल अछि‍‍ जे “जमात करए करामात।‍” जेना-जेना दुर्ग टपैत जाएब तेना-तेना शक्ति्‍यो बढ़ैत जाएत। जहि‍ना बुन-बुन पानि‍ मि‍ल धरतीपर ससरि धारा बनि‍ धारक आकार बना समुद्रक रूप ग्रहन करैत तहि‍ना ने मनुष्योनक होएत।

दोसर दृश्यम-

(जहलक बाहरी छहरदेवाली टपि‍ कल्या णी आ प्रति‍ज्ञा। दोसर ि‍दससँ कल्यातणीक भाए चन्द्र नाथ आ माए शान्तीरकेँ देखैत तँ दोसर दि‍ससँ शान्तीह कल्यायणीपर नजरि‍ अटकौने। जना शान्तीकेँ बघजर लगि‍ गेल दुनू आँखिसँ नोट टघरैत। मुदा कल्याेणी आ प्रति‍ज्ञाक मुँहसँ खि‍लैत माने फुलाइत फूल जकाँ हँसी नि‍कलैत।)
कल्याणी : (आगू बढ़ि‍) माए, अहाँ कनै कि‍अए छी? बेटी कोनो अधला काज कऽ जहल नै आइलि‍ छलि‍। (कहैत दुनू हाथे दुनू पाएर पकड़ि‍) अहाँ असि‍रवाद दि‍अ। जहि‍ना समाजक आन माएसँ हटि‍ अहाँ पढ़ैक छूट देलहुँ तहि‍ना हमरो दायि‍त्वँ होइत अछि‍‍ जे समाजक कल्या णक दि‍शामे आगू बढ़ी। जाधरि‍ परि‍वारक डेग आगू दि‍स‍ नै बढ़त ताधरि‍ समाज कोनो बनत?

(दुनू बाँहि‍ पकड़ि‍ शान्ती कल्या णीकेँ उठबैत। कल्या णी उठि‍ कऽ माइक दुनू आँखिक नोर दुनू हाथसँ पोछि‍ आँखिपर आँखि गरा आगूमे ठाढ़ि‍। शान्ती‍क आँखिसँ धरती, पहाड़, समुद्रक रूप छि‍टकैत तँ कल्याेणीक आँखिसँ सि‍ंहक रूप छि‍टकैत)

चन्द्रननाथ : अहाँ सभ ताबे एतै अँटकू। एकटा सवारी नेने अबै छी। (कहि‍ भीतर जाइत)

प्रति‍ज्ञा : चाची, आइ धरि‍ नारी जगत, कमला-कोसीक धारक संग कारी मेघक बरखा सदृश्यट अदौसँ नोर बहबैत आएल अछि‍‍ मुदा जाधरि‍ ओइ‍‍ नोरकेँ बहैक कारणकेँ नै रोकल जाएत ताधरि‍ बहब कोना बन्न हएत? जहि‍ना बेटी कल्याजणी छी तहि‍ना प्रति‍ज्ञो छी। असि‍रवाद दि‍अ।
शान्तीा : (माइक नजरि‍सँ नजरि‍ मि‍ला) तँू सभ जहल कि‍अए ऐहल?

कल्याणी : परीक्षाक आखि‍री दि‍न एक्केटा वि‍षएक परीक्षा रहै। जे दोसर खेपमे माने दोसर सत्रमे रहै। चारि‍ बजे समाप्तज भेल। ओना प्रश्नक हल्लुके बुझि‍ पड़ल। जहाँ सवाल पढ़लौं आकि मन हल्लुक भऽ गेल। नीक जकाँ लि‍खलौं। डेरा अबैत रही आकि‍ रस्तांमे देखलि‍ऐ........।

शान्ती : की देखहलक?

कल्याणी : आगू-पाछू वि‍द्यार्थी (संगी) सभ डेरा अबैत रहै। हम दुनू गोरे (कल्याणी आ प्रति‍ज्ञा) पाछु रही। हमरासँ करीब चारि‍ लग्गीा आगू रूपा असकरे अबैत रहै। मोटर साइकि‍लपर एकटा युवक पाछूसँ जाइत रहै। रूपा लग आबि‍ पहुँचते साइकि‍लेपर सँ देह परक ओढ़नी खींचि‍ लेलक।
(ओढ़नी खि‍चैक सुनि‍ शान्तील चौंकि‍ गेलि‍। जना बाँसक दू टुकड़ी रगड़सँ आगि‍क लुत्ती छि‍टकैत तहि‍ना शान्तीगक आँखिसँ लुत्ती छि‍टकल)

शान्ती : अँए, एते अन्याए?

प्रति‍ज्ञा : चाची, अहाँ गाम-घरमे रहै छी तँए नै दखै छि‍ऐ। एहेन-एहेन अन्या ए हजारक हजार रोज होइए।
शान्तइ : राही-बटोही कि‍छु ने कहै छै?

प्रति‍ज्ञा : की कहतै। नि‍र्लज पुरूख नारीक लाज (इज्ज‍त) थोड़े बुझैए। उ सभ तँ नारीकेँ खेलौना बनौने अछि‍‍। एक्के पुरूख अपन बहू-बेटीकेँ इज्जूतक नजरि‍ऐ देखैत अछि‍‍ मुदा दोसराकेँ रण्डी -बेश्याअ बुझैत अछि‍‍।
(क्रोधसँ शान्ती थर-थर कँपए लगल। दुनू आँखि लाल भऽ गेलै)
शान्‍त‍ी : तब की भेलै?

