Wednesday, August 24, 2011

बेटीक अपमान आ छीनरदेवी - बेचन ठाकुर

अपन कथन
स्त्रीन-पुरूष दुनि‍याँक नीब छी। मुदा दहेजक कारणे समाजमे बेटीकेँ हेय दृष्टि ‍सँ देखल जाइत छै। फलस्व रूप समाधान हेतु लोक अल्ट्रा साण्डजक दुरूपयोग कऽ बेटीक वंश नाश करैक पाछु लागल अछि‍। जइसँ बेटा-बेटीक संख्याडमे असंतुलन बनल जा रहल अछि‍। परि‍स्थिल‍ति‍ एहेन बुझाइत छै जे दुनि‍याँमे खाली बेटेटा रहि‍ जाएत। जइसँ गाड़ी केना चलत? अही संदर्भमे बेटीक अपमान नाटक लि‍खल गेल अछि‍।
समाजमे एहेन बहुतो घटना देखाइ पड़ैए जइमे अंध वि‍श्वास नस-नसमे घोंसि‍याएल अछि‍। फलस्वटरूप समाजमे एक-दोसरक प्रति‍ घृणा आ इर्ष्याि-द्वेष बढ़ैत अछि‍। हमरा जनतबे एकर मूल कारण अशि‍क्षा थि‍क। ओना शि‍क्षि‍तो लोक कखनो-कखनो उल्लूर सोझ करए लेल डाइन-धाइम दि‍स गुमराह करै छथि‍। ऐसँ समाजक प्रेम टूटै छै आ वि‍कास रूकै छै। अही संदर्भमे लि‍खल गेल छीनरदेवी एकांकी अंधवि‍श्वासक वि‍रोध कऽ कर्त्तव्य नि‍ष्ठरताक प्रति‍ मुखर करबाक एक चेष्टा थि‍क।
ऐ दुनू नाटकक अलाबा उगना, श्रवण कुमार, शति‍-सावि‍त्री, तेतैर गाछमे आम कोना, बाप भेल पि‍त्ती, अधि‍कार इत्यालदिक लेखन संग मंचन २००२ई.सँ क्रमश: सभ साल, सरस्विती पूजाक अवसरपर करैत रहलौंहेँ। मंचन हमर छात्रा सभक माध्यलमे अधि‍क भेल अछि‍। संगीता, शि‍ल्पीस, रम्भा्, लक्ष्मीक कुमारी आदि‍क भूमि‍का सराहनीय रहल। मनोज कुमार पौद्दार, हमर छात्र रहल छथि‍, हि‍नक मंच संचालनक कार्य आइ धरि‍ हमरा भेटैत रहल अछि‍। हि‍नका सभ लेल “धन्यकवाद”क संग “आशीर्वाद” शब्द‍क उच्चा‍रण बेर-बेर सहज बुझना जाइत अछि‍। ग्रामीण सबहक सहयोग, दर्शक रूपमे, सेहो भेटैत रहल अछि‍। जइसँ हम उत्सानहि‍त होइत रहलौं। गणि‍तसँ बहुत बेसी अभि‍रूचि‍क कारणे गणि‍तसँ बी.एस.सी. केलौं। मुदा अपन मातृभाषाक संग सदि‍खन रहलौं। मैथि‍ली नाटक लि‍खबाक जि‍ज्ञासा भेल। अनुभव नै छल, तैयो दुस्साैहस केलौं। पेट चलैक जोगार ट्यूशन भऽ गेल। तँए हम घरेपर रहि‍, जएह-सएह अनुभव कऽ गामक समस्‍या आ ओकर नि‍दानपर यथासंभव लि‍खबाक प्रयास केलौं। दर्शकक भीड़ आ चर्चा सफलताक परि‍चय देलक। मुदा ओइसँ संतोष नै भेल, जि‍ज्ञासा बढ़ल। आब तँ सहजहि‍, कि‍एक तँ हमरा सनक नेना नाटककारकेँ कि‍यो प्रकाशक बि‍न्दुसओ भरि‍ जगह देताह, से सपनोमे नै सपनाएल रही। “वि‍देह” प्रथम मैथि‍ली पाक्षि‍क ई पत्रि‍काक संपादक श्री गजेन्द्रा ठाकुर आ हुनक सहयोगी श्री उमेश मण्ड्लकेँ हम हृदयसँ धन्यजवाद दइ छि‍यनि‍ जे अपन मेहनति‍ आ लगनसँ ऐ दुनू नाटककेँ धारावािहक रूपेँ प्रकाशि‍त केलनि‍ जइसँ पोथी प्रकाशनक रास्ताे सुगम भेल, सफल भेल।
आदरणीय कक्का श्री जगदीश प्रसाद मण्डिल‍, ज‍िनक प्रत्येाक शब्दत हमरा लेल प्रेरणा रहल एवं हि‍नक व्य्क्तिे‍त्व। आदर्श। हम अपनाकेँ सौभाग्यनशाली बुझैत छी जे हि‍नक सि‍नेह एवं आशीर्वाद हमरा भेटैत रहल अछि‍।
हमर सामान्या पढ़ाइक गुरू श्री शुभचन्द्र झा आ आओर संगीत पढ़ाइक गुरू श्री रामवृक्ष सि‍ंहक अपार श्रद्धाक लेल हुनक हार्दिक आभारी छी। संगे-संग भाय मनोज कुमार मण्डसलकेँ सेहो धन्य्वाद दइ छि‍यनि‍ जे बेर-बेर हमरा गप-सप्प क माध्यकमे उत्सागहि‍त करैत रहला अछि‍।
श्रुति‍ प्रकाशन'क सहयोगक बि‍ना ई पोथी अपनेक हाथमे नै रहैत, तइले श्रीमती नीतु कुमारी आ श्री नागेन्द्र कुमार झाजीक प्रति‍ कृतज्ञ छी।
बेचन ठाकुर


बेटीक अपमान

पात्र-परि‍चय
पुरूष पात्र
दीपक चौधरी- एकटा साधारण पढ़ल-लि‍खल ि‍कसान
मोहन चौधरी- दीपक चौधीरीक बड़का बेटा
सोहन चाधरी- मझि‍ला बेटा
गाेपाल चौधरी- छोटका बेटा
प्रदीप कुमार ठाकुर- एकटा वार्ड सदस्य (दीपकक)
बलवीर चौधरी- पंचायत शि‍क्षक
हरि‍श्चन्द्र चौधरी- गरीब कि‍सान
महेन्द्र पंडि‍त- दीपक चौधरीक लंगोटि‍या संगी
सुरेश कामत- दीपक चौधरीक मामा
सेानू- दीपक चौधरीक ममि‍यौत भाए
गंगाराम चौधरी- बलवीर चौधरीक छोट भाए
चन्देौश्वचर चौधरी- बलवीर चौधरीक पैघ भाय
हरेराम सि‍ंह- बलवीर चौधरीक गामक एकटा वुजुर्ग
बौआ क्षा- एकटा अनपढ़ पुरहि‍त
झामालाल महतो- दीपक चौधरीक पड़ोसी
सुरेन्द्रा चौधरी- हरि‍श्चन्द्र चौधरीक भाए
प्रेमनाथ मेहता- एकटा प्रसि‍द्ध डाक्टजर
टुनटुन- बलवीर चौधरीक भातीज
रमन कुमार- हरि‍श्चन्द्र चौधरी पंचायतक मुखि‍या
स्त्रीम पात्र
वीणा देवी- दीपक चौधरीक पत्नी
सुनीता देवी- बलवीर चौधरीक पत्नी
मंजू- बड़का बेटी (बलवीरक)
संजू- छोटकी बेटी (बलवीरक)
राधा देवी- हरि‍श्चन्द्र चौधरीक पत्नी
शालि‍नी- हरि‍श्चन्द्र चौधरीक बेटी

अंक पहि‍ल-
पहि‍ल दृश्यी
(स्था‍न- दीपक चौधरीक आवास)
दीपक- मोहन माए, एगो गप कहु।
वीणा- कहु ने, एक्केटा ि‍कएक? जत्ते मोन तत्ते।
दीपक- एकटा बेटीक इच्छाे होइ अछि‍। बेटा तँ भगवान तीन‍टा देलनि‍।
वीणा- आब इच्छेट केने की भेटत? ई इच्छार जे पहि‍ने होइताए तहन ने। पहि‍ने बेटे लऽ जान जाइ छल। मोहनो बेरमे अहाँ कहलौं जे अल्ट्राासाउण्डट कराए लि‍अ। जदी बेटी हएत तँ ओकरा हटा देब।
दीपक- से तँ हम ठीके कहने रही। समए महगीक अछि‍। बेटीमे अग्ग।हसँ बि‍ग्गाह खरच अछि‍। आमदनी कोनो नै‍।
वीणा- अहाँ तँ सभ दि‍न आमदनीए बुझलि‍ऐ की टक्के।
दीपक- मोहन माए, एकटा कहबी अछि‍- “टाका हि धर्म:, टाका हि‍ कर्म:, हे टाका‍ तू सर्वोपरि‍।”
वीणा- धूर जाउ, अहाँ खाली फकरे सुनबैत रहैत छी। सुनु मोहन बाउ, दुनि‍याँमे टक्केटा सभ कि‍छु नै‍ अछि‍। ओकर सि‍ंगारो ने हेबाक चाही। बेटा-बेटीए ने ऐ दुनि‍याँक सि‍ंगार छी।
दीपक- लगैत अछि‍ जे अहाँ हमर गुरू रही।
वीणा- हँ-हँ, कहब नीक तँ लागत दि‍क। आब हम कहि‍ देब।
दीपक- हे हे चुप रहु, पोल नै‍ खोलु एे भरल सभामे।
वीणा- नै‍ यौ, हमरा आब बर्दास नै‍ होएत। आब हम पोल खोलि‍ए देब।
दीपक- हे हे मोहन माए, अहाँ बड्ड नीक लोक छी। हमरा बेज्जपती जुनि‍ करू। हे हे पएर पकड़ै छी।
वीणा- अहाँ तँ तेना खेखनि‍याँ करए लगलौं से कहि‍ नै‍। खाइर आइ छोड़ि‍ दैत छी।
दीपक- हे मोहन माए, आब गप-सप्‍प छोड़ु। हमरा जेबाक अछि‍ जन ताकैले। देखै नै‍ छि‍ऐ जन सभकेँ ठीकेदारीए चाही, हफकौरे चाही।
वीणा- बरनी आउ। हमरो भनसाक ओरीयान करबाक अछि‍।
दीपक- बेस, तहन हम जाइ छी।
(प्रस्था न)
पटाक्षेप

दोसर दृश्य
(स्था्न- दीपक चौधरीक आवास। दीपक आ वीणामे कि‍छु गप-सप्पच होइत अछि‍।)
दीपक- मोहन माए, हम खेत जाइ छी। खेतमे हर बहै अछि‍ आ दुटा जन सेहो अछि‍। कने जलखै जल्दी ए लेने आएब।
वीणा- सुनू ने, तहन जाएब।
दीपक- बाजू की कहै छी?
वीणा- की कहब? जारैनक इन्जा म तँ साफे नै‍ छै।
दीपक- याए जारैन कीन‍ देने रही। ओ सभटा सधि‍ गेल की?
वीणा- सधि‍ नै गेल तँ की। अहाँकेँ बुझाए रहल अछि‍ जे हम खाए लेलौं।
दीपक- हे मोहन माए, हमरा अबेर भऽ रहल अछि।‍ कोनो जोगार कऽ जलखै जल्दी लेने आएब।
वीणा- कोन जोगार? कने बताए दि‍अ ने।
दीपक- कहैत तँ लाज होइ अछि‍। मुदा कहि‍ दै छी। नै‍ होएत तँ एे कलमसँ कने पत्ते खरैर आनब।
वीणा- नैहरमे खर्रा-पथि‍या चि‍न्हबो नै‍ केलौं। मुदा सासुरमे अहाँ की नै‍ करेलौं। अाइँ यौ मोहन बाउ, आब वएह समए छैक जे जखैन तखैन खर्रा-पथि‍या लऽ कऽ जाउ आ पत्ता खरैर आनू।
दीपक- कोनो जोगार करब। हम जाए रहल छी। हरवाहा खेतमे की करैत हएत की नै‍।
वीणा- सुनि‍ लि‍अ मोहन बाउ, हम जोगार करैत-करैत थाकि‍ गेलौं। आब हमरासँ कोनो जोगार नै‍ हएत। जोगार करैत-करैत हमरा दिस‍ कि‍यो ताकए नै‍ चाहै अछि‍। सभटा प्रति‍ष्ठाा माटि‍मे मि‍लि‍ गेल।
दीपक- अहाँ बड्ड प्रति‍ष्ठिष‍त भऽ गेलौं की?
वीणा- हँ यौ तँ की। प्रति‍ष्ठा‍ कोनो बजारमे बि‍काइ अछि‍ की? अपन व्यावहारसँ प्रति‍ष्ठा आबै अछि‍। अहाँकेँ की प्रति‍ष्ठा‍ अछि‍?
दीपक- मोहन माए, अहाँ बड्ड चढ़ि‍-बढ़ि‍ कऽ बाजि‍ रहल छी आ हमरा प्रति‍ष्ठा केँ उकटि‍ रहल छी। आइ अहाँ खेत जलखै नै‍ आनब, तहन बुझबै।
वीणा- यावत जारैनक जोगार नै‍ कए देब, ताबत जलखै केर कोनो आशा नै‍। हम पत्ता खर्रैले नै‍ जाएब। अहाँकेँ जे करबाक हएत से करब। हम अहाँक पत्नी छी ने।
दीपक- से बुझि‍ लेब। कोन बाँसक दाहा होइ छै।
वीणा- अाइँ यौ मोहान बाउ, नै‍ बाजी तँ पीचने जाउ। अाइँ यौ, हमरा ऐ देहमे कि‍छु अछि‍। ठाढ़े छी सएह बहुत। सौंसे देह उज्जँर भऽ गेल अछि‍। एक्कोु रत्ती खून देहमे नै‍ अछि‍। खाली जनमाबै ले होइ अछि‍। उपरेमे अल्हुकआ फरै छै की? खाली बेटे चाही बेटे। चलु दरि‍भंगा। अल्ट्राुसाउण्डै करए लि‍अ आ बेटीकेँं हटाए दि‍यौ, बेटाकेँ रहऽ दि‍यौ। सफैया कराबैत-कराबैत आ गोटी-दवाइ खाइत-खाइत हमर देह गलल जाए रहल अछि‍। आब हम नै‍ बाँचब। बेटा लेल तारमतोर सफैया हमरा जान मारि‍ देलक। देहसँ तारमतोर ओतेक-ओतेक खून बहनाइ मामूली बात छै। समाजमे बेटी दुश्मकन अछि‍ की? हाइ नारायण बेटा-बेटा-बेटा।
(वीणा देवी दम तोि‍ड़ दै छथि‍।)
दीपक- (माथ पीटैत) मोहन माए यै मोहन माए। आब हम केना रहबै यै मोहन माए। मोहना रौ मोहना। सोहना रौ सोहना। गोपला रौ गोपला। दौड़ै जाइ जो रौ बौआ सभ।
(मोहन, सेाहन आ गोपालक प्रवेश। तीनू बेसुमार कनि‍ रहल अछि‍)
तीनू- माए गै माए, हम सभ केना रहबै गै माए।
दीपक- बौआ सभ रौ बौआ सभ। आब अपना सभ केना रहबै रौ बौआ सभ। के खाइलए देतै रौ बौआ सभ। मोहन माए यै मोहन माए। हमरे खाति‍र अहाँ मरलौं यै मोहन माए।
(चारू बा-पूत कानैत-कनैत वीणाक देहपर मुरी रोपि‍ दै अछि‍। पटाक्षेप भऽ जाइत अछि‍। अन्दँरसँ राम-नाम सत्यीक आवाज सुनाइ पड़ैत अछि‍।)

दृश्यइ- तेसर
(स्था‍न- दीपक चौधरीक आवास। वार्ड सदस्यत प्रदीप कुमार ठाकुर दीपक चौधरीकेँ सान्व् अना दैत छथि‍।)
प्रदीप- दीपकबाबू, जूलूम भए गेल। घोर अनर्थ भेल। अहा! बेचारी बड नीक जनानी छलीह। एहेन जनानी गाममे कि‍यो नै‍ छलीह। एहेन परि‍श्रमी आ सहनशील जनानी कि‍यो नै‍ छलीह।
(दीपकक आखि‍मे नोर आबि‍ जाइत अछि‍।)
दीपकबाबू, अहाँ कानि‍ कि‍एक रहल छी? जुनि‍ कानू। आब कानला खि‍जलासँ कोन फेदा? होनी तँ हाथ धराए कऽ होइत अछि‍। जे हेबाक छल से भेल। जहन भगवानक यएह मर्जी छेलनि‍ तहन कि‍यो की कए सकैत अछि‍?
दीपक- सर, हमरा कि‍छु फुराए नै‍ रहल अछि‍। हम तँ कि‍ंकर्त्तव्यक वि‍मूढ़ छी। हरदम चि‍न्ति ‍त रहैत छी।
प्रदीप- चि‍न्ता‍-ति‍न्ताए छोड़ू।
चि‍न्ता सँ चतुराइ घटए। शोकसँ घटए शरीर।।
पापसँ लक्ष्मी् घटए। कहलनि‍ दास कबीर।।
आगू परबस्तीम केना चलत, ओकर जोगारमे लागू।
दीपक- सर, हमरा तीनि‍टा बेटे अछि‍। एक्कोकटा बेटी रहि‍तए, तँ भनसो भात तँ करि‍तए। घरमे कि‍यो केनि‍हारि‍ नै‍ अछि‍। घरमे एगो केनि‍हारि‍केँ बड आवश्य-कता महसूस होइ अछि‍।
प्रदीप- मोन होय यऽ जे दाेसर बियाह करी?
दीपक- सर, मोन तँ सोलहो आना होय यए मुदा करी की, से कि‍छु नै‍ फुराइ अछि‍।
प्रदीप- सुनू दीपकबाबू, अहाँकेँ तीनि‍टा लाल भगवान देने छथि‍। हुनके सभकेँ पढ़ाउ-लि‍खाउ आ मनुक्ख, बनाउ। बड़का बेटाक ि‍बआह कने जल्दीपए कए लेब। घरमे केनि‍हारि‍ आबि‍ जेतीह। कि‍छु त्याथग करू। दू-चारि‍ बरख कष्टे सही। मुदा दोसर बियाहक चक्करमे नै‍ पड़ू।
दीपक- सर, हम अहाँक बात सभ दि‍न मानैत रहलौं आओर मानैत रहब।
प्रदीप- जदी‍‍ हमर बात मानी तँ दोसर बियाह भूलोसँ नै‍ करी। दोसर बि‍याहसँ बाप पीि‍तया भऽ जाइ अछि‍। अाऍं यौ, सतौत तँ भगवानोकेँ नै‍ भेलनि‍। तहन मनुक्खत कोन मालमे माल। जदी‍ हमर बात नै‍ मानब तहन जीवन भरि‍ पछताएब दीपकबाबू। एक बेर की कुकर्म कएलौं से ई फल भेटल आओर दोसर कुकर्म फेर करब तहन की फल भेटत की नै‍।
दीपक- हँ सर, ई कोनो कुकर्महि‍क फल भोगि‍ रहल छी। आब दोसर कुकर्म नै‍ करब, दोसर बियाह नै‍ करब।
प्रदीप- ई हम ओना नै‍ बुझब, दीपकबाबू। सत्त करू आइ सरस्व ती माताक समक्ष।
दीपक- एक सत्त दू सत्त, ब्रह्मा बि‍ष्णु् सत्त। जे अहाँक कहल नै‍ करए, से अस्सी। कोस नरकमे खस।। हम दोसर बि‍याह नै‍ करब, नै‍ करब नै‍ करब।
प्रदीप- जौं केलौं तँ पछताएब, पछताएब, पछताएब। दीपकबाबू, आब हम जए रहल छी। आइ ब्लौंकमे आपातकालीन बैसार अछि‍। बेस तँ जय राम जी।
दीपक- जय राम जी। (ठाढ़ भऽ कऽ)
(प्रदीपक प्रस्थाछन)
प्रदीपबाबू हमरा समाजक बड अनुभवी लोक छथि‍। हुनक बातक खंडन नै‍ कए सकैत छी। तखन हुनका बेटाक बि‍याह जल्दीबए कऽ लेब आ कमो पढ़ल-लि‍खलमे कऽ लेब। की करब कि‍छु उपए तँ चाही।
पटाक्षेप


