Wednesday, August 24, 2011

जगदीश प्रसाद मण्डलक मि‍थि‍लाक बेटी (नाटक) पर शिव कुमार झा

मि‍थि‍लाक बेटी (नाटक)
इसा संवत् सन २००८सँ लऽ कऽ वर्तमान कालकेँ अद्यतन मैथि‍ली साहि‍त्‍यि‍क आन्‍दोलनक क्रांति‍-काल कहल जा सकैत अछि‍। एहि‍ अवधि‍मे रंग-वि‍रंगक साहि‍त्‍य सरि‍तासँ सजल पत्र-पत्रि‍काक प्रकाशन प्रारंभ भेल अछि‍। जाहि‍मे प्रमुख अछि‍- वि‍देह ई पत्रि‍का, वि‍देह-सदेह, मि‍थि‍ला दर्शन (पुनर्प्रकाशन), पुर्वोत्तर मैथि‍ल, झारखंडक सनेस, नवारम्‍भ, मि‍थि‍ला सृजन आदि‍-आदि‍। एहि‍ पत्र-पत्रि‍काक प्रयाससँ नव-नव साहि‍त्‍यकारक प्रवेश मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे भेल। जाहि‍मेसँ कि‍छु साहि‍त्‍यकार तँ अपन रचनासँ मि‍थि‍लाक मानस पटलपर एहेन स्‍थान बना लेलनि‍ जाहि‍सँ हुनका जौं काल पुरूष माने मेन ऑफ टाइम कहल जाए तँ कोनो अति‍शयोक्‍ति‍ नहि‍ हएत। एहि‍ रचनाकारक भीड़मे एकटा साम्‍यवादी आ बहि‍र्मुखी प्रति‍भासँ सम्‍पन्न रचनाकार छथि‍- श्री जगदीश प्रसाद मंडल। हि‍नक व्‍यक्‍ति‍गत जीवन कोनो रूपक हो मुदा साहि‍त्‍यि‍क सृजनशीलतासँ हि‍नका बहि‍र्मुखी व्‍यक्‍ति‍त्‍वक व्‍यक्‍ति‍ कहल जा सकैत अछि‍।
हि‍नक पहि‍ल रचना ‘ि‍वसॉंढ़’ आ ‘भैँटक लावा’ घर-बाहरमे आ दोसर रचना ‘चुनवाली’ मि‍थि‍ला दर्शनमे प्रकाशि‍त होइते मैथि‍ली पत्रि‍काक संपादक मंडलक संग-संग प्रबुद्ध पाठकक मध्‍य हड़होरि‍ मचि‍ गेल। ‘पहि‍ने आउ आ पहि‍ने पाउ’क आधारपर वि‍देहक संपादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुर हि‍नक रचना सभकेँ अपन पत्रि‍कामे छपाबए लेल हथि‍या लेलन्‍हि‍। एहि‍ प्रकारक शब्‍दक प्रयोग करवाक हमर तात्‍पर्य अछि‍ जे जगदीश जी कोनो नव रचनाकार नहि‍ छथि‍, ति‍रसठि‍ बर्खक माजल साहि‍त्‍यकार छथि‍, मुदा हि‍नक रचनाक प्रदर्शन नहि‍ भेल छल। समग्र रचनासंसार हि‍नक पुत्र उमेश मंडल जीक कम्‍प्‍यूटरमे ओझराएल छल कि‍एक तँ छपयवाक लेल कैंचा कतएसँ अएत?