प्रति‍ज्ञा : बेचारी रूपा, आगू-पाछू ताकि‍, मूड़ी गोति‍ आगू बढ़ैत गेल। मुदा हमरा दुनू गोरेकेँ नै देखल गेल। सड़कक कातेमे पीचक पजेबा उखड़ल रहै। दुनू गोटे पजेवा हाथमे लऽ दौड़ कऽ ओकरापर फेकलौं। एकटा तँ हूसि‍ गेलै। मुदा दोसरक कपारमे लगलै।
शान्ती : वाह-वाह, भगवान हमरो औरूदा तोरे सभकेँ देथुन। भाँइमे कि‍यो दादा हुअए। नारी-जाति‍क सान बचेलहुँ। तेकर उत्तर की भेल?

प्रति‍ज्ञा : ओ साइकि‍लपर सँ खसि‍ पड़ल। कपारसँ खून गड़-गड़ चुबए लगलै। हल्लाह भेलै। तखने ट्रैफि‍क पुलि‍स आबि‍ कऽ दुनू गोटेकेँ पकड़ि‍ पहि‍ने थाना लऽ गेल। थानासँ जहल पठा देलक।

शान्ती : मुदा हम तँ दोसरे-तेसरे बात सुनलौं।
प्रति‍ज्ञा : की?

शान्तीे : कते बाजब कोइ कि‍छो तँ कोइ कि‍छो बाजैए। एक गोरे कहलक जे दुनू गोटे परीक्षामे चोइर करैत पकड़ल गेल।
प्रति‍ज्ञा : चाची, झूठकेँ सत्यो बनाएब आ सत्यएकेँ झूठ बनाएब छुद्दर पुरूख सभक गुण छी। जहि‍ना वहीन‍ कल्याणीक माए छि‍ऐ तहि‍ना हमरो छी अहाँ लग झूठ बाजब।

शान्ती : (कि‍छु मन पाड़ैत) बेटी प्रतिज्ञा, तँू जे कहलह ओ अपनो मनमे अबैए। मुदा बि‍ना पुरूखक मदति‍ऐ नारी जीब कोना सकैए?

कल्याणी : (उत्सािहि‍त भऽ) माए बि‍ना पुरूखक नारी जनकपुरमे। अखन धरि‍ नारीकेँ पुरूख अन्हाकरमे रखलक। जैसँ ओकरा अपन सभ गुन हरा गेलइ। घरक भीतर रखि‍ ओकरा दुनि‍याँक बात बुझै नै देलक। जैसँ ओ परती खेत नहाति‍ सभ कि‍छु रहि‍तो पानि‍-बि‍हाड़ि‍, जा़ड़, रौद, भुमकमक चोटसँ नि‍ष्क्रि ‍य भऽ गेल।
शान्तीु : ऐ बातकेँ नारी कि‍अए ने अखैन धरि‍ बुझि‍ रहल अछि‍‍?

कल्याणी : एकरो कारण छै। सृष्टि‍‍क नि‍‍र्माण पुरूष नारीक संयोगसँ होइत अछि‍‍। जहि‍ना गाड़ी, दू पहि‍यासँ चलैत अछि‍‍, तहि‍ना। मुदा नारीक पेटमे नअ मास रहि‍ बच्चाक जन्म होइत अछि‍‍। ऐ‍‍ दौरमे नारीकेँ कठि‍न कष्टमक सामना करए पड़ैत अि‍छ। जेकर लाभ पुरूख उठौलक।
शान्ती : (मूड़ी डोलबैत) हूँ...।
कल्याणी : बच्चाक पालन खाली पेटे धरि‍ नै जन्मस लेलाक पछाति‍यो होइत अछि‍‍। जैमे घेरा जाइत अछि‍‍। घेराइत-घेराइत एत्ते घेरा जाइत जे जि‍नगी बदलि‍ गुलाम बनि‍ जाइत अछि‍‍।

शान्ती : (मूड़ी डोलबैत) एहेन स्थि.‍ति‍मे नारी पुरूखक बराबरी कोना कऽ सकैत अछि‍‍?

प्रति‍ज्ञा : (उत्तेजि‍त भऽ) कए सकैए, चाची।
(सवारी लऽ कऽ चन्द्रिनाथक प्रवेश)

चन्द्रानाथ : चलै चलू। सवारी आबि‍ गेल।

तेसर दृश्य-

(अनन्तय कुमारक घर। दरबज्जाबपर एकटा चौकी राखल आ बगलमे कुरसीपर अनन्तन कुमार बैसि‍, आँखि‍ बन्न केने)
अनन्तनकुमार : (स्व।यं) दि‍नो-दि‍न जि‍नगी जपाल भेल जा रहल अछि‍‍। जे दि‍न जे क्षण बीत रहल अछि‍ ओ नरकक वास भऽ रहल अछि‍‍। मुदा मऽरबो तँ हाथमे नहि‍येँ अछि‍‍ अपने हाथे आत्मकहत्यो कोना कए लेब?