दृश्यष- चारि‍म
(स्था‍न- दीपक चौधरीक दलान। चारू बापुत आपसमे गप-सप्प‍ कए रहल छथि‍।)
दीपक- बौआ सभ, अपना सबहक दि‍न दुर्दिन अछि‍। बि‍ना पढ़ने काज चलैबला नै‍ अछि‍। केहेन केहेन पढ़लाहा तँ बौआइ अछि‍ आ अहाँ सभ मुर्ख रहब तहन कुक्कुरो नै‍ पूछत।
मोहन- बाबू जी, आइ काल्हि‍ पढ़नाइ बड महग अछि‍। बि‍ना टीशन वा कोचि‍ंगकेँ पढ़नाइ असंभव अछि‍।
दीपक- तैयो पढ़ए बला बि‍ना टीश्न कोचि‍ंगकेँ पढ़ि‍ लैत अछि‍।
मोहन- से एक सएमे एगो आधगो।
दीपक- खाइर अहाँ सभ कहैत छी तँ कतहु नीक सर लग कोचि‍ंग पकड़ि‍ लि‍अ।
मोहन- बाबू जी, सुनैत छी जे नीक कोचि‍ंग जे.एम.एस. कोचि‍ंग सेन्टकर, चनौरागंज अछि‍ जे श्री बेचन ठाकुर चलबैत छथि‍। हमरा सभकेँ ओइ‍ कोचि‍ंगमे धराए दि‍य।
सोहन- मुदा ओइ‍ कोचि‍ंगमे सभ नै‍ पढ़ि‍ सकैत अछि‍।
दीपक- से कि‍एक?
सोहन- एकर कारण ई अछि‍ जे ओइ‍ कोचि‍ंगक फीस बड करगर अछि‍ आ सेहो अगुरबारे। जहि‍यासँ पढ़ाइ शुरू करू तहि‍ये फीस जमा कए दि‍यौन। नै‍ तँ जय राम जी।
दीपक- ई तँ हुनक कोनो नीक नि‍यम नै‍ भेलनि‍। पढ़लक नहि‍ए, महीना लागल नहि‍ए, पहि‍ने फीसे चाही। अच्छा , हम ऐ संबंधमे सोचि‍ रहल छी।
गोपाल- बाबू यौ, एगो छौंरा हमरा कहलक की जे हम हुनका लग पढ़ि‍ रहल छी। तोरा पढ़ल होएतौक की नै‍। कारण, बेचन सर बड मारै छथि‍न आ बड बुरबक बनबै छथि‍न। छड़ी जे देखबि‍हीन तँ बाइ गुरूम भए जेतौ। बाप रौ बाप, यएह मोटके छड़ी।
दीपक- आ पढ़ाइ केहेन होइ अछि‍?
मोहन- पढ़ाइमे कोनो शि‍काइत नै‍। हुनक चेला सभ डाक्टतर, इंजि‍नि‍यर, मास्ट र इत्याबदि‍ इत्याादि‍ छन्हिल‍। हमरा मोन होइ अछि‍ बाबू जे हमरा सभकेँ बेचन सर लग कोचि‍ंग धराए दि‍अ।
दीपक- बौआ, हम असगरे की करबौ। घर करबौ की बाहर करबौ? मए ऐ दुनि‍याँसँ चलि‍ गेलखुन। भनसा भातमे बड दि‍क्कत होइ अछि‍। एगो करू, अहाँ पढ़ाइ-लि‍खाइ छोड़ू। अहाँ मोहन, ऐ चक्करमे नै‍ पड़ू। कारण एक दि‍नका वा एक महीना वा एक सालक बात तँ पढ़ाइ नै‍ छी। पढ़ाइमे सालक साल लगै अछि‍ आ तैयो नोकरीक कोनो गाइरेन्टीम नै‍।
मोहन- बाबू, एक बेर अहाँ कहलौं जे बि‍न पढ़ने काज चलए बला नै‍ अछि‍। एक बेर कहै छी जे पढ़ाइ छोड़ि‍ दहि‍न। खाइर पढ़ाइ छोड़ि‍ कऽ हम की करब?
दीपक- की करब? गाममे रहलासँ पेट भरत मोहन बौआ। मोहन बौआ, अहाँ मामाक संग काल्हि‍ दि‍ल्लील चलि‍ जाउ। एक सालक अन्दार अहाँक बि‍याह सेहो केनाइ अछि‍। भनसा भातमे बड दि‍क्कत होइ अछि‍।
मोहन- बाबू, हम एखन बि‍याह नै‍ करब। हमरा सबहक उमर एखन बि‍याह करए बला अछि‍?
दीपक- अच्छाब देखू, की होइ अछि‍? अहाँ काल्हि‍ दि‍ल्ली। चलि‍ जाउ। एम्ह΁र सोहन आ गोपालकेँ पढ़ाइक कोनो व्य़वस्थाम देखै छी। पढ़ाइ तँ बड आवश्यआक अछि‍।
सोहन- बाबू, हम भरि‍ दि‍न बकरीए चरबैत रहब की? कतौ हमर पढ़ाइक जोगार कए ि‍दअ।
गोपाल- बाबू, हमहुँ पढ़ब यौ। हमहुँ पढ़ब यौ।। काबि‍ल बनब हम यौ। गोली-गोली नै खेलब ने गुली डंटा यौ।।
गोली गोली नै‍ खेलब यौ, गुल्ली डन्टाँ नै‍ खेलब यौ।।
दीपक- अच्छाे, काल्हि‍ अहाँ दुनू भाँइकेँ गंज मि‍डि‍ल स्कूललमे नाओं लि‍खाए दैत छी। सुनैत छी जे गंज मि‍डि‍ल स्कूललक पढ़ाइ बढ़ि‍याँ छै। संग-संग खि‍चड़ी, कि‍ताब, पाइ, डरेस, टाइ बैच, बेल्टं इत्याूदि‍ सेहो भेटत। ओइ‍ स्कू,लमे पढ़लासँ बड नफ्फा? बौआ सभ, हम पढ़ल छी कम्मे । मुदा बुझैत बड छी। केहेन-केहेन पढ़ुआकेँ कान काटि‍ लैत छी।
गोपाल- बाबू तहन काल्हि‍ हमरा सभकेँ गंज स्कूसलमे नाओं लि‍खाए देब ने?
दीपक- आब काल्हि‍ हएत तहन ने।
पटाक्षेप

पाँचि‍म दृश्यत
(स्था‍न- बलवीर चौधरीक घर। बलवीर चौधरी एकटा पंचायत शि‍क्षक छथि‍। हि‍नक पत्नी सुनीता देवी छथि‍न। मंजू आ संजू हुनक सुपुत्री। बलवीर आओर सुनीता रवि‍केँ आपसी गप-सप्पा कए रहल छथि‍।)
सुनीता- स्वा‍मी, एगो बेटा अपनो सभकेँ रहि‍तए।
बलवीर- एहेन बात कि‍एक बाजलौं अहाँ? कि‍ हमरा लोकनि‍ नि‍:सन्ताान छी? की बेटी बेटासँ कम होइ छै? अपना अपना जगहपर कि‍यो ककरोसँ कम नै‍ होइ छै।
सुनीता- स्वाइमी, मोन होय अए जे एगो बेटा होएताए। मुदा आब कोन उपाए?
बलवीर- यै, अहाँ मोनकेँ कि‍एक बौआबैत छी एतेक? जहन बुझैत छी जे ऑपरेशन कराए लेने छी, तखन बेकार मोनकेँ भरमेनाइ।
सुनीता- से तँ ठीके कहैत छी मुदा।
बलवीर- मुदा की? मुदा तुदा छोड़ू। यै, बेटा बेटी जनमेलासँ नै‍ होइ अछि‍। ओकर प्रति‍पाल चाही अऍं यै, अपन मंजू आ संजूक आगू कि‍नकर बेटा कोनो कलामे टीक सकैत छथि‍। रूप आ गुणमे ओ सभ कि‍नकोसँ कम अछि‍? एना अपने आपपर घमंड नै‍ करबाक चाही। अपना सभ दुनू परानीमे गप करैत छी।
सुनीता- यौ, संतोषम् परम सुखम्। अपन दुनू बेटीकेँ खूब मोनसँ पढ़ाए-लि‍खाए कऽ डाक्ट र-इंजि‍नि‍यर, एस.पी., कलक्टनर बनाउ आ समाजमे खूब प्रतीक्षा पाउ। बहुते जनमा कए कुक्कुकर-बि‍लारि‍ जकाँ रोडपर ढंगरा कऽ कोन प्रति‍ष्ठा‍, कोन फेदा?
बलवीर- थैंक्स यू वेरी मच, सुनीता। आब अहाँ लाइनपर एलौं। एहि‍ना सदि‍खन बुद्धि‍ वि‍वेकसँ काज करी।
पटाक्षेप-

छठम दृश्यन
(स्थादन- हरि‍श्चन्द्र चौधरीक घर। हरि‍श्चन्द्र चौधरी एकटा गरीब कि‍सान छथि‍। हुनक पत्नी राधा देवी छथि‍। हुनका दर-दुनि‍यामे एक्केटा बेटी शालि‍नी अछि‍। हरि‍श्चन्द्र चौधरी नि‍पुत्र छथि।)
हरि‍श्चन्द्र - यै शालि‍नी माए, हमरा लोकनि‍ भगवानकेँ की बि‍गारलि‍यनि ‍ जे ओ अपना सभकेँ एगो आ सि‍रीफ एगो बेटीएटा दए भाभट समटि‍ लेलनि‍।
राधा- ऐ बातक हमरो बड़ छगुन्ताा लागि‍ रहल अछि‍। भगवानक महि‍मा अगम अथाह अछि‍। केकरो बोरे-बोरे नून, केकरो रोटि‍योपर नै‍ नून।
हरि‍श्चन्द्र - खाइर छोड़ू, माथा पेच्चीुबला गप-सप्पय। भगवान जएह देलनि‍ सएह बहुत। ओनो हम बड़ गरीब सेहो छी। जदी‍ भगवान हमरा बेसी धि‍या-पुता दइतथि‍ तँ हमरा ओकर प्रति‍पाल नै‍ कएल होएतए। मात्र तीन‍ परानीक पेट तँ पहाड़ बुझाइत रहैत अछि‍।
राधा- यै शालि‍नी बाप, जे भगवान मुँह चीरैत छथि‍न ओ आहारक जोगार अवस्स करै छथि‍न। शालि‍नीकेँ पनरह सोलह बरख भए गेल। मुदा दोसर संतानक कोनो उम्मी द नै‍ देखए पड़ै अछि‍। जबकि‍ कतेकोकेँ देखैत आ सुनैत छी जे अल्ट्राासाउण्डकसँ जाँच करए बेटीकेँ गि‍रबौलनि‍, सुइया-दवाइसँ गर्भ नाश करौलनि‍ इत्यािदि‍। मुदा हमरा भगवान.....।
हरि‍श्चं।द्र- यै शालि‍नी माए, गर्भपात बड घि‍नौना काज थि‍क, बड पैघ पापीक काज थि‍क। ओइ‍ जनानीकेँ धौजनि‍-धौजनि‍ भए जाइत अछि‍ कोनो करम बाँकी नै‍ रहैत अछि‍ जे गर्भ नाश कराबेत अछि‍। कतेको जनानी ऐ बेत्थेँ् सुरधामो चलि‍ जाइत अछि‍।
राधा- रामक नाम लि‍अ, छोड़ू ई कुकर्मक गप-सप्प।। यौ, अपन शालि‍नीकेँ गरीबीक कारणे पढ़ाएल-लि‍खाएल तँ नै‍ होएत। मुदा घर-गृहस्थी तँ जरूर सीखए देबैक।
हरि‍श्चंाद्र- यै शालि‍नी माए, अहाँ बुच्ची केँ पढ़ाबए लेल हि‍म्मनत कि‍एक हारैत छी? कोशि‍श नै‍ छोड़ू शालि‍नी दाइक पढ़ाइ बास्ते, हम यथासंभव पूर्ण कोशि‍श करब। आगू सरस्वोती माताक कि‍रपा। अपन करम करी फलक चि‍न्ताग जुनि‍ करी।
पटाक्षेप


सातम दृश्य
(स्थादन- दीपक चौधरीक घर। वार्ड सदस्यद प्रदीप कुमार ठाकुर दीपक चौधरीक घर घुमैत- घुमैत पहुँचैत छथि‍। दुआरि‍पर कि‍यो नै‍ छथि‍न।)
प्रदीप- दीपकबाबू! दीपकबाबू! दीपकबाबू।
दीपक- (अन्द रहि‍सँ) हँ हँ के छी? आबि‍ रहल छी। कने बैसु श्रीमान् भात पसाबैत छी। यएह शीघ्र आबि‍ रहल छी।
(प्रदीप कुर्सीपर बैस जाइ छथि‍। शीध्र दीपकक प्रवेश)
दीपक- परणाम सर।
प्रदीप- परणाम् परणाम। कहु दीपकबाबू, की हाल चाल?
दीपक- सर, हाल-चाल करीब-करीब ठीके जकाँ अछि‍ मुदा।
प्रदीप- मुदा की।
दीपक- मुदा यएह जे हाथ-पएर अपने झरकाबए पड़ैए।
प्रदीप- बड़का बेटाक बियाह कने जल्दीठए कऽ लि‍अ। सुनलौं, अहाँक बड़का बेटा दि‍ल्लीासँ बढ़ि‍या पाइ-कौड़ी पठाबैत छथि‍।
दीपक- हँ सर, ठीके सुनने हएब। गुजर करै जोग जरूर पठबै छथि‍।
प्रदीप- दीपकबाबू, अहाँक परि‍स्थि ‍ति‍ देख हम सलाह दै छी जे अहाँ बड़का बेटाक बियाह कए लि‍अ। दीपकबाबू! ई चानन फटक्काि कहि‍यासँ यौ। ई तँ हम ध्याीने नै‍ देने रही।
दीपक- सर, यएह हालहि‍सँ। पत्नीक मृत्युनक पश्चाात् हमर मोन बदलि‍ गेल। पि‍योर बाबाजी तँ नै‍, गृहस्थौूआ बाबाजी बनि‍ जेबाक नि‍र्णए केलौं। की अहाँकेँ खराबो लागि‍ रहल अछि‍?
प्रदीप- नै‍ यौ। हमरा तँ बड नीक लागि‍ रहल अछि।‍ बाबाजी बननाइ कोनो खराब बात अछि‍, बड़ नीक बात अछि‍। सि‍रि‍फ एकटा हमर वि‍नती अछि‍ जे बाबाजी धर्मक पूर्ण पालन करब आओर मरि‍तहु दम धरि‍ भ्रष्टल नै‍ हएब।
दीपक- सर, अपने बड अनुभवी व्यँक्तिन‍ छी। एहेन अनुभवी व्यनक्ति ‍ ओ वार्ड सदस्यि आइ काल्हि‍ भेटब कठि‍न। सर, हम अपनेक प्रत्येदक सलाहकेँ पूर्ण करबाक हार्दिक प्रयास करब।
प्रदीप- दीपकबाबू, आब चलबाक आज्ञा देल जाउ। जय राम जी की।
(उठि‍ कऽ प्रस्थाान)
दीपक- (उठि‍ कऽ) जय राम जी की। हम चाहैत छी जे शुरूए लगनमे मोहनक बियाह कऽ ली। कने कम्मो सम्मो। दहेज भेटत तँ कोनो बात नै‍। मुदा कुल कन्याक नीक हेबाक चाही।
पटाक्षेप-



दोसर अंक


पहि‍ल दृश्या
(स्था‍न- महेन्द्र पंडि‍तक आवास। महेन्द्रो पंडि‍त दीपक चौधरीक नङोटि‍या संगी। दीपक अपन संगी महेन्द्रकक ओइठातम जा रहला अछि‍)
दीपक- महेन्द्र बाबू, यौ महेन्द्र बाबू, महेन्द्र बाबू।
महेन्द्र - हँ, हँ, आबि‍ रहल छी। कने बरतन गढ़ैमे हाथ लागल अछि‍। बैसू, तुरत एलौं।
(दीपक बैस जाइत छथि‍। शीध्र महेन्द्र क प्रवेश होइ छन्हि्‍।)
महेन्द्र - जय रामजी की दोस।
दीपक- जय रामजी की।
महेन्द्र - कहु दोस, आइ केम्ह,र सूर्य उगलैए? कहु कनि‍या-बहुरि‍या ओ धि‍या-पुताक हाल चाल।
दीपक- दोस, अहाँ एखन धरि‍ नै‍ बुझलौं। कनि‍या हमर पौंरे साल स्व र्गवास भए गेली। खूनी बेमारी भए गेल छलनि‍। मुदा धि‍या-पुताक कुशल बढ़ि‍याँ अछि‍।
महेन्द्र - बेटा-बेटी कए गो अछि‍ दोस?
दीपक- कहाँ कोनो बेसी अछि‍। मात्र तीनि‍टा बेटे अछि‍ बेटी नै‍।
महेन्द्र - तहन तँ जीतल छी दोस। अगबे चानीए अछि‍।
दीपक- दोस अहाँकेँ?
महेन्द्र - हमहुँ कोनो बेजाए नै‍ छी। हमरो चारि‍टा बेटे अछि‍।
दीपक- तहन तँ अहाँकेँ सोने अछि‍।
महेन्द्र - आब कहु दोस, केमहर-केमहर पधारलौं अछि‍?
दीपक- यएह, बड़का बेटा मोहनक लड़ि‍कीक जोगारमे। अपने गाम-घरमे वा आस-पासमे कोनो नीक लड़ि‍की नै‍ अछि‍?
महेन्द्र - यौ लड़ि‍कीऽ......, लड़ि‍कीक बड़ अभाव देख रहल छि‍ऐ। हमरा गाममे बेसी लड़ि‍के देखाइ अछि‍। चौधरी टोलमे एक दि‍न कि‍यो बजैत छलाह जे हमरा टोलमे नामो लए बेटी नै‍ अछि‍। कि‍नको एगो बेटा, कि‍नको दुगो, कि‍नको पाँच गो।
दीपक- ई तँ समस्याा बुझाए रहल अछि‍ दोस। खाइर देखैत छी अपन मामा गाममे जा कऽ। बेस तहन, जय राम जी की।
महेन्द्र - जय रामजी की।
(दीपकक प्रस्थातन)
पटाक्षेप


दोसर दृश्यप
(स्था्न- सुरेश कामतक मकान। सुरेश कामत दीपक चौधरीक मामा छथि‍न। दीपक सुरेश ओइठारम पहुँच रहला अछि‍। दीपकक ममि‍यौत भाए सोनू छथि।
दीपक- मामा, मामा, सोनू, सोनू, मामी, मामी
(दीपक सोर पाड़ैत-पाड़ैत अन्देर घुसैत छथि‍। फेरि‍ शीध्र मामाक संग प्रवेश। दुनू कुर्सीपर बैस कऽ लड़ि‍का-लड़ि‍कीक संबंधमे गप-सप्पप करैत छथि‍।)
सुरेश- कहऽ भागि‍न, पहि‍ने घरक हालचाल।
दीपक- माँ सरस्व तीक कि‍रपासँ आ अपने सबहक चरणक दुआसँ सब ठीके अछि‍। मुदा एगो गड़बड़ अछि‍।
सुरेश- से की भागि‍न?
दीपक- से यएह जे कनि‍याँकेँ मूइलाक उपरान्तब हमरा भनसा-भातमे, घर-गृहस्थीवमे बड़ कष्ट होइ अछि‍। कोनो लड़ि‍कीक सुर-पता अछि‍ मामा श्री अपन बड़का बौआ लेल।
सुरेश- हँ हँ, बलवीर चौधरी एक दि‍न बजैत छलाह जे हमरा ऐ बेर एगो कन्याअदान केनाइ अछि‍।
दीपक- लड़ि‍की अहाँ देखने छि‍ऐ मामा?
सुरेश- हँ, हँ, जरूर देखने छि‍ऐ। लड़ि‍की तँ सएमे एगो अछि‍।
दीपक- मामाश्री, कने हुनका अइठाम जा कऽ बुझि‍यौ।
सुरेश- बेस भागि‍न, अहाँ घर जाउ। जदी‍‍ लड़ि‍कीकेँ नै‍ भेल होइतनि‍‍, तहन ई कुटमैती अवस्स कराए देब।
दीपक- पार्टी केहेन अछि‍ मामा?
सुरेश- पार्टी गरीबे जकाँ अछि‍। ओना पहि‍ने हमरा बलवीर चौधरी ओइठालम जाए दि‍अ तहन ने।
दीपक- बेस, जाउ मामाश्री।
(सुरेशक प्रस्था न)
पटाक्षेप

