Wednesday, August 24, 2011

प्रकाश चन्द्र झा : मैथिली रंगकर्ममे थ्री-इन-वन- महेन्द्र मलंगिया

प्रकाश चन्द्र झा : मैथिली रंगकर्ममे थ्री-इन-वन- महेन्द्र मलंगिया

प्रकाश झा
१९७५ ई. मे हम जुआयल कनकनी नामक एकटा नाटक लिखने रही, जे ओही साल प्रकाशित भेल रहय । एहि नाटकक प्रसंगमे मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार जीवकांतजी अपन प्रतिक्रिया व्यक्त करैत लिखने रहथि – मलंगियाजी, मिथिलांचलमे एखन ओहन अभिनेता नहि जन्म लेलक अछि, जे एकर तेजकेँ सम्हारि सकत । ई बात हम अपनहुँ महसूस कएने रही आ तहिए सँ हमर आँखि एहि बातक खोज करैत रहल, जे ओहि नाटकक अनुरूप कोनो अभिनेता भेटितए ।
ओना मिथिलांचलमे अभिनेताक कमी नहि रहलैक अछि, मुदा सभक जिनगी अल्पकालीन । किएक तँ एहिठाम एकरा टाइमपासक रूपमे देखैत अछि । तेँ जहाँ कतहु नोकरी भेटि गेलैक कि ओ रंगकर्म केँ तिलांजली द’ दैत अछि । दोसर कोनो गार्जियन ई नहि चाहैत छैक, जे हमर बेटा रंगमंचसँ जुड़ल रहय । किएक तँ मैथिली रंगमंच केँ ओ सामर्थ्य नहि छैक जे ओकरा रोजी – रोटी द’ सकतै । तेँ रंगमंच के छोड़’ बाला नाम अनगिनत अछि आ जुटल रह’ बाला नाम आँगुरे पर गनल । एहन आँगुरेपर गन’ बाला नाम अछि – अभिषेक, चन्द्रशेखर, मुकुल, संतोष ( मधुबनीसँ ), रवीन्द्र, ओमप्रकाश, रंजू, प्रियंका ( जनकपुरसँ ), संजीव, किशोर केशव, गुड़िया, स्वाति, जितेन्द्रनाथ, प्रियंका ( पटनासँ ), मुकेश, उत्पल, प्रकाश, ज्योति, जीतू, कमल, दुर्गेश, भास्करानंद ( दिल्लीसँ ) आदि ।
एहि सभमे प्रकाश कहिया हमरा भेटल - स्मरण नहि अछि, मुदा एतेक धरि अवश्य स्मरण अछि, जे ओ कहने रहय-
“सर, हमर घर घोंघौर अछि आ हम आर. के. कॉलेज मधुबनी में पढैत छी” ।
“ कोन कक्षामे ?”
“ बी.एस सी.क फर्स्ट पार्टमे ” । हमरा दिससँ कोनो प्रतिक्रिया नहि अएबाक कारणें किछु कालक बाद पुन: बाजल –
“ हम नाटकसँ सेहो जुड़ल छी ” ।
“ कोन संस्थासँ ?”