(चाह नेने शान्तीक प्रवेश। पति‍क हाथमे कप पकड़बैत शान्ती चौकी बगलमे ठाढ़। एक घोट चाह पीबि‍ अनन्तत कुमार शान्ती दि‍स देख‍।)

अनन्ताकुमार : जि‍नगी भार भऽ गेल। अकाजक अन्न सन देबकेँ हत्या करैत छी। नीरस बि‍ना रसक जि‍नगी कोकनल गाछ सदृश्यन होइत अछि‍‍। जे पि‍ल्लू‍, गराड़क घर बनि‍ जाइत अछि‍‍ तहि‍ना जि‍नगी बुझि‍ पड़ैए।
शान्तीछ : सोग केलासँ सोग थोड़े मेटाएत। सोग तँ समस्याककेँ जनम दैए। जे बि‍ना केने थोड़े मेटाएत?

अनन्त कुमार : जखने घरसँ नि‍कलै छी तखने रंग-वि‍रंगक अड़कच-बथुआ काचर-कुचर सुनए लगै छी। केकरा की‍‍ कहि‍औ। कते लोकसँ माथ चटाउ। ककरो मुँहमे जाबी लगौनाइ असान छी।

शान्ती : कते दि‍न मूड़ी गोि‍त समाजमे जीब?

अनन्तीकुमार : नीक हएत जे झब दए कल्याणीक वि‍आह करा दि‍ऐ। आन गाम गेलापर तँ लोकक बात नै सुनब। जहि‍ना पोखरि‍क पा‍नि‍क हि‍लकोर जे दू-चारि‍ दि‍नमे शान्तो भऽ जाइत छै तहि‍ना असथि‍र भऽ जाएत।
(चन्द्रइनाथक प्रवेश)

शान्ती : भने बउऔ आबि‍ऐ गेल। दुनू बापूत छीहे वि‍चारि‍ कऽ रास्ताे नकालि‍ लि‍अ।
चन्द्रानाथ : (अकचकाइत) कथीक रास्ता माए? कोन एहेन दुर्ग टूटि‍ कऽ खसि‍ पड़ल जे बाबूकेँ हम वि‍चार देबनि‍।
अनन्तरकुमार : बौआ, नीक की बेजाए, अपना परि‍वारमे नै बाजब तँ कतए बाजब। जखने गाम दि‍स‍ टहलै छी, सोझा-सोझी तँ नै मुदा अढ़ दाबि‍-दाबि‍ मौगि‍यो आ मरदो की बजैए तेकर कोनो ठेकान नै।

चन्द्रेनाथ : की बजैए?

अनन्तरकुमार : कि‍यो बजैए जे कल्या णी जहल जा कुल-खनदानक नाक-कान कटौलक। तँ कि‍यो बजैए जे केहन माए-बाप छै जे बेटीक वएस बीतल जाइ छै मुदा वि‍आह करैले नीने ने टुटै छै।
चन्द्रननाथ : बाबू, जहि‍ना दि‍नक उनटा राति‍ होइ-छै तहि‍ना नीक अधलाक बीच सेहो होइ-छै ज्ञान-अज्ञानक बीच सेहो होइ छै। धरतीपर ओतै अधलो अछि‍‍। हमरा बुझने तँ अधले बेसी अछि‍‍। कि‍ऐक तँ नीक एक्के तरहक होइ छै जहनकि‍ अधला अनेको रंगक-रावण, कौरबक सखा जकाँ।
अनन्तकुमार : ततबे नै ने इहो बजैए जे पढ़ा-लि‍खा कऽ बेटी तेहन बना लेलक जे चौक-चौराह पुरूखे जकाँ मुँह-कान उधारि‍ नि‍धोख भाषणो करैए।
चन्द्र नाथ : बाबूजी, हमर बहीन कुम्ह।रक बति‍या नै ने छी जे ओंगरी बतौने सड़ि‍ जाएत। जँ कि‍यो आँखि‍ उठाओत वा ओंगरी बतौत तँ ओकर आँखि‍यो फोड़ि‍ देबै आ ओंगरिओ‍ काटि‍ लेबै। अपन माए-वहीन‍ दि‍स देखह जे माटि‍क मुरूत बनौने अछि‍‍।
शान्ती : बौआ, हम दुनू परानी तँ पाकल आम भेलौं जाबे जीबै छी, ताबे जीबै छी। कखनी खसि‍ पड़ब तेकर कोन ठीक। मुदा तँू दुनू भाए-बहीि‍न तँ से नै छह। भगवान करथुन जे हँसैत-खेलैत शतायु हुअअ।

(कल्याहणीक प्रवेश)
अनन्तलकुमार : बेटी कल्याभणी, तोरा सभले ओइ गीरहकेँ तोड़ि‍ देलौं जै बंधनक बीच कन्या अज्ञानक काल-कोठरीमे जीबैत अछि‍‍।