तेसर दृश्या
(स्था न- बलवीर चौधरीक घर। सुरेश चौधरी बियाह-दानक संबंधमे गप करए पहुँचि‍ रहल छथि‍। बलवीर दलानपर कुर्सीपर बैसल छथि‍। तखने सुरेशक प्रवेश)
सुरेश- नमस्कानर, बलवीरबाबू।
बलवीर- नमस्कानर, नमस्काार। आउ पधारल जाउ।
(सुरेश कुर्सीपर बैसैत छथि‍)
बौआ टुनटुन, बौआ टुनटुन, एक लोटा जल लेने आउ। एकटा अभ्याुगत पधारला अछि‍।
(टुनटुनकेँ एक लोटा जल लए कए प्रवेश)
सुरेशबाबू, चरण पखारल जाउ।
सुरेश- आगू-पाछू हएत ने?
बलवीर- आगू-पाछूबला कोन बात करै छी। मि‍थि‍लाक जे रि‍वाज अछि‍ से नि‍भाबहि‍ पड़त। पहि‍ने चरण पखारू तहन कोनो बातचीत हएत।
सुरेश- बलवीरबाबू, यद्यपि‍ हम वर पक्षसँ आएल छी। मुदा कि‍छु बात बनत तहन ने चरण पखारब। हमर बाप-ददाक कहब छलनि‍। ओइ‍ परम्पुराकेँ हम कोना बि‍सरि‍ सकै छी? होउ, गप कि‍छु आगू बढ़ाउ।
बलवीर- बाजू तखन, केम्हदर-केम्हकर एलौं अछि‍?
सुरेश- कि‍छु दि‍न पूर्व अपने हमरा लग बाजल रही जे हमरा ऐ बेर एगो कन्याुदान केनाइ अछि‍। ओ कुटमैती अपने केलौं वा नै‍।
बलवीर- कहाँ केलौं। नै‍ ओतेक सम्पपत्ति‍ अछि‍ आ ने कन्या्दन कए पाबैत छी। घर तँ वर नै‍, वर तँ घर नै‍। की अहाँक नजरि‍मे कोनो लड़ि‍का अछि‍?
सुरेश- हँ अछि‍, हमरे भागि‍न।
बलवीर- केहेन घर-वर अछि‍?
सुरेश- अपना चशमसँ अपने देखब, से बि‍ल्कु ल ठीक हएत। ओना हमरा समझसँ, नै‍ बढ़ि‍याँ तँ खरावो कि‍यो नै‍ कहि‍ सकै छथि‍।
बलवीर- अहाँक वि‍चारसँ ई कुटमैती करैबला अछि‍?
सुरेश- हमरा वि‍चारसँ ई कुटमैती आँखि‍ मुनि‍ कऽ कए लि‍अ। लड़ि‍का-लड़ि‍की एकदम जोगम-जोग अछि‍।
बलवीर- सुरेशबाबू, जदी‍‍ हम ई कुटमैतीमे ठकेलौं तहन हमर गृहणी कोरमे जीवन भरि‍ चटक करैत रहतीह। से यादि‍ राखि‍ लि‍अ। सुरेशबाबू, हम हुनकामे सकबैन की नै‍।
सुरेश- नै‍ सकबैन तँ हम सकए देब। हम छी ने। आदर्श कुटमैती हएत।
बलवीर- जहन अपने ई डि‍ट्टो पावर लगाबैत छी, तहन हम नै‍ देखब-तेखब। एक्के बेर काल्हि‍‍ छेके कए लेब। ई कुटुमैती पक्के बुझु। आबहु चरण पखारब की नै‍?
सुरेश- आब चरणहि‍टा पखारब! जे नै‍ से करब। पान, बीड़ी, सुपारी, सीगरेट, नश्ताई, भोजन सबटा करब। पाछू काल कने समधीनो लग जाएव, फुसुर-फुसुर बति‍याएब। तहन गाम वापस जाएब।
(पएर धोलनि‍)
बलवीर- बौआ टुनटुन, अन्दयरसँ नश्ता पानि‍ लाउ।
(टुनटुन अन्दिरसँ नश्ताब, पान, बीड़ी, सलाइ, सुपारी आनै छथि‍। सुरेश ओ बलवीर नश्ता कए पान, सुपारी, बीड़ीक उपयोग करै छथि‍।)
सुरेशबाबू, हम ठहरलौं एकटा साधारण वा गरीब लोक। हम की नश्ता कराएब, की व्यंवस्थाट करब?
सुरेश- बाप रे बा..., एहेन नश्ताा तँ हम बापो जनम नै‍ खेने रही। मोन तँ गदगद भए गेल। आब चलबाक आज्ञा देल जाउ। कने भागि‍नो अइठाम जेबाक अछि‍ अखने‍। तहन ने काल्हि‍ ओ सभ छेका-छुकीक व्यदवस्थाअ करताह। बेस, जाय राम जी की।
बलवीर- जय राम जी की। कहल सुनल माफ करबै सरकार।
(सुरेशक प्रस्था न)
पटाक्षेप


चारि‍म दृश्या
(स्था‍न- दीपक चौधरीक घर। मोहनक छेकाक पूर्ण तैयारी। दलानपर एकटा डोलमे पानि‍ आ लोटा राखल अछि‍। कुर्सीपर बैसि‍ कऽ प्रदीप कुमार ठाकुर पेपर पढ़ि‍ रहल छथि‍। कि‍छुए देर पश्चाथत सुरेश कामत, बलवीर चौधरी, गंगाराम चौधरी, चन्देुश्वथर चौधरी आ हरे राम सि‍ंहक छेकाक सामग्रीक संग प्रवेश। गंगाराम आ चन्देकश्वुर बलवीरक क्रमश: छोट भाए आ पैघ भाए छथि‍न। हरे राम सि‍ंह बलवीरक बुजुर्ग पड़ोसी छथि‍। गंगा रामक हाथमे छेकाक श्रमजान अछि‍। दुआरि‍पर दसटा कुर्सी लागल अछि‍।)
प्रदीप- (ठाढ़ भऽ कऽ) नमस्कालर कुटुम, नमस्का र कुटुम, नमस्कादर कुटुम। (कल जोड़ि‍ दुनू तरफसँ नमस्का र पाती भए रहल अछि‍)
आउ, आउ, पधारल जाउ, पधारल जाउ। पहि‍ने सभ कि‍यो चरण पखारू।
(सभ कि‍यो चरण पखारि‍ रहल छथि‍ आ बारी-बारीसँ कुर्सीपर बैसैत छथि‍)
सुरेशबाबू, कने हम अन्द रसँ आि‍ब रहल छी।
सुरेश- बेस आउ।
(प्रदीप अन्दणर जा कऽ दीपकक संग आबै छथि‍।)
दीपक- नमस्का र समधि‍, नमस्कािर कुटुम, प्रणाम मामाश्री।
(कल जोड़ि‍ दुनू तरफसँ नमस्काकर पाती भेलनि‍।)
कहु समधि‍, अपने सभ कि‍यो आबि‍ गेलि‍ऐ।
बलवीर- हँ, हँ, हमरा लोकनि‍ सभ ि‍कयो आबि‍ गेलौं।
दीपक- धन्य वाद। बौआ गोपाल, गोपाल।
(अन्द-रसँ गोपाल कहलनि‍- जी बाबूजी)
कने एम्ह-रौ धि‍यान देब बौआ।
(गोपाल नश्ताप लऽ कए प्रवेश ट्रे मे। संगमे सोहन सेहो छथि‍। सोहन सभकेँ नश्ता‍ दैत छथि‍। सभ कि‍यो नश्ता कए हाथ मुँह धोइ कऽ बैसै छथि‍)
प्रदीप- गोपाल बौआ, कने चाह-पान, बीड़ी-सुपारी, सि‍करेट-सलाइ सेहो देखहक।
गोपाल- जी चच्चाआ, जाइ छी।
(गोपाल अन्दतर जा कऽ ट्रेमे सभ कि‍छु आनैत छथि‍। सोहन सभकेँ पहि‍ने चाह दैत छथि‍ पीवलाक पश्चातत पान-बीड़ी-सि‍करेट दैत छथि‍। जनि‍का जे मोन होइ छन्हिी‍ से लै छथि‍। नश्ताु-पानि‍सँ सभ नि‍वृत छथि‍। सोहन ओ गोपाल ठाढ़ छथि‍)
सुरेश- भागि‍न, बौआकेँ बजाउ। गामपर कि‍यो नै‍ छथि।‍ भैंस हमरे हाथपर लगै अछि‍।
दीपक- हँ, हँ, आबि‍ रहल छथि‍। तैयार भए रहल छथि‍।
प्रदीप- सुरेशबाबू, अहाँक भैंस अहीं हाथपर लगै अछि‍। भैंस बड़ दुलारि‍ छथि‍। सुरेशबाबू छेका-छुकी तँ हेबे‍ करत। पहि‍ने दस आदमीक बीचमे लेन-देन फाइनल भऽ जाए। बादमे तू-तू-मै-मै कइलासँ प्रति‍ष्ठेछ जाइ अछि‍।
हरेराम- सुरेशबाबू, प्रदीपबाबूक गप्पल हमरा बड्ड नीक लागल। हदमद्दीसँ नीक उल्टीमए। बाजू, प्रदीपबाबू अहीं, केना की लेन-देन?
प्रदीप- हम नै‍ बाजब। बजताह सुरेशबाबू। कुटुमकेँ वएह आनलथि‍। केना की गप केलखि‍न, से तँ वएह ने कहताह।
हरेराम- बाजू सुरेशबाबू, केना की गप्पब?
सुरेश- कोनो गप्पा-सप्पँ नै‍। हम बलवीरबाबूकेँ यएह कहलि‍यनि‍ जे ई कुटमैती करैबला अछि‍ आ ओ भऽ कऽ रहत। ऐमे हम पड़ल छी।
गंगाराम- तहन छेकामे वि‍लंब ि‍कएक सुरेशबाबू? एत्ते टाइल गुल्लीह खेलाबाक कोन प्रयोजन? एत्ते कि‍यो छि‍रहारा खेलए।
चन्दे्श्वगर- यौ सुरेशबाबू, सभटा अहींक चक्कर चालि‍ छी। कहलौं आदर्श कुटमैती आ देख रहल छी बटुआ भरू कुटमैती। अऍं यौ, एखुनका युगमे अल्ट्रातसाउडक युगमे लड़ि‍कोक अभाव अछि‍। ओइ‍ हि‍साबे लड़ि‍कीएक बड़ अभाव अछि‍। हमरा ई कुटमैती नै‍ करबाक अछि‍।
हरेराम- हरबराउ नै‍ बौआ। नवका कुटमैतीमे एहि‍ना तोड़-जोर हेाइ अछि‍। अहाँ शांत रहु। देखि‍यौ की होइ छै? माँ सरस्व तीक कि‍रपा हेतैन तँ भऽ जाएत। कोनो काज हरबराए कऽ नै‍ करी।
प्रदीप- हरेरामबाबू, चन्देकश्वतरबाबू एतेक गैसमे कि‍एक आबि‍ गेलाह। कोनो कुटमैती केने छथि‍ की नै‍।
गंगाराम- हँ, हँ, अहींटा कुटमैती केने छी। आ देखने छी। हमरा एहेन दलालबला कुटुमैती नै‍ करबाक अछि‍। लड़ि‍काक लेल दुनि‍या, बड़ीटा अछि‍।
प्रदीप- गंगारामबाबू, अहूँ बड़ भासि‍ रहल छी। कने होशमे बात करू।
हरेराम- ओम शांति‍, ओम शांति‍, ओम शांति‍। कृपया सभ कि‍यो शान्तब होउ। हल्लाम गुल्लाम नै‍ हेबाक चाही। प्रदीपबाबू, कने दीपकबाबूसँ एक बेर अंदर जा कऽ वि‍चार करि‍यौ। ओना आधुनि‍क युगमे बेटीक बड़ अभाव अछि‍ आओर बेटा भरमार अछि‍।
प्रदीप- ठीक कहलौं हरेरामबाबू, कने हम आ दीपकबाबू अंदरसँ आबि‍ रहल छी।
(दीपक आ प्रदीप अन्दौर गेलाह। कुटुम लोकनि‍ दुआरि‍पर बैसल छथि‍। फेर सुरेश सेहो अन्दरर जाइ छथि‍। तीनू अंदरमे गप्प करै छथि‍।)
सुरेश- भागि‍न प्रदीप, हमर प्रति‍ष्ठा। बचाउ। हम हि‍‍नका सभकेँ कहि‍ देने छि‍यनि‍ जे वि‍याह आदर्श हएत।
दीपक- से बि‍ना बुझने अहाँ कि‍एक कहि‍ देलि‍ऐ।
सुरेश- से हम बड़ पैघ गलती केलौं।
दीपक- अहाँकेँ कम-सँ-कम पाँचो लाख टाका नगद आ अलावे सब समान कहबाक चाही की ने। बुढ़ पुरान भऽ कऽ भसि‍या जाइ छी मामा।
सुरेश- तोहर जे मोन छह, तइप र कुटमैती नै‍ हेतह भागि‍न। जाह, दोसरे कए लि‍हह। हमरा एतेक मोलाइमे सम्हाभरल नै‍ होएत।
(अन्द‍रसँ खि‍सि‍या कऽ आबि‍ दुआरि‍पर बैसै छथि‍।)
प्रदीप- आब ई कुटमैती लागि‍ रहल अछि‍ जे नै‍ सम्हिरत। दीपकबाबू, छोड़ू लोभ-लालच। कहबी अछि‍- लोभ: पापस्यआ कारणम्। अहाँ मामाश्रीकेँ कसि‍ कऽ पकड़ू। कुटमैती तँ केनाइ अछि‍। आदर्शे रहए दि‍यौक। अन्यीथा अहुँक प्रति‍ष्ठाा चलि‍ जाएत आओर ममोक प्रति‍ष्ठा‍ चलि‍ जाएत। दुआरि‍पर सँ एहेन सम्हँरल कुटुमकेँ नै‍ घुमैबाक चाही।
दीपक- तहन की कएल जाए, सर?
प्रदीप- कने मामाश्रीकेँ बजाबि‍यौन आ हुनकेपर सभटा छोड़ि‍ दियौन।
दीपक- बेस सर, मामाश्रीकेँ बजाबै छि‍यनि‍।
(बाहर आबि‍ मामाश्रीकेँ कहै छथि‍।)
मामाश्री, यौ मामाश्री, मामाश्री यौ?
सुरेश- की कहै छी?
दीपक- कने प्रदीपबाबू भीतर बजाबै छथि‍।
(सुरेश अन्द र जाइ छथि‍। प्रदीप, दीपक आ सुरेश अन्द।रमे गप-सप्प‍ करै छथि‍)
प्रदीप- अहीं जे-जेना करबै सुरेशबाबू, सएह हएत। एतऽ प्रति‍ष्ठाठक सवाल अछि‍। खाली एना करबाक प्रयास करबैन जाइसँू साँपो मरि‍ जाए आ लाठीयो नै‍ टूटए।
सुरेश- चलै‍-चलह दुआरि‍पर। कुटुमो की कहैत हेताह। की नै‍। हम एक्के बेर बाजबह। ओइमे‍ गुंजाइश हेतह तँ करि‍हह, नै‍ तँ तोहूँ घर, उहो घर।
(सभ दुआरि‍पर आबै छथि‍)
बलवीर- हरेरामबाबू, कने पुछि‍यनुु, की केना वि‍चार भेलनि‍?
हरेराम- सुरेशबाबू, की केना वि‍चार भेल? हमरा सभकेँ जल्दीच कहु। बड़ वि‍लंब भए रहल अछि‍।
सुरेश- हम ि‍हनका सभकेँ कहलि‍यनि‍ जे बलवीरबाबू नवका टीचर छथि‍। ई बेचारा गरीबे छथि‍। ई आदर्श वि‍याह करताह। ताहुमे ओ कोनो अन्न-छेरू नै‍ छथि‍, मुर्ख-गमार नै‍ छथि‍ जे ठकि‍ लेताह। बेचारा लड़ि‍कीबला अपना मुँहसँ कहलाह जे हम जे कि‍छु देबनि‍। से अपन बेटी-जमाएकेँ देबैन ने, कि‍नको आनकेँ देबैन फेर ओ बजलनि‍ जे हम ओतेक जरूर देबैन जाहि‍सँ कोनो पक्षकेँ प्रति‍ष्ठाफपर नै‍ पड़ए।
प्रदीप- बस करू। लेन-देनक गप्पे खतम करू आओर छेका-छुकीक कार्यक्रम शुरू करू। की यौ दीपकबाबू, गप्पप मंजूर अछि‍ की नै‍?
दीपक- जाउ, अपने सभ जे जेना करि‍यौ। मंजूर अछि‍।
हरेराम- तहन दीपकबाबू, पुरहि‍तकेँ खबर केने छी?
दीपक- आइ भि‍नसरे खबर केलि‍यनि‍‍। ओ अएलो छथि‍। कखनो देखने रहि‍यनि‍। केनाे जजमान ओइठानम गेल हेताह।
हरेराम- कने जल्दीस, पुरहि‍तोकेँ देखि‍यौन्ह आ लड़ि‍कोकेँ बजाउ।
प्रदीप- जाउ बौआ सोहन, पुरहि‍तकेँ जल्दीक ताकि‍ आनू।
(सोहन अंदर जाइ अछि‍)
बौआ गाेपाल, भैयाकेँ बजाउ।
(गोपाल सेहो अंदर जाइ अछि‍। पहि‍ने पुरहि‍तक संग सेाहनक प्रवेश। पुरहि‍तकेँ सभ कि‍यो साग्रह बैसाबैत छथि‍। तहन गोपालक संग मोहनक प्रवेश। मोहन सभकेँ पएर छुबि‍ प्रणाम करै छथि‍ आ सभ कि‍यो आशीर्वाद दै छथि‍न)
हरेराम- बैसु बौआ।
(मोहन बैसि‍ जाइ छथि‍)
की नाम छी?
मोहन- मोहन कुमार चौधरी। (ठाढ़ भऽ कऽ)
हरेराम- पि‍ताजीक की नाम छी?
मोहन- श्री दीपक चौधरी।
हरेराम- परदादाक नाम की छी?
मोहन- (असमंजशमे पड़ि‍) नै‍ बुझल अछि‍।
हरेराम- खाइर छोड़ू, कोनो बात नै‍। अहाँ करैत की छी?
मोहन- दि‍ल्ली़मे एक्सो-पोर्टमे छी।
हरेराम- अच्छाा, बैस जाउ। (मोहन बैस जाइ अछि‍) पुरहि‍त, आब अपन कार्यक्रम शुरू कएल जाए। बड़ वि‍लंब भए गेल।
बौआ- हँ हँ, हमहुँ एक दुपहरि‍या एलौं। एम्हिर-ओम्हतर घुमि‍ रहल छलौं वि‍लंब देख। आउ बौआ, पीढ़ि‍यापर बैसू।
(मोहन पीढ़ि‍यापर आ पुरहि‍त कंबलपर बैसै छथि‍ कलशमे पानि‍ छन्हिो‍। बौआ झा दीपकसँ कुश मंगबैत छथि‍)
सुनू कुटुम सभ, हम वि‍धेटा पुराएव। कारण छेकाकेँ बड़ लेट भए रहल अछि‍। समए सेहो ठंढ़ीक अछि‍।
सुरेश- पंडीजी, अहाँकेँ जे नीक लगए से करू।
बौआ- पढ़ु बौआ, ओम श्री गणेशय नम: -5
मोहन- ओम, श्री गणेशय नम: -5
बौआ- ओम श्री गौरीके शंकराय नम: -5
मोहन- ओम श्री गौरीके शंकराय नम: -5
बौआ- ओम, श्री बराय नम: -5
मोहन- ओम, श्री बराय नम: -5
बौआ- ओम, श्री कन्यानय नम: -5
माेहन- ओम, श्री कन्यााय नम: -5
बौआ- अोम श्री शुभ ि‍बयाहै नम: -5
मोहन- अोम श्री शुभ ि‍बयाहै नम: -5
(अन्द-रमे छेकाक गीत भए रहल अछि‍। छेकाक डाली मोहनक दुनू हाथमे गंगाराम देलखि‍न)
बौआ- बौआ जाउ, डाली गोसाइ लग राखि‍ आउ। सभकेँ गोर लगि‍यौन।
(मोहन डाली अन्दआर राखि‍ अबै छथि‍ सभकेँ पएर छुबि‍ गोर लगैत छथि‍। कुटुम सभ हुनका गोर लगाइ दै छथि‍)
दीपकबाबू, हमरा दक्षि‍णा दि‍अ। हमरा बड़ वि‍लंब भए रहल अछि‍।
दीपक- भोजन-साजन कए लि‍अ आ राति‍मे एत्तै वि‍श्राम करू।
बौआ- भोजन-साजन कए लेब, से संभव अछि‍। मुदा रात्रि‍ वि‍श्राम असंभव अछि‍। यौ बाबू हमर कन्याल बड़ डरबुक छथि‍। बि‍ना हमरा रहने हुनका नीने नै‍ होइ छन्हि़‍‍।
प्रदीप- बलवीरबाबू, अहाँ वि‍याह कहि‍या करए चाहै छी?
बलवीर- अहाँ जहि‍या करू।
प्रदीप- पंडीजी, कने बियाहक दि‍न देखि‍यौ।
(पंडि‍जी पतरा देखै छथि‍)
बौआ- काल्हुाक दि‍न अछि‍। परसुओक दि‍न अछि‍। चारम-पाँचम-छठम दि‍न नै‍ अछि‍। फेर सातम दि‍न अछि‍।
(एक सए टाका लऽ कऽ प्रस्थारन)
प्रदीप- बलवीरबाबू, अहाँकेँ कोन दि‍न पसीन अछि‍?
बलवीर- हम बेटीबला छी। हमरा बड ओरि‍यान करए पड़त। हम सातम दि‍नका वि‍आहक दि‍न मंजूर करैत छी।
प्रदीप- बेस, बियाहक दि‍न फैनल भए गेल, सातम दि‍नका। गोपाल कने भोजनक जोगार देखहक।
गोपाल- (गोपाल अन्दकर जा कऽ आबि‍) चच्चाम भोजन तँ तैयार अछि‍। भोजन सराए रहल अछि‍।
प्रदीप- हरेरामबाबू, चलै-चलू भोजन करए। सोहन बौआ, लोटा आ बाल्टीकनमे पानि‍ नेने आउ।
(सोहन अन्‍दरसँ बाल्टी नमे पानि‍ आनैत छथि‍)
कुर्रा- उर्रा करैले जाइ-जाउ सरकार सभ।
(सभ कि‍यो कुर्रा कए तैयार छथि‍)
चलै चलू भोजनमे।
(सबहक प्रस्थायन)
पटाक्षेप