“ मधुबनी इप्टासँ ”
“ बहुत खुशीक बात ”
प्रकाश कोन अपेक्षा ल’ क’ हमरा लग आएल रहय से ओ ने कहि पओलक आ ने हम बूझि सकलिऎ । मुदा, एतेक अवश्य जानकारी भेटैत रहल जे नुक्कड़ नाटककेँ मधुबनी जिलामे बहुत लोकप्रिय बना देलक अछि । एक्केटा बिजुलिया भौजीक पचासटा शो कएलक अछि आ सभमे एकर अनिवार्य सहभागिता छैक । मुदा, ई हमर दुर्भाग्य रहल जे एकर एकोटा शो हम नइ देख सकलिऎ । तथापि एतेक विश्वास भैए गेल जे नाटकक प्रति एकर लगन बेजोड़ छैक ।
हमहूँ रहबे कएलहुँ आ इहो नाटक करिते रहल आ तखन जँ मंच पर भेट नइ होइतए तँ इहो असंभवे बाला बात भ’ जइतै । से भेलैक नहि, एकरासँ मंचपर भेट भैए गेल, मुदा कहिया से स्मरण नहि अछि । हँ, एतेक अवश्य स्मरण अछि जे प्राय: 1995 ई. मे मिथिला सांस्कृतिक पर्व समारोहक अवसर पर हमरे नाटक ओरिजनल कामक मंचन नगर भवन, मधुबनीमे होइत रहय । हमहूँ आमंत्रित रही । जाहि मे दरोगाक भूमिका प्रकाशे केने छल । ओहि नाटकमे ई प्रशंसाक पात्र बनल रहय जकर उल्लेख दैनिक जागरण आ दैनिक हिन्दुस्तान सेहो कएने रहैक । किछु दिनक बाद गाम नइ सुतैए’क मंचन देखलियैक ओहो मे गामक तीनटा बिगड़ल युवकमे सँ एकटा बिगड़ल युवकक भूमिका यैह कएने छल । ओही दुनू मे कयलगेल अभिनयक बदैलत ई हमरो मोन मे बैसि गेल । बादमे बिहार सरकार युवा मंत्रालय, पटना दिस सँ आयोजित कार्यक्रम मे एक बेर फेर हमरे लिखल नाटक हमरो जे साम भैयाक मंचन नगर भवन, मधुबनीमे होइत रहय । हमहूँ आमंत्रित रही । जाहि मे चारुवक्य के भूमिका मे प्रकाश रहै । मंचपर एकरा देखलाक बाद हमरा बड़ अपसोच भेल रहय जे जीवकांतजी एहिठाम नइ छथि । ओ जँ आइ एहिठाम रहितथि तँ एकर अभिनय देखिक’ निश्चित अपन बात घुरा लितथि जे ‘मिथिलांचलमे एखन ओहन अभिनेता नहि जन्म लेलक अछि’ । बहुत विलक्षण आ मुग्ध कर’ बाला अभिनय कएने रहएअ । तेँ हमरा कह’ पड़ल जे चारुवक्य के भूमिका एहन दोसर नइ क’ सकैए ।
एकर बाद करगिल समस्यापर आधारित नाटक दुलहा पागल भ’ गैलै मे सेहो अभिनय कएलक जे हम नइ देख सकलिऎक । हँ, मधुबनीक डिप्टी कलक्टर श्री दीपनारायण सिंह जी सँ जखन बात भेल तँ कहलनि जे खासक’ प्रकाशचन्द्र बड्ड नीक अभिनय कएने छल ।
ओना एहि बातक घमर्थन कखनो-कखनो उठिए जाइत अछि जे अभिनेता तँ निर्देशकक हाथक कठपुतली होइत अछि । ओकरा जेना-जेना निर्देशक कहैत छैक तेना-तेना ओ मंचपर करैत अछि । जँ इएह बात सत्य छैक तँ एक्केटा भूमिका जखन दू आदमी करैत अछि तखन किएक ककरो नीक आ ककरो बेजाए भ’ जाइत छैक ? एहि आधार पर तँ सृजनात्मक प्रतिभा अपन होइत छैक से मानहिटा पड़त । आ तेँ ओ ओहन चारुवक्य क सृजन कएने रहय ।
फेर 2005 ई. मे रामाननद युवा क्लब, जनकपुर धाम ( नेपाल ) द्वारा आयोजित नाट्य समारोह मे नेपालक अतिरिक्त कोलकाता , दिल्ली, दरभंगा आ मधुबनीक टीमसभ भाग लेने छल । मधुबनीक यात्री संस्था , दिल्लीक यात्री संस्थाक रूप मे प्रवेश पओने छल । कारण , ओहि समयमे अधिकांश यात्रीक अभिनेतासभ दिल्लीए मे रहैत छल तेँ किछुए नवकेँ समावेश कर’ पड़लै आ काश्यप कमलक नाटक गोरखधंधा तैयार भ’ गेलै । एहि नाटक मे ओ सूत्रधारक भूमिका कएने रहय जे काफी चर्चित रहलै ।