कल्याणी : बाबूजी, जहि‍ना अहाँ समाजमे पहि‍ल डेग उठा नव फुलक गाछ रोपलौं तहि‍ना अहाँक आत्मास एक नै अनेक फुलक फुलवाड़ी लगौत।
शान्तीआ : बेटी, भगवान हमरो दुनू बेकतीक औरूदा तोरे दुनू भाए-वहीनकेँ देथुन। जाबे बच्चा छेलह ताबे जतए धरि‍ भऽ सकल सेवा केलि‍यह। आब तँ तोरे सबहक दि‍न-दुनि‍याँ भेलह, हम सभ तँ अस्ताफबल भेलौं।
कल्याणी : माए, नारीक संग अत्यादचार करैत-करैत पुरूख एहेन अभि‍यस्तभ भए गेल अछि‍‍ जे उचि‍त-अनुचि‍तक सीमे समाप्त भऽ गेल छै। जैसँ नारी खसैत-खसैत एते नि‍च्चाँग खसि‍ पड़ल अछि‍‍ जे स्वपरूपे समाप्तऽ भऽ गेल अछि‍‍।
अनन्तकुमार : (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ भऽ गेल अछि‍‍।
कल्याणी : बाबू, ई दु‍नि‍याँ कर्मभूमि‍ छी “‍वीर भोग्यात बसुंधरा” जे जेहन कर्म करत ओ ओहन फल पाओत। जहि‍ना डोरीक एक भत्ता अहाँ तोड़ि‍ हमरा अन्हाूरसँ इजोतक रस्ताछ खोललौं। तहि‍ना एक-एक भत्ता तोड़ि‍ नारी जगतक बन्धभन तोड़ि‍ देबै।
अनन्तंकुमार : बंधन तँ सक्कत अछि‍‍ मुदा ओकरा तोड़नहुँ बि‍ना तँ कल्या्ण नहि‍येँ अछि‍‍। मुदा ऐ‍‍ लेल ज्ञान, साहस आ धैर्यक जरूरत अछि‍‍।
कल्याऐणी : (मुस्कीन दैत) पौरूष सि‍र्फ पुरूखे लेल नै नारि‍योक लेल वि‍धाता देने छथि‍न। जरूरत अछि‍‍ ओकरा पकड़ेक। हमहूँ आब नावालि‍क नै बालि‍क भेलहुँ ततबे नै कि‍रि‍णक डोरसँ सुनि‍ सेहो देख‍ लेलहुँ। जहि‍ना सृष्टिक वि‍कासमे पुरूष-नारी समान अछि‍‍ तहि‍ना जाधरि‍ दुनूक बीच समानता नै आाअेत ताधरि‍ चैनक साँस नै लेब

अनन्तकुमार : बहुत कष्ट हएत?

कल्याणी : (हँसैत) “‍जीवन नया मि‍लेगा, अंति‍म चि‍ता मे जल के”। जहि‍ना भि‍नसुरका सूर्ज देखने दि‍नक अनुमान होइत अछि‍‍ तहि‍ना तँ नवालि‍कक आड़ि‍ हमहूँ जहलेमे टपलौं कि‍ने।

चारि‍म दृश्य-

(दरबज्जािक चौकीपर चद्दरि‍ ओढ़ि‍, मुँह उधारने अनन्ते कुमार पड़ल। पँजरामे शान्तील बैसल)

शान्तीब : (देह छुबि‍‍) बोखारसँ देह जरैए आ अहाँ जि‍द्द बन्ह‍ने छी जे रदबज्जाहपर सँ अंगना नै जाएब।
अनन्तकुमार : आइ धरि‍ परि‍वार अंगने भरि‍ रहल मुदा कल्याणी सन बेटी कुलमे जन्मज लेलक। जे आंगनसँ नि‍कलि‍ समाज रूपी परि‍वारमे रहए चाहैए, बाप होइक नाते हम दरबज्जों धरि‍ नै अरि‍आति‍ देबै।
शान्ती : कहलौं तँ ठीके मुदा माए-बाप, बेटा-बेटीकेँ जनमे ने दै छे करम तँ अपने काज करै छै।
अनन्तकुमार : हमरा ऐ परि‍वारक कोनो भार नै अछि‍‍ जहि‍ना बाबू दरबज्जान बना कए गेला तहि‍ना अंति‍म साँस धरि‍ दरबज्जाक रक्षा माने मान-सम्माआन करैत रहब।
(चन्द्रंनाथक प्रवेश)
चन्द्र्नाथ : (अवि‍तहि‍) बाबू कि‍अए, चद्दरि‍ ओढ़ने छि‍ऐ?

शान्ती् : बोखारसँ आगि‍ फेकै छन्हिभ। कतबो कहै छि‍अनि‍ जे पुरबा लहकै छी, चलू आंगन, से कहै छथि‍ जे अंति‍म समएमे दरबज्जाषपर प्राण छोड़ब। पुरबा-पछबाक काज छि‍ऐ। बहनाइ, बह-अ।
चन्द्र नाथ : बाबू, जे बात अहाँ आइ बजलौं से पहि‍ने कहाँ कहि‍यो बाजल छलौं।
अनन्तरकुमार : तोहर प्रश्न सँ हृदए जुरा गेल बौआ। माए छथुन तँ फुटल ढोल। भरि‍ दि‍न पनचैती केने घुरतीह जे सभ शान्तीसँ मि‍ल-जुलि‍ कऽ रहू। मूदा जहि‍ना शक्ति‍‍ बढ़ल जाइत अछि‍‍ तहि‍ना हि‍नकर पनचैति‍यो बढ़ल जाइ छन्हिह‍।