पाँचि‍म दृश्या
(स्‍थान- बलवीर चौधरीक आवास। बि‍याहक तैयारी पूर्ण भए गेल अछि‍। जयमालाक मंच तैयार आ सजल अछि‍। मचक आगू बाल्टीेनमे लोटा आ पानि‍ अछि‍। कुर्सीपर गंगा राम चौधरी बैसि‍ कऽ आेङहा रहल छथि‍।)
गंगाराम- (नीनमे) हमहुँ बेटाक वि‍याह करब। दहेजमे एगो उजरा आ एगो करि‍या बत्तु लेब। ठाँठ बकरी लेब सेहो जरसी। कनि‍या लेल कानमे बुलकी लेब। अपना लेल एगो फाटलो-चि‍टलो कनि‍या लेब। बाआ लेले एगो गदहा लेब। अपना कनि‍या लेल ठोररंगा लेब। एगो मोचना लेब। ओइसँ अपन कनि‍याकेँ सौंसे देहक केश उखारि‍ देबैन। आओर नगद एगारह लाख एगारह सए टाका, डालीमे एक लाख मच्छनर आ समधी मि‍लानमे एक हजार एक उड़ीश लेब। आओर पुतौह लेल.....।
(चन्देगश्व र चौधरीक प्रवेश)
चन्देनश्वेर- गंगा राम, गंगा राम, रौ गंगा राम।
(गंगाराम फुरफुरा कऽ उठि‍ खसैत-पड़ैत)
गंगाराम- जी भैया, जी भैया, केम्हरर गेलीह भौजी?
चन्देाश्वीर- सपनाइत छेँ की?
गंगाराम- नै‍ भैया, अपन बेटाक छेकामे गेल रही।
चन्देाश्वैर- नीन तोड़ू मुँह-हाथ धोउ।
(अन्द‍रसँ दुइ-चारि‍टा बमक आवाज होइ अछि‍।)
गंगाराम लगै अछि‍ बरयाती आबि‍ रहल अछि‍।
गंगाराम- आबए दि‍यौन। कटहर-चूड़ा खेताह। एतेक अबेर आएल बरयातीकेँ की स्वािगत हएत? अपन ठरल-ठरल खाएत आ सि‍रसि‍राइत भागत।
(बरयातीक प्रवेश। दीपक चौधरी, मोहन चौधरी, सोहन चौधरी, गोपाल चौधरी, प्रदीप कुमार ठाकुरक आ चारि‍-पाँचटा हुनक समाजक लोक बरयातीमे आएल छथि‍। सभ कि‍यो मंचपर वि‍राजमान छथि‍। पाछू काल सुरेश कामत पहुँचलाह।)
दीपक- गोर लगै छी मामीश्री।
सुरेश- नीके रहू भागि‍न।
दीपक- बरयाती एबाक मोन पड़ि‍ गेल?
सुरेश- की करबैक भागि‍न, असगरूआ छी। छेका दि‍न समएपर महीसकेँ नै‍ दुहलौं। तेकर फल यएह भेल, महीस नि‍छए गेल।
(सरयातीक प्रवेश। हरे राम सि‍ंह, बरवीर चौधरी, गंगाराम चौधरी, चन्देरश्वशर चौधरी आ हि‍नक अपन समाजक लोक छथि।)
हरेराम- (बरयातीसँ) सरकार सब, चरण पखारल जाउ। बड राति‍ भए गेल। हमर समाजक कतेको लोक चलि‍ गेलाह। नश्तो‍ पानि‍ हेतै। जल्दीक चरण पखारल जाउ, सरकार सभ।
(सभ कि‍यो चरण पखारि‍ कऽ बैसैत छथि‍।अन्दोरसँ गंगाराम शरबत, नश्ताभ, चाह, पान, बीड़ी, सुपारी इत्यातदि‍ आनै छथि‍।नश्ताट-पानि‍ आरामसँ भए रहल अछि‍। चाह-पानक बाद सरयाती सभ अंदर जाइत छथि‍। तहन जनानी सभ जयमाला करेबाक लेल एलीह। ओ सभ पहि‍ने परि‍छनि‍क गीत गाबि‍ परि‍छन कए रहलीह फेर लड़ि‍काक परि‍क्रमा करए जयमाला कराबैत छथि‍। तहन लड़ि‍की लड़ि‍काक आरती उतारि‍ आ प्रणाम कऽ आशीर्वाद लय सभ जनानीक संग अंदर जाइ छथि‍। प्रदीप कुमार ठाकुरक प्रवेश)
प्रदीप- (बरयातीसँ) सरकार सभ, भोजनमे चलै चलू।
हरेराम- चलै चलू, बरयाती सभ। भोर होमए जा रहल अछि‍। चलू, चलै चलू।
(सबहक प्रस्थाचन)
पटाक्षैप

छठम दृश्यल
(स्था न-दीपक चौधरी आवास। दलानपर दीपक चि‍न्ति‍‍त मुद्रामे बैसल छथि‍। ललका धोती आ बदामी कुरता पहि‍रने छथि‍। तखने दीपकक एकटा पड़ोसीक प्रवेश जनि‍क नाम झामलाल महतो छन्हिर‍।)
झामलाल- (दीपकसँ) की यौ दीपकबाबू, बड़ मनहुस देख रहल छी। की कारण छै।
दीपक- नै‍ कोनो खास बात।
झामलाल- जखन कोनो खास बात नै‍ अछि‍ तखन एना चि‍न्तिद‍त कि‍अए छी? हमरा लागि‍ रहल अछि‍ जे समधीन अहाँकेँ अपन ओजारसँ घरमे बन्दु कए थुरलनि‍‍।
दीपक- छोड़ू मजाक-तजाक। एखन हमरा अनसोहाँत नीक नै‍ लागै अछि‍। गूड़क मारि‍ धोकरे जानै छै‍। अपन हारल बौहक मारल छी।
झामलाल- समधीन राति‍मे गरम दूध नै‍ पीएलनि‍‍‍?
दीपक- कि‍एक कप्पा‍र खाइ छी? चुपचाप बैसू।
झामलाल- चुपचाप हम कि‍एक बैसब? हम अहीं जेकाँ बौहक मारल छी की? दीपकबाबू, चि‍न्ताए-फीकीर छोड़ू। कहु की भए गेल? (हँसि‍ कऽ)
दीपक- अहाँ नहि‍ए मानब की?
झामलाल- केना मानब? हम कि‍नको उदास देखैले नै‍ चाहैत छी। तइमे अहाँ पड़ोसी छी। हरदम प्रसन्न रहू, प्रसन्न।
दीपक- की प्रसन्न रहब झामलाल? मामापर पूर्ण वि‍श्वाेस कए ई कुटमैटी केलौं। मामा गरदनि‍मे फाँस लगा देलक।

झामलाल- से की?

दीपक- यएह जे सोन सनक बेटाकेँ टलहा सनक स्वापगत। नै नगद, नै बरतन-बासन, नै कपड़ा, नै लत्ता, ने लकड़ी, नै बकरी, नै डाली-हारी, नै बि‍दाइ, नै‍ गोर लगाइ। सभ कि‍छुमे ठक-ठक सीताराम।

झामलाल- ई तँ साफे ठकि‍ लेलनि‍ कुटुम। अहाँ एहेन खतम छी, से नै‍ बुझल छल।

दीपक- देलनि‍ कुटुम सभ कि‍छु। मुदा जत्तऽ एक लाख हेबाक चाही ओत्तऽ सि‍रीफ एक सए। दूधक डारही।

झामलाल- बहुते भेटल दीपकबाबू बहुते। बेचारा नवका मास्ट र छथि‍। जे हुनका संभव भेलनि‍, से सभ कि‍छु देलनि‍ आ अहींक बेटा कोनो हाकि‍म-हुकुम छथि‍ की? छोड़ू लेन-दन, दहेज-तहेज। कहु लड़ि‍की केहेन भेटल?

दीपक- हँ ई पुछलौं खल से। (प्रसन्न भए) लड़ि‍की तँ सौंसे गाममे एहेन सुन्नरि‍ नै‍ हेतीह। हजारोमे नै‍ लाखमे एगो छथि‍। देखबनि‍ तँ देखिते रहि जाएब।

झामलाल- तहन अहाँ हारल नै‍ छी, जीतल छी। बाजी मारि‍ लेने छी ऐ अल्ट्रएसाउण्डैक जुगमे। देखब, कि‍छु दि‍नक बाद बेटी बि‍लुप्तँ भए जेतीह। जौं कतौ-कतौ भेटबो करतीह तँ ओकरा बाबा डि‍हबार जेकाँ पूजा करए पड़त। ऐ दहेजक जुगमे आ अल्ट्रा साउण्डिक जुगमे बेटी बनि‍ जाएत पीर मि‍यां। अोइमे अहाँ एखन धरि‍ छक्का मारने छी।

दीपक- से तँ जे कही। मुदा दहेजक लोभमे करजा कऽ कए धुमधामसँ बेटा बि‍याहलौं। ओइमेह भेटल डपोरशंख। हम ऐ चि‍न्तेँ मरि‍ जाएब।

झामलाल- हम तँ अहाँकेँ कहब जे भगवतीपर भरोसा राखी आ हरदम प्रसन्न रही। मुदा अपनेक जे वि‍चार? हम जए रहल छी दीपकबाबू। हमरा पोखरि‍ दिस‍ लागि‍ गेल अछि‍। हमरा गोटेक सप्तामहसँ सुलबाइ भए रहल अछि‍।

दीपक- तहन जल्दी जाउ पोखरि‍ दिस‍‍।

(झामलाल धोती पकड़ने भागलथि।‍)

तेँ बड़ी कालसँ महकैत छल। नाक नै‍ देल जाइ छल।
(फेर चि‍न्तिह‍त मुद्रामे बैसै छथि‍)

एहेन बुझि‍तौं तँ बेटाक बि‍याह नै‍ करि‍तौं। सोचने रही जे ओ जमीन कीन‍‍ कऽ मकान बनैबतौं ओ करजा-बरजा झारि‍तौं। मुदा आब तँ करजो सधेनाइ मुश्किं‍ल। एक तँ हम बेमार रहैत छी आ दोसर माथपर करजाक बोझ। आब हम ऐ बेत्थेँह मरि‍ जाएब, लागि‍ रहल अछि‍।

पटाक्षेप







अंक तेसर



पहि‍ल दृश्यि

(स्था‍न- दीपक चौधरीक घर। दीपक रोगग्रस्तँ अवस्था मे माथपर हाथ लेने बैस कऽ खांसि‍ रहल छथि‍।)

दीपक : (खासैत) आह! ओह! दुनि‍याँमे कि‍यो ककरो नै।‍ कि‍यो देखनि‍हार नै। जा धरि‍ पैरूख छल, ताधरि‍ झूठ-फूस, एम्हनर-ओम्ह‍र कए बेटा बि‍याहलौं। मुदा आब कतौ कि‍यो नै‍। (खांसैत छथि‍)

(महेन्द्र पंडि‍तक प्रवेश)

महेन्द्र : दोस, बड़ गड़बड़ स्थिछ‍ति‍मे देख रहल छी अहाँकेँ। एना कि‍अए? की भए गेल?

दीपक : की हएत दोस? कप्पाोरमे जे घँसल अछि‍। सएह ने हएत। (खांसैत छथि‍)

महेन्द्र : बड खाेंखी होइ अछि‍।

दीपक : की कहु दोस, दम्माो जोर कए देलक। एक्को रत्ती सक्क नै‍ लगैत अछि‍। तइपनर सँ भनसा-भात अपने केनाइ।

महेन्द्र : (आश्च र्यसँ) से कि‍अए? आ पुतौह?

दीपक : पुतौह गेलीह डि‍ल्लीआ। बेटा नै‍ मानलक हमर बात।

महेन्द्र : कहु दुनि‍याँ केहेन छै? बेटा-बेटी जनमाबै अछि‍‍ लोक सुख लए आ आगू दि‍न लए।


दीपक : मुदा हमर बेटा स्वा्र्थमे लीन छथि‍। आब हम ओकर के? दुश्मिने ने।

महेन्द्र : एगो गप्पल कहु दाेस।

दीपक : अवस्सह कहू।
महेन्द्र : झांपि‍-तोपि‍ कऽ दोसर बि‍याह कए लि‍अ।

दीपक : मोन तँ होइ अछि‍ दोस। मुदा आब ऐ उमरमे लोक की कहत?

महेन्द्र : लोक की कहत? कि‍यो एक्को सांझ भनसा बनाए देतीह की?

दीपक : ई तँ सपनोमे नै‍ देख सकै छी। अपन जनमल तँ अपन होइते नै‍ अछि‍ आ दोसरक कोन आशा?

महेन्द्र : छोड़ू ई सभ लटारम। दोसर बि‍याह कए लि‍अ। सभ अपना-अपना लेल हरान अछि‍।

दीपक : (मुँह चटपटबैत आ खांसैत) दोस, मोन तँ बड्ड होइत अि‍छ। मुदा नै‍, बाबाजी छी। लोक की कहत? हम सरस्वतती माताक समक्ष सत्त केने रही। सत्तकेँ हम तोड़ि‍ओ सकैत छी। मुदा नै‍ नै‍ नै‍।

महेन्द्र : नै‍ तँ दोसर बेटेकेँ बि‍याहि‍ लि‍अ।

दीपक : हँ, ई भए सकै अछि‍। मोहना तँ गेल आब सोहना जे करए। अहाँक नजरि‍मे दोस, कोनो अछि‍?
महेन्द्र : एखन नै‍ अछि‍। ओना लड़ि‍की बड्ड अभावो भए गेल अछि‍। जदी‍ नजरि‍मे आबि‍ जाएत तँ अवस्सै कहब। एखन जए रहल छी अपन समधीयौर। समधीनकेँ शंकरजी जनम लेलखि‍‍न।

दीपक : बेस, तहन जाउ, शंकर जीकेँ दरशन करू गे।

(महेन्द्र क प्रस्थातन। दीपक खांसैत-खांसैत बेदम भए जाइ छथि‍।)

पटाक्षेप



दोसर दृश्य

(स्था न- दि‍ल्ली‍। मोहन आ मंजू बि‍छौनपर आराम करै छथि‍। मुर्गाक बाङ सुनि‍ मंजू उठि‍ कऽ अपन पति‍क सेवा कए रहल छथि‍ आ कि‍छु गप-सप्प सेहो कए रहल छथि‍।)

मंजू : (चि‍ट्ठी नि‍कालि‍ कऽ दैत) स्वाछमी जी, पि‍ताजीक चि‍ट्ठी काल्हि‍ सांझमे अएल छल। लि‍अ।

मोहन : कने पढ़ि‍यौ ने, की लि‍खलनि‍‍‍‍ अछि‍।

मंजू : (चि‍ट्ठी पढ़ै छथि‍) चि‍रंजीवी बौआ मोहन, शुभ आशीर्वाद। हमरा बेटा जनमा कऽ की भेल? दम्माढसँ तबाह छी। कि‍यो पूछैबला नै‍। सोहना आ गोपला सदि‍खन नरहेर जकाँ एम्हतर-ओम्हूर करैत रहै अछि‍। तोरा बि‍याहि‍ कऽ हमरा की भेटल। हँ, एकटा चीज अवस्स भेटल, चि‍न्ताि। खाइर कतउ रहू, नीके रहु।

मोहन : (मंजूसँ चि‍ट्ठी लऽ कऽ फंेकैत) जेहेन करनी तेहेन भरनी। देखैत छेलि‍एनि‍ जे भरि‍ दि‍नमे एक-एक मुट्ठा बीड़ी पीब‍ जाइ छथि‍। तइपछर सँ गांजा सेहो धुकैत छथि‍। एकर फल हुनका नै‍ भेटतनि‍ तँ कि‍नका भेटतनि‍।

मंजू : स्वी।मी, मुदा छथि‍न तँ ओ जनम दाता। की कहबैन आब हुनका। बुढ़े जकाँ छथि‍। तहुपर सँ दम्मा।क तबाही। स्वाैमीजी, हमर वि‍चार अछि‍ जे दुइ-चारि‍ दि‍न लेल गाम चलू आ पि‍ता जीकेँ देख आबी। हुनको मनमे संतोष हेतनि‍‍।

मोहन : भोरहि‍ भोर हमरा मन नै‍ खि‍सीआउ। गाम जेबामे माल-पानी खरचा होइत छै की नै‍। बापबला रखने छी तँ चलू।

मंजू : (शांत भऽ) जे कहलौं से गलती केलौं।

मोहन : एखन गाम नै‍ जाएब। एक्के बेर सोहनक बि‍याहमे।

मंजू : जे मन हुअए, सहए करू स्वाकमी।

(संजू कुमारीक प्रवेश। संजू अपन पाहुन आ बहि‍नकेँ पएर छुबि‍ प्रणाम करै छथि‍। दुनू माथपर हाथ दए आशीर्वाद दै छथि‍न।‍)

मोहन : (संजूसँ) आइ शीताहल नढ़ि‍या जकाँ अहाँ? केना एतए धरि‍ अहाँ पहुँच पेलौं संजू?

संजू : कि‍एक पाहुन, हमरा अहाँ बुरबक बुझैत छी की? अहुँसँ हम काबि‍ल छी, से बुझि‍ लि‍अ।

मोहन : हँ हँ, से तँ अहाँ छी। कहु असगरे केना-केना एलौं?

संजू : गामपर बस धेलौं पटना एलौं आ पटनामे राजधानी पकड़ि‍ दि‍ल्लीज टीशन एलौं। दि‍ल्लीरमे टेक्सीत पकड़ि‍ अहाँ लग एलौं। नम्बगर-पता अहाँ हमरा देनहि‍ रही।

मोहन : खाइर एतेक अचानक अहाँक एबाक कारण?

संजू : 26 जनवरी नजदीक छै। ओइमे परेड देखए हेतु प्रोग्राम अचानक बनि‍ गेल।

मंजू : ऐ बीच लाल कि‍ला, इंडि‍या गेट, ताजमहल, लोटस टेम्पजल, चि‍ड़ि‍या-घर इत्या दि‍ पाहुन सेहो देखाए आनथुन। आब बुच्चीु अहाँ कहि‍या आएब कहि‍या नै‍।

मोहन : संजू, आब अहाँ बड़ीटा भए गेलौं। बि‍याहमे कनि‍एटा रही।

संजू : अहाँक वि‍चारसँ हम सभ ि‍दन कनि‍एटा रही?