मैथिली रंग जगतमे नव पीढीक कतेको लोक छथि, जे लगातार काज क’ रहल छथि मुदा, ओहि जमातमे प्रकाश कतेको कारणे सभहक ध्यान अपना दिस खींचैत अछि । एक त’ अपन रंग कालमे , प्रकाशक रंग प्रवाह बड्ड महत्वपूर्ण छैक । दोसर ई जे – प्रकाशक द्वारा जराओल गेल सर्वरंग अभियानक दीपक जे प्रभाव मैथिली रंग जगत पर पड़ल अछि ओ आरो बेसी प्रशंसाक पात्र छैक । प्रकाशक रंग प्रवाहक शुरुआत मिथिलाक एकटा छोट छीन गाम घोंघौर स’ शुरु होइत छैक । अपन नेनपने सँ गामक रंगमंच सँ जुड़ैत, अपन जिला मधुबनीक नगर इप्टाक कार्यालय सचिव बनल आ इप्टा मे एकर पाँच सालक कार्यकाल अखन तक के ओकर स्वर्णकाल कहल जा सकैत छैक । ओत’ सँ निकलिक’ विश्वविद्यालय स्तर पर अभिनय मे प्रथम सम्मान सँ सम्मानित होइत राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली मे प्रवेशक चयन प्रक्रियाक अंतिम प्रक्रिया तक शामिल भेल । ओहो कोनो नामी-गिरामी निर्देशकक संग कार्य करबाक अनुभवक बिना । फेर संगीत नाटक अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा प्रशिक्षण ल’क’ ओकरे बाकी कार्यशाला मे कार्यशाला सहायकक रूप मे कतेको राज्य मे अपन ज़िम्मेदारी केँ सफलतापूर्वक निभाबैत, साहित्य कला परिषद, दिल्लीक रंगमण्डल सँ गुजरैत, सॉग एण्ड ड्रामा डिविजन, नई दिल्ली मे कैजुअल आर्टिस्टक रूप मे चुनबैत आई राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नाई दिल्ली द्वारा अखिल भारतीय स्तरक श्रेष्ठतम रंगशोध पत्रिका रंग प्रसंगक संपादन सहयोगीक रूपमे अपन महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभा रहल अछि । ई त’ छल प्रकाशक अपन रंगपक्ष , जे कि हमरा सभ केँ सीधे-सीधे देखाइत अछि । जे दोसर रूप छै ओ ई जे मधुबनी सन छोट जगह मे प्रकाश जे रंगदीप जरौलक अछिओकर परिणाम ई छैक जे आई एहि छोट शहर मे सात-सात टा रंगकर्मी रंगकर्म मे प्रशिक्षणक लेल राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति ल’ चुकल अछि । कतेको रंगकर्मी राष्ट्रीय स्तरक रंगप्रशिक्षण संस्थान सँ प्रशिक्षण प्राप्त केलन्हि अछि ।
2006 ई. मे मैथिली लोक रंग, दिल्ली ( मैलोरंग ) त्रिदिवसीय नाट्य सहोत्सवक आयोजन कएने रहय जाहिमे सहरसा, पटना आ दिल्लीक टीम ( मैथिली लोक रंग ) भाग लेने रहैक । ई तीनू टीम क्रमश: कनियाँ-पुतरा, पारिजात हरण आ काठक लोक क्रमश: उत्पल झा, कुणाल तथा प्रकाश झा क निर्देशनमे प्रस्तुत कएने रहय । उत्पल झा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली सँ उत्तीर्ण छात्र, कुणाल केँ दस-पन्द्रह नाटकक निर्देशनक अनुभव आ प्रकाश झा केँ अभिनय छोड़ि निर्देशनक कोनो अनुभव नहि । तेँ लागल जे एहि दुनू निर्देशकक बीचमे प्रकाश ओहिना दरड़ा जाएत जहिना जाँतक दुनू पट्टाक बीचमे दालि । मुदा से भेलैक नहि, प्रकाश झा आँकड़ जकाँ अड़ले रहि गेल । प्रेक्षक गुम्मी लाधिक’ नाटक देखैत रहलाह । मुदा, जत’ हँस’क अवसर छलैक ओत’ हँसबो कएलाह ।