चन्द्रानाथ : (ठहाका मारि‍) हूँ-हूँ.....।
शान्ती : बुरहा तँ नीक-अधला सभ दि‍न कहलनि‍। जखन-जुआन रही तखन बरदास भेल आ आब तामस उठत। दुनि‍याँमे जँ कि‍यो संग पुरलनि‍ तँ सभसँ बेसी यएह ने पुरलनि‍। मुदा आब भगवान अन्या ए केलनि‍ जे पहि‍ने हमरा नै ओछाइन छड़ौलनि‍।
अनन्तकुमार : नीक हेतह जे कल्याणि‍यो केँ सोर पाड़ि‍ लहक।
(चन्द्रतनाथ भीतर प्रवेश। कल्यालणीक संग मंचपर प्रवेश।)

कल्याणी : बाबू, किछु होइए?

अनन्तकुमार : नै।
शान्ती् : की कहथुन। बोखारसँ देह जड़कै छन्हि ।
कल्याणी : कोनो दवाइ नै देलहुनहेँ?

अनन्तकुमार : दवाइ खाइबला रोग नै छी बेटी। मनमे एते खुखी आबि‍ गेल अछि‍‍ जे सौंसे देह हँसैए।

कल्याणी : (मने-मन सोचैत। मुँहक पोज सुख-दुखक यएह अवस्था छी) माए कि‍छु कहै छथि‍ अहाँ कि‍छु कहै छी? (आवेशमे अबैत) कि‍अए बजेलौं?

अनन्तकुमार : कतए गेल छेलह?

कल्याकणी : महि‍लाक एकटा बैसारक आयोजन करए चाहै छी जै‍मे वि‍धवा समस्याक संबंधमे वि‍चार करब।
अनन्तकुमार : ई तँ छोट समस्या छह। अखन नव उत्साछह छह पैघ समस्याकेँ नजरि‍मे रखि‍ डेग उठाबह।
कल्या।णी : (वि‍स्मि‍‍त होइत) कोना ऐ‍‍ समस्याबकेँ छोट समस्याड कहै छि‍ऐ।
अनन्त।कुमार : भने तँ समाज दि‍स डेग उठेबे केलह, बुझवे करबहक। मुदा पहि‍ने समाजकेँ पढ़ए पड़तह। (उठि‍ कऽ बैसैत) चद्दरि‍ उताड़ि‍ सि‍रमापर रखि‍ दुनू पाएर मोड़ि‍ कए बैसैत सभ कि‍यो एकठाम बैसह।
(चारू गोटे चौकीपर बैस जाइत अछि‍‍।)
अनन्तकुमार : सभकेँ अपन परि‍वारमे, एक सीमा धरि‍ लाज-वि‍चार करक चाही माइये छथुन पहि‍ने हि‍नका वि‍षएमे सुनि‍ लाए।
(पति‍क बात सुिन शान्तीस देह-हाथ समेटि‍ सांकांक्ष होइत बैइसैत। चन्द्रिनाथ मूड़ी गोति‍ लेलक। कल्यासणी पि‍ताक आँखि‍पर आँखि गड़ा लेलक।)

अनन्तकुमार : जहि‍यासँ माए एलखुन तहि‍यासँ जि‍नगीक अंति‍म पड़ाव धरि‍ संगे छी। गुण-अवगुण मनुष्यिमे होइते अछि‍‍। मुदा सदति‍काल दुनूपर नजरि‍ रखि‍ गुणकेँ बढ़बैक आ अवगुणकेँ कम करैक कोशि‍स करैक चाही। जै‍सँ नीक रास्ताँ पकड़ि‍ आगू बढ़ब।
कल्याणी : ई तँ बड़ कठि‍न काज छी, बाबू।
अनन्तकुमार : (मुस्की दैत) हँ, ई वि‍वेकक काज छी। अही दुआरे मनुष्य सभ जीवसँ उपर भेल। ओना उपर होइक दोसरो कारण ई अछि‍‍ जे धरतीपर जते जीव-जन्तुं अछि‍‍ तै‍मे मनुष्यर अंति‍म रूप छी।

कल्याणी : माइक चरचा करए लगलि‍ऐ?

अनन्तकुमार : हँ। देखहक, ऐ धरतीपर अनेको लोक अछि‍‍। जेकर सीमा नि‍र्धारि‍त कर्म आ ज्ञान केने अछि‍‍। ऐ‍‍ अर्थमे माए बहुत दूर छथुन। मुदा अहूँ अवस्थाकमे आत्माि माने वि‍वेक सएह कहैए जे अखनो धरि‍ दोसराक पैतपाल करैक शक्तिद‍ छन्हि ।
चन्द्रैनाथ : (मूड़ी उठा) एते दि‍न कि‍अए......?

अनन्तकुमार : हँ, ठीके तँ पूछए चाहै छह। जहि‍ना माली, बि‍ना फूलक बीआ देखनहुँ पात देख‍, बुझि‍ जाइत अछि‍‍ जे ई अमुक फूलक गाछ छी। तहि‍ना कल्याणीकेँ देख‍ वि‍वेक जगि‍ गेल।
चन्द्रैनाथ : एते दि‍न वि‍वेक सुतल छलै?