मोहन : हँ हँ सएह बुझु। नमहर भेलासँ अहुँकेँ दीदी जकाँ बि‍याह करए पड़त। बाप-माएकेँ बड्ड खरचा करए पड़त। तैयो बाप-माएकेँ छोड़ि‍ परघर चलि‍ जाएब। नै‍ तँ हमरे लग सभ दि‍न रहि‍ जाउ ने संजू।

संजू : एगोमे सुखए कऽ संठी भए गेलौं आ दोसरकेँ राखैत छी। डाँरमे दम अछि‍ पहि‍ने? केहेन-केहेन गेल्लास तँ मोंछबला एल्लाग। एक्के ठुस्सी मारब तँ मुँह भसकि‍ कऽ पेटमे चलि‍ जाएत।

मंजू : छोड़ू बुच्चीे मजाक-तजाक। काल्हि‍ अहाँ पाहुन संगे घुमै लए चलि‍ जाएब।


पटाक्षेप



तेसर दृश्य

(स्थायन- दीपक चौधरीक घर। दीपक खांसी करैत आ हकमैत बैसल छथि‍।)

दीपक : बड़का बेटा चि‍ट्ठीक कोनो जबाबो नै‍ पठेलनि‍। हमर आब कोनो ठेकान नै‍। कखन छी, कखन नै‍। बेमारी बड जोर केने जा रहल अछि‍।
(खांसी करैत-करैत बेदम भए जाइ छथि।‍ फेर ओ बीड़ी पीबै छथि‍।)
सोचने रही जे मझि‍ला बेटाक बि‍याह कए ली जीबतहि‍। मुदा हएत की नै‍, से कहब कठि‍न।

(प्रदीप कुमार ठाकुरक प्रवेश)

प्रदीप : दीपकबाबू, अहाँक हालत बड खराब देखै छी।

दीपक : (कलपि‍ कऽ) सर परणाम।

प्रदीप : प्रणाम-प्रणाम।

दीपक : सर, हम सोचैत रही जे अपना जीबैत बेटा सभकेँ बि‍याहि‍ ली। मुदा लगै अछि‍ जे हएत नै‍।

प्रदीप : से कि‍अए नै‍ हएत? हि‍म्मरत जुनि‍ हारू।

दीपक : हि‍म्मूत की हारब सर। अहु अवस्थातमे लड़ि‍की लेल घुमैत-घुमैत, बौआइत-बौआइत, छि‍छि‍आइत-छि‍छि‍आइत नवका जूताक शोल खि‍आ गेल। जत्तऽ जाउ बेटे, जत्तऽ जाउ बेटे।

प्रदीप : हँ, ई तँ बड़का समस्या अछि।‍ लड़ि‍का तँ लड़ि‍कासँ बि‍याह नै‍ करत आ लड़ि‍की भेटै नै‍ अछि‍। दीपकबाबू, बुझैत छि‍ऐ ई कि‍अए भए रहल अछि‍? दहेज करणे। दहेज दुि‍नयाक संतुलनकेँ बि‍गारि‍ देलक आ बि‍गारि‍ देत। जुग अल्ट्रा साउण्डाक भए गेलैए। लोक अल्ट्राबसाउण्डल करा कऽ बेटीकेँ जेना-तेना नष्टस कऽ दैत छथि‍। तहन बेटी वा लड़ि‍की कत्तसँ अाएत? की लड़ि‍की बरखामे खसत?

दीपक : सर, हमहुँ ओइ‍ अल्ट्रामसाउण्डतक मारल छी। कोनो लड़ि‍की अहाँक नजरि‍मे नै‍ अछि‍।

प्रदीप : हँ यौ।

दीपक : जय भगवान, जय भगवती। कहु कत्त?

प्रदीप : (मन पाड़ैत) यौ बेलौकमे एक दि‍न कि‍यो कहने रहथि‍ जे एगो हमरा बि‍याहैवाली बेटी अछि‍। (नाक छुबैत) हँ हँ, आब मन पड़ि‍ गेल। ओ छलाह- हरि‍श्चन्द्र चौधरी। हुनका एक्केटा बेटीए छन्हिो‍, बेटा-तेटा नै‍।

दीपक : सर, तहन जल्दी बुझि‍यौ ने। सर, तहन तँ ओ माल-पानी बढ़ि‍या खरच करताह।

प्रदीप : अहाँ बड लोभी छी। सदि‍खन माल-पानीक जोगारमे रहैत छी। पहि‍ने हमरा बुझऽ दि‍अ जे लड़ि‍की छन्हि‍‍ेँ वा उठि‍ गेलीह। अच्छाह रूकु, हम घर जाकऽ झामलाल महतोकेँ हुनका ओइठाहम पठबै छी। हँ की नै‍, से हुनके दि‍या समाद पठा दै छी। अहाँ असथि‍र रहु।

(प्रदीपक प्रस्थाहन। दीपक खूब खांसैत-खांसैत परेशान छथि‍।)

दीपक : बड़का बेटामे तँ सोलहन्नी ठकाए गेलौं। मुदा मझि‍लामे सुधि‍-मुरि‍ ओसुलि‍ लेब। आखि‍र एक्केटा बेटी छन्हि ‍ आ बेटा छन्हि ‍ें नै‍ हुनका। हुनक सभटा संपत्ति‍ हमरे हेबाक चाही।
(खांसैत-खांसैत परेशान)

(झामलालक प्रवेश)

झामलाल : दीपकबाबू, प्रदीप भैया हमरा हरि‍श्चन्द्र क ओइठा‍म लड़ि‍कीक संबंधमे पठौने रहथि‍। हरि‍श्चन्द्र बाबूक एखन धरि‍ कुमारि‍ए छथि‍। मुदा हरि‍श्चन्द्र बाबूक मन बड्ड अगधाएल देखलि‍यनि‍‍। पाँचटा कुटुमकेँ गप-सप्पे करैत सेहो देखलि‍यनि‍। ओ हमरा कहलनि‍ जे हुनका जरूरी हेतनि‍ तँ ओ हमरे‍ ऐठाम आबि‍ गप-सप्प करताह। हमरा भरि‍मे सएओ कुटुम आबै छथि‍। हमरा पानि‍ छोड़ि‍ कऽ कि‍छु नै‍ लगैत अछि‍। सभटा कुटुमे लेने आबै छथि‍।

दीपक : एहेन बात कहलनि‍ ओ?

झामलाल : हँ यौ दीपकबाबू, हम अहाँकेँ फुसि‍ कि‍अए कहब? हमरा ओइसँश की फेदा? अन्तहमे ओ कहलनि‍ जे पि‍यासल इनार लग जाइ अछि‍, इनार पि‍यासल लग नै‍।

दीपक : हारल नटुआ झुटका बि‍छए। काल्हि‍ हमरा लोकनि‍ हुनका ओइठा म जाएब। नऽ छऽ केने आएब। कम्मोब-सम्मोइमे पटत तँ हमरा केनाइ परम आवश्यछक अछि‍।


पटाक्षेप


चारि‍म चारि‍म

(स्था‍न- हरि‍श्चन्द्र चौधरीक घर। हरि‍श्चन्द्र चौधरी आ रमण कुमार दलानपर कुर्सीपर बैसि‍ शालि‍नीक बयाहक संबंधमे गप-सप्पम करै छथि‍। रमण कुमार हरि‍श्चन्द्र क मुखि‍या छथि‍।)

हरि‍श्चन्द्र क : मुखि‍या जी, शालि‍नीक बि‍याह हेतु लड़ि‍काबला सभ हमरा नाकोदम कए देने छथि‍। एखन धरि‍ सैकड़ौ लड़ि‍काबला हमरा ऐठाम आबि‍ कऽ गेलाह। मुदा हँ कि‍नको नै‍ कहलि‍यनि‍।

रमण- हरि‍श्चन्द्र जी, सभ दि‍न होत न एक समाना। कोनो समए छल जइमेा लड़ककीबला लड़ि‍काबलाकेँ खुशामद करै छलाह। मुदा आब एहेन समए आबि‍ गेल अछि‍ जइमेन लड़ि‍काबला लड़ि‍कीबलाकेँ खुशामद करै छथि‍। आ एखन कि‍छु नै‍ भेल। आगू देखब की-की होइ अछि‍?

(दीपक चाधरी, प्रदीप कुमार ठाकुर, सुरेश कामत, महेन्द्र पंडि‍त आ झामलाल महतोक प्रवेश। हरि‍श्चन्द्र आ रमण ठाढ़ भऽ कऽ हि‍नका लोकनि‍केँ बैसाबैत छथि‍। दुनू पक्षसँ नमस्का र पाती होइ छन्हिी‍। सभ ि‍कयो बैस कऽ गप-सप्प‍ करै छथि‍।)

रमण : (प्रदीपसँ) प्रदीपबाबू, कहु की हाल-चाल?

प्रदीप : सरस्वपती माताक कृपासँ बड़-बढ़ि‍या हाल-चाल अछि‍ आओर अपनेक हाल-चाल?

रमण : सभ आनन्द‍ अछि‍। प्रदीपबाबू, लड़ि‍काक बाप के छथि‍?

प्रदीप : (दीपक दिस‍ इशारा करैत) ओ छथि‍, दीपक चौधरी।

दीपक : हम छी सरकार, नमस्कापर।

रमण : नमस्कासर, नमस्काीर। दीपकबाबू, अहाँकेँ लड़ि‍की पसीन छथि‍?

दीपक : हँ, हम एगो वि‍श्वपसनीय सूत्रसँ बुझि‍ लड़ि‍कीसँ संतुष्टल छी।

रमण : हरि‍शचन्द्र जी, अपनेकेँ लड़ि‍का पसीन छथि‍?

हरि‍श्चन्द्र : हँ, हमरो बेलॉकमे प्रदीपेबाबू कहने छलाह जे दीपकबाबूक लड़ि‍का बड नीक छथि‍। हम हि‍नकेपर पूर्ण वि‍श्वाहस राखि‍ लड़ि‍काकेँ बड नीक मानलौं।

रमण : यानी दुनू तरफसँ लड़ि‍का-लड़ि‍की पसीन छथि‍। तहन दीपकबाबू, बाजू केना की बि‍याह-दान करब। बेचारा हरि‍श्चन्द्र बड गरीब छथि‍। कौहना कऽ ई बेटीकेँ पढ़ौलनि‍।

सुरेश : तैयो कि‍छु बजताह ने हरि‍श्चेनद्रबाबू जे की केना खरच करब?

हरिश्चकन्द्र : हम कि‍छु नै‍ बाजब। बजताह मुखि‍ए जी। हमरा संबंधमे हुनका सभ कि‍छु बुझल छन्हि्‍।

रमण : हरि‍श्चन्द्र बाबू खरच करताह। जदी‍‍ अपने लोकनि‍ ई बुझि‍ कऽ आएल छी तहन अपने सभकेँ ई गरीबक कुटमैती नै‍ भेल। दीपकबाबू, अपन बेटाक बि‍याहमे की केना खरच करताह से बाजथु।

सुरेश: दीपकबाबू की बजताह? ओ तँ अपने सबहक सवाल सुनि‍ दंग छथि‍।

महेन्द्र : यौ सुरेशबाबू, हरि‍श्चन्द्र बाबू छि‍रहारा खेलाइ छथि‍। डुबि‍ कऽ पानि‍ पीबै छथि‍।

हरि‍श्चन्द्र : हरि‍श्चन्द्र बाबू डुबि‍ कऽ पानि‍ की पीताह? रहए तँ छपाइ नै‍, नै‍ रहए तँ बि‍काइ नै‍।

महेन्द्र : नै‍ रहए तँ बेटी बि‍याहै लेल कि‍एक चललौं।

झामलाल : महेन्द्र बाबू ठीक कहै छथि‍। बेटीक बि‍याह टि‍टकारीसँ नै‍ होइ अछि‍। डाँर मजगूत चाही।

हरि‍श्चन्द्र : जदी‍‍ अहींक डाँर मजगूत अछि‍ तँ बेटा बि‍याहि‍ लि‍अ आनठाम। (बि‍गरि‍ कऽ)

प्रदीप : अपने सभ शांत रहु। हल्ला -गुल्लाड जुनि‍ करू। मुखि‍याजी, अपने कि‍छु सकारात्मनक बात बाजू।

रमण : हमरा समएक बड अभाव अछि‍। हम एक बेर बाजि‍ दै छी- जदी‍‍ दीपकबाबू गोटेक लाख टाका खरच करताह तहन ई लड़की हि‍नका होतनि‍। नै‍ तँ असंभव। ऐ अल्ट्रा साउण्ड क जुगमे बेटीक बड बेसी अभाव अछि‍ आ बेटाक कोनो अभाव नै‍ अछि‍।

प्रदीप : मुखि‍याजी, हमरा लोकनि‍ एक मि‍नटमे वि‍चारि‍ कऽ कहि‍ दै छी।

(प्रदीप, दीपक आ सुरेश अन्दोर जा कऽ गप-सप्पड करै छथि‍।)

सुरेश : आब ओ जमाना नै‍ रहि‍ गेल जइमे बेटीबलाकेँ बेटाबला दहेजमे कुहरा दइ छलाह। अल्ट्रा साउण्डमक जुगमे बेटीक बड अभाव भऽ गेल अछि‍ आओर बेटाबलाकेँ बियाहनाइ मजबूरी अछि‍। तेँ भागीन, हरि‍श्चन्द्र बाबू कमसँ कम एकाबन हजार टाका तोरासँ लेबे करथुन।

प्रदीप : दीपकबाबू, मामाश्री ठीके कहै छथि‍। एकाबनमे ई कुटमैती फाइनल कऽ लि‍अ।

दीपक : सर, अपने सभ जे जेना कहबै से हमरा मान्य हएत। चलु फाइनल कऽ लि‍अ।

(प्रदीप, दीपक आ सुरेशक प्रवेश।)

रमण : बाजल जाउ प्रदीपबाबू, की केना वि‍चार भेलै?

प्रदीप : दीपकबाबूक स्थि,‍ति‍ ओते बढ़ि‍याँ नै‍ अछि‍। ओ मात्र अहाँकेँ एकतीस हजार टाका देताह।

रमण : तहन ई कुटमैती अपने सभकेँ नै‍ भेल। जदी‍‍ एकावन हजार टाका अपने सभ दऽ सकबनि‍ तहन कुटमैती हएत, नै‍ तँ जय रामजी की।

सुरेश : बेस हमरा लोकनि‍ माि‍न लेलौं।

रमण : मानि‍ लेलौं तँ एखन लड़ि‍कीकेँ कि‍छु चढेबैक की बादमे?

सुरेश : बि‍याहेमे चढ़ए लेब।

रमण : दीपकबाबू, बात पक्का।

दीपक : हँ यौ मुखि‍याजी पक्का नै‍ तँ कच्चाछ।

रमण : प्रदीपबाबू गाइरेन्टार अहींक होमए पड़त।

प्रदीप : बेस, हम तँ छि‍हे।

रमण : तहन हरि‍श्चन्द्र बाबू, चाह-पान-नश्ताीक ओरि‍आन जल्दी। करू।

(हरि‍श्चन्द्र अन्द,रसँ चाह-पान-नश्ताा अनए छथि‍। सभ कि‍यो नश्ता‍, चाह, पान करै छथि‍। फेर हाथ मुँह धोइ कऽ सभ कि‍यो अंति‍म गप-सप्पश करै छथि‍।)

वि‍याह कहि‍या करब दीपकबाबू?

दीपक : जल्दीहए राखू। फेर टकोक इन्तुजाम करए पड़त ने? दू-चारि‍ दि‍नमे राखु। आब मुखि‍याजी चलबाक आज्ञा देल जाउ।

रमण : कि‍एक, समधीन अहाँक प्रतीक्षा करैत हेतीह?

दीपक : ओ हमरा सनक हजारोकेँ प्रति‍दि‍न प्रतीक्षा करै छथि‍न। तहन जय रामजी की, मुखि‍याजी।

रमण : जय रामजी की।

(प्रदीप, सुरेश आ दीपकक प्रस्थाकन नमस्कादर-पातीक पश्चाात)

पटाक्षेप


पाँचि‍म दृश्यु

(स्था‍न- हरि‍श्चन्द्र चौधरीक घर। शालि‍नीक बि‍याहक पूर्ण तैयारी अछि‍। जयमालाक मंच सजल अछि‍। मंचपर बाल्टीननमे जल-लोटा राखल अछि‍। हरि‍श्चन्द्र क भाए सुरेन्द्रर चौधरी असगरे कुरसीपर बैसि‍ कऽ ओङहाइत छथि‍ आ खैनी खा कऽ छीकैत छथि‍। मुँहसँ खैनी नि‍कलि‍ जाइ अछि‍। फेर खैनी खा कऽ नोइस लऽ छीकैत छथि‍।)

महेन्द्र : आ ऽ ऽ ऽ छी। धूर सार खैनी। बड़ खच्चगर छेँ। बाप लागल छौ। आ ऽ ऽ ऽ छीं। कोन खैनी अछि‍ कोन नै‍। शायद बापक जनमल खैनी नै‍ अछि‍, मएक जनमल अछि‍। आऽ ऽ ऽ छीं। हमरा कि‍एक तङ करै छेँ, बौहकेँ कर गे। एखनहि‍ हमर मुँह नानीए दादीएकेँ उकटि‍ देतौ। आऽ ऽ ऽ छीं। बुझि‍ पड़ै अछि‍ बरि‍याती दुआरे एना करै छेँ। सार खैनी नहि‍तन। बापक बि‍याह पि‍तीयाक सगाइ देखेबौ। आऽ ऽ ऽ छीं। लागि‍ रहल अछि‍ जे लड़ि‍काक माए चलि‍तर बुढवाक संग उरहैर गेल। हम तेरा खेबौ नै‍ सार। मुदा नै‍ खेबौ तँ तों कानबें तहन। आऽ ऽ ऽ छीं। खैनीक पि‍ति‍याइन नहि‍तन। माएसँ बि‍याह कऽ लेबौ। नै‍ तँ अपन चालि‍ छोड। आऽ ऽ ऽ छीं। सार खैनी मुँहे दाबि‍ देबौ आ गरदनि‍मे फँसरी लगाए देबौ। मरलें तँ नाँड़ साथी, जीलें तँ नाँड़ साथी। आऽ ऽ ऽ ऽ छीं। हे हे गोर लगै छि‍यौ सार। पएर पकड़ै छि‍यौ सार। आब एना नै करि‍हेँ। बेज्जैतत भए जाएब। बरयाती आबैत हएत। आऽ ऽ ऽ छीं। हे हे, एक्के बेर छियौ ने। अन्तित‍मे ने। हे हे, एकटा पौआ देबौ आइ। गांंजा देबौ। लुङि‍या मि‍रचाइ देबौ। इज्ज त बचाह। प्रति‍ष्ठा राख। तोरा बगैर हम नै‍ रहि‍ सकै छी। हे सार खैनी, तोरा बगैर हमर कनि‍यां एक्को क्षण नै‍ रहि‍ सकै छथि‍। हँ, आब सार मानलक। कतेक कौबला-पाती केलाक बाद। सार खैनी बड बुधि‍यार अछि‍। मुदा बापसँ भेँट आइ भेलै।

(भटक्का फोड़ै करैत छथि‍ बरयाती सभ अन्द रमे। ई अबाज सुनि‍ महेन्द्र तीन-तीन हाथ छरपैत छथि‍। डरसँ कोने-कोन नुकाइत छथि‍। बाप रौ, माए गै करै छथि‍। बाल्टी।न माथपर राखै छथि‍। ऐ तरहेँ बरि‍यातीक प्रवेश होइ छन्हि ‍। सभकेँ बाप रौ, माए गै करैत पएर छुबि‍ प्रणाम करै छथि‍। बरयातीमे छथि‍न- दीपक चौधरी, प्रदीप कुमार ठाकुर, झाामलाल महतो, सुरेश चौधरी, सोहन चौधरी, मोहन चौधरी आओर गोपल चौधरी। चाह-पान-नाश्ता, बाद शी‍घ्र जयमालाक तैयारी होइत अछि।)
सुरेश : (सुरेन्द्रासँ) सरकार, जय माला शीघ्र करू।

महेन्द्र : सरकार, हम सरकार नै‍ छी। सरकार सभ अन्दैर छथि‍।

मोहन : सरकार सभकेँ बजाए अनि‍यौन‍।

सुरेन्द्र : बेस, बजाए अनैत छि‍यनि‍। (अन्द‍र जा कऽ आबि‍।)

सभ कि‍यो आबि‍ रहला अछि‍।

(हरि‍श्चन्द्र चौधरी आ रमण कुमारक प्रवेश। दुनू पक्षसँ नमस्का‍र पाती भेलनि‍।)

मोहन : (मुखि‍याजी सँ) मुखि‍याजी, जयमालामे कि‍अए बि‍लंब भए रहल अछि‍?

रमण : हमरा लोकनि‍क कोनो बि‍लंब नै‍। अहीं सभकेँ बि‍लंब अछि‍।
मोहन : की बि‍लंब?