नाटक समाप्त भेलाक बाद प्रकाश दू शब्द कहबाक हेतु हमरा मंच पर बजा लेलक । ओ किएक हमरा बजौलक तकर अनुमान एहि रूपमे लगौलिऎक – प्राय: नाटक मे कएल गेल किछु फेर-बदलक मादे किछु कहताह । मुदा ताहि प्रसंगमे हम किछु कहि नइ सकलिऎक । कारण, प्रेक्षक हमर मुँह बन्द क’ देने छल । तेँ हम ई बात कहबाक लेल बाध्य भ’ गेल छलहुँ जे दुलहन वही जो पिया मन भाए अर्थात नाटक वएह नीक वा निर्देशक वएह नीक जकरा प्रेक्षक गम्भीरता सँ देखलक आ बुझलक । एतेक कहलाक बाद ओ राम गोपाल बजाज जी केँ बजा लेलकनि । हुनका मंचपर बजएबाक दूटा कारण भ’ सकैत अछि – पहिल, ओ भारतीय रंगमंचक एकटा दिग्गज रंगकर्मी छथि जे मिथिलांचलक सपूत छथि आ दोसर, पहिल बेर निर्देशनक क्षेत्रमे आयल छल तेँ हुनक आशीर्वाद प्रकाशक लेल आवश्यक छलैक । तेँ बजाजजी मंचपर अएलाह आ हमर बातक समर्थन करैत कहलथिन – मलंगियाजी जे बात कहलनि अछि ताहिसँ हम सहमत छी । प्रकाश केँ जखन दर्शके सर्टिफिकेट प्रदान क’ देलकै तखन हम ओहिपर हस्ताक्षर नइ करिऎ से उचित नइ होएत ।
एहि प्रस्तुति के देखलाक बाद हिन्दीक युवा आ संवेदनशील रंगदृष्टि रखनिहार रंग समीक्षक संगम पाण्डे जनसत्ता में लिखने रहथि -
... मंच पर ये सभी पात्र चरित्र के कई बारीक विन्यासों के साथ दिखाई देते हैं । उनके भदेस में कहीं भी कुछ बनाबटी नहीं लगता । और यही वजह है कि कथावस्तु में स्थितियाँ कई बार दोहराई जाकर भी अपनी रोचकता नहीं खोतीं । मंच पर पीछे की ओर दाएँ मंदिर का चबूतरा है । बाईं ओर एक पूरा का पूरा वृक्ष, और चबूतरा एक पूरा परिवेश बनाते हैं । इस परिवेश में साधु की पीतांबरी वेशभूषा एक दिलचस्प कंट्रास्ट बनाती है” ।
संगम पाण्डेक उपर्युक्त कथन निश्चित रूपे प्रकाशक नाट्य निर्देशक संग ओकर मंच परिकल्पना आ वस्त्र विन्यासक दृष्टिक सेहो मजबूती प्रदान करैत छैक ।
2005 ई. मे स्वास्ति फाउण्डेशन, दिल्ली हमरा प्रबोध साहित्य सम्मान देने छल, जे कलकत्तामे प्रदान कएल गेल । उक्त सम्मानक अवसर पर डॉ. उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ द्वारा रचित एक छ्ल राजा नामक नाटकक मंचन कोकिल मंच, कोलकाता द्वारा कएल गेल छल । हमरा बगलमे बैसलि हमर पत्नी जिनका साक्षर मात्र कहल जा सकैए पूछि बैसलीह
“कखन नाटक समाप्त होएतैक” ?
एहिपर हम कहलिएनि जे एक चौथाई बाँकी अछि । अवलोकनजन्य थकान सँ ओ अपने-अपने बाजि उठलीह
“एह, तखन तँ आधा घंटा सँ बेसिए बैस’ पड़त” ।
आब कोनो प्रेक्षकक मुँहसँ निकलल “बैस’ पड़त” शब्द नाटक प्रदर्शनपर एकटा पैघ प्रश्नचिन्ह लगबैत अछि ।