अनन्तकुमार : नै बौआ, जहि‍ना आमक गाछक जड़ि‍मे जनमल तुलसी गाछक बाढ़ि‍ ठमकि‍ जाइत अछि‍‍ तहि‍ना ठमकि‍ गेल छलै। मुदा कल्यागणीक आँखि‍क ज्यो ति‍ जहि‍ना सुनयनाक बेटी सीताक छलनि‍ तहि‍ना बुझि‍ पड़ैए। तँए अनायास वि‍वेक पोनगि‍ गेल।
कल्यणी : माए, बाबूक संग अहूँ असि‍रवाद दि‍अ।
शान्ती : अखन धरि‍ जे डीह, पुरखाक कएल काजक इति‍हास छी ओकरा जीबि‍त दुनू भाए-वहीन मि‍ल राखब।
कल्यामणी : झाँपल-तोपल बात अहाँक नै बुझि‍ सकलौं।

शान्ती : हम तँ बेसी-बि‍सरि‍ये गेलौं। बाबूए कहथुन।

अनन्तीकुमार : बेटी कल्यापणी, पहि‍ने परि‍वार बुझि‍ लहक। तँ दुनू भाए-वहीन‍ छह। जहि‍ना तँ घरसँ नि‍कलि‍ दोसर घर जेबह तहि‍ना दोसरा घरसँ अपनो घर औतीह। ऐ‍‍सँ मनुष्यीक स्थातनान्तार (ट्रान्जे‍क्शघन) शुरू भेल। ओना अपनो परि‍वारमे लड़का-लड़की होइत (जन्म‍) अछि‍‍, कि‍अए दोसर परि‍वारसँ संबंध जोड़ल जाइत अछि‍‍?

(चन्द्र नाथ बहीि‍न दि‍स हाथ बढ़ौलक, कल्या णी भाइक हाथमे हाथ रखलक। माटि‍क मूर्ति जकाँ अनन्तछकुमार देखैत। अपने मने शान्ती बरबराए लगलीह)
शान्ती : सासु-ससुरक बनौल परि‍वारकेँ अखन धरि‍ नि‍माहि‍ रहल छी। जहि‍ना बूढ़ा दुआरपर आएल अभ्यारगतकेँ बि‍ना हँसौने नै जाइ दै छेलखि‍न तहि‍ना अखन धरि‍ नि‍माहल।
कल्याभणी : ई तँ काजक भार भेल, माए। मुदा असि‍रवादो ने चाही?

शान्ती : बेटी, सामाक माए-बाप जकाँ, तोहर माए-बाप नै छथुन। जहि‍ना सामाक लेल चकेबा सभ कि‍छु त्यातगि‍ संग पुरलक तहि‍ना तोरो भाए करथुन।
(चन्द्र नाथकेँ भारसँ दबैत देख‍ अनन्ता कुमार)
अनन्तकुमार : हँ, कहै छेलि‍यह। जहि‍ना कम्पोीजि‍ट (शंकर) बीज उन्नति‍शील होइत तहि‍ना मनुष्योहक प्रक्रि‍या अछि‍‍। (बात बदलैत) सदति‍काल माए माथ खोड़ैत रहै छथुन जे कि‍अए बेटीक (कल्यािणीक) वि‍आह अनठौने छी। मुदा हम अनठौने कहाँ छी।

कल्याणी : (आँखि‍लाल केने) बाबू......।
अनन्त कुमार : (मुस्कुराइत) बेटी हुनको वि‍चार अधला नहि‍ये छन्हि‍‍। बेटीक प्रति‍ माएक ममता वेसी होइ छै। मुदा पि‍रवारमे वि‍आह साधारण काज नै छी। तहूमे अखन, सभ तरहक संक्रमणक प्रक्रि‍या चलि‍ रहल अछि‍‍।
चन्द्रणनाथ : की संक्रमण?

अनन्तकुमार : पहि‍ने अपन इति‍हास बुझि‍ लाए। अदौमे स्वणयंवर प्रथाक चलनि‍ छल। जहि‍क माध्यरमसँ माए-बाप बेटा-बेटीकेँ भार दऽ देलकनि‍। मुदा आइ की देखैत छहक जे तते ओझरी लगि‍ गेल जे जते सोझरबैक रस्ताक अपनौल जाइत अछि‍‍ ओते ओझरी बेसि‍आइये जाइ छै।

कल्याणी : बाबू, हमहूँ अबोध बच्चाप नै छी बालि‍ग भेलहुँ। तँए......।
अनन्तकुमार : बि‍ल्कुँल ठीक सोचै छह। जखन महि‍लामे पेंइतालीस-पचास बर्ख धरि‍ सन्तान उत्प न्न करैक शक्तिग‍ रहैत अछि‍‍ तखन कम उम्रमे वि‍आह तँ बड़ जरूरी नहि‍ये भेल?