आदरणीय संपादक गजेन्‍द्र ठाकुरक वि‍शेष अनुग्रह आ श्रुति‍ प्रकाशनक अधि‍ष्‍ठाता श्री नागेन्‍द्र कुमार झा आ श्रीमती नीतू कुमारी जीक कृपासँ हि‍नक एकसँ वढ़ि‍ कऽ एक रचना हथि‍या नक्षत्रक गनगुआरि‍ जकॉं पाठकक आगॉं आवि‍ रहल अछि‍। एहि‍ पुष्‍पांजलि‍ महक एकटा फूल लऽ हम पाठकक सोझा राखि‍ रहल छी- ‘मि‍थि‍लाक बेटी।’ मि‍थि‍लाक बेटी एकटा नाटकक नाम अछि‍। शीर्षकसँ स्‍पष्‍ट होइत अछि‍ जे हमरा सभक समाजक वनि‍ताक आस्‍ति‍त्‍व आ अस्‍मि‍तासँ एहि‍ रचनाक संबंध अछि‍। मुदा....... पोथीक गर्भावलोकनक वाद हमर मोनसँ ई भ्रम भागि‍ गेल। एहि‍मे समाजक वि‍षमताक स्‍पष्‍ट दर्शनक अनुभूति‍ भेल। जगदीश जी साम्‍यवादी वि‍चार धाराक सम्‍पोषक छथि‍, तेँ समाजमे पसरल व्‍याधि‍पर श्रमक वि‍जय, श्रमजीवीक वि‍जय, दृष्‍टि‍कोणक वि‍जय, इमानक वि‍जय, सम्‍यक भौति‍कताक वि‍जय, वौद्धि‍क आ चेतनाक वि‍जय देखयवाक प्रयास कएलनि‍।
पॉंच अंकक एहि‍ नाट्कमे नौ गोट पुरूष पात्र आ पॉंचटा नारी पात्र छथि‍। रचनाक केन्‍द्र वि‍न्‍दु छथि‍ पैंतालीस वर्खक वि‍कट पुरूष पात्र- बावू कर्मनाथ- एकटा प्रशासनि‍क अधि‍कारी। वि‍कट एहि‍ दुआरे कि‍एक तँ भ्रष्‍ट समाजक मध्‍य कर्तव्‍यपरायण इमानदार व्‍यक्‍ति‍ आ बावू एहि‍ दुअारे कि‍एक तँ अधि‍कारी छथि‍। स्‍नातक उर्तीर्ण कएलाक वाद हि‍नक पि‍ता सोमनाथ हि‍नक वि‍वाह एकटा भौति‍कवादी परि‍वारमे पक्का कए लेलनि‍। द्रव्‍य, धन धान्‍य आ बीस वि‍घा जमीनक जुआरि‍मे। मुदा ओ कर्मनाथ जीक मौन समर्थनक आशमे बैसल छलाह। एहि‍ मध्‍य जेठ मासक गरमीमे एकटा कायाहीन आ नि‍र्धन व्‍यक्‍ति‍ हि‍नक दलानपर अएलनि‍। व्‍यथि‍त आ थाकल अपन कन्‍याक हेतु वर तकवाक क्रममे सोमनाथक दलानपर अचेत भऽ गेलाह। सोमनाथसँ हुनक व्‍यथा नहि‍ देखल गेल। ओहि‍ गरीबक कन्‍यासँ वि‍याह करवाक लेल आतुर भऽ गेलाह। कालान्‍तरमे ई वि‍याह सम्‍पन्न तँ भऽ गेल मुदा, परि‍वारमे सामंजस्‍य नहि‍ रहि‍ सकल। पि‍ता सोमनाथ आ दू भाँइ क्रमश: नूनू आ लालबावू हि‍नक नि‍र्णएसँ दुखी भऽ गेलनि‍, कि‍एक तँ कुवेरक भंडारक आशपर कर्मनाथ जी नोन छीटि‍ देलनि‍। प्रति‍भाशाली छात्र कर्मनाथ प्रशासनि‍क अधि‍कारी बनि‍ गेलाह परंच हि‍नक इमान भौति‍कतापर भारी पड़ि‍ गेल जाहि‍सँ नव-नव समस्‍या उत्‍पन्न भऽ गेल। पत्‍नी चमेली, पुत्र फुलेसर आ पुत्री द्वय चम्‍पा आ जूही- ई अछि‍ हि‍नक परि‍वार। भावक सर आ वि‍श्‍वासक शतदलक संग जीवन