इएह सम्मान 2007 मे मयानन्द मिश्र केँ भेटलनि । ओहि सम्मानक अवसरपर डॉ. नचिकेता द्वारा रचित नायकक नाम जीवन, एक छल राजा , रामलीला, प्रत्यावर्तन आदिमे सँ कोनो एकटा नाटकक मंचन होएबाक चाही से विचार कएल गेल छल । संगहि स्थान बदलिक’ दिल्ली पर मोहर लागि गेल छल । उक्त आयोजनक सम्पूर्ण अभिभारा प्रकाश चन्द्र झा केँ भेटल छलैक । तेँ ओ नचिकेताक सभ नाटक मंगौलक । गम्भीरता सँ पढलक आ अंतमे एक छल राजापर आबिक’ केन्द्रित भ’ गेल ।
नचिकेताक जतेक नाटक छैक ओहिमे सँ सभसँ नीक नाटक एक छल राजा अछि जे प्राय: 1970 क दसकमे प्रकाशित भेल रहैक । एकरा जँ एना बूझी तँ कहि सकैत छी जे जहिया प्रकाश जन्मों नहि लेने होयत तहिए ई नाटक प्रकाशित भेल रहैक । तेँ जतेक जे एहि नाटकक मादे प्रकाशित भेल छल होएतैक ताहिसँ ओ परिचित नहि छल । तथापि ओहिमे सँ एक छल राजा केँ चूनि लेलक से ओकर निर्देशकीय दृष्टिक प्रमाण दैत छैक । कारण, निर्देशक वास्ते नाटक चयन एकटा अहम मुद्दा रखैत छैक ।
जँ सत्य पुछल जाए तँ ओ नाटक प्रकाश चन्द्र झाक हेतु एकटा चुनौती भरल काज छलैक । एखन धरि जतेक निर्देशक ओकरा प्रस्तुत कएने छल ओकरा कओमा आ पूर्णविराम सहित मंचपर उतारि दैत छल तेँ प्रेक्षककेँ पुछ’ पड़ैत छलैक जे आब कतेक नाटक बाँकी अछि । एहन स्थिति उत्पन्न होएबाक कारणपर विचार करबासँ पहिने हमरा नाटक कथानकपर विचार सेहो कर’ पड़त ।
एहि नाटकमे राजा साहेब नामक एकटा जमीन्दार अछि जकर जमीन्दारी पुर्खेक समयसँ धीरे-धीरे कमल जाइत छै । राजा साहेब लग आबिक’ विपन्नता पराकाष्ठापर पहुँच जाइत छै । कर्जक बोझ ततेक ने बढि जाइत छै जकरा सधाएब मश्किल भ’ जाइत छैक । फजूल खर्ची आ विलासिताक कारणेँ एहि स्थितिमे पहुँचब एकटा नियति छैक । फेर ओही जमीन्दारीमे पलल राजा साहेबक पिताक अवैध संतान धनिकलाल शहर जाइत अछि । ओहिठाम अपन लगन आ परिश्रमसँ काफी धनोपार्जन करैत अछि आ राजा साहेबक हवेली कीनैत अछि । फेर ओहो वएह काजसभ कर’ लगैत अछि जे राजा साहेब करैत छलाह ।
आब प्रश्न ई उठैत अछि जे एकटा जमीन्दारकेँ तोड़िक’ दोसर जमीन्दारकेँ ठाढ करबाक की औचित्य छैक ? जँ ठाढ भइए जाइत छैक तँ दरबारमे राजा साहेब जकाँ हवेलीमे मोजराक आयोजन करबाक की प्रयोजन छैक ? जखन ई बात स्पष्ट भ’ जाइत छैक जे राजा साहेब अपन बेटी मोहिनीक विवाह आर्थिक तंगीक कारणेँ नइ करा रहल छथि तखन ओकर प्रेम प्रसंगक एतेक दृश्यसभ रखबाक कोन प्रयोजन छैक आ अंतमे ओकरा प्रेमीकेँ खलपात्र बनएबाक कोन औचित्य छैक ? कोनो नियतिक विरुद्ध बेर-बेर धनिक लालक मुँह सँ प्रतिशोध लेब कहयबाक कोन जरूरी छैक ? राजा साहेब तँ अपन करनीक फल पाबिए गेल छलाह जे हवेली बेचिक’ सड़कपर आबि गेल छलाह ।
उपर्युक्त सभ प्रश्नपर प्रकाश नीक जकाँ विचार कएने छल । ओकर प्रदर्शन स्क्रिप्ट देखिक’ हमरा लागल जे ओकरामे नाटक प्रदर्शनक समझदारी छैक ।
नाटकसँ एक दिन पहिने हमरा डेरापर एकटा कार्ड आएल रहय । ओहिपर सपरिवार लिखल रहैक । तेँ हम पत्नीसँ पुछलियनि -
“नाटक देख’ जएबैक” ?
“कोन नाटक छै” ? प्रश्नपर प्रश्न ओ रखलनि ।
“एक छल राजा”
“नइ जाएब”।
“किएक”?