रमण : यएह जे दीपकबाबू एखन धरि‍ एकावन हजार टाका हरि‍श्चन्द्र बाबूकेँ नै‍ देलखि‍न।

दीपक : यएह लि‍अ एकावन हजार टाका।

(प्रदीप दीपकसँ एकावन हजार टाका गि‍नि‍ कऽ मुखि‍याजीक हाथमे दऽ दै छथि‍न।)

रमण : हँ, आब वादा पूर्ण भेल। आब जयमाला अति‍शी‍घ्र होएत।

(हरि‍श्चन्द्र आ रमण अंदर जाइ अछि‍। पुन: अन्‍दरसँ जनानी सभ जय-माला कराबए अबै छथि‍। समूहमे शालि‍नी कुमारी, राधा देवी आओर चारि‍-पाँचटा अन्य‍ जनानी छथि‍। ओ सभ परि‍छन कऽ जय-माला करौलनि‍। शालि‍नी, सोहनकेँ पएर छुबि‍ प्रणाम केलनि‍। सभ जनानी अन्द र जाइ छथि‍। तहन सुरेन्द्रन चौधरीक प्रवेश।)

सुरेन्द्रद : बरयाती सभ, आऽ ऽ ऽ छीं। (खैनी खा कऽ) सार फेरो आबि‍ गेल। सार नि‍रलज आऽ ऽ ऽ छीं। पति‍त आऽ ऽ छीं। हे सार, कुटुम सभ हँसैत हएत। हे सार प्रति‍ष्ठाह आऽ ऽ ऽ छीं। बचा बचा आऽ ऽ ऽ छीं। हे हे गोर लागऽ दै छियौ। हे हे आइ राति‍ नवकी समधीन लग लऽ जेबौ। बात मान। (छींक रूकि‍ जाइ अछि‍।) हँ सार, समधीनक लोभमे बात मानलक। बरि‍याती सभ भोजन सराए रहल अछि‍। चलै चलू भोजनमे।

(सबहक प्रस्था।न)
पटाक्षेप


छठम दृश्य

(स्था न- दीपक चौधरीक घर। दीपक चौधरी दलानपर मन मारने माथपर हाथ लऽ कऽ बैसल छथि‍। खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइ छथि‍। बड़ हकमै छथि‍। बगलमे सुपेन राखल छौरपर कफ फेंकै छथि‍।)

दीपक : हे भगवान! हे भगवती! हे सरस्वसती महरानी! आब हमरा ऐ दुनि‍यासँ लऽ चलु।
(खोंखी करैत) बेमारी हमर चरम सीमापर पहुँचि‍ गेल अछि‍। कि‍यो देखनि‍हार नै अछि‍। जै बेटाले अपन परम पि‍यारीक जान गमेलौं। ओ बेटा कोनो काज जोकर नै। सात बेटा रामके एक्कोगो नै कामकेँ। (खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइ छथि‍। सुरेश कामतक प्रवेश)

सुरेश : भागि‍न बड़ तबाह देख रहल छी।

दीपक : हँ मामा। एक तँ बेमारी चरम सीमापर अछि‍ आओर दोसर बियाहक कर्जा माथपर अछि‍।

सुरेश : बेटा सभ ि‍कछु नै सम्हररैत छथुन?

दीपक : सभ अपना लेल हरान छथि‍। सभ भाग-बि‍लासमे लागल छथि‍। बेटा लेल सभटा कमाएल, धरल-उसारल अल्ट्रा साउण्ड मे आ पत्नीक दवाइमे बुि‍क देलौं। सेहो पानि‍मे चलि‍ गेल।

(खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइ छथि‍।)

सुरेश : भागि‍न, अहाँक स्थिि‍ति‍ आब बड़ खराब देख रहल छी। आब जीता-जि‍नगीमे छोटका बेटाक वि‍याह कतौ जल्दीु कऽ लि‍अ। करजा-बरजा सधबे करत। बेटा सभकेँ सबहक करजा कहि‍ दि‍यौन। ओ सभ जेना-तेना, बेचो-बि‍कि‍न कऽ करजा अदाएँ करत।

दीपक : हमहुँ बैस कऽ सएह झखैत छी। कोनो लड़ि‍कीक सुर-पता अछि‍ अहाँकेँ? कअए गोटेकेँ कहलि‍यनि‍‍। मुदा सभ कहैत छथि‍ जे आब बेटी कत्त? सभ बेटीकेँ लोक अल्ट्रालसाउण्ड। कराए-कराए कऽ भगवानपुर पठाए देलखि‍न। आब बेटाक बियाह बड़ मुश्किा‍ल अछि‍ बड़ मुश्किु‍ल। हमरा सभटा दहेजक लोभ घुसरि‍ रहल अछि‍। ऐसँ चि‍क्कन हमरा भगवान मौतहि‍ दऽ दैतथि‍।

सुरेश : भागीन हरबड़ाउ नै। भगवानपर भरोसा राखू। भगवानक घर देर अछि‍ अंधेर नै। लड़ि‍कीक तँ बड़ अभाव ठीके अछि‍। एे परोपट्टामे एक्केटा लड़ि‍की अछि‍।

दीपक : मामाश्री, ओ कि‍नक बेटी छथि‍न?

सुरेश : ओ छथि‍न बलवीर चौधरी। अहाँक समधि‍क छोटकी बेटी। तैपर भरि‍ दि‍नमे हजारो लड़ि‍काबला अबै-जाइ छथि‍। बड़की पुतौहवाला गप्पर नै बुझि‍यौ। मझि‍लीयोसँ भरि‍गर बुझाएत अहाँकेँ। बड़ करगर फीस छन्हिा‍ बलवीर चौधरीक?

दीपक : कत्ते लगभग?

सुरेश : बलवीर चौधरीकेँ कमसँ कम पाँच लाख टाका नगद आओर सभ श्रमजान चाही लड़ि‍की-लड़ि‍काक मनोरथ वास्ते ।

(सुनि‍ते दीपककेँ चौन्ह- आबि‍ जाइ छन्हिट‍। सुरेश गमछासँ हौंकि‍ कऽ शांत करै छथि‍। सुरेश अन्द-रसँ पानि‍ आनि‍ कऽ दीपककेँ मुँह-हाथ धोइले दैत छथि‍न। दीपक कुर्रा कऽ मुँह-हाथ धोइ फेर मामाश्रीसँ गप्पे करैत छथि‍।)

दीपक : मामाश्री, समधि‍ एतेक पैघ धराह बनि‍ गेलाह मास्टहर भऽ कऽ?

सुरेश : भागि‍न, समए बलवान होइ छै। एक दि‍न गाड़ीपर नाह तँ एक दि‍न नाहेपर गाड़ी। सदा साहि‍बी कि‍नको रहलैए? कहबी अछि‍ सभ दि‍न होत न एक समाना।

दीपक : मामाश्री, समधि‍ हमरो कि‍छु कम करताह की नै?

सुरेश : आखि‍र ओ अहाँक समधि‍ छथि‍। कि‍छु कम अवस्यद करबाक चाही।

दीपक : तहन चलू मामाश्री काल्हि‍। जदी‍‍ पटि‍-सटि‍ गेल तहन छोटको बेटाकेँ कऽ लेब। हमरा मूइला बाद हमरा बेटाकेँ बियाह के करौताह? दर-दि‍याद केकरा के होइ छै?

सुरेश : भागि‍न, काल्हि‍ भोरे समधि‍ ओइठाम चलू। काल्हि‍ धरि‍ लड़कि‍केँ कोनो फैनल नै भेल छल, से हमरा पूर्ण पता अछि‍।

दीपक : सबेरे जाएब तहन ने काज बनत। नै तँ समधि‍ कि‍नको जुबान दऽ देलखि‍न तहन भेल आफद।

सुरेश : भागि‍न, काल्हि‍ भोरसँ भोर अहाँ हमरा ऐठाम चलि‍ आएब। हम चलैत छी।

(दीपक सुरेशकेँ पएर छुबि‍ प्रणाम करै छथि‍। सुरेशक प्रस्थाअन)

दीपक : (खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइ छथि‍।) लागि‍ रहल अछि‍ जे ई बियाह हम देखब की नै। आगू माँ सरस्व तीक कि‍रपा।

पटाक्षेप


सातम दृश्ये

(स्था न- सुरेश कामतक घर। भोरहि‍ भोर दीपक चौधरी मामाश्री ओइठाम पहुँचलाह।)

दीपक : मामा, मामा, यौ मामा, मामा यौ।

सुरेश : (अन्दमरसँ) हँ भागि‍न, यएह एलौं। शीघ्र आबि‍ रहलौं अछि‍। (कि‍छु बि‍लंब भए जाइत छन्हिख‍ सुरेशकेँ। तहन दीपक अन्दधर जा कऽ।)

दीपक : मामी, मामी, अहाँ मामाकेँ जल्दीर कि‍एक नै छोड़ै छि‍ऐ? ओतेक कसि‍ कऽ पकड़नाइ होइ छै? आउ मामा, जल्दीक आउ। हम दलानपर छी।

सुरेश : चलू बैसू तुरन्तम एलौं।
(दीपक दलानपर बैसल छथि‍। कि‍छुए काल बाद सुरेशक प्रवेश)
चलू भागि‍न, बड़ बि‍लंब भए गेल।

(दीपक आ सुरेश बलवीरक ओइठाम जा रहला अछि‍। कि‍छु देरमे बलवीर चौधरीक ओइठाम दुनू गोटे पहुँचि‍ कऽ दलानपर बैसलाह।)

सुरेश : घरवारी छी। यौ घरवारी। घरवारी।

दीपक : छोड़ि‍ दि‍यौन मामाश्री समधि‍केँ। ओ अखन समधीन लग हेथि‍न।

बलवीर : (अन्दूरसँ) समधीन लग छेलौं ठीके मुदा आब नै छी। एक क्षणमे आबि‍ रहल छी।
(दूटा लोटामे पानि‍ लऽ कऽ बलवीरक प्रवेश। सभ ि‍कयो आपसमे नमस्का र-पाती करै छथि‍। पएर-हाथ धोइ कऽ सुरेश आ दीपक कुरसीपर बैसै छथि‍।)

सुरेश : बलवीरबाबू, हमरा लोकनि‍ कि‍छु उद्देश्यकसँ आएल छी। ओइ उद्देश्यौक पूर्ति अहींक हाथमे अछि‍।

बलवीर : बाजल जाउ, की उद्देश्या अछि‍ अपने सभकेँ।

सुरेश : यएह जे अपन छोटकी बुच्ची‍क वि‍याह दीपकबाबूक छोटका बेटासँ करू। बेचारा समधि‍ अस्वयस्थ रहैत छथि‍। अपन जीता-जि‍नगी ओ छोटका बेटाकेँ सेहो नि‍माहि‍ देमए चाहै छथि‍। हि‍नका लड़ि‍की नै भेट रहल छन्हिा‍। हाि‍र कऽ ओ ऐ उद्देश्यतसँ अपनेक दुआरि‍पर एलाह अछि‍।

बलवीर : समधि‍, उद्देश्यय कि‍नको खराब नै होइ छै। मुदा संबंधीमे कुटमैती नीक नै होइ अछि‍।

दीपक : समधि‍, अपनेक ई कथन बि‍ल्कु‍ल ठीक अछि‍। मुदा मजबूरीक नाम महात्माह गाँधी छि‍ऐक।

बलवीर : अहाँक मजबूरीसँ हमरा की मतलब अछि‍। तैयो समधि‍ बाजू, बेटाक बियाहमे अपने की केना खरच-बरच करब। आब सेबकाहा जमाना नै रहि‍ गेल अछि‍।

सुरेश : समधि‍ की खरच करताह? कि‍छु नै। सि‍रि‍फ बेटा देताह, लड़ि‍का देताह। आओर हि‍नका लग कि‍छु छन्हिक‍हेँ नै।


बलवीर : समधि‍, टि‍टकारीसँ दही केना जनमत?

सुरेश : बलवीरबाबू बाजू, अपनेक लड़ि‍की हेतु समधि‍केँ की सेवा करए पड़त?

बलवीर : समधि‍ छथि‍ तँ की कहबनि‍, जाउ अढ़ाइए लाख नगद दऽ देबनि‍ अलावे लड़ि‍का-लड़ि‍कीक सभ सनोमान।

(सुनि‍तहि‍ दीपक अचेत भऽ जाइत छथि‍। बलवीर अन्दअरसँ बेना आनि‍ कऽ सुरेशकेँ दै छथि‍। सुरेश हुनका बेना हौंकैत छन्हिज‍। दीपक होशमे नै अबै छथि‍। फेर बलवीर लोटामे पानि‍ आनै छथि‍। अपनेसँ हुनका बलवीर मुँह पोछि‍ दै छथि‍न। दीपक होशमे आबि‍ नीक जकाँ बैसै छथि‍।)

समधि‍, एना कि‍अए भए गेल?

दीपक : से नै कहि‍। ओना ऐ बीचि‍मे अस्वनस्थ? रहि‍ रहलौं अछि‍। हम अपनेसँ कल जोड़ि‍ आग्रह करै छी जे अपन बेटी हमरा बेटा हेतु दए दि‍अ। हम सभ तरहेँ मजबूर छी।

बलवीर : ओइ बेटीपर मरूकि‍याबला चारि‍ लाख एकावन हजार टाका नगद आओर सभ श्रमजान दए गेलाह। मुदा हम पाँच लाखसँ कम नै केलि‍यनि‍‍। खाइर हमर समधि‍ छी आ बड़ मजबूर सेहो छी। तँए सबा लाख टाका नगद आ लड़ि‍की-लड़ि‍काक वास्तेट परमावश्योक सभ चीज-बौस। तहने ई कुटमैती संभव अछि‍। नै तँ जय रामजी की। ऐसँ कम हम अपना बापोकेँ नै करबनि‍। स्वी़कार अछि‍ तँ बाजू नै तँ कुटुमक नाते, समधि‍क नाते भोजन साजन करू आ चुपचाप बैस आराम करू।

दीपक : समधि‍, हमरा स्वीआकार अछि‍। तहन बाजू, नगद कहि‍या लेब आ केना लेब।

बलवीर : समधि‍, अहींक सुवि‍धा।

दीपक : बरयाती लऽ कऽ आएब, तहने गि‍नि‍ देब।

बलवीर : बरयाती लऽ कऽ अहाँ आएब? नै नै। हमहीं आएब। तखनै‍ हमरा नगद गि‍न‍ देब।

सुरेश : से केना हएत? लड़ि‍काबला हम आ बरयाती लऽ कऽ आएब अहाँ? लोक की कहतथि‍?

बलवीर : लोक की कहतथि‍? समए बलवान होइ छै। सभ दि‍न लकीरक फकीर बनलासँ काज नै चलैबला अछि‍। जखैन जेहेन हवा बहए तखैन ओहने पीठि‍ ओरबाक चाही। समधि‍, ई सुनि‍ लि‍अ जे बरयाती लऽ कऽ हमहीं आएब, हमहीं आएब। नै तँ कुटमैती नै हएत।

सुरेश : जाउ अपनेक जे वि‍चार।

बलवीर : हँ हँ, बरयाती साजि‍ कऽ हमहीं आएब। समधि‍, मंजूर अछि‍ वा नै?

दीपक : नै मंजूर केने कोनो गुंंजाइश नै। मंजूर करहि‍ पड़त।

बलवीर : से जे बुझी आ जेना बुझी। बरयाती हम परसुए आबि‍ रहल छी। परसु अन्तिं‍मे लगन अछि‍।

दीपक : जेना पदाउ समधि‍, पादहि‍ पड़त। खाइर जय रामजी की। आब जेबाक आज्ञा देल जाउ।

बलवीर : आब जेबाक बेर नै रहि‍ गेल अछि‍। भोजन-साजन करू आ वि‍श्राम करू।

दीपक : नै समधि‍, बि‍याहक ओरि‍यान केनाइ अछि‍। दि‍न साफे नै अछि‍। हम जाइ छी। जय रामजी की।

(नमस्कािर-पातीक पश्चारत् दीपक आ सुरेशक प्रस्थाान करैत।)

पटाक्षेप
अाठम दृश्यज

(स्था न- दीपक चौधरीक आवास। गोपालक वि‍याहक तैयारी पूर्ण भए गेल अछि‍। जयामालाक मंच सजल-धजल अछि‍। दीपक आओर प्रदीप जयमाला-मंचक लगमे राखल कुर्सीपर बैस कऽ गप-सप्पप करै छथि‍।)

प्रदीप : दीपकबाबू, सुनलौं अनरीतक रीत। ठीके गप छी की?

दीपक : बि‍ल्कूुल ठीक अछि‍। हम की कए सकै छलौं? मनुष्य परिस्थिा‍ति‍क दास अछि‍।
प्रदीप : हँ, ई बात तँ सदा सत्यी अछि‍ जे समए कि‍नको नै छोड़लक‍ आ नै छोड़त। खाइर होनीकेँ कि‍यो नै रोकि‍ सकै छै। दीपकबाबू, एखन धरि‍ बलवीरबाबू बरयाती लऽ कऽ नै एलाह।

दीपक : अबि‍ते हेताह। बेसी बि‍लंब करताह तहन बसियौरा खेताह।
(बैंड पार्टीक आवाज सुनि‍)
प्रदीपबाबू, बरआती आबि रहल अि‍छ। ऐ बीच हम नश्ता -पानि‍ सरि‍या लै छी।

प्रदीप : बेस जाउ। जल्दीआ करू।
(दीपक प्रस्थाबन करै छथि‍। बलवीरक प्रवेश बरि‍यातीक संग। बरआतीमे संजू, गंगाराम, चन्देीश्वर आ हरेराम छथि‍न। सभ बरि‍याती कुर्सीपर बैसैत छथि‍। मोहन आ सोहन बरि‍यातीकेँ नश्ताम-चाह-पान करबै छथि‍। लड़ि‍का गोपालक दीपक, सुरेश, झामलाल, महेन्द्र इत्याछदि‍ जयमाला कराबए अबै छथि‍। लड़ि‍कीकेँ चुमा कऽ जयमालाक जोगार करै छथि‍।)

बलवीर : दीपकबाबू, बस करू। ऐसँ आगू जुनि‍ बढ़ू (बि‍गैर कऽ) (सभ रूकि‍ जाइ छथि‍।)

प्रदीप : कि‍अए नै बि‍गरब? नगद गि‍नलथि‍ दीपकबाबू। सवा लाख टाका अखन गि‍नथु तहन जयमाला करताह।
प्रदीप : दीपकबाबू, पहि‍ने बलवीरबाबूकेँ नगद गि‍नु तहन जयमाला करब।
(जयमाला छोड़ि‍ दीपक अन्दपरसँ सवालाख टाका आनि‍ बलवीरबाबूकेँ गि‍नि‍ कऽ दै छथि‍न। बलवीर रूपैआ लऽ कऽ प्रसन्न छथि‍।)

बलवीर : हँ, आब अपने सभ जयमाला करू।
(सभ कि‍यो जयमाला करबै छथि‍। पहि‍ने लड़ि‍का लड़ि‍कीकेँ जयमाला पहि‍रौलनि‍। जोरदार तालीक गदगड़ाहटि‍ भेल। तकर बाद लड़ि‍की लड़ि‍काकेँ जयमाला पहि‍रौलनि‍। तालीक बौछार भेल। लड़ि‍कीबला बि‍स्कुँट चकलेट लुटेलनि‍। लड़ि‍का-लड़ि‍की मंचपर बैसल छथि‍। वातावरण बि‍ल्कु‍ल शांत अछि‍।)
समधि‍, घरपर पार्टीक व्य‍वस्थां पूर्ण भए गेल अछि‍। यथाशीध्र हमरा लोकनि‍क वि‍दाइ कऽ दि‍अ। हमरा लोकनि‍क ि‍नयम अछि‍ जे लड़ि‍का-लड़ि‍कीक घर जएताह। फेर एक सप्ता‍ह बाद लड़ि‍का-लड़ि‍की अहाँक घर आबि‍ स्थाएयी रूपसँ रहतथि‍।

हरेराम : दीपकबाबू, जल्दीत समधी-मि‍लन कए लि‍अ।
दीपक : सरकार, जे जेना वि‍चार।
हरेराम : बलवीरबाबू, जल्दीत समधी-मि‍लन करू।
(बलवीर आ दीपक गरदनि‍ मि‍लि‍ कऽ समधी मि‍लन केलनि‍। समधी मि‍लनमे बलवीर दीपककेँ पच्चीदस हजार टाका दै छथि‍न। बरि‍यातीक संग लड़ि‍का-लड़ि‍कीक प्रस्था न। आपसमे नमस्का र-पाती होइ छन्हिी‍।)

पटाक्षेप

अंति‍म दृश्यद

(स्था‍न- दीपक चौधरीक आवास। दीपक चौधरी, मोहन चौधरी, मंजू, सोहन चौधरी व शालि‍नी मंचपर उपस्थिध‍त छथि‍। दीपकक हालत बड्ड गड़बड़ अछि‍। खोंखी करैत-करैत मरनासन भए जाइ छथि‍। अन्त कालमे दुनू बेटा-पुतौह हि‍नक सेवा-सत्काकरमे लागल छथि‍।)
दीपक : आइ बुझाए रहल अछि‍ जे हम स्वमर्गमे छी। मुदा एहेन पहि‍ने रहि‍तए तँ हमरा चि‍न्ता नै खैताए। चि‍न्तेम हमर बेमारीकेँ ओते बढ़ाैलक। कहबी ठीके अछि‍- जे तुकपर नै से कथीदुनपर।

(खोंखी करैत-करैत बेदम भऽ जाइ छथि‍।)

मंजू : (मोहनसँ) स्वाऽमी, बाबूजीक हालत बड़ खराब छन्हिक‍। जल्दीर डाॅक्टदरकेँ बजाउ।
मोहन : हम अपन बापक हमहीटा बेटा छी की? साेहनबाबूकेँ कहि‍यनु, गोपालबाबूकेँ कहि‍यनु।

शालि‍नी : (सोहनसँ) स्वाकमी, अहीं डॉक्टिरकेँ देखि‍यनु।
सोहन : अहीं देखियनु ने, बड़ दयालु छी तँ। हि‍स्साक लेताह सभ बराबर-बराबर आ डॉक्टहरकेँ देखियौ हमहींटा।
दीपक : बुझलौं-बुझलौं। अहाँ दुनू भए केहन पि‍तृभक्ते छी? लोककेँ देखबैबला सेवा कए रहल छी जे हि‍स्साौ कम नै भेटए। अहाँ दुनू भाँइसँ चि‍क्कन स्वटभाव दुनू पुतौह जनीकेँ देख रहल छि‍यनि‍‍। मोहन आ सोहन, आब हम नै बाँचब। कने छोटका बेटा आ पुतौहकेँ मुँह देखाए दि‍अ।
मोहन : सोहन, कने गोपाल दुनू परानीकेँ बजाए आनहुन।
सोहन : भाइजी, हमरा देखल नै अछि‍। जदी‍‍ अपने चलि‍ जइतौं तहन बढ़ि‍या रहि‍तै।

मोहन : बौआ, हमरो नै देखल अछि‍ गोपालक ससुरारि‍। ओना एक-दू दि‍नमे गोपाल दुनू परानीक अबैया अछि‍ए। घबरेबाक कोनो काज नै।
(दीपक खाेंखी करैत-करैत बड़ हकमि‍ रहल छथि‍)
दीपक : आह! ओह!! आब नै बाँचब। छोटका बेटा पुतौहक मुँह शायद नै देख पाएब। आह! ओह!! आह!!