क्रम चलैत रहल। िपता सोमनाथ अदूर्दर्शी व्‍यक्‍ति‍ छलाह, जाहि‍सँ अन्‍य दुनू पुत्र अवण्‍ड भऽ गेलनि‍। कर्महीन नूनू आ लालबावू जथा बेचि‍-बेचि‍ कए कर्मनाथक बरावरि‍ करवाक प्रयास कऽ रहल छलथि‍। पि‍तासँ महि‍मा मंडि‍त होएवाक कारणें दुनूक जीवन नारकीय भऽ गेल। परि‍वारक दशा ओ दि‍शाकेँ देखि‍ कऽ कर्मनाथक माए आशाक आश टूटि‍ रहल छल। कर्मनाथ जीक पि‍तृ परि‍वारमे मात्र हि‍नक माएक व्‍यक्‍ति‍त्‍व सोझराएल छल। कि‍एक नहि‍ रहत, सभ माएक इच्‍छा होइत अछि‍ हुनक पुत्रक नाओसँ समाज गौरवान्‍वि‍त होअए।
जगदीश जी एहि‍ नाट्य कथाक नायकक स्‍पष्‍ट उद्घोषण नहि‍ कएलनि‍ मुदा, हमर मतसँ एहि‍ नाटकक नायक छथि‍ वि‍कास, एकटा सेवा नि‍वृत्त शि‍क्षक। आदर्श आ सहज वि‍चार धाराक व्‍यक्‍ति‍ श्री वि‍कास अपन समाजक चि‍तंक छथि‍। मि‍थि‍लाक गाम एखनो वि‍कासक धारामे पाछॉं पड़ल अछि‍। शि‍क्षाक अभाव, सामाजि‍क समरसताक अभाव आ साधनक अभावक कारण वि‍कास सन प्रबुद्ध व्‍यक्‍ति‍क ग्राम्‍य समाजमे आवश्‍यकता अछि‍। गामक प्राय: नव आ अधवयस पीढ़ी हुनक छात्र रहलनि‍ अत: हुनक सलाहकेँ मानैत छथि‍। श्रीचन कि‍सान हाटपर प्रचार करवाक लेल आएल शंकर बीज कंपनीक प्रलोभनमे आवि‍ टमाटरक वि‍देशी बीआ खरीद लैत छथि‍। टमाटर उपजाक कोन कथा जे लत्ति‍ओ गलि‍ गेल। श्रीचन संताप आ क्रोधक मारे आकुल छलाह। वि‍कास जी हुनका सान्‍त्‍वना दैत कहलनि‍ जे प्रचारक चकाचौंधमे नहि‍ अएवाक चाही अपन स्‍वदेशी वस्‍तु ओहि‍ वि‍देशी समानसँ सोहनगर अछि‍। वि‍कास जीक प्रयासँ कर्मनाथक पुत्री चम्‍पाक वि‍याह रामवि‍लास मि‍स्‍त्रीक पुत्र मदनसँ तँए कएल गेल। एहि‍ वि‍याहकेँ केन्‍द्र वि‍न्‍दु मानि‍ एहि‍ पोथीक रचना कएल गेल अछि‍।
आव प्रश्‍न उठैत अछि‍ जे एहि‍ पोथीमे नव की भेटल? मि‍थि‍लाक बेटी नाट्क ‘कर्म प्रधान वि‍श्‍व करि‍ राखा’ सि‍द्धान्‍तक आधारपर लि‍खल गेल अछि‍। एकटा कर्मठ आ इमानदार व्‍यक्‍ति‍केँ समाजमे की-की सहय पड़ैत अछि‍, ओहि‍ परि‍पेक्ष्‍यक मार्मि‍क चि‍त्रण कएल गेल अछि‍। कथाक मूलमे कर्मनाथक वि‍याह क्रममे आएल एकटा गरीब (चमेलीक पि‍ता) व्‍यक्‍ति‍क मनोदशाक प्रस्‍तुति‍ नीक अछि‍। ओ व्‍यक्‍ति‍ गरीब छथि‍ मुदा ‘चार्वाक दर्शन’क पालक। ‘पेटमे खढ़ नहि‍ सि‍ंहमे तेल’ जेवीमे कैंचा नहि‍ मुदा नौ हन्नाक बटुआ जाहि‍मे भोगक वस्‍तु छलि‍या सुपारी पान आ तमाकू। हमरा सबहक गाममे एहि‍ना होइत अछि‍, भोजन नहि‍ मुदा, पान अवश्‍य। पग-पग पोखरि‍ माछ मखान... मधुर बोल मुस्‍की मुख पान... नेना पढ़लक, नहि‍ पता, कनि‍याकेँ पथ्‍य भेटल नहि‍ जनै छी, बेटीक लेल दूध अछि‍... नहि‍। मुदा! पान अति‍आवश्‍यक, हाथी मरि‍ गेल, छान आ पग्‍घा लऽ कऽ बौआ रहल छी। कर्मनाथक अपन पत्‍नी चमेलीक संग वार्तालापमे ‘खट्टर ककाक तरंग’क दर्शन होइत अछि‍। गाममे प्रचलि‍त लोकोक्‍ति‍क हास्‍य मुदा, सत्‍य प्रस्‍तुति‍।
कर्मनाथ जीक पुत्रक नाम फुलेसर प्रशासनि‍क अधि‍कारी भऽ कऽ एहेन नाम.....। एहि‍सँ हुनक गामक प्रति‍ सि‍नेहक झॉंकी भेटैत अछि‍। गाममे एहने नाम सभ होइत अछि‍। अपन दुनू पुत्री आ पुत्रकेँ छायावादी रूपमे जीवनक शि‍क्षा दैत छथि‍..... कर्मनाथ। एना करव आवश्‍यक कि‍ए तँ एहि‍सँ जि‍ज्ञासा बढ़ैत अछि‍। राम वि‍लास सेवा नि‍वृत मि‍स्‍त्री छथि‍। वाल्‍यकाल साधनक अभावमे, युवावस्‍था संघर्षमे वि‍ता कऽ भौति‍क साधन प्राप्‍त कएलनि‍। जीवनक अंति‍म पड़ावमे माधुरीसँ माने अपन पत्‍नीसँ अपन जीवन-यात्राक व्‍याख्‍यान करैत छथि‍, आश्‍चर्यमे पड़ि गेलहुँ। जि‍नका संग चालीस बर्खक यात्रा कएलनि‍ ओ हि‍नक जीवन दर्शन नहि‍ जनैत छलीह। हमरा सबहक समाजमे एहि‍ प्रकारक घटना होइते अछि‍। गरीव नेनपनक वाद सोझे प्रोढ़ भऽ जाइत छथि‍। जे कर्मवादी छथि‍ हुनक अंति‍म अवस्‍था सुखमय नहि‍ तँ......। अपन कर्मक नावकेँ कलकत्तामे मजवुत कऽ सोझे गाम आवि‍ जाइत छथि‍। मातृभूमि‍क प्रति‍ सि‍नेह, गामेमे गैरेज खोलवाक योजना अछि‍। चौघारा घर बनाएव, दलान अवश्‍य रहत, कि‍एक तँ दलान समाजक मर्यादा थि‍क गामक जीवन शहरसँ सुखमयी अछि‍। एहि‍ पोथीमे पलायनवादक वि‍रोध कएल गेल अछि‍।
कर्मनाथक चरि‍त्र पंडि‍त गोवि‍न्‍द झा लि‍खि‍त ‘वसात’ नाटकक नायक कृष्‍णकान्‍तसँ मि‍लैत अछि‍। राम वि‍लास जीवन संघर्षमे वि‍जयी भेलाह तेँ पुत्रक वि‍याह आदर्श करताह। वि‍कास जीक चरि‍त्र नाटकक लेखक जगदीश बावूसँ मि‍लैत अछि‍। साम्‍यवादी, ग्रामीण सभ्‍यताक दि‍ग्‍दर्शक। एहि‍ पोथी‍मे जाति‍वादी व्‍यवस्‍थाक वि‍रोध कएल गेल अछि‍। आन गामक स्‍वजातीयकेँ भोजमे नि‍मंत्रण देवासँ अनि‍वार्य अछि‍ अपन गामक सभ जाति‍केँ आमंत्रि‍त करब। ि‍कएक तँ वेर-कुवेरमे पॉजरि‍ लागल लोक काज दैत छथि‍, चाहे ओ कोनो जाति‍क हो।