“कलकत्ता मे देखने छी । हमरा नइ नीक लागल रहय” ।
“चलू ने, निर्देशक बदलल छै, अभिनेता बदलल छै” ।
“मुदा नाटक तँ वएह रहतै ने” ।
“तैयो देखि लियौ ने” ।
नाटक भेलैक । नाटक समाप्त भेलाक बाद नचिकेताजी केँ काफी खुश देखलियनि । एकर मतलब छलैक जे नाटक अपन ऊँचाई पाबि गेल छल । वस्तुत: हमरो बड्ड नीक लागल रहय ई प्रस्तुति । हमर मोन मानि गेल छल जे एकरा नीक निर्देशकक पाँतीमे राखल जा सकैए । जँसे बात नइ रहितै तँ नाटक एहि रूपमे नइ चमकितै । रास्तामे हम पत्नीसँ पुछ्लियनि -
“केहन लागल नाटक” ?
“बहुत बढियाँ”
“तखन कहै छलिऎ जे नइ जाएब” ।
“हमरा थोड़बे बुझल छल जे एहन नाटक हेतै” ।
ई छलैक एकटा साक्षर मात्र लोकक मूल्यांकन । श्री मायानंद मिश्र, डॉ. गंगेश गुंजन, डॉ. देवशंकर नवीन, डॉ. ओमप्रकाश भारती आदि दिग्गज विद्वान लोकनि एहि प्रस्तुतिक प्रशंसा कएलथिन । ओना दशरथ जखन भार जनकपुर पठौलथिन तँ जनकपुरबासी मेसँ क्यो बाजि ऊठल— भार तँ बहुत बढियाँ छनि, मुदा अंकुरीक अखुआ टेढ छनि । एहन अखुआ टेढबाला लोक प्रेक्षकक प्रतिक्रिया देखिक’ अपनाकेँ चुप्पे राखब उचित बुझलक ।
एहि ठाम एकटा बात कह’ चाहब—आदमीक क्षमताक स्थानांतरण दोसर क्षेत्रमे सेहो होइत छैक । यदि हम दहिना हाथसँ ‘अ’ लिखैत छी तँ बामा हाथसँ ‘अ’ सेहो लिखि सकैत छी । कारण, दहिना हाथक क्षमता बामा हाथमे स्थानांतरित भ’ जाइत छैक । एही अवधारणापर लोक कहैत छैक जे बी.ए. भ’ क’ घास छिलतै तँ मूर्खसँ बढिए जकाँ छिलतै किएक तँ ओ अपन पढ’–लिख’ बाला क्षमता घास छील’ मे लगा देतैक । एहि मनोवैज्ञानिक तथ्यक सत्यापन प्रकाश चन्द्र झाक अभिनयात्मक एवं निर्देशकीय क्षमतासँ जोड़िक’ संगठनात्मक क्षमताकेँ सेहो देखल जा सकैए । ओ जतबए नीक अभिनेता तथा निर्देशक अछि ओतबए एकटा सफल संगठनकर्ता सेहो । आ हम सभ कियो जनैत छी जे रंगकर्म मे संगठनात्मक क्षमताक विशेष महत्व छैक ।
एहिठाम संगठनात्मक क्षमताकेँ रंगकर्मसँ जोड़िएक’ देखल जा सकैत अछि कारण, भरतक नाट्यशास्त्रक पैंतिसम अध्यायमे नाट्यदलक चर्चा आएल अछि जाहिमे सूत्रधार, अभिनेता, काष्ठकार, माली(माल्यकार), स्वर्णकार(मुकुट एवं गहना बनब’बाला), सूचिकार(दर्जी), चित्रकार आदिक चर्चा अछि । हमरा जनैत एहि सभ केँ मिलाक’ राख’बाला सूत्रधार छल होएतैक । ईसभ अपन-अपन योगदान नाट्य प्रदर्शनमे दैत छलैक । जँ एकरा सभकेँ मिलाक’ नहि राखल जैतैक तँ नाट्यप्रदर्शन असंभव भ’ जइतैक । अत: एकटा सम्पूर्ण रंगकर्मीक हेतु संगठनात्मक क्षमता आवश्यक भ’ जाइछ ।