मोहन : बाबू, बाबू, अहाँकेँ की हएत की नै। कतौ कि‍छु धएने-उसारने छी, से हमरा लोकनि‍केँ बताए दि‍अ।
दीपक : बौआ सभ, धएल-उसारल तँ कि‍छु नै छौ। मुदा तोरा सबहक बियाहक करजा हमरासँ अदाए कएल नै भेल। अहीं सभ अदाए कए देब। करजा हम महावीर मालि‍कसँ लेने छी। मुरि‍ डेढ़ लाख अछि‍ आ सूि‍दक दर पाँच प्रति‍शत मासि‍क अछि‍। वएह करजा हमरा जान लाए रहल अछि‍। अहाँ सभ करजा सधेनाइ नै बि‍सरब। हमर सेवा अहाँ सभ करी वा नै।
मोहन : अहाँ पागल कुकुर छी। अहाँक सेवा केनाइ धोर पाप अछि‍। हमरा सबहक कप्पाीरपर बड़का बोझ लादि‍ कऽ मरि‍ रहल छी।
मंजु : स्वापमी, एना बेहोश नै होउ।
मोहन: ऐ छोंकरी, होशमे तों रह। गूड़क मारि‍ धोकरा जानत की तों जानबेँ।
सोहन : भैया ठीक कहै छथि‍ एहेन बापकेँ।
शालि‍नी : स्वाबमी, अहुँ सएह नि‍कललौं बुधि‍यार।
सोहन : ऐ बुधि‍यार बापक बेटी, अखन मारैत-मारैत बुढ़बे संग वि‍दा कए देबौ।
शालि‍नी : हँ हँ, कि‍एक नै। अहाँ सनक बुधि‍यारपर कोन भरोस? जे बाबाजी बापकेँ नै देखलनि‍।
दीपक : (खोंखी कऽ) अहाँ सभ एना कि‍अए करै जाइ छी। कि‍नको मानवता नै‍ अछि‍। हमरा अहाँ सभ पागल कुकुर कहै छी। अहुँ सभकेँ एक दि‍न एहेन आएत जइमे अहुँ सभ सुगर भए सकै छी। बेटा सबहक खाति‍र हम की की नै केलौं आ से बेटा आइ हमरा पागल कुकुर कहै छथि‍। बेटा सबहक खाति‍र हम कतेको बेटीकेँ नाश कए देलौं जे बेटा सबहक संपति‍मे कोनो घटबी नै होइ।
मोहन : अहाँ ठीके कुक्कुर छी। कुकर्मक फल भोगै पड़त। बबाजी बनलासँ कि‍छु नै हएत। अहाँ लोभी कुक्कुमर छी।
दीपक : हँ हँ, जरि‍-मरि‍ कऽ तोरा सभकेँ एत्तेटा कए देलियौ, तेकरे फल हमरा भेटै अछि‍।
(खोंखी करैत-करैत बेदम छथि‍। दुनू पुतौह लगमे बैसल छथि‍ आ दुनू बेटा दूरमे बैसल छथि‍।)
आह! आब नै बाँचब। ओह! हे भगवान, आब लऽ चलू। आह! ओहो! आह! आह!
(प्रदीपक प्रवेश)
प्रदीप : दीपकबाबू, की भए रहल अछि?

दीपक : आब नै पुछु सर। आब ऐ दुनि‍यासँ जाए दि‍अ।
प्रदीप : कि‍एक, बेटा सभ इलाज नै करौलनि‍ की?

दीपक : ओ सभ हमर इलाज की करौताह? इलाजक बदला हमरा पागल कुक्कुर, लोभी कहै छथि‍। कहलि‍यनि‍‍‍ छोटका बेटा-पुतौहक मुँह देखए दे, सेहो नै। प्रदीपबाबू, अहाँकेँ मोबाइलमे बलवीरबाबूक नम्बोर अछि‍ की?

प्रदीप : हँ अछि‍। हँ कहि‍ दै छि‍यनि‍‍ जे जदी‍‍ अहाँकेँ समधि‍क मुँह देखबाक अछि‍ तँ जल्दीह आउ। आ बेटी-दमादकेँ सेहो लेने आउ।
(प्रदीप आ बलवीर मोबाइलसँ गप करै छथि‍। कि‍छु देर बाद बलवीर गोपाल आ संजूक प्रवेश।)
बलवीर : की भए गेल समधि‍?

दीपक : आह! ओह! आब हम जए रहल छी। हमरासँ जे कि‍छु गलती भेल हुअए तकरा माफ करब।

गोपाल : बाबूजी, हम कने डॉक्टमरकेँ बजौने अबै छी।

दीपक : आब नै बेटा, बेकारमे पाय पाि‍नमे चलि‍ जाएत।
संजु : बाबूजी, जए दियौन। जे होनी हेतै से हएत। अपन कर्त्तव्य करबाक चाही।
दीपक : बेस जाउ गोपाल। मुदा फेदा नै हएत।
(गोपाल डाक्ट र प्रेमनाथ मेहताकेँ अनै छथि‍। डाक्टीर आला लगा कऽ चेक करै छथि‍। आँखि‍मे टॉर्च बारि‍ कऽ देखै छथि‍।)

प्रेमनाथ : अहाँक पेसेन्ट सम्हहरैबला नै अछि‍। हि‍नका अहाँ सभ आगू लऽ जाउ।
गोपाल : से हम आगूक व्येवस्था कए रहल छी। तत्का‍ल अपनेसँ जे कि‍छु बनि‍ पड़ाए से करियौ।

प्रेमनाथ : बेस, हम कोशि‍श करै छी।
(प्रेमनाथ पानि‍क बोतल टाङैत छथि।‍ बोतलमे सूइया-दवाइ दऽ कऽ पानि‍ चढ़बै छथि‍।)

दीपक : (कछमछाइत) आह! ओह! आह! बौआ सभ।

प्रदीप : गोपाल, बाबूजी कि‍छु कहै छथि‍।
गोपाल : जी बाबू जी,
दीपक : बौआ, तोहर माएक बेमारीबला आ तोरे सबहक वि‍याहक करजा डेढ़ लाख मूइर महावीर मालि‍ककेँ छन्हिि‍, से अवस्स‍ तीनू भाँइ सधाए देबनि‍ आओर दहेज हेतु बेटाक लोभमे नै पड़ब। बेटी-बेटासँ कम नै होइ अछि‍। बेटा आ बेटी ऐ दुनि‍याँमे नै रहत तँ दुनि‍याँक संतुलन बि‍गरि‍ जाएत। गर्भपातसँ पैघ कोनो पाप नै अछि‍। (बेटीक अपमान नै हेबाक चाही)- 3

(तीन बेर कहि‍ दीपक दम तोड़ि‍ दै छथि‍न।)
प्रेमनाथ : आइ एम सॉरी। बेचारा चलि‍ गेलाह दुनि‍यासँ।

(सभ कि‍यो कानि‍ रहल छथि‍। प्रेमनाथ आ प्रदीपक प्रस्‍थान। पर्दा गि‍रै अछि‍। अन्दछरसँ राम नाम सत्यपक आवाज जोरसँ भए रहल अछि‍।)
इति‍ शुभम्










छीनरदेवी


पात्र परिचय

पुरुष पात्र

1. सुभाष ठाकुर- एकटा साधारण शिक्षित व्यक्ति।
2. ललन ठाकुर- सुभाष ठाकुरक इकलौता पुत्र।
3. पवन- सुभाष ठाकुरक भातिज।
4. मटुक- सुभाष ठाकुरक पड़ोसी।
5. राजू- सुभाष ठाकुरक वुजुर्ग पड़ोसी।
6. संजय- सुभाष ठाकुरक भागिन।
7. सुखल कियोट- एकटा साधारण भगत।
8. यदुलाल ठाकुर- सुभाष ठाकुरक छोट भाए।
9. सोमन ठाकुर- यदुलाल ठाकुरक इकलौता बेटा।
10. परबतिया कोइर- एकटा प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक।
11. घटकराज ठाकुर- सुभाष ठाकुरक पीसा।
12. बलदेव महतो- एकटा साधारण किसान।
13. विनोद झा- काली मंदिरक पुजारी।

स्त्री पात्र-
1. मीरा देवी- सुभाष ठाकुरक पत्नी।
2. सुकनी देवी -यदुलाल ठाकुरक पत्नी।
3. मालती देवी- बलदेव महतोक पत्नी।
4. अनु अंजना- बलदेव महतोक इकलौती बेटी।


पहिल दृश्य

(स्थान- सुभाष ठाकुरक घर। मीरा देवी सुभाष ठाकुरक पत्नी छथिन। ललन ठाकुर हिनक इकलौता बेटा छथिन। ललन बताह अवस्थामे अपन दरवाजापर अंट-संट करै छथि। हिनक उपद्रवकेँ देख सुभाष आ मीरा मनहुस अवस्थामे कि‍छु गप-सप्पक करै छथि‍।)


मीरा- स्वामी, ई छौंरा हमरो बताह बना देत।
सुभाष- सहए तँ हमहुँ कहैबला रही। हमर मुहक बात छीनि लेलौं।हमरा किछु नै फुराइ अछि। की करी की नै। ककरासँ देखाबी, ककरासँ नै। यै ललन माए, मन होइ अछि जे एकरा राँची वा दरिभंगा लऽ जाय। की विचार अहाँक?
मीरा- हमर विचार इएह अछि जे राँची दरिभंगा लऽ जायसँ पूर्व एकरा कतउ एम्हर-ओम्हर देखए दियौन। नजरि-गुजरि सेहो भए सकै अछि।
सुभाष- तहन ककरासँ देखए दियनि‍?
मीरा- यै ललन बाप, सुनै छी सुखलाहा कियोट एे सभमे बड़ पहुँचल अछि। हुनकेसँ देखाए दियौनि‍।
सुभाष- हुनक नाम तँ हमहुँ बड़ सुनै छी।

(ललन घरामसँ खसि पड़ै अछि‍ आ मुँह रगड़ए लगै छथि। दुआरिपर ललन ओंघराए रहल अछि‍।)
मीरा- (अफसियाँत भऽ) बौआ रौ बौआ। की भए गेलौक रौ बौआ?
ललन- (माथ पटकैत) हम तोरे संग जबौ। हम आब नै जीबौ। हम तोरो लऽ जेबौ अपने संग। हम तोरो खेबौ। हम कोनो भात-दालि खाइ छी। हमरा चाही पियोर खून। हमरा बगिया देने रहौ। बगिएमे सबटा कारामात छल। (सौंसे दुआरि ललन ओंघरए रहल अछि। कपड़ा-लत्ता फारि लै अछि। पवन, मटुक, राजू आ संजयक प्रवेश। ललनक दृश्य देख रहल छथि सभ कियो। सुभाषकेँ अक-बक किछु नै फुराइ छन्हि।)
मटुक- यौ सुभाष, बौक जेकाँ ठाढ़ रहने काज नै चलत। अहाँ सुखल कियोट लग जाउ। हुनका जल्दी बजौने आउ।
(सुभाष सुखल कियोटक ओइठाम गेलाह। किछुए खानक बाद सुभाषक संग सुखलक प्रवेश।)
सुखल- अहाँ सभ कने कात भऽ जाउ।
(सभ कियो कात भऽ जाइ छथि। सुखलकेँ देख कऽ ललन आओर माथ पटकए लगै अछि।)
सुभाष- कने जल्दी देखियौक सरकार।
सुखल- अहाँ सभ हरबराउ नै। हम बैसल नै छी सभ देख रहल छी। (अपन जेबीसँ किछु निकालि कऽ ललनपर फेकै छथि। ललन बिल्कुल शांत भऽ जाइ अछि।)
ललन- आब नै हौ। आब कहियो नै एबह।
सुखल- तों, के छिअएँ?
ललन- हम नै कहबह-3
सुखल- नै कहबेँ, नै कहबेँ की?
ललन- नै हौ। तों हमर के छह, जे तोरा हम कहबह।
सुखल- हम तोहर बाप छियौ।
ललन- हमहुँ तोहर बाप छियह।
(सुखल ललनकेँ एक चाट गालपर मारि दै छथि।)
आब नै एबह।
सुखल- नाम कह।
ललन- हमर नाम छी देवकी कुमारी।
सुखल- के रखने छौ?
ललन- छोटकी काकी।
सुखल- कत्तऽ रखने छौक?
ललन- से नै कहबह-3
(फेर सुखल एक चाट दऽ कऽ माथा हाथ दै छथि।)
सुखल- आब कहबेँ।
ललन- हँ हाै। आब कहबह।
सुखल- तहन कह। जल्दी बाज। नै तँ बुझि ले।
ललन- मारह नै, कहि दै छियह। कोहामे। पैखाना घरमे।
सुखल- किअए अलेँ?
ललन- ललनकेँ लऽ जेबा लेल। एकसरे हमरा मन नै लगै अछि। हम ललनकेँ नै छोड़बै।
(सुखल ललनकेँ कसि कऽ माथा हाथ दै छथि। भूत भागि जाइ अछि। ललन चंगा भऽ जाइ अछि। देह-हाथ झारि कऽ कुर्सीपर बैस जाइ छथि।)
बाबूजी, एत्ते भीड़ किअए अछि?
सुभाष- नै कोनो खास बात। हिनका सभकेँ हमरासँ किछु विशेष गप्प छेलनि‍। ललन, तों जाह बौआ।
(ललनक प्रस्थान)
सुखल गोसांइ, हमर बेटा केना ठीक हएत? एकरा अछि की?
सुखल- एकरा केलहा अछि? एकरा केनिहारि अहाँकेँ अपने परिवारमे अछि।
सुभाष- गोसांइ, एकर इलाज अहींकेँ करए पड़त।
सुखल- सुभाषबाबू, एकर इलाज हमरासँ असंभव अछि। हम आब ई काज छोड़ि देलौं। हाथ जोड़ै छी, दोसर जोगार कए लिअ।
(प्रस्थान)
पटाक्षेप


दृश्य दोसर


(स्थान- सुभाष ठाकुरक घर। दलानपर सुभाष आ मीरा चिन्तित मुद्रामे बैसल छथि। पवन, मटुक राजू ओ संजयक प्रवेश।)
मटुक- सुभाषभाय, अहाँक बेटा भरि-भरि राति बौआइते रहै अछि।
पवन- हँ सुभाष कका, हमहूँ देखलिएे आठ बजे रातिमे गाछी दिस जाइत आ कहलियनि‍ तँ कहलनि तू हमर बाप छें।
राजू- हमहुँ देखलियनि‍, बारह बजे रातिमे मुसहरी दिस निछोहे भागल जाइत। तखन हम राम एकबाल ओइठामसँ भोज खा कऽ अबैत रही।
संजय- सुभाष मामा, काल्हि साँझमे हमरो एेठाम गेल रहए। हमरा कहलक- हमहुँ पठबै आ बड़का हाकिम बनबै। शर्ट उनटा पहिरने छल आ एकहि पएरमे जूता छलै।
सुभाष- अपने सभ विचार दिअ जे हम की करी?
(ललनक प्रवेश। पूर्ण बताह अवस्थामे छथि। अबितहि शर्ट निकालि फेक दै अछि। गंजी फारैत-चिरैत अछि। बाप रौ बाप, माए गै माए करैत ओंधरा रहल अछि। माथ पकड़ि बैस कऽ झुलि रहल अछि।)
ललन- आब हम चारिए दिन जीबौक। हम तोरे लइ लए आएल छी। हमरा एतऽ नीक नै लागि रहल अछि। छोटकी काकी देबकी दीदीकेँ खा कऽ सीखलकै। हमहुँ देबकी दीदी लग रहब। ओ हमरा बड़ मानैतए। देबकी दीदी हमरे खून पीबि ओइ पैखाना घरमे कोहामे रहै अछि। पाँच दिनक अन्दरमे हम निपत्ता भऽ जेबौ।

(फेर ओंधरए रहल अछि। कुक्कुर जेकाँ माटि भोमहरि कऽ खए रहल अछि। दलानपर दर्शक अपार भीड़ अछि।)
सुभाष- यौ श्रोत्रा-समाज लोकनि, अपने सभ एकर बकनाइ सुनि रहलौं अछि। हम की करी, हमरा अहाँ सभ वि‍चार दिअ।
मटुक- सुभाषभाय, अहाँ किछु नै करु अहाँ एक्केटा काज करु।
सुभाष- की करु। अहीं बाजू।
मटुक- एकरा उठा-पुठा कऽ छोटकी अंगनामे राखि दियौ आओर ओकरा कहियौ जे तू एकरा होंसैत दहिन। जदी‍ ओ एकरा होंसैत देतै तखने ई ठीक भए जाएत। आन कोनो उपए नै।
ललन- जाधरि छेटकी काकी हमरा नै छुतै ताधरि हम बताहे रहब, चारि दिनमे मरि जाएब।
मटुक- कहलौं ने सुभाषभाय। एकरा जल्दी लऽ चलू। नै तऽ ई नै बाँचत।
पवन- कका, अहाँ डरैत किएक छी? हमरा लोकनि छी ने पीठपर। यौ कका, ओ कथीमे फरिएतै? मारिमे-गारिमे, भालामे-लाठीमे आङमे-समांगमे, घनमे-संपत्तिमे, केशमे फौदारीमे। हम सभ किछुमे सक्षमे छी अहाँ डरु नै कका। आ नै तऽ अहाँ अपन जानू। बेटा हाथसँ चलि जाएत।
(सुभाष आ मीरा ललनकेँ उठा-पुठा कऽ सुकनी लग लऽ जा रहल अछि। सुकनी यदुलाल ठाकुरक घरवाली आ सोमन ठाकुरक माए छथि‍न। सुकनी रोटी पकबै अछि आ सोमन कुट्टी काटि रहल अछि। सुभाष आ मीरा ललनक संग प्रवेश। ओ सभ ललनकेँ सुकनीक अंगनामे पटकि दै अछि। ललन पहिनहि जेकाँ कऽ रहल अछि।)

मीरा- भैडाही एकरा होंसत, नइ तँ बापसँ भेँट करेबौ। सैंखौकी-बेटखौकी एकरा एखन ठीक कर नै तऽ भकसी झोंकेबौ।
सुकनी- ओइ हाथमे लकबा धरतौ। सैंडाही मङजरौनी लुल्ही पकड़तौ।

(आंगनमे हो-हल्ला भऽ रहल अछि। हल्ला सुनि यदू लाल आ सोमनक प्रवेश।)
सोमन- माए तों शान्त रह। कका, अहाँ नीक काज नै केलौं। एहिसँ कोन फेदा? कोन इज्जत? कोन प्रतिष्ठा? हमरा सबहक प्रतिष्ठा अहाँ माटिमे मिला देलौं। अबहु चेत जाउ नै तऽ एकर परिणाम बड खराब हएत।
सुभाष- परिणाम जे हेबाक हएत से हएत मुदा गै मौगिया, एखन तों एकरा एक्को बेर छुबि दहिन नै तऽ आइ तों नै आकि हमहीं नै।