एहि‍ पोथीमे जीवनक सभ रूपक व्‍यापक दर्शन कएल गेल अछि‍। कुलीन व्‍यक्‍ति‍ जनि‍क परि‍वार नीचॉं मुँहे जा रहल अछि‍ ओहि‍ परि‍वारक कन्‍याक वि‍याह उर्ध्‍वमुखी साधारण परि‍वारक पुत्र (जे आव सम्‍पन्न छथि‍) हुनकासँ भऽ सकैत अछि‍। एहि‍ पोथीमे अन्‍हारपर इजोतक वि‍जय देखाओल गेल अछि‍। भौति‍कतापर बौद्धि‍कता आ सम्‍यक जीवनक जीत एहि‍ पोथीक केन्‍द्र वि‍न्‍दुमे समेटल अछि‍ पुत्रक वि‍याहमे ति‍लक लेवासँ वेसी अछि‍ कुलीन कन्‍याक चयन। सम्‍पूर्ण पोथीमे देशज शब्‍दक प्रयोग कएल गेल अछि‍। पोथीक अंति‍म पृष्‍ठपर श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक कथन मैथि‍ली साहि‍त्‍यक इति‍हास (जगदीश प्रसाद मंडलसँ पूर्व आ जगदीश प्रसाद मंडलसँ) पढ़लहुँ पहि‍ने तँ अनसोहॉंत लागल मुदा पोथीक अध्‍ययन कएलाक पश्‍चात् हमरा सहज लागल। भाषा अत्‍यन्‍त सामान्‍य मुदा रस, अलंकार आ छंदसँ परि‍पूर्ण अछि‍। कलात्‍मक शैलीमे जगदीश जी अंक-अंकमे अपन दर्शनकेँ सहेजि‍ लेने छथि‍। हि‍नक ई रचना कोनो वि‍शेष कथाकार वा नाटक कारसँ‍ प्रभावि‍त नहि‍। हि‍नक रचनामे राजकमल जी, पंडि‍त गोवि‍न्‍द झा, हरि‍मोहन बावू, धूमकेतु, गुलेरी जी, लक्ष्‍मीनारायण मि‍श्र, ललन ठाकुर सन रचनाकारक शैलीक मि‍श्रि‍त दर्शन होइत अछि‍। मि‍थि‍लाक बेटी अर्थनीति‍सँ प्रभावि‍त अछि‍ मुदा, सम्‍यक अर्थनीति‍सँ। अर्थपर मानवताक वि‍जय, जगदीश जीक वि‍श्‍वास नीक लागल।
जेना कोनो व्‍यक्‍ति‍ पूर्ण नहि‍ भऽ सकैत अछि‍ तहि‍ना कोनो रचनाक संग होइत अछि‍। ‘मि‍थि‍लाक बेटी’पोथीमे कि‍छु त्रुटि‍क दर्शन सेहो भेल। प्रथमत: एहि‍ पोथीक शीर्षक अप्रासंगि‍क लागल। बेटी तँ एहि‍ दर्शनक माध्‍यम मात्र अछि‍, स्‍त्रोत नहि‍। एहि‍मे मानवीयताक जीत देखाओल गेल अछि‍ बेटीक जीवन तँ घटना मात्र थि‍क।
एहि‍ नाटकक भाषा सरल मुदा, शनै: शनै: गमनीय अछि‍ तेँ मंचन करवाक योग्‍य नहि‍, मुदा एकर कलात्‍मक मंचन कएल जा कएल जा सकैत अछि‍।
नि‍ष्‍कर्षत: जगदीश प्रसाद मंडल जी हमरा सबहक बीच एकटा नव जीवनक आयाम लऽ कए आएल छथि‍। बहुरंगी जीवनक आयाम आ सकारात्‍मक सोचक आयाम। मानवीय मूल्‍य एखनो धरि‍ जीवि‍त अछि‍। एहि‍ तरहक घटना कठि‍न अछि‍ मुदा असंभव नहि‍। वि‍श्‍वास आ कर्मक संग जीवन जीवाक प्रयत्‍न करवाक चाही। एहि‍ पोथीक शब्‍द-शब्‍दमे झंकार अछि‍। भाषा प्रवाहमयी लागल। प्रकाशन दलक प्रयास नीक, शब्‍द संयोजन आ संपादन अति‍ उत्तम। धन्‍यवाद।
पोथीक नाम- मि‍थि‍लाक बेटी
रचनाकार- जगदीश प्रसाद मंडल (साभार विदेह)

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