2005 ई. मे जनकपुर नाट्य महोत्सवक आयोजन कएल गेल रहैक । एहि आयोजन मे यात्री टीम भाग लिअय से हमर हार्दिक इच्छा रहय । मुदा कलाकारसभ बिखरल रहैक । सभ एकठाम जमा होएत आ नाटक करत से संभव नहि बुझाय । तथापि एकबेर जानकारी देब आवश्यक छल । एतदर्थ बीस-बाइसटा मेम्बरमे सँ प्रकाश केँ टेलीफोन कएलिऎक । कारण, ओकर संगठनात्मक क्षमतासँ हम परिचित छलहुँ । दोसर जँ गछियो लितएअ तँ संगठनात्मक क्षमताक अभावमे जएबो करितएअ कि नहि ताहिपर हमर विश्वास नहि छल । खैर, ओ हमर इच्छाकेँ सहर्ष स्वीकार क’ लेलक आ पन्द्रह-सत्रह आदमीक टीम ल’ क’( दिल्ली सँ ) जनकपुरधाम (नेपाल) पहुँच गेल ।
सम्प्रति प्रकाश दिल्लीमे मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) नामक संस्था चला रहल अछि । एहि संस्थाक एकटा सदस्य दिल्ली रहैत अछि तँ दोसर देवगिरी मे, माने एकटा उत्तरी दिल्ली तँ दोसर दक्षिणी दिल्ली । एहना स्थिति मे मैथिली रंगकर्म केँ जियाक’ राखब एकटा कठिन काज भ’ जाइत छैक । तथापि ओ एकरा जिआए क’ नहि, बल्कि जगजियार क’ क’ रखने अछि ।
इम्हर, जहिया सँ प्रकाश रंग प्रसंग सँ जुड़ल अछि आ डॉ. ओमप्रकाश भारती, स्व. जे.एन. कौशल, महेश आनंद, देवेन्द्र राज अंकुर, प्रतिभा अग्रवाल आदि सन शोधकर्ताक सानिद्ध पौलक अछि ओकर रंग-दृष्टि आरो खुजलैक अछि । मैथिली लोकनाट्य आ रंगमंच पर ओकर शोध आलेख उल्लेखनीय होइत छैक । बाल रंगमंच पर भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय फैलोशिप प्राप्त करनिहार प्रकाश कहियो कहियो कथा सेहो लिखैत अछि । एकरा द्वारा लिखल कथा पाथर बेस चर्चा मे छल । ई कथा बुच्चीक मनोरथ नाम सँ अंतिका मे आ पाथर नाम सँ हिन्दी मे समकालीन भारतीय साहित्य मे प्रकाशित भेल रहै ।
हमरा जनैत कर्मठ आ सफल व्यक्ति ओ नहि होइत अछि जे समयक पाछाँ-पाछाँ चलैत अछि, सफल व्यक्ति तँ ओ होइत अछि जे अपन कर्मठतासँ समय केँ अपना लग खींच लैत अछि । इएह गुण हम मृदुभाषी आ मिलनसार प्रकाश मे पबैत छी । किएक तँ एकरासँ पहिने मिथिलांचल सँ कतेको मैथिलीक विद्वानलोकनि दिल्ली अएलाह, मुदा मैथिली रंगकर्मक जड़ि एना भ’ क’ रोपल नहि भेलनि । प्रकाशक लेल दिल्ली मे हिन्दी रंगमंच मे काज करनाइ बहुत आसान छल मुदा ओ मैथिली रंगकर्म के अपनैलक ई बेसी महत्वपूर्ण अछि । हमरा तँ ओहो दिन देखल अछि जहिया मैथिली रंगकर्म कलकत्तामे बहुत जगजियार छलैक, एकरा बाद ई जगजियारी ऊठिक’ पटना आ जनकपुर अएलैक सेहो देखलहुँ आ आइ लगैत अछि जे एहि जगजियारीक एकटा प्रबल दावेदारक रूपमे दिल्ली सेहो ठाढ़ भ’ गेल अछि जकर श्रेय निश्चित रूपे प्रकाश चन्द्र झा केँ जाइत छैक । आइ पटना हो, चाहे जनकपुर, चाहे सहरसा, सभकेँ अपन-अपन क्षमता देखएबाक हेतु दिल्लीमे प्लेटफार्म मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) प्रदान कएअलक अछि जकर संचालन प्रकाश चन्द्र झा क’ रहल अछि । हम मैथिली रंगकर्मक हेतु ओकर दीर्घायु आ सफलताक कामना करैत छी । (साभार विदेह )

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