सोमन- गै माए तों एक्को बेर नै बाज आ ने एक्को बेर एतएसँ उठ। एे कुत्ताकेँ एहिना भुकए दही।
सुभाष- चौट्टा तू हमरा कुत्ता कहबेँ एखने मारैत-मारैत सोझ कऽ देबौ नै कहीन एै मौगियाकेँ जे ललनमाकेँ चुप-चाप हाेंसैत देतौ।
सोमन- चौट्टा, अन्हरा कहींकेँ। सभ खचरै निकलि जाएत।
(राजूक प्रवेश)
राजू- हौ सोमन सुनह। हल्ला-गुल्ला नइ करह, एक बेर माए कऽ कहक जे एकरा होंसैत देतै। एकरो संतोष भऽ जेतै आ हल्लो-गुल्ला शान्त भऽ जेतै। तोरा नीक लगै छह ऐहन अशान्ति।
सोमन- अहाँ पढ़ल-लिखल लोक भऽ ऐहन भासल गप्प कए रहल छी। ई गप्प हमरा बड अप्रिय लागल। अइँ यौ राजूबाबू एइ छौड़ाकेँ माथा खराप भऽ गेलै। तँ सुकनीसँ छुआ दहीन ठीक भऽ जेतै। ककरो बोखार लागल तँ सुकनीसँ छुआ दहीन, ककरो ललबा मारि देलक तँ सुकनीसँ छुआ दहीन। सबसँ बुरबक दीनेनाथ होइ छै की ने? ठीके कहबी छै- मुँह-दुबरा बौह सबहक भौजाइ होइ छै।
राजू- सोमन, हम अपन बात आपस लेलौं। हमरासँ गलती भेल। तौं सभ अपसेमे फरिया लएह। वा जे मन हो से करह। हम जाइ छी।
(राजूक प्रस्थान)
मटुक- सोमन, अहाँ माएकेँ कहियौन ललनमाकेँ छुबै लए नै तँ बुझि लिअ।
सोमन- हमर माए कोनो हालेत मे नै छुबि सकै अछि। अइ लेल अहाँ सभकेँ जे करबाक हुअए से करु।
मटुक- हरामी नहितन, डाइनकेँ प्रश्रय दै अछि। ऐहन माएकेँ भरल सभामे जिनदे हम सभ जरा दैतौं।
सोमन- निकाल सार, बजा कोन धाइमकेँ बजाबै छेँ। जदी‍ हमर माए डाइन साबि‍त भेल तखन धाइमक टोटल खर्च हमर आओर माएकेँ भरल सभामे मोटि‍या तेल ढारि कऽ आगि लगा देब।
मटुक- एक महिनाक भीतरे हम तोरा माएकेँ डाइन निकालि कऽ देखा दै छियौ। सार, हम तोरा माएकेँ एक तोरा माएकेँ एक महिना कऽ भीतरे भकसी नइ झोंका देलौं तऽ हम पाजी।
सोमन- सार, तोहूँ सुनि ले, डाइन साबित भेलापर हमहुँ अपन माएकेँ जिनदे नै जरा देलौं तँ हम पाजी।
पवन- कका, चलू अपन आंगन। लऽ चलू ललनमाकेँ। ई खच्चरी नइ छुअत एकरा। एकटा चिक्कन धाइमकेँ लाउ आ पहिने एकरा डाइन साबित करु, तखन एकरा सभकेँ बापक बियाह आ पितियाक सगाइ देखाएब। रुपैयाक बड़ गरमी भऽ गेलैए सोमनाकेँ। चलू कक्का। लऽ चलू ललनमाकेँ।
(सबहक प्रस्थान)
पटाक्षेप

तेसर दृश्या


(स्थान-सुभाष ठाकुरक घर। दुनू परानी ललनक विषएमे गप-सप करै छथि।)
मीरा- यै ललनक बाबू, हमर विचार अछि जे आब ललनकेँ कोनो बढ़ियाँ धाइमसँ देखाए दियौ।
सुभाष- यै ललनक माए, रातिमे अपन घरक गोसांइ काली बंदी हमरा सप्पन देलनि जे बौआकेँ कोनो चिक्कन धाइमसँ देखा। हम पुछलियनि जे के चिक्कन धाइम छथि तऽ ओ कहलनि जे खोपामे रोडक कातमे परवतिया कोइर नामक एकटा धाइम छथि, ओ एकदम सिद्ध धाइम छथि। ओ जे किछु कहै छथि से उचितो मे उचित। ओतए तोरा मनक भ्रम दूर भऽ जेतौ।
मीरा- ललन बाउ, घरक गोसांइ बड़ पैघ होइ छथिन। हुनक कहल नै करबनि तँ किनक कहल करबनि।
सुभाष- हँ हँ हुनक कहल करबाके अछि! ललन, ललन, बौआ ललन।
(ललनक प्रवेश। ललन बताहक अवस्थामे छथि।)
ललन- हमरा तों बौआ किअए कहै छह? हम तोहर बौआ नै छियह। हम तोहर नाना छियह। आइसँ तों हमरा नाना कहह।
सुभाष- ललन नाना, हमरा सङे चलू एकठाम मेला देखै लए। मएओ जेतीह।
ललन- हम पएरहि नै जेबह। हम कनहापर जेबह।
सुभाष- चलह ने, बेसी कनहेपर चलिहह आ कने-मने पएरो।
ललन- बेस चलह। हमरा ओतए रसगुल्ला, लाय मुरही, झिल्ली किन दिहह। बगियो कीन‍ दिह।
मीरा- चल ने, सबटा कीन‍ देबौ।
(सुभाष, मीरा आ ललन जा रहलह अछि। परबतिया कोइर ओइठाम। परबतिया गहबरमे बैसल छथि! मृदंग बाजि रहल अछि। किछए कालमे परबतियाक देहपर काली बंदी सवार भऽ जाइत छथिन्ह। मृदंग बजनाइ बन्न भऽ जाइ अछि।)
परबतिया- होऽऽऽ बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। काली बंदी छियह हम। बोल जय गंगा। बाजह, के कहाली छह? बोल जय गंगा। जल्दी लग आबह। बोल जय गंगा, जल्दी आबह। हमरा जेबाक छह बाबा धाम। फेर गंगोकेँ देखनाइ अछि।
(तीनू परानी लग जाइ छथि। ललन देह-हाथ पटकि रहल अछि। मूरी हिलाए रहल अछि। भगत पीड़ि परसँ माटि लऽ कऽ ललनक देहपर फेंकलथि। ललन शांत भऽ जाइ अछि। भगत ललनक माथक पूरा पकड़ै छथि।)
परबतिया- हौ बाबू, एकरा केलहा नै छह। जे कियो तोरा कहै छह जे एकरा केलहा अछि से तोहर कट्टर दुश्मन छियह। तोरा दुनू दियादमे झगड़ा लगाबए चाहै छह। बोल जय गंगा। काली बंदी छियह। हौ बाबू ओ तोरासँ ऊपरे ऊपर मुँह धेने रहैत छह। ओ आस्तीनक साँप छियह। हौ बाबू तोड़ै लऽ सब चाहैत अछि मुदा, जोड़ै लऽ कियो नै। बोल जय गंगा। ओ बड़का धुर्त्त छह, मचण्ड छह।
सुभाष- सरकार, हमरा बहुते लोक कहलक जे अहाँक छोटकी भाबो पहुँचल फकीर अछि। ओकरहि ई कारामात छी।
परबतिया- बोल जय गंगा। हौ बाबू, कने तोहुँ सोचहक, अकल लगाबहक जे जदी‍ डाइनकेँ एतेक पावर रहितैक तँ ओ अपन विद्यासँ सौंसे दुनियाँपर शासन करैत रहितै। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य मंत्री, एस.डी.ओ., कलक्टर, थाना-पुलिस, बैंक सभटा वएह रहितै ने। बोल जय गंगा। हौ बाबू, डायनपर विश्वास केनाइ खाँटी अंध विश्वास छी। ई मनक भ्रम छी। ई मनक शंका छी। बोल जय गंगा। हौ बाबू, अगर शंकाबला आदमी केकरो हँसैत देख लेलक तँ ओकरो होइ छै जे ओ हमरेपर हँसल। तें हम यएह कहबह जे तों नीक लोक लागै छह, एे भ्रममे नै पड़ह। नै जौं पड़लह तँ सत्यानाश भऽ जेतह। हम तोरहि घर गोसांइ काली बंदी बाजै छियह। बोल जय गंगा। हौ बाबू, आब हमरा देरी भऽ रहल छह, हमर विमान ऊपरमे लागल छह।
मीरा- सरकार, ई ठीक केना होएत, से उपए बता दथुन न? ई एना किअए करै अछि?
परबतिया- बोल जय गंगा। हौ बाबू, एे छौंड़ाकेँ छीनरदेवी लागलि‍ छह।

सुभाष- छीनरदेवी हटत केना?
परबतिया- हँ हटत, नै किअए हटत? जल्दी तों एकर बियाह केहनो लड़कीसँ करह। सभ ठीक भऽ जेतह। आओरो कोनो कष्ट छह?
सुभाष- नै सरकार, जदी‍ अपने सहाय रहबै तँ कोनो कष्ट नै हेतै।
मीरा- सरकार, कने विभूति दए दिअ।
(परबतिया मीराकेँ विभूति देलनि।)
परबतिया- बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। बोल जय गंगा। आब हम जाइ छिअ बाबा धाम।
(कहैत कहैत काली बंदी चलि जाइ छथि।)
सुभाष- सरकार, अपनेक दक्षिणा?
परबतिया- पाँच टाका मात्र।
सुभाष- सरकार एतबे?
परबतिया- हँ पाँचे टाका मात्र। उहो गहबरमे प्रसाद चढ़बै लेल। हमरा गहबरमे ठकै फुसलबै बला काज नै होइत अछि। हमरा गहबरमे कल्‍याण आ संतोषक गप होइ अछि। शंका वा भ्रम बढ़ाबए बला नै, पूर्णतः हटाबए बला गप होइत अछि। आब अपने सभ जाउ। एकर बियाह जल्दी करु, छीनरदेवी भागि जाएत।
(तीनू परानी माथा टेक कऽ प्रणाम करै छथि आ आर्शीवाद लऽ कऽ प्रस्थान करै छथि।)
पटाक्षेप


चारि‍म दृश्य
(स्था‍न- सुभाष ठाकुरक आवास। सुभाषक पीसा घटकराज ठाकुर छथि‍। दुनू आदमी दलानपर बैस‍ कऽ गप-सप्पा करै छथि‍। ललन चश्मा् आ फाटल- चि‍टल वस्त्रु पहि‍र बताह भेषमे एम्हथर-ओम्ह‍र, दर्शकक बीचमे घुि‍म रहल अछि‍।)
घटकराज- बौआ, राति‍मे ि‍कअए फोन केने रही? तखन हम गामपर नै‍ रही, पोखरि‍ ि‍दशि‍ गेल रही।
सुभाष- की कहि‍यऽ पीसा। कहैत लाजो होइ अछि‍। मुदा कहबह नै‍ तँ बुझबहक केना? हौ, ललनमाकेँ छीनरदेवी लागल अछि‍ तेँ ओ बतहपनी करैए‍। एगो नीक भगत कहलनि‍ जे एकर िवयाह जल्दी कर, ठीक भए जेतौ। ऐ ि‍वषयमे गप केनाइ अनि‍वार्य छल। एकरा लेल केत्तौ लड़ि‍कीक जोगार करहक।
घटकराज- बौआ, हमरा लग लड़ि‍का-लड़ि‍कीक जुगार सदि‍खन रहि‍ते‍ अछि‍। मुदा एखन तँ नै‍ अछि‍ आ तोरा करबाक छह जल्दीीए। खएर एगो उपए छह एकरा कहुना कऽ दवाइ ि‍खया-पि‍या कऽ शांत कऽ अमोलागाछी लऽ चलह। ओतय एहेने जरूरीबला िवयाहक लड़ि‍का-लड़ि‍की प्रति‍दि‍न आबै अछि‍ आओर काली मंदि‍रमे िवयाह होइ अछि‍। आइ एगो लड़ि‍की अवस्सम आएल हेतीह। मुदा ओतए लेन-देनक कोनो गप नै‍ होइ अि‍छ। मंदि‍रक पुजारी दु-चाि‍र बेर फोन हमरा प्रति‍दि‍न करै छथि‍।
सुभाष- तहन पीसा, एखने अमोलागाछी चलल जाए?
घटकराज- ि‍बलंब जुि‍न करह, नै‍ तँ लड़ि‍की उठि‍ जेतीह। ओना हम पुजारीकेँ फोन कऽ दै छि‍यनि जे हम लि‍ड़का लऽ कऽ जल्दीि आि‍ब रहलौं हन‍।
(घटकराज पुजारीकेँ फोन करै छथि‍। ऐ बीच सुभाष ललनकेँ दवाइ ि‍खया- पि‍या कऽ शांत करै छथि‍। मीराकेँ बजा कऽ ललनकेँ चि‍क्कन कपड़ा पहि‍राबै छथि‍। पूर्ण तैयार भऽ कऽ सुभाष, ललन आ घटकराज अमोलागाछी जाए रहला अछि‍। ि‍कदु देर बाद ओ सभ ओतए पहुँचि‍ गेलाह। पर्दा हटै अछि‍। काली मंदि‍रमे पुजारी श्री ि‍वनोद झा घंटी डाेलए पूजा करै छथि‍। सुभाष, ललन आ घटकराज माथ टेि‍क प्रणाम करैत छथि‍। ि‍वनोद झा “ऊँ श्री काल्ैे नम:” मंत्र जपि‍ रहल छथि‍। सुभाष तीनु आदमी कालीकेँ प्रणाम कऽ बैसैत छथि‍। दोसर कात लड़ि‍की अनुअंजना अपन माए-बापक संग बैसल छथि‍।लड़ि‍कीक बाप बलदेव महतो आओर माए मालती देवी छथि‍न।)
बलदेव- पंडीजी, हमरा लोकनि‍ कखनसँ बैसल छी?
वि‍नोद- से हम की करब? लड़ि‍का एलाह एखन। ि‍बना लड़ि‍के िवयाह होइतए।
मालती- पंडीजी, लड़ि‍का वएह छथि‍ की?
ि‍वनोद- हँ हँ, वएह हेताह छोट अहाँक दमाद।
मालती- अनुअंजना बाउ, लड़ि‍का तँ बड खाप-सूरत अछि‍। यै, लड़ि‍का अपन बुच्चीससँ लाख कच्छेज नि‍मन अछि‍। समधि‍ सेहो राज कुमारे‍ जकाँ छथि‍। यै अनु अंजना बाउ, एकटा गप्प‍ कहु।
बलदेव- कहु ने, की कहए चाहै छी?
मालती- हमहुँ आइए समधि‍सँ िवयाह कऽ लि‍अ।
बलदेव- हँ। हँ। हँ। हँ। औगताउ नै‍। जुलूम भऽ जाएत। हम केना जीयब। एक्को टा बकरीयाे नै‍ अछि‍।
ि‍वनोद- आउ जजमान सभ। आबै जाइ जाउ आ मैया कालीक दरवारमे बैसै जाउ।
(एक कात लड़ि‍काबला, दोसर कात लड़ि‍कीबला आ बीचमे पंडीजी बैसैत छथि‍। पंडीजी लड़ि‍का-लड़ि‍कीक हाथमे गंगा जल दैत छथि‍न।)
पढ़ु- ओम अपवि‍त्रो पवि‍त्रो भव- 3
दुनू- (ललन ओ अनु अंजना) ओम अपवि‍त्रो पवि‍त्रो भव- 3
ि‍वनोद- अपन-अपन देहकेँ ि‍सद्ध कऽ लि‍य।
(ललन आ अनुअंजना जल देहपर छीटि‍ लै छथि‍।)
पढ़ु- ओम श्री गणेशाय नम: -3
दुनू- ओम श्री गणेशय नम: -5
ि‍वनोद- ओम श्री काल्यैय नम: -5
दुनू- ओम श्री काल्यैी नम: -5
ललन- पंडीजी, िवयाह कखन हएत, से मंत्र पढ़ुने।
वि‍नोद- एखन कुम्हैरम भए रहल अछि‍ आओर िवयाह राति‍मे हएत।
बलदेव- पंडीजी, एना ि‍कअए यौ?
अनुअंजना- ठीके कहै छथि‍ लड़ि‍का। एत्ते देरी कतउ िवयाहमे हुअए। हम िवयाह नै देखने छी की? एहेन-एहेन कतेको िवयाह देखने छी आ कऽ कए छोड़ि‍ देने छी।
(दुनू पक्ष एक-दोसरकेँ मुँह देखै छथि‍।)
ि‍वनोद- अहाँ सभ औगतउ नै‍। एि‍ह दरबारमे सभ कलेश नष्टु भए जाइ अि‍छ। अहाँ कालीपर पूर्ण भरोसा राखू। पढ़ु अहाँ दुनू गोटे- ओम गौरीशंकरभ्याछम् नम: -5
दुनू- ओम गौरी शंकराभ्याेम नम: -5
(दुनूकेँ ि‍सन्दुभरदान करए कहै छथि‍ पंडीजी।लड़ि‍का-लड़ि‍कीक मांगमे भुसना सेनुर दैत छथि‍। पंडीजी दुनूकेँ गठबंधन कराए काली देवीकेँ गोर लगबै छथि‍। फेर सभ ि‍कयो गोर लागै छथि‍। हल्लु क नश्ताग-पानि‍ होइ अछि‍।)
ललन- पंडीजी, आब हमरा लोकनि‍ जा सकैत छी घर?
ि‍वनोद- हाँ हाँ हाँ हाँ, रूकु। सुभाषबाबू आ बलदेबबाबू, पहि‍ने दक्षि‍णा दि‍अ तहन जाएब।
सुभाष- कतेक पंडीजी?
ि‍वनोद- मात्र एक सए एक टाका।
बलदेव- हमरा कतेक लगतै पंडीजी?
ि‍वनोद- अहाँकेँ मात्र एकावन टाका।
(दुनू आदमी पंडीजीकेँ दक्षि‍णा देलनि‍ आ आशीर्वाद लऽ कऽ अपन-अपन घर हेतु प्रस्थाीन। लड़ि‍का-लड़ि‍की दुनू एक-दोसरक कन्हा पर हाथ राखि‍ कऽ शानसँ जा रहल छथि‍ पाछू-पाछू।)
पटाक्षेप


अंति‍म दृश्यन

(स्था‍न सुभाष ठाकुरक घर। सुभाष दुनू परानी आपसी गप-सप्प। करै छथि‍।)
सुभाष- ललन माए, ऐ बीचमे ललनक चालि‍-चलन अहाँकेँ केहेन लगैए?
मीरा- (मुस्कुभराइत) हमरा बड़ नीक लगैए। पहि‍नेसँ साफे बदलल लगैए। अहाँकेँ केहेन बुसाइए?
सुभाष- हमरो बि‍ल्कुइल शांत बुझाइए।
(परबति‍याक प्रवेश। दुनू परानी कुर्सीपर सँ उठि‍ पएर छुबि‍ प्रणाम करै छथि‍। फेर तीनू जन कुर्सीपर बैसै छथि‍।)
परबति‍या- कहु हाल-चाल सुभाष भाय।
सुभाष- सरकार अपनेक ि‍करपासँ सभ आनन्दा छी। धन्य छी सरकार अपने।
मीरा- सरकार, आब चैनक साँस लै छी। अपने हमरा लोकनि‍केँ परम शांति‍ प्रदान केलौं। धन्यकवाद अपनेकेँ। सरकार, हमरा लोकनि‍केँ कि‍छु अमृत वचन देल जाउ।
परबति‍या- अमृत वचन तँ मैया भगवती दै छथि‍न। तैयो अपन दू शब्द। कहि‍ दै छी। अपने नीक तँ सभ नीक। अंध वि‍श्वास आत्मछ शांति‍केँ भंङ करैत अछि‍। ऐसँ सदि‍खन बची। यएह मुँह पान खि‍याबै अछि‍ आ यएह मुँह जूता। सत्यस आ प्रि‍य वचन सभकेँ अप्प‍न बनाबै अछि‍।
सुभाष- बौआ, बौआ, बौआ ललन।
ललन- (अन्द,रेसँ) हँ पि‍ताजी, आबै छी।
सुभाष- बौआ, कनि‍योकेँ लेने अबि‍हक, सरकार एलखि‍नहेँ।
(ललन आ अनुअंजनाक प्रवेश। दुनू परानी परबति‍याकेँ पएर छुबि‍ प्रणाम कऽ ठाढ़ छथि‍।)
परबति‍या- बौअा, नीकेना रहै छी ने?
ललन- जी सरकार, अपनेक कृपासँ आब पूर्ण ठीक छी।
परबति‍या- आब ठीक रहबे करब। खाली अपन करतब करू आ नीक सत्संरगमे रहू। आब हम जाइ छी।
(सभ कि‍यो पएर छुबि‍ प्रणाम केलनि‍। परबति‍याक प्रस्था न।)
सुभाष- अंध वि‍श्वासमे लोक भटकि‍ जि‍नगीकेँ गर्तमे धकेल लैत अछि‍। हमहूँ बहकि‍ ओइमे चलि‍ गेलौं। मुदा आब सतत सचेष्ट रहक चाही।
पटाक्षेप
इति‍ शुभम


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