कल्याशणी : असि‍रवाद ‍दि‍अ। समाजक बीच कि‍छु करैक ि‍जज्ञासा भऽ गेल अछि‍‍।
अनन्तकुमार : बेटी, हृदएसँ असि‍रवाद दै छि‍अह। जहि‍ना अदौमे कोनो अछुत जाति‍ जखन कोनो गाममे प्रवेश करैत छल तखैन कोनो एहेन बाजा बजबैत छल जे लोक बुझि‍ जाइत छलै।

कल्या णी : (चकोना होइत) की कहि‍ देलि‍ऐ?

अनन्त कुमार : पुरना गप कहलि‍यह। आब तँ गीताक युग एलै। तँए जहि‍ना कृष्णद कुरूक्षेत्रमे शंखक अवाजसँ अपन जानकारी दैत छलखि‍न्हल। तहि‍ना......।
कल्याणी : (आँखि-कान चकोना करैत चारू भाग देख‍) कने बुझा कऽ कहि‍यौ?

अनन्तअकुमार : समाजमे कि‍छु करए चाहै छह तँ काल्हि‍ये बेरू पहर दुर्गास्था नमे बैसार करह।
कल्याअणी : काल्हिा‍सँ नीक जे रवि‍ दि‍न बैसार करब नीक रहत। ओइ‍‍मे नोकरि‍यो चाकरि‍यो सभ रहताह।
अनन्त।कुमार : नोकरी-चाकरी कए कऽ जे गामक नास केलक ओकरा बुते गाम बनौल हएत। जहि‍ना भि‍नसुरके सूर्य देखलासँ दि‍न भरि‍क अनुमान लोक कऽ लैत अछि‍‍ तहि‍ना मनुक्खवक कि‍रदानि‍ये देख‍ कऽ मनुक्खोकेँ ि‍चन्हहए पड़तह।
कल्याणी : हुनका बुते कोना गामक वि‍चार कएल हेतनि‍।
अनन्तकुमार : (खि‍सि‍या कऽ) दि‍ल्ली‍ सरकारमे सभसँ बेसी बि‍हारक रेलमंत्री भेलाह। मुदा की देखै छहक? जकरा तँ अबोध कहै छहक ओकर जि‍नगि‍यो छोट छै। जि‍नगीक समस्योी कम होइत अछि‍‍।

कल्याणी : अखने जा कऽ ढोलि‍याकेँ ढोलहो दैले कहि‍ अबैत छि‍अनि‍। साँझू पहर ढोलहो दऽ देब।

पाँचम दृश्य‍-

(दुर्गास्था्नक आगूमे एक भाग पुरूष एक भाग महि‍ला बैसल। एकटा डायरी, पेन नेने महि‍ला दि‍ससँ आगूमे कल्यामणी-प्रति‍ज्ञा। पुरूष दि‍ससँ सूर्यदेव, क्षि‍ति‍जदेव, नि‍सकान्त बैसल।)
सूर्यदेव : आजुक बैसारक लेल कल्यागणी आ प्रति‍ज्ञाकेँ हृदएसँ शुभकामना दैत छि‍अनि‍ जे एकटा नव परम्पकराक शुभारंभ केलनि‍। आशा संग आगू बढ़ति‍ सएह शुभकामना।
कल्यानणी : भाय सहाएब, अहाँ सभ तरहेँ अगुआएल छी तँए आगूक बाटक जते ज्ञान अहाँकेँ अछि‍‍ ओते हम थोड़े बुझै छी।
(बि‍चहि‍मे नि‍सकान्तक)
नि‍सकान्त : सुरजू भाय, हमरो बात सुि‍न लि‍अ। काल्हि‍ये दुनू परानीक झगड़ाक पनि‍चैतीमे गेल छलौं। बेचारा वि‍सनाथकेँ देखते छि‍ऐ जे डेढ़ सौ रूपैयाक कमाइ घर जोड़ैयामे करैए। सभ दि‍न कमा कऽ अबैए आ घरवालीक हाथमे दऽ दैत छै। घरवाली केहेन जे टी.भी. कीनैले पाइ जमा करैत जाइए। रौद-बसातमे काज करैबलाकेँ एकटा गंजीसँ थोड़े पाड़ लगतै। तैले घरवाली पाइये ने दैत अछि‍‍।
कल्याणी : (मूड़ी डोलबैत) की पनचैती केलि‍ऐ?

नि‍सकान्त : सँए-बहूक झगड़ा पंच लबरा। हम नै बुझै छि‍ऐ जे पावरक लड़ाइ छी। दुनू गोटेकेँ थोड़-थाम लगा देलि‍ऐ। दू वि‍चारक लड़ाइ हमरे बाप बुते फड़ि‍आएल हएत।
सूर्यदेव : अच्छाै एकटा कहऽ जे दुनू गोटेमे घरक गारजन के छी?

नि‍सकान्त : उँ-हूँ सौंसे गामेमे सबहक घरमे मौगि‍ऐक जुति‍ अछि‍‍। एहेन जे लोकक दशा भेल छै से कि‍अए? कमाइ छै कोइ, हुकुम ककरो। कोनो घर आकि‍ कोनो गाम, जाबे मरदक जुति‍मे नै चलत ताबे ओहि‍ना गाम आगू मुँहे ससरि‍ जाएत।
कल्याणी : कवि‍लाहाक खेल देखबै। दि‍न पनरहम गुरूकाका कानि‍ कानि‍ कहैत रहथि‍ जे सभ दि‍न परदा-पौसकेँ मानलौं। पुतोहू जनीकेँ बेटा नोकरी लगा देलकनि‍। दस कोसपर स्कूल छन्हि । दुनू परानी भि‍नसरसँ खाइ-पीबै राति‍ धरि‍ घुमि‍ कऽ अबै छथि‍। बेटा तँ बेटा भेल मुदा पुतोहूक सेवा सासु कहनि‍, ई हमरा पसन्दि नै अछि‍‍?

सूर्यदेव : ई नै पुछलहुन जे समए एना कि‍अए भेल?

नि‍सकान्त : आठ घंटा खटनीक बाद जे समए बचैए- ततबे ने समाजमे समए लगाएब ओते जे पुच्छा-पुच्छी करैए लगब, से ओते नि‍चेन रहै छी।
कल्याणी : भैया, नारीकेँ बराबर अधि‍कारक हवा चलि‍ रहल अछि‍‍ से की?

सूर्यदेव : मदारी सबहक खेल छी। नारी, पुरूषसँ हीन कोना बनैत गेल? जाधरि‍ ऐ‍‍ इति‍हासकेँ नै देखब ताधरि‍ कारण कोना पाएब। ककरोसँ अधि‍कार मंगबै? ऐ‍‍ लेल वि‍कासक प्रक्रि‍याकेँ नीक जकाँ बुझए पड़त

कल्याणी : काज कोना शुरू कएल जाए, भाय।
सूर्यदेव : बहुत बातक जरूरत अखन नै अछि‍‍। मुदा कि‍छु बात कहि‍ दैत छी। पहि‍ल-नारीकेँ चि‍न्हीए लेल नजरि‍ ओतऽ दि‍अए पड़त जइठाकम हवाइ जहाजमे उड़ैत, इलाइची फोड़ि‍-फोड़ि‍ मुँहमे दैत जि‍नगी अछि‍‍ तँ दोसर दि‍स‍ भरि‍-भरि‍ छाती पानि‍ टपि‍ (खच्चाो, धार) भीजल कपड़ा पहीरि‍ गोबर बि‍छैक जि‍नगी अछि‍‍।

कल्याणी : (नम्ह र साँस छोड़ैत) अद्भुत बात भाय अहाँ कहलौं।
सूर्यदेव : कल्या णी, अहाँ अखन फुलाइत फुलक कली छी। तँए जरूरत अछि‍‍ शुद्ध माटि‍-पानि‍क। प्रत्ये्क साल समाजमे माने गाममे साएसँ उपर आन गामक बेटी अबैत छथि‍। गामक बेटी‍ जेबो करैत छथि‍। प्रश्नआ उठैत सि‍र्फ देहेटा अबैत-जाइत आकि‍ लूरि‍-बुद्धि‍ सेहो अबैत जाइत अछि‍‍।
कल्याणी : अखन तँ आरो वि‍कट भऽ गेल अछि‍‍ जे देशक एक कोनसँ दोसर कोनमे रहनि‍हारक (पालल-पोसल) बीच संबंध स्थालपि‍त रहल। जैसँ खान-पान, बात-वि‍चार लूरि‍-ढंग सभ टकरा रहल अछि‍‍।
सूर्यदेव : एहि‍ना खाइ-पीबैमे देखि‍यौ। एक आदमीक (परि‍वारक) एक दि‍नक खर्च जते होइत अछि‍‍ दोसर दि‍स ओहन परि‍वारक भरमार अछि‍‍ जै‍ परि‍वारमे दसो-बर्खक आमदनी ओते नै छै। ककरो असली नोर चुबै तब ने से तँ पि‍औजक झाँसक नोर चुबबैए।

कल्याणी : खेती-बाड़ीक की स्थिक‍ति‍ अछि‍‍?

सूर्यदेव : सरकार मेला लागल। गाममे चारि‍टा ट्रेक्टचर चलि‍ आएल। एक तँ बाढ़ि‍मे बारह आना बड़द गाममे मरि‍ गेल, दोसर जे चारि‍ आना बचल ओहो सभ गोबर उठबै दुआरे बेचि‍ लेलनि‍। अखन गाममे एकोटा बड़द नै अछि‍‍। ले बलैया ट्रेक्ट र कदबामे सकबे ने करै छै। खेती कोनो हएत?

कल्याणी : अजीव-अजीव बात सभ कहै छी, भैया?

सूर्यदेव : कते कहब वहीन‍। जते खर्चमे पहि‍ने लोक प्रोफेसर बनै छलाह तते अखन बच्चा क स्कूयलमे खर्च हुअए लगल अछि‍‍। ककर बेटा पढ़त। शि‍क्षा केहन भऽ गेल अछि‍‍ धोती-कुरताबला अ पेन्टग-कोटबला अपनामे रगड़ केने छथि‍ जे हम नीक तँ हम नीक। के फड़ि‍औत? जहनकि‍ प्रश्नर नान्हि‍‍टा अछि‍‍ जे जै‍सँ जि‍नगी नीक-नहाँति‍ आगू मुँहे समएक संग ससरै।

प्रस्थासन, पटाक्षेप। समाप्त।

साभार- वि‍देह प्रथम मैथि‍ली ई पाक्षि‍क ई प्रत्रि‍का

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